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कर्ण सिंह चौहान

सूची कर्ण सिंह चौहान

डॉ॰ कर्ण सिंह चौहान वरिष्ठ लेखक और आलोचक हैं। इनकी एक दर्जन से अधिक आलोचना-पुस्तकें, कविता-संकलन, कहानी-संग्रह, यात्रा-वृत्तांत, डायरी और अनुवाद प्रकाशित हैं। मूल रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया लेकिन कई वर्षों तक सोफिया विश्वविद्यालय बल्गारिया, सिओल, कोरिया में अतिथि प्रोफैसर के रूप में अध्यापन किया। इनकी समलोचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। पूर्ण परिचय जन्म–तिथि :   28 फरवरी‚ 1948 को उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर (अब नोएडा) में जन्म। शिक्षा      •         स्कूल की पढ़ाई दिल्ली के स्कूलों में।           •         हिन्दू कालेज‚ दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी में बी.ए. आनर्स और एम.ए.। •         दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.

1 संबंध: आलोचना

आलोचना

आलोचना या समालोचना (Criticism) किसी वस्तु/विषय की, उसके लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, उसके गुण-दोषों एवं उपयुक्ततता का विवेचन करने वालि साहित्यिक विधा है। हिंदी आलोचना की शुरुआत १९वीं सदी के उत्तरार्ध में भारतेन्दु युग से ही मानी जाती है। 'समालोचना' का शाब्दिक अर्थ है - 'अच्छी तरह देखना'। 'आलोचना' शब्द 'लुच' धातु से बना है। 'लुच' का अर्थ है 'देखना'। समीक्षा और समालोचना शब्दों का भी यही अर्थ है। अंग्रेजी के 'क्रिटिसिज्म' शब्द के समानार्थी रूप में 'आलोचना' का व्यवहार होता है। संस्कृत में प्रचलित 'टीका-व्याख्या' और 'काव्य-सिद्धान्तनिरूपण' के लिए भी आलोचना शब्द का प्रयोग कर लिया जाता है किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का स्पष्ट मत है कि आधुनिक आलोचना, संस्कृत के काव्य-सिद्धान्तनिरूपण से स्वतंत्र चीज़ है। आलोचना का कार्य है किसी साहित्यक रचना की अच्छी तरह परीक्षा करके उसके रूप, गणु और अर्थव्यस्था का निर्धारण करना। डॉक्टर श्यामसुन्दर दास ने आलोचना की परिभाषा इन शब्दों में दी है: अर्थात् आलोचना का कर्तव्य साहित्यक कृति की विश्लेषण परक व्याख्या है। साहित्यकार जीवन और अनभुव के जिन तत्वों के संश्लेषण से साहित्य रचना करता है, आलोचना उन्हीं तत्वों का विश्लेषण करती है। साहित्य में जहाँ रागतत्व प्रधान है वहाँ आलोचना में बुद्धि तत्व। आलोचना ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों और शिस्तयों का भी आकलन करती है और साहित्य पर उनके पड़ने वाले प्रभावों की विवेचना करती है। व्यक्तिगत रुचि के आधार पर किसी कृति की निन्दा या प्रशंसा करना आलोचना का धर्म नहीं है। कृति की व्याख्या और विश्लेषण के लिए आलोचना में पद्धति और प्रणाली का महत्त्व होता है। आलोचना करते समय आलोचक अपने व्यक्तिगत राग-द्वेष, रुचि-अरुचि से तभी बच सकता है जब पद्धति का अनुसरण करे, वह तभी वस्तुनिष्ठ होकर साहित्य के प्रति न्याय कर सकता है। इस दृष्टि से हिन्दी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को सर्वश्रेष्ठ आलोचक माना जाता है। .

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