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कादेश का युद्ध

सूची कादेश का युद्ध

कादेश का युद्ध (Battel of Kadesh) रामेसेस द्वितीय के नेतृत्व में मिस्र साम्राज्य और मुवाताल्ली द्वितीय के नेतृत्व में हित्तिते साम्राज्य के बीच कादेश नाम के नगर में हुआ था। यह युद्ध १२७४ ईसापूर्व में हुआ था और यह इतिहास का पहला युद्ध है जिसका लिखित प्रमाण है साथ ही युद्ध में रणनीति का भी उल्लेख है। यह इतिहास का एेसा युद्ध है जिसमे कई रथों का उपयोग हुआ था, लगभग ५००० से ६००० रथ। यह युद्ध दोनों देशों के बीच शांति समझौते के साथ ख़त्म हुआ। .

21 संबंधों: तुथंखमुन, थुतमोस तृतीय, पिताह, फैरो, मित्तानी साम्राज्य, मिस्र साम्राज्य, मिस्र का अठारहवां वंश, मुवाताल्ली द्वितीय, रा, रामेसेस द्वितीय, रामेसेस प्रथम, राजा क्षत्रवर, सेत, सेती प्रथम, हत्ती लोग, हिक्सोस, कादेश, अतेन, अबू सिम्बल मन्दिर, अमुन, अखेनातेन

तुथंखमुन

तुतनखामुन का मुखौटा, प्राचीन मिस्र के लिए एक लोकप्रिय चिन्ह, मिस्र के संग्रहालय में स्थित. तुतनखामुन (१३४१-१३२३ BC) मिस्र का फारो था जिसकी कब्र को हावर्ड कार्टर ने १९२२ में खोला। वह राजा तुत के रूप में लोकप्रिय है। यह अखेनातेन का पुत्र था। वह १३३३ BC में गद्दी पर तुतनखामुन के नाम से बैठा तब उसकी उम्र ९ या १० वर्ष थी। तुतनखामुन को मतलब है "अमुन की छवि वाला"। श्रेणी:प्राचीन मिस्र श्रेणी:मिस्र के फैरो.

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थुतमोस तृतीय

थुतमोस तृतीय (१४७९-१४२५ ईसापूर्व) प्राचीन मिस्र के नविन साम्राज्य के अठारहवें राजवंश का छठा फैरो था और मिस्र के इतिहास का सबसे महान फैरो भी| अपने शासन काल के पहले २२ वर्ष वह राज्याधिकारी के रूप में अपनी सौतेली माँ हत्शेप्सुत के साथ राज करता रहा| हत्शेप्सुत ने थुतमोस को अपना सेनापति नियुक्त किया था। हत्शेप्सुत की मृत्यु के बाद थुतमोस अगला फैरो बना, उसने लघभग १७ सैन्य अभियान किये और मिस्र का सबसे बड़ा साम्राज्य खड़ा किया जो उत्तर में फ़ोनीशिया और फ़रात नदी तक,पश्चिम में लीबिया तक और दक्षिण में नील नदी के चौथे जल-प्रपात तक यानि नुबिया तक था। उसका सम्पूर्ण शासन काल ५४ वर्ष का है, प्रतिशासक के रूप में २२ वर्ष मिलाकर| उसके नाम का अर्थ है "देवता थोथ ने जन्म लिया",यह संकेत है की वह देवता थोथ का उपासक था। श्रेणी:प्राचीन मिस्र श्रेणी:फैरो श्रेणी:मिस्र के शासक.

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पिताह

पिताह प्राचीन मिस्र के देवताओं का पिता। उत्तरकालीन वह शिल्पियों का देवता माना गया। पिताह उसके नाम का मिस्री उच्चारण है।.

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फैरो

तृतीय वंश के द्जोज़र के बाद से, फैरो गणों को सामान्यतः नेमिस शिरोऽलंकरण, एक नकली दाढ़ी तथा एक अलंकृत घेरदार निचला वस्त्र पहने हुए दिखाया जाता था। फैरो प्राचीन मिस्र के शासकों के लिए आधुनिक चर्चाओं एवं इतिहास में प्रयोग किया जाने वाला शब्द है। पुरालेखों में यह उपाधि उन शासकों के लिए प्रयोग की जाती थी, जो धार्मिक और राजनैतिक दोनों ही तरह के नेता थे। यह वहाँ के नए राज्य के लिए, खासकर अट्ठारहवें वंश के लिए था। आधुनिक युग में इतिहासवेत्ताओं ने सरलीकरण के लिए इसे सभी कालों के शासकों के लिए प्रयोग करना शुरु कर दिया। इस शब्द का मूल भाषा में अर्थ था राजा का महल, किंतु मिस्री इतिहास में इसका अर्थ मिस्री शब्द न्स्व्त का पर्याय बन गया, जिसका अर्थ था शासक। हालाँकि शासक अधिकतर पुरुष ही थे, इन्हें न्स्व्त कहा जाता था, किंतु फैरो शब्द स्त्री शासकों के लिए भी प्रयोग हुआ है। आरंभ में शासक वर्ग को एक गौ देवी (बैट का पुत्र माना जाता था, जिसे बाद में हैथर भी कहा गया। समझा जाता था, कि इन्होंने गौमाता की गद्दी लेकर शासन संभाला है और ये देश पर शासन और धार्मिक कृत्य करेंगें। इस बात के भी साक्ष्य हैं, जब कुछ अंतराल पर कर्मकाण्डों के दौरान शासकों का बलिदान दिया गया। किंतु जल्दी ही एक चुने हुए सांड से उसकी पूर्ति कर दी गई। बाद की संस्कृति में शासकों को होरस का अवतार माना जाता था। होरस आकाश का देवता था। और मृत्यु होने पर ओसिरिस का अवतार माना जाता था। एक बार जब इसिज़ और ओसिरिज़ का मत चल निकला, तो फैरोगणों को भगवान ओसिरिज़ और मानव के बीच का सेतु माना जाने लगा और मृत्यु के बाद यह मान्यता हुई कि फैरो ओसोरिज़ में मिल जाते हैं। शाही वंश मातृवंशी था और किसी शाही स्त्री से जन्म या विवाह द्वारा रिश्ता ही शासक का पद दिला सकता था। शाही स्त्रियों की धार्मिक अनुष्ठानों तथा देश के शासन में प्रमुख भूमिका थी, जो कि कई बार फ़ैरो की सहयोगिनी भी बनीं। .

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मित्तानी साम्राज्य

मित्तानी साम्राज्य मित्तानी साम्राज्य यह सा्म्राज्य कई सदियों तक (१६०० -१२०० ईपू) पश्चिम एशीया में राज करता रहा। इस वंश के सम्राटों के संस्कृत नाम थे। विद्वान समझते हैं कि यह लोग महाभारत के पश्चात भारत से वहां प्रवासी बने। कुछ विद्वान समझते हैं कि यह लोग वेद की मैत्रायणीय शाखा के प्रतिनिधि हैं। मित्तानी देश की राजधानी का नाम वसुखानी (धन की खान) था। इस वंश के वैवाहिक सम्बन्ध मिस्र से थे। एक धारणा यह है कि इनके माध्यम से भारत का बाबिल, मिस्र और यूनान पर गहरा प्रभाव पडा। .

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मिस्र साम्राज्य

१५वीं शताब्दी ईसापूर्व में मिस्र साम्राज्य अपने सर्वाधिक विस्तृत रूप में था। प्राचीन मिस्र के इतिहास के १६वीं शताब्दी ई॰पू॰ से ११ शताब्दी ई॰पू॰ की अवधि को मिस्र का नवीन साम्राज्य या मिस्र साम्राज्य कहा जाता है। इस समय मिस्र के अठारहवें, उन्नीसवें और बीसवें राजवंश ने शासन किया। रेडियोकार्बन तिथि निर्धारण पद्धति से इस साम्राज्य का यथार्थ उद्भव १५७०–१५४४ ई॰पू॰ प्राप्त होता है। इस काल में मिस्र अपने वैभव और शक्ति के शिखर पर था। .

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मिस्र का अठारहवां वंश

मिस्र का अठारहवां वंश के शासकों की सूचि.

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मुवाताल्ली द्वितीय

मुवाताल्ली द्वितीय (१२९५-१२७२ ईसापूर्व) हित्तिते साम्राज्य का राजा था। वह रामेसेस द्वितीय के विरुद्ध लड़ें गए अपने युद्ध कादेश के युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। .

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रा

रा मिस्र के धर्म में सूर्य देवता का नाम है। श्रेणी:मिस्र का धर्म श्रेणी:धर्म श्रेणी:मिस्र के देवी-देवता.

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रामेसेस द्वितीय

रामेसेस द्वितीय या रामेसेस महान (१३०३-१२१३ ईसापूर्व) प्राचीन मिस्र के नविन राज्य के उन्नीसवे वंश का तीसरा फैरो था। रामेसेस अपनी युद्ध निति और कई सफल सैन्य अभियानों के लिए प्रसिद्ध है। रामेसेस मिस्र को अपने चरम तक ले गया था और कानन और नुबिया पर विजय प्राप्त कर उसे अपने अधीन किया था। रामेसेस १४ वर्ष की उम्र में मिस्र का उत्तराधिकारी और युवराज बना, अपने बचपन में ही वह मिस्र के सिंहासन पर बैठा और ६६ वर्ष तक ९० की उम्र तक शासन करता रहा जो की अब तक का सबसे लंबा शासन काल है। अपने शासन काल की शुरुआत में उसने पहले स्मारक और मंदिर बनाने और नगर बसाने पर ध्यान दिया। उसने पी रामेसेस नाम का नगर बसाया और फिर उसे अपनी नई राजधानी बनाई ताकि सीरिया पर हमला किया जा सके। रामेसेस प्राचीन मिस्र का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली फैरो था, साथ ही मिस्र का आखिरी महान फैरो भी| उसकी मृत्यु के बाद मिस्र कमजोर पड़ गया और फिर विदेशी साम्राज्यों का प्रांत बन गया। रामेसेस द्वितीय के प्रताप के कारण लोग पिछले सभी महान फैरो जैसे सेती प्रथम और ठुतोमोस तृतीय की वीरता को भूल गए। रामेसेस द्वितीय के बाद के फैरो उसे महान पुरखा कहते, वह तुथंखमुन के बाद मिस्र का सबसे प्रसिद्ध फैरो माना जाता है। .

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रामेसेस प्रथम

रामेसेस या रामेसेस प्रथम (१२९२-१२९० ईसापूर्व) प्राचीन मिस्र के नविन साम्राज्य के उन्नीसवे वंश के प्रथम फैरो थे| रामेसेस अठारहवें वंश आखिरी फैरो होरेम्हेब का अमात्य था,निसंतान होने के कारण होरेम्हेब ने रामेसेस को अपना उत्तराधिकारी चुना| रामेसेस प्रथम ने केवल १७ माह तक ही राज किया जिसके बाद उसके पुत्र सेती प्रथम ने गद्दी संभाली| रामेसेस प्रथम ने अपने शासन काल में मिस्र में शांति स्थापित की और फिर उसके पुत्र सेती प्रथम और पोते रामेसेस द्वितीय मिस्र को उसके स्वर्णिम युग में ले गए| श्रेणी:प्राचीन मिस्र श्रेणी:फैरो श्रेणी:मिस्र के शासक.

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राजा क्षत्रवर

क्षत्रवर या शत्तुआर मित्तानी साम्राज्य के राजा थे। मित्तानी आर्य लोग थे और क्षत्रवर शत्तुआर का संस्कृत शब्द है। .

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सेत

सेत का प्रातिनिधिक चित्रण ओसिरिस मिस्र के धर्म का एक प्रमुख देवता था। इसकी हत्या इसके भ्राता सेत ने की। श्रेणी:मिस्र का धर्म श्रेणी:धर्म श्रेणी:मिस्र के देवी-देवता.

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सेती प्रथम

सेती प्रथम (१२९०-१२७९ ईसापूर्व) नविन साम्राज्य के उन्नीसवें वंश का दूसरा फैरो था और रामेसेस प्रथम का पुत्र था और रामेसेस महान का पिता था। उसके शासन काल पर कई इतिहासकारों की अलग अलग राय है। तोलेमैक काल के इतिहासकार मनेठो ने सेती को ५५ वर्ष का शासन काल दिया है जबकि आज के कई इतिहासकार ९ वर्ष और ११ वर्ष को सही मानते हैं। मध्यधरा के इतिहासकारों के अनुसार उसने मिस्र पे ११ वर्ष तक राज किया। 'सेती' का अर्थ है "देवता सेत का" जो यह संकेत करता है कि वह सेत का पूजक था।सेती का असली नाम था "सेती मेरेनपिताह" जिसका अर्थ था "देवता सेत का उपासक,देवता पिताह का प्रिय"। .

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हत्ती लोग

हत्ती या ख़त्ती एक प्राचीन आनातोली लोक-समुदाय था जिन्होने १८वीं सदी ईसापूर्व में उत्तर-मध्य आनातोलिया (आधुनिक तुर्की) के ख़त्तूसा (हत्तूसा) क्षेत्र में एक साम्राजय स्थापित किया। यह साम्राजय १४वीं शताब्दी ईपू के मध्य में सुप्पीलुलिउमा प्रथम के राजकाल में अपने चरम पर पहुँचा जिस समय मध्य पूर्व का एक बड़ा भूभाग इसमें सम्मिलित था। लगभग ११८० ईपू के बाद इस साम्राज्य का पतन हो गया और यह कई नव-हत्ती राज्यों में बिखर गया। इनमें से कुछ राज्य ८वीं सदी ईपू तक अस्तित्व में थे। हत्तियों की भाषा हिन्द-यूरोपी भाषा-परिवार की आनातोलियाई शाखा की सदस्य थी। वे अपनी मातृभाषा को नेसिली (यानि 'नेसा की भाषा') बुलाते थे और अपनी मातृभूमि को 'हत्ती' या 'ख़त्ती'।, Charles Gates, pp.

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हिक्सोस

हिक्सोस (प्राचीन मिस्र की भाषा में अर्थ: विदेशी शासक) यह पश्चिमी एशिया के लोग थे जिन्होंने पूर्वी नील नदी की भूमि पर राज किया था जिस कारण मिस्र के १३व वंश का अंत हुआ और दूसरे मध्यवर्ती काल की शुरुआत हुई। अकाल और महामारी के चलते मिस्र के मूल राजाओं की शक्ति कम हो गयी जिसका लाभ उठा हिक्सोस लोगो ने मिस्र पर हमला कर अपने खुदके १५वे राजवंश की स्थापना की। इन लोगो की भाषा हिन्द यूरोपीय थी। .

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कादेश

कादेश नगर (English:Kadesh) प्राचीन सीरिया का एक प्राचीन नगर था। इसका इतिहास हित्तिते साम्राज्य के काल से शुरू हुआ था। मिस्र ने कादेश पर कई हमले किये और विश्वप्रसिद्ध कादेश का युद्ध यही लड़ा गया था। .

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अतेन

फारो अखेनातेन (मिस्र के १८वें वंश) ने मिस्र के प्राचीन धर्म पर प्रतिबन्ध लगाया और केवल अतेन नामी सूर्य की चक्रिका की उपासना का आदेश दिया। अतेन श्रेणी:मिस्र के देवी-देवता.

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अबू सिम्बल मन्दिर

अबू सिम्बल यह मिस्र में स्थित प्राचीन स्मारक है जिसे युनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया हुआ है यह नाइबिया मन्दिर के लिए प्रसिध्द है लेकिन असबान बाँध के निर्माण के कारण यह मन्दिर नष्ट हो गया था। बाद में युनेस्को ने 36 मिलियन की राशि से से इस का पुननिर्माण कराया तथा 1968 इस्वी में यह पुन: दर्शको के लिए खोल दिया गया। .

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अमुन

प्राचीन मिस्र के धर्म का एक देवता। thumb श्रेणी:मिस्र का धर्म श्रेणी:धर्म श्रेणी:मिस्र के देवी-देवता.

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अखेनातेन

फारो अखेनातेन फारो अखेनातेन (१३५१-१३३४ ईपू) मिस्र के १८वें वंश का था। उसने मिस्र के प्राचीन धर्म पर प्रतिबन्ध लगाया और केवल अतेन नामी सूर्य की चक्रिका की उपासना का आदेश दिया। उसे पाश्चात्य विद्वान विश्व का पहला एकेश्वरवादी मानते हैं। पहले इसका नाम अमेनहोतेप ४ था। पर नया धर्म चलाने के पश्चात इसने यह बदलकर अखेनातेन कर दिया। अखेनातेन और उसका परिवार सूर्य की पूजा करता हुआनेफरतिति उसकी पहली पत्नी थी। मित्तानी राजकुमारी तदुक्षिपा उसकी दूसरी रानी बनी। एक अवधारणा यह है कि इसका धार्मिक परिवर्तन तदुक्षिपा के आगम की भ्रमित समझ पर आधारित था। सुभाष काक के अनुसार उसके सूर्य स्तोत्र और ऋग्वेद के सूर्य सूक्तों में महत्त्वपूर्ण सादृश्य है। अखेनातेन का सूर्य स्तोत्र बाइबल के पूर्वविधान (Old Testament) में १०४वें स्तोत्र के रूप में मिलता है। उसकी मृत्यु पशचात उसके नये धर्म दबाया गया। कुछ विद्वान समझते हैं कि मूसा ने इसी के विचारों को दुबारा उठाना चाहा। यदि यह सिद्धान्त सही है तो यह विडम्बना है कि अखेनातन की परम्परा, जिसे यहूदी ईसाई और इसलामी धर्मों का पूर्वरूप माना जाता है, स्वयं इसकी विरोधी सनातन धर्म की परम्परा पर आधारित है। अखेनातेन, नेफरतिति और उनके बच्चे .

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