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कथानक

सूची कथानक

कथांतर्गत "कार्यव्यापार की योजना" को कथानक (Plot) कहते हैं। "कथानक" और "कथा" दोनों ही शब्द संस्कृत "कथ" धातु से उत्पन्न हैं। संस्कृत साहित्यशास्त्र में "कथा' शब्द का प्रयोग एक निश्चित काव्यरूप के अर्थ में किया जाता रहा है किंतु कथा शब्द का सामान्य अर्थ है-"वह जो कहा जाए'। यहाँ कहनेवाले के साथ-साथ सुननेवाले की उपस्थिति भी अंतर्भुक्त है कयोंकि "कहना' शब्द तभी सार्थक होता है जब उसे सुननेवाला भी कोई हो। श्रोता के अभाव में केवल "बोलने' या "बड़बड़ाने' की कल्पना की जा सकती है, "कहने' की नहीं। इसके साथ ही, वह सभी कुछ "जो कहा जाए' कथा की परिसीमाओं में नहीं सिमट पाता। अत: कथा का तात्पर्य किसी ऐसी "कथित घटना' के कहने या वर्णन करने से होता है जिसका एक निश्चित क्रम एवं परिणाम हो। ई.एम.

8 संबंधों: नाटक, महाकाव्य, लोकगाथा, संस्कृत भाषा, खण्डकाव्य, कथा, कथानक रूढ़ि, उपन्यास

नाटक

नाटक, काव्य का एक रूप है। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। श्रव्य काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है। नाट्यशास्त्र में लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है। .

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महाकाव्य

संस्कृत काव्यशास्त्र में महाकाव्य (एपिक) का प्रथम सूत्रबद्ध लक्षण आचार्य भामह ने प्रस्तुत किया है और परवर्ती आचार्यों में दंडी, रुद्रट तथा विश्वनाथ ने अपने अपने ढंग से इस महाकाव्य(एपिक)सूत्रबद्ध के लक्षण का विस्तार किया है। आचार्य विश्वनाथ का लक्षण निरूपण इस परंपरा में अंतिम होने के कारण सभी पूर्ववर्ती मतों के सारसंकलन के रूप में उपलब्ध है।महाकाव्य में भारत को भारतवर्ष अथवा भरत का देश कहा गया है तथा भारत निवासियों को भारती अथवा भरत की संतान कहा गया है .

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लोकगाथा

लोकगाथा या कथात्मक गीत, अंग्रेजी में 'बैलेड' (Ballad) शब्द से अभिहित हैं। इस की व्युत्पत्ति लैटिन के 'वेप्लेर' शब्द से है जिसका अर्थ है 'नृत्य करना'। कालांतर में इसका प्रयोग केवल लोकगाथाओं के लिए किया जाने लगा। अंग्रेजी साहित्यकार इसकी ओर अधिक आकृष्ट हुए और यह अंग्रेजी साहित्य का लोकप्रिय काव्यरूप ही बन गया। लोकगाथा की परिभाषा करते हुए विभिन्न विद्वानों ने भिन्न भिन्न विचार प्रकट किए हैं। किंतु परिभाषाओं में कुछ सर्वसामान्य तत्व विद्यमान हैं। इस विषय में कुछ प्रमुख विद्वानों के विचार ये हैं - जी.एन.

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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खण्डकाव्य

खण्डकाव्य साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप है। जीवन की किसी घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खण्डकाव्य है। "खण्ड काव्य' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है। जिसमें चरित नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित नहीं करता। कवि चरित नायक के जीवन की किसी सर्वोत्कृष्ट घटना से प्रभावित होकर जीवन के उस खण्ड विशेष का अपने काव्य में पूर्णतया उद्घाटन करता है। प्रबन्धात्मकता महाकाव्य एवं खण्ड काव्य दोनों में ही रहती है परंतु खण्ड काव्य के कथासूत्र में जीवन की अनेकरुपता नहीं होती। इसलिए इसका कथानक कहानी की भाँति शीघ्रतापूर्वक अन्त की ओर जाता है। महाकाव्य प्रमुख कथा केसाथ अन्य अनेक प्रासंगिक कथायें भी जुड़ी रहती हैं इसलिए इसका कथानक उपन्यास की भाँति धीरे-धीरे फलागम की ओर अग्रसर होता है। खण्डाकाव्य में केवल एक प्रमुख कथा रहती है, प्रासंगिक कथाओं को इसमें स्थान नहीं मिलने पाता है। संस्कृत साहित्य में इसकी जो एकमात्र परिभाषा साहित्य दर्पण में उपलब्ध है वह इस प्रकार है- इस परिभाषा के अनुसार किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों वह खंडकाव्य है। वह महाकाव्य के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है। तदनुसार हिंदी के कतिपय आचार्य खंडकाव्य ऐसे काव्य को मानते हैं जिसकी रचना तो महाकाव्य के ढंग पर की गई हो पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो। अर्थात् खंडकाव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो। वस्तुत: खंडकाव्य एक ऐसा पद्यबद्ध काव्य है जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति हो; कथा में एकांगिता (साहित्य दर्पण के शब्दों में एकदेशीयता) हो तथा कथाविन्यास क्रम में आरंभ, विकास, चरम सीमा और निश्चित उद्देश्य में परिणति हो और वह आकार में लघु हो। लघुता के मापदंड के रूप में आठ से कम सर्गों के प्रबंधकाव्य को खंडकाव्य माना जाता है। .

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कथा

कहानी सुनने-सुनाने की भारतीय पद्धति को कथा कहते हैं। .

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कथानक रूढ़ि

कथानक रूढ़ि वास्तविकता, कल्पना अथवा संभावना पर आधारित किसी छोटी घटना, निश्चित साँचे में ढले हुए कार्यव्यापार या उस विचार (आइडिया) को कहते हैं जो समान स्थिति में कथानक को आरंभ करने, गति देने, कोई नवीन मोड़ या घुमाव देने, कथा को चामत्कारिक ढंग से समाप्त करने अथवा अपने में ही संपूर्ण कथा का संघटन कर लेने के लिए बार-बार प्रयुक्त होता है। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कथानक रूढ़ि के बारे में (हिंदी साहित्य का आदिकाल, पटना, १९४७ ई. पू. ८०) कहा है अभिप्राय (motif / मोटिफ़) की परिभाषा देते हुए शिप्ले (डिक्शनरी ऑव वर्ल्ड लिटरेचर) ने बताया है, अभ्रिपाय की यह सामान्य परिभाषा है, क्योंकि विभिन्न कलारूपों में इसका विभिन्न अर्थो में प्रयोग होता है और प्रत्येक कलारूप के अपने अलग-अलग अभिप्राय होते हैं। अत: यहाँ अभिप्राय के बारे में विचार कर लेना समीचीन रहेगा। .

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उपन्यास

उपन्यास गद्य लेखन की एक विधा है। .

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कथावस्तु

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