लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

कंधे की अकड़न

सूची कंधे की अकड़न

फ्रोजेन शोल्डर (अकड़े हुए कंधे), जिसे चिकित्सकीय रूप से आसंजी सम्‍पुट-प्रदाह (कैप्‍सूलाइटिस) कहा जाता है, एक विकार है, जिसमें कंधे का कैप्‍सूल, कंधे के अंसगत तथा प्रगण्डिका संबंधी जोड़ को घेरने वाला संयोजी ऊतक सूजा हुआ एवं कठोर बन जाता है, जो गति को अत्यधिक नियंत्रित कर देता है एवं तीव्र दर्द उत्पन्न करता है। आसंजी सम्‍पुट-प्रदाह (कैप्‍सूलाइटिस) कष्टदायक एवं असमर्थकारी स्थिति होती है, जो धीमे स्वास्थ्य लाभ के कारण अक्सर रोगियों एवं देखभाल करने वाले व्यक्तियों के लिए निराशा उत्पन्न करती है। कंधे की गति अत्यधिक सीमित हो जाती है। दर्द आम तौर पर अनवरत होता है, जो रात के समय अधिक बुरा होता है, जब मौसम ठंडा होता है एवं सीमित गति के साथ-साथ छोटे से छोटे कार्यों को भी असंभव बना देता है। कुछ गतियां या सूजन तीव्र दर्द की अचानक शुरु हो सकते हैं एवं ऐंठन उत्पन्न कर सकते हैं, जो कई मिनटों तक जारी रह सकते हैं। यह स्थिति, जिसके सही-सही कारण का पता नहीं है, पांच महीने से तीन वर्षों या अधिक समय तक जारी रह सकती है एवं कुछ स्थितियों में इसे संबंधित हिस्से में चोट या आघात के द्वारा उत्पन्न हुआ माना जाता है। यह माना जाता है कि इसका एक स्व-प्रतिरक्षित अवयव हो सकता है, जिसमें शरीर कैप्सूल में स्थित स्वस्थ ऊतकों पर हमला करता है। जोड़ में तरल पदार्थ का भी अभाव होता है, जो गति को और अधिक सीमित करता है। रोजमर्रा के कार्यों में कठिनाई के अलावा, आसंजी सम्‍पुट-प्रदाह (कैप्‍सूलाइटिस) से प्रभावित होने वाले लोग रात के समय और भी तेज होने वाले दर्द के कारण अधिक लंबे समय तक सोने की समस्याओं एवं सीमित गतियों/स्थितियों का अनुभव करते हैं। यह स्थिति अवसाद, दर्द और गर्दन तथा पीठ में में समस्याएं भी उत्पन्न कर सकती है। फ्रोजेन शोल्डर के जोखिम वाले कारकों में मधुमेह, दौरा पड़ना, दुर्घटनाएं, फेंफड़े का रोग, संयोजी ऊतक विकार और हृदय रोग शामिल हैं। 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों में यह स्थिति शायद ही कभी दिखाई देती है। इलाज कष्टदायक एवं भार डालने वाला हो सकता है एवं इसमें शारीरिक चिकित्सा, औषधि, मालिश चिकित्सा, शोथ संबंधी फैलाव या शल्य-चिकित्सा (सर्जरी) शामिल हो सकता है। एक डॉक्टर संज्ञाहरण के बाद हेरफेर भी कर सकता है, जो गति की कुछ सीमा वापस लौटाने के लिए जोड़ में आसंजनों तथा क्षतिग्रस्त उतक को तोड़ता है। दर्द और सूजन को दर्दनाशक दवाओं और एनएसएआईडी (NSAIDs) के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इस स्थिति स्वत:-सीमित करने वाली होती है: यह आम तौर पर बिना शल्य-चिकित्सा के समय के साथ विघटित करती है, लेकिन इसमें दो वर्षों तक का समय लग सकता है। अधिकांश लोग समय के साथ लगभग 90% कंधे की गति पुन: प्राप्त करते हैं। जो लोग आसंजी सम्‍पुट-प्रदाह (कैप्‍सूलाइटिस) से पीड़ित होते हैं, उन्हें कई महीनों तक या अधिक लंबे समय तक काम करने में एवं सामान्य जीवन की गतिविधियों के संबंध में अत्यधिक कठिनाई होती है। .

14 संबंधों: एक्यूपंक्चर, दर्द, पश्चविषाणु, पक्षाघात, फुल्लन, भौतिक चिकित्सा, शल्यचिकित्सा, संधि (शरीररचना), हृदय रोग, होम्योपैथी, जलचिकित्सा, आमवातीय संधिशोथ, अस्थि, अस्थिचिकित्सा

एक्यूपंक्चर

हुआ शउ से एक्यूपंक्चर चार्ट (fl. 1340 दशक, मिंग राजवंश). शि सी जिंग फ़ा हुई की छवि (चौदह मेरिडियन की अभिव्यक्ति). (टोक्यो: सुहाराया हेइसुके कंको, क्योहो गन 1716). एक्यूपंक्चर (Accupuncture) दर्द से राहत दिलाने या चिकित्सा प्रयोजनों के लिए शरीर के विभिन्न बिंदुओं में सुई चुभाने और हस्तकौशल की प्रक्रिया है।एक्यूपंक्चर: दर्द से राहत दिलाने, शल्यक बेहोशी और उपचारात्मक उद्देश्यों के लिए परिसरीय नसों के समानांतर शरीर के विशिष्ट भागों में बारीक सुईयां चुभाने का चीना अभ्यास.

नई!!: कंधे की अकड़न और एक्यूपंक्चर · और देखें »

दर्द

दर्द या पीड़ा एक अप्रिय अनुभव होता है। इसका अनुभव कई बार किसी चोट, ठोकर लगने, किसी के मारने, किसी घाव में नमक या आयोडीन आदि लगने से होता है। अंतर्राष्ट्रीय पीड़ा अनुसंधान संघ द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार "एक अप्रिय संवेदी और भावनात्मक अनुभव जो वास्तविक या संभावित ऊतक-हानि से संबंधित होता है; या ऐसी हानि के सन्दर्भ से वर्णित किया जा सके- पीड़ा कहलाता है".

नई!!: कंधे की अकड़न और दर्द · और देखें »

पश्चविषाणु

पश्चविषाणु (रेट्रोवाइरस) एक प्रकार का विषाणु है जिसमें आनुवांशिक पदार्थ आरएनए होता है। इसमें एक रिवर्स ट्रान्स्क्रिप्टेज नामक एन्जाइम होता है जो आर॰एन॰ए॰ से डी॰एन॰ए॰ निर्माण करता है, जो सेन्ट्रल डॉग्मा के विपरित है। .

नई!!: कंधे की अकड़न और पश्चविषाणु · और देखें »

पक्षाघात

पक्षाघात या लकवा मारना (Paralysis) एक या एकाधिक मांसपेशी समूह की मांसपेशियों के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ होने की स्थिति को कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावी क्षेत्र की संवेदन-शक्ति समाप्त हो सकती है या उस भाग को चलना-फिरना या घुमाना असम्भव हो जाता है। यदि दुर्बलता आंशिक है तो उसे आंशिक पक्षाघात कहते हैं। .

नई!!: कंधे की अकड़न और पक्षाघात · और देखें »

फुल्लन

अंगुली में सूजन (अन्तर देखिये) शरीर के किसी भाग का अस्थायी रूप से (transient) बढ़ जाना आयुर्विज्ञान में फुल्लन (स्वेलिंग) कहा जाता है। हिन्दी में इसे उत्सेध, फूलना और सूजन भी कहते हैं। ट्यूमर भी इसमें सम्मिलित है। सूजन, प्रदाह के पाँच लक्षणों में से एक है। (प्रदाह के अन्य लक्षण हैं - दर्द, गर्मी, लालिमा, कार्य का ह्रास) यह पूरे शरीर में हो सकती है, या एक विशिष्ट भाग या अंग प्रभावित हो सकता है| एक शरीर का अंग चोट, संक्रमण, या रोग के जवाब में और साथ ही एक अंतर्निहित गांठ की वजह से, प्रफुल्लित हो सकता है| .

नई!!: कंधे की अकड़न और फुल्लन · और देखें »

भौतिक चिकित्सा

पोलियोग्रस्त दो बच्चों को फिजियोथिरैपी कराती हुई एक विशेषज्ञ व्यायाम के जरिए मांसपेशियों को सक्रिय बनाकर किए जाने वाले इलाज की विधा भौतिक चिकित्सा या फिजियोथेरेपी या 'फिजिकल थेरेपी' (Physical therapy कहलाती है। चूंकि इसमें दवाइयां नहीं लेना पडतीं इसलिए इनके दुष्प्रभावों का प्रश्न ही नहीं उठता। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि फिजियोथेरेपी तब ही अपना असर दिखाती है जब इसे समस्या दूर होते तक नियमित किया जाए। अगर शरीर के किसी हिस्से में दर्द है और आप दवाइयां नहीं लेना चाहते तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। फिजियोथेरेपी की सहायता लेने पर आप दवा का सेवन किए बिना अपनी तकलीफ दूर कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए फिजियोथेरेपिस्ट की सलाह अत्यंत आवश्यक है। फिजिकल थेरपी या फिसिओथेरपी को पी. टी. के नाम से भी जाना जाता हैं। फिसिओथेरपी का मतलब जीवन को पहचानना और उसकी गुणवत्ता को बढना है, साथ ही साथ लोगों को उनकी शरीरिक कमियों से बाहर निकालना, निवारण, इलाज बताना और पूर्ण रूप से आत्म-निर्भर बनाना हैं। यह शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक क्षेत्र में अच्छी तरह से काम करने में मदद देता हैं। फिसिओथेरपी में डाक्टर, शारीरिक चिकित्सक, मरीज, पारिवारिक लोग और दूसरे चिकित्सको का बहुत योगदान होता हैं। .

नई!!: कंधे की अकड़न और भौतिक चिकित्सा · और देखें »

शल्यचिकित्सा

अति प्राचीन काल से ही चिकित्सा के दो प्रमुख विभाग चले आ रहे हैं - कायचिकित्सा (Medicine) एवं शल्यचिकित्सा (Surgery)। इस आधार पर चिकित्सकों में भी दो परंपराएँ चलती हैं। एक कायचिकित्सक (Physician) और दूसरा शल्यचिकित्सक (Surgeon)। यद्यपि दोनों में ही औषधो पचार का न्यूनाधिक सामान्यरूपेण महत्व होने पर भी शल्यचिकित्सा में चिकित्सक के हस्तकौशल का महत्व प्रमुख होता है, जबकि कायचिकित्सा का प्रमुख स्वरूप औषधोपचार ही होता है। .

नई!!: कंधे की अकड़न और शल्यचिकित्सा · और देखें »

संधि (शरीररचना)

400px संधि या जोड़ (जर्मन: Gelenke, फ्रेंच: Articulations, अंग्रेज़ी: Joints) शरीर के उन स्थानों को कहते हैं, जहाँ दो अस्थियाँ एक दूसरे से मिलती है, जैसे कंधे, कुहनी या कूल्हे की संधि। इनका निर्माण शरीर में गति सुलभ करने और यांत्रिक आधार हेतु होता है। इनका वर्गीकरण संरचना और इनके प्रकार्यों के आधार पर होता है। .

नई!!: कंधे की अकड़न और संधि (शरीररचना) · और देखें »

हृदय रोग

हृदय रोग हृदय शरीर का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। मानवों मेंयह छाती के मध्य में, थोड़ी सी बाईं ओर स्थित होता है और एक दिन में लगभग एक लाख बार एवं एक मिनट में 60-90 बार धड़कता है। यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को धकेलता करता है। हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन, रक्त के द्वारा मिलता है जो कोरोनरी धमनियों द्वारा प्रदान किया जाता है। यह अंग दो भागों में विभाजित होता है, दायां एवं बायां। हृदय के दाहिने एवं बाएं, प्रत्येक ओर दो चैम्बर (एट्रिअम एवं वेंट्रिकल नाम के) होते हैं। कुल मिलाकर हृदय में चार चैम्बर होते हैं। दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त करता है एवं उसे फेफडों में पम्प करता है और रक्त फेफडों में शोधित होकर ह्रदय के बाएं भाग में वापस लौटता है जहां से वह शरीर में वापस पम्प कर दिया जाता है। चार वॉल्व, दो बाईं ओर (मिट्रल एवं एओर्टिक) एवं दो हृदय की दाईं ओर (पल्मोनरी एवं ट्राइक्यूस्पिड) रक्त के बहाव को निर्देशित करने के लिए एक-दिशा के द्वार की तरह कार्य करते हैं। हृदय में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार से हैं.

नई!!: कंधे की अकड़न और हृदय रोग · और देखें »

होम्योपैथी

thumb होम्योपैथी, एक चिकित्सा पद्धति है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के जन्‍मदाता डॉ॰ क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान है। यह चिकित्सा के 'समरूपता के सिंद्धात' पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियाँ उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं। औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है। जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए। अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट और समाप्त उसी औषधि से हो सकता है जो मानव शरीर में, रोग के लक्षणों से प्रबल और लक्षणों से अत्यंत मिलते जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके। होमियोपैथी पद्धति में चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन-इतिहास एवं रोगलक्षणों को सुनकर उसी प्रकार के लक्षणों को उत्पन्न करनेवाली औषधि का चुनाव करना है। रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होगी रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है। चिकित्सक का अनुभव उसका सबसे बड़ा सहायक होता है। पुराने और कठिन रोग की चिकित्सा के लिए रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। कुछ होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति के समर्थकों का मत है कि रोग का कारण शरीर में शोराविष की वृद्धि है। होमियोपैथी चिकित्सकों की धारणा है कि प्रत्येक जीवित प्राणी हमें इंद्रियों के क्रियाशील आदर्श (Êfunctional norm) को बनाए रखने की प्रवृत्ति होती है औरे जब यह क्रियाशील आदर्श विकृत होता है, तब प्राणी में इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रतिक्रियाएँ होती हैं। प्राणी को औषधि द्वारा केवल उसके प्रयास में सहायता मिलती है। औषधि अल्प मात्रा में देनी चाहिए, क्योंकि बीमारी में रोगी अतिसंवेगी होता है। औषधि की अल्प मात्रा प्रभावकारी होती है जिससे केवल एक ही प्रभाव प्रकट होता है और कोई दुशपरिणाम नहीं होते। रुग्णावस्था में ऊतकों की रूपांतरित संग्राहकता के कारण यह एकावस्था (monophasic) प्रभाव स्वास्थ्य के पुन: स्थापन में विनियमित हो जाता है। विद्वान होम्योपैथी को छद्म विज्ञान मानते हैं। .

नई!!: कंधे की अकड़न और होम्योपैथी · और देखें »

जलचिकित्सा

जलचिकित्सा (Hydropathy) अनेक रोगों की चिकित्सा करने की एक निश्चित पद्धति है, जिसमें शीतल तथा उष्ण जल का बाह्याभ्यंतर प्रयोग सर्वश्रेष्ठ औषधि होती है और उपचारार्थ प्रयुक्त अन्य सभी ओषधियाँ प्राय: हानिकर समझी जाती हैं। .

नई!!: कंधे की अकड़न और जलचिकित्सा · और देखें »

आमवातीय संधिशोथ

आमवातीय संधिशोथ या आमवातीय संध्यार्ति (अंग्रेज़ी:Rheumatoid arthritis) के आरंभिक अवस्था में जोड़ों में जलन होती है। आरंभिक अवस्था में यह काफी कम होती है। यह जलन एक समय में एक से अधिक संधियों (जोड़ों) में होती है। शुरुआत में छोटे-मोटे जोड़ जैसे- उंगलियों के जोड़ों में दर्द आरंभ होकर यह कलाई, घुटनों, अंगूठों में बढ़ता जाता है। गठिया संधि शोथ होने का सही कारण अभी तक अज्ञात है, आनुवांशिक पर्यावरण और हार्मोनल कारणों की वजह से होने वाले ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया से जलन शुरु होकर बाद में यह संधियों की विरूपता और उन्हें नष्ट करने का कारण बन जाती हैं। (शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली अपनी ही कोशिकाओं को पहचान नहीं पाती हैं और इसलिए उसे संक्रमित कर देती है)। आनुवांशिकी कारक की वजह से रोग के होने की संभावना बनी रहती हैं। यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। कुछ व्यक्तियों में पर्यावरणीय कारणों से भी यह रोग हो सकता है। कई संक्रामक अभिकरणों का पता चला है। रोग के बढ़ने या कम होने में हार्मोन विशेष भूमिका निभाते हैं। महिलाओं में रजोनिवृति के दौरान ऐसे मामले अधिकतर देखने में आते हैं।;आयु हालांकि यह रोग कभी भी हो सकता है परंतु २०-४० वर्ष के आयु वालों में यह रोग ज्यादा देखने में आया है।;लिंग महिलाओं, विशेषकर रजोनिवृत्ति को प्राप्त करने वाली महिलाओं में यह रोग पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक पाया जाता है। .

नई!!: कंधे की अकड़न और आमवातीय संधिशोथ · और देखें »

अस्थि

अस्थियाँ या हड्डियाँ रीढ़धारी जीवों का वह कठोर अंग है जो अन्तःकंकाल का निर्माण करती हैं। यह शरीर को चलाने (स्थानांतरित करने), सहारा देने और शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा करने मे सहायता करती हैं साथ ही यह लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने और खनिज लवणों का भंडारण का कार्य भी करती हैं। अस्थियाँ विभिन्न आकार और आकृति की होने के साथ वजन मे हल्की पर मजबूत होती हैं। इनकी आंतरिक और बाहरी संरचना जटिल होती है। अस्थि निर्माण का कार्य करने वाले प्रमुख ऊतकों मे से एक उतक को खनिजीय अस्थि ऊतक, या सिर्फ अस्थि ऊतक भी कहते हैं और यह अस्थि को कठोरता और मधुकोशीय त्रिआयामी आंतरिक संरचना प्रदान करते हैं। अन्य प्रकार के अस्थि ऊतकों मे मज्जा, अन्तर्स्थिकला और पेरिओस्टियम, तंत्रिकायें, रक्त वाहिकायें और उपास्थि शामिल हैं। वयस्क मानव के शरीर में 206 हड्डियों होती हैं वहीं एक शिशु का शरीर २७० अस्थियों से मिल कर बनता है। .

नई!!: कंधे की अकड़न और अस्थि · और देखें »

अस्थिचिकित्सा

अस्थिचिकित्सक '''लोवर सर्विकल वर्टिब्रा''' के अस्थिभ्रंश जैसे अनेक कार्य करते हैं। टेक्सास रेल दायें एसिटनुलम का मरम्मत का काम अस्थिचिकित्सा (Osteopathy) शल्यतंत्र (surgery) का वह विभाग हैं, जिसमें अस्थि तथा संधियों के रोगों और विकृतियों या विरूपताओं की चिकित्सा का विचार किया जाता है। अतएव अस्थि या संधियों से संबंधित अवयव, पेशी, कंडरा, स्नायु तथा नाड़ियों के तद्गत विकारों का भी विचार इसी में होता है। .

नई!!: कंधे की अकड़न और अस्थिचिकित्सा · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »