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ओविद

सूची ओविद

ओविद (Ovid; 20 मार्च 43 ईसापूर्व – 17/18) रोमन कवि था। उसका जन्म अगस्तस के राज्यकाल में हुआ था। इसका पूरा नाम ओविदियुस नासो (Publius Ovidius Naso (Classical Latin) था। इसका जन्म सुल्मो नामक नगर में हुआ था और यह जन्मना अश्वारोही पद का अधिकारी था। इसने रोम में विधि (कानून) और वाक्चातुर्य की शिक्षा प्राप्त की थी। अरेल्लियुस फ़ुस्फ़स और पोर्कियुस लात्रो इसके गुरु थे। यद्यपि इसके पिता ने इसे अधिवक्ता या वकील बनाना चाहा, तथापि वह अपना हृदय आरंभ से ही कविता को समर्पित कर चुका था। कुछ समय तक तो यह अपने पिता की आज्ञा मानकर अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए एथेंस में रहा किंतु तत्पश्चात् इसने सिसली और लघु एशिया (asia minor) की यात्रा की। युवावस्था में पिता की मृत्यु के पश्चात् इसने रोम नगर में अपने को कविता और प्रेम को समर्पित कर दिया। पैतृक संपत्ति के कारण यह आर्थिक चिंताओं से मुक्त था। इसने तीन बार विवाह किया और संभवत: दूसरे विवाह से उसकी एकमात्र संतान एक पुत्री का जन्म हुआ। ई.पू. १४ में उसकी प्रथम रचना 'अमोरेस' निर्मित हुई। इसमें उसने एक काल्पनिक प्रेमिका कोरिन्न के प्रति अपने हृदय की प्रेमभावना को काव्य का रूप प्रदान किया। प्रथम संस्करण में इसमें पाँच पुस्तकें (अध्याय) थीं, पर दूसरे संस्करण में पुस्तकों की संख्या घटाकर तीन कर दी गई। निर्मित होते ही इस पुस्तक के लेखक की ख्याति सारे रोम में फैल गई। इसी समय के आसपास उसने 'मीडिया' नामक ट्रैजडी की भी रचना की। परंतु आजकल इस नाटक की कुछ पंक्तियाँ ही उपलब्ध हैं। इसके पश्चात् उसने वीरांगनाओं के प्रेमपत्रों की रचना की जिनका प्रकाशन 'हेराइदेस' के नाम से हुआ। सब पत्रों की संख्या २१ है, पर मूलत: इन पत्रों की संख्या इससे अधिक थी। बंगीय कवि माइकेल मधुसूदन दत्त ने इस रचना के अनुकरण पर 'वीरांगना' नामक काव्य की रचना की है। आविद के मित्र आउलुस साबिनुस ने इन पत्रों का उत्तर लिखना आरंभ किया था। साबिनुस के भी तीन पत्र उपलब्ध हैं। ई.पू. २ में ओविद की प्रेम संबंधी सर्वोत्कृष्ट रचना 'आर्स अमातोरिया' (प्रेम की कला) है। प्रेम की देवी वेनुस के द्वारा कवि को प्रेम की कला का दीक्षागुरु नियुक्त किया गया है अतएव उसने तीन पुस्तकों में इस काव्य की रचना की, ऐसा ओविद ने इस ग्रंथ के आदि और अंत में लिखा है। उस समय की रंग-रेलियों से पूर्ण रोमन समाज की पृष्ठभूमि में इस काव्य के प्रकाशन से दो परिणाम घटित हुए। एक ओर तो कवि उस समाज का सुधार करने के लिए कटिबद्ध था तथा जिसने आचरण संबंधी शिथिलता के कारण अपनी एकमात्र संतान यूलिया (जूलिया) तक को निर्वासित कर दिया था, कवि के प्रति अत्यंत रुष्ट हो गया। कवि ने प्रायश्चितस्वरूप 'रेमेदिया अमोरिस' (प्रेम का उपचार) नामक काव्य की रचना की जो आकार में 'प्रेम की कला' के तृतीयांश के बराबर है। इस रचना में प्रेमोन्माद को दूर करने के उपाय बतलाए गए हैं। संभवतया इस समय से कुछ पहले उसने एक छोटी सी कविता साजशृंगार के संबंध में भी लिखी थी जिसका नाम 'मेदिकामिना फ़ेमिनियाए' (रमणियों के मुखड़े का इलाज) है। इसकी सामग्री यूनानी ग्रंथों से ग्रहण की गई है। 'प्रेम की कला' में ओविद की प्रतिभा अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँच चुकी थी। अब उसने दो महान् रचनाओं का श्रीगणेश किया जिनमें प्रथम का नाम है मेतामोर्फ़ोसेस (रूपांतर) और दूसरी का 'फ़ास्ती' (वात्सरिक उत्सवमालिका)। यूनान और रोम दोनों ही राष्ट्रों में ऐसी प्राचीन कथाएँ मिलती हैं जिनमें अनेक वस्तुओं और मनुष्यों के रूपांतर का वर्णन पाया जाता है; जैसे अव्यवस्था का व्यवस्था में परिवर्तित हो जाना, जूलियुस कैसर (सीज़र) का मरणोपरांत तारे के रूप में बदल जाना, इत्यादि। ओविद ने कथाओं को १५ पुस्तकों में एक विशाल एवं कलापूर्ण काव्य के रूप में प्रस्तुत किया है। यह काव्य यूरोप की कला और साहित्य का आकरग्रंथ सिद्ध हुआ। पाश्चात्य जगत् की पौराणिक कथाओं से परिचित होने के लिए अकेली रचना पर्याप्त है। फ़ास्ती (वास्तरिक उत्सवमालिका) में कवि ने रोमन संवत्सर के प्रत्येक मास का ज्योतिष, इतिहास और धर्म की दृष्टि से वर्णन आरंभ किया था। परंतु इसी समय, लगभग ७ ई. में, कवि के भाग्य ने पलटा खाया और जब वह ऐल्बानामक द्वीप में था, उसको पता चला कि सम्राट् औगुस्तु ने उसको निर्वासित कर दिया। उसकी संपत्ति का अपहरण नहीं किया, और निर्वासन की आज्ञा में कोई कारण भी निर्दिष्ट नहीं किया गया। इसके अनुसार उसको अपना शेष जीवन कृष्णसागर के तट पर स्थित'तोमिस' (वर्तमान नाम कॉस्तांज़ा) में व्यतीत करना पड़ा। यह नगर सभ्यता की परिधि से परे था। इसी समय के लगभग सम्राट् ने अपनी दौहित्री छोटी यूलिया (जूलिया) को भी आचारशैथिल्य के कारण निर्वासित किया था। कुछ व्यक्ति इन दोनों निर्वासनों का संबंध जोड़ते हैं पर वास्तविकता का पता किसी को नहीं है। तोमिस में कवि का जीवन अत्यंत दु:खमय था। उसने वहाँ जो पद्यमय पत्रादि लिखे उनमें अपने निर्वासन को समाप्त करने की प्रार्थना न जाने कितने व्यक्तियों से कितनी बार और कितने प्रकार से की। परंतु उसका फल कुछ नहीं निकला। औगुस्तु के पश्चात् तिबेरियुस सम्राट् बना किंतु उसने भी आविद की एक न सुनी। अंत में यहीं ई. १७ या १८ में उसकी जीवनलीला समाप्त हो गई। तोमिस से उसने जो कवित्वमय पत्र लिखे उनका संग्रह 'तिस्तिया' कहलाता है। इसको ओविद का विशालकाय 'मेघदूत' कह सकते हैं। इन पत्रों में कवि की व्यथा का वर्णन है। जो पत्र उसने अपनी पत्नी और पुत्री को लिखे हैं वे कारुण्य से परिपूर्ण हैं। एक दूसरा पत्रसंग्रह 'ऐपिस्तुलाए ऐक्स पोत्तो' कहलाता है। व्यथित कवि ने 'इबिस' नाम से एक अभिशाप भी लिखा है जिसमें उसने एक 'अनाम' शत्रु को शाप दिया है। इसके अतिरिक्त उसने दो छोटी पुस्तकें मछलियों और अखरोट के संबंध में 'हलियुतिका' और 'नुक्स' नाम से लिखी थीं। ओविद की बहुत सी रचनाएँ आजकल विलुप्त हो चुकी हैं, उनके यत्रतत्र उल्लेख भर मिलते हैं। ओविद मुख्यतया प्रेम का कवि है। उसके चरित्र में प्राचीन रोमन वीरों की दृढ़ता नहीं थी। एक प्रकार से उसका चरित्र भावी इटालियन कासानोवा के चरित्र का पूर्वाभास था। उसकी शैली स्वच्छ और ओजस्वी है। प्राचीन यूनान और रोम के साहित्य का उसका ज्ञान अगाध था। आगे आनेवाले यूरोपीय साहित्य और कला पर उसकी प्रतिभा की छाप अमिट रूप से विद्यमान है। 'मेतामोर्फ़ोसिस' (रूपांतर) के अंत में उसने लिखा था 'पैर साइकुला ओम्निया विवाम्-मैं जीऊँगा सदा सर्वदा। श्रेणी:रोमन कवि.

4 संबंधों: एथेंस, सिसिली, विवाह, काव्य

एथेंस

300px एथेंस जिसे एथीना भी कहा जाता है यूरोपीय देश यूनान की राजधानी एवं वहां का सबसे बड़ा शहर है। यह विश्व के प्राचीनतम शहरों में शुमार होता है। इसका इतिहास तीन हजार वर्ष से भी पुराना है। एथेंस की आबादी २००१ में लगभग ७,४५,५१४ थी। .

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सिसिली

इटली का '''सिसिली''' द्वीप सिसिली (Sicily; इतालवी: Sicilia / / सिचिल्या) भूमध्य सागर का सबसे बड़ा द्वीप है जो इटली प्रायद्वीप से मेसीना जलमडरूमध्य के द्वारा अलग होता है। यह इटली का स्वायत्त क्षेत्र है। यह ट्यूनीसिया से ९० मील चौड़े सिसली जलमडरूमध्य द्वारा अलग है तथा सार्डीनिया से इसकी दूरी २७२ किलोमीटर है। इसकी आकृति त्रिभुजाकार है, उत्तर में कुमारी बोओ (Boeo) से कुमारी पेलोरो तक लंबाई २८० किलोमीटर, पूर्वी किनारा १९२ किलोमीटर और दक्षिणी पश्चिमी किनारा २७२ किलोमीटर लम्बा है। तट की कुल लंबाई १०८८ किलोमीटर है और क्षेत्रफल ९८३० वर्ग मील है परंतु आस-पास के अन्य द्वीपों को मिलाकर क्षेत्रफल ९९२५ वर्गमील है। द्वीप में ९ प्रांत हैं। पलेरमो इसकी राजधानी है। सिसली के निवासियों की औसत ऊँचाई ५ फुट २ इंच है। उनकी आँखें और बाल काले होते हैं। इनकी भाषा इटली से भिन्न है। लोग अतिथि का स्वागत एवं आदर करते हैं। पलेरमो, कटनिया और मसीना में विश्वविद्यालय हैं। .

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विवाह

हिन्दू विवाह का सांकेतिक चित्रण विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। विवाह की परिभाषा न केवल संस्कृतियों और धर्मों के बीच, बल्कि किसी भी संस्कृति और धर्म के इतिहास में भी दुनिया भर में बदलती है। आमतौर पर, यह मुख्य रूप से एक संस्थान है जिसमें पारस्परिक संबंध, आमतौर पर यौन, स्वीकार किए जाते हैं या संस्वीकृत होते हैं। एक विवाह के समारोह को विवाह उत्सव (वेडिंग) कहते है। विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई- परिवार-का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान जीवशास्त्री माध्यम भी है। .

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काव्य

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .

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