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ऐतरेय ऋषि

सूची ऐतरेय ऋषि

ऐतरेय ऋषि ऋग्वेद की ऐतरेय नामक शाखा के प्रवर्तक हैं। इस शाखा के ऐतरेय ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक तथा ऐतरेय उपनिषद् इत्यादि ग्रंथ उपलब्ध हैं। सायण के अनुसार इतरा नामक स्त्री से उत्पन्न होने के कारण इनका ऐतरेय नाम पड़ा। महिदास इनका मूल नाम था और ये हारीत वंश में उत्पन्न मांडूकि ऋषि के पुत्र थे। बचपन से ही ये चुपचाप रहते थे और "नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप किया करते थे। इनके पिता मांडूकि ने पिंगा नाम की एक अन्य स्त्री से विवाह कर लिया जिससे उन्हें चार पुत्र हुए। बड़े होने पर उक्त चारों ही पुत्र विद्वान् बने और सब उनका अत्यधिक सम्मान करने लगे। इससे इतरा को दु:ख हुआ और उसने ऐतरेय से कहा, "तेरे विद्वान् न होने से तेरे पिता मेरा अपमान करते हैं, अत: मैं अब देहत्याग करूँगी।" इसपर ऐतरेय ने अपनी माता को धर्मज्ञान देकर देहत्याग के विचार से विरत किया। कालांतर में विष्णु ने ऐतरेय और उनकी माता को साक्षात् दर्शन दिए और ऐतरेय को अप्रतिम विद्वान् होने का वर दिया। हरिमेध्य द्वारा कोटितीर्थ नामक स्थान पर आयोजित यज्ञ में भगवान विष्णु के निर्देशानुसार ऐतरेय ने वेदार्थ पर प्रभावशाली व्याख्यान दिया। इससे प्रसन्न हो हरिमेध्य ने न केवल उनकी पूजा की अपितु अपनी कन्या से उनका विवाह भी कर दिया। श्रेणी:ऋषि मुनि श्रेणी:संस्कृत.

5 संबंधों: ऐतरेय ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, ऐतरेय उपनिषद, सायण, ऋग्वेद

ऐतरेय ब्राह्मण

ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद की एक शाखा है जिसका केवल "ब्राह्मण" ही उपलब्ध है, संहिता नहीं। ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेदीय ब्राह्मणों में अपनी महत्ता के कारण प्रथम स्थान रखता है। यह "ब्राह्मण" हौत्रकर्म से संबद्ध विषयों का बड़ा ही पूर्ण परिचायक है और यही इसका महत्व है। इस "ब्राह्मण" के अन्य अंश भी उपलब्ध होते हैं जो "ऐतरेय आरण्यक" तथा "ऐतरेय उपनिषद्" कहलाते हैं। .

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ऐतरेय आरण्यक

रिग वेद पद पाथा और स्कंद शास्त्री उदगित के भाषयास, वेंकट माधव व्याख्य और व्रित्ति मुदगलास आधारित सन्यास भाषया पर उपलब्ध कुछ भागों के साथ।। ऐतरेय आरण्यक ऐतरेय ब्राह्मण का अंतिम खंड है। "ब्राह्मण" के तीन खंड होते हैं जिनमें प्रथम खंड तो ब्राह्मण ही होता है जो मुख्य अंश के रूप में गृहीत किया जाता है। "आरण्यक" ग्रंथ का दूसरा अंश होता है तथा "उपनिषद्" तीसरा। कभी-कभी उपनिषद् आरण्यक का ही अंश होता है और कभी कभी वह आरण्यक से एकदम पृथक् ग्रंथ के रूप में प्रतिष्ठित होता है। ऐतरेय आरण्यक अपने भीतर "ऐतरेय उपनिषद्" को भी अंतर्भुक्त किए हुए हैं। .

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ऐतरेय उपनिषद

ऐतरेय उपनिषद एक शुक्ल ऋग्वेदीय उपनिषद है। ऋग्वेदीय ऐतरेय आरण्यक के अन्तर्गत द्वितीय आरण्यक के अध्याय 4, 5 और 6.

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सायण

सायण या आचार्य सायण (चौदहवीं सदी, मृत्यु १३८७ इस्वी) वेदों के सर्वमान्य भाष्यकर्ता थे। सायण ने अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया है, परंतु इनकी कीर्ति का मेरुदंड वेदभाष्य ही है। इनसे पहले किसी का लिखा, चारों वेदों का भाष्य नहीं मिलता। ये २४ वर्षों तक विजयनगर साम्राज्य के सेनापति एवं अमात्य रहे (१३६४-१३८७ इस्वी)। योरोप के प्रारंभिक वैदिक विद्वान तथा आधुनिक भारत के श्री अरोबिंदो तथा श्रीराम शर्मा आचार्य भी इनके भाष्य के प्रशंसक रहे हैं। यास्क के वैदिक शब्दों के कोष लिखने के बाद सायण की टीका ही सर्वमान्य है। .

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ऋग्वेद

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-.

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