7 संबंधों: नितिन सक्सेना, नीरज कयाल, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, मणीन्द्र अग्रवाल, मिल्लर रैबिन नंबर अभाज्यता टेस्ट, अभाज्य संख्या, अल्गोरिद्म।
नितिन सक्सेना
वैज्ञानिक उदहरण वेग्यानिक स्थान् नितिन सक्सेना (जन्म: ३ मई १९८१, इलाहाबाद) गणित एवं सैद्धांतिक संगणक विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत एक भारतीय संगणक वैज्ञानिक है। उन्होंने मणीन्द्र अग्रवाल और नीरज कयाल के साथ मिलकर ऐकेएस पराएमीलिटी टेस्ट प्रस्तावित किया, जिसके लिए उन्हें उनके सह लेखकों के साथ प्रतिष्ठित गोडेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय रूप से यह अनुसंधान उनके अवर अध्ययन का एक हिस्सा था। .
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नीरज कयाल
नीरज कयाल एक भारतीय संगणक वैज्ञानिक है। उन्होंने मणीन्द्र अग्रवाल और नितिन सक्सेना के साथ मिलकर ऐकेएस पराएमीलिटी टेस्ट का प्रस्ताव रखा। इस अनुसंधान ने दुनिया भर में ध्यान आकर्षित किया। इसी कार्य के लिए, अपने सह लेखकों के साथ, उन्हें प्रतिष्ठित गोडेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। .
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (Indian Institute of Technology Kanpur), जो कि आईआईटी कानपुर अथवा आईआईटीके के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में से एक है। इसकी स्थापना सन् १९५९ में उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में हुई। आईआईटी कानपुर मुख्य रूप से विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी में शोध तथा स्नातक शिक्षा पर केंद्रित एक प्रमुख भारतीय तकनीकी संस्थान बनकर उभरा है। .
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मणीन्द्र अग्रवाल
मणीन्द्र अग्रवाल (जन्म: २० मई १९६६, इलाहाबाद) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के संगणक विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी विभाग में प्रोफेसर है। संगणक विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए सन् २०१३ में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री प्रदान किया। .
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मिल्लर रैबिन नंबर अभाज्यता टेस्ट
मिल्लर रैबिन टेस्ट एक रैंडमाईज़ड अल्गोरिद्म है जो पोलीनोमिअल टाइम में बताता है कि कोई नंबर अभाज्य है या नहीं (कंप्यूटर विज्ञान में पोलीनोमिअल टाइम में उत्तर देने वाले अल्गोरिद्मों को तेज माना जाता है)। .
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अभाज्य संख्या
वे १ से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ, जो स्वयं और १ के अतिरिक्त और किसी प्राकृतिक संख्या से विभाजित नहीं होतीं, उन्हें अभाज्य संख्या कहते हैं। वे १ से बड़ी प्राकृतिक संख्याएँ जो अभाज्य संख्याँ (whole number) नहीं हैं उन्हें भाज्य संख्या कहते है। अभाज्य संख्याओं की संख्या अनन्त है जिसे ३०० ईसापूर्व यूक्लिड ने प्रदर्शित कर दिया था। १ को परिभाषा के अनुसार अभाज्य नहीं माना जाता है। प्रथम २५ अभाज्य संख्याएं नीचे दी गयीं हैं- 2, 3, 5, 7, 11, 13, 17, 19, 23, 29, 31, 37, 41, 43, 47, 53, 59, 61, 67, 71, 73, 79, 83, 89, 97 अभाजय संख्याओं का महत्व यह है कि किसी भी अशून्य प्राकृतिक संख्या के गुणनखण्ड को केवल अभाज्य संख्याओं के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है और यह गुणनखण्ड एकमेव (unique) होता है। इसे अंकगणित का मौलिक प्रमेय कहा जाता है। .
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अल्गोरिद्म
महत्तम समापवर्तक (HCF) निकालने के लिए यूक्लिड के अल्गोरिद्म का फ्लोचार्ट गणित, संगणन तथा अन्य विधाओं में किसी कार्य को करने के लिये आवश्यक चरणों के समूह को कलन विधि (अल्गोरिद्म) कहते है। कलन विधि को किसी स्पष्ट रूप से पारिभाषित गणनात्मक समस्या का समाधान करने के औजार (tool) के रूप में भी समझा जा सकता है। उस समस्या का इनपुट और आउटपुट सामान्य भाषा में वर्णित किये गये रहते हैं; इसके समाधान के रूप में कलन विधि, क्रमवार ढंग से बताता है कि यह इन्पुट/आउटपुट सम्बन्ध किस प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है। कुछ उदाहरण: १) कुछ संख्यायें बिना किसी क्रम के दी हुई हैं; इन्हें आरोही क्रम (ascending order) में कैसे सजायेंगे? २) दो पूर्णांक संख्याएं दी हुई हैं; उनका महत्तम समापवर्तक (Highest Common Factor) कैसे निकालेंगे ? .
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यहां पुनर्निर्देश करता है:
ए॰ के॰ ऐस॰ अभाज्य नंबर टेस्ट, ए॰ के॰ ऐस॰ अभाज्य अंक टेस्ट, ए॰ के॰ ऐस॰ अल्गोरिद्म।