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ऍलोपैथी

सूची ऍलोपैथी

आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान को एलोपैथी (Allopathy) या एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति (Allopathic medicine) कहते हैं। यह नाम होम्योपैथी के जन्मदाता सैमुएल हैनीमेन ने दिया था जिनका यह नाम देने का आशय यह था कि प्रचलित चिकित्सा-पद्धति (अर्थात एलोपैथी) रोग के लक्षण के बजाय अन्य चीज की दवा करता है। (Allo .

5 संबंधों: सैमुएल हैनीमेन, होम्योपैथी, वैकल्पिक चिकित्सा, आयुर्विज्ञान, आयुर्वेद

सैमुएल हैनीमेन

सैम्यूल हानेमानडॉ॰ क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान (जन्‍म 1755-मृत्‍यु 1843 ईस्‍वी) होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता थे। आप यूरोप के देश जर्मनी के निवासी थे। आपके पिता जी एक पोर्सिलीन पेन्‍टर थे और आपने अपना बचपन अभावों और बहुत गरीबी में बिताया था। एम0डी0 डिग्री प्राप्‍त एलोपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के ज्ञाता थे। डॉ॰ हैनिमैन, एलोपैथी के चिकित्‍सक होनें के साथ साथ कई यूरोपियन भाषाओं के ज्ञाता थे। वे केमिस्‍ट्री और रसायन विज्ञान के निष्‍णात थे। जीवकोपार्जन के लिये चिकित्‍सा और रसायन विज्ञान का कार्य करनें के साथ साथ वे अंग्रेजी भाषा के ग्रंथों का अनुवाद जर्मन और अन्‍य भाषाओं में करते थे। एक बार जब अंगरेज डाक्‍टर कलेन की लिखी “कलेन्‍स मेटेरिया मेडिका” में वर्णित कुनैन नाम की जडी के बारे में अंगरेजी भाषा का अनुवाद जर्मन भाषा में कर रहे थे तब डॉ॰ हैनिमेन का ध्‍यान डॉ॰ कलेन के उस वर्णन की ओर गया, जहां कुनैन के बारे में कहा गया कि ‘’ यद्यपि कुनैन मलेरिया रोग को आरोग्‍य करती है, लेकिन यह स्‍वस्‍थ शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा करती है। कलेन की कही गयी यह बात डॉ॰ हैनिमेन के दिमाग में बैठ गयी। उन्‍होंनें तर्कपूर्वक विचार करके क्विनाइन जड़ी की थोड़ी थोड़ी मात्रा रोज खानीं शुरू कर दी। लगभग दो हफ्ते बाद इनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। जड़ी खाना बन्‍द कर देनें के बाद मलेरिया रोग अपनें आप आरोग्‍य हो गया। इस प्रयोग को डॉ॰ हैनिमेन ने कई बार दोहराया और हर बार उनके शरीर में मलेरिया जैसे लक्षण पैदा हुये। क्विनीन जड़ी के इस प्रकार से किये गये प्रयोग का जिक्र डॉ॰ हैनिमेन नें अपनें एक चिकित्‍सक मित्र से की। इस मित्र चिकित्‍सक नें भी डॉ॰ हैनिमेन के बताये अनुसार जड़ी का सेवन किया और उसे भी मलेरिया बुखार जैसे लक्षण पैदा हो गये। कुछ समय बाद उन्‍होंनें शरीर और मन में औषधियों द्वारा उत्‍पन्‍न किये गये लक्षणों, अनुभवो और प्रभावों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। हैनिमेन की अति सूच्‍छ्म द्रष्टि और ज्ञानेन्द्रियों नें यह निष्‍कर्ष निकाला कि और अधिक औषधियो को इसी तरह परीक्षण करके परखा जाय। इस प्रकार से किये गये परीक्षणों और अपने अनुभवों को डॉ॰ हैनिमेन नें तत्‍कालीन मेडिकल पत्रिकाओं में ‘’ मेडिसिन आंफ एक्‍सपीरियन्‍सेस ’’ शीर्षक से लेख लिखकर प्रकाशित कराया। इसे होम्‍योपैथी के अवतरण का प्रारम्भिक स्‍वरूप कहा जा सकता है। .

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होम्योपैथी

thumb होम्योपैथी, एक चिकित्सा पद्धति है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के जन्‍मदाता डॉ॰ क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान है। यह चिकित्सा के 'समरूपता के सिंद्धात' पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियाँ उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं। औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है। जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए। अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट और समाप्त उसी औषधि से हो सकता है जो मानव शरीर में, रोग के लक्षणों से प्रबल और लक्षणों से अत्यंत मिलते जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके। होमियोपैथी पद्धति में चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन-इतिहास एवं रोगलक्षणों को सुनकर उसी प्रकार के लक्षणों को उत्पन्न करनेवाली औषधि का चुनाव करना है। रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होगी रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है। चिकित्सक का अनुभव उसका सबसे बड़ा सहायक होता है। पुराने और कठिन रोग की चिकित्सा के लिए रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। कुछ होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति के समर्थकों का मत है कि रोग का कारण शरीर में शोराविष की वृद्धि है। होमियोपैथी चिकित्सकों की धारणा है कि प्रत्येक जीवित प्राणी हमें इंद्रियों के क्रियाशील आदर्श (Êfunctional norm) को बनाए रखने की प्रवृत्ति होती है औरे जब यह क्रियाशील आदर्श विकृत होता है, तब प्राणी में इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रतिक्रियाएँ होती हैं। प्राणी को औषधि द्वारा केवल उसके प्रयास में सहायता मिलती है। औषधि अल्प मात्रा में देनी चाहिए, क्योंकि बीमारी में रोगी अतिसंवेगी होता है। औषधि की अल्प मात्रा प्रभावकारी होती है जिससे केवल एक ही प्रभाव प्रकट होता है और कोई दुशपरिणाम नहीं होते। रुग्णावस्था में ऊतकों की रूपांतरित संग्राहकता के कारण यह एकावस्था (monophasic) प्रभाव स्वास्थ्य के पुन: स्थापन में विनियमित हो जाता है। विद्वान होम्योपैथी को छद्म विज्ञान मानते हैं। .

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वैकल्पिक चिकित्सा

पश्चिमी जगत में उन सभी चिकित्सा पद्धतियों को वैकल्पिक चिकित्सा कहते हैं जो परम्परागत चिकित्सा पद्धति के अन्तरगत नहीं रखी जा सकतीं। या “ऐसी पद्धति जिसे एक समान रूप से कभी प्रभावी नहीं माना जाता.” इसे प्रायः साक्ष्य आधारित चिकित्सा पद्धति के रूप में देखा जाता है और इसमें वैज्ञानिक आधार के स्थान पर ऐतिहासिक या सांस्कृतिक उपचार पद्धतियां शामिल होती हैं। अमेरिका के नैशनल सेंटर फॉर कम्प्लीमेंटरी एंड ऑल्टरनेटिव मेडिसीन (National Center for Complementary and Alternative Medicine) (एनसीसीएएम) (NCCAM) ऐसे उदाहरणों का उल्लेख करता है, जिसमें अन्य पद्धतियों के अतिरिक्त प्राकृतिक चिकित्सा, पाद-चिकित्सा (chiropractic), जड़ी-बूटी चिकित्सा, पारंपरिक चीनी चिकित्सा पद्धति, आयुर्वेद, ध्यान, योग, जैवप्रतिपुष्टि, सम्मोहन, होम्योपैथी, एक्युपंक्चर और पोषण-आधारित उपचार-पद्धतियां शामिल हैं। इसे प्रायः पूरक चिकित्सा पद्धति के समूह में रखा जाता है, जिसका सामान्य अर्थ होता है, मुख्य धारा वाली तकनीकों के संयोजन में प्रयोग किए जाने वाले समान हस्तक्षेप, जिन्हें पूरक तथा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति या कैम (CAM) के तहत रखा जाता है। वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के कुछ अनुसंधानकर्ता इस समूहीकरण का विरोध करते हैं और इन विधियों के बीच अंतर स्थापित करना पसंद करते हैं, तथापि वे कैम (CAM) शब्द का प्रयोग करते हैं, जो मानक बन चुका है। .

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आयुर्विज्ञान

आधुनिक गहन चिकित्सा कक्ष (ICU) आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका संबंध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।आयुर्विज्ञान विज्ञान की वह शाखा है, जिसका संबंध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका निदान करने तथा आयु बढ़ाने से है। भारत आयुर्विज्ञान का जन्मदाता है। अपने प्रारम्भिक समय में आयुर्विज्ञान का अध्ययन जीव विज्ञान की एक शाखा के समान ही किया गया था। बाद में 'शरीर रचना' तथा 'शरीर क्रिया विज्ञान' आदि को इसका आधार बनाया गया। .

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आयुर्वेद

आयुर्वेद के देवता '''भगवान धन्वन्तरि''' आयुर्वेद (आयुः + वेद .

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एलोपैथी, ऐलोपैथिक औषधि, ऐलोपैथी

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