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एजोला

सूची एजोला

एजोला एजोला (Azolla) एक तैरती हुई फर्न है जो शैवाल से मिलती-जुलती है। सामान्यत: एजोला धान के खेत या उथले पानी में उगाई जाती है। यह तेजी से बढ़ती है। यह जैव उर्वरक का स्त्रोत है .

7 संबंधों: धान, नाइट्रोजन, नाइट्रोजन यौगिकीकरण, फर्न, शैवाल, सूक्ष्मजीव, हरी खाद

धान

बांग्लादेश में धान (चावल) के खेत धान की बाली (अनाज वाला भाग) धान (Paddy / ओराय्ज़ा सैटिवा) एक प्रमुख फसल है जिससे चावल निकाला जाता है। यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है। ओराय्ज़ा सैटिवा (जिसका प्रचलित नाम 'एशियाई धान' है) एक पादप की जाति है। इसका सबसे छोटा जीनोम होता है (मात्र ४३० एम.बी.) जो केवल १२ क्रोमोज़ोम में सीमित होता है। इसे सरलता से जेनेटिकली अंतरण करने लायक होने की क्षमता हेतु जाना जाता है। यह अनाज जीव-विज्ञान में एक मॉडल जीव माना जाता है। .

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नाइट्रोजन

नाइट्रोजन (Nitrogen), भूयाति या नत्रजन एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक N है। इसका परमाणु क्रमांक 7 है। सामान्य ताप और दाब पर यह गैस है तथा पृथ्वी के वायुमण्डल का लगभग 78% नाइट्रोजन ही है। यह सर्वाधिक मात्रा में तत्व के रूप में उपलब्ब्ध पदार्थ भी है। यह एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और प्रायः अक्रिय गैस है। इसकी खोज 1772 में स्कॉटलैण्ड के वैज्ञनिक डेनियल रदरफोर्ड ने की थी। आवर्त सारणी के १५ वें समूह का प्रथम तत्व है। नाइट्रोजन का रसायन अत्यंत मनोरंजक विषय है, क्योंकि समस्त जैव पदार्थों में इस तत्व का आवश्यक स्थान है। इसके दो स्थायी समस्थानिक, द्रव्यमान संख्या 14, 15 ज्ञात हैं तथा तीन अस्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 13, 16, 17) भी बनाए गए हैं। नाइट्रोजन तत्व की पहचान सर्वप्रथम 1772 ई. में रदरफोर्ड और शेले ने स्वतंत्र रूप से की। शेले ने उसी वर्ष यह स्थापित किया कि वायु में मुख्यत: दो गैसें उपस्थित हैं, जिसमें एक सक्रिय तथा दूसरी निष्क्रिय है। तभी प्रसिद्ध फ्रांसीसी वैज्ञानिक लाव्वाज़्ये ने नाइट्रोजन गैस को ऑक्सीजन (सक्रिय अंश) से अलग कर इसका नाम 'ऐजोट' रखा। 1790 में शाप्टाल (Chaptal) ने इसे नाइट्रोजन नाम दिया। .

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नाइट्रोजन यौगिकीकरण

नाइट्रोजन यौगीकीकरण (Nitrogen fixation) उस प्रक्रिया को कहते हैं है जिसके द्वारा पृथ्वी के वायुमण्डल की नाइट्रोजन, (N2) अमोनियम (NH4+) या और जीवों के लिए लाभदायक अन्य अणुओं में परिवर्तित की जाती है । वायुमण्डलीय नाइट्रोजन या आणविक नाइट्रोजन (N2) अपेक्षाकृत निष्क्रिय पदार्थ है जो यह नए यौगिकों के निर्माण के लिए अन्य रसायनों के साथ आसानी से प्रतिक्रिया नहीं करता है। किन्तु यौगीकरण की प्रक्रिया से N≡N बन्ध से नाइट्रोजन परमाणु को मुक्त कर देता है और यह मुक्त नाइट्रोजन दूसरे तरीकों से उपयोग में लाया जा सकता है। नाइट्रोजन यौगीकीकरण वानस्पतिक एवं कुछ अन्य जीवों के लिए अनिवार्य है क्योंकि जीवों के बुनियादी निर्माण, एवं जैविक संश्लेषण के लिए अकार्बनिक नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है.

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फर्न

फर्न पर्णांग या फर्न एक अपुष्पक पौधा है। इसको जड़, तना, पत्ती तीन-भागों में बाँटा जा सकता है। यह बीजाणुधानियों से बीजाणु उत्पन्न करता है। इसीसे नये पौधों की उत्पत्ति होती है। वे बीजाणुधानियाँ पत्तियों में पाई जाती हैं जो ध्यानपूर्वक देखने पर दिखाई देती हैं। .

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शैवाल

एक शैवाल लौरेंशिया शैवाल (Algae /एल्गी/एल्जी; एकवचन:एल्गै) सरल सजीव हैं। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं। .

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सूक्ष्मजीव

जीवाणुओं का एक झुंड वे जीव जिन्हें मनुष्य नंगी आंखों से नही देख सकता तथा जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता पड़ता है, उन्हें सूक्ष्मजीव (माइक्रोऑर्गैनिज्म) कहते हैं। सूक्ष्मजैविकी (microbiology) में सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्मजीवों का संसार अत्यन्त विविधता से बह्रा हुआ है। सूक्ष्मजीवों के अन्तर्गत सभी जीवाणु (बैक्टीरिया) और आर्किया तथा लगभग सभी प्रोटोजोआ के अलावा कुछ कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी), और चक्रधर (रॉटिफर) आदि जीव आते हैं। बहुत से अन्य जीवों तथा पादपों के शिशु भी सूक्ष्मजीव ही होते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवविज्ञानी विषाणुओं को भी सूक्ष्मजीव के अन्दर रखते हैं किन्तु अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। सूक्ष्मजीव सर्वव्यापी होते हैं। यह मृदा, जल, वायु, हमारे शरीर के अंदर तथा अन्य प्रकार के प्राणियों तथा पादपों में पाए जाते हैं। जहाँ किसी प्रकार जीवन संभव नहीं है जैसे गीज़र के भीतर गहराई तक, (तापीय चिमनी) जहाँ ताप 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा हुआ रहता है, मृदा में गहराई तक, बर्फ की पर्तों के कई मीटर नीचे तथा उच्च अम्लीय पर्यावरण जैसे स्थानों पर भी पाए जाते हैं। जीवाणु तथा अधिकांश कवकों के समान सूक्ष्मजीवियों को पोषक मीडिया (माध्यमों) पर उगाया जा सकता है, ताकि वृद्धि कर यह कालोनी का रूप ले लें और इन्हें नग्न नेत्रों से देखा जा सके। ऐसे संवर्धनजन सूक्ष्मजीवियों पर अध्ययन के दौरान काफी लाभदायक होते हैं। .

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हरी खाद

हरी खाद के लिये सोयाबीन कृषि में हरी खाद (green manure) उस सहायक फसल को कहते हैं जिसकी खेती मुख्यत: भूमि में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। प्राय: इस तरह की फसल को इसके हरी स्थिति में ही हल चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाता है। हरी खाद से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और भूमि की रक्षा होती है। मृदा के लगातार दोहन से उसमें उपस्थित पौधे की बढ़वार के लिये आवश्यक तत्त्व नष्ट होते जा रहे हैं। इनकी क्षतिपूर्ति हेतु व मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिये हरी खाद एक उत्तम विकल्प है। बिना गले-सड़े हरे पौधे (दलहनी एवं अन्य फसलों अथवा उनके भाग) को जब मृदा की नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिये खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। हरी खाद के उपयोग से न सिर्फ नत्रजन भूमि में उपलब्ध होता है बल्कि मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा में भी सुधार होता है। वातावरण तथा भूमि प्रदूषण की समस्या को समाप्त किया जा सकता है लागत घटने से किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, भूमि में सूक्ष्म तत्वों की आपूर्ति होती है साथ ही मृदा की उर्वरा शक्ति भी बेहतर हो जाती है। .

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