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एकलिंगजी

सूची एकलिंगजी

एकलिंग राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित एक मंदिर परिसर है। यह स्थान उदयपुर से लगभग १८ किमी उत्तर में दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। वैसे उक्त स्थान का नाम 'कैलाशपुरी' है परन्तु यहाँ एकलिंग का भव्य मंदिर होने के कारण इसको एकलिंग जी के नाम से पुकारा जाने लगा। भगवान शिव श्री एकलिंग महादेव रूप में मेवाड़ राज्य के महाराणाओं तथा अन्य राजपूतो के प्रमुख आराध्य देव रहे हैं।मान्यता है कि यहाँ में राजा तो उनके प्रतिनिधि मात्र रूप से शासन किया करते हैं। इसी कारण उदयपुर के महाराणा को दीवाण जी कहा जाता है।ये राजा किसी भी युद्ध पर जाने से पहले एकलिंग जी की पूजा अर्चना कर उनसे आशीष अवश्य लिया करते थे। यहाँ मन्दिर परिसर के बाहर मन्दिर न्यास द्वारा स्थापित एक लेख के अनुसार डूंगरपुर राज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी। इतिहास बताता है कि एकलिंग जी को ही को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार यहाँ ऐतिहासिक महत्व के प्रण लिए थे। यहाँ के महाराणा प्रताप के जीवन में अनेक विपत्तियाँ आईं, किन्तु उन्होंने उन विपत्तियों का डटकर सामना किया। किन्तु जब एक बार उनका साहस टूटने को हुआ था, तब उन्होंने अकबर के दरबार में उपस्थित रहकर भी अपने गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वी राज को, उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से सराबोर पत्र का उत्तर दिया। इस उत्तर में कुछ विशेष वाक्यांश के शब्द आज भी याद किये जाते हैं: .

27 संबंधों: डूंगरपुर, दक्षिण, पश्चिम, पूर्व, बप्पा रावल, ब्रह्मा, भारत, मन्दिर, महाराणा प्रताप, महाराणा कुम्भा, महाशिवरात्रि, मेवाड़ की शासक वंशावली, यमुना नदी, राणा रायमल, राजस्थान, रुद्र, शिव, सरस्वती, संगमर्मर, सूर्य, विष्णु, विंध्यवासिनी देवी, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, आठवीं शताब्दी, उत्तर, उदयपुर, उदयपुर जिला

डूंगरपुर

डूंगरपुर राजस्थान के दक्षिण में बसा एक नगर है। इसकी स्थापना 1282 में रावल वीर सिंह ने की थी। उन्होंने यह क्षेत्र भील प्रमुख डुंगरिया को हरा कर किया था जिनके नाम पर इस जगह का नाम डूंगरपुर पड़ा था। 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। यह जगह डूंगरपुर प्रिंसली स्टेट की राजधानी थी। यहां से होकर बहने वाली सोम और माही नदियां इसे उदयपुर और बंसवाड़ा से अलग करती हैं। पहाड़ों का नगर कहलाने वाला डूंगरपुर में जीव-जन्तुओं और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। डूंगरपुर वास्तुकला की विशेष शैली के लिए जाना जाता है जो यहां के महलों और अन्य ऐतिहासिक इमारतों में देखी जा सकती है। .

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दक्षिण

कुतुबनुमा-दक्षिण को इंगित करता दिशाकमल दक्षिण कुतुबनुमा द्वारा दिखायी जाने वाली चार दिशाओं में से एक दिशा है। दक्षिण दिशा उत्तर दिशा के विपरीत (दूसरी तरफ) होती है और पूर्व एवं पश्चिम दिशाओं से ९० डिग्री (अंश) पर होती है। (उत्तर दक्षिण एक दूसरे के आमने सामने हैं और पूर्व पश्चिम भी एक दुसरे के आमने सामने हैं।) यदि आप सूर्य की तरफ मुख कर के खड़े होंगे तो आपका मुख पूर्व की ओर होगा, दक्षिण दिशा आपके दाएँ हाथ की तरफ होगी, बाएँ हाथ की तरफ उत्तर होगा और पश्चिम आपकी पीठ की ओर होगी। नक्शों में दक्षिण दिशा अधिकतर पन्ने के नीचे की तरफ दिखायी जाती है और उत्तर दिशा पन्ने के ऊपर की ओर। श्रेणी:दिशाएँ भारत उपमहाद्वीप के दक्षिण में समुद्र है.

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पश्चिम

पश्चिम दिशा दिखाता एक कम्पास पश्चिम सामान्य: एक संज्ञा, विशेषण या क्रियाविशेषण है जो एक दिशा या भूगोल की ओर इंगित करता है। पश्चिम, चार प्रमुख दिशाओं मे से एक है साथ ही यह कुतुबनुमा के दिशासंकेतों मे से भी एक प्रमुख संकेत है। यह पूर्व का विपरीत है और उत्तर और दक्षिण के लंबवत होता है। मानकानुसार एक मानचित्र के बाईं ओर पश्चिम होता है। पश्चिम की ओर नौगमन (नेविगेशन) हेतु, कुतुबनुमा (कम्पास) के दिगंश को 270° पर बिठाना (सेट करना) पड़ता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम दिशा की विपरीत दिशा मे घूमती है, इसलिए सूर्य इस दिशा मे अस्त होता है। श्रेणी:दिशाएँ.

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पूर्व

east direction पूर्ण ब्रहामाण्ड को शुन्य माना गया है। शुन्या की आकृति ३६० अंश होकर गोलकार है। यहि नहीं इस अकाश म्ंड्ल में जितने भी गृह है वह लगभग गोल ही है। हमारी पृथ्वी भी गोलकार है। अगर गोलाकार है तो इसका आरम्भ कहां से होगा यह एक बहुत बड़ा प्रशन है जिसका उतर हितचिंतक एस्टरोलोजिकल इंस्टीयट के अनुसन्धान केन्द्र में प्रचार्या विकास ग्रोवर एव्ं डा;सनिया गर्ग के साथ अन्य सह्योगियो के मनन से मत इस प्रकार है कि- दिशा ग्यान को पुरातण वास्तु शास्त्रो में अति महत्वपूर्ण मान गया है।इसके बोध के बिना निर्माण को कुल्नाश तक घातक बताया गया है। अर्थात: श्ंडकु को स्थापित कर संक्राति के अनुसार इसकी छाया को राशि में प्रवेश के स्थान पर चिन्हित कर भुखन्ड पर भवन बनाने वालो के लिये भविषवानिययो का विवरण भी प्रपात होता है परन्तु समतय अनुसार इस विधि में कम्पास से धरती के चुम्वभकिया क्षेत्र प्रभाव का आंकलण आसान होने के कारण शंड्कु स्थपना क प्रचलण लगभग बन्द हो गया है। वास्तु में शंड्कु स्थापित कर दिशा क बेह्द विस्तृत एवं व्यापक अर्थ है।इन चिन्हो द्वारा भुमि के प्रभावित होने वाले खण्डोपर प्राभाव कर परीक्षण तथा शोधन करने के उपारान्त ही उसके ऊपर किये जाने वाले निर्माण आदि क निर्णय किय जात रहा है। Bold textपूर्व दिशा को अगर सधारण्त:देखे तो यह २२।५ अंश ईशान की ओर तथा २२।५ अंश अग्नेय की ओर कुल ४५ अंश होती है। एक कम्पास गुलाब पूर्व भूगोल में एक दिशा है।यह एक के चार प्रमुख दिशा में से एक है ओं या अंक, पश्चिम के विपरीत कम्पास और सही कोण उत्तर और दक्षिण के लिए हैं।पूर्व की ओर, जो पृथ्वी अपने अक्ष के बारे में rotates दिशा है और इसलिए जिसमें से सूर्य की वृद्धि करने के लिए प्रकट होता है जो सामान्य दिशा है। हालांकि, सूरज के खगोल विज्ञान में पूर्व की ओर विपरीत दिशा में रोटेशन के संबंध में है, तो यह जो से rotates दिशा है परिभाषित किया गया है। .

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बप्पा रावल

बप्पा रावल (713-810) मेवाड़ राज्य के संस्थापक राजा थे। .

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ब्रह्मा

ब्रह्मा  सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देव हैं। हिन्दू दर्शनशास्त्रों में ३ प्रमुख देव बताये गये है जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं। व्यासलिखित पुराणों में ब्रह्मा का वर्णन किया गया है कि उनके चार मुख हैं, जो चार दिशाओं में देखते हैं।Bruce Sullivan (1999), Seer of the Fifth Veda: Kr̥ṣṇa Dvaipāyana Vyāsa in the Mahābhārata, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120816763, pages 85-86 ब्रह्मा को स्वयंभू (स्वयं जन्म लेने वाला) और चार वेदों का निर्माता भी कहा जाता है।Barbara Holdrege (2012), Veda and Torah: Transcending the Textuality of Scripture, State University of New York Press, ISBN 978-1438406954, pages 88-89 हिन्दू विश्वास के अनुसार हर वेद ब्रह्मा के एक मुँह से निकला था। ज्ञान, विद्या, कला और संगीत की देवी सरस्वती ब्रह्मा की पत्नी हैं। बहुत से पुराणों में ब्रह्मा की रचनात्मक गतिविधि उनसे बड़े किसी देव की मौजूदगी और शक्ति पर निर्भर करती है। ये हिन्दू दर्शनशास्त्र की परम सत्य की आध्यात्मिक संकल्पना ब्रह्मन् से अलग हैं।James Lochtefeld, Brahman, The Illustrated Encyclopedia of Hinduism, Vol.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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मन्दिर

मन्दिर भारतीय धर्मों (सनातन धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म आदि) हिन्दुओं के उपासनास्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मन्दिर कहते हैं। मन्दिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है। वस्तुतः सही शब्द 'देवमन्दिर', 'शिवमन्दिर', 'कालीमन्दिर' आदि हैं। और मठ वह स्थान है जहां किसी सम्प्रदाय, धर्म या परंपरा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो और उन्हें पता चल सके कि उनके धर्म में क्या है। उदाहरण के लिए बौद्ध विहारों की तुलना हिन्दू मठों या ईसाई मोनेस्ट्रीज़ से की जा सकती है। लेकिन 'मठ' शब्द का प्रयोग शंकराचार्य के काल यानी सातवीं या आठवीं शताब्दी से शुरु हुआ माना जाता है। तमिल भाषा में मन्दिर को कोईल या कोविल (கோவில்) कहते हैं। .

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महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदानुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ। .

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महाराणा कुम्भा

महाराणा कुम्भा महल महराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण (मृत्यु १४६८ ई.) सन १४३३ से १४६८ तक मेवाड़ के राजा थे। महाराणा कुंभकर्ण का भारत के राजाओं में बहुत ऊँचा स्थान है। उनसे पूर्व राजपूत केवल अपनी स्वतंत्रता की जहाँ-तहाँ रक्षा कर सके थे। कुंभकर्ण ने मुसलमानों को अपने-अपने स्थानों पर हराकर राजपूती राजनीति को एक नया रूप दिया। इतिहास में ये 'राणा कुंभा' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। महाराणा कुंभा राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे। मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया। 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं। उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है। कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। ‘संगीत राज’ उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है। .

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महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि (बोलचाल में शिवरात्रि) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। अधिक तर लोग यह मान्यता रखते है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवि पार्वति के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी जाता है। .

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मेवाड़ की शासक वंशावली

राजस्थान के दक्षिण - पश्चिम भाग पर गुहिलों का शाषन था। "नैणसी री ख्यात" में गुहिलों की 24 शाखाओं का वर्णन मिलता है जिनमें मेवाड़, बागड़ और प्रताप शाखा ज्यादा प्रसिद्ध हुई। इन तीनो शाखाओं में मेवाड़ शाखा अधिक महत्वपूर्ण थी। श्रेणी:राजस्थान का इतिहास श्रेणी:मेवाड़ के शासक श्रेणी:उदयपुर.

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यमुना नदी

आगरा में यमुना नदी यमुना त्रिवेणी संगम प्रयाग में वृंदावन के पवित्र केशीघाट पर यमुना सुबह के धुँधलके में यमुनातट पर ताज यमुना भारत की एक नदी है। यह गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यमुनोत्री (उत्तरकाशी से ३० किमी उत्तर, गढ़वाल में) नामक जगह से निकलती है और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। यमुना के तटवर्ती नगरों में दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रूप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है। ब्रज की संस्कृति में यमुना का महत्वपूर्ण स्थान है। .

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राणा रायमल

राणा रायमल (१४७३ - १५०९) मेवाड के राजपूत राजा थे। वे राणा कुम्भा के पुत्र थे। उन्होने उदय सिंह को परास्त करके राजगद्दी प्राप्त की। उदय सिंह अपने पिता का हन्ता था। उनके शासन के आरम्भिक दिनों मेम ही मालवा के शासक घियास शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इसके शीघ्र बाद गियास शाह के सेनापति जफर खान ने मेवाड़ पर आक्रमण किया किन्तु वह भी मण्डलगढ़ और खैराबाद में पराजित हुआ। रायमल ने राव जोधा की बेटी शृंगारदेवी से विवाह करके राठौरों से शत्रुता समाप्त कर दी। रायमल ने रायसिंह टोडा और अजमेर पर पुनः अधिकार कर लिया। उन्होने मेवाड़ को भी शक्तिशाली बनाया तथा चित्तौड़ के एकनाथ जी मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। श्रेणी:मेवाड़ के शासक.

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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रुद्र

रुद्र देवता वैदिक वाङ्मय में एक शक्तिशाली देवता माने गये हैं। ये ऋग्वेद में वर्णन की मात्रात्मक दृष्टि से गौण देवता के रूप में ही वर्णित हैं। ऋग्वेद में रुद्र की स्तुति 'बलवानों में सबसे अधिक बलवान' कहकर की गयी है। यजुर्वेद का रुद्राध्याय रुद्र देवता को समर्पित है। इसके अन्तर्गत आया हुआ मंत्र शैव सम्प्रदाय में भी बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। रुद्र को ही कल्याणकारी होने से शिव कहा गया है। वैदिक वाङ्मय में मुख्यतः एक ही रुद्र की बात कही गयी हैं; परन्तु पुराणों में एकादश रुद्र की मान्यता अत्यधिक प्रधान हो गयी है। .

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शिव

शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ,गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। .

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सरस्वती

कोई विवरण नहीं।

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संगमर्मर

ताजमहल, एक विश्व प्रसिद्ध स्मारक, जो कि प्रेम हेतु सृजित है, एक संगमरमर में तराशी कलाकृति रोमन देवी, वीनस की मूर्ती संगमरमर या सिर्फ मरमर (फारसी:سنگ مرمر) एक कायांतरित शैल है, जो कि चूना पत्थर के कायांतरण का परिणाम है। यह अधिकतर कैलसाइट का बना होता है, जो कि कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) का स्फटिकीय रूप है। यह शिल्पकला के लिये निर्माण अवयव हेतु प्रयुक्त होता है। इसका नाम फारसी से निकला है, जिसका अर्थ है मुलायम पत्थर। संग-पत्थर, ए-का, मर्मर-मुलायम .

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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विष्णु

वैदिक समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं। हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है। न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। पुराणानुसार विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। कामदेव विष्णु जी का पुत्र था। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन शेषनाग के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित हैं। वह अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में पद्म (कमल), अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी),ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख (पाञ्चजन्य) और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं। शेष शय्या पर आसीन विष्णु, लक्ष्मी व ब्रह्मा के साथ, छंब पहाड़ी शैली के एक लघुचित्र में। .

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विंध्यवासिनी देवी

माँ विन्ध्यवासिनी मीरजापुर (उत्तर प्रदेश) के विंध्याचल में माँ विन्ध्यवासिनी मन्दिर भगवती विंध्यवासिनी आद्या महाशक्ति हैं। विन्ध्याचल सदा से उनका निवास-स्थान रहा है। जगदम्बा की नित्य उपस्थिति ने विंध्यगिरिको जाग्रत शक्तिपीठ बना दिया है। महाभारत के विराट पर्व में धर्मराज युधिष्ठिर देवी की स्तुति करते हुए कहते हैं- विन्ध्येचैवनग-श्रेष्ठे तवस्थानंहि शाश्वतम्। हे माता! पर्वतों में श्रेष्ठ विंध्याचलपर आप सदैव विराजमान रहती हैं। पद्मपुराण में विंध्याचल-निवासिनी इन महाशक्ति को विंध्यवासिनी के नाम से संबंधित किया गया है- विन्ध्येविन्ध्याधिवासिनी। श्रीमद्देवीभागवत के दशम स्कन्ध में कथा आती है, सृष्टिकर्ता ब्रह्माजीने जब सबसे पहले अपने मन से स्वायम्भुवमनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब विवाह करने के उपरान्त स्वायम्भुव मनु ने अपने हाथों से देवी की मूर्ति बनाकर सौ वर्षो तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवती ने उन्हें निष्कण्टक राज्य, वंश-वृद्धि एवं परम पद पाने का आशीर्वाद दिया। वर देने के बाद महादेवी विंध्याचलपर्वत पर चली गई। इससे यह स्पष्ट होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही विंध्यवासिनी की पूजा होती रही है। सृष्टि का विस्तार उनके ही शुभाशीषसे हुआ। त्रेता युग में भगवान श्रीरामचन्द्र सीताजीके साथ विंध्याचल आए थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वर महादेव से इस शक्तिपीठ की माहात्म्य और बढ गया है। द्वापरयुग में मथुरा के राजा कंस ने जब अपने बहन-बहनोई देवकी-वसुदेव को कारागार में डाल दिया और वह उनकी सन्तानों का वध करने लगा। तब वसुदेवजीके कुल-पुरोहित गर्ग ऋषि ने कंस के वध एवं श्रीकृष्णावतार हेतु विंध्याचल में लक्षचण्डी का अनुष्ठान करके देवी को प्रसन्न किया। जिसके फलस्वरूप वे नन्दरायजीके यहाँ अवतरित हुई। मार्कण्डेयपुराण के अन्तर्गत वर्णित दुर्गासप्तशती (देवी-माहात्म्य) के ग्यारहवें अध्याय में देवताओं के अनुरोध पर भगवती उन्हें आश्वस्त करते हुए कहती हैं, देवताओं वैवस्वतमन्वन्तर के अट्ठाइसवें युग में शुम्भऔर निशुम्भनाम के दो महादैत्य उत्पन्न होंगे। तब मैं नन्दगोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूँगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूँगी। लक्ष्मीतन्त्र नामक ग्रन्थ में भी देवी का यह उपर्युक्त वचन शब्दश: मिलता है। ब्रज में नन्द गोप के यहाँ उत्पन्न महालक्ष्मीकी अंश-भूता कन्या को नन्दा नाम दिया गया। मूर्तिरहस्य में ऋषि कहते हैं- नन्दा नाम की नन्द के यहाँ उत्पन्न होने वाली देवी की यदि भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के आधीन कर देती हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के श्रीकृष्ण-जन्माख्यान में यह वर्णित है कि देवकी के आठवें गर्भ से आविर्भूत श्रीकृष्ण को वसुदेवजीने कंस के भय से रातोंरात यमुनाजीके पार गोकुल में नन्दजीके घर पहुँचा दिया तथा वहाँ यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा ले आए। आठवीं संतान के जन्म का समाचार सुन कर कंस कारागार में पहुँचा। उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर जैसे ही पटक कर मारना चाहा, वैसे ही वह कन्या कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुँच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित किया। कंस के वध की भविष्यवाणी करके भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई। मन्त्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ शारदातिलक में विंध्यवासिनी का वनदुर्गा के नाम से यह ध्यान बताया गया है- अर्थ-जो देवी स्वर्ण-कमल के आसन पर विराजमान हैं, तीन नेत्रों वाली हैं, विद्युत के सदृश कान्ति वाली हैं, चार भुजाओं में शंख, चक्र, वर और अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं, मस्तक पर सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्र सुशोभित है, गले में सुन्दर हार, बांहों में बाजूबन्द, कानों में कुण्डल धारण किए इन देवी की इन्द्रादि सभी देवता स्तुति करते हैं। विंध्याचलपर निवास करने वाली, चंद्रमा के समान सुन्दर मुखवाली इन विंध्यवासिनी के समीप सदा शिव विराजित हैं। सम्भवत:पूर्वकाल में विंध्य-क्षेत्रमें घना जंगल होने के कारण ही भगवती विन्ध्यवासिनीका वनदुर्गा नाम पडा। वन को संस्कृत में अरण्य कहा जाता है। इसी कारण ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी विंध्यवासिनी-महापूजा की पावन तिथि होने से अरण्यषष्ठी के नाम से विख्यात हो गई है। ध्यानः नंद गोप गृहे जाता यशोदा गर्भसम्भवा| ततस्तो नाश यष्यामि विंध्याचल निवासिनी || ||श्री विंध्यवासिनी माता स्तोत्रम|| निशुम्भशुम्भमर्दिनी, प्रचंडमुंडखंडनीम | वने रणे प्रकाशिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||१|| त्रिशुलमुंडधारिणीं, धराविघातहारणीम | गृहे गृहे निवासिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||२|| दरिद्रदु:खहारिणीं, संता विभूतिकारिणीम | वियोगशोकहारणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||३|| लसत्सुलोललोचनां, लता सदे वरप्रदाम | कपालशूलधारिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||४|| करे मुदागदाधरीं, शिवा शिवप्रदायिनीम | वरां वराननां शुभां, भजामि विंध्यवासिनीम ||५|| ऋषीन्द्रजामिनींप्रदा,त्रिधास्वरुपधारिणींम | जले थले निवासिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||६|| विशिष्टसृष्टिकारिणीं, विशालरुपधारिणीम | Abhinav Lakshmi .

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ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस (ओयूपी) दुनिया की सबसे बड़ी विश्वविद्यालय प्रेस है। यह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का एक विभाग है और इसका संचालन उपकुलपति द्वारा नियुक्त 15 शिक्षाविदों के एक समूह द्वारा किया जाता है जिन्हें प्रेस प्रतिनिधि के नाम से जाना जाता है। उनका नेतृत्व प्रतिनिधियों के सचिव द्वारा किया जाता है जो ओयूपी के मुख्य कार्यकारी और अन्य विश्वविद्यालय निकायों के प्रमुख प्रतिनिधि की भूमिका निभाता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय सत्रहवीं सदी के बाद से प्रेस की देखरेख के लिए इसी तरह की प्रणाली का इस्तेमाल करता आ रहा है। विश्वविद्यालय ने 1480 के आसपास मुद्रण व्यापार में कदम रखा और बाइबल, प्रार्थना पुस्तकों और अध्ययनशील रचनाओं का प्रमुख मुद्रक बन गया। इसकी प्रेस द्वारा शुरु की गयी एक परियोजना उन्नीसवीं सदी के अंतिम दौर में ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी बन गई और बढ़ती लागतों से निपटने के लिए इसने अपना विस्तार जारी रखा। नतीजतन अपने शैक्षणिक और धार्मिक शीर्षकों से मेल स्थापित करने के लिए ऑक्सफोर्ड ने पिछले सौ सालों में बच्चों की पुस्तकों, स्कूल की पाठ्य पुस्तकों, संगीत, पत्रिकाओं, वर्ल्ड्स क्लासिक्स सीरीज और सबसे ज्यादा बिकने वाली अंग्रेजी भाषा शिक्षण पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन किया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कदम रखने के फलस्वरूप 1896 में न्यूयॉर्क से शुरुआत करने वाली इस प्रेस ने यूनाइटेड किंगडम के बाहर भी अपना कार्यालय खोलना शुरू कर दिया। कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के आगमन और उत्तरोत्तर बढ़ती व्यापारिक दशाओं की वजह से 1989 में ऑक्सफोर्ड में स्थित प्रेस के छापेखाने को बंद कर दिया गया और वोल्वरकोट में स्थित उसकी पूर्व कागज़ की मिल को 2004 में ध्वस्त कर दिया गया। अपनी छपाई और जिल्दसाजी कार्य का ठेका देकर आधुनिक प्रेस हर साल दुनिया भर में लगभग 6000 नए शीर्षकों का प्रकाशन करता है और दुनिया भर में इसके कर्मचारियों की संख्या लगभग 4000 है। एक धर्मार्थ संगठन के हिस्से के रूप में ओयूपी अपने मूल विश्वविद्यालय को अधिक से अधिक वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए और इसके अलावा अपनी प्रकाशन गतिविधियों के माध्यम से छात्रवृत्ति, अनुसन्धान और शिक्षा में बेहतरीन प्रदर्शन करने में विश्वविद्यालय के लक्ष्यों को पूरा करने में उसकी सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध है। ओयूपी को सबसे पहले 1972 में यूएस कॉर्पोरेशन टैक्स से और उसके बाद 1978 में यूके कॉर्पोरेशन टैक्स से मुक्त किया गया। एक धर्मार्थ संगठन का एक विभाग होने के नाते ओयूपी को अधिकांश देशों में आयकर और निगम कर से मुक्त कर दिया गया है लेकिन इसे अपने उत्पादों पर बिक्री और अन्य वाणिज्यिक करों का भुगतान करना पड़ता है। प्रति वर्ष कम से कम 12 मिलियन पाउंड का हस्तांतरण करने की वचनबद्धता के साथ यह प्रेस वर्तमान में विश्वविद्यालय के शेष हिस्सों को अपने वार्षिक अधिशेष का 30% हस्तांतरित करता है। प्रकाशन की संख्या की दृष्टि से ओयूपी दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय प्रेस है जो हर साल 4500 से अधिक नई पुस्तकों का प्रकाशन करता है और जहां लगभग 4000 लोग काम करते हैं। ओयूपी ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी, कंसाइस ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी, ऑक्सफोर्ड वर्ल्ड्स क्लासिक्स, ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ऑफ नेशनल बायोग्राफी और कंसाइस डिक्शनरी ऑफ नेशनल बायोग्राफी सहित कई सन्दर्भ, पेशेवर और शैक्षणिक रचनाओं का प्रकाशन करता है। इसके कई सबसे महत्वपूर्ण शीर्षक अब "ऑक्सफोर्ड रेफरेंस ऑनलाइन" नामक एक पैकेज के रूप में इंटरनेट पर उपलब्ध है और इन्हें यूके की कई सार्वजनिक पुस्तकालयों के पाठक कार्ड धारकों को मुफ्त में प्रदान किया जाता है। ऑक्सफोर्ड द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्या होती है जो 0-19 से शुरू होती है जो प्रेस को आईएसबीएन सिस्टम में दो-अंकीय पहचान संख्या वाले कई छोटे-छोटे प्रकाशकों में से एक बनाती है। आतंरिक समझौते द्वारा व्यक्तिगत संस्करण संख्या का पहला अंक (0-19- के बाद) एक विशेष प्रभाग का संकेत दे सकता है, उदाहरण के लिए: संगीत के लिए 3 (आईएसएमएन को परिभाषित करने से पहले); न्यूयॉर्क कार्यालय के लिए 5; क्लेयरेंडन प्रेस प्रकाशनों के लिए 8.

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आठवीं शताब्दी

यह ईसवीं की आठवीं शताब्दी को कहा जाता है। यानि ७००-७९९ ई. वर्षों के समूह को कहते हैं। श्रेणी:शताब्दी.

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उत्तर

उत्तर दिशा - चार दिशाओं में से एक है। उत्तर दिशा "उ" अक्षर से संबोधित की जाती हैं। उत्तर का एक अन्य अर्थ है किसी सवाल का जवाब - जैसे कि प्रश्नोत्तर में। श्रेणी:दिशाएँ da:Kompasretning#Nord भारत उपमहाद्वीप के उत्तर में हिमालय है.

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उदयपुर

उदयपुर राजस्थान का एक नगर एवं पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास, संस्कृति एवम् अपने अाकर्षक स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। इसे सन् 1559 में महाराणा उदय सिंह ने स्थापित किया था। अपनी झीलों के कारण यह शहर 'झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर शहर सिसोदिया राजवंश द्वारा ‌शासित मेवाड़ की राजधानी रहा है। .

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उदयपुर जिला

उदयपुर भारतीय राज्य "राजस्थान" का एक जिला है। जिले का मुख्यालय उदयपुर है। क्षेत्रफल - वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - 10,067,549 (2011 जनगणना) साक्षरता - एस॰टी॰डी॰ कोड - +91(india code) 0294 (Udaipur code) (remove 0 zero with indian code like +91294.. and use 0 zero for calling from inside india. जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में) समुद्र तल से उचाई - अक्षांश - उत्तर देशांतर - पूर्व औसत वर्षा - मि॰मी॰ .

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