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उमास्वामी

सूची उमास्वामी

आचार्य उमास्वामी,  कुन्दकुन्द स्वामी के प्रमुख शिष्य थे। वह मुख्य जैन ग्रन्थ, तत्त्वार्थ सूत्र के लेखक है। वह दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों के द्वारा पूजे जाते हैं। वह दूसरी सदी के एक गणितज्ञ थे। .

6 संबंधों: तत्त्वार्थ सूत्र, दिगम्बर, समन्तभद्र, जैन धर्म, जैन ग्रंथ, कुन्दकुन्द

तत्त्वार्थ सूत्र

तत्त्वार्थसूत्र, जैन आचार्य उमास्वामी द्वारा रचित एक जैन ग्रन्थ है। इसे 'तत्त्वार्थ-अधिगम-सूत्र' तथा 'मोक्ष-शास्त्र' भी कहते हैं। संस्कृत भाषा में लिखा गया यह प्रथम जैन ग्रंथ माना जाता है। इसमें दस अध्याय तथा ३५० सूत्र हैं। उमास्वामी सभी जैन मतावलम्बियों द्वारा मान्य हैं। उनका जीवनकाल द्वितीय शताब्दी है। आचार्य पूज्यपाद द्वारा विरचित सर्वार्थसिद्धि तत्त्वार्थसूत्र पर लिखी गयी एक प्रमुख टीका है। .

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दिगम्बर

गोम्मटेश्वर बाहुबली (श्रवणबेळगोळ में) दिगम्बर जैन धर्म के दो सम्प्रदायों में से एक है। दूसरा सम्प्रदाय है - श्वेताम्बर। दिगम्बर.

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समन्तभद्र

आचार्य समन्तभद्र दूसरी सदी के एक प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। वह जैन दर्शन के प्रमुख सिद्धांत, अनेकांतवाद के महान प्रचारक थे। उनका जन्म कांचीनगरी (शायद आज के कांजीवरम) में हुआ था। उनकी सबसे प्रख्यात रचना रत्नकरण्ड श्रावकाचार हैं। .

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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जैन ग्रंथ

जैन साहित्य बहुत विशाल है। अधिकांश में वह धार्मिक साहित्य ही है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में यह साहित्य लिखा गया है। महावीर की प्रवृत्तियों का केंद्र मगध रहा है, इसलिये उन्होंने यहाँ की लोकभाषा अर्धमागधी में अपना उपदेश दिया जो उपलब्ध जैन आगमों में सुरक्षित है। ये आगम ४५ हैं और इन्हें श्वेतांबर जैन प्रमाण मानते हैं, दिगंबर जैन नहीं। दिंगबरों के अनुसार आगम साहित्य कालदोष से विच्छिन्न हो गया है। दिगंबर षट्खंडागम को स्वीकार करते हैं जो १२वें अंगदृष्टिवाद का अंश माना गया है। दिगंबरों के प्राचीन साहित्य की भाषा शौरसेनी है। आगे चलकर अपभ्रंश तथा अपभ्रंश की उत्तरकालीन लोक-भाषाओं में जैन पंडितों ने अपनी रचनाएँ लिखकर भाषा साहित्य को समृद्ध बनाया। आदिकालीन साहित्य में जैन साहित्य के ग्रन्थ सर्वाधिक संख्या में और सबसे प्रमाणिक रूप में मिलते हैं। जैन रचनाकारों ने पुराण काव्य, चरित काव्य, कथा काव्य, रास काव्य आदि विविध प्रकार के ग्रंथ रचे। स्वयंभू, पुष्प दंत, हेमचंद्र, सोमप्रभ सूरी आदि मुख्य जैन कवि हैं। इन्होंने हिंदुओं में प्रचलित लोक कथाओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया और परंपरा से अलग उसकी परिणति अपने मतानुकूल दिखाई। .

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कुन्दकुन्द

कुंदकुंदाचार्य की प्रतिमा जी (कर्नाटक) कुंदकुंदाचार्य दिगंबर जैन संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध आचार्य थे। इनका एक अन्य नाम 'कौंडकुंद' भी था। इनके नाम के साथ दक्षिण भारत का कोंडकुंदपुर नामक नगर भी जुड़ा हुआ है। प्रोफेसर ए॰ एन॰ उपाध्ये के अनुसार इनका समय पहली शताब्दी ई॰ है परंतु इनके काल के बारे में निश्चयात्मक रूप से कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। श्रवणबेलगोला के शिलालेख संख्या ४० के अनुसार इनका दीक्षाकालीन नाम 'पद्मनंदी' था और सीमंधर स्वामी से उन्हें दिव्यज्ञान प्राप्त हुआ था। आचार्य कुन्दकुन्द ने ११ वर्ष की उम्र में दिगम्बर मुनि दीक्षा धारण की थी। इनके दीक्षा गुरू का नाम जिनचंद्र था। ये जैन धर्म के प्रकाण्ड विद्वान थे। इनके द्वारा रचित समयसार, नियमसार, प्रवचन, अष्टपाहुड, और पंचास्तिकाय - पंच परमागम ग्रंथ हैं। ये विदेह क्षेत्र भी गए। वहाँ पर इन्होने सीमंधर नाथ की साक्षात दिव्यध्वनि को सुना। वे ५२ वर्षों तक जैन धर्म के संरक्षक एवं आचार्य रहे। वे जैन साधुओं की मूल संघ क्रम में आते हैं। वे प्राचीन ग्रंथों में इन नामों से भी जाने जातें हैं- गौतम गणधर के बाद आचार्य कुन्दकुन्द को संपूर्ण जैन शास्त्रों का एक मात्र ज्ञाता माना गया है। दिगम्बरों के लिए इनके नाम का शुभ महत्त्व है और भगवान महावीर और गौतम गणधर के बाद पवित्र स्तुति में तीसरा स्थान है- आचार्य कुन्दकुन्द तत्त्वार्थसूत्र के रचियता आचार्य उमास्वामी के गुरु थे। .

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आचार्य उमास्वामी, उमास्वाति

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