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उपादान

सूची उपादान

किसी वस्तु की तृष्णा से उसे ग्रहण करने की जो प्रवृत्ति होती है, उसे उपादान कहते हैं। प्रतीत्यसमुत्पादन की दूसरी कड़ी 'तण्हापच्चया उपादानं' - इसी का प्रतिपादान करती है। उपादान से ही प्राणी के जीवन की सारी भाग दोड़ होती है, जिसे भव कहते हैं। तृष्णा के न होने से उपादान भी नहीं होता और उपादान के निरोध से भव का निरोध हो जाता है। यही निर्वाण के लाभ की दिशा है। श्रेणी:भारतीय दर्शन.

सामग्री की तालिका

  1. 1 संबंध: तृष्णा

तृष्णा

भारतीय दर्शन के सन्दर्भ में तृष्णा का अर्थ 'प्यास, इच्छा या आकांक्षा' से है। श्रेणी:भारतीय दर्शन.

देखें उपादान और तृष्णा