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उपनाम

सूची उपनाम

नाम के साथ प्रयोग हुआ दूसरा शब्द जो नाम कि जाति या किसी विशेषता को व्यक्त करता है उपनाम (Surname / सरनेम) कहलाता है। जैसे महात्मा गाँधी, सचिन तेंदुलकर, भगत सिंह आदि में दूसरा शब्द गाँधी, तेंदुलकर, सिंह उपनाम हैं। .

91 संबंधों: चट्टोपाध्याय, चतुर्वेदी, चारण, चावला, चौधरी, चौहान, झा, झाला, ठाकुर, डांगी, तोमर, दास, दुबे, देशमुख, धनगर, नाथ, नाम, नायडू, नायर, नागर, निषाद, निगम, पटेल, पठान, पण्डित, पाटिल, पाटीदार, पाठक, पाण्डेय, प्रधान, बन्दोपाध्याय, भटनागर, भट्टाचार्य, भरद्वाज, भाटिया, भगत सिंह, महात्मा गांधी, महार, महाजन, माहेश्वरी, मांझी, मिश्र, मोमीन अंसारी, मीणा, यादव, राणा, राय, राजपूत, रेड्डी, शर्मा, ..., शाह, शेखावत, सचिन तेंदुलकर, सहाय, साहनी, सिन्हा, सिसोदिया, सिंह, सिंघम, सिंघल, सक्सेना, सुतार, सुथार, स्वामी, सूर्यवंश, सेन, जाट, जादौन, जायसवाल, जैन धर्म, वर्मा, विश्वकर्मा, खन्ना, खान, गर्ग, गिरी, गिल गोत्र, गुप्ता, गुर्जर, गौड़, गौतम, गोस्वामी, आर्य, कपूर (उपनाम), कश्यप, कहार, कुमार, कुलकर्णी, अग्रहरि, अग्रवाल, उपाध्याय सूचकांक विस्तार (41 अधिक) »

चट्टोपाध्याय

एक भारतीय उपनाम। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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चतुर्वेदी

एक भारतीय हिन्दू उपनाम। यह उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों द्वारा प्रयु्क्त होता है। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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चारण

राजस्थान की एक जाति-विशेष, जिस के महापुरुषो ने अनेक रजवाडो के राजदरबारों में अपने ओजपूर्ण काव्य के द्वारा राज्य की रक्षा के लिए राजा और सेना की भुजाओं में फौलाद भरने का काम किया करते थे,और खुद युद्वभुमी मे विरता दीखा कर नीडर होकर क्षत्रियधर्म नीभाते थे । युद्ध-विषयक काव्य-लेखन,कवित्व शक्ति,और युद्धभुमी मे विरता दीखाने से बहोत से रजवाडो मे ईन्हे बडी बडी जागीरे और दरबार मे सन्मानीय स्थान प्राप्त हुआ। ये अर्वाचीन काल से युद्ध आदी वीषयो मे नीपुण रहे है,अपीतु चारण क्षत्रिय वर्णस्थ माने जाते है।ईन्हे जागीरदार और ठाकुर कहा जाता है। .

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चावला

एक भारतीय उपनाम। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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चौधरी

एक भारतीय उपनाम। यह हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों में प्रयुक्त होता है। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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चौहान

चौहान या चव्हाण एक वंश है। चौहान गुर्जर तथा राजपूतों में आता है।विद्वानो का कहना है कि चौहान मुल से राजपूत थे तथा १० वी शदी तक गुर्जर प्रतिहारो के अधीन थे। चौहान साम्भर झील और पुष्कर, आमेर और वर्तमान जयपुर, राजस्थान में भी होते थे, जो अब सारे उत्तर भारत में फैले हुए हैं। इसके अलावा मैनपुरी उत्तर प्रदेश एवं नीमराना, राजस्थान के अलवर जिले में भी पाये जाते हैं। .

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झा

एक भारतीय उपनाम। इसका प्रयोग मैथिल ब्राह्मण करते हैं। मैथिल ब्राह्मण पंचगौड़ ब्राह्मणों के अंतर्गत आते हैं और मूलतः मिथिला के निवासी होने के कारण मैथिल कहे जाते हैं। प्राचीन काल में मिथिला अलग राज्य था पर अब यह बिहार (उत्तरी) के अंतर्गत आता है। 'झा' शब्द संस्कृत भाषा के शब्द उपाध्याय का अपभ्रंश है। वैदिक काल में वैदिक शिक्षकों को उपाध्याय कहा जाता था। जिसे पालि में 'उवज्झा' कहा जाता था। यही 'उवज्झा' काल के उत्तरोत्तर प्रवाह में 'ओझा' से होते हुए घटकर केवल 'झा' रह गया। .

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झाला

झाला (अंग्रेजी: Jhala (clan)) भारतवर्ष में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक महान राजपूत वर्ण की जाति है जो मुख्यत: गुजरात और राजस्थान में पायी जाती है। श्रेणी:आधार श्रेणी:जाति.

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ठाकुर

'ठाकुर' के निम्नलिखित अर्थ हो सकते हैं-.

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डांगी

डांगी, हिमाचल प्रदेश का परिद्ध लोक नृत्य है। श्रेणी:लोक नृत्य श्रेणी:हिमाचल प्रदेश के लोक नृत्य.

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तोमर

एक भारतीय उपनाम। तोमर राजवंश - चंद्रवंशी पुरुवंशी कुरुवंशी | .

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दास

एक भारतीय उपनाम जो बंगाल, बिहार और उड़ीसा के क्षेत्रों में हिन्दुओं द्वारा प्रयुक्त होता है। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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दुबे

दुबे एक भारतीय उपनाम है। यह उपनाम मुख्यत: उत्तर भारत के सरयूपारीण हिंदू ब्राह्मण इस्तेमाल करते हैं। श्रेणी:हिंदू उपनाम श्रेणी:ब्राह्मण.

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देशमुख

एक भारतीय उपनाम। •देशमुख' उप-नाम या 'देशमुखी' नामक वतन यह मुख्यत: महाराष्ट्र और महाराष्ट्र के सटे हुए आंध्रा, कर्नाटक, मध्य-प्रदेश, छत्तीस-गढ़, आदि राज्योंमें पाया जाने वाला एक भारतीय उपनाम है। 'देशमुख' या देशमुखी यह वतन छत्रपति शिवाजी के पूर्व-कालीन परंपरागत राज व्यवस्था का एक ऊपरी दर्जेका अधिकार तथा जबाबदेही का पद है। ये उनके 'महल' या 'परगना' नामक महसूल विभाग के मुखिया के रूप में कामकाज देखते थे। युद्ध के समय देशमुखोने अमुकइतने सैन्य/सैनिक राजाओंके खिदमत/ मदत में भेजना चाहियें, इस तरह के करार होते थे। अधिकार कि व्याप्ति और इनके अधिकार में आनेवाला इलाके का क्षेत्र- फल के नुसार देशमुख यह पदवी या देशमुखी यह वतन यूरोपियन घराणेशाहीके 'ड्यूक' कि समकक्ष है। •'देशमुख' यह पदवी या 'देशमुखी' नामक वतन सर्फ मराठा राजघरानो से निगडित था। 'देशमुख' अपने प्रभाव क्षेत्र का शासक था, शासक के रूप में वह राजस्व/कर वसूली का हकदार था और अपने क्षेत्र में पुलिस और न्यायिक कर्तव्यों के रूप में, बुनियादी सेवाओं को बनाए रखने कि जबाबदेही निभाता था। यह आमतौर पर एक वंशानुगत व्यवस्था थी। •'देशमुख' यह 'वतन' या 'शीर्षक' क्षेत्र से राजस्व वसूली और नागरिको को मुलभुत सेवा और व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी के साथ शीर्षक परिवार को प्रदान की जाता था इस कारण से, देशमुख इस शब्द का शिथिल अनुवाद 'देशभक्त' ' (loosely translated as' Patriot ') के रूप में भी किया जाता रहा है और इसी कारणवश आज भी 'देशमुख' इस उप-नाम को समाज में सम्मान से देखा जाता है। •ब्रिटिश राज मे 'देशमुखी' यह वतनदारी खत्म (खालसा) कि गयी और देशमुख यह शब्द केवल उपनाम रह गया। निजाम राज्य मे 1948 तक देशमुखी वतन था।desmukh is a best jati.

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धनगर

धनगर समाज धनगर समाज प्राचीन भारत में धन का तात्पर्य था पशुओं से पशुओं में प्राचीन से धनगर समाज भेड़ बकरी एवं गाय पालती है वर्तमान में तो सभी इस व्यवसाय को छोड़ दिया है परंतु प्राचीन काल से धनगर समाज को भेड़ बकरियों एवं गाय से जाना जाता था इनसे ही इसकी पहचान थी अतः अलग-अलग स्थानों पर इनको अलग-अलग नाम दे दिया गया गाडरी गडरिया पाल बघेल गायरी होलकर यह सभी एक ही समाज है लेकिन धीरे धीरे इनको अलग-अलग क्षेत्र की भाषा में नाम बदल दिया गया लेकिन इनका वास्तविक नाम धनगर है इनका धर्म हिंदू है प्राचीन समय में इनका कार्य भेड़ बकरी गाय चराना था.

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नाथ

नाथ सम्प्रदाय भारत में एक शैव धार्मिक पंथ है। इसका संबंध योग और हठयोग पद्धतियों का अनुसरण करने वाले समुदाय से भी है। इसका आरम्भ आदिनाथ शंकर से हुआ माना जाता है। जबकि कुछ लोग इसे मछेंदरनाथ द्वारा स्थापित मानते हैं। इस पंथ के सबसे प्रसिद्द संत गोरखनाथ हुए हैं। श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:हिन्दू धर्म के मत.

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नाम

नाम का प्रयोग एक वस्तु को दूसरी से अलग करने में सहायक होता है। नाम किसी एक वस्तु का हो सकता है या बहुत सी वस्तुओं के समूह का हो सकता है। किसी वस्तु का नाम 'व्यक्तिवाचक संज्ञा' (प्रॉपर नाउन) कहलाती है। .

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नायडू

नायडू या नायुडू दक्षिण भारत में प्र्यतेक रूप से आन्ध्र प्रदेश में एक उपनाम जो भारत के कई राज्यों एवं दुनिया के कई देशों में बसे आन्ध्र प्रदेश का एक समुदाय। .

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नायर

नायर (मलयालम: നായര്,, जो नैयर और मलयाला क्षत्रिय के रूप में भी विख्यात है), भारतीय राज्य केरल के हिन्दू उन्नत जाति का नाम है। 1792 में ब्रिटिश विजय से पहले, केरल राज्य में छोटे, सामंती क्षेत्र शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक शाही और कुलीन वंश में, नागरिक सेना और अधिकांश भू प्रबंधकों के लिए नायर और संबंधित जातियों से जुड़े व्यक्ति चुने जाते थे। नायर राजनीति, सरकारी सेवा, चिकित्सा, शिक्षा और क़ानून में प्रमुख थे। नायर शासक, योद्धा और केरल के भू-स्वामी कुलीन वर्गों में संस्थापित थे (भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व).

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नागर

नागर या नागर ब्रहामण भारतीय मूल के धर्मो में वर्ण व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मणो की एक ज्ञाति है। नागरो को ब्राह्मणो में सब से श्रेष्ठ माना जाता है। भारत में गुजरात, काश्मीर, मध्यप्रदेश इत्यादि राज्यो में नागर समुदाय की बस्ती ज्यादा है। नागर समुदाय के लोग कलम, कड़छी और बरछी में निपुण होते है एसा माना जाता है। नागरो के बारे में वेद व्यास द्वारा लिखित स्कन्दपुराण के नागरखंड में प्राचीन उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार भगवान शिव ने उमा से विवाह के लिए नागरों को उत्पन्न किया था तथा इसके पश्चात प्रसन्न होकर उत्सव मनाने के लिए इन्हें हाटकेश्वर नाम का स्थान वरदान के रूप में दिया था। नागर ब्राह्मण के मूल स्थान के आधार पर ही उन्हें जाना जाने लगा जैसे वडनगर के वडनगरा ब्राह्मण विसनगर के विसनगरा, प्रशनिपुर के प्रशनोरा (राजस्थान) जो अब भावनगर तथा गुजरात के अन्य प्रान्तों में बस गए, क्रशनोर के क्रशनोरा तथा शतपद के शठोदरा आदि छ प्रकार के नामो से नागर ब्राह्मणो को जाना जाता है। एक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण पुत्र क्रथ एक बार घूमते- घूमते नागलोक के नागतीर्थ में पहुँच गया। वहां उसका मुकाबला नाग लोक के राजकुमार रुदाल से हो गया, इसमें नाग कुमार मारा गया। इससे नाग राज को क्रोध आ गया और उसने पुत्र की हत्या करने वाले कुल का समूल नाश करने की प्रतिज्ञा कर ली। उसने गाँव पर चढ़ाई कर दी जो आज वडनगर के नाम से जाना जाता है, वहीँ ब्राह्मण कुमार क्रथ अपने परिवार तथा अन्य कुटुंब के साथ रहता था। इसमें बहुत सारे ब्राह्मण परिवार मारे गए और बचे हुए लोगों ने भाग कर एक संत मुनि त्रिजट के पास शरण ली।त्रिजट ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा। बाह्मणों ने पूरे मन और भक्ति भाव से भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव प्रसन्न हो गए पर चूंकि नाग भी शिव के भक्त थे अतः शिव ने नागों का अहित करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की परन्तु ब्राह्मणों को सर्पों के विष से बचने की शक्ति प्रदान कर दी। ब्राह्मण अपने गाँव को लौट गए और तब से इन्हें ना-गर (जिस पर अगर अर्थात विष का प्रभाव ना पड़ता हो) कहा जाने लगा। इसीलिए नागर समुदाय सारे ब्राह्मणों में सबसे अधिक श्रद्धेय तथा पवित्र भी माने जाते हैं क्योकि वे अपने ह्रदय में कोई बुराई (विष) उत्पन्न नहीं होने देते हैं। हाटकेश्वर मन्दिर -.......गुजरात के पुरा ग्रंथो में उल्लेख मिलता है कि वडनगर (चमत्कारपूर) की भूमि राजा द्वारा आभार -चिह्न के रूप में नागरो को भेंट किया था। राजा को एक हिरन को मारकर स्वयम व् अपने पुत्रो को खिलने कर्ण गल्य्त्व मुनि द्वारा एक अभिशाप के कारण जो श्वेत कुश्त हो गया राजा ने नागर सभा से करुना की याचना की, कृनाव्र्ट धरी नागर ने राजा के कष्टों का जड़ी बूटियों और प्राकृतिक दवाओं...के अपने ज्ञान की मदद से इलाज किया गया। राजा चमत्कारपूर (देश जहाँ वडनगर स्थित है) देश नागरो को दान में देना चाह, परन्तु अपनी करुना का मूल्य न लगाने के कारण राजा का इनाम स्वीकार नहीं किया ! नागर ब्राह्मण के 72 परिवार उच्च सिद्धांतों, के थे जिन्होंने दान स्वीकार नहीं किया राजा चमत्कार की रानी से अनुनय के बाद छह परिवारों ने उपहार स्वीकार कर लिया, परन्तु 66 परिवार जिन्होंने रजा का उपहार स्वीकार नहीं किया अपना देश त्याग चले गए और उनके वंशज साठ गाडियों में अपना कुनबा लेकर चले थे इसीसे सठोत्रा गोत्र के कहलाये ! आज भी वे अपने त्याग ओर आदर्शो के कारण श्रद्धेय हैं। ! एक अन्य किवदन्...ती जो की नागर समाज के तीर्थ पुरोहितो की पोथी के अनुसार यह है कि गुजरात के तत्कालीन नवाब नासिर-उद-दीन (महमूद शाह) ई.स. 1537- 1554 के लगभग धर्म परिवर्तन, मुस्लिम वंश में कन्या देना एवं जागीर और सरकारी कामकाज में गैर मुस्लिमों की बेदखली से क्षुब्ध हो गुजरात छोड़ कर मालवा और राजस्थान की और पलायन किया, साठ बैलगाड़ी में अपना सब कुछ वही छोड़ रात ही रात एकसाथ पलायन करने से साठोत्रा कहलाये ! कहते है यात्रा में एक दिन जिस स्थान से मालवा और राजस्थान के दोराहे पर कन्थाल और कालीसिंध के तट पर जिस बैलगाड़ी में अपने साथ अपने इष्ट व् कुलदेव भगवान हाटकेश्वर का चलायमान शिवलिंग स्वरूप (जिसे वडनगर के प्राचीन व् स्वयम्भू हाटकेश्वर मंदिर में उत्सव एवं शोभायात्राओ में नगर में निकला जाता था) को रात्रि विश्राम के बाद प्रात: सभी चलने को उद्यत हुए तो जिस बैलगाड़ी में भगवान हाटकेश्वर मुर्तिस्वरूप विराजमान थे बहुत कोशिश के बाद भी आगे नहीं चला पाए, प्रभु की इच्छा जान सभी नागर जन वही अपने इष्ट देव की पूजन करने लगे! संयोगवश उसी रात महाराणा उदयसिंग को स्वप्न में भगवान हाटकेश्वर के दर्शन हुए और आज्ञा दी की तुम्हारे राज्य की सीमा पर मेरे प्रिय जन भूखे है जाकर उन ब्रहामणों को अन्न आदि दो, महाराणा ने तुरंत अपने स्थानीय प्रतिनिधि को सूचित किया, जब महाराणा उदयसिंग के प्रतिनिधी ने अपने दूतो को आज्ञा दी ओर उन्होंने नागर जनों को भोजन अन्न व् गाये देना चाहा तो उन सभी ने कहा जब तक हमारे इष्ट देव को स्थापित नहीं कर देते तब तक अन्न नहीं लेंगे, जब महाराणा उदयसिंग को पता लगा तो उन्होंने सभी नागर को राजभटट की उपाधी दी!तथा राजपुरोहित को भेज कर सोयत कलां में शिवलिंग स्थापित करवाकर गो, भूमि और भोजन आदि की व्यवस्था की ! प्रति वर्ष हाटकेश्वर जयंती पर इसी स्थान पर सभी एकत्र होकर परस्पर मिलेंगे ऐसा विमर्श कर तथा यहाँ मन्दिर स्थान पर एक स्वजन को पूजन में नियुक्त कर, यही से सभी नागर जन अपनी अपनी आजीविका की तलाश में आगे बढ़े, आज उन्ही पुण्य श्लोक पूर्वजो और अपने इष्ट व् कुलदेव भगवान हाटकेश्वर की कृपा से आज हम सब पूर्णत:कुशल मंगल है! भगवान् हाटकेश्वर सदा अपनी करूणा कृपा हम सब पर बनाये रखें! श्रेणी:ब्राह्मण.

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निषाद

भारतीय शास्त्रीय संगीत के सात स्वरों में से पहला स्वर। निषाद दो प्रकार के होते हैं- कोमल निषाद और शुद्ध निषाद। श्रेणी:भारतीय संगीत के स्वर.

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निगम

निगम एक विशेषाधिकार प्राप्त स्वतन्त्र कानूनी इकाई के रूप में पहचानी जाने वाली अलग संस्था है जिसके पास अपने सदस्यों से पृथक अपने अधिकार और दायित्व हैं। निगमों के कई प्रकार हैं, जिनमे से अधिकतर का उपयोग व्यापार करने के लिए किया जाता है। निगम कॉर्पोरेट कानून का एक उत्पाद हैं और इनके नियम उन प्रबंधकों के हितों को संतुलित करते हैं जो निगम, लेनदारों, शेयरधारकों तथा श्रम का योगदान करने वाले कर्मचारियों का संचालन करते हैं। आधुनिक समय में, निगम तेजी से आर्थिक जीवन का एक प्रमुख हिस्सा बन गए हैं। निगम की एक महत्वपूर्ण सुविधा सीमित देयता है। अगर एक निगम विफल होता है, तो शेयरधारक सामान्य रूप से केवल अपने निवेश को खोते हैं और कर्मचारी केवल अपनी नौकरी खो देंगे, किन्तु उन में से कोई भी निगम के लेनदारों के ऋणों के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा.

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पटेल

एक भारतीय उपनाम जो खेती करने वाले वैश्य या क्षत्रिय का है।.

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पठान

अफ़्ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के नक़्शे में पश्तून क्षेत्र (नारंगी रंग में) ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान एक पश्तून थे अफ़्ग़ानिस्तान के ख़ोस्त प्रान्त में पश्तून बच्चे अमीर शेर अली ख़ान अपने पुत्र राजकुमार अब्दुल्लाह जान और सरदारों के साथ (सन् १८६९ ई में खींची गई) पश्तून, पख़्तून (पश्तो:, पश्ताना) या पठान (उर्दू) दक्षिण एशिया में बसने वाली एक लोक-जाति है। वे मुख्य रूप में अफ़्ग़ानिस्तान में हिन्दु कुश पर्वतों और पाकिस्तान में सिन्धु नदी के दरमियानी क्षेत्र में रहते हैं हालांकि पश्तून समुदाय अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के अन्य क्षेत्रों में भी रहते हैं। पश्तूनों की पहचान में पश्तो भाषा, पश्तूनवाली मर्यादा का पालन और किसी ज्ञात पश्तून क़बीले की सदस्यता शामिल हैं।, James William Spain, Mouton,...

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पण्डित

एक कर्मकाण्डी पण्डित (ब्राह्मण) का चित्र पण्डित (पंडित), या पण्डा (पंडा), अंग्रेजी में Pandit का अर्थ है एक विद्वान, एक अध्यापक, विशेषकर जो संस्कृत और हिंदू विधि, धर्म, संगीत या दर्शनशास्त्र में दक्ष हो। अपने मूल अर्थ में 'पण्डित' शब्द का तात्पर्य हमेशा उस हिन्दू ब्राह्मण से लिया जाता है जिसने वेदों का कोई एक मुख्य भाग उसके उच्चारण और गायन के लय व ताल सहित कण्ठस्थ कर लिया हो। .

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पाटिल

पाटिल (कन्नड़: ಪಾಟೀಲ) (मराठी: पाटील) (शाब्दिक अर्थ: "मुख्य" या "गांव का मुखिया") एक भारतीय उपनाम है। इस नाम का उद्गम पाटी या पाठी शब्द से माना जाता है, जिसका अर्थ है शिक्षित व्यक्ति। पुराने जमाने में खेती ही भारतीयों का मुख्य व्यवसाय था, और किसानों का किसी भी आपदा से संरक्षण करना तथा उन्हे सिंचाई के साधन उपल्ब्ध कराना उस क्षेत्र के राजा का कर्तव्य हुआ करता था। इस काम में उनकी सहायता गांव का मुखिया करता था, जो पाठी कहलाता था। उसका मुख्य काम गांव के राजस्व का संचयन करना, और संचित राशी, जो फसल या धन के स्वरूप में होती थी, उसका लेखा-जोखा रखना और उसे क्षेत्र के राजा के भंडार मेें जमा करना होता था। सूखा पड़ने पर यह भंडार प्रजा के लिये खोला जाता था, और वितरित किया जाता था। गांव मे नियम कानूून बनाये रखने का दायित्व भी गांव के पाटिल को ही निभाना होता था। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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पाटीदार

पाटीदार गुजरात और राजस्थान में निवास करने वाली जाति है। पटेल उपनाम इनमें काफ़ी इस्तेमाल होता है। .

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पाठक

पाठक वे कहलाते है जो कोई भी कहानी,कविता,लेख,निबन्ध या अखबार पढ़ते है वे ही पाठक कहलाते हैं। श्रेणी:पाठक श्रेणी:पढ़ाई श्रेणी:शिक्षा.

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पाण्डेय

पाण्डेय अथवा पाण्डे/पाँडे उत्तर एवं मध्य भारत तथा नेपाल में हिन्दू ब्राह्मण समुदाय का एक उपनाम है। नेपालमें ये क्षत्रिय समुदायके भी पारिवारिक नाम होता है। पाँडे वंश नेपालके क्षत्रिय शासकोंकी परिवार है। इसी प्रकार पश्चिमी भारत में महाराष्ट्र में कई ब्राह्मण समुदायों के उपनाम पांडे पर अन्त होते हैं जैसे देशपांडे, सरदेशपांडे आदि। भारत में पांडे उप नाम के अधिकतम लोग उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा तथा छत्तीसगढ़ राज्य में पाये जाते हैं। तथा राज्योंके अनुसार ये भाषा में संवाद करते हैं, उदाहरण रूपी उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले पांडे उपनाम के लोग भोजपुरी, अवधि बोलते हैं, उसी तरह उत्तराखंड में ये कुमाऊनि, तथा पंजाब-हरियाणा में ये पंजाबी या हरियाणवी बोलते हैं। श्रेणी:उपनाम.

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प्रधान

प्रधान का अर्थ प्रमुख है। .

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बन्दोपाध्याय

एक भारतीय उपनाम। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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भटनागर

महाराज चित्रगुप्त के परिवार में भटनागरों का स्थान भटनागर उत्तर भारत में प्रयुक्त होने वाला एक जातिनाम है, जो कि हिन्दुओं की कायस्थ जाति में आते है। इनका प्रादुर्भाव यमराज, मृत्यु के देवता, के पप पुण्य के अभिलेखक, श्री चित्रगुप्त जी की प्रथम पत्नी दक्षिणा नंदिनी के द्वितीय पुत्र विभानु के वंश से हुआ है। विभानु को चित्राक्ष नाम से भी जाना जाता है। महाराज चित्रगुप्त ने इन्हें भट्ट देश में मालवा क्षेत्र में भट नदी के पास भेजा था। इन्होंने वहां चित्तौर और चित्रकूट बसाये। ये वहीं बस गये और इनका वंश भटनागर कहलाया। .

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भट्टाचार्य

एक भारतीय उपनाम। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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भरद्वाज

भरद्वाज प्राचीन भारतीय ऋषि थे। चरक संहिता के अनुसार भरद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान पाया। ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद वे चौथे व्याकरण-प्रवक्ता थे। उन्होंने व्याकरण का ज्ञान इन्द्र से प्राप्त किया था (प्राक्तंत्र 1.4) तो महर्षि भृगु ने उन्हें धर्मशास्त्र का उपदेश दिया। तमसा-तट पर क्रौंचवध के समय भरद्वाज वाल्मीकि के साथ थे। महर्षि भरद्वाज व्याकरण, आयुर्वेद संहित, धनुर्वेद, राजनीतिशास्त्र, यंत्रसर्वस्व, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा आदि पर अनेक ग्रंथों के रचयिता हैं। पर आज यंत्र सर्वस्व तथा शिक्षा ही उपलब्ध हैं। वायुपुराण के अनुसार उन्होंने एक पुस्तक आयुर्वेद संहिता लिखी थी, जिसके आठ भाग करके अपने शिष्यों को सिखाया था। चरक संहिता के अनुसार उन्होंने आत्रेय पुनर्वसु को कायचिकित्सा का ज्ञान प्रदान किया था। ऋषि भरद्वाज को प्रयाग का प्रथम वासी माना जाता है अर्थात ऋषि भरद्वाज ने ही प्रयाग को बसाया था। प्रयाग में ही उन्होंने घरती के सबसे बड़े गुरूकुल(विश्वविद्यालय) की स्थापना की थी और हजारों वर्षों तक विद्या दान करते रहे। वे शिक्षाशास्त्री, राजतंत्र मर्मज्ञ, अर्थशास्त्री, शस्त्रविद्या विशारद, आयुर्वेेद विशारद,विधि वेत्ता, अभियाँत्रिकी विशेषज्ञ, विज्ञानवेत्ता और मँत्र द्रष्टा थे। ऋग्वेेद के छठे मंडल के द्रष्टाऋषि भरद्वाज ही हैं। इस मंडल में 765 मंत्र हैं। अथर्ववेद में भी ऋषि भरद्वाज के 23 मंत्र हैं। वैदिक ऋषियों में इनका ऊँचा स्थान है। आपके पिता वृहस्पति और माता ममता थीं। ऋषि भरद्वाज को आयुर्वेद और सावित्र्य अग्नि विद्या का ज्ञान इन्द्र और कालान्तर में भगवान श्री ब्रम्हा जी द्वारा प्राप्त हुआ था। अग्नि के सामर्थ्य को आत्मसात कर ऋषि ने अमृत तत्व प्राप्त किया था और स्वर्ग लोक जाकर आदित्य से सायुज्य प्राप्त किया था। (तैoब्राम्हण3/10/11) सम्भवतः इसी कारण ऋषि भरद्वाज सर्वाधिक आयु प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक थे। चरक ऋषि ने उन्हें अपरिमित आयु वाला बताया है। (सूत्र-स्थान1/26) ऋषि भरद्वाज ने प्रयाग के अधिष्ठाता भगवान श्री माधव जो साक्षात श्री हरि हैं, की पावन परिक्रमा की स्थापना भगवान श्री शिव जी के आशीर्वाद से की थी। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री द्वादश माधव परिक्रमा सँसार की पहली परिक्रमा है। ऋषि भरद्वाज ने इस परिक्रमा की तीन स्थापनाएं दी हैं- 1-जन्मों के संचित पाप का क्षय होगा, जिससे पुण्य का उदय होगा। 2-सभी मनोरथ की पूर्ति होगी। 3-प्रयाग में किया गया कोई भी अनुष्ठान/कर्मकाण्ड जैसे अस्थि विसर्जन, तर्पण, पिण्डदान, कोई संस्कार यथा मुण्डन यज्ञोपवीत आदि, पूजा पाठ, तीर्थाटन,तीर्थ प्रवास, कल्पवास आदि पूर्ण और फलित नहीं होंगे जबतक स्थान देेेेवता अर्थात भगवान श्री द्वादश माधव की परिक्रमा न की जाए। आयुर्वेद सँहिता, भरद्वाज स्मृति, भरद्वाज सँहिता, राजशास्त्र, यँत्र-सर्वस्व(विमान अभियाँत्रिकी) आदि ऋषि भरद्वाज के रचित प्रमुख ग्रँथ हैं। ऋषि भरद्वाज खाण्डल विप्र समाज के अग्रज है।खाण्डल विप्रों के आदि प्रणेता ऋषि भरद्वाज हैं। मनुष्य को जगाने के लिए ऋषि एक स्थान पर कहते हैं-अग्नि को देखो यह मरणधर्मा मानवों स्थित अमर ज्योति है। यह अति विश्वकृष्टि है अर्थात सर्वमनुष्य रूप है। यह अग्नि सब कार्यों में प्रवीणतम ऋषि है जो मानव में रहती है। उसे प्रेरित करती है ऊपर उठने के लिए। अतः स्वयं को पहचानो। भाटुन्द गाँव के श्री आदोरजी महाराज भारद्वाज गोत्र के थे। सबसे ज्यादा जागीर वाले सेवड़ राजपुरोहितो की गोत्र भी भारद्वाज है, इनके आज भी कई ठिकाने, हवेलियां व कोटड़िया विद्यमान है। सेवड़ राजपुरोहितो का इतिहास बड़ा ही गौरव पूर्ण रहा इन्होंने कई युद्ध लड़े जिसके कारण इन्हें खूब जागीर mili.

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भाटिया

भाटिया से इनका उल्लेख होता है:-.

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भगत सिंह

भगत सिंह (जन्म: २८ सितम्बर या १९ अक्टूबर, १९०७, मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया। भगत सिंह को समाजवादी,वामपंथी और मार्क्सवादी विचारधारा में रुचि थी। सुखदेव, राजगुरु तथा भगत सिंह के लटकाये जाने की ख़बर - लाहौर से प्रकाशित ''द ट्रिब्युन'' के मुख्य पृष्ठ --> .

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महात्मा गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। .

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महार

महार एक प्रमुख सामाजिक समूह है जो महाराष्ट्र राज्य और आसपास के राज्यों में रहता हैं। महार समूह महाराष्ट्र में सबसे बड़ा अनुसूचित जातियों का समूह है, हिंदू जातियों में इसका स्थान दलित जाति का था। महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या में 10% महार लोक है। सभी महार आज लगभग बौद्ध बन चूके है। महार महाराष्ट्र की अनुसूचित जाति का कुल 80% हिस्सा है। महाराष्ट्र में बौद्ध एवं महार जनसंख्या 16% है। श्री आर.

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महाजन

महाजन भारत के प्राचीन वर्ग/वर्ण विभाजन के आधार पर 'वैश्य'। वाणिज्य या व्यवसाय की आय से जीविकोपार्जन करने वाली भारतीय जाति है। .

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माहेश्वरी

माहेश्वरी (English: Maheshwari) धर्म के अनुयायियों को माहेश्वरी कहते हैं। इसे कभी-कभी मारवाड़ी या राजस्थानी भी लिखा जाता है। मान्यता के अनुसार माहेश्वरीयों की उत्पत्ति (वंश) भगवान महेश के कृपा-आशीर्वाद से ही हुवा है इसलिए 'श्री महेश परिवार' (भगवान महेशजी, माता पार्वती एवं गणेशजी) को माहेश्वरीयों के (माहेश्वरी वंश के) कुलदेवता / कुलदैवत माना जाता है। माहेश्वरीयों के धार्मिक स्थान को मंदिर (महेश मंदिर) कहते हैं। भारत की आजादी की लड़ाई में और भारत की आर्थिक प्रगति में माहेश्वरीयों का बहुत बड़ा योगदान है। जन्म-मरण विहीन एक ईश्वर (महेश) में आस्था और मानव मात्र के कल्याण की कामना माहेश्वरी धर्म के प्रमुख सिद्धान्त हैं। माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है। शरीर को स्वस्थ-निरोगी रखना, कर्म करना (मेहनत और ईमानदारी से काम करना), बांट कर खाना और प्रभु की भक्ति (नाम जाप एवं योग साधना) करना इसके आधार हैं। माहेश्वरी अपने धर्माचरण का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते है तथा वह जिस स्थान / देश / प्रदेश में रहते है वहां की स्थानिक संस्कृति का पूरा आदर-सम्मान करते है, इस बात का ध्यान रखते है; यह माहेश्वरी समाज की विशेष बात है। आज दुनियाभर के कई देशों में और तकरीबन भारत के हर राज्य, हर शहर में माहेश्वरीज बसे हुए है और अपने अच्छे व्यवहार के लिए पहचाने जाते है। मधुबनी जिला,बिहार राज्य से तीन किलोमीटर उत्तर में ग्राम अहमादा,पंचायत रघुनी देहट में मैथिल ब्राह्मण परिवार जिनका गोत्र काश्यप है भी माँ माहेश्वरी को अपना कुलदेवी मानते हुए वर्षों से नियमित पुजा अर्चना करते आ रहे हैं .

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मांझी

मांझी, भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं। इस जाति के लोग भारत के मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा आदि जगहों के निवासी हैं। .

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मिश्र

मिश्र ब्राह्मणों में आस्पद या उपनाम है। सब गुणों और कर्मों में निपुण तथा सबमें मिले रहने के कारण इस उप नाम को अंगीकृत किया गया। .

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मोमीन अंसारी

मोमीन अंसारी या अंसारी; Momin Ansari (Urdu: مومن أنصاري) or Ansari, भारत की एक मुस्लिम प्रमुख जाति है भारत के अलावा पाकिस्तान सिंध नेपाल में भी निवास करती है लेकिन भारत के लगभग सभी भागो में पाई जाती है उत्तर प्रदेश विहार झारखंण्ड आदि प्रदेशो में मूख्य रूप से निवास करती है। .

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मीणा

मीणा अथवा मीना मुख्यतया भारत के राजस्थान व मध्य प्रदेशराज्यों में निवास करने वाली एक जनजाति है। इन्हे वैदिक युग के मत्स्य गणराज्य के मत्स्य जन-जाति का वंशज कहा जाता है, जो कि छठी शताब्दी बी॰सी॰ में पल्लवित हुये। मीणा भारत कि अनुसूचित जन जाति वर्ग से संबन्धित है व राजस्थान राज्य में वे सभी हिन्दू है, परंतु मध्य प्रदेश में मीणा (क्रम -21) विदिशा जिले कि सिरोंज तहसील में अनुसूचित जन जाति में सम्मिलित है जबकि मध्य प्रदेश के अन्य 44 जिलों में वे अन्य पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आते हैं। वर्तमान में भारत कि केंद्र सरकार के समक्ष यह प्रस्ताव रखा गया है कि मध्य प्रदेश की समूची मीणा जाति को भारत की अनुसूचित जन जाति के रूप में मान्यता दी जाए।। पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ला तृतीया को कृतमाला नदी के जल से मत्स्य भगवान प्रकट हुए थे। इस दिन को मीणा समाज में जहाँ एक ओर मत्स्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण राजस्थान में गणगौर का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। .

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यादव

यादव (अर्थ- महाराज यदु के वंशज)) प्राचीन भारत के वह लोग जो पौराणिक नरेश यदु के वंशज होने का दावा करते रहे हैं। यादव वंश प्रमुख रूप से आभीर (वर्तमान अहीर), अंधक, व्रष्णि तथा सत्वत नामक समुदायों से मिलकर बना था, जो कि भगवान कृष्ण के उपासक थे। यह लोग प्राचीन भारतीय साहित्य मे यदुवंश के प्रमुख अंगों के रूप मे वर्णित है।Thapar, Romila (1978, reprint 1996). Ancient Indian Social History: Some Interpretations, नई दिल्ली: Orient Longman, ISBN 978-81-250-0808-8, p.223 प्राचीन, मध्यकालीन व आधुनिक भारत की कई जातियाँ तथा राज वंश स्वयं को यदु का वंशज बताते है और यादव नाम से जाने जाते है। .

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राणा

राणा एक ऐतिहासिक शीर्षक है जिसका चलन प्राचीन समय में था। पुराने समय में ज्यादातर मेवाड़ के शासक इस शीर्षक को अपने नाम के आगे लगाते हैं। सबसे पहले राणा राणा हम्मीर सिंह थे जिन्होंने इस ऐतिहासिक शीर्षक को अपने नाम के आगे रखा था। जबकि रानी शीर्षक का प्रयोग राणा की पत्नियों के लिए किया जाता था। .

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राय

१. एक भारतीय उपनाम।- यह पूर्वी उत्तर प्रदेश की भूमिहार जाति के लोगो का प्रमुख उप नाम है। इस उपनाम को और भी बहुत सी जातिया प्रयुक्त करती है। उदाहरण: सत्यजीत राय, राजा राम मोहन राय इत्यादि। २. मत | .

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राजपूत

राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल माना जाता है।जो कि राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी। राजपूत काल में प्राचीन वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गयी थी तथा वर्ण के स्थान पर कई जातियाँ व उप जातियाँ बन गईं थीं। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। .

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रेड्डी

रेड्डी, भारत की एक प्रमुख जाति हैं। .

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शर्मा

शर्मा (अथवा सर्मा) एक हिंदू ब्राह्मण नाम होता है।.

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शाह

भारत के मुग़ल शहनशाह शाह जहान ईरान के अंतिम शहनशाह मुहम्मद रेज़ा पहलवी (१९४१-१९७९) शाह (फ़ारसी:, अंग्रेज़ी: shah) ईरान, मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप में 'राजा' के लिए प्रयोग होने वाला एक और शब्द है। यह फ़ारसी भाषा से लिया गया है और पुरानी फ़ारसी में इसका रूप 'ख़्शायथ़ीय​' (xšathiya) था। .

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शेखावत

शेखावत (क्षत्रिय) राजपूत वंश की एक शाखा है देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर,शाहपुरा, खंडेला,सीकर, खेतडी,बिसाऊ,गढ़ गंगियासर,सुरजगढ़,नवलगढ़, खोटिया मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता,खुड,खाचरियाबास, दूंद्लोद, अलसीसर,मलसिसर,रानोली आदि प्रभाव शाली ठिकाने शेखावतों के अधिकार में थे जो शेखावाटी नाम से प्रशिद्ध है। .

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सचिन तेंदुलकर

सचिन रमेश तेंदुलकर (अंग्रेजी उच्चारण:, जन्म: २४ अप्रैल १९७३) क्रिकेट के इतिहास में विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ौं में गिने जाते हैं। भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले वह सर्वप्रथम खिलाड़ी और सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित एकमात्र क्रिकेट खिलाड़ी हैं। सन् २००८ में वे पद्म विभूषण से भी पुरस्कृत किये जा चुके है। सन् १९८९ में अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के पश्चात् वह बल्लेबाजी में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। उन्होंने टेस्ट व एक दिवसीय क्रिकेट, दोनों में सर्वाधिक शतक अर्जित किये हैं। वे टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज़ हैं। इसके साथ ही टेस्ट क्रिकेट में १४००० से अधिक रन बनाने वाले वह विश्व के एकमात्र खिलाड़ी हैं। एकदिवसीय मैचों में भी उन्हें कुल सर्वाधिक रन बनाने का कीर्तिमान प्राप्त है।    उन्होंने अपना पहला प्रथम श्रेणी क्रिकेट मैच मुम्बई के लिये १४ वर्ष की उम्र में खेला था। उनके अन्तर्राष्ट्रीय खेल जीवन की शुरुआत १९८९ में पाकिस्तान के खिलाफ कराची से हुई। सचिन क्रिकेट जगत के सर्वाधिक प्रायोजित खिलाड़ी हैं और विश्व भर में उनके अनेक प्रशंसक हैं। उनके प्रशंसक उन्हें प्यार से भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं जिनमें सबसे प्रचलित लिटिल मास्टर व मास्टर ब्लास्टर है। क्रिकेट के अलावा वह अपने ही नाम के एक सफल रेस्टोरेंट के मालिक भी हैं। तत्काल में वह राज्य सभा के सदस्य हैं, सन् २०१२ में उन्हें राज्य सभा के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर पर फिल्म ‘सचिन: ए बिलियन ड्रीम्स’ बनी। इस फ़िल्म का टीज़र भी बहुत रोमांचक हैं। टीजर में एक ऐसे इंसान को उसी की कहानी सुनाते हुए देखेंगे जो एक शरारती बच्चे से एक हीरो बनकर उभरता है। ख़ुद सचिन तेंदुलकर का भी ये मानना है कि क्रिकेट खेलने से अधिक चुनौतीपूर्ण अभिनय करना है।सचिन – ए बिलियन ड्रीम्स’ का निर्माण रवि भगचंदका ने किया है और इसका निर्देशन जेम्स अर्सकिन ने। .

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सहाय

एक भारतीय उपनाम। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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साहनी

साहनी खत्री गोत्र है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:-.

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सिन्हा

सिन्हा एक उपनाम है जो साधारणतः भारत और श्री लंका में उपयोग किया जाता है। उत्तर भारत में कायस्थ अक्सर सिन्हा उपनाम का उपयोग करते हैं। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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सिसोदिया

सिसोदिया जो कि एक बहुविकल्पीय शीर्षक है के कई अर्थ हो सकते हैं। कृप्या निम्नलिखित में से चुने।.

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सिंह

सिंह के कई अर्थ हो सकते हैं:-.

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सिंघम

सिंघम 2011 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसका निर्देशन रोहित शेट्टी ने किया है व अजय देवगन, काजल अग्रवाल और प्रकाश राज मुख्य भूमिकाओं में है। यह २०१० में बनी तमिल फ़िल्म सिंगम का हिन्दी रूपांतरण है जिसमें सूर्य ने मुख्य भूमिका अदा की थी। फ़िल्म का निर्माण रिलायंस इंटरटेनमेंट द्वारा किया गया है जिन्होंने तमिल फ़िल्म का सह-निर्माण किया था। फ़िल्म को २२ जुलाई २०११ को रिलीज़ किया गया था और यह सर्वाधिक कमाई वाली फ़िल्मों में से एक बन गई। .

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सिंघल

सिंघल एक अग्रवाल गोत्र है। .

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सक्सेना

एक भारतीय उपनाम। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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सुतार

सुतार नेपाल के सेती अंचल के अछाम जिला के एक गाँव है। .

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सुथार

सुथार (संस्कृत: सूत्रधार) भारत में एक जाति है। मूलतः इस जाति के लोगों का काम है लकड़ी की अन्य वस्तुएँ बनाना है। इस जाति के लोग विश्वकर्मा को अपने ईष्ट देवता मानते हैं। सुथार शब्द का प्रयोग ज्यादातर राजस्थान में ही किया जाता है। सुथार जाति का पारंपरिक काम बढ़ई होता है। बढ़ई शब्द का उल्लेख प्राचीन कालों में भी मिलता है। इनकी आबादी भारत में 7.3 करोड़ के आस पास पाई जाती है और ये भारत के सारे राज्यो में पाई जाती है। .

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स्वामी

स्वामी किसी संन्यासी या योगी को कहते हैं जो किसी धार्मिक/पंथिक समुदाय में दीक्षित हो गये हों। सबसे पहले 'स्वामी' शब्द का उपयोग उनके लिये हुआ था जो आदि शंकराचार्य द्वारा आरम्भ किये गये अद्वैत वेदान्ती सम्प्रदाय में दीक्षा लेते थे। श्रेणी:हिन्दू धर्म.

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सूर्यवंश

सूर्यवंश,अर्कवंश पुराणों के अनुसार एक प्राचीन भारतीय वंश है जिसकी उत्पत्ति सूर्य देव से मानी गयी है। ये ब्राह्मण एवं राजपूत होते हें। इसी वंश परम्परा में से जैन एवं बुद्ध (बौद्ध) पंथ का प्रर्दुभाव हुआ है। .

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सेन

एक भारतीय उपनाम। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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जाट

जाट उत्तरी भारत और पाकिस्तान की एक जाति है। वर्ष 2016 तक, जाट, भारत की कुल जनसंख्या का 0.1 प्रतिशत हैं । एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, .

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जादौन

जादौन या जादों राजपूत जाति का एक गोत्र है।The Jadaun (also spelt as Jadon) are a clan (gotra) of Chandravanshi (Yaduvanshi) Rajputs found in North India and Pakistan.Jadauns are the descendants of King Yayati's son Yadu.

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जायसवाल

जायसवाल या जयस्वाल एक भौगोलिक शीर्षनाम है जो विभिन्न वर्गो के लोगो द्वारा उपयोग किया जाता है जैसे की जायसवाल ब्राह्मण, जायसवाल जैन, जायसवाल महाजन, जायसवाल राजपूत एवं जायसवाल कलवार। श्रेणी:भारतीय उपनाम.

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जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

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वर्मा

वर्मा (अंग्रेजी: Varma, (अन्य नाम) वर्मन या बर्मन) हिन्दू धर्म का एक जाति सूचक उपनाम है जिसे वर्तमान भारतवर्ष एवं दक्षिण पूर्व एशिया में निवास करने वाले सभी हिन्दू अपने नाम के आगे गर्व से लिखते हैं। मुख्यत: क्षत्रिय वर्ण से उत्पन्न जाति के लोग ही वर्मा लिखते हैं परन्तु आधुनिकता के इस दौर में अन्य जातियों के लोग भी इस उपनाम को अपने नाम के आगे लगाने लगे हैं। .

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विश्वकर्मा

300px बलुआ पत्थर से निर्मित एक आर्किटेक्चरल पैनेल में भगवान विश्वकर्मा (१०वीं शताब्दी); बीच में गरुड़ पर विराजमान विष्णु हैं, बाएँ ब्रह्मा हैं, तथा दायें तरफ भगवान विश्वकर्मा हैं। इस संग्रहालय में उनका नाम 'विश्नकुम' लिखा है। हिन्दू धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। मान्यता है कि सोने की लंका का निर्माण उन्होंने ही किया था। .

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खन्ना

खन्ना खत्री का गोत्र/उपजाति है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:-.

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खान

खान (माइन) से निम्नलिखित का बोध हो सकता है-.

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गर्ग

गर्ग नाम के अनेक आचार्य हो गए हैं। आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र आदि विभिन्न विद्याओं के आचार्य गर्ग एक ही व्यक्ति हैं, ऐसे नहीं कहा जा सकता। इनके काल भी भिन्न-भिन्न हैं। आयुर्वेदशास्त्रज्ञ गर्ग के विषय में आयुर्वेद का इतिहास द्रष्टव्य है। वास्तुशास्त्रविद् गर्ग भी प्रसिद्ध हैं। इनका काल ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी से ईसा की प्रथम शताब्दी के बीच है (देखिए स्टडी ऑन वास्तुविद्या, पृ. 102)। ज्योतिर्विद्याविद् गर्ग पुराणों में समृत हैं। मत्स्यपुराण 229-238; महाभारत, गदापर्व 9। 14; भगवत, 10। 8 अ. में ज्योतिषी गर्ग का निर्देश हैं। निबंध ग्रंथों में ज्योतिषी गर्ग का बहुधा उल्लेख है। एक गार्गी संहिता का नाम भी मिलता है (काणे कृत हिस्ट्री ऑव द धर्मशास्त्र भाग 1, पृ. 119)। कर्न कृत बृहतसंहिता की भूमिका में इस गर्ग के काल आदि के विषय में विचार किया गया है। एक गर्ग कृषिशास्त्रविद् भी थे। कृषिपुराण ग्रंथ में इनका नाम मिलता है। गर्ग के वचन और मन बृहत्‌संहिता (सटीक) में वेदांग ज्योतिष के सोभाकार भाष्य में, अद्भुतसागर में तथा निबंध ग्रंथ और ज्योतिष विद्या के ग्रंथों में बहुलतया मिलते हैं। शंकर बालकृष्ण दीक्षित कृत भारतीय ज्योतिष ग्रंथ में भी ज्योतिषी गर्ग संबंधी विशद् विवेचन है। स्मृति शास्त्र में भी गर्ग संबंधी विशद् विवेचन है (देखिए हिस्ट्री ऑव द धर्मशास्त्र, भाग 1 पृष्ठ 119)। श्रेणी:ऋषि मुनि.

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गिरी

गिरी ब्राह्मणों की एक प्रमुख उपजाति हैं। इस जाति के लोग ज्यादातर उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार में पाए जाते हैं। .

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गिल गोत्र

गिल पंजाब के जाट लोगों की एक गोत्र है। .

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गुप्ता

गुप्ता भारतीय मूल का एक उपनाम है। कुछ विद्वानों के अनुसार, गुप्ता शब्द की व्युत्पति संस्कृत शब्द गोप्त्री से हुआ जिसका अर्थ सैन्य गर्वनर होता है। प्रमुख इतिहासकार आर सी मजुमदार के अनुसार उपनाम गुप्ता भिन्न समयों पर उत्तरी और पूर्वी भारत के विभिन्न समुदायों द्वारा अपनाया गया। .

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गुर्जर

सम्राट मिहिर भोज की मूर्ति:भारत उपवन, अक्षरधाम मन्दिर, नई दिल्ली गुर्जर समाज, प्राचीन एवं प्रतिष्ठित समाज में से एक है। यह समुदाय गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर।; आधुनिक स्थिति प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है| गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो में देखे जा सकते हैं। मुस्लिम तथा सिख गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। .

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गौड़

गौड़ शब्द से कई चीजों का बोध होता है.

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गौतम

संस्कृत साहित्य में गौतम का नाम अनेक विद्याओं से संबंधित है। वास्तव में गौतम ऋषि के गोत्र में उत्पन्न किसी व्यक्ति को 'गौतम' कहा जा सकता है अत: यह व्यक्ति का नाम न होकर गोत्रनाम है। वेदों में गौतम मंत्रद्रष्टा ऋषि माने गए हैं। एक मेधातिथि गौतम, धर्मशास्त्र के आचार्य हो गए हैं। बुद्ध को भी 'गौतम' अथवा (पाली में 'गोतम') कहा गया है। न्यायसूत्रों के रचयिता भी गौतम माने जाते हैं। उपनिषदों में भी गौतम नामधारी अनेक व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है। पुराणों, महाभारत तथा रामायण में भी गौतम की चर्चा है। यह कहना कठिन है कि ये सभी गौतम एक ही है। रामायण में ऋषि गौतम तथा उनकी पत्नी अहल्या की कथा मिलती है। अहल्या के शाप का उद्धार राम ने मिथिला के रास्ते में किया था। अत: गौतम का निवास मिथिला में ही होना चाहिए और यह बात मिथिला में 'गौतमस्थान' तथा 'अहल्यास्थान' नाम से प्रसिद्ध स्थानों से भी पुष्ट होती है। चूँकि न्यायशास्त्र के लिये मिथिला विख्यात रही है अत: गौतम (नैयायिक) का मैथिल होना इसका मुख्य कारण हो सकता है। .

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गोस्वामी

गोस्वामी एक भारतीय उपनाम हैं। आदि गुरु शंकराचार्य ने ब्राह्मण समाज के लोगों में से धर्म की हानि रोकने के लिये एक नये सम्प्रदाय की शुरुआत की जिन्हे गोस्वामी कहा गया। कुल दस भागों में इन्हे विभाजित किया गया जेसे गिरि, पुरी, भारती, पर्वत,सरस्वती,सागर वन अरण्य तीर्थ....

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आर्य

आर्य समस्त हिन्दुओं तथा उनके मनुकुलीय पूर्वजों का वैदिक सम्बोधन है। इसका सरलार्थ है श्रेष्ठ अथवा कुलीन। .

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कपूर (उपनाम)

कपूर पंजाबी खत्री उपजाति या गोत्र है। इसका प्रयोग उपनाम के रूप में होता है। इस उपनाम वाले उल्लेखनीय लोगों की सूची जिनका इस जाति से सम्बद्ध हो भी सकता और नहीं भी, निम्नलिखित है:- .

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कश्यप

आंध्र प्रदेश में कश्यप प्रतिमा वामन अवतार, ऋषि कश्यप एवं अदिति के पुत्र, महाराज बलि के दरबार में। कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे। इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिन्दू मान्यता अनुसार इनके वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। .

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कहार

कहार (अंग्रेजी: Kahar) भारतवर्ष में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक जाति है। यह जाति यहाँ हिन्दुओं के अतिरिक्त मुस्लिम व सिक्ख सम्प्रदाय में भी होती है। हिन्दू कहार जाति का इतिहास बहुत पुराना है जबकि मुस्लिम सिक्ख कहार बाद में बने। इस समुदाय के लोग बिहार, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही पाये जाते हैं! कहार स्वयं को कश्यप नाम के एक अति प्राचीन हिन्दू ऋषि के गोत्र से उत्पन्न हुआ बतलाते हैं। इस कारण वे अपने नाम के आगे जातिसूचक शब्द कश्यप लगाने में गर्व अनुभव करते हैं।बैसे महाभारत के भिष्म पितामह की दुसरी माता सत्यवती एक धीवर(निषाद)पुत्री थी,मगध साम्राट बहुबली जरासंध महराज भी चंद्रवंशी क्षत्रिय ही थे!बिहार,झारखंड,पं.बंगाल,आसाम में इस समाज को चंद्रवंशी क्षत्रिय समाज कहते है!रवानी या रमानी चंद्रवंसी समाज या कहार जाति की उपजाति या शाखा है। यह भारत के विभिन्न प्रांतों में विभिन्न नामों से पायी जाती है। श्रेणी:जाति"कहर" शब्द को खंडित कर कहार शब्द बना है।,कहर का एक इतिहास रहा है।महाभारत काल मे जब भारत का क्षेत्र फल अखण्ड आर्यबर्त में हुआ करता था,उस समय डाकूओ का प्रचलन जोरो पर था,आज भी हमलोग देख सकते है,पर नाम बदलकर डाकू के जगह फ्रोड, जालसाज, घोटाले,छिनतई ने ले रखी है।,खैर उस समय डाकुओ द्वरा दुल्हन की डोली के साथ जेवरात लूटना एक आम बात थी,लोग भयभीत थे,अइसे में कहर टीम का गठन किया गया था,डोली लुटेरों के रक्षा हेतुं, दुल्हन की डोली के साथ कहर टीम जाती थी और उनकी रक्षा करते हुवे मंजिल तक पहुँचते थे, आप सब ध्यान दे तो शादी की कार्ड पर डोली के आगे और पीछे तलवार लिए कुछ लोग की चित्रांकन देखने को मिलेगा, समय बीतता गया और शब्दों में परिवर्तन होता गया,कहर से कहार बन गया, कहर टीम को जब डोली के साथ जाना ही था,रोजगार और आर्थिक जरुरतो के पूर्ण के लिए कुछ लोग डोली भी खुद ही उठाने का निर्णय लिए थे यही इतिहास रहा है। कहार को संस्कृत में 'स्कंधहार ' कहते हैं....जिसका तात्पर्य होता है,जो अपने कंधे पर भार ढोता है...अब आप 'डोली' (पालकी) उठाना भी कह सकते हो...जोकि ज्यातर हमारे पुर्वज राजघराने की बहु-बेटी को डोली पे बिठाकर एक स्थान से दुसरे स्थान सुरक्षा के साथ वीहर-जंगलो व डाकुओ व राजाघरानें के दुश्मनों से बचाकर ले जाते थे...कर्म संबोधन कहार जाति कमजोर नहीं है...ये लोग अपनी बाहु-बल पे नाज करता है...और खुद को बिहार,झारखंड,प.बंगाल,आसाम में चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाना पसंद करते है...ये समाज जरासंध के वंसज़ है...

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कुमार

कुमार एक हिन्दू भारतीय उपनाम है।इसका प्रयोग किसी न किसी रूप में भारत के सभी हिस्सों में होता है। यह एक मध्यनाम का काम भी करता है और भारत के अलावा नेपाल और श्रीलंका में भी प्रयोग में लाया जाता है। यह उत्तर भारत में सामान्य और हरियाणा, दिल्ली, केरल, तमिलनाडू और पांडिचेरी सबसे सामान्य परिवार का नाम है।http://forebears.co.uk/surnames/kumar Kumar Surname at Forebears यह कोई गोत्र नहीं है इसे कोई भी प्राणी अपने नाम के आगे या पीछे लगा सकता है। .

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कुलकर्णी

कुलकर्णी विशेष रूप से महाराष्ट्र में कुलनाम है। यह एक प्रकार की उपाधि हुआ करती थी जिसे कई जातियों के लोग प्रयोग करते हैं:-.

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अग्रहरि

अग्रहरि या अग्रहरी एक भारतीय उपनाम हैं। यह उपनाम वैश्य समुदाय द्वारा इस्तेमाल किया जाता हैं जो अपने आप को पौराणिक सूर्यवंशी सम्राट महाराजा अग्रसेन (४२५० ई.पू. से ६३७ ईसवी) के वंशज मानते हैं। .

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अग्रवाल

प्राचीन भारतीय राजवंश | अग्रेयवंशी क्षत्रिय ही वर्तमान में अग्रवाल नाम से जाने जाते हैं। इनकी एक शाखा राजवंशी भी कहलाती है। युनानी बादशाह सिकंदर के आक्रमण के फलस्वरूप अग्रेयगणराज्य का पतन हो गया और अधिकांश अग्रेयवीर वीरगति को प्राप्त हो गये। बचे हुवे अग्रेयवंशी अग्रोहा से निष्क्रमण कर सुदूर भारत में फैल गये और आजीविका के लिये तलवार छोड़ तराजू पकड़ ली। आज इस समुदाय के बहुसंख्य लोग वाणिज्य व्यवसाय से जुड़े हुवे हैं और इनकी गणना विश्व के सफलतम उद्यमी समुदायों में होती है। पिछले दो हजार वर्षों से इनकी आजीविका का आधार वाणिज्य होने से इनकी गणना क्षत्रिय वर्ण होने के बावजूद वैश्य वर्ग में होती है और स्वयं अग्रवाल समाज के लोग अपने आप को वैश्य समुदाय का एक अभिन्न अंग मानते हैं। इनके १८ गोत्र हैं। संस्थापक: महाराजा अग्रसेन वंश: सुर्यवंश एवं नागवंश (इस वंश की अठारह शाखाओं में से १० सुर्यवंश की एवं ८ नागवंश की हैं) गद्दी: अग्रोहा, प्रवर: पंचप्रवर, कुलदेवी: महालक्षमी, गोत्र: १८:- गर्ग, गोयन,गोयल, कंसल, बंसल, सिंहल, मित्तल, जिंदल, बिंदल, नागल, कुच्छल, भंदल, धारण, तायल, तिंगल, ऐरण, मधुकुल, मंगल| .

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उपाध्याय

उपाध्याय (संस्कृत - उप + अधि + इण घं‌) इस शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है- 'उपेत्य अधीयते अस्मात्‌' जिसके पास जाकर अध्ययन किया जाए, वह उपाध्याय होता है। उपाध्याय ब्राह्मणों के एक वर्ग की संज्ञा भी है। मनुस्मृति के अनुसार वेद के एक भाग एवं वेदांग को वृत्ति लेकर पढ़ानेवाले शिक्षक को उपाध्याय कहते थे। 'एकदेशं तु वेदस्य वेदांगान्यपि वा पुन:। योऽध्यापयति वृत्तयर्थ उपाध्याय: स उच्चते (मनु 2:141)। यह आचार्य की अधीनता में शिक्षण कार्य किया करता था। संभवत: एक आचार्य के अधीन दस उपाध्याय शिक्षण कार्य किया करते थे ('उपाध्यायान्‌ दशाचार्य: मनु 2,146)। याज्ञवल्क्य (1,35), वशिष्ठ (3,21) और विष्णु (28,2) के अनुसार भी वृत्ति लेकर पढ़ाना ब्राह्मणों के आदर्श के अनुरूप नहीं समझा जाता था, इसलिए संभवत: उपध्याय के संबंध में नीतिकार ने कहा है - 'उपाध्याश्च वैद्यश्च ऋतुकाले वरस्त्रिय:। सूतिका दूतिका नौका कार्यान्ते ते च शष्पवत्‌।' बौद्ध साहित्य में भी उपाध्याय (उपज्झाय) के संबंध में अनेक निर्देश उपलब्ध हैं। महावग्ग (1-31) के अनुसार उपसंपन्न भिक्षु को बौद्ध ग्रंथों की शिक्षा उपाध्याय द्वारा दी जाती थी। पढ़ने का प्रार्थनापत्र भी उसी की सेवा में प्रस्तुत किया जाता था। (महावग्ग 1.25.7)। इत्सिंग के विवरण से ज्ञात होता है कि जब उपासक प्र्व्राज्या लेता था, जब उपाध्याय के सम्मुख ही उसे श्रम की दीक्षा दी जाती थी। दीक्षाग्रहण के पश्चात्‌ ही उसे 'त्रिचीवर' भिक्षापात्र और निशीदान (जलपात्र) प्रदान करता था। उपसंपन्न भिक्षु को 'विनय' की शिक्षा उपाध्याय द्वारा ही दी जाती थी। केवल पुरुष ही नहीं, स्त्रियाँ भी उपाध्याय होती थीं। पतंजलि ने उपाध्याया की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है-'उपेत्याधीयते अस्या: सा उपाध्याया।' उपाध्याय संस्था का विकास संभवत: इस प्रकार हुआ। धार्मिक संस्कार करने तथा धर्मतत्व का उपदेश देने का कार्य पहले कुल का मुख्य पुरुष वा कुलवृद्ध करता था। यही उपाध्याय होता था। प्राय: सब जातियों में यही पाया जाता है। भारतीय आर्यों में कुलपति ही उपाध्याय होता था। यहूदियों में 'अब्राहम आइजे' आदि कुलपति उपाध्याय का काम करते थे। अरब लोगों में शेख यह काम करता था। आज भी वह उस समाज का नेता तथा धार्मिक कृत्यों और मामलों में प्रमुख होता है। रोमन कैथोलिक और ग्रीक संप्रदाय में उपाध्याय का अधिकार मानने की प्रथा है। श्रेणी:शिक्षा श्रेणी:भारतीय संस्कृति श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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