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उदयपुर

सूची उदयपुर

उदयपुर राजस्थान का एक नगर एवं पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास, संस्कृति एवम् अपने अाकर्षक स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। इसे सन् 1559 में महाराणा उदय सिंह ने स्थापित किया था। अपनी झीलों के कारण यह शहर 'झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर शहर सिसोदिया राजवंश द्वारा ‌शासित मेवाड़ की राजधानी रहा है। .

38 संबंधों: चित्तौड़गढ़, झील, दैनिक भास्कर, नाथद्वारा, नागदा, पद्मिनी, पिछोला झील, फतेह सागर, बप्पा रावल, बाबर, महापौर, महाराणा प्रताप, महाराणा प्रताप विमानक्षेत्र, मानसून भवन, उदयपुर, मेवाड़, मोती मगरी, राणा सांगा, राजधानी, राजस्थान, राजस्थान पत्रिका, शिल्पग्राम, उदयपुर, सहेलियों की बाड़ी, सांसद, सिटी पैलेस, उदयपुर, सिसोदिया (राजपूत), हल्दीघाटी, जयसमंद, जग निवास द्वीप, उदयपुर, जग मन्दिर, उदयपुर, जौहर, कांकरोली, कुम्भलगढ़ दुर्ग, अलाउद्दीन खिलजी, अकबर, उदय सिंह, उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन, उदयपुर जिला, ऋषभदेव तहसील

चित्तौड़गढ़

पद्मिनी महल का तैलचित्र चित्तौड़गढ़ राजस्थान का एक शहर है। यह शूरवीरों का शहर है जो पहाड़ी पर बने दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ की प्राचीनता का पता लगाना कठिन कार्य है, किन्तु माना जाता है कि महाभारत काल में महाबली भीम ने अमरत्व के रहस्यों को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किया और एक पंडित को अपना गुरु बनाया, किन्तु समस्त प्रक्रिया को पूरी करने से पहले अधीर होकर वे अपना लक्ष्य नहीं पा सके और प्रचण्ड गुस्से में आकर उसने अपना पाँव जोर से जमीन पर मारा, जिससे वहाँ पानी का स्रोत फूट पड़ा, पानी के इस कुण्ड को भीम-ताल कहा जाता है; बाद में यह स्थान मौर्य अथवा मूरी राजपूतों के अधीन आ गया, इसमें भिन्न-भिन्न राय हैं कि यह मेवाड़ शासकों के अधीन कब आया, किन्तु राजधानी को उदयपुर ले जाने से पहले 1568 तक चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी रहा। यहाँ पर रोड वंशी राजपूतों ने बहुत समय राज किया। यह माना जाता है गुलिया वंशी बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी के मध्य में अंतिम सोलंकी राजकुमारी से विवाह करने पर चित्तौढ़ को दहेज के एक भाग के रूप में प्राप्त किया था, बाद में उसके वंशजों ने मेवाड़ पर शासन किया जो 16वीं शताब्दी तक गुजरात से अजमेर तक फैल चुका था। अजमेर से खण्डवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौरगढ़ जंक्शन से करीब २ मील उत्तर-पूर्व की ओर एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से १३३८ फीट ऊँची भूमि पर स्थित ५०० फीट ऊँची एक विशाल (ह्वेल मछ्ली) आकार में, पहाड़ी पर निर्मित्त यह दुर्ग लगभग ३ मील लम्बा और आधे मील तक चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब ८ मील का है तथा यह कुल ६०९ एकड़ भूमि पर बसा है। चित्तौड़गढ़, वह वीरभूमि है जिसने समूचे भारत के सम्मुख शौर्य, देशभक्ति एवम् बलिदान का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ के असंख्य राजपूत वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारारुपी तीर्थ में स्नान किया। वहीं राजपूत वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किये। इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर रह गयी है। यहाँ का कण-कण हममें देशप्रेम की लहर पैदा करता है। यहाँ की हर एक इमारतें हमें एकता का संकेत देती हैं। .

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झील

एक अनूप झील बैकाल झील झील जल का वह स्थिर भाग है जो चारो तरफ से स्थलखंडों से घिरा होता है। झील की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व है। सामान्य रूप से झील भूतल के वे विस्तृत गड्ढे हैं जिनमें जल भरा होता है। झीलों का जल प्रायः स्थिर होता है। झीलों की एक महत्वपूर्ण विशेषता उनका खारापन होता है लेकिन अनेक झीलें मीठे पानी की भी होती हैं। झीलें भूपटल के किसी भी भाग पर हो सकती हैं। ये उच्च पर्वतों पर मिलती हैं, पठारों और मैदानों पर भी मिलती हैं तथा स्थल पर सागर तल से नीचे भी पाई जाती हैं। किसी अंतर्देशीय गर्त में पाई जानेवाली ऐसी प्रशांत जलराशि को झील कहते हैं जिसका समुद्र से किसी प्रकार का संबंध नहीं रहता। कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नदियों के चौड़े और विस्तृत भाग के लिए तथा उन समुद्र तटीय जलराशियों के लिए भी किया जाता है, जिनका समुद्र से अप्रत्यक्ष संबंध रहता है। इनके विस्तार में भिन्नता पाई जाती है; छोटे छोटे तालाबों और सरोवर से लेकर मीठे पानीवाली विशाल सुपीरियर झील और लवणजलीय कैस्पियन सागर तक के भी झील के ही संज्ञा दी गई है। अधिकांशत: झीलें समुद्र की सतह से ऊपर पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती हैं, जिनमें मृत सागर, (डेड सी) जो समुद्र की सतह से नीचे स्थित है, अपवाद है। मैदानी भागों में सामान्यत: झीलें उन नदियों के समीप पाई जाती हैं जिनकी ढाल कम हो गई हो। झीलें मीठे पानीवाली तथा खारे पानीवाली, दोनों होती हैं। झीलों में पाया जानेवाला जल मुख्यत: वर्ष से, हिम के पिघलने से अथवा झरनों तथा नदियों से प्राप्त होता है। झीले बनती हैं, विकसित होती हैं, धीरे-धीरे तलछट से भरकर दलदल में बदल जाती हैं तथा उत्थान होंने पर समीपी स्थल के बराबर हो जाती हैं। ऐसी आशंका है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की बृहत झीलें ४५,००० वर्षों में समाप्त हो जाएंगी। भू-तल पर अधिकांश झीलें उत्तरी गोलार्ध में स्थित हैं। फिनलैंड में तो इतनी अधिक झीलें हैं कि इसे झीलों का देश ही कहा जाता है। यहाँ पर १,८७,८८८ झीलें हैं जिसमें से ६०,००० झीलें बेहद बड़ी हैं। पृथ्वी पर अनेक झीलें कृत्रिम हैं जिन्हें मानव ने विद्युत उत्पादन के लिए, कृषि-कार्यों के लिए या अपने आमोद-प्रमोद के लिए बनाया है। झीलें उपयोगी भी होती हैं। स्थानीय जलवायु को वे सुहावना बना देती हैं। ये विपुल जलराशि को रोक लेती हैं, जिससे बाढ़ की संभावना घट जाती है। झीलों से मछलियाँ भी प्राप्त होती हैं। .

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दैनिक भास्कर

दैनिक भास्‍कर भारत का एक प्रमुख हिंदी दैनिक समाचारपत्र है। भारत के 12 राज्‍यों (व संघ-क्षेत्रों) में इसके 37 संस्‍करण प्रकाशित हो रहे हैं। भास्कर समूह के प्रकाशनों में दिव्य भास्कर (गुजराती) और डीएनए (अंग्रेजी) और पत्रिका अहा ज़िंदगी भी शामिल हैं। 2015 में यह देश का सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला अखबार बना। .

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नाथद्वारा

श्रीनाथद्वारा राजस्थान के राजसमन्द जिले मैं स्थित है। श्रीनाथद्वारा पुष्टिमार्गीय वैष्‍णव सम्‍प्रदाय की प्रधान (प्रमुख) पीठ है। यहाँ नंदनंदन आनन्‍दकंद श्रीनाथजी का भव्‍य मन्‍दिर है जो करोडों वैष्‍णवो की आस्‍था का प्रमुख स्‍थल है, प्रतिवर्ष यहाँ देश-विदेश से लाखों वैष्‍णव श्रृद्धालु आते हैं जो यहाँ के प्रमुख उत्‍सवों का आनन्‍द उठा भावविभोर हो जाते हैं। नाथद्वार के निकट मावली रेल जंक्शन स्थित है। नाथद्वार में एक कृषि बाज़ार है तथा यहां राजस्थान विश्वविद्यालय से संबद्ध एक सरकारी महाविद्यालय है। श्रीनाथजी का तकरीबन 337 वर्ष पुराना मन्‍दिर राष्‍ट्रीय राजमार्ग पर स्थित रोडवेज बस स्‍टेण्‍ड से मात्र 1 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जहाँ से मन्‍दिर पहुँचने के लिए निर्धारित मूल्‍य पर (वर्तमान में प्रति व्‍यक्ति 5 रूपये) सार्वजनिक परिवहन ऑटो रिक्‍शा सेवा उपलब्‍ध है। श्रीनाथद्वारा दक्षिणी राजस्‍थान में 24/54 अक्षांश 73/48 रेखांश पर अरावली की सुरम्‍य उपत्‍यकाओं के मध्‍य विश्‍वप्रसिद्ध झीलों की नगरी उदयपुर से उत्तर में 48 किलोमीटर दूर राष्‍ट्रीय राजमार्ग संख्‍या 8 पर स्‍थित है। श्रीनाथद्वारा से उत्तर:- श्रीनाथद्वारा के उत्तर में राजसमन्‍द (17) अजमेर (225) पुष्‍कर (240) जयपुर (385) देहली (625) प्रमुख शहर हैं। दक्षिण:- श्रीनाथद्वारा के दक्षिण में उदयपुर (48) अहमदाबाद (300) बडौदा (450) सूरत (600) मुम्‍बई (800) स्थित हैं। पूर्व:- श्रीनाथद्वारा के पूर्व में मंडियाणा ((रेल्‍वे स्‍टेशन (12)) मावली ((रेल्‍वे स्‍टेशन (28)) चित्तौडगढ (110) कोटा (180) स्थित हैं। पश्चिम:- फालना (180) जोधपुर (225) स्थित हैं। बस सेवा:- श्रीनाथद्वारा के उत्तर, दक्षिण, पूर्व, प‍श्चिम में स्थित सभी प्रमुख शहरों से सीधी बस सेवा उपलबध है। ट्रेन सेवा:- श्रीनाथद्वारा के निकटवर्ती रेल्‍वे स्‍टेशन मावली (28) एवं उदयपुर (48) से देश के प्रमुख शहरों के लिए ट्रेन सेवा उपलब्‍ध है। वायु सेवा:- श्री‍नाथद्वारा के निकटवर्ती हवाई अड्डे डबोक (48) से देश के प्रमुख शहरों के लिए वायुयान सेवा उपलब्‍ध है। .

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नागदा

नागदा मध्य प्रदेश में उज्जैन से लगभग 30 मील उत्तर-पश्चिम में, पश्चिम रेलवे के मुम्बई-दिल्ली मार्ग पर, चम्बल नदी के तट पर स्थित है। यह एकलिंगजी से कुछ पहले स्थित है। नागदा का प्राचीन शहर कभी रावल नागादित्यए की राजधानी थी। वर्तमान में यह एक छोटा सा गांव है। यह गांव 11वीं शताब्दीक में बने 'सास-बहू' मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का मूल नाम 'सहस्त्रहबाहु' था जोकि यह नाम विकृत होकर सास-बहू हो गया है। यह एक छोटा सा मंदिर है। लेकिन मंदिर की वास्तुशैली काफी आकर्षक है। मालवा के परमार नरेशों के अभिलेखों में नागदा का प्राचीन नाम नागह्रद मिलता है। नागदा पर किये गये उत्खनन में प्रारंभिक लौह संस्कृति के प्रमाण मिले हैं। नागदा से दस प्रकार के लोह उपकरण मिले हैं। जिनमें दुधारी, कटार, कुल्हाड़ी का मूँठ, चम्मच, चिमटी, कुल्हाड़ी, छल्ला, बाणाग्र, चाकू और हँसिया उल्लेखनीय हैं। नागदा और एरण के उत्खननों एवं अन्य स्थलों की खुदाई के आधार पर उस पुराने मत को औचित्यपूर्ण नहीं माना गया है, जिनमें इन पुरा स्थलों पर ताम्रपाषाणिक संस्कृति की परिसमाप्ति के तत्काल बाद ऐतिहासिक युग की संस्कृति का प्रारम्भ माना जाता है। अब यह तथ्य संस्थापित हुआ है कि इन पुरा स्थलों पर भी, जहाँ पर संस्कृति के सातत्य की बात कही गयी थी, ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि ताम्रपाषाणिक संस्कृति की परिसमाप्ति और प्रारम्भिक ऐतिहासिक युगीन संस्कृति के बीच में अनेक वर्षों का अंतराल रहा होगा। श्रेणी:मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थल श्रेणी:उज्जैन ज़िले के गाँव.

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पद्मिनी

पद्मावती या पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रत्नसिंह (रतनसेन) की रानी थी। इस राजपूत रानी के नाम का ऐतिहासिक अस्तित्व बहुत संदिग्ध है, और इसका ऐतिहासिक अस्तित्व तो प्रायः इतिहासकारों द्वारा काल्पनिक स्वीकार कर लिया गया है। इस नाम का मुख्य स्रोत मलिक मुहम्मद जायसी कृत 'पद्मावत' नामक महाकाव्य है। अन्य जिस किसी ऐतिहासिक स्रोतों या ग्रंथों में 'पद्मावती' या 'पद्मिनी' का वर्णन हुआ है वे सभी 'पद्मावत' के परवर्ती हैं। .

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पिछोला झील

पिछोला झील उदयपुर के पश्चिम में पिछोली गांव के निकट इस झील का निर्माण राणा लखा के काल (१४वीं शताब्दी के अंत) में किसी बनजारे ने करवाया था। महाराणा उदयसिंह द्वितीय ने इस शहर की खोज के बाद इस झील का विस्तार कराया था। झील में दो द्वीप हैं और दोनों पर महल बने हुए हैं। एक है जग निवास, जो अब लेक पैलेस होटल बन चुका है और दूसरा है जग मंदिर, उदयपुर। दोनों ही महल राजस्थानी शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण हैं,इन्हें नाव द्वारा जाकर इन्हें देखा जा सकता है। इस झील पर चार द्वीप है.

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फतेह सागर

महाराणा जय सिंह द्वारा निर्मित यह झील बाढ़ के कारण नष्ट हो गई थी, बाद में महाराणा फतेह सिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। झील के बीचों-बीच एक बागीचा है। बागीचे में बोट के आकार का एक कैफे भी है। आप बोट अथवा आटो द्वारा यहां पहुंच सकते हैं। श्रेणी:उदयपुर के पर्यटन स्थल.

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बप्पा रावल

बप्पा रावल (713-810) मेवाड़ राज्य के संस्थापक राजा थे। .

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बाबर

ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर (14 फ़रवरी 1483 - 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, एक मुगल शासक था, जिनका मूल मध्य एशिया था। वह भारत में मुगल वंश के संस्थापक था। वो तैमूर लंग के परपोते था, और विश्वास रखते था कि चंगेज़ ख़ान उनके वंश के पूर्वज था। मुबईयान नामक पद्य शैली का जन्मदाता बाबर को ही माना जाता है! .

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महापौर

महापौर किसी नगर के प्रशासक को कहते हैं। कई बार महापौर का चुनाव उस नगर में रहने वाले लोगों द्वारा किया जाता है और अन्य कई बार, एक केंद्रीय सरकारी समिति यह निर्णय लेती है की किसी नगर का महापौर कौन होगा। बहुत से संघीय देशों जैसे जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका में महापौर नगर-राज्य की सरकार का प्रमुख भी होता है। In श्रेणी:समाजशास्त्र.

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महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदानुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७) उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। १५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में २०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ। .

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महाराणा प्रताप विमानक्षेत्र

महाराणा प्रताप हवाई अड्डा या उदयपुर हवाई अड्डा या दाबोक हवाई अड्डा (आईएटीए: UDR, आईसीएओ: VAUD) उदयपुर, राजस्थान,भारत में स्थित एक घरेलू हवाई अड्डा है। यह 22 किमी की दूरी पर उदयपुर (14 मील) पूर्व में स्थित है। हवाई अड्डे का नाम भारत के राजस्थान राज्य के मेवाड़ की रियासत के एक शासक महाराणा प्रताप के नाम पर रखा गया। .

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मानसून भवन, उदयपुर

इसे मूल रूप से सज्जहन घर के नाम से जाना जाता था। इसे सज्जथन सिंह ने 19 वीं शताब्दी में बनवाया था। पहले यह वेधशाला के लिए जाना जाता था, लेकिन अब यह एक लॉज के रूप में तब्दील हो चुका है। लोकेशन: शहर से 8 किलोमीटर पश्‍िचम में समय: सुबह 10बजे से 6 बजे तक। सभी दिन खुला। श्रेणी:उदयपुर के पर्यटन स्थल श्रेणी:उदयपुर.

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मेवाड़

राजस्थान के अन्तर्गत मेवाड़ की स्थिति मेवाड़ राजस्थान के दक्षिण-मध्य में एक रियासत थी। इसे 'उदयपुर राज्य' के नाम से भी जाना जाता था। इसमें आधुनिक भारत के उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद, तथा चित्तौडगढ़ जिले थे। सैकड़ों सालों तक यहाँ रापपूतों का शासन रहा और इस पर गहलौत तथा सिसोदिया राजाओं ने १२०० साल तक राज किया। बाद में यह अंग्रेज़ों द्वारा शासित राज बना। १५५० के आसपास मेवाड़ की राजधानी थी चित्तौड़। राणा प्रताप सिंह यहीं का राजा था। अकबर की भारत विजय में केवल मेवाड़ का राणा प्रताप बाधक बना रहा। अकबर ने सन् 1576 से 1586 तक पूरी शक्ति के साथ मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, पर उसका राणा प्रताप को अधीन करने का मनोरथ सिद्ध नहीं हुआ स्वयं अकबर, प्रताप की देश-भक्ति और दिलेरी से इतना प्रभावित हुआ कि प्रताप के मरने पर उसकी आँखों में आंसू भर आये। उसने स्वीकार किया कि विजय निश्चय ही राणा की हुई। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रताप जैसे महान देशप्रेमियों के जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर अनेक देशभक्त हँसते-हँसते बलिवेदी पर चढ़ गए। महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी अमर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर से संधि कर ली। उसने अपने पाटवी पुत्र को मुगल दरबार में भेजना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार १०० वर्ष बाद मेवाड़ की स्वतंत्रता का भी अन्त हुआ। .

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मोती मगरी

यहां प्रसिद्ध राजपूत राजा महाराणा प्रताप की मूर्ति है। मोती मगरी फतेहसागर के पास की पहाड़ी पर स्थित है। मूर्ति तक जाने वाले रास्तों के आसपास सुंदर बगीचे हैं, विशेषकर जापानी रॉक गार्डन दर्शनीय हैं। सहेलियों की बाड़ी: सहेलियों की बाड़ी / दासियों के सम्मान में बना बाग एक सजा-धजा बाग है। इसमें, कमल के तालाब, फव्वारे, संगमरमर के हाथी और कियोस्क बने हुए हैं।.

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राणा सांगा

राणा सांगा का चित्र राणा सांगा (राणा संग्राम सिंह) (राज 1509-1527) उदयपुर में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। राणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्रामसिंह था। राणा सांगा ने मेवाड़ में १५०९ से १५२७ तक शासन किया, जो आज भारत के राजस्थान प्रदेश के रेगिस्थान में स्थित है। राणा सांगा सिसोदिया (सूर्यवंशी राजपूत) राजवंशी थे। राणा सांगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एकजुट किया। राणा सांगा सही मायनों में एक बहादुर योद्धा व शासक थे जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिद्ध हुये। एक विश्वासघाती के कारण वह बाबर से युद्ध हारे लेकिन उन्होंने अपने शौर्य से दूसरों को प्रेरित किया। राणा रायमल के बाद सन १५०९ में राणा सांगा मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने। इन्होंने दिल्ली, गुजरात, व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की बहादुरी से ऱक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजा थे। इनके शासनकाल में मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊँचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह इन्होंने अपने राज्य की ‍रक्षा तथा उन्नति की। राणा सांगा अदम्य साहसी (indomitable spirit) थे। एक भुजा, एक आँख खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना महान पराक्रम नहीं खोया, सुलतान मोहम्मद शासक माण्डु को युद्ध में हराने व बन्दी बनाने के बाद उन्हें उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया, यह उनकी बहादुरी को दर्शाता है। .

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राजधानी

राजधानी वह नगरपालिका होती है, जिसे किसी देश, प्रदेश, प्रान्त या अन्य प्रशासनिक ईकाई अथवा क्षेत्र में सरकार की गद्दी होने का प्राथमिक दर्जा हासिल होता है। राजधानी मिसाली तौर पर एक शहर होता है, जहाँ संबंधित सरकार के दफ़्तर और सम्मेलन -टिकाने स्थित होते हैं और आम तौर पर अपने क़ानून या संविधान द्वारा निर्धारित होती है। .

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राजस्थान

राजस्थान भारत गणराज्य का क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब (भारत), उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा है। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग कि॰मी॰ (132139 वर्ग मील) है। 2011 की गणना के अनुसार राजस्थान की साक्षरता दर 66.11% हैं। जयपुर राज्य की राजधानी है। भौगोलिक विशेषताओं में पश्चिम में थार मरुस्थल और घग्गर नदी का अंतिम छोर है। विश्व की पुरातन श्रेणियों में प्रमुख अरावली श्रेणी राजस्थान की एक मात्र पर्वत श्रेणी है, जो कि पर्यटन का केन्द्र है, माउंट आबू और विश्वविख्यात दिलवाड़ा मंदिर सम्मिलित करती है। पूर्वी राजस्थान में दो बाघ अभयारण्य, रणथम्भौर एवं सरिस्का हैं और भरतपुर के समीप केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान है, जो सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों और बड़ी संख्या में स्थानीय प्रजाति के अनेकानेक पक्षियों के संरक्षित-आवास के रूप में विकसित किया गया है। .

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राजस्थान पत्रिका

राजस्थान पत्रिका हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने वाला एक भारतीय समाचार पत्र है। यह अखबार भारत के सात राज्यों से प्रकाशित हो रहा है। यह जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, उदयपुर, कोटा और सीकर सहित कई अन्य क्षेत्रों से राजस्थान से प्रकाशित होता है और राजस्थान के अलावा भोपाल, इन्दौर, जबलपुर, रायपुर, अहमदाबाद, ग्वालियर, कोलकाता, चेन्नई, नई दिल्ली और बंगलौर से प्रकाशित होता है। .

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शिल्पग्राम, उदयपुर

यह एक शिल्पग्राम है, जहां गोवा, गुजरात राजस्थान और महाराष्ट्र के पारंपररिक घरों को दिखाया गया है। यहां इन राज्यों के शास्त्रीय संगीत और नृत्य भी प्रदर्शित किए जाते हैं। .

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सहेलियों की बाड़ी

सहेलियों की बाड़ी (Courtyard of Maiden) भारतीय राज्य राजस्थान के उदयपुर ज़िले का प्रमुख और एक लोकप्रिय उद्यान तथा दर्शनीय स्थल है। इसका निर्माण राणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह) ने करवाया था। उद्यान के पास एक संग्रहालय भी है। .

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सांसद

सांसद, संसद में मतदाताओं का प्रतिनिधि होता है। अनेक देशों में इस शब्द का प्रयोग विशेष रूप से निम्न सदन के सदस्यों के लिए किया जाता है। क्योंकि अक्सर उच्च सदन के लिए एक अलग उपाधि जैसे कि सीनेट एवं इसके सदस्यों के लिये सीनेटर का प्रयोग किया जाता है सांसद अपनी राजनीतिक पार्टी के सदस्यों के साथ मिलकर संसदीय दल का गठन करते हैं। रोजमर्रा के व्यवहार में अक्सरसांसद शब्द के स्थान पर मीडिया में इसके लघु रूप "MP"का प्रयोग किया जाता है। .

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सिटी पैलेस, उदयपुर

सिटी पैलेस की स्थापना १६वीं शताब्दी में आरम्भ हुई। इसे स्थापित करने का विचार एक संत ने राजा उदयसिंह द्वितीय को दिया था। इस प्रकार यह परिसर ४०० वर्षों में बने भवनों का समूह है। यह एक भव्य परिसर है। इसे बनाने में २२ राजाओं का योगदान था। इस परिसर में प्रवेश के लिए टिकट लगता है। बादी पॉल से टिकट लेकर आप इस परिसर में प्रवेश कर सकते हैं। परिसर में प्रवेश करते ही आपको भव्य त्रिपोलिया गेट' दिखेगा। इसमें सात आर्क हैं। ये आर्क उन सात स्मवरणोत्सैवों का प्रतीक हैं जब राजा को सोने और चांदी से तौला गया था तथा उनके वजन के बराबर सोना-चांदी को गरीबों में बांट दिया गया था। इसके सामने की दीवार 'अगद' कहलाती है। यहां पर हाथियों की लड़ाई का खेल होता था। इस परिसर में एक जगदीश मंदिर भी है। इसी परिसर का एक भाग सिटी पैलेस संग्रहालय है। इसे अब सरकारी संग्रहालय घोषित कर दिया गया है। वर्तमान में शम्भूक निवास राजपरिवार का निवास स्थानन है। इससे आगे दक्षिण दिशा में 'फतह प्रकाश भ्‍ावन' तथा 'शिव निवास भवन' है। वर्तमान में दोनों को होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। .

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सिसोदिया (राजपूत)

सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी सिसोदिया या गेहलोत मांगलिया यासिसोदिया एक राजपूत राजवंश है, जिसका राजस्थान के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। यह सूर्यवंशी राजपूत थे। सिसोदिया राजवंश में कई वीर शासक हुए हैं। 'गुहिल' या 'गेहलोत' 'गुहिलपुत्र' शब्द का अपभ्रष्ट रूप है। कुछ विद्वान उन्हें मूलत: ब्राह्मण मानते हैं, किंतु वे स्वयं अपने को सूर्यवंशी क्षत्रिय कहते हैं जिसकी पुष्टि पृथ्वीराज विजय काव्य से होती है। मेवाड़ के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से उनके सबसे प्राचीन अभिलेख मिले है। अत: वहीं से मेवाड़ के अन्य भागों में उनकी विस्तार हुआ होगा। गुह के बाद भोज, महेंद्रनाथ, शील ओर अपराजित गद्दी पर बैठे। कई विद्वान शील या शीलादित्य को ही बप्पा मानते हैं। अपराजित के बाद महेंद्रभट और उसके बाद कालभोज राजा हुए। गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने कालभोज को चित्तौड़ दुर्ग का विजेता बप्पा माना है। किंतु यह निश्चित करना कठिन है कि वास्तव में बप्पा कौन था। कालभोज के पुत्र खोम्माण के समय अरब आक्रान्ता मेवाड़ तक पहुंचे। अरब आक्रांताओं को पीछे हटानेवाले इन राजा को देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने बप्पा मानने का सुझाव दिया है। कुछ समय तक चित्तौड़ प्रतिहारों के अधिकार में रहा और गुहिल उनके अधीन रहे। भर्तृ पट्ट द्वितीय के समय गुहिल फिर सशक्त हुए और उनके पुत्र अल्लट (विक्रम संवत् १०२४) ने राजा देवपाल को हराया जो डा.

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हल्दीघाटी

हल्दीघाटी इतिहास में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध के लिए प्रसिद्ध है। यह राजस्थान में एकलिंगजी से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। यह अरावली पर्वत शृंखला में एक दर्रा (pass) है। यह राजसमन्द और पाली जिलों को जोड़ता है। यह उदयपुर से ४० किमी की दूरी पर है। इसका नाम 'हल्दीघाटी' इसलिये पड़ा क्योंकि यहाँ की मिट्टी हल्दी जैसी पीली है। .

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जयसमंद

ढेबर झील या जयसमंद झील पश्चिमोत्तर भारत के दक्षिण-मध्य राजस्थान राज्य के अरावली पर्वतमाला के दक्षिण-पूर्व में स्थित एक विशाल जलाशय है। यह राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इस झील को एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील होने का गौरव प्राप्त है। यह उदयपुर जिला मुख्यालय से 51 कि॰मी॰ की दूरी पर दक्षिण-पूर्व की ओर उदयपुर-सलूम्बर मार्ग पर स्थित है। अपने प्राकृतिक परिवेश और बाँध की स्थापत्य कला की सुन्दरता से यह झील वर्षों से पर्यटकों के आकर्षण का महत्त्वपूर्ण स्थल बनी हुई है। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून के समय है। झील के साथ वाले रोड पर केन से बने हुए घर बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह झील का सबसे सुन्दर दृष्य है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने 1910 में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था। .

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जग निवास द्वीप, उदयपुर

पिछोला झील पर बने द्वीप पैलेस में से एक यह महल, जो अब एक सुविधाजनक होटल का रूप ले चुका है। कोर्टयार्ड, कमल के तालाब और आम के पेड़ों की छांव में बना स्विमिंग-पूल मौज-मस्ती करने वालों के लिए एक आदर्श स्थान है। आप यहां आएं और यहां रहने तथा खाने का आनंद लें, किंतु आप इसके भीतरी हिस्सों में नहीं जा सकते।.

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जग मन्दिर, उदयपुर

पिछोला झील पर बना एक अन्य द्वीप पैलेस। यह महल महाराजा करण सिंह द्वारा बनवाया गया था, किंतु महाराजा जगत सिंह ने इसका विस्तार कराया। महल से बहुत शानदार दृश्य दिखाई देते हैं, गोल्डन महल की सुंदरता दुर्लभ और भव्य है।.

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जौहर

The Burning of the Rajput women, during the siege of Chitor जौहर पुराने समय में भारत में राजपूत स्त्रियों द्वारा की जाने वाली क्रिया थी। जब युद्ध में हार निश्चित हो जाती थी तो पुरुष मृत्युपर्यन्त युद्ध हेतु तैयार होकर वीरगति प्राप्त करने निकल जाते थे तथा स्त्रियाँ जौहर कर लेती थीं अर्थात जौहर कुंड में आग लगाकर खुद भी उसमें कूद जाती थी। जौहर कर लेने का कारण युद्ध में हार होने पर शत्रु राजा द्वारा हरण किये जाने का भय होता था। जौहर क्रिया में राजपूत स्त्रियाँ जौहर कुंड को आग लगाकर उसमें स्वयं का बलिदान कर देती थी। जौहर क्रिया की सबसे अधिक घटनायें भारत पर मुगल आदि बाहरी आक्रमणकारियों के समय हुयी। ये मुस्लिम आक्रमणकारी हमला कर हराने के पश्चात स्त्रियों को लूट कर उनका शीलभंग करते थे। इसलिये स्त्रियाँ हार निश्चित होने पर जौहर ले लेती थी। इतिहास में जौहर के अनेक उदाहरण मिलते हैं। हिन्दी के ओजस्वी कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने अपना प्रसिद्ध महाकाव्य जौहर चित्तौड की महारानी पद्मिनी के वीरांगना चरित्र को चित्रित करने के उद्देश्य को लेकर ही लिखा थाDas, Sisir Kumar, "A Chronology of Literary Events / 1911–1956", in Das, Sisir Kumar and various,, 1995, published by Sahitya Akademi, ISBN 978-81-7201-798-9, retrieved via Google Books on December 23, 2008।.राजस्थान की जौहर परम्परा पर आधारित उनका यह महाकाव्य हिन्दी जगत में काफी चर्चित रहा। .

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कांकरोली

कांकरोली कांकरोली राजसमन्द जिलें में स्थित एक शहर है यहां प्रसिद्द द्वारकाधीश जी का मन्दिंर है यहां से १किलोमीटर दुर ही राजसमन्द झिल स्थित है यहां पर प्रसिद्व टायर जे.के.टायर फेक्ट्री स्थित है .

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कुम्भलगढ़ दुर्ग

कुम्भलगढ़ दुर्ग का विशालकाय द्वार; इसे '''राम पोल''' कहा जाता है। कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ठ स्थान रखता है। उदयपुर से ७० किमी दूर समुद्र तल से १,०८७ मीटर ऊँचा और ३० किमी व्यास में फैला यह दुर्ग मेवाड़ के यशश्वी महाराणा कुम्भा की सूझबूझ व प्रतिभा का अनुपम स्मारक है। इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के द्वितीय पुत्र संप्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर १४४३ से शुरू होकर १५ वर्षों बाद १४५८ में पूरा हुआ था। दुर्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के डलवाये जिन पर दुर्ग और उसका नाम अंकित था। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार बने इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि बने है। बादल महल .

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अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी (वास्तविक नाम अली गुरशास्प 1296-1316) दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था। उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। मेवाड़ चित्तौड़ का युद्धक अभियान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुन्दरता पर मोहित था। इसका वर्णन मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना पद्मावत में किया है। उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया। अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया। .

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अकबर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .

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उदय सिंह

श्री उदय सिंह भारत के चौदहवीं लोकसभा में बिहार के पूर्णिया लोकसभाक्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्री सिंह भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं। श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन श्रेणी:बिहार के राजनीतिज्ञ श्रेणी:भारतीय जनता पार्टी के सांसद.

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उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन

उदयपुर सिटी रेलवे स्टेशन भारतीय रेल का एक रेलवे स्टेशन है। यह उदयपुर शहर में स्थित है। इसकी ऊंचाई मी.

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उदयपुर जिला

उदयपुर भारतीय राज्य "राजस्थान" का एक जिला है। जिले का मुख्यालय उदयपुर है। क्षेत्रफल - वर्ग कि॰मी॰ जनसंख्या - 10,067,549 (2011 जनगणना) साक्षरता - एस॰टी॰डी॰ कोड - +91(india code) 0294 (Udaipur code) (remove 0 zero with indian code like +91294.. and use 0 zero for calling from inside india. जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में) समुद्र तल से उचाई - अक्षांश - उत्तर देशांतर - पूर्व औसत वर्षा - मि॰मी॰ .

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ऋषभदेव तहसील

ऋषभदेव तहसील ऋषभदेव मंदिर की वजह से प्रसिद्ध है। ऋषभदेव में राममंदिर भी स्थित है जो काफी प्रसिद्ध है श्रेणी:मई २०१३ के लेख जिनमें स्रोत नहीं हैं.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

उदयपुर, राजस्थान

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