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ईलम

सूची ईलम

ईलम दक्षिण-पश्चिमी ईरान का एक प्राचीन साम्राज्य था जो आज के ख़ुज़ेस्तान प्रांत में केन्द्रित था। इसका काल ईसापूर्व 2700 से ईसापूर्व 640 रहा था जिसका ज़िक्र मेसोपोटामिया के असीरियाई तथा सुमेरी स्रोतों में मिलता है। यह साम्राज्य न तो आर्य था और न ही सेमेटिक, इसकी भाषा को भी गैर-समूह की भाषा माना गया है। ईसापूर्व छठी शताब्दी में जब पहली बार ईरान की संपूर्ण सत्ता पर आर्य मूल के हख़ामनी शासकों का राज हुआ तो ईलमी भाषा को भी राजकीय भाषा बनाया गया। बिसितुन के शिलालेख (ईसापूर्व 480) में इस भाषा में भी उत्कीर्ण लेख मिलते हैं। कई हिन्दू ग्रंथों में सुशा का ज़िक्र है जिस नाम से इसकी (ईलम) राजधानी थी, यद्यपि यह वही प्रदेश रहा होगा यह सत्यापित नहीं हो पाया है। राजा ययाति के वंश में उत्पन्न चक्रवर्ती राजा एलिन द्वारा वसाया गया था एलिन राजा दुष्यंत के पिता थे व चक्रवर्ती राजा भरत के पितामह। किन्तु एक अन्य मत के अनुसार एलम राज्य का सम्बन्ध राजा एल से होना अधिक प्रासंगिक है। उनका नाम एल पुरुरवा भी है। जो इला के पुत्र थे व सोम वंश के संस्थापको में एक थे। श्रेणी:मेसोपेटामिया का इतिहास श्रेणी:ईरान का इतिहास.

5 संबंधों: सुमेर, हख़ामनी साम्राज्य, ख़ूज़स्तान, आर्य, अश्शूर

सुमेर

first farmers from Samara arrive in Sumer, and build shrine and settlement at Eridu आजकल के ईराक क्षेत्र यानि प्राचीन मेसोपोटामिया की सबसे पहली मानव सभ्यता। इसका काल ईसा के पूर्व ४५०० से १९०० के साल तक माना जाता है। बीच में २३००-२१०० ईसापूर्व के दौरान अक्कद ने सुमेर पर प्रभुता हासिल की, लेकिन अक्कद के पतन के बाद सुमेर फिर से मजबूत हुआ। माना जाता है सुमेर के शासक सेमेटिक नहीं थे - यानि आज के यहूदियों या अरब मुसलमानों के पूर्वज नहीं थे। सुमेरी तथा अक्कदी (सेमेटिक) भाषाओं के बीच आदान प्रदान हुआ लगता है। .

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हख़ामनी साम्राज्य

अजमीढ़ साम्राज्य अपने चरम पर - ईसापूर्व सन् 500 के आसपास हख़ामनी वंश या अजमीढ़ साम्राज्य(अंग्रेज़ी तथा ग्रीक में एकेमेनिड, अजमीढ़ साम्राज्य (ईसापूर्व 550 - ईसापूर्व 330) प्राचीन ईरान (फ़ारस) का एक शासक वंश था। यह प्राचीन ईरान के ज्ञात इतिहास का पहला शासक वंश था जिसने आज के लगभग सम्पूर्ण ईरान पर अपनी प्रभुसत्ता हासिल की थी और इसके अलावा अपने चरमकाल में तो यह पश्मिम में यूनान से लेकर पूर्व में सिंधु नदी तक और उत्तर में कैस्पियन सागर से लेकर दक्षिण में अरब सागर तक फैल गया था। इतना बड़ा साम्राज्य इसके बाद बस सासानी शासक ही स्थापित कर पाए थे। इस वंश का पतन सिकन्दर के आक्रमण से सन ३३० ईसापूर्व में हुआ था, जिसके बाद इसके प्रदेशों पर यूनानी (मेसीडोन) प्रभुत्व स्थापित हो गया था। पश्चिम में इस साम्राज्य को मिस्र एवम बेबीलोन पर अधिकार, यूनान के साथ युद्ध तथा यहूदियों के मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए याद किया जाता है। कुरोश तथा दारुश को इतिहास में महान की संज्ञा से भी संबोधित किया जाता है। इस वंश को आधुनिक फ़ारसी भाषा बोलने वाले ईरानियों की संस्कृति का आधार कहा जाता है। इस्लाम के पूर्व प्राचीन ईरान के इस साम्राज्य को ईरानी अपने गौरवशाली अतीत की तरह देखते हैं, जो अरबों द्वारा ईरान पर शासन और प्रभाव स्थापित करने से पूर्व था। आज भी ईरानी अपने नाम इस काल के शासकों के नाम पर रखते हैं जो मुस्लिम नाम नहीं माने जाते हैं। ज़रदोश्त के प्रभाव से पारसी धर्म के शाही रूप का प्रतीक भी इसी वंश को माना जाता है। तीसरी सदी में स्थापित सासानी वंश के शासकों ने अपना मूल हख़ामनी वंश को ही बताया था। .

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ख़ूज़स्तान

ख़ूज़स्तान (फ़ार्सी: خوزستان ओस्तान-ए-ख़ूज़स्तान) ईरान के ३१ प्रांतों में से एक है जो देश के दक्षिण-पश्चिम की दिशा में इराक़ की सीमा से लगा है। इसका इतिहास ईलम के साम्राज्य से शुरु होता है जो ईसा के २४००-६४० साल पहले था। यहाँ के लोग अरबी और फ़ारसी दोनों बोलते हैं और इसके अलावा बख़्तियारी तथा लूरी भाषा भी बोली जाती है। इसकी राजधनी अहवाज़ है। ख़ुज़स्तान को हुज़ लोगों का स्थान माना जाता है जो प्राचीनकाल से यहाँ रहते हैं। .

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आर्य

आर्य समस्त हिन्दुओं तथा उनके मनुकुलीय पूर्वजों का वैदिक सम्बोधन है। इसका सरलार्थ है श्रेष्ठ अथवा कुलीन। .

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अश्शूर

अश्शूर प्राचीन मेसोपोटामिया में नव असीरियाई साम्राज्य की राजधानी थी। इस शहर के अवशेष इराक़ में दजला नदी के उपरी हिस्से में स्थित हैं। यह बीसवी सदी ईसापूर्व से लेकर सातवीं सदी ईसापूर्व तक अस्तित्व में था। इसके बाद फ़ारस के हख़ामनी वंश के शासकों के अधीन आ गया। यह शहर लगभग २६००-२५०० ईपू से १४०० ईसवी तक हराभरा व समृद्ध रहा। लेकिन जब तैमूरलंग ने अपने ही लोगों का नरसंहार शुरू करवा दिया तब से इस शहर का अस्तित्व खत्म होता रहा। अश्शूर इस शहर के प्रमुख देवता का भी नाम था। वह असीरिया में सबसे प्रमुख व शक्तिशाली देवता और असीरियाई साम्राज्य के संरक्षक माने जाते थे। वर्तमान में इस जगह को यूनेस्को विश्व धरोहर माना जाता है। २००३ में खाड़ी युद्ध शुरु होने के बाद इस जगह को खतरे में पडे विश्व धरोहरों में गिना जाने लगा। .

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