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इंस्पैक्टर ईगल कार्यक्रम

सूची इंस्पैक्टर ईगल कार्यक्रम

इंस्पेक्टर ईगल रात में हवामहल के बाद साढे नौ बजे प्रसारित होता। रहस्य और रोमांच से भरपूर किसी अपराध का पर्दाफ़ाश करती हर सप्ताह एक अलग कहानी होती इस साप्ताहिक कार्यक्रम में। आज दूरदर्शन हो या कोई निजि चैनल कोई न कोई धारावाहिक प्रायोजित कार्यक्रम चलता ही रहता है। कुछ कहानियां वर्षों तक खींची जाती है तो कुछ धारावाहिकों में हर अंक में एक नई कहानी होती है। विषय भी अलग-अलग है या कहें सभी विषय है - सामाजिक समस्याओं से लेकर, गाने बजाने से लेकर भूत चुड़ैल और जासूसी कारनामों तक। एक ही समय पर एक ही विषय पर कुछ मसालेदार परोसा जाता है और परोसने वाले होते है उन उत्पादों की कंपनी वाले जिन्हें बिक्री बढानी है। अब ये सोचने वाली बात है कि इसकी जड़े पीछे कहां तक है। ऐसा सबसे पहला कार्यक्रम है - इंस्पेक्टर ईगल। वैसे तो प्रायोजित कार्यक्रमों से श्रोताओं का परिचय रेडियो सिलोन ने कराया लेकिन वहां गाने जैसे बिनाका गीत माला, चुटकुले शायरी जैसे मराठा दरबार की महकती बातें, रोचक सवाल जवाब जैसे जौहर के जवाब या एस कुमार्स का फ़िल्मी मुकदमा जैसे कार्यक्रम थे। लेकिन नाटक के रूप में प्रायोजित धारावाहिक जो आज निजि चैनेलों के कारण हमारे जीवन का अंग बन चुके है, पहली बार शायद विविध भारती का इंस्पेक्टर ईगल ही था। इसमें मुख्य पात्र दो थे - एक इंस्पेक्टर ईगल और दूसरा हवालदार नायक। ईगल फ्लास्क बनाने वाली कंपनी ने इसे प्रायोजित किया था इसीलिए इंस्पेक्टर का नाम ईगल रहा। कहानी की मांग के अनुसार अन्य पात्र भी होते। हर सप्ताह एक रोचक किस्से को नाटक में ढाल कर पेश किया गया। आज तो एक भी किस्सा याद नहीं लेकिन याद है तो हवालदार नायक की वो अदभुत हंसी जो खीं खीं खीं से शुरू होती और लंबी खिंचती जिसके बीच में हिच्चचच भी होता। फिर इंस्पेक्टर ईगल की ज़ोरदार आवाज़ आती - हवालदार नायक और हवालदार नायक का खिसियाना जवाब सॉरी सर हवालदार नायक बने थे युनूस परवेज़ जो फ़िल्मों में चरित्र भूमिकाएं करते थे। इंस्पेक्टर ईगल की भूमिका शायद धीरज कुमार ने की थी जो टेलिविजन धारावाहिक बनाते है। श्रेणी:रेडियो श्रेणी:विविध भारती.

1 संबंध: हवामहल

हवामहल

हवामहल हवा महल भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक राजसी-महल है। इसे सन 1798 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने बनवाया था और इसे किसी 'राजमुकुट' की तरह वास्तुकार लाल चंद उस्ता द्वारा डिजाइन किया गया था। इसकी अद्वितीय पांच-मंजिला इमारत जो ऊपर से तो केवल डेढ़ फुट चौड़ी है, बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है, जिसमें ९५३ बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियाँ हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। इन खिडकियों को जालीदार बनाने के पीछे मूल भावना यह थी कि बिना किसी की निगाह पड़े "पर्दा प्रथा" का सख्ती से पालन करतीं राजघराने की महिलायें इन खिडकियों से महल के नीचे सडकों के समारोह व गलियारों में होने वाली रोजमर्रा की जिंदगी की गतिविधियों का अवलोकन कर सकें। इसके अतिरिक्त, "वेंचुरी प्रभाव" के कारण इन जटिल संरचना वाले जालीदार झरोखों से सदा ठंडी हवा, महल के भीतर आती रहती है, जिसके कारण तेज़ गर्मी में भी महल सदा वातानुकूलित सा ही रहता है। चूने, लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित यह महल जयपुर के व्यापारिक केंद्र के हृदयस्थल में मुख्य मार्ग पर स्थित है। यह सिटी पैलेस का ही हिस्सा है और ज़नाना कक्ष या महिला कक्ष तक फैला हुआ है। सुबह-सुबह सूर्य की सुनहरी रोशनी में इसे दमकते हुए देखना एक अनूठा एहसास देता है। .

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