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आहार सम्बंधी विकार

सूची आहार सम्बंधी विकार

भोजन विकारों एक व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की हानि के लिए अपर्याप्त या अत्यधिक भोजन के सेवन या तो शामिल हो सकता है। असामान्य खाने की आदतों से परिभाषित मनोवैज्ञानिक बीमारियों हो सकती हैं। बुलिमिया आभाव और एनोरेक्सिया नर्वोसा खाने विकारों का सबसे आम विशिष्ट प्रकार के होते हैं। विकारों खाने के अन्य प्रकार के द्वि घातुमान विकार शामिल हैं। बुलिमिया द्वि घातुमान खाने और मिटाने द्वारा विशेषता विकार है। शुद्धीकरण स्व-प्रेरित पर कसरत उल्टी, और मूत्रल, एनीमा, और जुलाब का उपयोग शामिल कर सकते हैं। एनोरेक्सिया नर्वोसा आत्म भुखमरी और अत्यधिक वजन घटाने के मुद्दे पर चरम खाद्य प्रतिबंध के द्वारा होती है। अत्यधिक वजन घटाने अक्सर कुछ हालांकि महिलाओं और मासिक धर्म होने को रोकने के लिए मासिक धर्म शुरू कर दिया है, जो लड़कियों, रजोरोध के रूप में जाना जाता हालत का कारण बनता है। एनोरेक्सिया नर्वोसा के लिए अन्य डीएसएम – ५ मानदंडों को पूरा महिलाओं को जो अभी भी कुछ मासिक धर्म गतिविधि की रिपोर्ट पाई गयी है। डीएसएम - ५ वर्तमान में एनोरेक्सिया नर्वोसा-सीमित प्रकार और द्वि घातुमान / शुद्ध प्रकार के दो उपप्रकार निर्दिष्ट करता है। एनोरेक्सिया नर्वोसा की सीमित प्रकार से पीड़ित जो लोग द्वि घातुमान / शुद्ध प्रकार पेट भर खाने से पीड़ित लोगों, जबकि कसरत पर- और / या मिटाने के कुछ विधि के माध्यम से क्षतिपूर्ति द्वारा कभी-कभी भोजन का सेवन सीमित द्वारा वजन कम है। एनोरेक्सिया के बीच का अंतर आभाव द्वि घातुमान / शुद्ध प्रकार और बुलिमिया आभाव एक व्यक्ति के शरीर का वजन है। बुलिमिया आभाव के साथ उन लोगों को अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त करने के लिए सामान्य से सीमा के भीतर गिर जाता है कि एक शरीर के वजन हो सकता है, जबकि एनोरेक्सिया नर्वोसा द्वि घातुमान / शुद्ध प्रकार के निदान के साथ उन लोगों के लिए एक स्वस्थ वजन के तहत अच्छी तरह से कर रहे हैं। मुख्य रूप से प्रभावित करने वाले के रूप में सोचा हालांकि महिलाओं (एक ५ – १० मिलियन ब्रिटेन में प्रभावित किया जा रहा अनुमानित), विकारों खाने के रूप में अच्छी तरह से पुरुषों प्रभावित करते हैं। एक अनुमान के अनुसार १० - विकारों खाने के साथ लोगों के १५% पुरुषों (गुडगाँ १९९९) हैं। (एक अनुमान के अनुसार १ लाख ब्रिटेन पुरुषों प्रभावित किया जा रहा है)। खाने विकारों सभी पुरुषों और महिलाओं दोनों के बीच दुनिया भर में बढ़ रहा हैं, यद्यपि यह उन्हें और पश्चिमीकरण की डिग्री खतरा बढ़ जाता विकसित करने के उच्चतम जोखिम में हैं जो पश्चिमी दुनिया में महिलाओं को सुझाव है कि सबूत नहीं है। लगभग सभी अमेरिकियों की आधी से व्यक्तिगत रूप से एक खा विकार के साथ किसी को पता है। .

2 संबंधों: कब्ज, अवसाद

कब्ज

कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। करने के लिए कई नुस्खे व उपाय यहां जोड़ें गए हैं। पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है। .

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अवसाद

अवसाद या डिप्रेशन का तात्पर्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोभावों संबंधी दुख से होता है। इसे रोग या सिंड्रोम की संज्ञा दी जाती है। आयुर्विज्ञान में कोई भी व्यक्ति डिप्रेस्ड की अवस्था में स्वयं को लाचार और निराश महसूस करता है। उस व्यक्ति-विशेष के लिए सुख, शांति, सफलता, खुशी यहाँ तक कि संबंध तक बेमानी हो जाते हैं। उसे सर्वत्र निराशा, तनाव, अशांति, अरुचि प्रतीत होती है। अवसाद के भौतिक कारण भी अनेक होते हैं। इनमें कुपोषण, आनुवांशिकता, हार्मोन, मौसम, तनाव, बीमारी, नशा, अप्रिय स्थितियों में लंबे समय तक रहना, पीठ में तकलीफ आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त अवसाद के ९० प्रतिशत रोगियों में नींद की समस्या होती है। मनोविश्लेषकों के अनुसार अवसाद के कई कारण हो सकते हैं। यह मूलत: किसी व्यक्ति की सोच की बुनावट या उसके मूल व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। अवसाद लाइलाज रोग नहीं है। इसके पीछे जैविक, आनुवांशिक और मनोसामाजिक कारण होते हैं। यही नहीं जैवरासायनिक असंतुलन के कारण भी अवसाद घेर सकता है। इसकी अधिकता के कारण रोगी आत्महत्या तक कर सकते हैं। इसलिए परिजनों को सजग रहना चाहिए और उनके परिवार का कोई सदस्य गुमसुम रहता है, अपना ज्यादातर समय अकेले में बिताता है, निराशावादी बातें करता है तो उसे तुरंत किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं। उसे अकेले में न रहने दें। हंसाने की कोशिश करें। मनोविश्लेषकों के अनुसार प्राकृतिक तौर पर महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अवसाद की शिकार कम बनती हैं, लेकिन अवांछित दबावों से वह इसकी शिकार हो सकती हैं। इस कारण प्रायः माना जाता है कि महिलाओं को अवसाद जल्दी आ घेरता है। इसके विपरीत पुरुष अक्सर अपनी अवसाद की अवस्था को स्वीकार करने से संकोच करते हैं। मोटे अनुमान के अनुसार दस पुरुषों में एक जबकि दस महिलाओं में हर पांच को अवसाद की आशंका रहती है। अवसाद का संबंध मस्तिष्क के उन्हीं क्षेत्रों द्वारा होता है, जहां से निद्रा चक्र और जागरण की अवस्था नियंत्रित होती है। अवसाद अक्सर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर्स की कमी के कारण भी होता है। न्यूरोट्रांसमीटर्स दिमाग में पाए जाने वाले रसायन होते हैं जो दिमाग और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तारतम्यता स्थापित करते हैं। इनकी कमी से भी शरीर की संचार व्यवस्था में कमी आती है और व्यक्ति में अवसाद के लक्षण दिखाई देते हैं। इस तरह का अवसाद आनुवांशिक होता है। अवसाद के कारण निर्णय लेने में अड़चन, आलस्य, सामान्य मनोरंजन की चीजों में अरुचि, नींद की कमी, चिड़चिड़ापन या कुंठा व्यक्ति में दिखाई पड़ते हैं। अवसाद के कारणों में इसका एक पूरक चिंता (एंग्ज़ायटी) भी है। इसके उपचार में योगासन में प्राणायाम बहुत सहायक सिद्ध हुआ है। कई बार अतिरिक्त चिड़चिड़ापन, अहंकार, कटुता या आक्रामकता अथवा नास्तिकता, अनास्था और अपराध अथवा एकांत की प्रवृत्ति पनपने लगती है या फिर व्यक्ति नशे की ओर उन्मुख होने लगता है। ऐसे में जरूरी है कि हम किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करें। व्यक्ति को खुशहाल वातावरण दें। उसे अकेला न छोड़ें तथा छिन्द्रान्वेषण कतई न करें। उसकी रुचियों को प्रोत्साहित कर, उसमें आत्मविश्वास जगाएँ और कारण जानने का प्रयत्न करें। अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद यह दावा किया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है, तो वह उसके डिप्रेशन या अवसाद की स्थिति का एकमात्र इलाज हो सकता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ फैमेली फिजिशियन का कहना है कि लोगों को नकारात्मक नहीं सोचना चाहिए। न ही विफलता के भय को लेकर चिंतित होते रहना चाहिए। इनकी बजाय हमेशा सकारात्मक सोच दिमाग में रखना चाहिए जो होगा अच्छा होगा। घर में अन्य सदस्यों को अवसाद की बीमारी होने से भी यह परेशानी महिलाओं को जल्दी पकड़ती है। क्योंकि घर से लगाव पुरुषों के मुकाबले उन्हें ज्यादा होता है। इसके चलते कभी-कभी उनमें आत्महत्या की इच्छा जोर मारने लगती है। इसलिए पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अवसाद ज्यादा खतरनाक होता है। हालांकि मंदी और कॉम्पटीशन के दौर में डिप्रेशन अब युवाओं को भी अपना शिकार बनाने लगा है इसलिए कोशिश यह रखनी चाहिए कि आप खुशनुमा पलों की तलाश करें और सकारात्मक सोच रखें। इससे बचने के उपायों में व्यस्त रहकर मस्त रहना, अपने लिए समय निकालना, संतुलित आहार सेवन, अपने लिए समय निकालना और सामाजिक मेलजोल बढ़ाना मूल उपाय हैं। युवाओं में बढ़ता तनाव .

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आहार सम्बधी विकार, आहार सम्बन्धि विकार

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