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विरेचक

सूची विरेचक

विरेचक या आरेचक (Laxatives या purgatives या aperients) ऐसे खाद्यपदार्थ, यौगिक या दवाओं क कहा जाता है जिनके सेवन से मलत्याग में आसानी होती है। इनके उपयोग से मलाशय की सफाई करने में आसानी होती है।; कुछ प्रमुख विरेचक.

8 संबंधों: त्रिफला, मूत्रल, मेडलाइन प्लस, सदाबहार, ईसबगोल, कब्ज, अमलतास, अरण्डी का तेल

त्रिफला

एम्ब्लिका ओफिशिनालिस त्रिफला एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक रासायनिक फ़ार्मुला है जिसमें अमलकी (आंवला (Emblica officinalis)), बिभीतक (बहेडा) (Terminalia bellirica) और हरितकी (हरड़ Terminalia chebula) को बीज निकाल कर (1 भाग हरड, 2 भाग बेहड, 3 भाग आंवला) 1:2:3 मात्रा में लिया जाता है। त्रिफला शब्द का शाब्दिक अर्थ है "तीन फल"। संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करने वाले व्यक्तियों को ह्रदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्ररोग, पेट के विकार, मोटापा आदि होने की संभावना नहीं होती। यह कोई 20 प्रकार के प्रमेह, विविध कुष्ठरोग, विषमज्वर व सूजन को नष्ट करता है। अस्थि, केश, दाँत व पाचन- संसथान को बलवान बनाता है। इसका नियमित सेवन शरीर को निरामय, सक्षम व फुर्तीला बनाता है। यदि गर्म पानी से सोते समय एक चम्मच लेने से क़ब्ज़ नही रहता! .

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मूत्रल

मूत्रल (diuretic) उन सभी पदार्थों को कहते हैं जो मूत्र के अधिक निर्माण में सहायक होते हैं। मूत्रलों के कई वर्ग (प्रकार) हैं। .

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मेडलाइन प्लस

मेडलाइन प्लस एक वेबसाइट है जहाँ स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचनाएँ मिलती हैं। यह चिकित्साशास्त्र से सम्बन्धित विश्व के सबसे बड़े पुस्तकालय यूनाइटेड स्टेट्स नेस्नल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन से स्वास्थ्य सम्बन्धित सूचनाएँ उपलब्ध कराता है। .

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सदाबहार

नींबू एक सदाबहार वृक्ष है सदाबहार या चिरहरित (evergreen) ऐसे पौधों और वृक्षों को कहा जाता है जिनपर हर मौसम में पत्ते होते हैं। यह उन पतझड़ी वृक्षों और पौधों से अलग होते हैं जो आमतौर पर शरद ऋतु में अपने पत्ते खो देते हैं। सदाबहार वृक्षों के भी पत्ते गिरते हैं लेकिन वे सब एक साथ नहीं गिरते और पत्तों के गिरने के साथ-साथ उन पर नए पत्ते भी आते रहते हैं। नीम, देवदार, पीलू, कपूर, नीम्बू और चीकू सदाबहार पेड़ों के कुछ उदहारण हैं।, Pradip Krishen, Penguin Books India, 2006, ISBN 978-0-14-400070-8 इनके अलावा चीड़, सरल (स्प्रूस) और सनोबर (फ़र) जैसे अधिकतर कोणधारी वृक्ष भी सदाबहार होते हैं। .

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ईसबगोल

ईसबगोल का पुष्पित पौधा ईसबगोल के फूल का पास से दृष्य इसबगोल की भूसी ईसबगोल (Plantago ovata) एक एक झाड़ीनुमा पौधा है जिसके बीज का छिलका कब्ज, अतिसार आदि अनेक प्रकार के रोगों की आयुर्वेदिक औषधि है। संस्कृत में इसे ' स्निग्धबीजम् ' कहा जाता है। ईसबगोल का उपयोग रंग-रोगन, आइस्क्रीम और अन्य चिकने पदार्थों के निर्माण में भी किया जाता है 'इसबगोल' नाम एक फारसी शब्द से निकला है जिसका अर्थ है 'घोड़े का कान', क्योंकि इसकी पत्तियाँ कुछ उसी आकृति की होती हैं। इसबगोल के पौधे एक मीटर तक ऊँचे होते हैं, जिनमें लंबे किंतु कम चौड़े, धान के पत्तों के समान, पत्ते लगते हैं। डालियाँ पतली होती हैं और इनके सिरों पर गेहूँ के समान बालियाँ लगती हैं, जिनमें बीज होते हैं। इस पौधे की एक अन्य जाति भी होती है, जिसे लैटिन में 'प्लैंटेगो ऐंप्लेक्सि कैनलिस' कहते हैं। पहले प्रकार के पौधे में जो बीज लगते हैं उन पर श्वेत झिल्ली होती है, जिससे वे सफेद इसबगोल कहलाते हैं। दूसरे प्रकार के पौधे के बीज भूरे होते हैं। श्वेत बीज औषधि के विचार से अधिक अच्छे समझे जाते हैं। एक अन्य जाति के बीज काले होते हैं, किन्तु उनका व्यवहार औषध में नहीं होता। इस पौधे का उत्पत्तिस्थान मिस्र तथा ईरान है। अब यह पंजाब, मालवा और सिंध में भी लगाया जाने लगा है। विदेशी होने के कारण प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख नहीं मिलता। आधुनिक ग्रंथों में ये बीज मृदु, पौष्टिक, कसैले, लुआबदार, आँतों को सिकोड़नेवाले तथा कफ, पित्त और अतिसार में उपयोगी कहे गए हैं। यूनानी पद्धति के अरबी और फारसी विद्वानों ने इसकी बड़ी प्रशंसा की है और जीर्ण आमरक्तातिसार (अमीबिक डिसेंट्री), पुरानी कोष्ठबद्धता इत्यादि में इसे उपयोगी कहा है। इसबगोल की भूसी बाजार में अलग से मिलती है। सोने के पहले आधा या एक तोला भूसी फाँककर पानी पीने पर सबेरे पेट स्वच्छ हो जाता है। यह रेचक (पतले दस्त लानेवाला) नहीं होता, बल्कि आँतों को स्निग्ध और लसीला बनाकर उनमें से बद्ध मल को सरलता से बाहर कर देता है। इस प्रकार कोष्ठबद्धता दूर होने से यह बवासीर में भी लाभ पहुँचाता है। रासायनिक विश्लेषण से बीजों में ऐसा अनुमान किया जाता है कि इससे उत्पन्न होनेवाला लुआब और न पचनेवाली भूसी, दोनों, पेट में एकत्रित मल को अपने साथ बाहर निकाल लाते हैं। .

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कब्ज

कब्ज पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति (या जानवर) का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है। करने के लिए कई नुस्खे व उपाय यहां जोड़ें गए हैं। पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज है। यदि कब्ज का शीघ्र ही उपचार नहीं किया जाये तो शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कब्जियत का मतलब ही प्रतिदिन पेट साफ न होने से है। एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम को तो मल त्याग के लिये जाना ही चाहिये। दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो जाना आवश्यक है। नित्य कम से कम सुबह मल त्याग न कर पाना अस्वस्थता की निशानी है। .

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अमलतास

फल अमलतास पीले फूलो वाला एक शोभाकर वृक्ष है। अमलतास को संस्कृत में व्याधिघात, नृप्रद्रुम इत्यादि, गुजराती में गरमाष्ठो, बँगला में सोनालू तथा लैटिन में कैसिया फ़िस्चुला कहते हैं। शब्दसागर के अनुसार हिंदी शब्द अमलतास संस्कृत अम्ल (खट्टा) से निकला है। भारत में इसके वृक्ष प्राय: सब प्रदेशों में मिलते हैं। तने की परिधि तीन से पाँच कदम तक होती है, किंतु वृक्ष बहुत उँचे नहीं होते। शीतकाल में इसमें लगनेवाली, हाथ सवा हाथ लंबी, बेलनाकार काले रंग की फलियाँ पकती हैं। इन फलियों के अंदर कई कक्ष होते हैं जिनमें काला, लसदार, पदार्थ भरा रहता है। वृक्ष की शाखाओं को छीलने से उनमें से भी लाल रस निकलता है जो जमकर गोंद के समान हो जाता है। फलियों से मधुर, गंधयुक्त, पीले कलझवें रंग का उड़नशील तेल मिलता है। .

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अरण्डी का तेल

अरंडी के बीज अरण्डी का तेल या रेंडी का तेल (Castor oil) एक वनस्पति तेल है जो अरण्डी के बीजों को पेर कर निकाला जाता है। यह तेल रंगहीन से लेकर हल्का-पीला द्रव है। इसमें कोई गंध और स्वाद नहीं होता। इसका क्वथनांक 313 डिग्री सेल्सियस और घन्तव 961 ग्राम प्रति लीटर होता है। अरंडी का तेल और उसके यौगिक तत्व साबुन,रोगन, रंग, स्याही, औषधि, इत्यादि बनाने में काम आते हैं।  .

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