लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

आमाशयार्ति

सूची आमाशयार्ति

आमाशयार्ति की अवस्था में लिया गया माइक्रोग्राम आमाशयार्ति (गैस्ट्राइटिज़ / Gastritis) में आमाशय की श्लेष्मिक कला का उग्र या जीर्ण शोथ हो जाता है। उग्र आमाशयार्ति किसी क्षोभक पदार्थ, जैसे अम्ल या क्षार या विष अथवा अपच्य भोजन पदार्थो के आमाशय में पहुँचने से उत्पन्न हो जाती है। अत्यधिक मात्रा में मद्य पीने से भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है। आंत्रनाल के उग्र शोथ में आमाशय के विस्तृत होने से भी रोग उत्पन्न हो सकता है। रोग के लक्षण अकस्मात्‌ आरंभ हो जाते हैं। रोगी के उपरिजठर प्रदेश (एपिगैस्ट्रियम) में पीड़ा होती है, जिसके पश्चात्‌ वमन होते हैं, जिनमें रक्त मिला रहता है। अधिकतर रोगियों में कारण दूर कर देने पर रोग शीघ्र ही शांत हो जाता है। जीर्ण रोग के बहुत से कारण हो सकते हैं। मद्य का अतिमात्रा में बहुत समय तक सेवन रोग का सबसे मुख्य कारण है। अधिक मात्रा में भोजन करना, गाढ़ी चाय (जिसमें टैनिन अधिक होती है) अधिक पीना, मिर्च, तथा अन्य मसालों का अति मात्रा में प्रयोग, अति ठंडी वस्तुएँ, जैसे बर्फ, आइसक्रीम, आदि खाना, अधिक धूम्रपान तथा बिना चबाया हुआ भोजन, ये सब कारण रोग उत्पन्न कर सकते हैं। जीर्ण आमाशयार्ति उग्र आमाशयार्ति का परिणाम हो सकती है और आमाशय में अर्बुद बन जाने पर, शिराओं की रक्ताधिक्यता (कॉनजेस्चन) में, जैसे हृदरोग में अथवा यकृत के कड़ा हो जाने (सिरौसिस) में, दुष्ट रक्तक्षीणता अथवा ल्यूकीमिया के समान रक्तरोगों में तथा कैंसर या राजयक्ष्या में भी यही दशा पाई जाती है। इस रोग में विशेष विकृति यह होती है कि आमाशय में श्लेष्मिक कला से श्लेष्मा का अधिक मात्रा में स्राव होने लगता है, जो आमाशय में एकत्र होकर समय समय पर वमन के रूप में निकला करता है। आगे चलकर श्लेष्मिक कला की अपुष्टता (ऐटोफ़ी) होने लगती है। रोगी प्राय: प्रौढ़ अवस्था का होता है, जिसका मुख्य कष्ट अजीर्ण होता है। भूख न लगना, मुँह का स्वाद खराब होना, अम्लपित्त, बार-बार हवा खुलना, प्यास की अधिकता, खट्टी डकार आना या वमन, जिसमें श्लेष्मा और आमाशय का तरल पदार्थ निकलता है, विशेष लक्षण होते हैं। अधिजठर प्रांत में प्रसृत्त वेदना (टेंडरनेस) के सिवाय और कोई लक्षण नहीं होता। खाद्य की आंशिक जाँच (फ़ैक्शनल मील टेस्ट) से श्लेष्मा की अत्यधिक मात्रा का पता लगता है। मुक्त अम्ल (फ्ऱी ऐसिड) की मात्रा कम अथवा बिलकुल नहीं होती। जठरनिर्गम (पाइलोरस) के पास के भाग में रोग होने से पक्वाशय के व्रण (डुओडेनल अलसर) के समान लक्षण हो सकते हैं। आहार के नियंत्रण से तथा श्लेष्मा को घोलने के लिए क्षार के प्रयोग से रोगी की व्यथा कम होती है। .

5 संबंधों: विष, व्रण, आमाशय (पेट), क्षार, अम्ल

विष

विष (Poision) ऐसे पदार्थों के नाम हैं, जो खाए जाने पर श्लेष्मल झिल्ली (mucous membrane), ऊतक या त्वचा पर सीधी क्रिया करके अथवा परिसंचरण तंत्र (circulatory system) में अवशोषित होकर, घातक रूप से स्वास्थ्य को प्रभावित करने, या जीवन नष्ट करने, में समर्थ होते हैं। .

नई!!: आमाशयार्ति और विष · और देखें »

व्रण

एक बच्चे के पैर में अल्सर व्रण या अल्सर (Ulcer) शरीरपृष्ठ (body surface) पर संक्रमण द्वारा उत्पन्न होता है। इस संक्रमण के जीवविष (toxins) स्थानिक उपकला (epithelium) को नष्ट कर देते हैं। नष्ट हुई उपकला के ऊपर मृत कोशिकाएँ एवं पूय (pus) संचित हो जाता है। मृत कोशिकाओं तथा पूय के हट जाने पर नष्ट हुई उपकला के स्थान पर धीरे धीरे कणिकामय ऊतक (granular tissues) आने लगते हैं। इस प्रकार की विक्षति को व्रण कहते हैं। दूसरे शब्दों में संक्रमणोपरांत उपकला ऊतक की कोशिकीय मृत्यु को व्रण कहते है। किसी भी पृष्ठ के ऊपर, अथवा पार्श्व में, यदि कोई शोधयुक्त परिगलित (necrosed) भाग हो गया है, तो वहाँ व्रण उत्पन्न हो जाएगा। शीघ्र भर जानेवाले व्रण को सुदम्य व्रण कहते हैं। कभी-कभी कोई व्रण शीघ्र नहीं भरता। ऐसा व्रण दुदम्य हो जाता है, इसका कारण यह है कि उसमें या तो जीवाणुओं (bacteria) द्वारा संक्रमण होता रहता है, या व्रणवाले भाग में रक्त परिसंचरण (circulation of blood) उचित रूप से नहीं हो पाता। व्रण, पृष्ठ पर की एक कोशिका के बाद दूसरी कोशिका के नष्ट होने पर, बनता है। .

नई!!: आमाशयार्ति और व्रण · और देखें »

आमाशय (पेट)

कशेरुकी, एकाइनोडर्मेटा वंशीय जंतु, कीट (आद्यमध्यांत्र) और मोलस्क सहित, कुछ जंतुओं में, आमाशय एक पेशीय, खोखला, पोषण नली का फैला हुआ भाग है जो पाचन नली के प्रमुख अंग के रूप में कार्य करता है। यह चर्वण (चबाना) के बाद, पाचन के दूसरे चरण में शामिल होता है। आमाशय, ग्रास नली और छोटी आंत के बीच में स्थित होता है। यह छोटी आंतों में आंशिक रूप से पचे भोजन (अम्लान्न) को भेजने से पहले, अबाध पेशी ऐंठन के माध्यम से भोजन के पाचन में सहायता के लिए प्रोटीन-पाचक प्रकिण्व(एन्ज़ाइम) और तेज़ अम्लों को स्रावित करता है (जो ग्रासनलीय पुरःसरण के ज़रिए भेजा जाता है).

नई!!: आमाशयार्ति और आमाशय (पेट) · और देखें »

क्षार

क्षार एक ऐसा पदार्थ है, जिसको जल में मिलाने से जल का pHमान 7.0 से अधिक हो जाता है। ब्रंस्टेड और लोरी के अनुसार, क्षार एक ऐसा पदार्थ है जो अम्लीय पदार्थों को OH- दान करते हैं। क्षारक वास्तव में वे पदार्थ हैं जो अम्ल के साथ मिलकर लवण और जल बनाते हैं। उदाहरणत:, जिंक आॅक्साइड सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर ज़िंक सल्फेट और जल बनाता है। दाहक सोडा (कॉस्टिक सोडा), सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर सोडियम सल्फेट और जल बनाता है। धातुओं के आॅक्साइड सामान्यत: क्षारक हैं। पर इसके अपवाद भी हैं। क्षारकों में धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड हैं, पर सुविधा के लिए तत्वों के कुछ ऐसे समूह भी रखे गए हैं जो अम्लों के साथ मिलकर बिना जल बने ही लवण बनाते हैं। ऐसे क्षारकों में अमोनिया, हाइड्राॅक्सिलएमीन और फाॅस्फीन हैं। द्रव अमोनिया में घुल जाता है पर फिनोल्फथैलीन से कोई रंग नहीं देता। अत: कहाँ तक यह क्षारक कहा जा सकता है, यह बात संदिग्ध है। यद्यपि ऊपर की क्षारक की परिभाषा बड़ी असंतोषप्रद है, तथापि इससे अच्छी परिभाषा नहीं दी जा सकी है। क्षारक (बेस) और क्षार (ऐल्कैली) पर्यायवाची शब्द नहीं हैं। सब क्षार क्षारक हैं पर सब क्षारक क्षार नहीं हैं। क्षार-धातुओं के आॅक्साइड, जैसे सोडियम आॅक्साइड, जल में घुलकर हाइड्राॅक्साइड बनाते हैं। ये प्रबल क्षारकीय होते हैं। क्षारीय मृदाधातुओं के आक्साइड, जैसे कैल्सियम आॅक्साइड, जल में अल्प विलेय और अल्प क्षारीय होते हैं। अन्य धातुओं के आॅक्साइड जल में नहीं घुलते और उनके हाइड्राॅक्साइड परोक्ष रीतियों से ही बनाए जाते हैं। धातुओं के आॅक्साइड और हाइड्राॅक्साइड क्षारक होते हैं। क्षार धातुओं के आॅक्साइड जल में शीघ्र घुल जाते हैं। कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में कम विलेय होते हैं और कुछ धातुओं के आॅक्साइड जल में ज़रा भी विलेय नहीं हैं। कुछ अधातुओं के हाइड्राइड, जैसे नाइट्रोजन और फाॅस्फोरस के हाइड्राइड (क्रमश: अमोनिया और फाॅस्फीन) भी भस्म होते हैं। .

नई!!: आमाशयार्ति और क्षार · और देखें »

अम्ल

अम्ल एक रासायनिक यौगिक है, जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन (H+) देता है। इसका pH मान 7.0 से कम होता है। जोहान्स निकोलस ब्रोंसटेड और मार्टिन लॉरी द्वारा दी गई आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करता है। जैसे- एसीटिक अम्ल (सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल (बैटरी में).

नई!!: आमाशयार्ति और अम्ल · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

गैस्ट्राइटिस

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »