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आणुविक स्व-संयोजन

सूची आणुविक स्व-संयोजन

foldamer का आणुविक स्व-संयोजन, जा़न-मारी लैह्न और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Helv. Chim. Acta., 2003, 86, 1598-1624.) किसी भी प्रणाली या यंत्र को बनाने की प्रक्रिया यदी वह प्रणाली खुद ही जान ले, तो वह अपने ही नकशे पर प्रतिलिपिकरण कर सकती है। आणुविक स्तर पर कोशिकाओं के अन्दर डी एन ए के नकशे की बदोलत सम्पूर्ण कोशिका का स्व-संयोजन हो जाता है। न सिर्फ यह, शरीर के लिये महत्वपूर्ण प्रोटीन का निर्माण भी यूँ ही होता है। इस प्राकृतिक प्रतिभास का प्रयोग यदी जान लिया जाये, तो आणुविक पैमाना पर यंत्र बनाये जा सकेंगे। इन प्रणालियों पर अध्ययन शुरू हुआ नैनोतकनीकी जैसे शास्त्रों के विकास से। गैर सह-संयुज बोन्डिंग से दिष्ट आणुविक संयोजन किया जा सकता है। विशाल अणुकण के निर्माण इस ही तरह से होता है। श्रेणी:रासायनिक अभियान्त्रिकी श्रेणी:विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र.

4 संबंधों: डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल, नैनोप्रौद्योगिकी, प्रोटीन, विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र

डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल

डीएनए के घुमावदार सीढ़ीनुमा संरचना के एक भाग की त्रिविम (3-D) रूप डी एन ए जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डी एन ए कहते हैं। इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है। डी एन ए अणु की संरचना घुमावदार सीढ़ी की तरह होती है। डीएनए की एक अणु चार अलग-अलग रास वस्तुओं से बना है जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते है। हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वस्तु है। इन चार न्यूक्लियोटाइडोन को एडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शक्कर भी पाया जाता है। इन न्यूक्लियोटाइडोन को एक फॉस्फेट की अणु जोड़ती है। न्यूक्लियोटाइडोन के सम्बन्ध के अनुसार एक कोशिका के लिए अवश्य प्रोटीनों की निर्माण होता है। अतः डी इन ए हर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है। डीएनए आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में होता है। एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है। जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है। उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है। आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं। डी एन ए की रूपचित्र की खोज अंग्रेजी वैज्ञानिक जेम्स वॉटसन और के द्वारा सन १९५३ में किया गया था। इस खोज के लिए उन्हें सन १९६२ में नोबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया। .

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नैनोप्रौद्योगिकी

नैनोतकनीक या नैनोप्रौद्योगिकी, व्यावहारिक विज्ञान के क्षेत्र में, १ से १०० नैनो (अर्थात 10−9 m) स्केल में प्रयुक्त और अध्ययन की जाने वाली सभी तकनीकों और सम्बन्धित विज्ञान का समूह है। नैनोतकनीक में इस सीमा के अन्दर जालसाजी के लिये विस्तृत रूप में अंतर-अनुशासनात्मक क्षेत्रों, जैसे व्यावहारिक भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, अर्धचालक भौतिकी, विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र (जो रासायन शास्त्र के क्षेत्र में अणुओं के गैर कोवलेन्त प्रभाव पर केन्द्रित है), स्वयमानुलिपिक मशीनएं और रोबोटिक्स, रसायनिक अभियांत्रिकी, याँत्रिक अभियाँत्रिकी और वैद्युत अभियाँत्रिकी.

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प्रोटीन

रुधिरवर्णिका(हीमोग्लोबिन) की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जन्तुओं के शरीर के लिए कुछ आवश्यक प्रोटीन एन्जाइम, हार्मोन, ढोने वाला प्रोटीन, सिकुड़ने वाला प्रोटीन, संरचनात्मक प्रोटीन एवं सुरक्षात्मक प्रोटीन हैं। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं इन्जाइम के रूप में शरीर की जैवरसायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे ऊर्जा भी मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को ४.१ कैलीरी ऊष्मा प्राप्त होती है। प्रोटीन द्वारा ही प्रतिजैविक (एन्टीबॉडीज़) का निर्माण होता है जिससे शरीर प्रतिरक्षा होती है। जे.

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विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र

विशाल अणुकणिका संयोजन का एक उदाहरण, जा़न-मारी लैह्न और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Angew. Chem., Int. Ed. Engl. 1996, 35, 1838-1840.) cucurbit10uril डे और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Angew. Chem. Int. Ed., 2002, 275-277.) विशाल-अणुकणिका रासायन शास्त्र, रसायन शास्त्र का वह शाखा़ है, जिसमे अणुकणिकाओं के बीच गैर सह-संयुज बोन्डिंग का अध्ययन किया जाता है। सामान्य तौर पर रसायन शास्त्र में ध्यान सह-संयुज बोन्डिंग पर रहा है, किन्तु विशाल-अणुकणिका रासायन शास्त्र में ध्यान अणुकणिकाओं के बीच शक्तिहीन और उत्त्क्रमात्मक अंतःक्रियाओं पर होता है। ये शक्तियाँ हैं हाइड्रोजन बाँड, धातु तालमेल, जल विरोधी बल, वॉन डर वॉल बल, pi-pi अंतःक्रिया और स्थिरविद्युत प्रभावें। यह शास्त्र महत्वपूर्ण सिद्धांतों का स्पष्टीकरण करता है, जैसे कि आणुविक स्व-संयोजन, रासायनिक बलन, आणुविक अभिज्ञान, परिचारक-अतिथि रसायन, यांत्र-आलिंगित आणुविक ढांचे और गतिक संयुज रसायन। गैर सह-संयुज का अध्ययन आवश्यक है जैविक प्रकृयाओं को समझने के लिये। इस अनुसन्धान में जीवाणु ही अकसर प्रयोगशालाएँ होंतीं हैं। इन प्रकृयाओं से नये तकनीकों के आविष्कार के लिये, जिनका प्रयोग नैनोतकनीकी मे किया जा सकता है। .

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