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दशवैकालिक

सूची दशवैकालिक

दशवैकालिक आचार्य शय्यम्भव की निर्यूहणकृति है, वे श्रुतकेवली थे, उन्होंने विभिन्न पूर्वों से दशवैकालिक निर्यूहण किया। इसमें १० अध्याय हैं, इसकी रचना विकाल में पूर्ण हुई थी। दशवैकालिक में मुख्य रूप से धर्मका स्वरूप साधु की भिक्षाचर्या, श्रामण्य की पूर्व भूमिका भाषाशुद्धि, विनय समाधि आदि का सुंदर विवेचन हुआ है। .

4 संबंधों: दशवैकालिक, धर्म, श्रुतकेवली, साधु

दशवैकालिक

दशवैकालिक आचार्य शय्यम्भव की निर्यूहणकृति है, वे श्रुतकेवली थे, उन्होंने विभिन्न पूर्वों से दशवैकालिक निर्यूहण किया। इसमें १० अध्याय हैं, इसकी रचना विकाल में पूर्ण हुई थी। दशवैकालिक में मुख्य रूप से धर्मका स्वरूप साधु की भिक्षाचर्या, श्रामण्य की पूर्व भूमिका भाषाशुद्धि, विनय समाधि आदि का सुंदर विवेचन हुआ है। .

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धर्म

धर्मचक्र (गुमेत संग्रहालय, पेरिस) धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को गुण भी कह सकते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं। पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है प्रकाश, उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। पदार्थ हो या मानव पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे मानव या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए पानी, अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है। धर्म और सम्प्रदाय में मूलभूत अंतर है। धर्म का अर्थ जब गुण और जीवन में धारण करने योग्य होता है तो वह प्रत्येक मानव के लिए समान होना चाहिए। जब पदार्थ का धर्म सार्वभौमिक है तो मानव जाति के लिए भी तो इसकी सार्वभौमिकता होनी चाहिए। अतः मानव के सन्दर्भ में धर्म की बात करें तो वह केवल मानव धर्म है। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। (पालि: धम्म) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई तुल्य शब्द पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। .

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श्रुतकेवली

श्रुतकेवली, श्रुतज्ञान अर्थात् शास्त्रों के पूर्ण ज्ञाता होते हैं। श्रुतकेवली और केवली, ज्ञान की दृष्टि से दोनों समान हैं, लेकिन श्रुतज्ञान परोक्ष और केवल ज्ञान प्रत्यक्ष होता है। केवलियों को जितना ज्ञान होता है उसके अतनवें भाग का वे प्ररूपण कर सकते हैं और जितना वे प्ररूपण करते हैं उसका अनंतवाँ भाग शास्त्रों में संकलित किया जाता है। इसलिए केवलज्ञान से श्रुतज्ञान अनंतवें भाग का भी अनंतवाँ भाग है। श्रुतकेवली १४ पूर्वों के पाठी होते हैं। महावीर स्वामी के निर्वाण के पश्चात् गौतम, सुधर्मा और जंबूस्वामी, ये तीन केवली हुए। जंबूस्वामी के बाद दिगंबर परंपरा के अनुसार विष्णु, नंदि, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबहु तथा श्वेतांबर परंपरा के अनुसार प्रभव, शय्यंभव, वशोभद्र, सभूतविजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र नाम के छह श्रुतकेवली हुए। स्थूलभद्र को श्रुतकेवलियों में न गिनने से श्वेतांबर संप्रदाय के अनुसार पांच ही श्रुतकेवली माने गए हैं। .

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साधु

साधु, संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ 'सज्जन व्यक्ति' से है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कहा है- 'साध्नोति परकार्यमिति साधुः' (जो दूसरे का कार्य कर देता है, वह साधु है।)। वर्तमान समय में साधु उनको कहते हैं जो सन्यास दीक्षा लेकर गेरुए वस्त्र धारण करते है उन्हें भी साधु कहा जाने लगा है। साधु(सन्यासी) का मूल उद्देश्य समाज का पथप्रदर्शन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करना है। साधु सन्यासी गण साधना, तपस्या करते हुए वेदोक्त ज्ञान को जगत को देते है और अपने जीवन को त्याग और वैराग्य से जीते हुए ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाते है। .

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