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आगा खां

सूची आगा खां

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8 संबंधों: पुणे, आग़ा ख़ाँ चतुर्थ, आग़ा ख़ान सांस्कृतिक ट्रस्ट, आगा खान पैलेस, आगा खां, आगा खां तृतीय, आगा खां द्वितीय, आगा खां प्रथम

पुणे

पुणे भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। यह शहर महाराष्ट्र के पश्चिम भाग, मुला व मूठा इन दो नदियों के किनारे बसा है और पुणे जिला का प्रशासकीय मुख्यालय है। पुणे भारत का छठवां सबसे बड़ा शहर व महाराष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। सार्वजनिक सुखसुविधा व विकास के हिसाब से पुणे महाराष्ट्र मे मुंबई के बाद अग्रसर है। अनेक नामांकित शिक्षणसंस्थायें होने के कारण इस शहर को 'पूरब का ऑक्सफोर्ड' भी कहा जाता है। पुणे में अनेक प्रौद्योगिकी और ऑटोमोबाईल उपक्रम हैं, इसलिए पुणे भारत का ”डेट्राइट” जैसा लगता है। काफी प्राचीन ज्ञात इतिहास से पुणे शहर महाराष्ट्र की 'सांस्कृतिक राजधानी' माना जाता है। मराठी भाषा इस शहर की मुख्य भाषा है। पुणे शहर मे लगभग सभी विषयों के उच्च शिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। पुणे विद्यापीठ, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, आयुका, आगरकर संशोधन संस्था, सी-डैक जैसी आंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थान यहाँ है। पुणे फिल्म इन्स्टिट्युट भी काफी प्रसिद्ध है। पुणे महाराष्ट्र व भारत का एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है। टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज जैसे उत्पादनक्षेत्र के अनेक बड़े उद्योग यहाँ है। 1990 के दशक मे इन्फोसिस, टाटा कंसल्टंसी सर्विसे, विप्रो, सिमैंटेक, आइ.बी.एम जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेअर कंपनियों ने पुणे मे अपने केंन्द्र खोले और यह शहर भारत का एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी उद्योगकेंद्र के रूप मे विकसित हुआ। .

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आग़ा ख़ाँ चतुर्थ

शाह करीम अल-हुस्सैनी, आगा खां चतुर्थ, (سمو الأمیر شاہ کریم الحسیني آغا خان الرابع) (जन्म: १३ दिसम्बर १९३६) शिया इमामी इस्मायली मुस्लिम के ४९वें और वर्तमान इमाम हैं। ये इस उपाधि को ११ जुलाई, १९५७ से ग्रहण किये हुए हैं। तब ये २० वर्ष के थे और अपने पितामह, सर सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खां के उत्तराधिकारी हुए। .

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आग़ा ख़ान सांस्कृतिक ट्रस्ट

250px आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट (अंग्रेज़ी: आगा खां ट्रस्ट फ़ॉर कल्चर, लघु:ए.के.टी.सी) आगा खां डवलपमेंट नेटवर्क के अधीन एक संस्था है। ये संस्था मुस्लिम समाज की इमारतों व समुदायों के भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक सुधार हेतु कार्यरत है। इस संस्था की स्थापना १९८८ में हुई व पंजीकरण जेनेवा में हुआ था। यह एक निजि गैर सांप्रदायिक परोपकारी संस्था थी। यह संस्था आगा खां डवलपमेंट नेटवर्क का एक अभिन्न अंग है, जिसकी स्थापना आगा खां चतुर्थ ने की थी। .

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आगा खान पैलेस

आगा खान पैलेस पुणे के येरावाड़ा मे स्थित एक एतिहासिक भवन है। सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान द्वितीय ने १८९२ मे बनवाया था। इस भवन मे महात्मा गाँधी को उनके अन्य सहयोगीयो से साथ सन १९४० मे बंदी बना कर रखा गया था। कस्तूरबा गांधी का निधन इसी भवन मे हुआ था। उनकी समाधी भी यहॉ स्थित है। अब यह भवन एक संग्राहलय है। यह स्मारक ६.५ हेक्टेयर में फैला हुआ है। १८९२ में शाह आगा खां तृतीय ने इसे बनवाया था। १९५६ तक यह भवन उनका महल रहा। १९६९ में, आगा खां चतुर्थ ने इसे भारत सरकार को दान दे दिया था।। ट्रेन एंक्वायरी महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी और महात्मा जी के सचिव महादेवभाई देसाई 2 साल तक यहां रहे और इसी प्रवास के दौरान उनकी मृत्यु हुई थी। उनकी अस्थियां स्मारक के बागीचे में रखी गई हैं। गांधी जी के जीवन पर एक फोटो-प्रदर्शनी और उनकी व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुएं जैसे उनकी चप्पलें और चश्मे यहां रखे गए हैं। .

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आगा खां

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आगा खां तृतीय

सुल्तान सर मुहम्मद शाह, आगा खां तृतीय, मूल नाम: सुल्तान सर मुहम्मद शाह,48वां इमाम (अरवी: سيدي سلطان محمد شاه، الآغاخان الثالث जन्म:2 नवम्बर 1877, जन्म स्थान: वर्तमान कराची, पाकिस्तान, मृत्यु: 11 जुलाई 1957, वरसोई, स्विट्जरलैंड), शियाओं के निजरी इसमाईली मत के आध्यात्मिक नेता। ये आगा खान द्वितीय के एकलौते बेटे थे। 1885 में अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में वह निजारी इस्माईली संप्रदाय के इमाम बने। .

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आगा खां द्वितीय

अली शाह, आगा खां द्वितीय, मूल नाम अली शाह,47वां इमाम (अरवी: علي شاه، الآغا خان الثاني जन्म: 1885, जन्म स्थान: वर्तमान पुणे, भारत), शियाओं के निजरी इसमाईली मत के आध्यात्मिक नेता। ये आगा खां प्रथम के ज्येष्ठ पुत्र थे, शियाओं के निजारी इसमाईली संप्रदाय के इमाम या आध्यात्मिक नेता के रूप में पिता के उत्तराधिकारी थे। इमाम के अपने छोटे से कार्यकाल में उन्होने अपने समुदाय की दशा सुधारने के प्रयास किए। .

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आगा खां प्रथम

हसन अली शाह, आगा खां प्रथम, मूल नाम हसन अली शाह, ४६वां इमाम (अरवी: حسن علي شاه آغا خان 1 जन्म: 1800, मृत्यु: 1881), शियाओं के निजरी इसमाईली मत के आध्यात्मिक नेता। वे खुद को पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा और दामाद अली तथा मिस्त्र के फातिमी खलीफाओं का बंशज बताते थे। वे ईरान के केरमान प्रांत के प्रशासक थे और फतह अली शाह के प्रिय पात्र थे। ईरान के शाह ने 1818 में उन्हें आगा खां (मुख्य सेनापति) की उपाधि प्रदान की। मुहम्मद शाह के शासन काल में उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि उनकी पारिवारिक प्रतिष्ठा घटती जा रही है और उन्होने 1828 में विद्रोह कर दिया। वे हार गए और भागकर भारत आ गए। उन्होने प्रथम आंग्ल- अफगान युद्ध (1839-42) और सिंध की विजय (1842-43) में अंग्रेजों को मदद दी। उन्हें वजीफा प्रदान किया गया और वह बंबई (वर्तमान मुंबई) में बस गए। उन्हें अपने आध्यात्मिक अधिकार क्षेत्र के विरोध और सामुदायिक कोष पर अपने अधिकार के खिलाफ कानूनी मुकदमे के रूप में कुछ अनुयायियों का कुछ विरोध सहना पड़ा, लेकिन वे अपना मुकदमा (1886) जीत गए। .

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