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आखेटि पतंग

सूची आखेटि पतंग

आखेटि पतंग आखेटि पतंग (Ichneumon wasp या इक्नुमन फ़्लाइ) छोटे, बहुधा चटकीले रंगोंवाले, क्रियाशील कीट (इंसेक्ट) हैं। चीटियों, मधुमक्खियों तथा बर्रों से इनका निकट संबंध है। प्राय: इन्हें धूप से प्रेम होता है। इनके पूर्वोक्त संबंधियों और इनमें यह भेद है कि प्रौढ़ होने पर ही ये स्वतंत्र जीवन व्यतीत करते हैं। अपरिपक्व अवस्था में ये पूर्णत: परजीवी होते हैं। तब तक विविध प्रकार के कीटों के शरीर के ऊपर या भीतर रहकर, उन्हीं से भोजन और आश्रय पाते हैं तथा अंत में उनके प्राण ले लेते हैं। प्रौढ़ स्त्री आखेटि पतंग अंडे या तो आश्रयदाता कीट के शरीर के ऊपर देती है या अपने अंडरोपक (ओविपॉज़िटर) की सहायता से इन्हें उसकी त्वचा के नीचे घुसेड़ देती है। अंडरोपक एक प्रकार का रूपांतरित डंक होता है जो आश्रय देनेवाले कीट की चमड़ी को छेदकर उसके भीतर अंडे डालने में सहायता देता है। आश्रय देनेवाले कीट के शरीर के भीतर आखेटिपतंग डिंभ (लार्वी) प्राय: सैकड़ों की संख्या में होते हैं।; ये शनै:-शनै: उसके शरीर के कोमल पदार्थ को खा जाते हैं तथा अंत में केवल उसकी खाल रह जाती है और इस तरह वह मर जाता है। इन डिंभों में प्राय: टाँगें नहीं होतीं तथा ये श्वेत या पीले रंग के होते हैं। जब ये पूरे बड़े हो जाते हैं तो आश्रय देनेवाले जीव की मृत देह पर अपने चारों ओर एक रेशमी कोवा (कोकून) बना लेते हैं तथा आखेटि पतंग बनकर निकलने के पूर्व वे शंखी (प्यूपा) की अवस्था में रहते हैं। .

3 संबंधों: चींटी, मधुमक्खी, कीट

चींटी

चींटी एक सामाजिक कीट है। इसकी 12000 से अधिक जातियों का वर्गीकरण किया जा चुका है। .

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मधुमक्खी

मधुमक्खी मधुमक्खी के छाते मधुमक्खी कीट वर्ग का प्राणी है। मधुमक्खी से मधु प्राप्त होता है जो अत्यन्त पौष्टिक भोजन है। यह संघ बनाकर रहती हैं। प्रत्येक संघ में एक रानी, कई सौ नर और शेष श्रमिक होते हैं। मधुमक्खियाँ छत्ते बनाकर रहती हैं। इनका यह घोसला (छत्ता) मोम से बनता है। इसके वंश एपिस में 7 जातियां एवं 44 उपजातियां हैं। .

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कीट

एक टिड्डा कीट अर्थोपोडा संघ का एक प्रमुख वर्ग है। इसके 10 लाख से अधिक जातियों का नामकरण हो चुका है। पृथ्वी पर पाये जाने वाले सजीवों में आधे से अधिक कीट हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि कीट वर्ग के 3 करोड़ प्राणी ऐसे हैं जिनको चिन्हित ही नहीं किया गया है अतः इस ग्रह पर जीवन के विभिन्न रूपों में कीट वर्ग का योगदान 90% है। ये पृथ्वी पर सभी वातावरणों में पाए जाते हैं। सिर्फ समुद्रों में इनकी संख्या कुछ कम है। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण कीट हैं: एपिस (मधुमक्खी) व बांबिक्स (रेशम कीट), लैसिफर (लाख कीट); रोग वाहक कीट, एनाफलीज, क्यूलेक्स तथा एडीज (मच्छर); यूथपीड़क टिड्डी (लोकस्टा); तथा जीवीत जीवाश्म लिमूलस (राज कर्कट किंग क्रेब) आदि। .

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