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अवस्था-समष्टि

सूची अवस्था-समष्टि

अवस्था-समष्टि निरूपण (state space representation), गतिकीय तन्त्रों के कई प्रकार के निरूपणों में से एक है। वस्तुतः यह समय-क्षेत्र निरूपण (time domain representation) है और बहु-इनपुट तथा बहु-आउटपुट (MIMO) गतिक तंत्रों के नियन्त्रण से सम्बन्धित विवेचन के लिये विशेष रूप से उपयोगी है। इसके अलावा यह अरैखिक तंत्रों और काल-परिवर्ती तंत्रों (time-variable systems) के विश्लेषण तथा संश्लेषण के लिये भी उपयोगी है। तंत्रों के निरूपण की इस पद्धति में तंत्र के अवस्था चरों (state variables), इनपुट तथा आउटपुट को प्रथम क्रम (फर्स्ट ऑर्डर) के अवकल समीकरणों द्वारा निरूपित किया जाता है। अवस्था क्षेत्र मोडेल में दो समीकरण होते हैं - अवस्था समीकरण तथा आउटपुट समीकरण। .

3 संबंधों: गतिकीय तन्त्र, अवस्था प्रेक्षक, अवकल समीकरण

गतिकीय तन्त्र

चक्र द्विभाजन आरेख गतिकीय तन्त्र (Dynamical system) ऐसी प्रक्रिया या गणितीय मॉडल जिसमें निहित चरों (स्टेट्स या अवस्थाएं) का मान समय पर निर्भर करता है तथा जिसमें निम्नलिखित दो गुण होते हैं.

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अवस्था प्रेक्षक

अवस्था प्रेक्षक की संरचना लुएनबर्गर का अवस्था प्रेक्षक का ब्लॉक आरेख नियंत्रण सिद्धान्त में, अवस्था प्रेक्षक (state observer या state estimator) वह तन्त्र है जो किसी तन्त्र के इनपुट एवं आउटपुट का मापन करके उसके आन्तरिक अवस्थाओं (स्टेट्स) का आकलन प्रस्तुत करता है। इसका क्रियान्वयन प्रायः कम्प्यूटर द्वारा किया जाता है। बहुत से व्यावहारिक कन्ट्रोल अनुप्रयोगों में अवस्था प्रेक्षक बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। अवस्था प्रेक्षक की आवश्यकता इसलिये पड़ती है क्योंकि बहुत से तन्त्रों के अवस्थायें (स्टेट्स) सीधे मापन द्वारा उपलब्ध नहीं होते अतः अवस्था फीडबैक (स्टेट फीडबैक) सम्भव नहीं होता। इस समस्या का हल अवस्था प्रेक्षक की डिजाइन द्वारा की जाती है। अर्थात अवस्था प्रेक्षक एक अलग से डिजाइन किया गया तन्त्र है जो उस तन्त्र की अवस्थाओं को गणना के द्वारा निकालकर प्रस्तुत करता है, जिअका उपयोग स्टेट फीडबैक में किया जता है। .

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अवकल समीकरण

अवकल समीकरण (डिफरेंशियल ईक्वेशंस) उन संबंधों को कहते हैं जिनमें स्वतंत्र चर तथा अज्ञात परतंत्र चर के साथ-साथ उस परतंत्र चर के एक या अधिक अवकल गुणांक (डिफ़रेंशियल कोइफ़िशेंट्स) हों। यदि इसमें एक परतंत्र चर तथा एक ही स्वतंत्र चर भी हो तो संबंध को साधारण (ऑर्डिनरी) अवकल समीकरण कहते हैं। जब परतंत्र चल तो एक परंतु स्वतंत्र चर अनेक हों तो परतंत्र चर के खंडावकल गुणक (partial differentials) होते हैं। जब ये उपस्थित रहते हैं तब संबंध को आंशिक (पार्शियल) अवकल समीकरण कहते हैं। परतंत्र चर को स्वतंत्र चर के पर्दो में व्यंजित करने को अवकल समीकरण का हल करना कहा जाता है। यदि अवकल समीकरण में nवीं कक्षा (ऑर्डर) का अवकल गुणक हो और अधिक का नहीं, तो अवकल समीकरण nवीं कक्षा का कहलाता है। उच्चतम कक्षा के अवकल गुणक का घात (पॉवर) ही अवकल समीकरण का घात कहलाता है। घात ज्ञात करने के पहले समीकरण को भिन्न तथा करणी चिंहों से इस प्रकार मुक्त कर लेना चाहिए कि उसमें अवकल गुणकों पर कोई भिन्नात्मक घात न हो। अवकल समीकरण का अनुकलन सरल नहीं है। अभी तक प्रथम कक्षा के वे अवकल समीकरण भी पूर्ण रूप से हल नहीं हो पाए हैं। कुछ अवस्थाओं में अनुकलन संभव हैं, जिनका ज्ञान इस विषय की भिन्न-भिन्न पुस्तकों से प्राप्त हो सकता है। अनुकलन करने की विधियाँ सांकेतिक रूप में यहाँ दी जाती हैं। प्रयुक्त गणित, भौतिक विज्ञान तथा विज्ञान की अन्य शाखाओं में भौतिक राशियों को समय, स्थान, ताप इत्यादि स्वतंत्र चलों के फलनों में तुरंत प्रकट करना प्राय: कठिन हो जाता है। परंतु हम उनकी वृद्धि की दर तथा उसके अवकल गुणकों में कोई संबंध बहुधा बड़ी सुगमता से पा सकते हैं। इस प्रकार ऐसे अवकल समीकरण प्राप्त होते हैं जिन्हें पूर्वोक्त राशियाँ संतुष्ट करती हैं। इन्हें हल करना उन राशियों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है। इसलिए विज्ञान की उन्नति बहुत अंश तक अवकल समीकरण की प्रगति पर निर्भर है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

स्टेट स्पेस, अवस्था क्षेत्र

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