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अल्टरनेटर

सूची अल्टरनेटर

अल्टरनेटर का कार्य-सिद्धान्त अल्टरनेटर प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करने वाला विद्युत जनित्र है। वस्तुतः यह एक तुल्यकालिक मशीन है। वर्तमान समय में अधिकांश शक्ति संयंत्रों में विद्युत उत्पादन का कार्य अलटरनेटर ही करते हैं। समय के साथ साथ बहुत बड़े बड़े आकार के अलटरनेटर बनने लगते हैं। ५०,००० से १,५०,००० किलोवाट की क्षमतावाले जनित्र अब सामान्य हो गए हैं। ये निरंतर प्रवर्तन करनेवाली मशीनें हैं, इसलिए इनकी संरचना भी अत्यंत मानक आधार (exacting standards) पर होती है। मुख्यत:, यह स्वत: कार्यकारी मशीन होती है और इसके सारे प्रवर्तन दूरस्थ नियंत्रण (remote control) द्वारा नियंत्रित किए जा सकते हैं। क्षेत्र धारा के विचरण से वोल्टता नियंत्रण सुगमता से किया जा सकता है। भार के अनुरूप निवेश (input) स्वयं ही नियंत्रित हो जाता है। इन सब कारणों से वर्तमान विद्युत् जनित्र बहुत ही दक्ष एवं विश्वसनीय होते हैं। वास्तव में इनके विश्वसनीय प्रवर्तन के कारण ही विद्युत् संभरण को विश्वसनीय बनाया जाना संभव हो सका है। .

5 संबंधों: तुल्यकालिक मोटर, दिष्टधारा विद्युतजनित्र, प्रत्यावर्ती धारा, जेनरेटर, आर्मेचर

तुल्यकालिक मोटर

त्रिफेजी तुल्यकालिक मोटर के रोटर का घूमना: स्टेटर में एक घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र बनता है जो तीनों वाइण्डिग्स के द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के योग के बराबर होता है। त्रिफेजी तुल्यकालिक मोटर का टॉर्क-स्पीड वक्र त्रिफेजी तुल्यकालिक मोटर के रोटर का घूमना: स्टेटर में एक घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र बनता है जो तीनों वाइण्डिग्स के द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के योग के बराबर होता है। त्रिफेजी तुल्यकालिक मोटर का टॉर्क-स्पीड वक्र तुल्यकालिक मोटर या सिन्क्रोनस मोटर प्रत्यावर्ती धारा से चलने वाली विद्युत मोटर है। इसका नाम तुल्याकालिका मोटर या सिन्क्रोनस मोटर इस कारण है क्योंकि इसके रोटर की घूर्णन गति ठीक-ठीक उतनी ही होती है जितनी स्टेटर में निर्मित घूर्णी चुम्बकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) की गति होती है। इस मोटर का उपयोग प्रायः किसी लोड को घुमाने में नहीं किया जाता बल्कि शक्ति गुणांक को सुधारने में किया जाता है। विशेष स्थितियों में इसका उपयोग लोड चलाने में भी किया जाता है। सिन्क्रोनस चाल, जहाँ.

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दिष्टधारा विद्युतजनित्र

विद्युत ऊर्जा के जनन का सरल चित्रण दिष्टधारा विद्युतजनित्र यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में बदलने वाली विद्युत मशीन है। इसे 'डायनेमो' (Dynamo) भी कहते हैं। .

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प्रत्यावर्ती धारा

प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जो किसी विद्युत परिपथ में अपनी दिशा बदलती रहती हैं। इसके विपरीत दिष्ट धारा समय के साथ अपनी दिशा नहीं बदलती। भारत में घरों में प्रयुक्त प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति ५० हर्ट्स होती हैं अर्थात यह एक सेकेण्ड में पचास बार अपनी दिशा बदलती है। वेस्टिंगहाउस का आरम्भिक दिनों का प्रत्यावर्ती धारा निकाय प्रत्यावर्ती धारा या पत्यावर्ती विभव का परिमाण (मैग्निट्यूड) समय के साथ बदलता रहता है और वह शून्य पर पहुंचकर विपरीत चिन्ह का (धनात्मक से ऋणात्मक या इसके उल्टा) भी हो जाता है। विभव या धारा के परिमाण में समय के साथ यह परिवर्तन कई तरह से सम्भव है। उदाहरण के लिये यह साइन-आकार (साइनस्वायडल) हो सकता है, त्रिभुजाकार हो सकता है, वर्गाकार हो सकता है, आदि। इनमें साइन-आकार का विभव या धारा का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। आजकल दुनिया के लगभग सभी देशों में बिजली का उत्पादन एवं वितरण प्रायः प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है, न कि दिष्ट-धारा (डीसी) के रूप में। इसका प्रमुख कारण है कि एसी का उत्पादन आसान है; इसके परिमाण को बिना कठिनाई के ट्रान्सफार्मर की सहायता से कम या अधिक किया जा सकता है; तरह-तरह की त्रि-फेजी मोटरों की सहायता से इसको यांत्रिक उर्जा में बदला जा सकता है। इसके अलावा श्रव्य आवृत्ति, रेडियो आवृत्ति, दृश्य आवृत्ति आदि भी प्रत्यावर्ती धारा के ही रूप हैं। .

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जेनरेटर

बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों का अल्टरनेटर, जो बुडापेस्ट में बना हुआ है। विद्युत जनित्र (एलेक्ट्रिक जनरेटर) एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने के काम आती है। इसके लिये यह प्रायः माईकल फैराडे के विद्युतचुम्बकीय प्रेरण (electromagnetic induction) के सिद्धान्त का प्रयोग करती है। विद्युत मोटर इसके विपरीत विद्युत उर्जा को यांत्रिक उर्जा में बदलने का कार्य करती है। विद्युत मोटर एवं विद्युत जनित्र में बौत कुछ समान होता है और कई बार एक ही मशीन बिना किसी परिवर्तन के दोनो की तरह कार्य कर सकती है। विद्युत जनित्र, विद्युत आवेश को एक वाह्य परिपथ से होकर प्रवाहित होने के लिये वाध्य करता है। लेकिन यह आवेश का सृजन नहीं करता। यह जल-पम्प की तरह है जो केवल जल-को प्रवाहित करने का कार्य करती है, जल पैदा नहीं करती। विद्युत जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन के लिये आवश्यक है कि जनित्र के रोटर को किसी बाहरी शक्ति-स्रित की सहायता से घुमाया जाय। इसके लिये रेसिप्रोकेटिंग इंजन, टर्बाइन, वाष्प इंजन, किसी टर्बाइन या जल-चक्र (वाटर्-ह्वील) पर गिरते हुए जल, किसी अन्तर्दहन इंजन, पवन टर्बाइन या आदमी या जानवर की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। किसी भी स्रोत से की गई यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित करना संभव है। यह ऊर्जा, जलप्रपात के गिरते हुए पानी से अथवा कोयला जलाकर उत्पन्न की गई ऊष्मा द्वारा भाव से, या किसी पेट्रोल अथवा डीज़ल इंजन से प्राप्त की जा सकती है। ऊर्जा के नए नए स्रोत उपयोग में लाए जा रहे हैं। मुख्यत:, पिछले कुछ वर्षों में परमाणुशक्ति का प्रयोग भी विद्युत्शक्ति के लिए बड़े पैमाने पर किया गया है और बहुत से देशों में परमाणुशक्ति द्वारा संचालित बिजलीघर बनाए गए हैं। ज्वार भाटों एवं ज्वालामुखियों में निहित असीम ऊर्जा का उपयोग भी विद्युत्शक्ति के जनन के लिए किया गया है। विद्युत्शक्ति के उत्पादन के लिए इन सब शक्ति साधनों का उपयोग, विशालकाय विद्युत् जनित्रों द्वारा ही हाता है, जो मूलत: फैराडे के 'चुंबकीय क्षेत्र में घूमते हुए चालक पर वेल्टता प्रेरण सिद्धांत पर आधारित है। .

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आर्मेचर

डी सी मोटर की आर्मेचर (कम्युटेतर सहित) विद्युत इंजीनियरी में आर्मेचर (armature), विद्युत मशीनों का मुख्य भाग है। विद्युत-यांत्रिक मशीनों या विद्युत-मशीनों के दो मुख्य भागों में से एक को आर्मेचर कहते हैं। किन्तु स्थायी चुम्बक या विद्युत चुम्बक के पोल पीस (pole piece) को भी आर्मेचर कहा जाता है। इसी प्रकार परिनालिका या रिले के लोहे से निर्मित चलायमान भाग को भी आर्मेचर कहते हैं। श्रेणी:विद्युत मशीनें.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सिन्क्रोनस जनित्र

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