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अलवर के पर्यटन स्थल

सूची अलवर के पर्यटन स्थल

मोती डुंगरी से रेलवे लाइन की तरफ चलने पर आर.आर.

8 संबंधों: पूर्जन विहार, फतहगंज का मकारा, बाल किला, अलवर, सिटी पैलेस, अलवर, सिलीसेड झील, जयसमंद, विजय मंदिर झील महल, कम्पनी बाग, अलवर

पूर्जन विहार

मोती डुंगरी से रेलवे लाइन की तरफ चलने पर आर.आर.

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फतहगंज का मकारा

फतहगंज का मकबरा पांच मंजिला है और दिल्ली में स्थित अपनी समकालीन सभी इमारतों में सबसे उच्च कोटि का है। खूबसूरती के मामले में यह हूमांयु के मकबरे से भी सुन्दर है। यह भरतपुर रोड के नजदीक, रेलवे लाइन के पार पूर्व दिशा में स्थित हैं। यहां तक पहुंचने के लिए रेलवे लाइन के ऊपर एक पुल भी बनाया गया है। यह मकबरा एक बगीचे के बीच में स्थित है और इसमें एक स्कूल भी है। जो सुरक्षाकर्मी इस मकबरे की देखभाल करता है वह इसे कई बार 9 बजे से पहले भी खोल देता है। फतहगंज का मकबरा देखने के बाद रिक्शा से मोती डुंगरी पहुंचा जा सकता है। मोती डुंगरी का निर्माण 1882 में हुआ था। यह अलवर के शाही परिवारों का आवास था। यह 1928 तक शाही परिवारों का आवास रहा। महाराजा जयसिंह ने इसे तुडवाकर इसके स्थान पर इससे भी खूबसूरत इमारत बनवाने का फैसला किया। इस इमारत के लिए उन्होंने यूरोप से विशेष सामान मंगाया था लेकिन दुर्भाग्यवश जिस जहाज में सामान आ रहा था वह डूब गया। जहाज डुबने के साथ ही महाराज जयसिंह ने इस इमारत को बनवाने का इरादा छोड दिया। इमारत नहीं बनने का एक फायदा यह हुआ कि अब पर्यटक इस पहाडी पर बेरोक-टोक चढ सकते हैं और शहर के सुन्दर दुश्य का आनंद ले सकते हैं।.

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बाल किला, अलवर

सिटी पैलैस परिसर अलवर के पूर्वी छोर की शान है। इसके पर अरावली की पहाडियां है और इन पहाडियों पर बाल किला बना हुआ है। किले की दीवार पूरी पहाडी पर फैली हुई है जो हरे-भरे मैदानों से गुजरती है। पूरे अलवर शहर में यह सबसे पुरानी इमारत है। यह लगभग 928 ई में निकुम्भ राजपूतों द्वारा बनाई गई थी। अब इस किले में देखने लायक कुछ नहीं बचा है। इसके दरार हॉल में अब अलवर पुलिस का वायरलैस केन्द्र है। अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से यहां तक आना एक सुखद अनुभव है। पूरा सडक मार्ग अच्छे से बना हुआ है। इसके दोनों तरफ छायादार पेड लगे हुए हैं। रास्ते में पत्थरों की बनी दीवारें दिखाई देती हैं जो बहुत ही सुन्दर हैं। किले में जयपोल के रास्ते प्रवेश किया जा सकता है। यह सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। कर्णी माता के मंदिर का रास्ता यहीं से होकर जाता है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह मंगलवार और शनिवार की रात को 9 बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश करने के लिए आ पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं पडती। पर्यटकों को केवल संतरी के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना होता है। इसके बाद वह किले में घूम सकते हैं। आपातकाल के समय आप पर्यटक सुपरिटेण्डेन्ट के कार्यालय में फोन कर सकते हैं।.

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सिटी पैलेस, अलवर

सिटी पैलेस परिसर बहुत ही खूबसूरत है और इसके साथ-साथ बालकॉनी बनाने की योजना है। गेट के पीछे एक बडा मैदान है। इसी मैदान में कृष्ण मंदिर हैं। इसके बिल्कुल पीछे मूसी रानी की छतरी और अन्य दर्शनीय स्थल हैं। सुबह के समय जब सूर्य की पहली किरण सिटी पैलेस परिसर के मुख्य द्वार पडती है तो इसकी छटा देखने लायक होती है। हाल के दिनों में इसकी स्थिति दयनीय है। इस पूरी इमारत में सरकारी दफ्तरों का कब्‍जा है, मुख्य रूप से जिलाधीश और अलवर पुलिस के सुपरिटेण्डेन्ट का। इसका निर्माण 1793 में राजा बख्तावर सिंह ने कराया था। पर्यटक इसकी खूबसूरती की तारीफ किए बिना नहीं रह पाते। इस इमारत के सबसे ऊपरी तल पर संग्राहलय भी है। संग्राहलय दर्शन के लिए शुल्क देना पडता है। यह तीन हॉल्स में विभक्त है। पहले हॉल में शाही परिधान और मिट्टी के खिलौने रखें हुए है, इस हॉल का मुख्य आकर्षण महाराज जयसिंह की साईकिल है। यहां हर वस्तु बडे सुन्दर तरीके से सजाई गई है। दूसरे हॉल में मध्य एशिया के अनेक जाने-माने राजाओं के चित्र लगे हुए हैं। इस हॉल में तैमूर से लेकर औरंगजेब तक के चित्र लगे हुए हैं। तीसरे हॉल में आयुद्ध सामग्री को प्रदर्शित किया गया है। इस हॉल का मुख्य आकर्षण अकबर और जहांगीर की तलवारें हैं। संग्राहलय घूमने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, शुक्रवार को अवकाश सिटी पैलेस के बिल्कुल पीछे एक बडा जलाशय है। इसे सागर के नाम से जाना जाता है। यह बहुत ही खूबसूरत है और इसके चारों तरफ दो मंजिला खेमों का निर्माण किया गया है। तालाब के मुहाने तक सीढियां बनी हुई है। इस जलाशय का प्रयोग स्नान के लिए किया जाता था। जलाशय में कबूतरों को दाना खिलाना यहां की परंपरा रही है। जलाशय के साथ मंदिरो की एक श्रृंखला भी है। इसके दायीं तरफ राजा बख्तावर सिंह का स्मारक और शहीदों की याद में बनाया गया संगमरमर का स्मारक भी है। इसका नाम राजा बख्तावर सिंह की पत्नी मूसी रानी के नाम पर रखा गया है, जो राजा बख्तावर सिंह की चिता के साथ सती हो गई थी।.

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सिलीसेड झील

सिटी पैलैस परिसर अलवर के पूर्वी छोर की शान है। इसके पर अरावली की पहाडियां है और इन पहाडियों पर बाल किला बना हुआ है। किले की दीवार पूरी पहाडी पर फैली हुई है जो हरे-भरे मैदानों से गुजरती है। पूरे अलवर शहर में यह सबसे पुरानी इमारत है। यह लगभग 928 ई में निकुम्भ राजपूतों द्वारा बनाई गई थी। अब इस किले में देखने लायक कुछ नहीं बचा है। इसके दरार हॉल में अब अलवर पुलिस का वायरलैस केन्द्र है। अन्‍तर्राज्‍यीय बस अड्डे से यहां तक आना एक सुखद अनुभव है। पूरा सडक मार्ग अच्छे से बना हुआ है। इसके दोनों तरफ छायादार पेड लगे हुए हैं। रास्ते में पत्थरों की बनी दीवारें दिखाई देती हैं जो बहुत ही सुन्दर हैं। किले में जयपोल के रास्ते प्रवेश किया जा सकता है। यह सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। कर्णी माता के मंदिर का रास्ता यहीं से होकर जाता है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह मंगलवार और शनिवार की रात को 9 बजे तक खुला रहता है। किले में प्रवेश करने के लिए आ पुलिस सुपरिटेण्डेन्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं पडती। पर्यटकों को केवल संतरी के पास रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना होता है। इसके बाद वह किले में घूम सकते हैं। आपातकाल के समय आप पर्यटक सुपरिटेण्डेन्ट के कार्यालय में फोन कर सकते हैं। .

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जयसमंद

ढेबर झील या जयसमंद झील पश्चिमोत्तर भारत के दक्षिण-मध्य राजस्थान राज्य के अरावली पर्वतमाला के दक्षिण-पूर्व में स्थित एक विशाल जलाशय है। यह राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इस झील को एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील होने का गौरव प्राप्त है। यह उदयपुर जिला मुख्यालय से 51 कि॰मी॰ की दूरी पर दक्षिण-पूर्व की ओर उदयपुर-सलूम्बर मार्ग पर स्थित है। अपने प्राकृतिक परिवेश और बाँध की स्थापत्य कला की सुन्दरता से यह झील वर्षों से पर्यटकों के आकर्षण का महत्त्वपूर्ण स्थल बनी हुई है। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय मानसून के समय है। झील के साथ वाले रोड पर केन से बने हुए घर बड़ा ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। यह झील का सबसे सुन्दर दृष्य है। इसका निर्माण अलवर के महाराज जय सिंह ने 1910 में पिकनिक के लिए करवाया था। उन्होंने इस झील के बीच में एक टापू का निर्माण भी कराया था। .

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विजय मंदिर झील महल

विजय मंदिर झील महल राजस्थान के अलवर शहर में स्थित एक खूबसूरत महल है 1918 में बनाया गया था। यह महाराजा जयसिंह का आवासीय महल था। इस इमारत का ढांचा परंपरागत इमारतों से बिल्कुल अलग है। इसके अंदर एक राम मंदिर भी है। आजकल यह महल पारिवारिक झगडे के कारण बंद पडा हुआ है। महल सामने से पूरी तरह दिखाई नहीं देता लेकिन इसके पीछे वाली झील से इस महल का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। महल को देखने के बाद झील के साथ वाले मार्ग से बाल किला पहुंचा जा सकता है। ऑटो रिक्शा द्वारा इन दोनों स्थलों तक पहुंचा जा सकता है। पारिवारिक झगड़ों के कारण यह महल आजकल बंद पडा हुआ है। यहां पर्यटकों को घूमने की अनुमति नहीं है। .

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कम्पनी बाग, अलवर

कम्पनी बाग साल के बारह मास खुला रहता है। समर हाऊस में घूमने का समय सुबह 9 से शाम 5 बजे तक है। कम्पनी बाग देखने के बाद आप चर्च रोड की तरफ जा सकते हैं। यहां सेंट एन्ड्रयू चर्च है लेकिन यह अक्सर बंद रहता है। शाम के समय चर्च रोड पर बाजार लगता हैं। यहां काफी भीड-भाड रहती है। चर्च रोड घूमने के लिए सुबह का समय उपयुक्त है क्योंकि उस समय आप यहां की हवेलियों को अच्छी तरह देख सकते हैं। इस रोड के अंतिम छोर पर होप सर्कल है, यह शहर का सबसे व्यस्त स्थान है और यहां अक्सर ट्रैफिक जाम रहता है। इसके पास ही बहुत सारी दुकानें हैं और एक मंदिर भी है। होप सर्कल से सात गलियां विभिन्न स्थलों तक जाती है। चर्च रोड से पांचवी गली घंटाघर तक जाती है, वहीं पर कलाकंद बाजार भी है। यहीं से चौथी गली त्रिपोलिया गेटवे और सिटी पैलेस कॉम्पलेक्स तक जाती है। शहर से त्रिपोलिया की छटा देखने लायक होती है। इसके कोनों में अनेक छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। गेटवे से सिटी पैलेस की तरफ जाते हुए रास्ते में सर्राफा बाजार और बजाज बाजार पडते हैं। यह दोनों बाजार अपने सोने के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है। इन बाजारों में घूमते हुए आप यहां की अनेक खूबसूरत हवेलियों को भी देख सकते हैं।.

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अलवर के दर्शनीय स्थल

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