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अर्जुन (बहुविकल्पी)

सूची अर्जुन (बहुविकल्पी)

* अर्जुन: महाभारत का पात्र।.

5 संबंधों: महाभारत, गुरु अर्जुन देव, अर्जुन, अर्जुन होम्योपैथी, अर्जुन वृक्ष

महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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गुरु अर्जुन देव

गुरु अर्जन देव के ५वे गुरु बनने की घोषणा अर्जुन देव या गुरू अर्जुन देव (15 अप्रेल 1563 – 30 मई 1606) सिखों के ५वे गुरु थे। गुरु अर्जुन देव जी शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक वाणी पंचम गुरु की ही है। ग्रंथ साहिब का संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604में किया। ग्रंथ साहिब की संपादन कला अद्वितीय है, जिसमें गुरु जी की विद्वत्ता झलकती है। उन्होंने रागों के आधार पर ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझबूझ का ही प्रमाण है कि ग्रंथ साहिब में 36महान वाणीकारोंकी वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई। .

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अर्जुन

शिव अर्जुन को अस्त्र देते हुए। महाभारत के मुख्य पात्र हैं। महाराज पाण्डु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। द्रौपदी, कृष्ण और बलराम की बहन सुभद्रा, नाग कन्या उलूपी और मणिपुर नरेश की पुत्री चित्रांगदा इनकी पत्नियाँ थीं। इनके भाई क्रमशः युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव। .

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अर्जुन होम्योपैथी

अर्जुन नाम से एक होम्योपैथी की औषधि बनायी जाती है। यह अर्जुन वृक्ष के रस से बनती है। श्रेणी:होम्योपैथिक औषधि श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अर्जुन वृक्ष

अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है। इसे घवल, ककुभ तथा नदीसर्ज (नदी नालों के किनारे होने के कारण) भी कहते हैं। कहुआ तथा सादड़ी नाम से बोलचाल की भाषा में प्रख्यात यह वृक्ष एक बड़ा सदाहरित पेड़ है। लगभग 60 से 80 फीट ऊँचा होता है तथा हिमालय की तराई, शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नालों के किनारे तथा बिहार, मध्य प्रदेश में काफी पाया जाता है। इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है। छाल का ही प्रयोग होता है अतः उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएँ चाहिए। एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती हैं। छाल बाहर से सफेद, अन्दर से चिकनी, मोटी तथा हल्के गुलाबी रंग की होती है। लगभग 4 मिलीमीटर मोटी यह छाल वर्ष में एक बार स्वयंमेव निकलकर नीचे गिर पड़ती है। स्वाद कसैला, तीखा होता है तथा गोदने पर वृक्ष से एक प्रकार का दूध निकलता है। पत्ते अमरुद के पत्तों जैसे 7 से 20 सेण्टीमीटर लंबे आयताकार होते हैं या कहीं-कहीं नुकीले होते हैं। किनारे सरल तथा कहीं-कहीं सूक्ष्म दाँतों वाले होते हैं। वे वसंत में नए आते हैं तथा छोटी-छोटी टहनियों पर लगे होते हैं। ऊपरी भाग चिकना व निचला रुक्ष तथा शिरायुक्त होता है। फल वसंत में ही आते हैं, सफेद या पीले मंजरियों में लगे होते हैं। इनमें हल्की सी सुगंध भी होती है। फल लंबे अण्डाकार 5 या 7 धारियों वाले जेठ से श्रावण मास के बीच लगते हैं व शीतकाल में पकते हैं। 2 से 5 सेण्टी मीटर लंबे ये फल कच्ची अवस्था में हरे-पीले तथा पकने पर भूरे-लाल रंग के हो जाते हैं। फलों की गंध अरुचिकर व स्वाद कसौला होता है। फल ही अर्जुन का बीज है। अर्जुन वृक्ष का गोंद स्वच्छ सुनहरा, भूरा व पारदर्शक होता है। अर्जुन जाति के कम से कम पन्द्रह प्रकार के वृक्ष भारत में पाए जाते हैं। इसी कारण कौन सी औषधि हृदय रक्त संस्थान पर कार्य करती है, यह पहचान करना बहुत जरूरी है। 'ड्रग्स ऑफ हिन्दुस्तान' के विद्वान लेखक डॉ॰ घोष के अनुसार आधुनिक वैज्ञानिक अर्जुन के रक्तवाही संस्थान पर प्रभाव को बना सकने में असमर्थ इस कारण रहे हैं कि इनमें आकृति में सदृश सजातियों की मिलावट बहुत होती है। छाल एक सी दीखने परभी उनके रासायनिक गुण व भैषजीय प्रभाव सर्वथा भिन्न है। सही अर्जुन की छाल अन्य पेड़ों की तुलना में कहीं अधिक मोटी तथा नरम होती है। शाखा रहित यह छाल अंदर से रक्त सा रंग लिए होती है। पेड़ पर से छाल चिकनी चादर के रूप में उतर आती है। क्योंकि पेड़ का तना बहुत चौड़ा होता है। अर्जुन की छाल को सुखाकर सूखे शीतल स्थान में चूर्ण रूप में बंद रखा जाता है। होम्योपैथी में अर्जुन एक प्रचलित ख्याति प्राप्त औषधि है। हृदयरोग संबंधी सभी लक्षणों में विशेषकर क्रिया विकार जन्य तथा यांत्रिक गड़बड़ी के कारण उत्पन्न हुए विकारों में इसके तीन एक्स व तीसवीं पोटेन्सी में प्रयोग को होम्योपैथी के विद्वानों ने बड़ा सफल बताया है। अर्जुन संबंधी मतों में प्राचीन व आधुनिक विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है। फिर भी धीरे-धीरे शोथ कार्य द्वारा शास्रोक्त प्रतिपादन अब सिद्ध होते चले जा रहे हैं। .

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अर्जुन वृक्ष (बहुविकल्पी)

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