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अनर्जक आस्ति

सूची अनर्जक आस्ति

अनर्जक आस्ति (अथवा अनर्जक संपत्ति या परिसंपत्ति) से तात्पर्य बैंकिंग व वित्त उद्योग में ऐसे ऋण (लोन) से है, जिसका लौटना संदिग्ध हो। अंग्रेजी में इसे एन पी ए अथवा नॉन परफार्मिंग एसेट कहा जाता है। अंग्रेजी संस्करण से अनुवादस्वरूप और भी कई नाम मीडिया में दिए जाते हैं - यथा गैर-निष्पादनकारी संपत्ति आदि। बैंक अपने ग्राहकों को जो ऋण प्रदान करता है, उसे अपने खाते में आस्ति (संपत्ति) के रूप में दर्शाता है। यदि किसी कारणवश यह आशंका हो कि ग्राहक यह ऋण लौटा नहीं पाएगा तो एसे ऋणों को अनर्जक आस्ति कहा जाता है। किसी भी बैंक की आर्थिक सेहत को मापने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण पैमाना है तथा इसमें वृद्धि होना किसी बैंक की सेहत के लिए चिंता का विषय ही होता है। हाल ही में (फरवरी 2014) भारत के यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की प्रमुख को अपना पद बेकाबू हो चुके फंसे कर्जे एनपीए पर लगाम लगाने में नाकाम रहने की वजह से खोना पड़ा। एनपीए को नियंत्रण में रखने के लिए हर देश के नियामक मापदंड निर्धारित करते हैं जिनका अनुपालन वित्तीय संस्थाओं के लिए आवश्यक होता है। २००८ के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद अनर्जक आस्तियों को शीघ्र चिन्हित करने व खातों में सही तरीके व इमानदारी से दर्शाने पर ज़ोर दिया गया है। .

5 संबंधों: बैंक, भारत में बैंकिंग, वित्त, अनर्जक ऋण, 2007-2009 का वित्तीय संकट

बैंक

जर्मनी के फ्रैंकफुर्त में डश-बैंक बैंक (Bank) उस वित्तीय संस्था को कहते हैं जो जनता से धनराशि जमा करने तथा जनता को ऋण देने का काम करती है। लोग अपनी अपनी बचत राशि को सुरक्षा की दृष्टि से अथवा ब्याज कमाने के हेतु इन संस्थाओं में जमा करते और आवश्यकतानुसार समय समय पर निकालते रहते हैं। बैंक इस प्रकार जमा से प्राप्त राशि को व्यापारियों एवं व्यवसायियों को ऋण देकर ब्याज कमाते हैं। आर्थिक आयोजन के वर्तमान युग में कृषि, उद्योग एवं व्यापार के विकास के लिए बैंक एवं बैंकिंग व्यवस्था एक अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती है। राशि जमा रखने तथा ऋण प्रदान करने के अतिरिक्त बैंक अन्य काम भी करते हैं जैसे, सुरक्षा के लिए लोगों से उनके आभूषणादि बहुमूल्य वस्तुएँ जमा रखना, अपने ग्राहकों के लिए उनके चेकों का संग्रहण करना, व्यापारिक बिलों की कटौती करना, एजेंसी का काम करना, गुप्त रीति से ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की जानकारी लेना देना। अत: बैंक केवल मुद्रा का लेन देन ही नहीं करते वरन् साख का व्यवहार भी करते हैं। इसीलिए बैंक को साख का सृजनकर्ता भी कहा जाता है। बैंक देश की बिखरी और निठल्ली संपत्ति को केंद्रित करके देश में उत्पादन के कार्यों में लगाते हैं जिससे पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन मिलता है और उत्पादन की प्रगति में सहायता मिलती है। भारतीय बैंकिग कंपनी कानून, १९४९ के अंतर्गत बैंक की परिभाषा निम्न शब्दों में दी गई हैं: एक ही बैंक के लिए व्यापार, वाणिज्य, उद्योग तथा कृषि की समुचित वित्तव्यवस्था करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य होता है। अतएव विशिष्ट कार्यों के लिए अलग अलग बैंक स्थापित किए जाते हैं जैसे व्यापारिक बैंक, कृषि बैंक, औद्योगिक बैंक, विदेशी विनिमय बैंक तथा बचत बैंक। इन सब प्रकार के बैंकों को नियमपूर्वक चलाने तथा उनमें पारस्परिक तालमेल बनाए रखने के लिए केंद्रीय बैंक होता है जो देश भर की बैंकिंग व्यवस्था का संचालन करता है। समय के साथ कई अन्य वित्तीय गतिविधियाँ जुड़ गईं। उदाहरण के लिए बैंक वित्तीय बाजारों में महत्वपूर्ण खिलाडी हैं और निवेश फंड जैसे वित्तीय सेवाओं की पेशकश कर रहे हैं। कुछ देशों (जैसे जर्मनी) में बैंक औद्योगिक निगमों के प्राथमिक मालिक हैं, जबकि अन्य देशों (जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका) में बैंक गैर वित्तीय कंपनियों स्वक्मित्व से निषिद्ध रहे हैं। जापान में बैंक को आमतौर पर पार शेयर होल्डिंग इकाई (ज़ाइबत्सू) के रूप में पहचाना जाता है। फ़्रांस में अधिकांश बैंक अपने ग्राहकों को बिमा सेवा प्रदान करते हैं। .

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भारत में बैंकिंग

भारत की बैंकिंग-संरचना भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। भारत के आधुनिक बैंकिंग की शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई। १९वीं शताब्दी के आरंभ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने ३ बैंकों की शुरुआत की - बैंक ऑफ बंगाल १८०९ में, बैंक ऑफ बॉम्बे १८४० में और बैंक ऑफ मद्रास १८४३ में। लेकिन बाद में इन तीनों बैंको का विलय एक नये बैंक 'इंपीरियल बैंक' में कर दिया गया जिसे सन १९५५ में 'भारतीय स्टेट बैंक' में विलय कर दिया गया। इलाहाबाद बैंक भारत का पहला निजी बैंक था। भारतीय रिजर्व बैंक सन १९३५ में स्थापित किया गया था और बाद में पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ़ इंडिया, केनरा बैंक और इंडियन बैंक स्थापित हुए। प्रारम्भ में बैंकों की शाखायें और उनका कारोबार वाणिज्यिक केन्द्रों तक ही सीमित होती थी। बैंक अपनी सेवायें केवल वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को ही उपलब्ध कराते थे। स्वतन्त्रता से पूर्व देश के केन्द्रीय बैंक के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक ही सक्रिय था। जबकि सबसे प्रमुख बैंक इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया था। उस समय भारत में तीन तरह के बैंक कार्यरत थे - भारतीय अनुसूचित बैंक, गैर अनुसूचित बैंक और विदेशी अनुसूचित बैंक। स्वतन्त्रता के उपरान्त भारतीय रिजर्व बैंक को केन्द्रीय बैंक का दर्जा बरकरार रखा गया। उसे 'बैंकों का बैंक' भी घोषित किया गया। सभी प्रकार की मौद्रिक नीतियों को तय करने और उसे अन्य बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा लागू कराने का दायित्व भी उसे सौंपा गया। इस कार्य में भारतीय रिजर्व बैंक की नियंत्रण तथा नियमन शक्तियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। .

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वित्त

सरल रूप में वित्त (Finance) की परिभाषा 'धन या कोश (फण्ड) के प्रबन्धन' के रूप में की जाती है। किन्तु आधुनिक वित्त अनेकों वाणिज्यिक कार्यविधियों का एक समूह है। चूंकि व्यक्ति, व्यापार संस्थान तथा सरकार सभी के काम करने के लिये वित्त अत्यावश्यक है, इसलिये वित्त के क्षेत्र को भी तीन प्रकार से विभाजित किया जाता है-.

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अनर्जक ऋण

अनर्जक ऋण (non-performing loan या NPL) वह ऋण है जो वापस नहीं आ पा रहा हो। .

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2007-2009 का वित्तीय संकट

2007-वर्तमान वित्तीय संकट एक ऐसा वित्तीय संकट है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में चलनिधि की कमी से पैदा हुआ। यह बड़ी वित्तीय संस्थाओं के पतन, राष्ट्रीय सरकारों द्वारा बैंकों की "जमानत" और दुनिया भर में शेयर बाज़ार की गिरावट का कारक बना। कई क्षेत्रों में, आवास बाज़ार को भी नुकसान उठाना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप कई निष्कासन, प्रतिबंध और दीर्घकालिक रिक्तियां सामने आईं.

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