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शिक्षा

सूची शिक्षा

अफगानिस्तान के एक विद्यालय में वृक्ष के नीचे पढ़ते बच्चे शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों (skills), व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है। शिक्षा, समाज की एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। जब हम शिक्षा शब्द के प्रयोग को देखते हैं तो मोटे तौर पर यह दो रूपों में प्रयोग में लाया जाता है, व्यापक रूप में तथा संकुचित रूप में। व्यापक अर्थ में शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। मनुष्य क्षण-प्रतिक्षण नए-नए अनुभव प्राप्त करता है व करवाता है, जिससे उसका दिन-प्रतिदन का व्यवहार प्रभावित होता है। उसका यह सीखना-सिखाना विभिन्न समूहों, उत्सवों, पत्र-पत्रिकाओं, दूरदर्शन आदि से अनौपचारिक रूप से होता है। यही सीखना-सिखाना शिक्षा के व्यापक तथा विस्तृत रूप में आते हैं। संकुचित अर्थ में शिक्षा किसी समाज में एक निश्चित समय तथा निश्चित स्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय) में सुनियोजित ढंग से चलने वाली एक सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा छात्र निश्चित पाठ्यक्रम को पढ़कर अनेक परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना सीखता है। शिक्षा एक गतिशील प्रकिया है निखिल .

25 संबंधों: दूरस्थ शिक्षा, धातु, पाठ्यचर्या, पाठ्यविवरण, प्रत्यय, प्राचीन भारत, प्रौढ़ शिक्षा, महात्मा गांधी, शिक्षा का इतिहास, शिक्षाशास्त्र, शैक्षिक प्रौद्योगिकी, शैक्षिक मनोविज्ञान, शैक्षिक अनुसंधान, सदाचार, समाज, सामाजीकरण, संस्कृत भाषा, स्वामी विवेकानन्द, जिद्दू कृष्णमूर्ति, ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा, व्यक्तित्त्व, कौशल, अलंकार, उच्च शिक्षा

दूरस्थ शिक्षा

दूरस्थ शिक्षा (Distance education), शिक्षा की वह प्रणाली है जिसमें शिक्षक तथा शिक्षु को स्थान-विशेष अथवा समय-विशेष पर मौजूद होने की आवश्यकता नहीं होती। यह प्रणाली, अध्यापन तथा शिक्षण के तौर-तरीकों तथा समय-निर्धारण के साथ-साथ गुणवत्ता संबंधी अपेक्षाओं से समझौता किए बिना प्रवेश मानदंडों के संबंध में भी उदार है। भारत की मुक्त तथा दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में राज्यों के मुक्त विश्वविद्यालय, शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाएं तथा विश्वविद्यालय शामिल है तथा इसमें दोहरी पद्धति के परंपरागत विश्वविद्यालयों के पत्राचार पाठयक्रम संस्थान भी शामिल हैं। यह प्रणाली, सतत शिक्षा, सेवारत कार्मिकों के क्षमता-उन्नयन तथा शैक्षिक रूप से वंचित क्षेत्रों में रहने वाले शिक्षुओं के लिए गुणवत्तामूलक व तर्कसंगत शिक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। .

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धातु

'धातु' के अन्य अर्थों के लिए देखें - धातु (बहुविकल्पी) ---- '''धातुएँ''' - मानव सभ्यता के पूरे इतिहास में सर्वाधिक प्रयुक्त पदार्थों में धातुएँ भी हैं लुहार द्वारा धातु को गर्म करने पर रसायनशास्त्र के अनुसार धातु (metals) वे तत्व हैं जो सरलता से इलेक्ट्रान त्याग कर धनायन बनाते हैं और धातुओं के परमाणुओं के साथ धात्विक बंध बनाते हैं। इलेक्ट्रानिक मॉडल के आधार पर, धातु इलेक्ट्रानों द्वारा आच्छादित धनायनों का एक लैटिस हैं। धातुओं की पारम्परिक परिभाषा उनके बाह्य गुणों के आधार पर दी जाती है। सामान्यतः धातु चमकीले, प्रत्यास्थ, आघातवर्धनीय और सुगढ होते हैं। धातु उष्मा और विद्युत के अच्छे चालक होते हैं जबकि अधातु सामान्यतः भंगुर, चमकहीन और विद्युत तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं। .

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पाठ्यचर्या

औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यचर्या या पाठ्यक्रम (करिकुलम) विद्यालय या विश्वविद्यालय में प्रदान किये जाने वाले पाठ्यक्रमों और उनकी सामग्री को कहते हैं। पाठ्यक्रम निर्देशात्मक होता है एवं अधिक सामान्य सिलेबस पर आधारित होता है जो केवल यह निर्दिष्ट करता है कि एक विशिष्ट ग्रेड या मानक प्राप्त करने के लिए किन विषयों को किस स्तर तक समझना आवश्यक है। .

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पाठ्यविवरण

किसी तरह की शिक्षा अथवा प्रशिक्षण के लिये निर्धारित विषयों, उपविषयों (टॉपिक्स) एवं सम्बन्धित सामग्री की व्यवस्थित एवं साररूप में प्रस्तुति ही पाठ्यविवरण (syllabus) कहलाता है। पाठ्यविवरण प्रायः किसी शिक्षा परिषद (बोर्ड) द्वारा निर्धारित की जाती है या किसी प्राध्यापक द्वारा बनायी जाती है जो उस विषय के शिक्षण की गुणवत्ता के लिये उत्तरदायी होता है। समुचित पाठ्यविवरण का शिक्षा में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। .

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प्रत्यय

प्रत्यय वे शब्द हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। Hari Mohit ka puruskar Dena chahe ye .

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प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

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प्रौढ़ शिक्षा

प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्‍य उन प्रौढ व्‍यक्तियों को शैक्षिक विकल्‍प देना है, जिन्‍होंने यह अवसर गंवा दिया है और औपचारिक शिक्षा आयु को पार कर चुके हैं, लेकिन अब  वे साक्षरता, आधारभूत शिक्षा, कौशल विकास (व्‍यावसायिक शिक्षा) और इसी तरह की अन्‍य शिक्षा सहित किसी तरह के ज्ञान की आवश्‍यकता का अनुभव करते हैं। प्रौढ़ शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से पहली पंचवर्षीय योजना से अनेक कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख राष्‍ट्रीय साक्षरता मिशन (एन एल एम) है, जिसे समयबद्ध तरीके से 15-35 वर्ष की आयु समूह में अशिक्षितों को कार्यात्‍मक साक्षरता प्रदान करने के लिए 1988 में शुरू किया गया था। 10वीं योजना अवधि के अंत तक एन एल एम ने 127.45 मिलियन व्‍यक्तियों को साक्षर किया, जिनमें से 60 प्रतिशत महिलाएं थीं, 23 प्रतिशत अनुसूचित जाति (अजा) और 12 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (अजजा) से संबंधित थे। समग्र साक्षरता अभियान के अंतर्गत 597 जिलों को शामिल किया गया था, जिनमें 502 साक्षरता पश्‍चात  चरण और 328 सतत शिक्षा चरण में पहुंच गए हैं। 2001 की जनगणना में पुरूष साक्षरता 75.26 प्रतिशत दर्ज की गई थी, जबकि महिला साक्षरता 53.67 प्रतिशत के अस्‍वीकार्य स्‍तर पर थी। 2001 की जनगणना ने यह भी खुलासा किया कि साक्षरता में लैंगिक और क्षेत्रीय भिन्‍नताएं मौजूद रही हैं। अत: प्रौढ़ शिक्षा और कौशल विकास मजबूत करने के लिए भारत सरकार ने 11वीं योजना में दो स्‍कीमें नामत: साक्षर भारत और प्रौढ़ शिक्षा एवं कौशल विकास हेतु स्‍वैच्छिक एजेंसियों को सहायता की स्‍कीम शुरू की। साक्षर भारत, जो पूर्ववर्ती एन एल एम का नया रूपभेद है, निम्‍नलिखित लक्ष्‍य निर्धारित किया: साक्षरता दर को 80 प्रतिशत तक बढ़ाना, लैंगिक अंतर को 10 प्रतिशत तक कम करना और महिलाओं, अजा, अजजा, अल्‍पसंख्‍यकों और अन्‍य वंचित समूहों पर फोकस के साथ क्षेत्रीय और सामाजिक विषमताओं को कम करना। साक्षरता स्‍तर पर ध्‍यान दिए बिना वाम विंग अतिवाद प्रभावित जिले सहित उन सभी जिलों, जिनमें 2001 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता दर 50 प्रतिशत से कम थी, इस कार्यक्रम के अंतर्गत शामिल किए जा रहे हैं। भारत का साक्षरता परिदृश्य:2011 की जनगणना से यह प्रकट होता है कि भारत ने साक्षरता में उल्‍लेखनीय प्रगति की है। भारत की साक्षरता दर 72.98 प्रतिशत है। पिछले दशक की समग्र साक्षरता दर में 8.14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है (2001 में 64.84 प्रतिशत और 2011 में 72.98 प्रतिशत) पुरूष साक्षरता दर में 5.62 प्रतिशत (2001 में 75.26 प्रतिशत और 2011 में 80.88 प्रतिशत) जबकि महिला साक्षरता दर में 10.96 प्रतिशत (2001 में 53.67 प्रतिशत और 2011 में 64.63 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है। निरक्षरों की संख्‍या (7+ आयु समूह) 2001 में 304.10 मिलियन से घटकर 2011 में 282.70 मिलियन हो गई। 90 प्रतिशत से अधिक की साक्षरता वाले राज्य: केरल (94%), लक्षद्वीप(91.85%) एवं मिजोरम (91.33%)। राष्ट्रीय स्तर (72.98%) और 90% से नीचे के बीच साक्षरता दर वाले राज्‍य: त्रिपुरा (87.22%), गोवा (88.70%), दमन एवं दीव (87.10%), पुडुचेरी (85.85%), चंडीगढ़ (86.05%), दिल्‍ली (86.21%), अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (86.63%), हिमाचल प्रदेश (82.80%), महाराष्‍ट्र (82.34%), सिक्किम (81.42%), तमिलनाडु (80.09%), नागालैंड (79.55%), मणिपुर (76.94%), उत्तराखण्‍ड (78.82%), गुजरात (78.03%), दादरा एवं नागर हवेली (76.24%), पश्चिम बंगाल (76.26%), पंजाब (75.84%), हरियाणा (75.55%), कर्नाटक (75.36%) और मेघालय (74.43%)। ग्रामीण क्षेत्रों में 77.15% की ग्रामीण पुरूष साक्षरता दर और 57.93% की ग्रामीण महिला साक्षरता दर के साथ साक्षरता दर 67.67% है, जबकि शहरी क्षेत्रों में 88.76%  की शहरी पुरूष साक्षरता दर और 79.11% की शहरी महिला साक्षरता दर के साथ साक्षरता दर 84.11% है। अजा की साक्षरता दर 66.07% है (पुरूष अजा 75.17% और महिला अजा 56.46%) जबकि अजजा की साक्षरता दर 58.96% है (पुरूष अजजा 68.53% और महिला अजजा 49.35%) साक्षरता के लिंग विभेद में 2001 में 21.59 प्रतिशत से 2001-2011 में 16.25 प्रतिशत होकर 5.34 प्रतिशत की कमी हुई है। 1991 से साक्षरता में लिंग अंतर में सतत् कमी होती रही है (24.84 प्रतिशत)। श्रेणी:शिक्षा *.

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महात्मा गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी (२ अक्टूबर १८६९ - ३० जनवरी १९४८) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले १९१५ में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था।। उन्हें बापू (गुजराती भाषा में બાપુ बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने ६ जुलाई १९४४ को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। प्रति वर्ष २ अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। सबसे पहले गान्धी ने प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष हेतु सत्याग्रह करना शुरू किया। १९१५ में उनकी भारत वापसी हुई। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिये अस्पृश्‍यता के विरोध में अनेकों कार्यक्रम चलाये। इन सबमें विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाला स्वराज की प्राप्ति वाला कार्यक्रम ही प्रमुख था। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में १९३० में नमक सत्याग्रह और इसके बाद १९४२ में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिये वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर हाथ से बनाते थे। उन्होंने सादा शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि के लिये लम्बे-लम्बे उपवास रखे। .

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शिक्षा का इतिहास

प्राथमिक शिक्षा ऐसा आधार है जिसपर देश तथा इसके प्रत्येक नागरिक का विकास निर्भर करता है। हाल के वर्षों में भारत ने प्राथमिक शिक्षा में नामांकन, छात्रों की संख्या बरकरार रखने, उनकी नियमित उपस्थिति दर और साक्षरता के प्रसार के संदर्भ में काफी प्रगति की है। जहाँ भारत की उन्नत शिक्षा पद्धति को भारत देश के आर्थिक विकास का मुख्य योगदानकर्ता तत्व माना जाता है, वहीं भारत में आधारभूत शिक्षा की गुणवत्ता फिलहाल एक चिंता का विषय है। भारत में 14 साल की उम्र तक के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना संवैधानिक प्रतिबद्धता है। देश के संसद ने वर्ष 2009 में ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम' पारित किया था जिसके द्वारा 6 से 14 साल के सभी बच्चों के लिए शिक्षा एक मौलिक अधिकार हो गई थी। हालांकि देश में अभी भी आधारभूत शिक्षा को सार्वभौम नहीं बनाया जा सका है। इसका अर्थ है बच्चों का स्कूलों में सौ फीसदी नामांकन और स्कूलिंग सुविधाओं से लैस हर घर में उनकी संख्या को बरकरार रखना। इसी कमी को पूरा करने हेतु सरकार ने वर्ष 2001 में सर्व शिक्षा अभियान योजना की शुरुआत की थी, जो अपनी तरह की दुनिया में सबसे बड़ी योजना थी। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में सूचना व संचार प्रौद्योगिकी शिक्षा क्षेत्र में वंचित और संपन्न समुदायों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, के बीच की दूरी पाटने का कार्य कर रहा है। भारत विकास प्रवेशद्वार ने प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में भारत में मौलिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण हेतु प्रचुर सामग्रियों को उपलब्ध कराकर छात्रों तथा शिक्षकों की क्षमता बढ़ाने की पहल की है। बाल अधिकार बाल अधिकार आज के समय की सबसे बड़ी और उभरती हुई जरुरत है, जिसके बारे में लोगों में जानकारी का अभाव है। इस भाग में ऐसे कई बाल अधिकारों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रण का उद्देश्य बच्चों के बाल अधिकारों का हनन होने से रोकना और उनके अधिकार सुरक्षित करना है। नीतियां और योजनाएं 6 से 14 साल की उम्र के बीच के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। इस 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुच्छेद 21 ए जोड़ा गया और इसे कार्यान्वित करने के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों की जानकारी इस भाग में दी गई है। बाल जगत मल्टीमीडिया सामग्री के विभिन्न भाग विज्ञान खंड आदि रचनात्मक सोच और सीखने की प्रक्रिया में बच्चों में सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं। इसी तरह के अन्य उदाहरणों को इस भाग में प्रस्तुत किया गया है। शिक्षक मंच शिक्षण और अधिगम प्रक्रिया की अनेक महत्वपूर्ण बातें शिक्षार्थी जीवन में इस प्रक्रिया की उपयोगिता सिद्ध करती हैं। विभिन्न कौशल के साथ शिक्षक की विद्यार्थी के व्यवहार और सीखने के अनुभव के साथ समग्र विकास में किस तरह भूमिका होती है- इसकी संक्षिप्त जानकारी यह भाग देता है। ऑनलाइन मूल्यांकन यह भाग ऑनलाइन मूल्यांकन के अंतर्गत वेब संसाधनों और स्रोत की सहायता से गणित,विज्ञान,भूगोग की स्वमूल्यांकन प्रक्रिया को दर्शाते हुए राज्य,उनकी राजधानियों और भारत के नदियों के नाम और उनकी विशेषताओं के बारे में जानने का अवसर देता है। शिक्षा की ओर प्रवृत करने की पहल इस भाग में बहुप्रतिभा सिद्धांत की व्याख्या करते हुये बुद्धि के विभिन्न प्रकार (शाब्दिक,तार्किक आदि) के बारे में गार्नर के मनोवैज्ञानिक सिद्धांत को प्रस्तुत किया गया है। यह भाग बताता है कि प्रत्येक व्यक्ति की सीखने की शैली,शिक्षा में इसके उपयोग के साथ स्कूल में बहु-प्रतिभा सिद्धान्त अपनाने के अनेक लाभ हैं। कैरियर मार्गदर्शन कैरियर में मार्गदर्शन से भविष्य को बेहतर तरीके से आकार देने में मदद मिलती है। यह भाग पाठकों को उपलब्ध विभिन्न अध्ययन और 10 वीं कक्षा, स्नातक के बाद मिलने वाले रोजगार के अवसरों की जानकारी के साथ इससे जुड़ीं अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों को जानने का अवसर देता है। कंप्यूटर शिक्षा इस भाग के विभिन्न विषय आपकी सूचना और प्रौद्योगिकी की जानकारी में इज़ाफा करते हुए उसके माध्यम से क्षमता निर्माण में उसके द्वारा होने वाले महत्वपूर्ण योगदान की जानकारी देते हैं। संसाधन लिंक यह भाग शिक्षा क्षेत्र में उपयोगी सरकारी,वैश्विक संसाधन,प्रशिक्षण एवं आदान-प्रदान योग्य संसाधन,बाल अधिकार व प्रचार संसाधन आदि की जानकारी देते हुए और शिक्षा समाचार स्रोत की उपयोगिता बताते हुए इस क्षेत्र में कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय अभिकरणों को भी जानने का अवसर देता है। चर्चा मंच शिक्षा का चर्चा मंच शिक्षा से जुड़े विभिन्न विषयों पर आपको अपने विचारों को प्रस्तुत करने के साथ अन्यों के साथ अपने विचारों और सूचनाओं को आदान-प्रदान करने का अवसर भी देता है। .

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शिक्षाशास्त्र

दक्षिण भारत के एक गाँव में शिक्षण शिक्षण-कार्य की प्रक्रिया का विधिवत अध्ययन शिक्षाशास्त्र या शिक्षणशास्त्र (Pedagogy) कहलाता है। इसमें अध्यापन की शैली या नीतियों का अध्ययन किया जाता है। शिक्षक अध्यापन कार्य करता है तो वह इस बात का ध्यान रखता है कि अधिगमकर्ता को अधिक से अधिक समझ में आवे। शिक्षा एक सजीव गतिशील प्रक्रिया है। इसमें अध्यापक और शिक्षार्थी के मध्य अन्त:क्रिया होती रहती है और सम्पूर्ण अन्त:क्रिया किसी लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है। शिक्षक और शिक्षार्थी शिक्षाशास्त्र के आधार पर एक दूसरे के व्यक्तित्व से लाभान्वित और प्रभावित होते रहते हैं और यह प्रभाव किसी विशिष्‍ट दिशा की और स्पष्ट रूप से अभिमुख होता है। बदलते समय के साथ सम्पूर्ण शिक्षा-चक्र गतिशील है। उसकी गति किस दिशा में हो रही है? कौन प्रभावित हो रहा है? इस दिशा का लक्ष्य निर्धारण शिक्षाशास्त्र करता है। .

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शैक्षिक प्रौद्योगिकी

शैक्षिक प्रौद्योगिकी (अधिगम प्रौद्योगिकी भी कहा जाता है) उचित तकनीकी प्रक्रियाओं और संसाधनों के सृजन, उपयोग तथा प्रबंधन के द्वारा अधिगम और कार्य प्रदर्शन सुधार के अध्ययन और नैतिक अभ्यास को कहते हैं। शैक्षिक प्रौद्योगिकी शब्द के साथ प्रायः अनुदेशात्मक सिद्धांत तथा अधिगम सिद्धांत संबद्ध और शामिल होते हैं। जबकि अनुदेशी प्रौद्योगिकी में अधिगम एवं अनुदेश की प्रक्रियाएं तथा प्रणालियां शामिल हैं, शैक्षिक प्रौद्योगिकी में मानवीय क्षमताओं के विकास हेतु प्रयुक्त अन्य प्रणालियां शामिल होती हैं। शैक्षिक प्रौद्योगिकी सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और इंटरनेट अनुप्रयोगों तथा गतिविधियों का समावेश करती है किंतु इन तक सामित नहीं है। लेकिन इन शब्दों के अर्थ को लेकर अब भी बहस होती है। .

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शैक्षिक मनोविज्ञान

गिनतारा, अमूर्त वस्तुओं वस्तुओं को मूर्त बनाकर गणित की मूलभूत बातें सिखाने की युक्ति है। शैक्षिक मनोविज्ञान (Educational psychology), मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि मानव शैक्षिक वातावरण में सीखता कैसे है तथा शैक्षणिक क्रियाकलाप अधिक प्रभावी कैसे बनाये जा सकते हैं। 'शिक्षा मनोविज्ञान' दो शब्दों के योग से बना है - ‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’। अतः इसका शाब्दिक अर्थ है - शिक्षा संबंधी मनोविज्ञान। दूसरे शब्दों में, यह मनोविज्ञान का व्यावहारिक रूप है और शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। शिक्षा के सभी पहलुओं जैसे शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधि, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन, अनुशासन आदि को मनोविज्ञान ने प्रभावित किया है। बिना मनोविज्ञान की सहायता के शिक्षा प्रक्रिया सुचारू रूप से नहीं चल सकती। शिक्षा मनोविज्ञान से तात्पर्य शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करने से है। शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान में व्यक्ति के व्यवहार, मानसिक प्रक्रियाओं एवं अनुभवों का अध्ययन शैक्षिक परिस्थितियों में किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसका ध्येय शिक्षण की प्रभावशाली तकनीकों को विकसित करना तथा अधिगमकर्ता की योग्यताओं एवं अभिरूचियों का आंकलन करना है। यह व्यवहारिक मनोविज्ञान की शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने की प्रक्रिया को सुधारने में प्रयासरत है। .

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शैक्षिक अनुसंधान

शैक्षिक अनुसंधान (Educational research) छात्र अध्ययन, शिक्षण विधियों, शिक्षक प्रशिक्षण और कक्षा गतिकी जैसे विभिन्न पहलुओं के मुल्यांकन को सन्दर्भित करने वाली विधियों को कहा जाता है। शैक्षिक अनुसंधान से तात्पर्य उस अनुसंधान से होता है जो शिक्षा के क्षेत्र में किया जाता है। उसका उद्देश्य शिक्षा के विभिन्न पहलुओं, आयामों, प्रक्रियाओं आदि के विषय में नवीन ज्ञान का सृजन, वर्तमान ज्ञान की सत्यता का परीक्षण, उसका विकास एवं भावी योजनाओं की दिशाओं का निर्धारण करना होता है। टैंवर्स ने शिक्षा-अनुसंधान को एक ऐसी क्रिया माना है जिसका उद्देश्य शिक्षा-संबंधी विषयों पर खोज करके ज्ञान का विकास एवं संगठन करना होता है। विशेष रूप से छात्रों के उन व्यवहारों के विषय में ज्ञान एकत्र करना, जिनका विकास किया जाना शिक्षा का धर्म समझा जाता है, शिक्षा-अनुसंधान में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। ट्रैवर्स के अनुसार, शिक्षा के विभिन्न पहलुओं के विषय में संगठित वैज्ञानिक ज्ञान-पुंज का विकास अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि उसी के आधार पर शिक्षक के लिए यह निर्धारित करना संभव होता है कि छात्रों में वांछनीय व्यवहारों के विकास हेतु किस प्रकार की शिक्षण एवं अधिगम परिस्थितियों का निर्माण करना आवश्यक होगा। .

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सदाचार

'अच्छे' एवं 'बुरे' इरादों, निर्णयों एवं कार्यों में अंतर करना सदाचार (Morality) कहलाता है। हिंदी में 'मोरैलिटी' के लिए 'नैतिकता' शब्द का भी प्रयोग किया जाता है किंंतु सदाचार इसके लिए अधिक उपयुक्त शब्द है। .

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समाज

समाज एक से अधिक लोगों के समुदाय को कहते हैं जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रियाकलाप करते है। मानवीय क्रियाकलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती है। समाज लोगों का ऐसा समूह होता है जो अपने अंदर के लोगों के मुकाबले अन्य समूहों से काफी कम मेलजोल रखता है। किसी समाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव रखते हैं। दुनिया के सभी समाज अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अलग-अलग रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते हैं। .

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सामाजीकरण

सामाजीकरण: ह्यूगो ओहमिकन की 'पहला घूंट' नामक पेंटिंग विद्यालय सामाजीकरण का प्रमुख स्थान है। सामाजीकरण (Socialization) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मनुष्य समाज के विभिन्न व्यवहार, रीति-रिवाज़, गतिविधियाँ इत्यादि सीखता है। जैविक अस्तित्व से सामाजिक अस्तित्व में मनुष्य का रूपांतरण भी सामाजीकरण के माध्यम से ही होता है। सामाजीकरण के माध्यम से ही वह संस्कृति को आत्मसात् करता है। सामाजीकरण की प्रक्रिया मनुष्य का संस्कृति के भौतिक व अ-भौतिक रूपों से परिचय कराती है। सीखने की यह प्रक्रिया समाज के नियमों के अधीन चलती है। समाजशास्त्र की भाषा में कहें तो समाज में अपनी परिस्थिति या दर्जे के बोध और उसके अनुरूप भूमिका निभाने की विधि को हम सामाजीकरण के ज़रिये ही आत्मसात् करते हैं। सामाजीकरण व्यक्ति को सामाजिक रूप से क्रियाशील बनाता है। इसी के माध्यम से संस्कृति के अनुरूप आचरण करने का विवेक विकसित होता है। इसके लिए व्यक्ति द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों का जो अभ्यंतरीकरण किया जाता है वह सामाजीकरण का ही रूप है। पर सामाजीकरण के विश्लेषण और अध्ययन में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सीखने की प्रक्रिया में सामाजिक मानदण्डों व संस्कृति की सबसे ज़्यादा अहमियत होती है। इन्हें अस्वीकार कर जो कुछ सीखा जाता है, जैसे हत्या, चोरी या अन्य आपराधिक वारदातें करना, उन्हें सामाजीकरण में नहीं गिना जाता बल्कि इनकी गिनती विपथगामी व्यवहार में होती है। इन्हें सीखने वाला व्यक्ति समाज की मुख्यधारा के विपरीत माना जाता है। वह समाज में सकारात्मक योगदान देने की अवस्था में भी नहीं रहता है। इन नकारात्मक क्रियाओं और आचरणों को प्रायः विफल सामाजीकरण के उदाहरण की तरह देखा जाता है। इस प्रकार सामाजीकरण व्यक्ति को समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बना कर समाज की क्रियाओं में भाग लेने में समर्थ बनाता है। सामाजीकरण की एक सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह जीवन-पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति की परिस्थिति व सामाजिक भूमिकाएँ बदलती रहती हैं और उनके अनुरूप व्यवहार के लिए उसे आचरण तथा व्यवहार के नये प्रतिमान सीखने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए बचपन में जहाँ बच्चा सामाजीकरण के माध्यम से माता-पिता, संबंधियों व बुज़ुर्गों से व्यवहार करना सीखता है, वहीं युवावस्था में उसे नये सिरे से दफ्तर में अपने सहयोगियों, वरिष्ठों, पड़ोसियों आदि से व्यवहार के तौर-तरीकों को सीखना पड़ता है। यहाँ तक कि वृद्धावस्था में भी व्यक्ति नयी भूमिकागत अपेक्षाओं के अनुसार संबंधित सामाजिक व्यवहार ग्रहण करता है। इस प्रकार सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक लगातार चलती रहती है। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द(স্বামী বিবেকানন্দ) (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का पहले हाथ ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच की। विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया, सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है और इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। .

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जिद्दू कृष्णमूर्ति

नवयुवक '''जिद्दू कृष्णमूर्ति''' जिद्दू कृष्णमूर्ति (१२ मई १८९५ - १७ फरवरे, १९८६) दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विषयों पके लेखक एवं प्रवचनकार थे। वे मानसिक क्रान्ति (psychological revolution), मस्तिष्क की प्रकृति, ध्यान, मानवी सम्बन्ध, समाज में सकारात्मक परिवर्तन कैसे लायें आदि विषयों के विशेषज्ञ थे। वे सदा इस बात पर जोर देते थे कि प्रत्येक मानव को मानसिक क्रान्ति की जरूरत है और उनका मत था कि इस तरह की क्रान्ति किन्हीं वाह्य कारक से सम्भव नहीं है चाहे वह धार्मिक, राजनैतिक या सामाजिक कुछ भी हो। .

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ज्ञान

निरपेक्ष सत्य की स्वानुभूति ही ज्ञान है। यह प्रिय अप्रिय सुख-दू:ख इत्यादि भावों से निरपेक्ष होता है। इसका विभाजन विषयों के आधार पर होता है। विषय पाँच होते हैं - रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श। ज्ञान लोगों के भौतिक तथा बौद्धिक सामाजिक क्रियाकलाप की उपज; संकेतों के रूप में जगत के वस्तुनिष्ठ गुणों और संबंधों, प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों के बारे में विचारों की अभिव्यक्ति है। ज्ञान दैनंदिन तथा वैज्ञानिक हो सकता है। वैज्ञानिक ज्ञान आनुभविक और सैद्धांतिक वर्गों में विभक्त होता है। इसके अलावा समाज में ज्ञान की मिथकीय, कलात्मक, धार्मिक तथा अन्य कई अनुभूतियाँ होती हैं। सिद्धांततः सामाजिक-ऐतिहासिक अवस्थाओं पर मनुष्य के क्रियाकलाप की निर्भरता को प्रकट किये बिना ज्ञान के सार को नहीं समझा जा सकता है। ज्ञान में मनुष्य की सामाजिक शक्ति संचित होती है, निश्चित रूप धारण करती है तथा विषयीकृत होती है। यह तथ्य मनुष्य के बौद्धिक कार्यकलाप की प्रमुखता और आत्मनिर्भर स्वरूप के बारे में आत्मगत-प्रत्ययवादी सिद्धांतों का आधार है। gyan .

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व्यावसायिक शिक्षा

व्यावसायिक शिक्षा (Business education) में छात्रों को व्यापार (business) के आधारभूत सिद्धान्तों तथा प्रक्रियाओं का शिक्षण किया जाता है। .

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व्यक्तित्त्व

व्यक्तित्व विकास--- समाज मे रह रहे हर व्यक्ति का स्वयं का व्यक्तित्व होता है जो उसके अच्छी आदतो /स्वभाव से ही व्यक्तित्व का विकास होता है। जब व्यक्ति नैतिक मूल्यो एवं मानवीय मूल्यो को आत्मसात कर जीवन शैली बना कर नित्य प्रतिदिन उसे दिनचर्या का अभिन्न अंग बना लेता है तो वह ही उसका व्यक्तित्व कहलाता है। जुझारुपन ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ सत्यनिष्ठ मिलनसार हसमुख सरल साधारण व्यक्तित्व सादगी शालिनता धुर्त नशेडी अन्य व्यक्तित्व के व्यक्ति समाज मे है। जिसका आकलन हम स्वयं करने की क्षमता हमारे अन्दर है। विश्वास कुमार तिवारी शिक्षक कांट्रेक्ट--9826506691.

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कौशल

कौशल का अर्थ इनमें से कुछ भी हो सकता है.

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अलंकार

कोई विवरण नहीं।

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उच्च शिक्षा

एक उच्चतर शिक्षा संस्थान में गणित का शिक्षण उच्च शिक्षा (higher education) उच्च शिक्षा का अर्थ है सामान्य रूप से सबको दी जानेवाली शिक्षा से ऊपर किसी विशेष विषय या विषयों में विशेष, विशद तथा शूक्ष्म शिक्षा। यह शिक्षा के उस स्तर का नाम है जो विश्वविद्यालयों, व्यावसायिक विश्वविद्यालयों, कम्युनिटी महाविद्यालयों, लिबरल आर्ट कालेजों एवं प्रौद्योगिकी संस्थानों आदि के द्वारा दी जाती है। प्राथमिक एवं माध्यमिक के बाद यह शिक्षा का तृतीय स्तर है जो प्राय: ऐच्छिक (non-compulsory) होता है। इसके अन्तर्गत स्नातक, परास्नातक (postgraduate education) एवं व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण आदि आते हैं। .

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