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विक्रमादित्य ६
विक्रमादित्य षष्ठ (1076 – 1126 ई) पश्चिमी चालुक्य शासक था। वह अपने बड़े भाई सोमेश्वर द्वितीय को अपदस्थ कर गद्दी पर बैठा। चालुक्य-विक्रम संवत् उसके शासनारूढ़ होने पर आरम्भ किया गया। सभी चालुक्य राजाओं में वह सबसे अधिक महान, पराक्रमी था तथा उसका शासन काल सबसे लम्बा रहा। उसने 'परमादिदेव' और त्रिभुवनमल्ल' की उपाधि धारण की। वह कला और साहित्य का संरक्षक और संवर्धक था। उसके दरबार में कन्नड और संस्कृत के प्रसिद्ध कवि शोभा देते थे। उसके भाई कीर्तिवर्मा ने कन्नड में 'गोवैद्य' नामक पशुचिकित्सा ग्रन्थ लिखा। ब्रह्मशिव ने कन्नड में 'समयपरीक्षे' नामक ग्रन्थ लिखा और 'कविचक्रवर्ती' की उपाधि प्राप्त की। १२वीं शताब्दी के पूर्व किसी और ने कन्नड में उतने शिलालेख नहीं लिखवाये जितने विक्रमादित्य षष्ठ ने। संस्कृत के प्रसिद्ध कवि बिल्हण ने 'विक्रमांकदेवचरित' नाम से राजा का प्रशस्ति ग्रन्थ लिखा। विज्ञानेश्वर ने हिन्दू विधि से सम्बन्धित मिताक्षरा नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। चन्दलादेवी नामक उसकी एक रानी (जिसे अभिनव सरस्वती कहते थे) अच्छी नृत्यांगना थी। अपने चरमोत्कर्ष के समय चन्द्रगुप्त षष्ठ का विशाल साम्राज्य दक्षिण भारत में कावेरी नदी से आरम्भ करके मध्य भारत में नर्मदा नदी तक विस्तृत था। श्रेणी:भारत के राजा श्रेणी:भारत का इतिहास.
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