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अण्डजता

सूची अण्डजता

अण्डज वो जीव होते हैं जो अंडे देते हैं और जिनके भ्रूण का विकास माता के गर्भ में नहीं होता, सिर्फ कुछ अपवादों में ही इनके भ्रूण का विकास माता के शरीर् में आंशिक रूप से होता या है। प्रजनन का यह तरीका अधिकतर मछलियों, उभयचरों, सरीसृपों, सभी पक्षियों, मोनोट्रीम, अधिकतर कीटों और लूताभों में सबसे सामान्य है। अंडे देने वाले स्थलचर, जैसे सरीसृप और कीट जिनके अंडे एक कवच द्वारा सुरक्षित रहते हैं, आंतरिक निषेचन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अंडे देते हैं, जबकि जलचरों, जैसे कि मछलियों और उभयचरों में अंडे निषेचन प्रक्रिया से पहले दिए जाते हैं और ताजे दिए अंडों के ऊपर नर अपने शुक्राणु छिड़क देता है और यह प्रक्रिया बाह्य निषेचन कहलाती है। लगभग सभी गैर अण्डज मछलियां, उभयचर और सरीसृप अण्डजरायुज होते हैं, अर्थात् अंडे माँ के शरीर के अंदर ही फूटते हैं (समुद्री घोड़े के मामले में पिता के अंदर)। अण्डजता का वास्तविक विलोम आंवल जरायुजता है जो लगभग सभी स्तनधारियों में पाई जाती है (धानी-प्राणी (मार्स्युपिअल) और मोनोट्रीम जैसे अपवादों को छोड़कर)। स्तनधारियों की सिर्फ पांच ज्ञात अण्डज प्रजातियां हैं: एकिड्ना की चार प्रजातियां और प्लैटीपस। .

15 संबंधों: निषेचन, पक्षी, प्लैटीपुस, बीजांडासन, भ्रूण, मछली, मोनोट्रीम, शुक्राणु, सरीसृप, स्तनधारी, जरायुजता, कीट, अण्डजता, अण्डजरायुजता, उभयचर

निषेचन

एक शुक्राणु कोशिका, अण्डाणु को निशेचित कर रही है। जन्तुओं के मादा के अंडाणु और नर के शुक्राणु मिलकर एकाकार हो जाते हैं और नये 'जीव' का सृजन करते हैं; इसे या निषेचन (Fertilisation) कहते हैं। .

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पक्षी

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प्लैटीपुस

प्लैटीपुस (Platypus), जो बत्तखमुँह प्लैटीपस (duck-billed platypus) भी कहलाता है, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में रहने वाला एक स्तनधारी प्राणी है। यह स्तनधारियों के मोनोट्रीम गण की पाँच ज्ञात जातियों में से एक है (अन्य चार एकिडना की जातियाँ हैं), जो स्तनधारी होने के नाते अपने शिशुओं को दूध तो पिलाते हैं लेकिन जिनमें माता गर्भ धारण करने की बजाए अण्डे देती है। पूरे स्तनधारी समुदाय में अण्डे देने वाली केवल यही पाँच जातियाँ है। क्रमविकास (एवोल्यूशन) की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह जातियाँ उस समय का संकेत हैं जब स्तनधारी नये-नये विकसित हो रहे थे और उनमें गर्भ में शिशु विकसित करने की क्षमता उत्पन्न नहीं हुई थी। इसलिए इन्हें जीवित जीवाश्म की श्रेणी में भी डाला जाता है। .

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बीजांडासन

बीजाण्डासन (प्लेसेन्टा) बीजाण्डासन या अपरा (Placenta) वह अंग है जिसके द्वारा गर्भाशय में स्थित भ्रूण के शरीर में माता के रक्त का पोषण पहुँचता रहता है और जिससे भ्रूण की वृद्धि होती है। यह अंग माता और भ्रूण के शरीरों में संबंध स्थापित करनेवाला है। यद्यपि माता का रक्त भ्रूण के शरीर में कहीं पर नहीं जाने पाता, दोनों के रक्त पूर्णतया पृथक्‌ रहते हैं और दोनों की रक्तवाहिनियों के बीच एक पतली झिल्ली या दीवार रहती है, तो भी उस दीवार के द्वारा माता के रक्त के पोषक अवयव छनकर भ्रूण की रक्तवाहिकाओं में पहुँचते रहते है। .

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भ्रूण

झुर्रीदार मेढक (राना रूगोसा) के भ्रूण (और एक बेंगची) भ्रूण (Embryo) प्राणी के विकास की प्रारंभिक अवस्था को कहते हैं। मानव में तीन मास की गर्भावस्था के पश्चात्‌ भ्रूण को गर्भ की संज्ञा दी जाती है। एक निषेचित अंडाणु जब फलोपिओन नालिका (fallopian tube) से गुजरता है तब उसका खंडीभवन (segmentation) होता हें तथा यह अवस्था मोरूला (morula) बन जाता हें। प्रथम तीन सप्ताह में ही प्रारंभिक जननस्तर (primary germ layers) प्रारंभिक जनन स्तर के तीन भाग होते हैं। बाहर का भाग बाह्यत्वचा (ectoderm), अंदर का भाग अंतस्त्वचा (endoderm) और दोनों के बीच का भाग मध्यस्तर (mesoderm) कहलाता है। इन्हीं से विभिन्न कार्य करनेवाले अंग विकसित होते हैं। भ्रुण अवस्था अष्टम सप्ताहश् के अंत तक रहती है। नाना आशयों तथा अंगों के निर्माण के साथ साथ भ्रूण में अत्यंत महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। इसके पश्चात्‌ तीसरे मास से गर्भ कहानेवाली अवस्था प्रसव तक होती है। भ्रूण अत्यंत प्रारंभिक अवस्था में अपना पोषण प्राथमिक अंडाणु के द्वारा लाए गए पोषक द्रव्यों से पाता है। इसके पश्चात्‌ ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय की ग्रंथियों तथा वपन की क्रिया में हुए ऊतकलयन के फलस्वरूप एकत्रित रक्त से पोषण लेता है। भ्रूणपट्ट (embryonic disc), उल्व (amnion), देहगुहा (coelom) तथा पीतक (yolk) थैली में भरे द्रव्य से पोषण लेता है। अंत में अपना तथा नाभि नाल के निर्माण के पश्चात्‌ माता के रक्तपरिवहन के भ्रूणरक्त का परिवहनसंबंध स्थापित होकर, भ्रूण का पोषण होता है। 270 दिन तक मातृ गर्भाशय में रहने के पश्चात प्रसव होता है और शिशु गर्भाशय से निकलता है। भ्रूण (अनियमित रूप से ग्रीक: बहुवचन lit. से आया शब्द है जिसका अर्थ होता है -"वह जो विकसित होता है", en से-"in"+bryin "फूलना, भरना; इसका सही लातिन रूप होगा embryum) अपने विकास के शुरूआती चरण में, प्रथम कोशिका विभाजन से लेकर जन्म, प्रसव या अंकुरण तक, एक बहुकोशिकीय डिप्लॉयड यूक्रायोट होता है। इंसानों में, इसे निषेचन के आठ सप्ताह तक (मतलब एलएमपी के 10वें सप्ताह तक) भ्रूण कहा जाता है और उसके बाद से भ्रूण की बजाय इसे गर्भस्थ शिशु (फेटस) कहा जता है। भ्रूण के विकास को एंब्रियोजेनेसिस कहा जाता है। जीवों में, जो यौन प्रजनन करते हैं, एक बार शुक्राणु अण्ड कोशिका को निषेचित कर लेता है, तो परिणाम स्वरूप एक कोशिका जन्म लेती है, जिसे जाइगोट कहते हैं, जिसमें दोनों अभिभावकों का आधा डीएनए होता है। पौधों, जानवरों और कुछ प्रोटिस्ट में समविभाजन के द्वारा एक बहुकोशिकीय जीव को पैदा करने के लिए जाइगोट विभाजित होना शुरू हो जाएगा.

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मछली

अमरीकी प्रान्त जॉर्जिया के मछलीघर में एक विशालकाय ग्रूपर अन्य मछलियों के साथ तिरती हुई। मछली शल्कों वाला एक जलचर है जो कि कम से कम एक जोडा़ पंखों से युक्त होती है। मछलियाँ मीठे पानी के स्त्रोतों और समुद्र में बहुतायत में पाई जाती हैं। समुद्र तट के आसपास के इलाकों में मछलियाँ खाने और पोषण का एक प्रमुख स्रोत हैं। कई सभ्यताओं के साहित्य, इतिहास एवं उनकी संस्कृति में मछलियों का विशेष स्थान है। इस दुनिया में मछलियों की कम से कम 28,500 प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें अलग अलग स्थानों पर कोई 2,18,000 भिन्न नामों से जाना जाता है। इसकी परिभाषा कई मछलियों को अन्य जलीय प्रणी से अलग करती है, यथा ह्वेल एक मछली नहीं है। परिभाषा के मुताबिक़, मछली एक ऐसी जलीय प्राणी है जिसकी रीढ़ की हड्डी होती है (कशेरुकी जन्तु), तथा आजीवन गलफड़े (गिल्स) से युक्त होती हैं तथा अगर कोई डालीनुमा अंग होते हैं (लिंब) तो वे फ़िन के रूप में होते हैं। alt.

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मोनोट्रीम

मोनोट्रीम (monotreme, अर्थ: एकविदर) या अंडजस्तनी स्तनधारी प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक गण (ऑर्डर) है, जिसमें अब दो ही प्रकार के जंतु जीवित हैं। यह अण्डे देते हैं लेकिन फिर जन्मने वाले शिशु को माता के स्तन से दूध पिलाते हैं। आधुनिक जगत में मोनोट्रीम की पाँच जातियाँ अस्तित्व में हैं जिनमें से एक प्लैटीपुस और चार एकिडना की जातियाँ हैं। .

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शुक्राणु

नर शुक्राणु का मादा के अंडाणुओं से मिलन शुक्राणु(स्पर्म) शब्द यूनानी शब्द (σπέρμα) स्पर्मा से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है 'बीज' जिसका अर्थ पुरुष की प्रजनन कोशिकाओं से है। विभिन्न प्रकार के यौन प्रजननो जैसे एनिसोगैमी (anisogamy) और ऊगैमी (oogamy) में एक चिह्नित अंतर है, जिसमें छोटे आकार के युग्मकों (gametes) को 'नर' या शुक्राणु कोशिका कहा जाता है। पुरुष शुक्राणु अगुणित होते है इसलिए पुरुष के २३ गुण सूत्र (chromosome) मादा के अंडाणुओं के २३ गुणसूत्रों के साथ मिलकर द्विगुणित बना सकते है। एक मानव शुक्राणु सेल के आरेख अवधि शुक्राणु यूनानी (σπέρμα) शब्द sperma से ली गई है (जिसका अर्थ है "बीज") और पुरुष प्रजनन कोशिकाओं को संदर्भित करता है। यौन प्रजनन anisogamy और oogamy के रूप में जाना जाता है के प्रकार में, वहाँ छोटे "पुरुष" या शुक्राणु सेल कहा जा रहा है एक के साथ gametes के आकार में एक स्पष्ट अंतर है। एक uniflagellar शुक्राणु सेल चलता - फिरता है, एक शुक्राणु के रूप में जाना जाता है, जबकि एक गैर motile शुक्राणु सेल एक spermatium रूप में करने के लिए भेजा है। शुक्राणु कोशिकाओं के विभाजन और एक सीमित जीवन काल है, कर सकते हैं लेकिन अंडे की कोशिकाओं के साथ निषेचन के दौरान विलय के बाद, एक नया जीव के विकास, एक totipotent युग्मनज के रूप में शुरू शुरू होता है मानव शुक्राणु सेल अगुणित है, ताकि अपने 23 क्रोमोसोम में शामिल कर सकते हैं। मादा अंडे के 23 गुणसूत्रों एक द्विगुणित सेल बनाने के लिए। स्तनधारियों में, शुक्राणु अंडकोष में विकसित और है लिंग से जारी है। .

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सरीसृप

सरीसृप (Reptiles) प्राणी-जगत का एक समूह है जो कि पृथ्वी पर सरक कर चलते हैं। इसके अन्तर्गत साँप, छिपकली,मेंढक, मगरमच्छ आदि आते हैं। .

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स्तनधारी

यह प्राणी जगत का एक समूह है, जो अपने नवजात को दूध पिलाते हैं जो इनकी (मादाओं के) स्तन ग्रंथियों से निकलता है। यह कशेरुकी होते हैं और इनकी विशेषताओं में इनके शरीर में बाल, कान के मध्य भाग में तीन हड्डियाँ तथा यह नियततापी प्राणी हैं। स्तनधारियों का आकार २९-३३ से.मी.

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जरायुजता

जरायुजता प्रजनन की एक विधि है, जिनमें बच्चों के भ्रूण के विकास माँ के शरीर के अंदर होता है और जीवित शिशुओं को जन्म दिया जाता है। अण्डजता के विपरीत, जरायुजता में भ्रूण का पोषण माँ के शरीर उपस्थित अपरा के माध्यम से होता है। जरायुजता स्तनधारियों में सबसे आम प्रजनन विधि है, हालाँकि यह कुछ सरीसृपों, उभयचरों, सन्धिपादों और मछली की कुछ प्रजातियों में भी पाई जाती है। .

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कीट

एक टिड्डा कीट अर्थोपोडा संघ का एक प्रमुख वर्ग है। इसके 10 लाख से अधिक जातियों का नामकरण हो चुका है। पृथ्वी पर पाये जाने वाले सजीवों में आधे से अधिक कीट हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि कीट वर्ग के 3 करोड़ प्राणी ऐसे हैं जिनको चिन्हित ही नहीं किया गया है अतः इस ग्रह पर जीवन के विभिन्न रूपों में कीट वर्ग का योगदान 90% है। ये पृथ्वी पर सभी वातावरणों में पाए जाते हैं। सिर्फ समुद्रों में इनकी संख्या कुछ कम है। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण कीट हैं: एपिस (मधुमक्खी) व बांबिक्स (रेशम कीट), लैसिफर (लाख कीट); रोग वाहक कीट, एनाफलीज, क्यूलेक्स तथा एडीज (मच्छर); यूथपीड़क टिड्डी (लोकस्टा); तथा जीवीत जीवाश्म लिमूलस (राज कर्कट किंग क्रेब) आदि। .

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अण्डजता

अण्डज वो जीव होते हैं जो अंडे देते हैं और जिनके भ्रूण का विकास माता के गर्भ में नहीं होता, सिर्फ कुछ अपवादों में ही इनके भ्रूण का विकास माता के शरीर् में आंशिक रूप से होता या है। प्रजनन का यह तरीका अधिकतर मछलियों, उभयचरों, सरीसृपों, सभी पक्षियों, मोनोट्रीम, अधिकतर कीटों और लूताभों में सबसे सामान्य है। अंडे देने वाले स्थलचर, जैसे सरीसृप और कीट जिनके अंडे एक कवच द्वारा सुरक्षित रहते हैं, आंतरिक निषेचन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अंडे देते हैं, जबकि जलचरों, जैसे कि मछलियों और उभयचरों में अंडे निषेचन प्रक्रिया से पहले दिए जाते हैं और ताजे दिए अंडों के ऊपर नर अपने शुक्राणु छिड़क देता है और यह प्रक्रिया बाह्य निषेचन कहलाती है। लगभग सभी गैर अण्डज मछलियां, उभयचर और सरीसृप अण्डजरायुज होते हैं, अर्थात् अंडे माँ के शरीर के अंदर ही फूटते हैं (समुद्री घोड़े के मामले में पिता के अंदर)। अण्डजता का वास्तविक विलोम आंवल जरायुजता है जो लगभग सभी स्तनधारियों में पाई जाती है (धानी-प्राणी (मार्स्युपिअल) और मोनोट्रीम जैसे अपवादों को छोड़कर)। स्तनधारियों की सिर्फ पांच ज्ञात अण्डज प्रजातियां हैं: एकिड्ना की चार प्रजातियां और प्लैटीपस। .

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अण्डजरायुजता

अण्डजरायुजता, जीवों के प्रजनन की एक विधा है जिसमें भ्रूण का विकास अंडे के भीतर होता है और यह अंडा परिपक्व होकर फूटने तक माता के शरीर के अंदर ही रहता है। अण्डजरायुज जीवों में जरायुज जीवों की भांति आंतरिक निषेचन होता है और जीवित शिशुओं का जन्म होता है, अंतर सिर्फ इस बात का होता है कि इनमें जरायुज प्राणिओं की तरह भ्रूण, माता से अपरा के माध्यम से जुड़ा नहीं होता और भ्रूण का पोषण, पीतक कोष द्वारा होता है हालांकि, माँ के शरीर के द्वारा गैस विनिमय (श्वसन) होता है। .

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उभयचर

उभयचर वर्ग (Amphibia / एंफ़िबिया) पृष्ठवंशीय प्राणियों का एक बहुत महत्वपूर्ण वर्ग है जो जीववैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार मत्स्य और सरीसृप वर्गों के बीच की श्रेणी में आता है। इस वर्ग के कुछ जंतु सदा जल पर तथा कुछ जल और थल दोनों पर रहते हैं। ये अनियततापी जंतु हैं। इस वर्ग में ३००० जाति पाए जाते हैं। शरीर पर शल्क, बाल या पंख नहीं होते हैं, परंतु इनकी त्वचा अधिक ग्रंथिमय होने के कारण चिकनी होती है। मेंढक इस वर्ग का एक प्रमुख प्राणि है। यह पृष्ठवंशियों का प्रथम वर्ग है, जिसने जल के बाहर रहने का प्रयास किया था। फलस्वरूप नई परिस्थितियों के अनुकूल इनकी रचना में प्रधानतया तीन प्रकार के अंतर हुए- (१) इनका शारीरिक ढाँचा जल में तैरने के अतिरिक्त थल पर भी रहने के योग्य हुआ। (२) क्लोम दरारों के स्थान पर फेफड़ों का उत्पादन हुआ तथा रक्तपरिवहन में भी संबंधित परिवर्तन हुए। (३) ज्ञानेंद्रियों में यथायोग्य परिवर्तन हुए, जिससे ये प्राणी जल तथा थल दोनों परिस्थितियों का ज्ञान कर सकें। .

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