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अक्रूर

सूची अक्रूर

अक्रूर कृष्णकालीन एक यादववंशी मान्य व्यक्ति थे। ये सात्वत वंश में उत्पन्न वृष्णि के पौत्र थे। इनके पिता का नाम श्वफल्क था जिनके साथ काशी के राजा अपनी पुत्री गांदिनी का विवाह किया था। इन्हीं दोनों की संतान होने से अक्रूर श्वाफल्कि तथा गांदिनीनंदन के नाम से भी प्रसिद्ध थे। मथुरा के राजा कंस की सलाह पर बलराम तथा कृष्ण को वृन्दावन से मथुरा लाए (भागवत १०.४०)। स्यमंतक मणि से भी इनका बहुत संबंध था। अक्रूर तथा कृतवर्मा द्वारा प्रोत्साहित होने पर शतधन्वा ने कृष्ण के श्वसुर तथा सत्यभामा के पिता सत्राजित का वध कर दिया। फलतः क्रुद्ध होकर श्रीकृष्ण ने शतधन्वा को मिथिला तक पीछा कर मार डाला, पर मणि उसके पास नहीं निकली। वह मणि अक्रूर के ही पास थी जो डरकर द्वारिका से बाहर चले गए थे। उन्हें मनाकर कृष्ण मथुरा लाए तथा अपने बंधु वर्गों में बढ़ने वाले कलह को उन्होंने शांत किया (भागवत १०.५७)। श्रेणी:पौराणिक पात्र.

14 संबंधों: द्वारका, बलराम, भागवत पुराण, मथुरा, मिथिला, सत्यभामा, स्यमंतक मणि, विवाह, वृन्दावन, वृष्णि, काशी, कंस, कृतवर्मा, कृष्ण

द्वारका

द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका जिले में स्थित एक नगर तथा हिन्दू तीर्थस्थल है। यह हिन्दुओं के साथ सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक तथा चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है। जिले का नाम द्वारका पुरी से रखा गया है जीसकी रचना २०१३ में की गई थी। यह नगरी भारत के पश्चिम में समुन्द्र के किनारे पर बसी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है। धुनिक द्वारका एक शहर है। कस्बे के एक हिस्से के चारों ओर चहारदीवारी खिंची है इसके भीतर ही सारे बड़े-बड़े मन्दिर है। काफी समय से जाने-माने शोधकर्ताओं ने पुराणों में वर्णित द्वारिका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन कार्य अभी तक पूरा नहीं किया गया है। 2005 में द्वारिका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान में भारतीय नौसेना ने भी मदद की।अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छटे पत्थर मिले और यहां से लगभग 200 अन्य नमूने भी एकत्र किए, लेकिन आज तक यह तय नहीं हो पाया कि यह वही नगरी है अथवा नहीं जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। आज भी यहां वैज्ञानिक स्कूबा डायविंग के जरिए समंदर की गहराइयों में कैद इस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं। कृष्ण मथुरा में उत्पन्न हुए, लले, पर राज उन्होने द्वा ही किया। यहीं बैठकर उन्होने सारे देश की बागडोर अपने हाथ में संभाली। पांड़वों को सहारा दिया। धर्म की जीत कराई और, शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया। द्वारका उस जमाने में राजधानी बन गई थीं। बड़े-बड़े राजा यहां आते थे और बहुत-से मामले में भगवान कृष्ण की सलाह लेते थे। इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि कृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई। आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं। द्वारका का विहंगम दृष्य .

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बलराम

पांचरात्र शास्त्रों के अनुसार बलराम (बलभद्र) भगवान वासुदेव के ब्यूह या स्वरूप हैं। उनका कृष्ण के अग्रज और शेष का अवतार होना ब्राह्मण धर्म को अभिमत है। जैनों के मत में उनका संबंध तीर्थकर नेमिनाथ से है। बलराम या संकर्षण का पूजन बहुत पहले से चला आ रहा था, पर इनकी सर्वप्राचीन मूर्तियाँ मथुरा और ग्वालियर के क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं। ये शुंगकालीन हैं। कुषाणकालीन बलराम की मूर्तियों में कुछ व्यूह मूर्तियाँ अर्थात् विष्णु के समान चतुर्भुज प्रतिमाए हैं और कुछ उनके शेष से संबंधित होने की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं। ऐसी मूर्तियों में वे द्विभुज हैं और उनका मस्तक मंगलचिह्नों से शोभित सर्पफणों से अलंकृत है। बलराम का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में उठा हुआ है और बाएँ में मदिरा का चषक है। बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है। कुषाण काल के मध्य में ही व्यूहमूर्तियों का और अवतारमूर्तियों का भेद समाप्तप्राय हो गया था, परिणामत: बलराम की ऐसी मूर्तियाँ भी बनने लगीं जिनमें नागफणाओं के साथ ही उन्हें हल मूसल से युक्त दिखलाया जाने लगा। गुप्तकाल में बलराम की मूर्तियों में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। उनके द्विभुज और चतुर्भुज दोनों रूप चलते थे। कभी-कभी उनका एक ही कुंडल पहने रहना "बृहत्संहिता" से अनुमोदित था। स्वतंत्र रूप के अतिरिक्त बलराम तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ, देवी एकानंशा के साथ, कभी दशावतारों की पंक्ति में दिखलाई पड़ते हैं। कुषाण और गुप्तकाल की कुछ मूर्तियों में बलराम को सिंहशीर्ष से युक्त हल पकड़े हुए अथवा सिंहकुंडल पहिने हुए दिखलाया गया है। इनका सिंह से संबंध कदाचित् जैन परंपरा पर आधारित है। मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त - जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही - बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया। हल, मूसल तथा मद्यपात्र धारण करनेवाले सर्पफणाओं से सुशोभित बलदेव बहुधा समपद स्थिति में अथवा कभी एक घुटने को किंचित झुकाकर खड़े दिखलाई पड़ते हैं। कभी-कभी रेवती भी साथ में रहती हैं। .

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भागवत पुराण

सन १५०० में लिखित एक भागवत पुराण मे यशोदा कृष्ण को स्नान कराते हुए भागवत पुराण (Bhaagwat Puraana) हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् (Shrimadbhaagwatam) या केवल भागवतम् (Bhaagwatam) भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण का रचयिता वेद व्यास को माना जाता है। श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है। .

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मथुरा

मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक जिला है। मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है। मथुरा को श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है। .

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मिथिला

'''मिथिला''' मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था। माना जाता है कि यह वर्तमान उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाका है जिसे मिथिला के नाम से जाना जाता था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है। .

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सत्यभामा

The Wedding of Satyabhama and Krishna from Bhagavata Purana सत्यभामा सत्राजित की कन्या और कृष्ण की चार मुख्य स्त्रियों में से एक। इनसे कृष्ण को दस पुत्र हुए जिनके नाम भानु, सुभानु, स्वरभानु आदि थे। सूर्य ने जो स्यमंतक मणि सत्यभामा के पिता को दी थी उसे शतधन्वन ने सत्राजित की हत्या करके छीन लिया। अंत में यह मणि अक्रूर के पास निकली और उसके अधिकारियों में से सत्यभामा भी एक थीं। परंतु निर्णय हुआ कि अक्रूर ही इस मणि को अपने पास रखें। भगवान कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से ही नरकासुर नामक राक्षस का संहार किया था। .

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स्यमंतक मणि

स्यमन्तक मणि एक दुर्लभ, आध्यात्मिक मणि है । इस मणि में एक सूक्ष्म शक्ति होती है जो की आध्यात्मिक और सांसारिक प्रगति में सहायक करती है। इसकी कथा द्वापर युग से बतायी जाती है। .

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विवाह

हिन्दू विवाह का सांकेतिक चित्रण विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। विवाह की परिभाषा न केवल संस्कृतियों और धर्मों के बीच, बल्कि किसी भी संस्कृति और धर्म के इतिहास में भी दुनिया भर में बदलती है। आमतौर पर, यह मुख्य रूप से एक संस्थान है जिसमें पारस्परिक संबंध, आमतौर पर यौन, स्वीकार किए जाते हैं या संस्वीकृत होते हैं। एक विवाह के समारोह को विवाह उत्सव (वेडिंग) कहते है। विवाह मानव-समाज की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रथा या समाजशास्त्रीय संस्था है। यह समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई- परिवार-का मूल है। यह मानव प्रजाति के सातत्य को बनाए रखने का प्रधान जीवशास्त्री माध्यम भी है। .

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वृन्दावन

कृष्ण बलराम मन्दिर इस्कॉन वृन्दावन वृन्दावन मथुरा क्षेत्र में एक स्थान है जो भगवान कृष्ण की लीला से जुडा हुआ है। यह स्थान श्री कृष्ण भगवान के बाललीलाओं का स्थान माना जाता है। यह मथुरा से १५ किमी कि दूरी पर है। यहाँ पर श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर की विशाल संख्या है। यहाँ स्थित बांके विहारी जी का मंदिर सबसे प्राचीन है। इसके अतिरिक्त यहाँ श्री कृष्ण बलराम, इस्कान मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, प्रेम मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, निधि वन आदिदर्शनीय स्थान है। यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों की स्थिति का ज्ञान होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में अन्यत्र वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है। .

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वृष्णि

वृष्णि चंद्रवंश के महान राजा थे। राजा वृष्णी यदुकुल श्रेष्ठ यदु के बेटे थे। उन्हीं के नाम से यादवो की शाखा वृष्णीवंश बनी है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भी इसी वृष्णी वंश में हुआ था। वेदव्यास लिखित श्री हरिवंश पुराण में इनके और इनके वंश के बारे में और जानकारी उपलन्ध है। .

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काशी

काशी जैनों का मुख्य तीर्थ है यहाँ श्री पार्श्वनाथ भगवान का जन्म हुआ एवम श्री समन्तभद्र स्वामी ने अतिशय दिखाया जैसे ही लोगों ने नमस्कार करने को कहा पिंडी फट गई और उसमे से श्री चंद्रप्रभु की प्रतिमा जी निकली जो पिन्डि आज भी फटे शंकर के नाम से प्रसिद्ध है काशी विश्वनाथ मंदिर (१९१५) काशी नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है। इसे संसार के सबसे पुरानी नगरों में माना जाता है। भारत की यह जगत्प्रसिद्ध प्राचीन नगरी गंगा के वाम (उत्तर) तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगासंगमों के बीच बसी हुई है। इस स्थान पर गंगा ने प्राय: चार मील का दक्षिण से उत्तर की ओर घुमाव लिया है और इसी घुमाव के ऊपर इस नगरी की स्थिति है। इस नगर का प्राचीन 'वाराणसी' नाम लोकोच्चारण से 'बनारस' हो गया था जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने शासकीय रूप से पूर्ववत् 'वाराणसी' कर दिया है। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है - 'काशिरित्ते..

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कंस

कृष्ण द्वारा कंस का वध किया गया कंस हिन्दू पौराणिक कथाएँ अनुसार यदुकुल के राजा था जिसकी राजधानी मथुरा थी। वह भगवान कृष्ण की मां देवकी का भाई है। कंस को प्रारंभिक स्रोतों में मानव और पुराणों में एक राक्षस के रूप में वर्णित किया गया है। कंस का जन्म राजा उग्रसेन और रानी पद्मावती के यहाँ हुआ था। हालांकि महत्वाकांक्षा से और अपने व्यक्तिगत विश्वासियों, बाणासुर और नरकासुर की सलाह पर, कंस ने अपने पिता को अपदस्थ किया और मथुरा के राजा के रूप में खुद को स्थापित किया। कंस ने मगध के राजा जरासन्ध की बेटियों अस्थी और प्रिप्ती से शादी करने का फैसला किया। एक दिन आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र उसे मार डालेगा। इसलिये उसने देवकी और उसके पति वसुदेव को कैद कर दिया और उनके शुरुआती छः बच्चों को मार डाला (सातवाँ बलराम भी बच गए)। हालांकि आठवें बेटे भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण को गोकुल ले जाया गया, जहां उन्हें ग्वाला के मुखिया नंदा की देखभाल में पाला गया था। कंस ने कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षसों को भेजा, जिनमें से सभी की कृष्ण द्वारा हत्या कर दी गई थी। अंत में, कृष्ण मथुरा पहुँचते हैं और अपने मामा कंस को मार डालते हैं। .

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कृतवर्मा

कृतवर्मा यदुवंश के अंतर्गत भोजवंशीय हृदिक का पुत्र और वृष्णिवंश के सात सेनानायकों में एक। महाभारत युद्ध में इसने एक अक्षौहिणी सेना के साथ दुर्योधन की सहायता की थी। यह कौरव पक्ष का अतिरथी वीर था (महाभारत, उद्योगपर्व, 130-10-11)। महाभारत के युद्ध में इसने अपने पराक्रम का अनेक बार प्रदर्शन किया; अनेक बार पांडव सेना को युद्धविमुख किया तथा भीमसेन, युधिष्ठिर, धृष्टद्युम्न, उत्तमौजा आदि वीरों को पराजित किया। द्वैपायन सरोवर पर जाकर इसी ने दुर्योधन को युद्ध के लिए उत्साहित किया था। निशाकाल के सौप्तिक युद्ध में इसने अश्वत्थामा का साथ दिया तथा शिविर से भागे हुए योद्धाओं का वध किया (सौप्तिक पर्व 5-106-107) और पांडवों के शिविर में आग लगाई। मौसल युद्ध में सात्यकि ने इसका वध किया। महाभारत के अनुसार मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग जाने पर इसका प्रवेश मरुद्गणों में हो गया। .

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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निवर्तमानआने वाली
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