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अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत

सूची अंतरराष्ट्रीय संबंध सिद्धांत

---- अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत में सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य से अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन किया जाता है। यह एक ऐसा वैचारिक ढांचा प्रदान करने का प्रयास करता है जिससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जा सके। ओले होल्स्ती कहता है की अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत रंगीन धूप के चश्में की एक जोड़ी के रूप में कार्य करते हैं, जो उसे पहनने वाले व्यक्ति को केवल मुख्य सिद्धांत के लिए प्रासंगिक घटनाओं को देखने की अनुमति देता है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में यथार्थवाद, उदारवाद और रचनावाद, तीन सबसे लोकप्रिय सिद्धांत हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत मुख्यत: दो सिद्धांतों में विभाजित किये जा सकते हैं, "प्रत्यक्षवादी/बुद्धिवादी" जो मुख्यत: राज्य स्तर के विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। और उत्तर-प्रत्यक्षवादी/चिंतनशील जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत में उत्तर औपनिवेशिक युग में सुरक्षा, वर्ग, लिंग आदि के विस्तारित अर्थ को शामिल करवाना चाहते हैं। आईआर (IR) सिद्धांतो में443333 विचारों के अक्सर कई विरोधाभासी तरीके मौजूद हैं, जैसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों (IR) में रचनावाद, संस्थावाद, मार्क्सवाद, नव-ग्रामस्कियनवाद (neo-Gramscianism), और अन्य। हालांकि, प्रत्यक्षवादी सिद्धांतों के स्कूलों में सबसे अधिक प्रचलित यथार्थवाद और उदारवाद हैं। यद्यपि, रचनावाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तेजी से मुख्यधारा होता जा रहा है। .

25 संबंधों: पर्यावरण, पहला विश्व युद्ध, पूर्वी यूरोप, बहुराष्ट्रीय कम्पनी, भौतिक, मार्क्सवाद, यथार्थवाद, रचनात्मकतावाद (अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध), राज्य, लोकतंत्र, शून्य-संचय खेल, सम्प्रभु राज्य, सम्प्रभुता, साम्यवाद, सामूहिक सुरक्षा, सुरक्षा, स्वयं सेवक संगठन, हंस मोर्गेंथाऊ, ई. एच. कार, विदेश नीति, वुडरो विल्सन, आदर्शवाद, अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध, अस्तित्ववाद, उदारतावाद

पर्यावरण

पर्यावरण प्रदूषण - कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन पर्यावरण (Environment) शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। "परि" जो हमारे चारों ओर है और "आवरण" जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं। सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं के समुच्चय से निर्मित इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी के अन्दर सम्पादित होती है तथा हम मनुष्य अपनी समस्त क्रियाओं से इस पर्यावरण को भी प्रभावित करते हैं। इस प्रकार एक जीवधारी और उसके पर्यावरण के बीच अन्योन्याश्रय संबंध भी होता है। पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधे आ जाते हैं और इसके साथ ही उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएँ और प्रक्रियाएँ भी। अजैविक संघटकों में जीवनरहित तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएँ आती हैं, जैसे: चट्टानें, पर्वत, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि। .

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पहला विश्व युद्ध

पहला विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक मुख्य तौर पर यूरोप में व्याप्त महायुद्ध को कहते हैं। यह महायुद्ध यूरोप, एशिया व अफ़्रीका तीन महाद्वीपों और समुंदर, धरती और आकाश में लड़ा गया। इसमें भाग लेने वाले देशों की संख्या, इसका क्षेत्र (जिसमें यह लड़ा गया) तथा इससे हुई क्षति के अभूतपूर्व आंकड़ों के कारण ही इसे विश्व युद्ध कहते हैं। पहला विश्व युद्ध लगभग 52 माह तक चला और उस समय की पीढ़ी के लिए यह जीवन की दृष्टि बदल देने वाला अनुभव था। क़रीब आधी दुनिया हिंसा की चपेट में चली गई और इस दौरान अंदाज़न एक करोड़ लोगों की जान गई और इससे दोगुने घायल हो गए। इसके अलावा बीमारियों और कुपोषण जैसी घटनाओं से भी लाखों लोग मरे। विश्व युद्ध ख़त्म होते-होते चार बड़े साम्राज्य रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी (हैप्सबर्ग) और उस्मानिया ढह गए। यूरोप की सीमाएँ फिर से निर्धारित हुई और अमेरिका निश्चित तौर पर एक 'महाशक्ति ' बन कर उभरा। .

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पूर्वी यूरोप

पूर्वी यूरोप यूरोप के महाद्वीप का पूर्वी भाग है। इसकी सीमाओं पर आम सहमति न होने के कारण इसमें सम्मिलित देशों व क्षेत्रों की कोई सर्वस्विकृत सूची नहीं है। अक्सर इसमें यूरोप के वह देश आते हैं जो या तो भूतपूर्व सोवियत संघ के भाग थे या उसके प्रभाव में थे। इनमें रूस, यूक्रेन, बेलारूस, पोलैण्ड, बुल्गारिया, चेक गणतंत्र, स्लोवाकिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुएनिया, हंगरी और मोल्दोवा सम्मिलित हैं। कुछ स्रोतों में अल्बानिया और भूतपूर्व यूगोस्लाविया के विखंडन से बने देश - सर्बिया, मासेदोनिया, स्लोवीनिया, क्रोएशिया, बोस्निया - भी शामिल हैं। लगभग सभी परिभाषाओं में यूराल पर्वतमाला, यूराल नदी और कॉकस क्षेत्र पूर्वी यूरोप की पूर्वतम सीमा माने जाते हैं। .

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बहुराष्ट्रीय कम्पनी

प्रारम्भिक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का मानचित्र यह एक निगम या उपक्रम होता है जो कि कम से कम दो देशों या राष्ट्रों में उत्पादन की स्थापना का प्रबन्धन करते हैं, या सेवाएं उपलब्ध कराते हैं। कई बहुत बड़ी बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों के बजट तो कई देशों के सालाना आर्थिक बजट से भी ज्यादा होते हैं। इन कम्पनियों का स्थानीय अर्थव्यवस्था व अन्तराष्ट्रीय सम्बन्धों पर शक्तिशाली प्रभाव होता है। इन कम्पनियों की विश्वव्यापकीकरण में अहम भूमिका होती है। इन्हें प्रचलित भाषा में एम एन सी या मल्टीनेशनल कम्पनी भी कहते हैं। .

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भौतिक

भौतिक अर्थात भौतिक तत्त्व संदर्भी। विज्ञान में भौतिक शब्द का तात्पर्य किसी पदार्थ या पर्यावरण के गुणों से होता है। विज्ञान की इस शाखा को भौतिक शास्त्र कहा जाता है। श्रेणी:भौतिकी.

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मार्क्सवाद

सामाजिक राजनीतिक दर्शन में मार्क्सवाद (Marxism) उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व द्वारा वर्गविहीन समाज की स्थापना के संकल्प की साम्यवादी विचारधारा है। मूलतः मार्क्सवाद उन आर्थिक राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांतो का समुच्चय है जिन्हें उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और व्लादिमीर लेनिन तथा साथी विचारकों ने समाजवाद के वैज्ञानिक आधार की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया। .

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यथार्थवाद

यथार्थवाद, यथार्थपरक या यथार्थवादी का संबंध निम्नांकित संदर्भों से हो सकता है.

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रचनात्मकतावाद (अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध)

रचनात्मकतावाद (Constructivism) अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन का तीसरा दृष्टिकोण है। आदर्शवाद और यथार्थवाद के मुकाबले यह नज़रिया विश्व-राजनीति की जाँच सामाजिक धरातल पर करने की तजवीज़ करता है। रचनात्मकतावादियों का दावा है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की सही समझ केवल भौतिक सीमाओं के दायरे में होने वाली तर्कसंगत अन्योन्यक्रियाओं से ही नहीं हासिल की जा सकती (जैसा कि यथार्थवादियों का आग्रह है) और न ही उन्हें संस्थागत सीमाओं के भीतर परखने से काम चल सकता है (जैसा कि आदर्शवादी कहते रहे हैं)। रचनात्मकतावादियों के अनुसार सम्प्रभु राज्यों के बीच बनने वाले संबंध केवल उनके स्थिर राष्ट्रीय हितों पर ही आधारित नहीं होते। उन्हें लम्बी अवधि के दौरान बनी अस्मिताओं के प्रभाव में उठाये जाने वाले कदमों को प्रारूपों के तौर पर देख कर समझना पड़ता है।  रचनात्मकतावादी अपना ध्यान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के स्तर पर मौजूद संस्थाओं पर केंद्रित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय कानून, राजनय और सम्प्रभुता को अहमियत देते हैं। शासन-व्यवस्थाएँ भी उनके लिए महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे भी विनियमकारी और विधेयक संरचनाएँ पैदा करती हैं। उनके हाथों एक सामाजिक जगत रचा जाता है जिसकी मदद से राज्य के व्यवहार और आचरण तात्पर्यों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। रचनात्मकतावाद का सिद्धांत भौतिक आयामों की उपेक्षा नहीं करता, पर वह उनके साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को समझने के लिए सामाजिक आयामों को भी जोड़ देता है। इसके तहत जब संस्थाओं की चर्चा की जाती है तो उसका मतलब केवल सांगठनिक ढाँचा ही नहीं होता। संस्था का तात्पर्य है अस्मिताओं और हितों की एक स्थिर संरचना। एक ऐसी संरचना जिसमें साझी समझ, साझी अपेक्षाएँ और सामाजिक ज्ञान अंतर्निहित है। रचनात्मकतावादी संस्थाओं को मूलतः एक संज्ञानात्मक अस्तित्व की तरह देखते हैं जिन्हें अपने कर्त्ताओं के विचारों की सीमाओं के दायरे में ही रहना पड़ता है। संस्थागत संरचनाओं के मानकीय प्रभाव के साथ- साथ रचनात्मकतावाद बदलते हुए मानकों और अस्मिताओं व हितों के बीच बने सूत्रों की जाँच करता है। चूँकि राज्य और अन्य कर्त्ताओं की गतिविधियों के कारण संस्थाओं में लगातार परिवर्तन होता रहता है, इसलिए रचनात्मकतावाद संस्थाओं और कर्त्ताओं को परस्पर अनुकूलन करते रहने वाले अस्तित्वों की तरह देखता है।  इस विवरण से लग सकता है कि एक सैद्धांतिक रवैये के तौर पर रचनात्मकतावाद पर अमल करना कुछ मुश्किल ही होगा। दरअसल, राज्यों के व्यवहार का अंदाज़ा लगाने के लिए किसी एक ख़ास सामाजिक संरचना को चुनने की सिफ़ारिश करने के बजाय यह दृष्टिकोण कहता है कि किसी एक परिस्थिति में मौजूद संरचना की जाँच-पड़ताल करके उसके विशिष्ट दायरे में राज्य के व्यवहार का अनुमान लगाया जा सकता है। अगर अनुमान ग़लत साबित होता है तो इसका मतलब यह हुआ कि उस संरचना को ठीक से समझा नहीं गया है या वह अचानक बदल गयी है। मसलन, अगर यथार्थवादी कहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अराजकता व्याप्त है, तो रचनात्मकतावादी कहेंगे कि उनकी यह धारणा हॉब्स द्वारा प्रतिपादित ‘प्रकृत अवस्था’ के आईने में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को देखने से उपजी है। इस प्रकृत अवस्था का निष्कर्ष सामाजिक संबंधों की एक विशिष्ट संरचना से निकाला गया है जो अब बदल चुकी है।  संरचनावादियों की मान्यता के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ विनियमन भी करती हैं और विधेयक भूमिका भी निभाती हैं। विनियमनकारी भूमिका का अर्थ है कुछ ख़ास तरह के व्यवहारों और आचरणों को मान्य या प्रतिबंधित करना। विधेयक भूमिका का मतलब है किसी व्यवहार या आचरण को परिभाषित करते हुए उसे एक निश्चित तात्पर्य से सम्पन्न करना। राज्य उनकी निगाह में एक नैगमिक (कॉरपोरेट) अस्मिता है। वह अपने बुनियादी लक्ष्यों (सुरक्षा, स्थिरता, मान्यता और आर्थिक विकास) का निर्धारण करता है। पर इन लक्ष्यों की प्राप्ति सामाजिक अस्मिताओं पर निर्भर है; अर्थात्् राज्य ख़ुद को अंतर्राष्ट्रीय समाज के संदर्भ में जिस तरह समझेगा, उसी तरह उसकी सामाजिक अस्मिताएँ बनेंगी। इसी तरह की अस्मिताओं के आधार पर राज्य का राष्ट्रीय हित संरचित होगा। संरचनावादी यथार्थवादियों द्वारा अराजकता को दिये जाने वाले महत्त्व को पूरी तरह नज़रअंदाज़ नहीं करते, पर उनका कहना है कि अराजकता अपने आप में अहम नहीं हो सकती। संबंधों की अराजकता दो मित्र राज्यों को बीच भी हो सकती है और दो शत्रु राज्यों के बीच भी। दोनों का मतलब अलग-अलग होगा। इस लिहाज़ से अराजकता नहीं, बल्कि उसके प्रभाव में बन सकने वाले सामाजिक संबंधों की किस्में ही महत्त्वपूर्ण हो सकती हैं। इन किस्म-किस्म के सामाजिक संबंधों के मुताबिक ही राज्य अपने हितों को परिभाषित करते हैं। मसलन, शीत-युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच का रिश्ता भी एक सामाजिक संबंध था जिसके तहत वे दोनों एक-दूसरे को शत्रु की तरह देखते थे और उसी के मुताबिक उनके राष्ट्रीय हितों की संरचना होती थी। जब उन्होंने एक-दूसरे को उस सामाजिक संबंध के आईने में देखना बंद कर दिया, या उस तरह के सामाजिक संबंध की परिस्थितियाँ ही नहीं रह गयीं तो उसके परिणामस्वरूप शीत-युद्ध ख़त्म हो गया।  स्पष्ट है कि रचनात्मकतावाद एक व्याख्यात्मक सिद्धांत के तौर पर अपनी उपयोगिता बहुत स्पष्ट नहीं कर पाया है। इसके बावजूद उसे एक सैद्धांतिक ढाँचा पेश करने में कामयाबी अवश्य मिली है। रचनात्मकतावाद के प्रचलित होने के पीछे यथार्थवादी और आदर्शवादी दृष्टिकोणों की अपर्याप्तताओं की भूमिका भी है। .

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राज्य

विश्व के वर्तमान राज्य (विश्व राजनीतिक) पूँजीवादी राज्य व्यवस्था का पिरामिड राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य संप्रभुतासम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी 'राज्य' कहते हैं, जैसे भारत के प्रदेशों को भी 'राज्य' कहते हैं। राज्य आधुनिक विश्व की अनिवार्य सच्चाई है। दुनिया के अधिकांश लोग किसी-न-किसी राज्य के नागरिक हैं। जो लोग किसी राज्य के नागरिक नहीं हैं, उनके लिए वर्तमान विश्व व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाये रखना काफ़ी कठिन है। वास्तव में, 'राज्य' शब्द का उपयोग तीन अलग-अलग तरीके से किया जा सकता है। पहला, इसे एक ऐतिहासिक सत्ता माना जा सकता है; दूसरा इसे एक दार्शनिक विचार अर्थात् मानवीय समाज के स्थाई रूप के तौर पर देखा जा सकता है; और तीसरा, इसे एक आधुनिक परिघटना के रूप में देखा जा सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी अर्थों का एक-दूसरे से टकराव ही हो। असल में, इनके बीच का अंतर सावधानी से समझने की आवश्यकता है। वैचारिक स्तर पर राज्य को मार्क्सवाद, नारीवाद और अराजकतावाद आदि से चुनौती मिली है। लेकिन अभी राज्य से परे किसी अन्य मज़बूत इकाई की खोज नहीं हो पायी है। राज्य अभी भी प्रासंगिक है और दिनों-दिन मज़बूत होता जा रहा है। यूरोपीय चिंतन में राज्य के चार अंग बताये जाते हैं - निश्चित भूभाग, जनसँख्या, सरकार और संप्रभुता। भारतीय राजनीतिक चिन्तन में 'राज्य' के सात अंग गिनाये जाते हैं- राजा या स्वामी, मंत्री या अमात्य, सुहृद, देश, कोष, दुर्ग और सेना। (राज्य की भारतीय अवधारण देखें।) कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताये हैं और ये उनका "सप्तांग सिद्धांत " कहलाता है - राजा, आमात्य या मंत्री, पुर या दुर्ग, कोष, दण्ड, मित्र । .

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लोकतंत्र

लोकतंत्र (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में लोक, "जनता" तथा तंत्र, "शासन") या प्रजातंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है। यह शब्द लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक सन्दर्भ में किया जाता है, किंतु लोकतंत्र का सिद्धांत दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। मूलतः लोकतंत्र भिन्न भिन्न सिद्धांतों के मिश्रण से बनते हैं, पर मतदान को लोकतंत्र के अधिकांश प्रकारों का चरित्रगत लक्षण माना जाता है। .

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शून्य-संचय खेल

खेल सिद्धांत और अर्थशास्त्र में शून्य-संचय खेल (zero-sum game) या शून्य-जोड़ खेल ऐसी व्यवहारिक परिस्थिति को कहा जाता है जिसमें एक व्यक्ति को जितना लाभ होता है ठीक उतनी ही हानि किसी अन्य व्यक्ति (या व्यक्तियों) को होती है।, Ronald B. Shelton, pp.

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सम्प्रभु राज्य

राष्ट्र कहते हैं, एक जन समूह को, जिनकी एक पहचान होती है, जो कि उन्हें उस राष्ट्र से जोङती है। इस परिभाषा से तात्पर्य है कि वह जन समूह साधारणतः समान भाषा, धर्म, इतिहास, नैतिक आचार, या मूल उद्गम से होता है। ‘राजृ-दीप्तो’ अर्थात ‘राजृ’ धातु से कर्म में ‘ष्ट्रन्’ प्रत्यय करने से संस्कृत में राष्ट्र शब्द बनता है अर्थात विविध संसाधनों से समृद्ध सांस्कृतिक पहचान वाला देश ही एक राष्ट्र होता है | देश शब्द की उत्पत्ति "दिश" यानि दिशा या देशांतर से हुआ जिसका अर्थ भूगोल और सीमाओं से है | देश विभाजनकारी अभिव्यक्ति है जबकि राष्ट्र, जीवंत, सार्वभौमिक, युगांतकारी और हर विविधताओं को समाहित करने की क्षमता रखने वाला एक दर्शन है | सामान्य अर्थों में राष्ट्र शब्द देश का पर्यायवाची बन जाता है, जहाँ कुछ असार्वभौमिक राष्ट्र, जिन्होंने अपनी पहचान जुङने के बाद, पृथक सार्वभौमिकिता बनाए रखी है। एक राष्ट्र कई राज्यों में बँटा हो सकता है तथा वे एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं, जिसे राष्ट्र कहा जाता है। देश को अपने रहेने वालों का रक्षा करना है। .

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सम्प्रभुता

किसी भौगोलिक क्षेत्र या जन समूह पर सत्ता या प्रभुत्व के सम्पूर्ण नियंत्रण पर अनन्य अधिकार को सम्प्रभुता (Sovereignty) कहा जाता है। सार्वभौम सर्वोच्च विधि निर्माता एवं नियंत्रक होता है यानि संप्रभुता राज्य की सर्वोच्च शक्ति है। .

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साम्यवाद

साम्यवाद, कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित तथा साम्यवादी घोषणापत्र में वर्णित समाजवाद की चरम परिणति है। साम्यवाद, सामाजिक-राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाएगी। ऐतिहासिक और आर्थिक वर्चस्व के प्रतिमान ध्वस्त कर उत्पादन के साधनों पर समूचे समाज का स्वामित्व होगा। अधिकार और कर्तव्य में आत्मार्पित सामुदायिक सामंजस्य स्थापित होगा। स्वतंत्रता और समानता के सामाजिक राजनीतिक आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। न्याय से कोई वंचित नहीं होगा और मानवता एक मात्र जाति होगी। श्रम की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ और तकनीक का स्तर सर्वोच्च होगा। साम्यवाद सिद्धांततः अराजकता का पोषक हैं जहाँ राज्य की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मूलतः यह विचार समाजवाद की उन्नत अवस्था को अभिव्यक्त करता है। जहाँ समाजवाद में कर्तव्य और अधिकार के वितरण को 'हरेक से अपनी क्षमतानुसार, हरेक को कार्यानुसार' (From each according to her/his ability, to each according to her/his work) के सूत्र से नियमित किया जाता है, वहीं साम्यवाद में 'हरेक से क्षमतानुसार, हरेक को आवश्यकतानुसार' (From each according to her/his ability, to each according to her/his need) सिद्धांत का लागू किया जाता है। साम्यवाद निजी संपत्ति का पूर्ण प्रतिषेध करता है। .

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सामूहिक सुरक्षा

300px सामूहिक सुरक्षा (Collective security) से आशय ऐसी क्षेत्रीय या वैश्विक सुरक्षा-व्यवस्था से है जिसका प्रत्येक घटक राज्य यह स्वीकारता है कि किसी एक राज्य की सुरक्षा सभी की चिन्ता का विषय है। यह मैत्री सुरक्षा (alliance security) की प्रणाली से अधिक महत्वाकांक्षी प्रणाली है। .

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सुरक्षा

सुरक्षा (security) हानि से बचाव करने की क्रिया और व्यवस्था को कहते हैं। यह व्यक्ति, स्थान, वस्तु, निर्माण, निवास, देश, संगठन या ऐसी किसी भी अन्य चीज़ के सन्दर्भ में प्रयोग हो सकती है जिसे नुकसान पहुँचाया जा सकता हो। .

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स्वयं सेवक संगठन

स्वयं सेवक संगठन वह संस्थाए अथवा संगठन जो स्वतंत्र रूप से स्वार्थहीन समाज सेवा तथा जन सेवा करते हैं। यह स्थानीय, राष्ट्रीय अथवा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करते हैं। .

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हंस मोर्गेंथाऊ

'हंस मोर्गेंथाऊ (17 फ़रवरी 1904 - 19 जुलाई 1980) बीसवीं सदी के अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में अग्रणी विद्वानों में से एक थे। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत और अंतरराष्ट्रीय कानून के अध्ययन में ऐतिहासिक योगदान दिया और उनकी पुस्तक राष्ट्रों के बीच राजनीति (Politics Among Nations), 1948 में पहली बार प्रकाशित हुई एवं इसके कई संस्करण छपे, कई दशकों से यह अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अपने क्षेत्र में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली पाठ्यपुस्तक थी। .

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ई. एच. कार

एडवर्ड हल्लेत्त (3 नवम्बर 1982 से 28 जून 1982) को कार की उपाधि ब्रिटिश साम्राज्य के आदेशानुसार दी गयी थी, वे एक यथार्थवादी थे लेकिन बाद में मार्क्सवादी बन गए। वे एक प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार, पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विचारक और इतिहास के भीतर अनुभववाद के एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में जाने जाते हैं। .

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विदेश नीति

किसी देश की विदेश नीति, जिसे विदेशी संबंधों की नीति भी कहा जाता है, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के वातावरण में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य द्वारा चुनी गई स्वहितकारी रणनीतियों का समूह होती है। किसी देश की विदेश नीति दूसरे देशों के साथ आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा सैनिक विषयों पर पालन की जाने वाली नीतियों का एक समुच्चय है। वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों में बढ़ते गहन स्तर की वजह से अब राज्यों को गैर-राज्य अभिनेताओं के साथ भी सहभागिता करनी पड़ेगी। .

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वुडरो विल्सन

वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) (१८५६-१९२४) अमेरिका के २८ वें राष्ट्रपति थे। विल्सन को लोक प्रशासन के प्रकार्यों की व्याख्या करने वाले अकादमिक विद्वान, प्रशासक, इतिहासकार, विधिवेत्ता और राजनीतिज्ञ के रूप में जाना जाता है। .

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आदर्शवाद

विचारवाद या आदर्शवाद या प्रत्ययवाद (Idealism; Ideal.

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अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध

राष्ट्र महल (Palace of Nations): जेनेवा स्थित इस भवन में २०१२ में ही दस हाजार से अधिक अन्तरसरकारी बैठकें हुईं। जेनेवा में विश्व की सर्वाधिक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंध (IR) विभिन्न देशों के बीच संबंधों का अध्ययन है, साथ ही साथ सम्प्रभु राज्यों, अंतर-सरकारी संगठनों (IGOs), अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों (INGOs), गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) की भूमिका का भी अध्ययन है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध को कभी-कभी 'अन्तरराष्ट्रीय अध्ययन' (इंटरनेशनल स्टडीज (IS)) के रूप में भी जाना जाता है, हालांकि दोनों शब्द पूरी तरह से पर्याय नहीं हैं। .

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अस्तित्ववाद

किर्कगार्द, दास्त्रावस्की, नीत्शे तथा सार्त्र (बाएँ से दाएँ, ऊपर से नीचे) अस्तित्ववाद (एग्जिस्टेशन्शिएलिज़्म / existentialism) एक ऐसी विचारधारा है जिसमें अस्तित्व को तत्व से ऊपर समझा जाता है। इसके अनुसार मानव अपने पर्यावरण की निर्जीव वस्तुओं से आत्मबोध का उत्तरदायित्व पूर्णतया स्वयं लेता है। अतः उसे अपने पर्यावरण में तत्वज्ञान की अपेक्षा नहीं होती। 1940 व 1950 के दशक में अस्तित्ववाद पूरे यूरोप में एक विचारक्रांति के रूप में उभरा। यूरोप भर के दार्शनिक व विचारकों ने इस आंदोलन में अपना योगदान दिया है। इनमें ज्यां-पाल सार्त्र, अल्बर्ट कामू व इंगमार बर्गमन प्रमुख हैं। कालांतर में अस्तित्ववाद की दो धाराएं हो गई।.

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उदारतावाद

उदारवाद (Liberalism) वह विचारधारा है जिसके अंतर्गत मनुष्य को विवेकशील प्राणी मानते हुए सामाजिक संस्थाओं को मनुष्यों की सूझबूझ और सामूहिक प्रयास का परिणाम समझा जाता है। जॉन लॉक को उदारवाद के जनक माना जाता है। आरंभिक उन्नायकों में एडम स्मिथ और जेरमी बेंथम के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उदारतावाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थन का राजनैतिक दर्शन है। वर्तमान विश्व में यह अत्यन्त प्रतिष्ठित धारणा है। पूरे इतिहास में अनेकों दार्शनिकों ने इसे बहुत महत्व एवं मान दिया। .

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अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के सिद्धान्त, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांत

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