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४ दिसम्बर

सूची ४ दिसम्बर

4 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 338वॉ (लीप वर्ष में 339 वॉ) दिन है। साल में अभी और 27 दिन बाकी है। .

14 संबंधों: दिसम्बर, फ़िराक़ गोरखपुरी, महत्त्वपूर्ण दिवस, मुंबई का इतिहास, यमुनाबाई सावरकर, रामस्वामी वेंकटरमण, सत्यभूषण वर्मा, वायु प्रदूषण, आत्मजयी, अयोध्या प्रसाद खत्री, अजीत आगरकर, अॅल्बर्ट बॅण्डुरा, २०१० फीफा विश्व कप, 1982 एशियाई खेल

दिसम्बर

दिसंबर ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से वर्ष का बारहवां और आखिरी महीना है, साथ ही यह उन सात ग्रेगोरी महीनो में से एक है जिनमे 31 दिन होते हैं। लैटिन में, दिसेम (decem) का मतलब "दस" होता है। दिसम्बर भी रोमन कैलेंडर का दसवां महीना था जब तक कि मासविहीन सर्दियों की अवधि को जनवरी और फरवरी के बीच विभाजित नहीं कर दिया गया। दिसंबर से संबंधित फूल हॉली या नारसीसस है। दिसंबर के रत्न फीरोज़ा, लापीस लाजुली, जि़रकॉन, पुखराज (नीला), या टैन्जानाईट रहे हैं। दिसंबर माह में उत्तरी गोलार्द्ध में दिन के (सूर्य की रोशनी का समय) सबसे कम और दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे अधिक घंटे होते हैं। दिसंबर और सितम्बर सप्ताह के एक ही दिन से शुरू होते हैं। .

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फ़िराक़ गोरखपुरी

फिराक गोरखपुरी (मूल नाम रघुपति सहाय) (२८ अगस्त १८९६ - ३ मार्च १९८२) उर्दू भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार है। उनका जन्म गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में कायस्थ परिवार में हुआ। इनका मूल नाम रघुपति सहाय था। रामकृष्ण की कहानियों से शुरुआत के बाद की शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी में हुई। .

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महत्त्वपूर्ण दिवस

कोई विवरण नहीं।

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मुंबई का इतिहास

date.

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यमुनाबाई सावरकर

यमुनाबाई सावरकर या माई सावरकर (०४ दिसम्बर, १८८८- ०८ नवंबर १९६३) प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की पत्नी थीं। इनका जन्म ४ दिसम्बर, १८८८ (तदनुसार मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, विक्रम संवत १९४५) को हुआ था। इनके पिता भाउराव (या रामचंद्र त्रयंबक) चिपलूनकर ठाणे के निकट जवाहर कस्बे के दीवान थे। सावरकर के साथ इनका विवाह फरवरी, (तदनुसार माघ, वि॰सं॰१९५७) को हुआ था। इन्हें माई सावरकर नाम से अधिक प्रसिद्धि मिली। इनके पिता ने ही सावरकर की उच्च शिक्षा व लंदन जाने का बोझ वहन किया। आयु पर्यन्त ये सावरकर का समर्तन व सहयोग शांतिपूर्वक करते रहे। माई ने रत्नागिरी में सावरकर के समाज सुधार कार्यक्रम के भाग के रूप में हल्दी-कुमकुम कार्यक्रम आयोजित किए थे। इनके चार संताने हुईं। सबसे बडए प्रभाकर की मृत्यु बहुत पहले ही हो गई, जब सावरकर लंदन में थे। जनवरी १९२५ में सतारा में इनके एक पुत्री-प्रभात हुई। इनकी दूसरी पुत्री शालिनी एक रुग्ण बालिका थी, जिसकी अल्पायु में ही मृत्यु हो गई। मार्च, १९२८ को इनके एक पुत्र हुआ- विश्वास। माई की मृत्यु ८ नवंबर, १९६३ (तदनुसार कार्तिक वद्य, अष्टमी, वि॰सं॰ २०२०) को मुंबई में हुई। .

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रामस्वामी वेंकटरमण

रामस्वामी वेंकटरमण, (रामास्वामी वेंकटरमन, रामास्वामी वेंकटरामण या रामास्वामी वेंकटरमण)(४ दिसंबर १९१०-२७ जनवरी २००९) भारत के ८वें राष्ट्रपति थे। वे १९८७ से १९९२ तक इस पद पर रहे। राष्ट्रपति बनने के पहले वे ४ वर्षों तक भारत के उपराष्ट्रपति रहे। मंगलवार को २७ जनवरी को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। वे ९८ वर्ष के थे। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत देश भर के अनेक राजनेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने २:३० बजे दिल्ली में सेना के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में अंतिम साँस ली। उन्हें मूत्राशय में संक्रमण (यूरोसेप्सिस) की शिकायत के बाद विगत १२ जनवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वे साँस संबंधी बीमारी से भी पीड़ित थे। उनका कार्यकाल १९८७ से १९९२ तक रहा। राष्ट्रपति पद पर आसीन होने से पूर्व वेंकटरमन करीब चार साल तक देश के उपराष्ट्रपति भी रहे। .

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सत्यभूषण वर्मा

डॉ॰ सत्यभूषण वर्मा (जन्म: 4 दिसम्बर 1932 रावलपिंडी मृत्यु:13 जनवरी 2005 दिल्ली), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में जापानी भाषा के पहले प्रोफेसर थे। हिन्दी हाइकु का भारत में प्रचार-प्रसार करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। .

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वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण रसायनों, सूक्ष्म पदार्थ, या जैविक पदार्थ के वातावरण में, मानव की भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। वायु प्रदूषण के कारण मौतें और श्वास रोग.

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आत्मजयी

'आत्मजयी' में मृत्यु सम्बंधी शाश्वत समस्या को कठोपनिषद का माध्यम बनाकर अद्भुत व्याख्या के साथ हमारे सामने रखा। इसमें नचिकेता अपने पिता की आज्ञा, 'मृत्य वे त्वा ददामीति' अर्थात मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूँ, को शिरोधार्य करके यम के द्वार पर चला जाता है, जहाँ वह तीन दिन तक भूखा-प्यासा रहकर यमराज के घर लौटने की प्रतीक्षा करता है। उसकी इस साधना से प्रसन्न होकर यमराज उसे तीन वरदान माँगने की अनुमति देते हैं। नचिकेता इनमें से पहला वरदान यह माँगता है कि उसके पिता वाजश्रवा का क्रोध समाप्त हो जाए। पिछले पच्चीस वर्षों में कुँवर नारायण की कृति ‘आत्मजयी’ ने हिन्दी साहित्य के एक मानक प्रबन्ध-काव्य के रूप में अपनी एक खास जगह बनायी है और यह अखिल भारतीय स्तर पर प्रशंसित हुआ है। ‘आत्मजयी’ का मूल कथासूत्र कठोपनिषद् में नचिकेता के प्रसंग पर आधारित है। इस आख्यान के पुराकथात्मक पक्ष को कवि ने आज के मनुष्य की जटिल मनःस्थितियों को एक बेहतर अभिव्यक्ति देने का एक साधन बनाया है। जीवन के पूर्णानुभव के लिए किसी ऐसे मूल्य के लिए जीना आवश्यक है जो मनुष्य में जीवन की अनश्वरता का बोध कराए। वह सत्य कोई ऐसा जीवन-सत्य हो सकता है जो मरणधर्मा व्यक्तिगत जीवन से बड़ा, अधिक स्थायी या चिरस्थायी हो। यही मनुष्य को सांत्वना दे सकता है कि मर्त्य होते हुए भी वह किसी अमर अर्थ में जी सकता है। जब वह जीवन से केवल कुछ पाने की ही आशा पर चलने वाला असहाय प्राणी नहीं, जीवन को कुछ दे सकने वाला समर्थ मनुष्य होगा तब उसके लिए यह चिन्ता सहसा व्यर्थ हो जाएगी कि जीवन कितना असार है-उसकी मुख्य चिन्ता यह होगी कि वह जीवन को कितना सारपूर्ण बना सकता है। ‘आत्मजयी’ मूलतः मनुष्य की रचनात्मक सामर्थ्य में आस्था की पुनःप्राप्ति की कहानी है। इसमें आधुनिक मनुष्य की जटिल नियति से एक गहरा काव्यात्मक साक्षात्कार है। इतालवी भाषा में ‘नचिकेता’ के नाम से इस कृति का अनुवाद प्रकाशित और चर्चित हुआ है-यह इस बात का प्रमाण है कि कवि ने जिन समस्याओं और प्रश्नों से मुठभेड़ की है उनका सार्विक महत्त्व है। जिस दौर में आत्मजयी छप कर आई थी उस दौर की हिन्दी आलोचना को कविता के बाहर काव्य-सत्य पाने-जांचने में बड़ी दिलचस्पी थी। अकारण नहीं उसने इस कृति को निरे अस्तित्ववादी दार्शनिक शब्दावलियों में घटा कर अपने काम से छुट्टी पा ली थी। उम्मीद है बीते वर्षों में वह इतनी प्रौढ़ और जिम्मेदार हो चुकी है कि कविता को उसके अर्जित जैविक अनुभव और काव्य-गुण के आधार पर जांचने की जहमत उठाए। अन्यथा यह एक निर्विवाद तथ्य है कि उसकी तत्कालीन बंद सोच के बावजूद आत्मजयी आधुनिक हिन्दी कविता की एक उपलब्धि है। .

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अयोध्या प्रसाद खत्री

अयोध्या प्रसाद खत्री अयोध्या प्रसाद खत्री (१८५७-४ जनवरी १९०५) का नाम हिंदी पद्य में खड़ी बोली हिन्दी के प्रारम्भिक समर्थकों और पुरस्कर्ताओं में प्रमुख है। उन्होंने उस समय हिन्दी कविता में खड़ी बोली के महत्त्व पर जोर दिया जब अधिकतर लोग ब्रजभाषा में कविता लिख रहे थे। उनका जन्म बिहार में हुआ था बाद में वे बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में कलक्‍टरी के पेशकार पद पर नियुक्त हुए। १८७७ में उन्होंने हिन्दी व्याकरण नामक खड़ी बोली की पहली व्याकरण पुस्तक की रचना की जो बिहार बन्धु प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई थी। उनके अनुसार खड़ीबोली गद्य की चार शैलियाँ थीं- मौलवी शैली, मुंशी शैली, पण्डित शैली तथा मास्टर शैली। १८८७-८९ में इन्होंने "खड़ीबोली का पद्य" नामक संग्रह दो भागों में प्रस्तुत किया जिसमें विभिन्न शैलियों की रचनाएँ संकलित की गयीं। इसके अतिरिक्त सभाओं आदि में बोलकर भी वे खड़ीबोली के पक्ष का समर्थन करते थे। सरस्वती मार्च १९०५ में प्रकाशित "अयोध्याप्रसाद" खत्री शीर्षक जीवनी के लेखक पुरुषोत्तमप्रसाद ने लिखा था कि खड़ी बोली का प्रचार करने के लिए इन्होंने इतना द्रव्य खर्च किया कि राजा-महाराजा भी कम करते हैं। १८८८ में उन्‍होंने 'खडी बोली का आंदोलन' नामक पुस्तिका प्रकाशित करवाई। भारतेंदु युग से हिन्दी-साहित्य में आधुनिकता की शुरूआत हुई। इसी दौर में बड़े पैमाने पर भाषा और विषय-वस्तु में बदलाव आया। इतिहास के उस कालखंड में, जिसे हम भारतेंदु युग के नाम से जानते हैं, खड़ीबोली हिन्दी गद्य की भाषा बन गई लेकिन पद्य की भाषा के रूप में ब्रजभाषा का बोलबाला कायम रहा। अयोध्या प्रसाद खत्री ने गद्य और पद्य की भाषा के अलगाव को गलत मानते हुए इसकी एकरूपता पर जोर दिया। पहली बार इन्होंने साहित्य जगत का ध्यान इस मुद्दे की तरफ खींचा, साथ ही इसे आंदोलन का रूप दिया। हिंदी पुनर्जागरण काल में स्रष्टा के रूप में जहाँ एक ओर भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसा प्रतिभा-पुरुष खड़ा था तो दूसरी ओर द्रष्टा के रूप में अयोध्याप्रसाद खत्री जैसा अद्वितीय युगांतरकारी व्यक्तित्व था। इसी क्रम में खत्री जी ने 'खड़ी-बोली का पद्य` दो खंडों में छपवाया। इस किताब के जरिए एक साहित्यिक आंदोलन की शुरूआत हुई। हिन्दी कविता की भाषा क्या हो, ब्रजभाषा अथवा खड़ीबोली हिन्दी? जिसका ग्रियर्सन के साथ भारतेंदु मंडल के अनेक लेखकों ने प्रतिवाद किया तो फ्रेडरिक पिन्काट ने समर्थन। इस दृष्टि से यह भाषा, धर्म, जाति, राज्य आदि क्षेत्रीयताओं के सामूहिक उद्घोष का नवजागरण था। जुलाई २००७ में बिहार के शहर मुजफ्फरपुर में उनकी समृति में 'अयोध्या प्रसाद खत्री जयंती समारोह समिति' की स्थापना की गई। इसके द्वारा प्रति वर्ष हिंदी साहित्य में विशेष योगदन करने वाले किसी विशिष्ट व्यक्ति को अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार में अयोध्या प्रसाद खत्री की डेढ़ फुट ऊँची प्रतिमा, शाल और नकद राशि प्रदान की जाती है। ५-६ जुलाई २००७ को पटना में खड़ी बोली के प्रथम आंदोलनकर्ता अयोध्या प्रसाद खत्री की १५०वीं जयंती आयोजित की गई। संस्था के अध्यक्ष श्री वीरेन नंदा द्वारा श्री अयोध्या प्रसाद खत्री के जीवन तथा कार्यों पर केन्द्रित 'खड़ी बोली का चाणक्य' शीर्षक फिल्म का निर्माण किया गया है। .

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अजीत आगरकर

अजित भालचंद्र आगरकर (मराठी:अजित भालचंद्र आगरकर) (जन्म 4 दिसंबर, 1977 मुंबई में) भारतीय टीम के एक क्रिकेट खिलाड़ी हैं। .

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अॅल्बर्ट बॅण्डुरा

अॅल्बर्ट बॅण्डुरा एक प्रभावशाली सामाजिक संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिक है, वह उनकी सामाजिक शिक्षा सिद्धांत, आत्म प्रभावकारिता और उनकी प्रसिद्ध बोबो डॉल प्रयोगों की अवधारणा के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं। उन्होंने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक प्रोफेसर एमेरिटस है और व्यापक रूप से महानतम जीवित मनोवैज्ञानिकों से एक के रूप में माना जाता है। २००२ में एक सर्वेक्षण के अनुसार उन्हें बीसवीं सदी का चौथा सबसे प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक घोषित किया गया, केवल बी.एफ स्किनर, सिगमंड फ्रायड, और जीन पियाजे के पीछे। उन्होंने यह भी सबसे उद्धृत रहने वाले मनोवैज्ञानिक के रूप में स्थान दिया गया था। .

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२०१० फीफा विश्व कप

२०१० फीफा विश्व कप १९वां फीफा विश्व कप है, जो ११ जून २०१० से ११ जुलाई २०१० के बीच दक्षिण अफ़्रीका में आयोजित किया जा रहा है। २०१० का फीफा विश्व कप उस योग्यता प्रक्रिया की परिणति होगी जो अगस्त २००७ में आरम्भ हुई थी और जिसमें फीफा की २०८ राष्ट्रीय टीमों में से २०४ सम्मिलित थीं। इस प्रकार, यह २००८ के ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक की बराबरी पर है जिसमें सर्वाधिक टीमें प्रतिस्पर्धा करती हैं। यह पहली बार है जब यह प्रतियोगिता किसी अफ़्रीकी देश में आयोजित की जा रही है, जब दक्षिण अफ़्रीका ने मिस्र और मोरक्को को अखिल-अफ़्रीकी बोली प्रक्रिया में पछाड़ दिया। इस निर्णय के बाद अब केवल ओशियानिया फुटबॉल संघ ही एक ऐसा संघ है जिसने इस प्रतियोगिता की मेज़बानी नहीं की है। इटली पूर्वविजेता है, जिसने जर्मनी में आयोजित २००६ फीफा विश्व कप जीता था। फाइनल के लिए ड्रॉ ४ दिसंबर २००९ को केप टाउन में हुआ था। २०१० का विश्व कप की विजेता टीम रही स्पेन जिसने नीदरलैण्ड को फाइनल में हराकर यह कप जीता। .

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1982 एशियाई खेल

नौवें एशियाई खेल १९ नवम्बर से ४ दिसम्बर, १९८२ तक दिल्ली, भारत में आयोजित किए गए थे। दिल्ली में दूसरी बार इन खेलों का आयोजन किया गया था और इससे पूर्व १९५१ के अभिषेकात्मक एशियाई खेल भी यहाँ आयोजित किए गए थे। नई दिल्ली, बैंकाक के बाद ऐसा दूसरा नगर बना जिसने इन खेलों की एक से अधिक बार मेज़बानी की हो। दिल्ली के एशियाई खेल प्रथम एशियाड थे जो एशियाई ओलम्पिक परिषद (एओप) के संरक्षण में आयोजित हो रहे थे। एशियाई खेल संघ, जिसके न्यायाधिकार में प्रथम आठ एशियाई खेल आयोजित हुए थे, को भंग कर एओप बनाया गया। एशिया के ३३ देशों से कुल ४,५९५ खिलाड़ियों ने इन खेलों में भाग लिया। इन खेलों में प्रथमोप्रवेश खेल घुड़सवारी, गोल्फ, हैण्डबॉल, नौकायन और महिला हॉकी थे। इन खेलों से ही चीन का पदक तालिका में प्रभुत्व दिखाई देने लगा। जापान ने इससे पहले के खेलों में सर्वाधिक पदक जीते थे। चीन ने जापान को पदक तालिका में सर्वोच्च पद से अपदस्त कर खेलों की दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। ९वें एशियाई खेलों की तैयारी में ही भारत में रंगीन टेलीविज़न बड़ी शान के साथ लाया गया, क्योंकि इन खेलों का रंगारंग प्रसारण किया जाना था। इन खेलों का शुभंकर अप्पू नामक एक शिशु हाथी था। वास्तविक जीवन में "कुट्टिनारायणन" नामक यह हाथी एक दुर्घटना में अपनी टाँग तुड़वा बैठा जब वह एक सैप्टिक टंकी में गिर गया और जिसके कारण अततः उसकी मृत्यु हो गई। कुट्टिनारायणन १४ मई, २००५ को मर गया। १९८६ के अगले एशियाई खेलों (१०वें) और १९८८ के २४वें ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों के मेज़बान दक्षिण कोरिया ने ४०६-सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल के साथ इन खेलों में भाग लिया, जिसमें एक पर्यवेक्षण दल भी था जो सुविधाओं, प्रबन्धन और प्रतियोगिताओं के बारे में जानकारी एकत्रित करने के लिए आया था। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

4 दिसंबर, ४ दिसंबर, ४ दिसंबर, २००८

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