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१९१३

सूची १९१३

1913 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

40 संबंधों: एस॰ के॰ पोत्ताकट, त्रिभुवन नेपाल, बलराज साहनी, बालकृष्ण राव, बीसवीं शताब्दी, भार एवं मापन पर सामान्य सम्मेलन, भारत के उप प्रधानमंत्री, मालाबार, मैत्री धर्म, रासबिहारी बोस, शांति धर्म, सन्देश (पत्रिका), सावित्री बाई खानोलकर, हिन्दी सिनेमा, विलियम होवर टाफ्ट, विष्णु नारायण भातखंडे, विज्ञान परिषद् प्रयाग, गंगूबाई हंगल, ग्रैंड स्लैम टेनिस विजेताओं की सूची, आवर्त सारणी, इज़ाडोरा डंकन, कहानी, अन्वेषणों की समय-रेखा, अमृता शेरगिल, अमेरिकी ओपन टेनिस के पुरुष एकल विजेताओं की सूची, उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम, १ मई, १ जुलाई, १ अगस्त, १० जुलाई, १० अक्टूबर, १२ दिसम्बर, १३ अप्रैल, १६ अगस्त, १८ दिसम्बर, १९९०, २५ जून, ३ दिसम्बर, ६ नवम्बर, ९ दिसम्बर

एस॰ के॰ पोत्ताकट

ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता। .

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त्रिभुवन नेपाल

नेपाल के त्रिभुवन त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह (23 जून 1930 से 13 मार्च 1955) 11 दिसंबर सन 1911 से उनकी (7 नवंबर 1950 से 18 फरवरी 1951 तक के निर्वासन काल को छोड़ कर) मृत्यु तक नेपाल के राजा थे। इनका जन्म काठमांडू में हुआ था जो की वर्तमान में नेपाल की राजधानी है। 5 वर्ष की अल्प आयु में ही अपने पिता पृथ्वी वीर विक्रम शाह की मृत्यु के पश्चात राजगद्दी पर आसीन, हुए उन्हें हनुमान धोखा पैलेस काठमांडू में 20 फरवरी सन 1983 राजगद्दी सौंपी गई .

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बलराज साहनी

बलराज साहनी (जन्म: 1 मई, 1913 निधन: 13 अप्रैल, 1973), बचपन का नाम "युधिष्ठिर साहनी" था। हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे। वे ख्यात लेखक भीष्म साहनी के बड़े भाई व चरित्र अभिनेता परीक्षत साहनी के पिता हैं। एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म और मंच अभिनेता थे, जो धरती के लाल (1946), दो बीघा ज़मीन (1953), काबूलीवाला (1961) और गरम हवा के लिए जाने जाते हैं। वह भेरा जो अब पंजाब, पाकिस्तान में है, से आए थे, और हिंदी लेखक, नाटककार और अभिनेता भीष्म साहनी के भाई थे। .

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बालकृष्ण राव

बालकृष्ण राव (जन्म १९१३, निधन १९७६) हिन्दी के कवि एवं संपादक थें। ये हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद की माध्यम पत्रिका के पहले सम्पादक बने एवं भारत सरकार के आकाशवाणी विभाग में रहकर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। इनकी अनेक आलोचनाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। १९५३ में कवि भारती के सह सम्पादक रहे। श्रेणी:हिन्दी साहित्यकार.

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बीसवीं शताब्दी

ग्रेगरी पंचांग (कलेंडर) के अनुसार ईसा की बीसवीं शताब्दी 1 जनवरी 1901 से 31 दिसम्बर 2000 तक मानी जाती है। कुछ इतिहासवेत्ता 1914 से 1992 तक को संक्षिप्त बीसवीं शती का नाम भी देते हैं। (उन्नीसवी शताब्दी - बीसवी शताब्दी - इक्कीसवी शताब्दी - और शताब्दियाँ) दशक: १९०० का दशक १९१० का दशक १९२० का दशक १९३० का दशक १९४० का दशक १९५० का दशक १९६० का दशक १९७० का दशक १९८० का दशक १९९० का दशक ---- समय के गुज़रने को रेकोर्ड करने के हिसाब से देखा जाये तो बीसवी शताब्दी वह शताब्दी थी जो १९०१ - २००० तक चली थी। मनुष्य जाति के जीवन का लगभग हर पहलू बीसवी शताब्दी में बदल गया।.

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भार एवं मापन पर सामान्य सम्मेलन

भार एवं मापन पर सामान्य सम्मेलन हिन्दी नाम है एक सम्मेलन का.

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भारत के उप प्रधानमंत्री

भारत के उपप्रधानमंत्री का पद, तकनीकी रूप से एक एक संवैधानिक पद नहीं है, नाही संविधान में इसका कोई उल्लेख है। परंतु ऐतिहासिक रूप से, अनेक अवसरों पर विभिन्न सरकारों ने अपने किसी एक वरिष्ठ मंत्री को "उपप्रधानमंत्री" निर्दिष्ट किया है। इस पद को भरने की कोई संवैधानिक अनिवार्यता नहीं है, नाही यह पद किसी प्रकार की विशेष शक्तियाँ प्रदान करता हैं। आम तौर पर वित्तमंत्री या रक्षामंत्री जैसे वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों को इस पद पर स्थापित किया जाता है, जिन्हें प्रधानमंत्री के बाद, सबसे वरिष्ठ माना जाता है। अमूमन इस पद का उपयोग, गठबंधन सरकारों में मज़बूती लाने हेतु किया जाता रहा है। इस पद के पहले धारक सरदार वल्लभभाई पटेल थे, जोकि जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में गृहमंत्री थे। कई अवसरों पर ऐसा होता रहा है की प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में उपप्रधानमंत्री संसद या अन्य स्थानों पर उनके स्थान पर सर्कार का प्रतिनिधित्व करते हैं, एवं कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता कर सकते हैं। भारत के उपप्रधानमंत्री भारतीय सरकार के मंत्रीमंडल के उपाध्यक्ष होते है। .

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मालाबार

मालाबार केरल राज्य में अवस्थित पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिम तट के समानांतर एक संकीर्ण तटवर्ती क्षेत्र है। जब स्‍वतंत्र भारत में छोटी रियासतों का विलय हुआ तब त्रावनकोर तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर १ जुलाई, १९४९ को त्रावनकोर-कोचीन राज्य बना दिया गया, किंतु मालाबार मद्रास प्रांत के अधीन रहा। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के तहत त्रावनकोर-कोचीन राज्य तथा मालाबार को मिलाकर १ नवंबर, १९५६ को केरल राज्य बनाया गया। केरल के अधिकांश द्वीप जो त्रावणकोर-मालाबार राज्य में आते थे, अब एर्नाकुलम जिले में आते हैं। मालाबार क्षेत्र के अंतर्गत पर्वतों का अत्यधिक आर्द्र क्षेत्र आता है। वनीय वनस्पति में प्रचुर होने के साथ-साथ इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों, जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी और चाय, रबड़ तथा काजू का उत्‍पादन किया जाता है। मालाबार क्षेत्र केरल का बड़ा व्यावसायिक क्षेत्र माना जाता है। यहाँ उच्चकोटि के कागज का भी निर्माण होता है। यहां पर एशिया की सबसे मशहूर प्लाईवुड फैक्टरी भी स्थित है। इसके अलावा यहां के निकटवर्ती स्थानों पर फूलों के उत्पादन तथा उनके निर्यात के प्रमुख केंद्र भी स्थित हैं। हस्तकला की वस्तुओं तथा बीड़ी आदि का उत्पादन भी मालाबार में काफी होता है। मालाबार तट पर बसे हुए कण्णूर नगर में पयंबलम, मुझापूलंगड तथा मियामी जैसे सुंदर बीच हैं जो अभी पर्यटकों में अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं, अतएव शांत वातावरण बनाए हुए हैं। यहां पायथल मलै नामक आकर्षक पर्वतीय स्थल भी है। निकट ही यहां का सर्प उद्यान है जहां पर अनेक प्रकार के सांपों का प्रदर्शन किया गया है। इस स्थान पर सर्पदंश चिकित्सा केंद्र भी बना है। मालाबार में मलावलतम नदी के किनारे पर परासनी कडायू का प्रसिद्ध मंदिर है, जो केवल हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य सभी जातियों के लिए भी समान रूप से खुला है। यह मुथप्पन भगवान का मंदिर माना जाता है जो शिकारियों के देवता हैं। इसीलिए इस मंदिर में कांसे के बने हुए कुत्तों की मूर्तियां हैं। यहां ताड़ी तथा मांस का प्रसाद मिलता है तथा यहां के पुजारी दलित वर्ग के होते हैं। केरल की अधिकांश मुस्लिम आबादी, जिन्हें मप्पिला कहते हैं इसी क्षेत्र में निवास करती हैं। मालाबार के हिन्दुओं में गुड़ी पड़वा उत्सव का विशेष महत्त्व है। मालाबार क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति तथा प्रदूषण रहित वातावरण को देख कर मन खुश हो जाता है। वास्को डा गामा की यात्रा के ५०० वर्ष पूरे होने के कारण यह स्थान विश्व प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। मालाबार में कालीकट से १६ कि॰मी॰ दूर कापड़ बीच है, जहां २१ मई, १४९८ को वास्को दा गामा ने पहला कदम भारत की भूमि पर रखा था। प्रभासाक्षी पर .

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मैत्री धर्म

यह कृति १९१३ में प्रकाशित हुई।.

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रासबिहारी बोस

रासबिहारी बोस (बांग्ला: রাসবিহারী বসু, जन्म:२५ मई १८८६ - मृत्यु: २१ जनवरी १९४५) भारत के एक क्रान्तिकारी नेता थे जिन्होने ब्रिटिश राज के विरुद्ध गदर षडयंत्र एवं आजाद हिन्द फौज के संगठन का कार्य किया। इन्होंने न केवल भारत में कई क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी, अपितु विदेश में रहकर भी वह भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के प्रयास में आजीवन लगे रहे। दिल्ली में तत्कालीन वायसराय लार्ड चार्ल्स हार्डिंग पर बम फेंकने की योजना बनाने, गदर की साजिश रचने और बाद में जापान जाकर इंडियन इंडिपेंडेस लीग और आजाद हिंद फौज की स्थापना करने में रासबिहारी बोस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यद्यपि देश को स्वतन्त्र कराने के लिये किये गये उनके ये प्रयास सफल नहीं हो पाये, तथापि स्वतन्त्रता संग्राम में उनकी भूमिका का महत्व बहुत ऊँचा है। .

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शांति धर्म

यह कृति १९१३ में प्रकाशित हुई।.

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सन्देश (पत्रिका)

एक सन्देश का संस्करण, सत्यजित राय का मुखपृष्ठ के साथ। सन्देश (बांग्ला: সন্দেশ, शॉन्देश) एक बांग्लाभाषी बच्चे के पत्रिका है। पत्रिका पहले उपेन्द्रकिशोर रायचौधरी द्वारा प्रकाशित था 1913 उसका प्रकाशन कंपनी द्वारा, एम/एस यू.

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सावित्री बाई खानोलकर

सावित्री बाई खानोलकर या खानोलंकार (जन्म के समय का नाम इवा योन्ने लिण्डा माडे-डे-मारोज़) भारतीय इतिहास के ऐसे व्यक्तियों में से हैं जिनका जन्म तो पश्चिम में हुआ किंतु उन्होंने अपनी इच्छा से भारतीय संस्कृति को अपनाया और भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। सावित्री बाई खानोलकर को सर्वोच्च भारतीय सैनिक अलंकरण परमवीर चक्र के रूपांकन का गौरव प्राप्त है। सावित्री बाई खानोलकर .

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हिन्दी सिनेमा

हिन्दी सिनेमा, जिसे बॉलीवुड के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दी भाषा में फ़िल्म बनाने का उद्योग है। बॉलीवुड नाम अंग्रेज़ी सिनेमा उद्योग हॉलिवुड के तर्ज़ पर रखा गया है। हिन्दी फ़िल्म उद्योग मुख्यतः मुम्बई शहर में बसा है। ये फ़िल्में हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और दुनिया के कई देशों के लोगों के दिलों की धड़कन हैं। हर फ़िल्म में कई संगीतमय गाने होते हैं। इन फ़िल्मों में हिन्दी की "हिन्दुस्तानी" शैली का चलन है। हिन्दी और उर्दू (खड़ीबोली) के साथ साथ अवधी, बम्बईया हिन्दी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानों में उपयुक्त होते हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं। ज़्यादातर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं।भारत में सबसे बड़ी फिल्म निर्माताओं में से एक, शुद्ध बॉक्स ऑफिस राजस्व का 43% का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि तमिल और तेलुगू सिनेमा 36% का प्रतिनिधित्व करते हैं,क्षेत्रीय सिनेमा के बाकी 2014 के रूप में 21% का गठन है। बॉलीवुड भी दुनिया में फिल्म निर्माण के सबसे बड़े केंद्रों में से एक है। बॉलीवुड कार्यरत लोगों की संख्या और निर्मित फिल्मों की संख्या के मामले में दुनिया में सबसे बड़ी फिल्म उद्योगों में से एक है।Matusitz, जे, और पायानो, पी के अनुसार, वर्ष 2011 में 3.5 अरब से अधिक टिकट ग्लोब जो तुलना में हॉलीवुड 900,000 से अधिक टिकट है भर में बेच दिया गया था। बॉलीवुड 1969 में भारतीय सिनेमा में निर्मित फिल्मों की कुल के बाहर 2014 में 252 फिल्मों का निर्माण। .

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विलियम होवर टाफ्ट

विलियम होवर टाफ्ट संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति थे। इनका कार्यकाल १९०९ से १९१३ तक था। ये रिपब्लिकन पार्टी से थे। श्रेणी:अमेरिका के राष्ट्रपति.

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विष्णु नारायण भातखंडे

पंडित विष्णु नारायण भातखंडे (१० अगस्त, 1860 – १९ सितंबर, १९३६) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विद्वान थे। आधुनिक भारत में शास्त्रीय संगीत के पुनर्जागरण के अग्रदूत हैं जिन्होंने शास्त्रिए संगीत के विकास के लिए भातखंडे संगीत-शास्त्र की रचना की तथा कई संस्थाएँ तथा शिक्षा केन्द्र स्थापित किए। इन्होंने इस संगीत पर प्रथम आधुनिक टीका लिखी थी। उन्होने संगीतशास्त्र पर "हिंदुस्तानी संगीत पद्धति" नामक चार भागों में प्रकाशित किया और ध्रुपद, धमार, तथा ख्यात का संग्रह करके "हिंदुस्तानी संगीत क्रमीक" नामक ग्रंथ के छह भाग .

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विज्ञान परिषद् प्रयाग

विज्ञान परिषद् प्रयाग, इलाहाबाद में स्थित है और यह विज्ञान जनव्यापीकरण के क्षेत्र में कार्य करने वाली भारत की सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक है। विज्ञान परिषद् की स्थापना सन् १९१३ ई. में हुई थी और इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारत में वैज्ञानिक विचारधारा का प्रचार प्रसार था। इस दिशा में १९१३ से अनवरत कार्य करने वाली इस संस्था से विज्ञान नाम की मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया जाता है। यह पत्रिका सर्वप्रथम १९१३ में प्रकाशित हुई थी और तब से आज तक अनवरत प्रकाशित रहने का इसका रेकॉर्ड रहा है। विज्ञान परिषद् के मुख्य कार्यक्षेत्र निम्नलिखित हैं।.

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गंगूबाई हंगल

गंगूबाई हंगल (ಗಂಗೂಬಾಯಿ ಹಾನಗಲ್) (जन्मः ५ मार्च १९१३- मृत्युः २१ जुलाई २००९) हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रख्यात गायिका थीं। उन्होने स्वतंत्र भारत में खयाल गायिकी की पहचान बनाने में महती भूमिका निभाई। भारतीय शास्त्रीय संगीत की नब्ज पकड़कर और किराना घराना की विरासत को बरकरार रखते हुए परंपरा की आवाज का प्रतिनिधित्व करने वाली गंगूबाई हंगल ने लिंग और जातीय बाधाओं को पार कर व भूख से लगातार लड़ाई करते हुए भी उच्च स्तर का संगीत दिया। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में आधे से अधिक सदी तक अपना योगदान दिया। इनकी आत्मकथा 'नन्ना बदुकिना हादु' (मेरे जीवन का संगीत) शीर्षक से प्रकाशित हुई है। .

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ग्रैंड स्लैम टेनिस विजेताओं की सूची

List of Men's Singles Grand Slam tournaments tennis champions: .

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आवर्त सारणी

आवर्त सारणी (अथवा, तत्वों की आवर्त सारणी) रासायनिक तत्वों को उनकी संगत विशेषताओं के साथ एक सारणी के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। आवर्त सारणी में रासायनिक तत्त्व परमाणु क्रमांक के बढ़ते क्रम में सजाये गये हैं तथा आवर्त (पिरियड), प्राथमिक समूह, द्वितीयक समूह में वर्गीकृत किया गया है। वर्तमान आवर्त सारणी मैं ११८ ज्ञात तत्व सम्मिलित हैं। सबसे पहले रूसी रसायन-शास्त्री मेंडलीफ (सही उच्चारण- मेन्देलेयेव) ने सन १८६९ में आवर्त नियम प्रस्तुत किया और तत्वों को एक सारणी के रूप में प्रस्तुत किया। इसके कुछ महीनों बाद जर्मन वैज्ञानिक लोथर मेयर (1830-1895) ने भी स्वतन्त्र रूप से आवर्त सारणी का निर्माण किया। मेन्देलेयेव की सारणी से अल्फ्रेड वर्नर (Alfred Werner) ने आवर्त सारणी का वर्तमान स्वरूप निर्मित किया। सन १९५२ में कोस्टा रिका के वैज्ञानिक गिल चावेरी (scientist Gil Chaverri) ने आवर्त सारणी का एक नया रूप प्रस्तुत किया जो तत्वों के इलेक्ट्रानिक संरचना पर आधारित था। रसायन शास्त्रियों के लिये आवर्त सारणी अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। इसके कारण कम तत्वों के गुणधर्मों को ही याद रखने से काम चल जाता है क्योंकि आवर्त सारणी में किसी समूह (उर्ध्वाधर पंक्ति) या किसी आवर्त (क्षैतिज पंक्ति) में गुणधर्म एक निश्चित क्रम से एवं तर्कसम्मत तरीके से बदलते हैं। नीचे आवर्त सारणी का आधुनिक रूप दिखाया गया है जिसमें १८ वर्ग तथा ७ आवर्त हैं- .

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इज़ाडोरा डंकन

इज़ाडोरा डंकन। इज़ाडोरा डंकन (अंग्रेज़ी: Isadora Duncan)(२६ मई, १८७७ - १४ सितंबर, १९२७) एक अमेरिकी नर्तकी थीं। उनका पूरा नाम था ऐंगिला इज़ाडोरा डंकन और उनका जन्म सेन फ़्रांसिस्को, कैलिफ़ोर्निया में हुआ था। इज़ाडोरा डंकन को कई लोग आधुनिक नृत्य की जननी मानते हैं। यद्यपि अपने जीवन के बाद के वर्षों में वह अमेरिका में केवल न्यूयार्क में प्रसिद्ध हुईं, लेकिन उन्होंने पूरे यूरोप का मनोरंजन किया। नृत्य ही नहीं, जीवन में भी प्रयोगों की पक्षधर इज़ाडोरा की आत्मकथा माय लाइफ पढ़ने के बाद कला को समर्पित स्त्री के सभी पहलू उजागर होते हैं, साथ ही मन में प्रश्न उठता है, क्या कलाकार स्त्री एक सामान्य सहज जीवन नहीं जी सकती। इज़ाडोरा ने अपने समय से बहुत आगे जाकर जो प्रयोग किए, वह तत्कालीन समय के आलोचकों-कट्टरपंथियों को रास नहीं आए। इसके पश्चात भी इंग्लैंड के प्रसिद्ध नृत्य समीक्षक रिचर्ड ऑस्टिन ने माना कि वह विश्व की महानतम नृत्यांगनाओं में से एक थीं, जो स्वयं भी नहीं समझ पाती थी कि वह क्या नृत्य कर रही हैं। उनके माता-पिता आइरिश मूल के थे, लेकिन वे अलग हो गए थे। मां संगीत जानती थीं और पियानोवादन ही उनकी आजीविका का साधन बना। अभावग्रस्त जीवन ने उन्हें पारंपरिक तौर पर शिक्षा-दीक्षा की आज्ञा नहीं दी। इस प्रकार नृत्य उनके अपनी परिश्रम, क्षमताओं व आंतरिक अनुभूतियों की देन था। उनका सपना था-ऐसे नृत्य विद्यालय की स्थापना करना जहां दुनिया भर के बच्चे प्रशिक्षण ले सकें, पर आर्थिक परेशानियों व शिष्याओं की भद्दता ने उनका सपना पूरा नहीं होने दिया। १९१३ में हुई एक दुर्घटना में उन्होंने अपने दोनों बच्चों को खो दिया। इसके बाद उन्होंने फिर एक बच्चे को जन्म दिया, किंतु वह भी जन्म के कुछ देर बाद ही मर गया। इन त्रासदियों ने इज़ाडोरा को भीतर तक हिला दिया। इस बीच उनका अपना स्वास्थ्य बहुत गिर गया। खुले हाथों खर्च करने वाली इज़ाडोरा अपने अंतिम दिनों में बहुत तंगहाली में रहीं। १४ सितंबर १९२७ को लगभग ५० वर्ष की आयु में इज़ाडोरा ने जीवन की अंतिम सांसें लीं। .

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कहानी

कथाकार (एक प्राचीन कलाकृति)कहानी हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं। प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। 'गुणढ्य' की "वृहत्कथा" को, जिसमें 'उदयन', 'वासवदत्ता', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव 'दण्डी' के "दशकुमार चरित", 'बाणभट्ट' की "कादम्बरी", 'सुबन्धु' की "वासवदत्ता", 'धनपाल' की "तिलकमंजरी", 'सोमदेव' के "यशस्तिलक" तथा "मालतीमाधव", "अभिज्ञान शाकुन्तलम्", "मालविकाग्निमित्र", "विक्रमोर्वशीय", "रत्नावली", "मृच्छकटिकम्" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है। इसके पश्‍चात् छोटे आकार वाली "पंचतंत्र", "हितोपदेश", "बेताल पच्चीसी", "सिंहासन बत्तीसी", "शुक सप्तति", "कथा सरित्सागर", "भोजप्रबन्ध" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं। .

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अन्वेषणों की समय-रेखा

यहाँ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तकनीकी खोजों की समय के सापेक्ष सूची दी गयी है। .

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अमृता शेरगिल

अमृता शेरगिल (३० जनवरी १९१३ - ५ दिसंबर १९४१) भारत के प्रसिद्ध चित्रकारों में से एक थीं। उनका जन्म बुडापेस्ट (हंगरी) में हुआ था। कला, संगीत व अभिनय बचपन से ही उनके साथी बन गए। २०वीं सदी की इस प्रतिभावान कलाकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने १९७६ और १९७९ में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया है। सिख पिता उमराव सिंह शेरगिल (संस्कृत-फारसी के विद्वान व नौकरशाह) और हंगरी मूल की यहूदी ओपेरा गायिका मां मेरी एंटोनी गोट्समन की यह संतान ८ वर्ष की आयु में पियानो-वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी। १९२१ में अमृता का परिवार समर हिल शिमला में आ बसा। बाद में अमृता की मां उन्हें लेकर इटली चली गई व फ्लोरेंस के सांता अनुंज़ियाता आर्ट स्कूल में उनका दाखिला करा दिया। पहले उन्होंने ग्रैंड चाऊमीअर में पीअरे वेलण्ट के और इकोल डेस बीउक्स-आर्टस में ल्यूसियन सायमन के मार्गदर्शन में अभ्यास किया। सन १९३४ के अंत में वह भारत लौटी। बाईस साल से भी कम उम्र में वह तकनीकी तौर पर चित्रकार बन चुकी थी और असामान्य प्रतिभाशाली कलाकार के लिए आवश्यक सारे गुण उनमें आ चुके थे। पूरी तरह भारतीय न होने के बावजूद वह भारतीय संस्कृति को जानने के लिए बड़ी उत्सुक थी। उनकी प्रारंभिक कलाकृतियों में पेरिस के कुछ कलाकारों का पाश्चात्य प्रभाव प्रभाव साफ झलकता है। जल्दी ही वे भारत लौटीं और अपनी मृत्यु तक भारतीय कला परंपरा की पुन: खोज में जुटी रहीं। उन्हें मुगल व पहाडी कला सहित अजंता की विश्वविख्यात कला ने भी प्रेरित-प्रभावित किया। भले ही उनकी शिक्षा पेरिस में हुई पर अंततः उनकी तूलिका भारतीय रंग में ही रंगी गई। उनमें छिपी भारतीयता का जीवंत रंग हैं उनके चित्र। अमृता ने अपने हंगेरियन चचेरे भाई से १९३८ में विवाह किया, फिर वे अपने पुश्तैनी घर गोरखपुर में आ बसीं। १९४१ में अमृता अपने पति के साथ लाहौर चली गई, वहाँ उनकी पहली बडी एकल प्रदर्शनी होनी थी, किंतु एकाएक वह गंभीर रूप से बीमार पडीं और मात्र २८ वर्ष की आयु में शून्य में विलीन हो गई। .

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अमेरिकी ओपन टेनिस के पुरुष एकल विजेताओं की सूची

* 1881 - रिचर्ड सीअर्स.

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उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम

सुगौली संधि द्वारा गोरखा शासन से मुक्त हुआ क्षेत्र। वर्तमान राज्य उत्तराखण्ड जिस भौगोलिक क्षेत्र पर विस्तृत है उस इलाके में ब्रिटिश शासन का इतिहास उन्नीसवी सदी के दूसरे दशक से लेकर भारत की आज़ादी तक का है। उत्तराखण्ड में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन 1815 में हुआ। इससे पहले यहाँ नेपाली गोरखों का शासन था। यह भी माना जाता है कि गोरखा शासकों द्वारा इस इलाके के लोगों पर किये गये अत्याचारों को देखकर ही अंग्रेजों का ध्यान इस ओर गया। हालाँकि अंग्रेजों और नेपाली गुरखाओं के बीच लड़े गये गोरखा युद्ध के अन्य कारण भी थे। अल्मोड़ा में 27 अप्रैल 1815 को गोरखा प्रतिनिधि बमशाह और लेफ्टिनेंट कर्नल गार्डनर के बीच हुई एक संधि के बाद नेपाली शासक ने इस क्षेत्र से हट जाने को स्वीकारा और इस क्षेत्र पर ईस्ट इण्डिया कंपनी का अधिकार हो गया। अंग्रेजों का इस क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार 4 अप्रैल 1816 को सुगौली की सन्धि के बाद इस पूरे क्षेत्र पर हो गया और नेपाल की सीमा काली नदी घोषित हुई। अंग्रेजों ने पूरे इलाके को अपने शासन में न रख अप्रैल 1815 में ही गढ़वाल के पूर्वी हिस्से और कुमायूँ के क्षेत्र पर अपना अधिकार रखा और पश्चिमी हिस्सा सुदर्शन शाह, जो गोरखों के शासन से पहले गढ़वाल के राजा थे, को सौंप दिया जो अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के पश्चिम में पड़ता था।Robert Montgomery Martin, History of the Possessions of the Honourable East India Company, Volume 1, pg.

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१ मई

१ मई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १२१ वॉ (लीप वर्ष में १२२ वॉ) दिन है। साल में अभी और २४४ दिन बाकी है। .

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१ जुलाई

१ जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १८२वॉ (लीप वर्ष में १८३ वॉ) दिन है। साल में अभी और १८३ दिन बाकी है। .

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१ अगस्त

1 अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 213वॉ (लीप वर्ष मे 214 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 152 दिन बाकी है। .

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१० जुलाई

१० जुलाई ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का १९१वॉ (लीप वर्ष मे १९२ वॉ) दिन है। साल मे अभी और १७४ दिन बाकी है। .

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१० अक्टूबर

10 अक्टूबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 283वॉ (लीप वर्ष मे 284 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 82 दिन बाकी है। .

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१२ दिसम्बर

12 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 346वॉ (लीप वर्ष मे 347 वॉ) दिन है। साल में अभी और 19 दिन बाकी है। .

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१३ अप्रैल

13 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 103वॉ (लीप वर्ष में 104 वॉ) दिन है। साल में अभी और 262 दिन बाकी है। .

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१६ अगस्त

१६ अगस्त ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २२८वॉ (लीप वर्ष मे २२९वॉ) दिन है। साल मे अभी और १३७ दिन बाकी है। .

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१८ दिसम्बर

18 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 352वॉ (लीप वर्ष मे 353 वॉ) दिन है। साल में अभी और 13 दिन बाकी है। .

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१९९०

कोई विवरण नहीं।

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२५ जून

25 जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 176वाँ (लीप वर्ष में 177 वाँ) दिन है। साल में अभी और 189 दिन बाकी हैं। .

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३ दिसम्बर

3 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 337वॉ (लीप वर्ष में 338 वॉ) दिन है। साल में अभी और 28 दिन बाकी है। १२३४५६७८९ .

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६ नवम्बर

६ नवंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३१०वाँ (लीप वर्ष मे 311 वॉ) दिन है। साल मे अभी और ५५ दिन बाकी है। .

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९ दिसम्बर

9 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 343वॉ (लीप वर्ष मे 344 वॉ) दिन है। साल में अभी और 22 दिन बाकी है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

1913

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