लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

१८७७

सूची १८७७

1877 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

19 संबंधों: दिल्ली दरबार, फ़तेहपुरी मस्जिद, दिल्ली, मेलबॉर्न क्रिकेट ग्राउंड, मोटर एवं इंजन प्रौद्योगिकी की समयरेखा, रदरफोर्ड बर्कर्ड हेयस, ग्रैंड स्लैम टेनिस विजेताओं की सूची, ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया, आगा खां तृतीय, इज़ाडोरा डंकन, कन्वेंशन ड्यू मेत्रे, कुष्ठरोग, कोहिनूर हीरा, अन्वेषणों की समय-रेखा, अयोध्या प्रसाद खत्री, १ जनवरी, २ सितम्बर, २१ नवम्बर, २४ अप्रैल, ८ दिसम्बर

दिल्ली दरबार

दिल्ली दरबार का विहंगम दृष्य सन 1877 का दिल्ली दरबार, भारत के वाइसरॉय बांयीं ओर चबूतरे पर बैठे हैं। दिल्ली दरबार, दिल्ली, भारत में राजसी दरबार होता था। यह इंगलैंड के महाराजा या महारानी के राजतिलक की शोभा में सजते थे। ब्रिटिश साम्राज्य चरम काल में, सन 1877 से 1911 के बीच तीन दरबार लगे थे। सन 1911 का दरबार एकमात्र ऐसा था, कि जिसमें सम्राट स्वयं, जॉर्ज पंचम पधारे थे। .

नई!!: १८७७ और दिल्ली दरबार · और देखें »

फ़तेहपुरी मस्जिद, दिल्ली

फतेहपुरी मस्जिद चांदनी चौक की पुरानी गली के पश्चिमी छोर पर स्थित है। इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी फतेहपुरी बेगम ने 1650 में करवाया था। उन्हीं के नाम पर इसका नाम फतेहपुरी मस्जिद पड़ा।) ये बेगम फतेहपुर से थीं। ताज महल परिसर में बनी मस्जिद भी इन्हीं बेगम के नाम पर है।. .

नई!!: १८७७ और फ़तेहपुरी मस्जिद, दिल्ली · और देखें »

मेलबॉर्न क्रिकेट ग्राउंड

यह क्रिकेट मैदान ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में स्थित है। मेलबोर्न क्रिकेट मैदान आस्ट्रेलिया के यारा पार्क में स्थित एक प्रमुख खेल का मैदान है। मेलबोर्न क्रिकेट क्लब का घरेलु मैदान भी है। यह आस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा स्टेडियम, विश्व का सबसे बड़ा क्रिकेंट स्टेडियम, दुनिया का दंसवा बड़ा स्टेडियम है। मेलबोर्न क्रिकेट मैदान 1956 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक का मुख्य केन्द्र तथा 2006 के राष्ट्र्मंडल खेल का भी मुख्य मैदान रहा है। श्रेणी:ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट मैदान श्रेणी:विश्व के प्रमुख खेल मैदान श्रेणी:आस्ट्रेलिया के प्रमुख खेल मैदान.

नई!!: १८७७ और मेलबॉर्न क्रिकेट ग्राउंड · और देखें »

मोटर एवं इंजन प्रौद्योगिकी की समयरेखा

इंजन एवं मोटर का विकास सभ्यता के विकास के इतिहास का शायद सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है क्योंकि इनके बिना मशीनीकरण की कल्पना नहीं की जा सकती। इनके बिना स्वतः नियन्त्रण (आटॉमैटिक कन्ट्रोल) का भी कोई अर्थ नहीं है। आज भी मोटर एवं इंजन ही प्रौद्योगिकी के रीढ बने हुए हैं।.

नई!!: १८७७ और मोटर एवं इंजन प्रौद्योगिकी की समयरेखा · और देखें »

रदरफोर्ड बर्कर्ड हेयस

रदरफोर्ड बर्कर्ड हेयस संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति थे। इनका कार्यकाल १८७७ से १८८१ तक था। ये रिपब्लिकन पार्टी से थे। श्रेणी:अमेरिका के राष्ट्रपति.

नई!!: १८७७ और रदरफोर्ड बर्कर्ड हेयस · और देखें »

ग्रैंड स्लैम टेनिस विजेताओं की सूची

List of Men's Singles Grand Slam tournaments tennis champions: .

नई!!: १८७७ और ग्रैंड स्लैम टेनिस विजेताओं की सूची · और देखें »

ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया

collar of a Knight Grand Commander of the Order of the Star of India. Maharaja Jagatjit Singh of Kapurthala, an Knight Grand Commander of this order. The flag of the Viceroy of India displayed the Star of the Order beneath the Imperial Crown of India. सर्वोन्नत ऑर्डर ऑफ स्टार ऑफ इंडिया एक बहादुरी के लिये दिया जाता हुआ सम्मान होता था। इसकी स्थापना महारानी विक्टोरिया द्वारा १८६१ में की गयी थी। इस सम्मान की तीन श्रेणियां थीं.

नई!!: १८७७ और ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया · और देखें »

आगा खां तृतीय

सुल्तान सर मुहम्मद शाह, आगा खां तृतीय, मूल नाम: सुल्तान सर मुहम्मद शाह,48वां इमाम (अरवी: سيدي سلطان محمد شاه، الآغاخان الثالث जन्म:2 नवम्बर 1877, जन्म स्थान: वर्तमान कराची, पाकिस्तान, मृत्यु: 11 जुलाई 1957, वरसोई, स्विट्जरलैंड), शियाओं के निजरी इसमाईली मत के आध्यात्मिक नेता। ये आगा खान द्वितीय के एकलौते बेटे थे। 1885 में अपने पिता के उत्तराधिकारी के रूप में वह निजारी इस्माईली संप्रदाय के इमाम बने। .

नई!!: १८७७ और आगा खां तृतीय · और देखें »

इज़ाडोरा डंकन

इज़ाडोरा डंकन। इज़ाडोरा डंकन (अंग्रेज़ी: Isadora Duncan)(२६ मई, १८७७ - १४ सितंबर, १९२७) एक अमेरिकी नर्तकी थीं। उनका पूरा नाम था ऐंगिला इज़ाडोरा डंकन और उनका जन्म सेन फ़्रांसिस्को, कैलिफ़ोर्निया में हुआ था। इज़ाडोरा डंकन को कई लोग आधुनिक नृत्य की जननी मानते हैं। यद्यपि अपने जीवन के बाद के वर्षों में वह अमेरिका में केवल न्यूयार्क में प्रसिद्ध हुईं, लेकिन उन्होंने पूरे यूरोप का मनोरंजन किया। नृत्य ही नहीं, जीवन में भी प्रयोगों की पक्षधर इज़ाडोरा की आत्मकथा माय लाइफ पढ़ने के बाद कला को समर्पित स्त्री के सभी पहलू उजागर होते हैं, साथ ही मन में प्रश्न उठता है, क्या कलाकार स्त्री एक सामान्य सहज जीवन नहीं जी सकती। इज़ाडोरा ने अपने समय से बहुत आगे जाकर जो प्रयोग किए, वह तत्कालीन समय के आलोचकों-कट्टरपंथियों को रास नहीं आए। इसके पश्चात भी इंग्लैंड के प्रसिद्ध नृत्य समीक्षक रिचर्ड ऑस्टिन ने माना कि वह विश्व की महानतम नृत्यांगनाओं में से एक थीं, जो स्वयं भी नहीं समझ पाती थी कि वह क्या नृत्य कर रही हैं। उनके माता-पिता आइरिश मूल के थे, लेकिन वे अलग हो गए थे। मां संगीत जानती थीं और पियानोवादन ही उनकी आजीविका का साधन बना। अभावग्रस्त जीवन ने उन्हें पारंपरिक तौर पर शिक्षा-दीक्षा की आज्ञा नहीं दी। इस प्रकार नृत्य उनके अपनी परिश्रम, क्षमताओं व आंतरिक अनुभूतियों की देन था। उनका सपना था-ऐसे नृत्य विद्यालय की स्थापना करना जहां दुनिया भर के बच्चे प्रशिक्षण ले सकें, पर आर्थिक परेशानियों व शिष्याओं की भद्दता ने उनका सपना पूरा नहीं होने दिया। १९१३ में हुई एक दुर्घटना में उन्होंने अपने दोनों बच्चों को खो दिया। इसके बाद उन्होंने फिर एक बच्चे को जन्म दिया, किंतु वह भी जन्म के कुछ देर बाद ही मर गया। इन त्रासदियों ने इज़ाडोरा को भीतर तक हिला दिया। इस बीच उनका अपना स्वास्थ्य बहुत गिर गया। खुले हाथों खर्च करने वाली इज़ाडोरा अपने अंतिम दिनों में बहुत तंगहाली में रहीं। १४ सितंबर १९२७ को लगभग ५० वर्ष की आयु में इज़ाडोरा ने जीवन की अंतिम सांसें लीं। .

नई!!: १८७७ और इज़ाडोरा डंकन · और देखें »

कन्वेंशन ड्यू मेत्रे

कन्वेंशन ड्यू मेत या फ्रेंच में Convention du Mètre 20 मई, 1875 को हुई एन अन्तर्राष्ट्रीय संधि थी, जिसमें मीट्रिक मानकों पर नजर रखने हेतु तीन संगठनों की स्थापना की गयी थी। यह फ़्रेंच भाषा में लिखी गयी है और इसे अंग्रेजी भाषा में Metre Convention या मीटर सम्मेलन कहा जाता है। संयुक्त राज्य में इसे मीटर की संधि भी कहते हैं। इसे 1921 में छठी CGPM में पुनरावलोकित किया गया था। इस सम्मेलन में तीन संगठनों का प्रादुर्भाव हुआ थ। वे हैं.

नई!!: १८७७ और कन्वेंशन ड्यू मेत्रे · और देखें »

कुष्ठरोग

कुष्ठरोग (Leprosy) या हैन्सेन का रोग (Hansen’s Disease) (एचडी) (HD), चिकित्सक गेरहार्ड आर्मोर हैन्सेन (Gerhard Armauer Hansen) के नाम पर, माइकोबैक्टेरियम लेप्री (Mycobacterium leprae) और माइकोबैक्टेरियम लेप्रोमेटॉसिस (Mycobacterium lepromatosis) जीवाणुओं के कारण होने वाली एक दीर्घकालिक बीमारी है। कुष्ठरोग मुख्यतः ऊपरी श्वसन तंत्र के श्लेष्म और बाह्य नसों की एक ग्रैन्युलोमा-संबंधी (granulomatous) बीमारी है; त्वचा पर घाव इसके प्राथमिक बाह्य संकेत हैं। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो कुष्ठरोग बढ़ सकता है, जिससे त्वचा, नसों, हाथ-पैरों और आंखों में स्थायी क्षति हो सकती है। लोककथाओं के विपरीत, कुष्ठरोग के कारण शरीर के अंग अलग होकर गिरते नहीं, हालांकि इस बीमारी के कारण वे सुन्न तथा/या रोगी बन सकते हैं। कुष्ठरोग ने 4,000 से भी अधिक वर्षों से मानवता को प्रभावित किया है, और प्राचीन चीन, मिस्र और भारत की सभ्यताओं में इसे बहुत अच्छी तरह पहचाना गया है। पुराने येरुशलम शहर के बाहर स्थित एक मकबरे में खोजे गये एक पुरुष के कफन में लिपटे शव के अवशेषों से लिया गया डीएनए (DNA) दर्शाता है कि वह पहला मनुष्य है, जिसमें कुष्ठरोग की पुष्टि हुई है। 1995 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन) (डब्ल्यूएचओ) (WHO) के अनुमान के अनुसार कुष्ठरोग के कारण स्थायी रूप से विकलांग हो चुके व्यक्तियों की संख्या 2 से 3 मिलियन के बीच थी। पिछले 20 वर्षों में, पूरे विश्व में 15 मिलियन लोगों को कुष्ठरोग से मुक्त किया जा चुका है। हालांकि, जहां पर्याप्त उपचार उपलब्ध हैं, उन स्थानों में मरीजों का बलपूर्वक संगरोध या पृथक्करण करना अनावश्यक है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी पूरे विश्व में भारत (जहां आज भी 1,000 से अधिक कुष्ठ-बस्तियां हैं), चीन, रोमानिया, मिस्र, नेपाल, सोमालिया, लाइबेरिया, वियतनाम और जापान जैसे देशों में कुष्ठ-बस्तियां मौजूद हैं। एक समय था, जब कुष्ठरोग को अत्यधिक संक्रामक और यौन-संबंधों के द्वारा संचरित होने वाला माना जाता था और इसका उपचार पारे के द्वारा किया जाता था- जिनमें से सभी धारणाएं सिफिलिस (syphilis) पर लागू हुईं, जिसका पहली बार वर्णन 1530 में किया गया था। अब ऐसा माना जाता है कि कुष्ठरोग के शुरुआती मामलों से अनेक संभवतः सिफिलिस (syphilis) के मामले रहे होंगे.

नई!!: १८७७ और कुष्ठरोग · और देखें »

कोहिनूर हीरा

Glass replica of the Koh-I-Noor as it appeared in its original form, turned upside down कोहिनूर (फ़ारसी: कूह-ए-नूर) एक १०५ कैरेट (२१.६ ग्राम) का हीरा है जो किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। कहा जाता है कि यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। 'कोहिनूर' का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधान मंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को १८७७ में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया। अन्य कई प्रसिद्ध जवाहरातों की भांति ही, कोहिनूर की भी अपनी कथाएं रही हैं। इससे जुड़ी मान्यता के अनुसार, यह पुरुष स्वामियों का दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण बना, व स्त्री स्वामिनियों के लिये सौभाग्य लेकर आया। अन्य मान्यता के अनुसार, कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज्य करने वाला बना। .

नई!!: १८७७ और कोहिनूर हीरा · और देखें »

अन्वेषणों की समय-रेखा

यहाँ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तकनीकी खोजों की समय के सापेक्ष सूची दी गयी है। .

नई!!: १८७७ और अन्वेषणों की समय-रेखा · और देखें »

अयोध्या प्रसाद खत्री

अयोध्या प्रसाद खत्री अयोध्या प्रसाद खत्री (१८५७-४ जनवरी १९०५) का नाम हिंदी पद्य में खड़ी बोली हिन्दी के प्रारम्भिक समर्थकों और पुरस्कर्ताओं में प्रमुख है। उन्होंने उस समय हिन्दी कविता में खड़ी बोली के महत्त्व पर जोर दिया जब अधिकतर लोग ब्रजभाषा में कविता लिख रहे थे। उनका जन्म बिहार में हुआ था बाद में वे बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में कलक्‍टरी के पेशकार पद पर नियुक्त हुए। १८७७ में उन्होंने हिन्दी व्याकरण नामक खड़ी बोली की पहली व्याकरण पुस्तक की रचना की जो बिहार बन्धु प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई थी। उनके अनुसार खड़ीबोली गद्य की चार शैलियाँ थीं- मौलवी शैली, मुंशी शैली, पण्डित शैली तथा मास्टर शैली। १८८७-८९ में इन्होंने "खड़ीबोली का पद्य" नामक संग्रह दो भागों में प्रस्तुत किया जिसमें विभिन्न शैलियों की रचनाएँ संकलित की गयीं। इसके अतिरिक्त सभाओं आदि में बोलकर भी वे खड़ीबोली के पक्ष का समर्थन करते थे। सरस्वती मार्च १९०५ में प्रकाशित "अयोध्याप्रसाद" खत्री शीर्षक जीवनी के लेखक पुरुषोत्तमप्रसाद ने लिखा था कि खड़ी बोली का प्रचार करने के लिए इन्होंने इतना द्रव्य खर्च किया कि राजा-महाराजा भी कम करते हैं। १८८८ में उन्‍होंने 'खडी बोली का आंदोलन' नामक पुस्तिका प्रकाशित करवाई। भारतेंदु युग से हिन्दी-साहित्य में आधुनिकता की शुरूआत हुई। इसी दौर में बड़े पैमाने पर भाषा और विषय-वस्तु में बदलाव आया। इतिहास के उस कालखंड में, जिसे हम भारतेंदु युग के नाम से जानते हैं, खड़ीबोली हिन्दी गद्य की भाषा बन गई लेकिन पद्य की भाषा के रूप में ब्रजभाषा का बोलबाला कायम रहा। अयोध्या प्रसाद खत्री ने गद्य और पद्य की भाषा के अलगाव को गलत मानते हुए इसकी एकरूपता पर जोर दिया। पहली बार इन्होंने साहित्य जगत का ध्यान इस मुद्दे की तरफ खींचा, साथ ही इसे आंदोलन का रूप दिया। हिंदी पुनर्जागरण काल में स्रष्टा के रूप में जहाँ एक ओर भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसा प्रतिभा-पुरुष खड़ा था तो दूसरी ओर द्रष्टा के रूप में अयोध्याप्रसाद खत्री जैसा अद्वितीय युगांतरकारी व्यक्तित्व था। इसी क्रम में खत्री जी ने 'खड़ी-बोली का पद्य` दो खंडों में छपवाया। इस किताब के जरिए एक साहित्यिक आंदोलन की शुरूआत हुई। हिन्दी कविता की भाषा क्या हो, ब्रजभाषा अथवा खड़ीबोली हिन्दी? जिसका ग्रियर्सन के साथ भारतेंदु मंडल के अनेक लेखकों ने प्रतिवाद किया तो फ्रेडरिक पिन्काट ने समर्थन। इस दृष्टि से यह भाषा, धर्म, जाति, राज्य आदि क्षेत्रीयताओं के सामूहिक उद्घोष का नवजागरण था। जुलाई २००७ में बिहार के शहर मुजफ्फरपुर में उनकी समृति में 'अयोध्या प्रसाद खत्री जयंती समारोह समिति' की स्थापना की गई। इसके द्वारा प्रति वर्ष हिंदी साहित्य में विशेष योगदन करने वाले किसी विशिष्ट व्यक्ति को अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार में अयोध्या प्रसाद खत्री की डेढ़ फुट ऊँची प्रतिमा, शाल और नकद राशि प्रदान की जाती है। ५-६ जुलाई २००७ को पटना में खड़ी बोली के प्रथम आंदोलनकर्ता अयोध्या प्रसाद खत्री की १५०वीं जयंती आयोजित की गई। संस्था के अध्यक्ष श्री वीरेन नंदा द्वारा श्री अयोध्या प्रसाद खत्री के जीवन तथा कार्यों पर केन्द्रित 'खड़ी बोली का चाणक्य' शीर्षक फिल्म का निर्माण किया गया है। .

नई!!: १८७७ और अयोध्या प्रसाद खत्री · और देखें »

१ जनवरी

१ जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का पहला दिन है। वर्ष में अभी और ३६४ दिन बाकी है (लीप वर्ष में ३६५)। .

नई!!: १८७७ और १ जनवरी · और देखें »

२ सितम्बर

२ सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २४५वाँ (लीप वर्ष मे २४६वाँ) दिन है। वर्ष मे अभी और १२० दिन बाकी है। .

नई!!: १८७७ और २ सितम्बर · और देखें »

२१ नवम्बर

२१ नवम्बर ग्रीगोरी पंचाग का ३२५वां (लीप वर्ष में ३२६वां) दिन है। इसके बाद वर्षान्त तक ४० दिन और बचते हैं। .

नई!!: १८७७ और २१ नवम्बर · और देखें »

२४ अप्रैल

24 अप्रैल ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 114वॉ (लीप वर्ष मे 115 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 251 दिन बाकी है। .

नई!!: १८७७ और २४ अप्रैल · और देखें »

८ दिसम्बर

८ दिसम्बर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का ३४२वॉ (लीप वर्ष मे ३४३वॉ) दिन है। साल में अभी और २३ दिन बाकी है। .

नई!!: १८७७ और ८ दिसम्बर · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

1877

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »