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१६वीं शताब्दी

सूची १६वीं शताब्दी

१६वीं शताब्दी एक ईसवीं शताब्दी है। शताब्दी, १६वीं.

12 संबंधों: फ़ैज़ी, बलाचौर, मुक्त व्यापार क्षेत्र, हुमायूँ का मकबरा, हेमचन्द्र विक्रमादित्य, वाराणसी, खनिज विज्ञान, गार्सिया लोपेज दि गार्सेनाज, आइन-ए-अकबरी, कर्नाटक, कर्नाटक/आलेख, कालिंजर दुर्ग

फ़ैज़ी

शेख अबु अल-फ़ैज़, प्रचलित नाम:फ़ैज़ी (२४ सितंबर १५४७, आगरा–५ अक्टूबर १५९५, लाहौर) मध्यकालीन भारत का फारसी कवि था। १५८८ में वह अकबर का मलिक-उश-शु‘आरा (विशेष कवि) बन गया था।ब्लॉक्मैन, एच.

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बलाचौर

बलाचौर उत्तर भारत के पंजाब राज्य मे नवांशहर शहर की एक तहसील है। बला चौर दोआबा क्षेत्र के अंदर आता है और काफ़ी सारे गाँव इसके अंदर आते है। बला चौर में चौधरी रहमत अली (जिन्होने पाकिस्तान शब्द की पहली बार घोषणा की) का ज्न्म हुआ था। .

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मुक्त व्यापार क्षेत्र

वर्तमान मुक्त व्यापार क्षेत्र ''एफ़टीए'' मुक्त व्यापार क्षेत्र (अंग्रेज़ी: फ्री ट्रेड एरिया; एफटीए) को परिवर्तित कर मुक्त व्यापार संधि का सृजन हुआ है। विश्व के दो राष्ट्रों के बीच व्यापार को और उदार बनाने के लिए मुक्त व्यापार संधि की जाती है। इसके तहत एक दूसरे के यहां से आयात-निर्यात होने वाली वस्तुओं पर सीमा शुल्क, सब्सिडी, नियामक कानून, ड्यूटी, कोटा और कर को सरल बनाया जाता है। इस संधि से दो देशों में उत्पादन लागत बाकी के देशों की तुलना में काफ़ी सस्ती होती है। १६वीं शताब्दी में पहली बार इंग्लैंड और यूरोप के देशों के बीच मुक्त व्यापार संधि की आवश्यकता महसूस हुई थी। आज दुनिया भर के कई देश मुक्त व्यापार संधि कर रहे हैं। यह समझौता वैश्विक मुक्त बाजार के एकीकरण में मील का पत्थर सिद्ध हो रहा है। इन समझौतों से वहां की सरकार को उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण में मदद मिलती है। सरल शब्दों में यह कारोबार पर सभी प्रतिबंधों को हटा देता है। इस समझौते के बहुत से लाभ हैं। हाल में भारत ने १० दक्षिण एशियाई देशों के समूह आसियान के साथ छह वर्षो की लंबी वार्ता के बाद बैंकॉक में मुक्त व्यापार समझौता किया है। इसके तहत अगले आठ वर्षों के लिए भारत और आसियान देशों के बीच होने वाली ८० प्रतिशत उत्पादों के व्यापार पर शुल्क समाप्त हो जाएगा। इससे पूर्व भी भारत के कई देशों और यूरोपियन संघ के साथ मुक्त व्यापार समजौते हो चुके हैं। यह समझौता गरीबी दूर करने, रोजगार पैदा करने और लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में काफी सहायक हो रहा है। मुक्त व्यापार संधि न सिर्फ व्यापार बल्कि दो देशों के बीच राजनैतिक संबंध के बीच कड़ी का काम भी करती है। कुल मिलाकर यह संधि व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करने और दोतरफा व्यापार को सुचारू रूप से चलाने में सहायक सिद्ध होती है। इस दिशा में अमरीका-मध्य पूर्व एशिया में भी मुक्त क्षेत्र की स्थापना की गई है। सार्क देशों और शेष दक्षिण एशिया में भी साफ्टा मुक्त व्यापार समझौता १ जनवरी, २००६ से प्रभाव में है। इस समझौते के तहत अधिक विकसित देश- भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका अपनी उत्पाद शुल्क को घटाकर २०१३ तक ० से ५ प्रतिशत के बीच ले आएंगे। कम विकसित देश- बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और नेपाल को भी २०१८ तक ऐसा ही करना होगा। भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच भी प्रयास जारी हैं। .

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हुमायूँ का मकबरा

हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन (१२६८-१२८७) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह समूह विश्व धरोहर घोषित है- अभिव्यक्ति। १७ अप्रैल २०१०।, एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार १५६२ में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बनी। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था। १९९३ में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया। इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है। हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं। देल्ही थ्रु एजेज़। एस.आर.बख्शी। प्रकाशक:अनमोल प्रकाशन प्रा.लि.। १९९५।ISBN 81-7488-138-7। पृष्ठ:२९-३५ इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा, जिसका प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे। ऐसे उद्यान भारत में इससे पूर्व कभी नहीं दिखे थे और इसके बाद अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। ये मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी। हिस्ट‘ओरिक गार्डन रिव्यु नंबर १३, लंदन:हिस्टॉरिक गार्डन फ़ाउडेशन, २००३ अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज़्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित ये इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बना। ये स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा। .

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हेमचन्द्र विक्रमादित्य

सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य या केवल हेमू (१५०१-१५५६) एक हिन्दू राजा था, जिसने मध्यकाल में १६वीं शताब्दी में भारत पर राज किया था। यह भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण समय रहा जब मुगल एवं अफगान वंश, दोनों ही दिल्ली में राज्य के लिये तत्पर थे। कई इतिहसकारों ने हेमू को 'भारत का नैपोलियन' कहा है। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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खनिज विज्ञान

खनिज विज्ञान (अंग्रेज़ी:मिनरलॉजी) भूविज्ञान की एक शाखा होती है। इसमें खनिजों के भौतिक और रासायनिक गुणों का अध्ययन किया जाता है। विज्ञान की इस शाखा के अंतर्गत खनिजों के निर्माण, बनावट, वर्गीकरण, उनके पाए जाने के भौगोलिक स्थानों और उनके गुणों को भी शामिल किया गया है। इसके माध्यम से ही खनिजों के प्रयोग और उपयोग का भी अध्ययन इसी में किया जाता है। विज्ञान की अन्य शाखाओं की भांति ही इसकी उत्पत्ति भी कई हजार वर्ष पूर्व हुई थी। वर्तमान खनिज विज्ञान का क्षेत्र, कई दूसरी शाखाओं जैसे, जीव विज्ञान और रासायनिकी तक विस्तृत हो गया है। यूनानी दार्शनिक सुकरात ने सबसे पहले खनिजों की उत्पत्ति और उनके गुणों को सिद्धांत रूप में प्रतुत किया था, हालांकि सुकरात और उनके समकालीन विचारक बाद में गलत सिद्ध हुए लेकिन उस समय के अनुसार उनके सिद्धांत नए और आधुनिक थे। किन्तु ये कहना भी अतिश्योक्ति न होगा कि उनकी अवधारणाओं के कारण ही खनिज विकास की जटिलताओं को सुलझाने में सहयोग मिला, जिस कारण आज उसके आधुनिक रूप से विज्ञान समृद्ध है। १६वीं शताब्दी के बाद जर्मन वैज्ञानिक जॉर्जियस एग्रिकोला के अथक प्रयासों के चलते खनिज विज्ञान ने आधुनिक रूप लेना शुरू किया। .

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गार्सिया लोपेज दि गार्सेनाज

गार्सिया लोपेज दि गार्सेनाज (अंग्रेज़ी:García López de Cárdenas), (१६वीं शताब्दी), ग्रैंड कैन्यन, संयुक्त राज्य के खोजक व प्रथम यूरोपीय भ्रमणकर्ता माने जाते हैं। कार्ड्नाज़ का जन्म ल्लेर्ना, स्पेन में अलोंसो दे गार्सेनाज़ के यहां हुआ था। ये कैरावाका के कमाण्डर थे। .

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आइन-ए-अकबरी

अकबर का दरबार, अकबरनामा की पाण्डुलिपि में दिखाया गया एक चित्र आइन-ए-एकबरी (अर्थ:अकबर के संस्थान), एक १६वीं शताब्दी का ब्यौरेवार ग्रन्थ है। इसकी रचना अकबर के ही एक नवरतन दरबारी अबुल फज़ल ने की थी। इसमें अकबर के दरबार, उसके प्रशासन के बारे में चर्चा की गई है। इसके तीन ख्ण्ड हैं, जिनमें अंतिम खंड अकबरनामा (اکبر نامه), के नाम से है। ये खंड स्वयं तीन प्रखंडों में है। .

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कर्नाटक

कर्नाटक, जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का गठन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधीन किया गया था। पहले यह मैसूर राज्य कहलाता था। १९७३ में पुनर्नामकरण कर इसका नाम कर्नाटक कर दिया गया। इसकी सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। इसका कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। २९ जिलों के साथ यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई व्याख्याओं में से सर्वाधिक स्वीकृत व्याख्या यह है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्कन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द का प्रयोग किया जाता था, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयुक्त है और मूलतः कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन साम्राज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है। .

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कर्नाटक/आलेख

कर्नाटक (उच्चारण), जिसे कर्णाटक भी कहते हैं, दक्षिण भारत का एक राज्य है। इस राज्य का सृजन १ नवंबर, १९५६ को राज्य पुनर्संगठन अधिनियम के अधीन किया गया था। मूलतः यह मैसूर राज्य कहलाता था और १९७३ में इसे पुनर्नामकरण कर कर्नाटक नाम मिला था। कर्नाटक की सीमाएं पश्चिम में अरब सागर, उत्तर पश्चिम में गोआ, उत्तर में महाराष्ट्र, पूर्व में आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिल नाडु एवं दक्षिण में केरल से लगती हैं। राज्य का कुल क्षेत्रफल ७४,१२२ वर्ग मील (१,९१,९७६ कि॰मी॰²) है, जो भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का ५.८३% है। यह राज्य आठवां सबसे बड़ा राज्य है और इसमें २९ जिले हैं। राज्य की आधिकारिक और सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है कन्नड़। हालांकि कर्नाटक शब्द के उद्गम के कई सन्दर्भ हैं, फिर भी उनमें से सर्वाधिक स्वीकार्य तथ्य है कि कर्नाटक शब्द का उद्गम कन्नड़ शब्द करु, अर्थात काली या ऊंची और नाडु अर्थात भूमि या प्रदेश या क्षेत्र से आया है, जिसके संयोजन करुनाडु का पूरा अर्थ हुआ काली भूमि या ऊंचा प्रदेश। काला शब्द यहां के बयालुसीम क्षेत्र की काली मिट्टी से आया है और ऊंचा यानि दक्खन के पठारी भूमि से आया है। ब्रिटिश राज में यहां के लिये कार्नेटिक शब्द प्रयोग किया गया है, जो कृष्णा नदी के दक्षिणी ओर की प्रायद्वीपीय भूमि के लिये प्रयोग किया गया है और कर्नाटक शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास देखें तो कर्नाटक क्षेत्र कई बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का क्षेत्र रहा है। इन याज्यों के दरबारों के विचारक, दार्शनिक और भाट व कवियों के सामाजिक, साहित्यिक व धार्मिक संरक्षण में आज का कर्नाटक उपजा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दोनों ही रूपों, कर्नाटक संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत को इस राज्य का महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है। आधुनिक युग के कन्नड़ लेखकों को सर्वाधिक ज्ञानपीठ सम्मान मिले हैं। राज्य की राजधानी बंगलुरु शहर है, जो भारत में हो रही त्वरित आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी का अग्रणी योगदानकर्त्ता है। .

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कालिंजर दुर्ग

कालिंजर, उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के बांदा जिले में कलिंजर नगरी में स्थित एक पौराणिक सन्दर्भ वाला, ऐतिहासिक दुर्ग है जो इतिहास में सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है। यह विश्व धरोहर स्थल प्राचीन मन्दिर नगरी-खजुराहो के निकट ही स्थित है। कलिंजर नगरी का मुख्य महत्त्व विन्ध्य पर्वतमाला के पूर्वी छोर पर इसी नाम के पर्वत पर स्थित इसी नाम के दुर्ग के कारण भी है। यहाँ का दुर्ग भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। इस पर्वत को हिन्दू धर्म के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं, व भगवान शिव के भक्त यहाँ के मन्दिर में बड़ी संख्या में आते हैं। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। इसके बाद यह दुर्ग यहाँ के कई राजवंशों जैसे चन्देल राजपूतों के अधीन १०वीं शताब्दी तक, तदोपरांत रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे प्रसिद्ध आक्रांताओं ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बाद भी आरम्भिक मुगल बादशाह भी कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: मुगल बादशाह अकबर ने इसे जीता व मुगलों से होते हुए यह राजा छत्रसाल के हाथों अन्ततः अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं, जिनमें से कई तो गुप्त वंश के तृतीय -५वीं शताब्दी तक के ज्ञात हुए हैं। यहाँ शिल्पकला के बहुत से अद्भुत उदाहरण हैं। .

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