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हाइड्रोजन

सूची हाइड्रोजन

हाइड्रोजन पानी का एक महत्वपूर्ण अंग है शुद्ध हाइड्रोजन से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हाइड्रोजन (उदजन) (अंग्रेज़ी:Hydrogen) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी का सबसे पहला तत्व है जो सबसे हल्का भी है। ब्रह्मांड में (पृथ्वी पर नहीं) यह सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। तारों तथा सूर्य का अधिकांश द्रव्यमान हाइड्रोजन से बना है। इसके एक परमाणु में एक प्रोट्रॉन, एक इलेक्ट्रॉन होता है। इस प्रकार यह सबसे सरल परमाणु भी है। प्रकृति में यह द्विआण्विक गैस के रूप में पाया जाता है जो वायुमण्डल के बाह्य परत का मुख्य संघटक है। हाल में इसको वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर सकने के लिए शोध कार्य हो रहे हैं। यह एक गैसीय पदार्थ है जिसमें कोई गंध, स्वाद और रंग नहीं होता है। यह सबसे हल्का तत्व है (घनत्व 0.09 ग्राम प्रति लिटर)। इसकी परमाणु संख्या 1, संकेत (H) और परमाणु भार 1.008 है। यह आवर्त सारणी में प्रथम स्थान पर है। साधारणतया इससे दो परमाणु मिलकर एक अणु (H2) बनाते है। हाइड्रोजन बहुत निम्न ताप पर द्रव और ठोस होता है।।इण्डिया वॉटर पोर्टल।०८-३०-२०११।अभिगमन तिथि: १७-०६-२०१७ द्रव हाइड्रोजन - 253° से.

322 संबंधों: चन्द्रमा, ऊष्मा चालकता, ऊष्मारसायन, ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया, टरपीन, ट्राइटियम, टेफ्लान, एटा महाश्वान तारा, एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट, एनजीसी 206, एन–ब्यूटाइलएमाइन, एमाइड, एमाइनोथायाजोल, एमीन, एल्डिहाइड, एल्कलॉएड, एस पी एल सोरेनसेन, एसिटल ग्लुटामेट अम्ल, एसिटिक अम्ल, एस्कॉर्बिक अम्ल, ऐमीन, ऐजो यौगिक, ऐंथ्रासाइट, डाइमिथाइलएसिटामाइड, ड्यूटीरियम, डॅल्टा महाश्वान तारा, डीडीटी, तत्वों की सूची (नाम अनुसार), तारों का विकास, थर्मल प्रदूषण, थाइरेट्रॉन, दहन ऊष्मा, दाब रसायन, धातु हाइड्रोजन, नाभिकीय ऊर्जा, नाभिकीय संलयन, नाभिकीय उर्जा, नाइट्रो यौगिक, नाइट्रोजन, नाइयासिन, निम्नतापिकी, निम्नतापी रॉकेट इंजन, निम्नतापी ईंधन, निहारिका, नौवां ग्रह, नोवा, पदार्थ की मात्रा, परमदानव तारा, परमाणु, परमाणु कक्षक, ..., परमाणु क्रमांक, पादपरसायन, पारगम्यता, पवन, पुखराज, प्रति-कण, प्रतिऑक्सीकारक, प्रत्यास्थलक, प्रकाश-संश्लेषण, प्रोटियम, प्रोटॉन, प्रोटीन, पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास, पृथ्वी का वायुमण्डल, पृथ्वी का इतिहास, पूर्णहृदरोध, पेट्रोलियम उत्पाद, पेन्टोथेनिक अम्ल, पॉलीमर, पोषक तत्व, पीटर कपिज़ा, पीएच मापक, फरफुरल, फास्फोरस, फिनाइललिथियम, फिनोल, फ्रिडेल-क्राफ्ट्स अभिक्रिया, फ्लोरीन, फोलिक अम्ल, फीरोजा़, बायोगैस, बिग बैंग सिद्धांत, बुध (ग्रह), ब्रोमीन, बृहस्पति (ग्रह), बृहस्पति का वायुमंडल, बेटा कैसिओपिये तारा, बेंजीन, बोर त्रिज्या, बोर्निऑल, बीटा टाओरी तारा, बीटा महाश्वान तारा, बीएमडब्लू (BMW), भूरा बौना, भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान, महादानव तारा, मार्जरीन, मंगल ग्रह, मंगलयान, मॅजलॅनिक बादल, मोटरवाहन, यूनाइटेड किंगडम, यूरिक अम्ल, यूरेनियम, रत्न, रसायन विज्ञान का इतिहास, रसायन विज्ञान की समयरेखा, रासायनिक तत्व, रासायनिक तत्वों की सूची, रासायनिक प्रतीक, रासायनिक साम्य, रासायनिक सूत्र, रासायनिक इंजीनियरी का इतिहास, रोहिणी तारा, रीनियम, लाल दानव तारा, लाल महादानव तारा, लघु परिपथ, लवण, लौह-हाइड्रोजन प्रतिरोध, शनि (ग्रह), शेवरॉन कॉर्पोरेशन, सतत वर्णक्रम, सल्फ़ोनिक अम्ल, सायनेमाइड, संधारणीय ऊर्जा, स्टर्लिंग इंजन, स्टेरॉल, स्थलीय ग्रह, स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री, सौर मण्डल, सूर्य, सेलुलोस, सेलोफेन, से्फ्रोल, सोडियम, सीटस तारामंडल, सीरियम, हाबर प्रक्रम, हाइड्राज़िन, हाइड्राइड, हाइड्रो़जन सल्फाइड, हाइड्रोजन परमाणु, हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी, हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, हाइड्रोजन आबंध, हाइड्रोजन क्लोराइड, हाइड्रोजन के समस्थानिक, हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था, हाइड्रोजनीकरण, हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, हाइब्रिड वाहन, हिलियम, हंस तारा, हेनरी कैवेंडिश, हॉपर गुब्बारा, जर्मेनियम, जल, जल का विद्युत अपघटन, जलगैस, ज़र्कोनियम, जैवहाइड्रोजन, जैवाणु, जूनो (अंतरिक्ष यान), जूल-टॉमसन प्रभाव, जेम्स प्रेस्कॉट जूल, जीनोम परियोजना, जीवविज्ञान का इतिहास, ईन्धन, वर्णमण्डल, वान डर वाल्स त्रिज्या, वान डर वाल्स समीकरण, वायु, वाष्पन की पूर्ण उष्मा, विटामिन बी६, विद्युत, विद्युत अपघटन, विद्युत्-रसायन, विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र, विशिष्ट ऊष्मा धारिता, विश्व के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और उनके अविष्कारों का संक्षिप्त वर्णन, वुल्फ़-रायेट तारा, वुल्फगांग पौली, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, वॉयेजर प्रथम, खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण, खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी, गन्धकाम्ल, गामा लियोनिस तारा, गंधक, ग्लाइकोल, ग्लीसरीन, गैनिमीड (उपग्रह), गैस, गैस दानव, गैस प्रदीपन, गैस वेल्डन, गैसनिर्माण, गैसीकरण, ऑक्सीजन, 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तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र, अंतरिक्ष, अंतरिक्ष विज्ञान, अंगिरस तारा, उपतारकीय वस्तु, उपदानव तारा, छल्ला नीहारिका, , ४-फिनाइल-४-(१-पिपेरिडिनाइल)साइक्लोहेक्सेन, DABCO, G श्रेणी का मुख्य-अनुक्रम तारा, N,N-डाइमिथाइलफोर्मामाइड, 1,1,1-ट्राइफ्लोरोइथेन, 1,2-डाइब्रोमोमिथेन, 1,2-डाइमिथाइलबेंजिन, 1,2-इथेनडाइथायोल, 1,3-डाइमिथाइलबेंजिन, 1,3-ब्यूटाडाइइन, 1,3-साइक्लोहेक्साडाइईन, 1,4-डाइमिथाइलबेंजिन, 1,4-डाइक्लोरोबेंजिन, 1,4-साइक्लोहेक्साडाइईन, 1,8-बिस(डाइमिथाइलएमाइनो)नैप्थालिन, 18-क्राउन-6, 2,2'-बाइपाइरिडिन, 2,2,2-ट्राइफ्लोरोइथेनॉल, 2,2,4-ट्राइमिथाइलपेन्टेन, 2,4,6-ट्राइक्लोरोएनिसोल, 2,4,6-ट्राइक्लोरोफिनोल, 2,4-डाइक्लोरोफिनॉक्सीएसिटिक अम्ल, 2,6-डाइ-टर्ट-ब्यूटाइलफेनोल, 2,6-ल्यूटिडिन, 2-पाइरोडिन, 2-प्रोपेनोन, 2-ब्यूटाइन-1,4-डाइऑल, 2-ब्यूटॉक्सीइथेनाल, 2-ब्रोमो-1-क्लोरो-प्रोपेन, 2-ब्रोमोप्रोपेन, 2-मर्केप्टोइथेनाल, 2-मिथाइलप्रोपिन, 2-मिथाइलबेन्जोइक अम्ल, 2-मिथाइलक्वीनोलिन, 2-इथाइल-1-हेक्सानॉल, 2-क्लोरो-2-मिथाइलप्रोपेन, 2-क्लोरोबेंजोइक अम्ल, 3,3'-डाइएमाइनोबेंजिडिन, 4-मिथाइलबेन्जोइक अम्ल, 4-मिथोक्सीबेन्जालडिहाइड, 4-क्लोरोएनिलिन, 5-हाइड्रॉक्सिट्रिप्टामिन, 9-फ्लूरिनोन सूचकांक विस्तार (272 अधिक) »

चन्द्रमा

कोई विवरण नहीं।

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ऊष्मा चालकता

भौतिकी में, ऊष्मा चालकता (थर्मल कण्डक्टिविटी) पदार्थों का वह गुण है जो दिखाती है कि पदार्थ से होकर ऊष्मा आसानी से प्रवाहित हो सकती है या नहीं। ऊष्मा चालकता को k, λ, या κ से निरूपित करते हैं। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता अधिक होती है उनसे होकर समान समय में अधिक ऊष्मा प्रवाहित होती है (यदि अन्य परिस्थितियाँ, जैसे ताप का अन्तर, पदार्थ की लम्बाई और क्षेत्रफल आदि समान हों)। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता बहुत कम होती हैं उन्हें ऊष्मा का कुचालक (थर्मल इन्सुलेटर) कहा जाता है। ऊष्मा चालकता के व्युत्क्रम (रेसिप्रोकल) को उष्मा प्रतिरोधकता (thermal resistivity) कहते हैं। .

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ऊष्मारसायन

संसार का प्रथम हिम-कैलोरीमीटर (ice-calorimeter) उष्मागतिकी एवं भौतिक रसायन में उष्मारसायन (thermochemistry) वह विद्या है जो किसी रासायनिक अभिक्रिया में उत्पन्न या शोषित की गयी उर्जा का अध्ययन करती है। उष्मारसायन में प्राय: उर्जा के शोषण या उत्सर्जन के परिणामस्वरूप होने वाले भौतिक परिवर्तन (जैसे गलन, क्वथन, फेज परिवर्तन (phase transition) आदि) का भी अध्ययन शामिल है। इसके साथ-साथ उष्मा धारिता, ज्वलन की उष्मा, निर्माण की उष्मा (heat of formation), इन्थाल्पी एवं मुक्त उर्जा (free energy) की गणना भी की जाती है। .

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ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया

किसी ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया का ऊर्जा-प्रोफाइल वह रासायनिक अभिक्रिया उष्माक्षेपी (exothermic reaction) कहलाती है जिसमें उष्मा के रूप में उर्जा प्राप्त होती है। इसके विपरीत रासायनिक अभिक्रिया उष्माशोषी कहलाती है। रासायनिक अभिक्रिया के रूप में व्यक्त करने पर - उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन का जलना एक ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया है। .

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टरपीन

चीड़ आदि कोणधारी वृक्षों से प्राप्त रेजिन से अधिकांश टरपीन प्राप्त किए जाते हैं। टरपीन (Terpene) हाइड्रोकार्बन वर्ग का असंतृप्त यौगिक है, जिसमें केवल कार्बन और हाइड्रोजन तत्व होते है। टरपीन (Terpene) शब्द टरपेंटाइन (turpentine) (तारपीन का तेल) से निकला है, जिसमें अनेक टरपीन पाए गए हैं। टरपीनों का सामान्य सूत्र है जहाँ (n) एक, दो, तीन, चार या चार से अधिक हो सकता है। टरपीन के अनेक अंतर्विभाग हैं। सरलतम टरपीन का सूत्र (C5H8) है। इसे 'हेमिटरपीन' कहते हैं। हेमिटरपीन के अतिरिक्त वास्तविक टरपीन (C10H16), सेस्किवटरपीन (C15H24), डाइटरपीन (C20H32) ट्राइटरपीन (C30H48) और पॉलिटरपीन (C5 H8)n सूत्रों के होते हैं, जिनमें (n) पाँच से अधिक संख्या होती है। टरपीनों का वर्गीकरण उनकी संरचना के आधार पर भी किया गया है। एक वर्ग के टरपीनों में कोई चक्रीय संरचना नहीं होती। इसे अचक्रीय (acyclic) या विवृत श्रृंखला का टरपीन कहते है। दूसरे वर्ग में चक्रीय (cyclic) संरचना होती है। उसे चक्रीय टरपीन कहते हैं। फिर चक्रीय टरपीन एक वलय वाला, दो वलयवाला या तीन से अधिक वलयवाला हो सकता है। ऐसे टरपीनों को क्रमश: एकचक्रीय, द्विचक्रीय, त्रिचक्रीय, या बहुचक्रीय, टरपीन कहते हैं। .

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ट्राइटियम

ट्राइटियम हाइड्रोजन का एक रेडियोधर्मी समस्थानिक होता है। इसे ट्राइटॉन भी कहते हैं। ट्राइटियम के नाभिक में एक प्रोटॉन और दो न्यूट्रॉन होते हैं, जबकि हाइड्रोजन के सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध समस्थानिक प्रोटियम में मात्र एक प्रोटॉन ही होता है और न्यूट्रॉन अनुपस्थित होता है।। हिन्दुस्तान लाइव। २ दिसम्बर २००९ इस समस्थानिक का नाम एक ग्रीक शब्द से मिलकर बना है, जिसका अर्थ थर्ड या तृतीय होता है। ट्राइटियम की उत्पत्ति हैवी वाटर मॉडरेट रिएक्टर में ड्यूटीरियम माध्यम में न्यूट्रान के टकराव से होती है।। नवभारत टाइम्स। ७ अक्टूबर २००८ इस प्रक्रिया में कुछ मात्रा में ट्राइटियम बनता है। ट्राइटियम का आण्विक भार ३.०१६०४९२ होता है। मानक तापमान और दबाव पर ट्राइटियम गैस रूप में रहता है। ऑक्सीजन से मिश्रित होने पर यह ये तरल रूप धारण करता है, जिसे ट्राइटीकृत जल (ट्राइटिएटेड वाटर) कहते हैं। ये रबड़, प्लास्टिक और कुछ तरह के इस्पातों के लिए पारगम्य होता है। ट्राइटियम की खोज १९२० में वाल्टर रसेल ने की थी। वहीं विल्फर्ड एफ. लिबी ने यह खोज की थी कि ट्राइटियम का प्रयोग डेटिंग वाटर की तरह किया जा सकता है, जो मदिरा उत्पादन के लिए निर्माण किया जाता है। हाइड्रोजन की तरह ट्राइटियम को सीमाबद्ध नहीं किया जा सकता। ट्राइटियम और ड्यूटेरियम को परमाणु ईंधन की तरह प्रयोग किया जाता है।। दैनिक भास्कर। ३० दिसम्बर २००८ वैज्ञानिकों के अनुसार ये चर्चा का विषय रहा है, कि ट्राइटियम को प्रस्तावित फ़्यूज़न रियेक्टरों में अधिक मात्र में प्रयोग करने पर रेडियोधर्मी प्रदूषण संभव है। विभिन्न देशों में ट्राइटियम के प्रयोग पर निषेध है। सूर्य पर जो प्रक्रियाएँ होती हैं, उन में हाइड्रोजन के दोनों ड्यूटेरियम और ट्राइटियम के अणुओं के मेल से अधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है। ड्यूटेरियम और ट्राइटियम के एक ग्राम से उतनी ही ऊर्जा उत्पन होती है जितनी ८ टन तेल से पैदा की जा सकती है।। वॉयस ऑफ रशिया। २ अगस्त २००७ ट्राइटियम लगभग हाइड्रोजन से मिलता जुलता होता है, जिसके कारण यह सरलता से मिलकर कार्बनिक बंध बना लेते हैं। ट्राइटियम बीटा का मजबूत उत्सर्जक नहीं है जिस कारण यह काफी खतरनाक होता है। खाना, पानी और त्वचा द्वारा अवशोषण किए जाने के कारण सांस लेने या खाना खाने के दौरान काफी हानिकारक होता है। File:Tritium-watch.jpg|ट्राईटियम डायल वाली घड़ी File:Trtium.jpg|ट्राइटियम भरी ट्यूबलाइट .

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टेफ्लान

टेफ्लॉन की पट्टी, फीता(टेप) आदि टेफ्लान का अणु टेफ्लॉन की परत चढ़ाया हुआ बरतन (पैन) टेफ्लान या पॉलीटेट्राफ्लूरोएथिलीन (Polytetrafluoroethylene (PTFE)) एक संश्लेषित फ्लूरोबहुलक है। यह अनेकों कार्यों के लिये उपयोगी है। 'टेफ्लोन' (Teflon) डूपॉण्ट (DuPont Co) द्वारा विकसित पीटीएफई का ब्राण्ड-नाम है। पीटीएफई बहुत ही कठोर पदार्थ है। इस पर ऊष्मा, अम्ल तथा क्षार का प्रभान नहीं पड़ता है। यह विद्युत धारा का कुचालक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एटा महाश्वान तारा

महाश्वान तारामंडल में स्थित एटा महाश्वान तारा एटा महाश्वान, जिसका बायर नाम "एटा कैनिस मेजोरिस" (η Canis Majoris या η CMa) है, महाश्वान तारामंडल में स्थित एक तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले सब से रोशन तारों में से एक है। यह हमसे ३,००० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) +२.४५ है। यह एक परिवर्ती तारा है और इसकी चमक +२.३८ से +२.४८ मैग्निट्यूड की सीमाओं के बीच बदलती रहती है। .

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एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट

एटीपी को कोशिका की करेंसी (मुद्रा) कहा जाता है। एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट या एटीपी एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एनजीसी 206

एनजीसी 206 हमारी समीपवर्ती मंदाकिनी एंड्रोमेडा में एक चमकीला तारों का बादल है। पृथ्वी से देखने पर एंड्रोमेडा में यह सबसे चमकीला दिखता है। .

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एन–ब्यूटाइलएमाइन

एन- ब्यूटाइलएमाइन अणु की गेंद और छड़ी मॉडल।। एन- ब्यूटाइलएमाइन अणु की गेंद और छड़ी मॉडल। एन–ब्यूटाइलएमाइन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एमाइड

एमाइड क्रियात्मक समूह ऐमाइड (Amide) अमोनिया के हाइड्रोजन को वसीय या सौरभिक अम्ल मूलक द्वारा प्रतिस्थापित यौगिक है। इसमें अम्ल से कार्बोक्सिल मूलक का हाइड्रॉक्सिल मूलक ऐमिडोमूलक NH2 जैसे (R.CO.NH2)। ये तीन वर्ग के हैं: प्राथमिक R.CO...N H2, द्वितीयक (R.CO)2 तथा त्रितीयक (RCO)3 N* इनमें से केवल प्राथमिक ऐमाइड ही प्रमुख हैं। इन्हें 'ऐसिड ऐमाइड' भी कहते हैं। इनके नाम अम्ल के अंग्रेजी नाम से "-इक ऐसिड" निकालकर उसके बदले "ऐमाइड" लगा देने से प्राप्त होते हैं, जैसे फ़ॉर्मिक ऐसिड से फॉर्मऐमाइड (H.CO NH2), ऐसीटिक एसिड से ऐसीटेमाइड CH3। CO.NH2 इत्यादि। ऐमिनो मूलक के हाइड्रोजन के प्रतिस्थापित यौगिक को नाम के पहले एन (N) लिखकर व्यक्त करते हैं, जैसे एन-मेथिल ऐसीटैमाइड। प्रकृति में ये प्रोटीन में पेप्टाइड बंधन के रूप में पाए जाते हैं। .

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एमाइनोथायाजोल

एमाइनोथायाजोल एक कार्बनिक यौगिक है जो जल, इथर एवं अल्कोहल तीनों में घुलनशील है। इससे कई प्रकार की दवाएँ बनाई जाती हैं। अवटु ग्रन्थि की अतिसक्रियता में इसका उपयोग किया जाता है जिससे हाइपरथाइरॉयडिज़्म की चिकित्सा होती है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एमीन

ऐमिन (तिक्ती) अमोनिया के यौगिक हैं। अमोनिया के १, २ या ३ हाइड्रोजन परमाणुओं के ऐल्किल या ऐरिल मूलक द्वारा प्रतिस्थापन से क्रमश: प्राथमिक RNH2, द्वितीयक PR´ NH या त्रितीयक R R´ R´´N वर्ग के तिक्ती बनते हैं। चतु: ऐरिल मूलकवाला यौगिक अज्ञात है। चतु: तिक्ती में R4N- धनायन है, किंतु ऋणायन Cl-HSO4, या OH- हो सकते हैं। मूलकों के आधार पर इनके रासायनिक तथा भौतिक गुण भी भिन्न होते हैं। चतुर्थक के गुण ऐमोनियम यौगिक के समान होते हैं। सौरभिक द्वि-तिक्ती (ऑर्थो, मेटा तथा पैरा फ़ेनिलीन डाइ तिक्ती) के गुण प्राथमिक की भाँति हैं। कुछ तिक्ती, जैसे ब्यूटिल तथा आइसो ब्यूटिल तिक्ती, समावयवता प्रदर्शित करते हैं। तिक्ती प्रकृति में अधिक नहीं पाए जाते, किंतु कुछ, जैसे मेथिल तिक्ती पौधों, जंतुओं के रक्त, सांद्र नमक के विलयन में रखी हेरिंग मछली, हड्डी के तेल तथा डामर में प्राप्य हैं। उदाहरण के लिये ट्राई मेथिल एमिन तृतीयक एमीन है जिसका अणुसूत्र N(CH3)3 है। ट्राई मेथिल एमिन .

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एल्डिहाइड

एल्डिहाइड ग्रूप फॉर्मेल्डिहाइड, जो सबसे सरल ऐल्डिहाइड है गिसरेल्डिहाइड एल्केन में अंतिम कार्बन से जुड़े दो हाइड्रोजन परमाणुओं को एक ऑक्सीजन परमाणु द्वारा विस्थापित करने पर जो कार्बनिक यौगिक प्राप्त होता है उसे एल्डिहाइड (सुव्युद) कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जिन कार्बनिक यौगिकों में −CHO प्रकार्यात्मक समूह होता है उन्हें ऐडिहाइड (aldehyde) या एल्कानल (alkanal) कहते हैं। सामने के चित्र में -R समूह को छोड़कर जो शेष बचता है वह ऐल्डिहाइड समूह है, जिसे फॉर्मिल समूह (formyl group) भी कहते हैं। कार्बनिक रसायन में ऐल्डिहाइडों की बहुलता है। कई सुगंधित रसायन ऐल्डिहाइड ही होते हैं। किसी एल्डिहाइड में कम से कम एक -CHO ग्रूप पाया जाता है। फार्मल्डिहाइड (1 कार्बन परमाणु), एसिटल्डिहाइड (2 कार्बन परमाणु), प्रोपेनल्डिहाइड (3 कार्बन परमाणु) प्रमुख एल्डिहाइड हैं। इनका सामान्य सूत्र (R-CHO) होता है। जहाँ R का मतलब एल्केन अथवा एरील श्रृंखला से है, तथा CHO एल्डिहाइड समूह की उपस्थिति को दर्शाता है। एल्डिहाइड समूह दो प्रकार से देखा जा सकता है। प्रथम एल्केन श्रृंखला के किसी एक छोर पर CHO ग्रुप जिसे एल्केनएल्डिहाइड (साधारण नाम) अथवा बेंजीन के किसी भी छोर (mainly on ortho position) जुड़े एल्डिहाइड ग्रुप को बेंज़लडीहाईड के नाम से पहचाना जा सकता है। .

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एल्कलॉएड

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एस पी एल सोरेनसेन

एस पी एल सोरेनसेन (9 जनवरी 1868 - 12 फरवरी 1 9 3 9) एक डेनिश रसायनज्ञ थे, वे अम्लता और क्षारीयता को मापने के एक पैमाने 'पीएच' की अवधारणा प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते है। उनका जन्म डेनमार्क के हैवरबर्गर में हुआ था। 1 9 01 से 1 9 38 तक वे प्रतिष्ठित कार्ल्सबर्ग प्रयोगशाला, कोपेनहेगन के प्रमुख थे। कार्ल्सबर्ग प्रयोगशाला में काम करते हुए उन्होंने प्रोटीन पर आयन एकाग्रता के प्रभाव का अध्ययन किया,और चूँकि हाइड्रोजन आयनों की एकाग्रता विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी, उन्होंने 1 9 0 9 में पीएच-स्केल को व्यक्त करने के एक सरल तरीके के रूप में पेश किया। जिस लेख में उन्होंने (नोटेशन पीएच का उपयोग करके) पैमाने को पेश किया, अम्लता को मापने के लिए दो नए तरीकों का वर्णन किया। पहली विधि इलेक्ट्रोड पर आधारित थी, जबकि दूसरा नमूने के रंगों और संकेतकों के पूर्व निर्धारित सेट की तुलना में शामिल था। 2 9 मई 2018 को उन्हें गूगल डूडल में पीएच स्केल बनाने के लिए सम्मानित किया गया। .

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एसिटल ग्लुटामेट अम्ल

एन एसिटाइल-एल-ग्लूटामेट की संरचना। एसिटल ग्लुटामेट अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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एसिटिक अम्ल

शुक्ताम्ल (एसिटिक अम्ल) CH3COOH जिसे एथेनोइक अम्ल के नाम से भी जाना जाता है, एक कार्बनिक अम्ल है जिसकी वजह से सिरका में खट्टा स्वाद और तीखी खुशबू आती है। यह इस मामले में एक कमज़ोर अम्ल है कि इसके जलीय विलयन में यह अम्ल केवल आंशिक रूप से विभाजित होता है। शुद्ध, जल रहित एसिटिक अम्ल (ठंडा एसिटिक अम्ल) एक रंगहीन तरल होता है, जो वातावरण (हाइग्रोस्कोपी) से जल सोख लेता है और 16.5 °C (62 °F) पर जमकर एक रंगहीन क्रिस्टलीय ठोस में बदल जाता है। शुद्ध अम्ल और उसका सघन विलयन खतरनाक संक्षारक होते हैं। एसिटिक अम्ल एक सरलतम कार्बोक्जिलिक अम्ल है। ये एक महत्वपूर्ण रासायनिक अभिकर्मक और औद्योगिक रसायन है, जिसे मुख्य रूप से शीतल पेय की बोतलों के लिए पोलिइथाइलीन टेरिफ्थेलेट; फोटोग्राफिक फिल्म के लिए सेलूलोज़ एसिटेट, लकड़ी के गोंद के लिए पोलिविनाइल एसिटेट और सिन्थेटिक फाइबर और कपड़े बनाने के काम में लिया जाता है। घरों में इसके तरल विलयन का उपयोग अक्सर एक डिस्केलिंग एजेंट के तौर पर किया जाता है। खाद्य उद्योग में एसिटिक अम्ल का उपयोग खाद्य संकलनी कोड E260 के तहत एक एसिडिटी नियामक और एक मसाले के तौर पर किया जाता है। एसिटिक अम्ल की वैश्विक मांग क़रीब 6.5 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Mt/a) है, जिसमें से क़रीब 1.5 Mt/a प्रतिवर्ष पुनर्प्रयोग या रिसाइक्लिंग द्वारा और शेष पेट्रोरसायन फीडस्टोक्स या जैविक स्रोतों से बनाया जाता है। स्वाभाविक किण्वन द्वारा उत्पादित जलमिश्रित एसिटिक अम्ल को सिरका कहा जाता है। .

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एस्कॉर्बिक अम्ल

एस्कॉर्बिक अम्ल एक एंटीऑक्सीडेन्ट गुणों वाला शुगर एसिड होता है। देखने में ये श्वेत से हल्के पीले रंग का जल-घुलनशील चूर्ण या क्रिस्टल होता है। एस्कॉर्बिक अम्ल के एक रूप को विटामिन सी के नाम से भी जाना जाता है। इसका अंग्रेज़ी नाम स्कर्वी नामक रोग के लैटिन भाषा के नाम स्कॉर्बिटस से निकला है। ये रोग विटामिन सी के अभाव में होता है व इस विटामिन के लेने से रोग होने की संभावना नहीं के कारण इसे विलोम रूप देने हेतु उपसर्ग रूप में अंग्रेज़ी का ए अक्षर लगा दिया जाता है, व एस्कॉर्बिक एम्ल बन जाता है। १९३७ में वॉल्टर हैवर्थ को एस्कॉर्बिक अम्ल की संरचना ज्ञात करने के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया था। इसकी खोज के समय १९२० के आरंभिक दशक में इसे हैक्ज़्युरोनिक एसिड कहा गया था। .

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ऐमीन

ऐमीन को अमोनिया के एक, दो अथवा तीनों हाइड्रोजन परमाणुओं को ऐल्किल और/अथवा ऐरिल समूहों द्वारा विस्थापित कर प्राप्त हुए व्युत्पन्न के रूप में माना जा सकता है। .

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ऐजो यौगिक

एजो यौगिकों का सामान्य सूत्र ऐज़ो यौगिक (Azo compounds) ऐसे कार्बनिक यौगिक को कहते हैं जिसमें R-N.

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ऐंथ्रासाइट

ऐंथ्रासाइट कोयला ऐंथ्रासाइट (Anthracite) कोयले की सबसे अच्छी किस्म का नाम है। इसका रंग काला होता है, पर हाथ में लेने पर उसे काला नहीं करता। इसकी चमक अधात्विक होती है। टूटने पर इसके नवीन पृष्ठों में से एक अवतल और दूसरा उत्तल दिखाई पड़ता है; इसे ही शंखाभ (कनकॉयडल) टूट कहते हैं। इसमें बहुधा विभंग समतल विद्यमान रहते हैं। इसकी कठोरता ०.५ से २.५ तक तथा आपेक्षिक घनत्व १.३६ से १.८४ तक होता है। .

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डाइमिथाइलएसिटामाइड

डाइमिथाइलएसिटामाइड एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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ड्यूटीरियम

ड्यूटीरियम अथवा ड्यूटेरियम हाइड्रोजन का एक स्थिर समस्थानिक है। इसकी प्राकृतिक उपलब्धता पृथ्वी के सागरओं में हाइड्रोजन के लगभग एक परमाणु प्रति (~) है। .

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डॅल्टा महाश्वान तारा

डॅल्टा महाश्वान तारा डॅल्टा महाश्वान, जिसका बायर नाम "डॅल्टा कैनिस मेजोरिस" (δ Canis Majoris या δ CMa) है, महाश्वान तारामंडल में स्थित एक तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले सभी तारों से ३७वाँ सब से रोशन तारा माना जाता है। यह हमसे १,८०० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १.८३ है। .

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डीडीटी

डीडीटी (Dichloro-Diphenyl-Trichloroethane) पहला आधुनिक कीटनाशक था जो मलेरिया के विरूद्ध प्रयोग किया गया था, किंतु बाद में यानि 1950 के बाद इसे कृषि कीटनाशी रूप में प्रयोग करने लगे थे। खेतों में इसके भारी प्रयोग से अनेक क्षेत्रों में मच्छर इसके प्रति प्रतिरोधी हो गए। इसका मुख्य उपयोग मच्छरों, खटमलों,आदि को नियंत्रित करने में किया जाता है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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तत्वों की सूची (नाम अनुसार)

नीचे प्रत्येक तत्व के सबसे स्थिर समस्थानिक का तत्व प्रतीक, परमाणु क्रमांक और परमाणु भार का विवरण दिया गया है। साथ ही उनका समूह और आवर्त सारणी मे उनकी स्थिति भी प्रदर्शित है। |-style.

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तारों का विकास

तारों का बेध करते समय हमें बहुत-सी नीहारिकाएँ उपलब्ध होती हैं, जिनके विश्लेषण से हमें पता चला है कि उनमें से बहुत-सी गैस या धूल के मेघ हैं। तारों के वर्णक्रम की रखाओं में भी सामान्य वर्णक्रम से कुछ भिन्ऩताएँ होती हैं, जिसका कारण तारामध्यवर्ती गैस या धूल समझा गया है। यह तारामध्यवर्ती गैस या धूल ही हमारी तारा प्रणालियों को जन्म देने वाली है। जब तक विश्व में ये पदार्थ विद्यमान रहेंगे, नए तारों तथा ताराप्रणालियों का जन्म होता रहेगा। इनका मूल तत्व प्राय: हाइड्रोजन है। इन मेघों का व्यास 10 पारसेक या उससे कम होता है। विश्व में गैस या धूल की कुल द्रव्य मात्रा अनुमानत: सूर्य की द्रव्य मात्रा की 20 अरब गुनी है। .

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थर्मल प्रदूषण

पोत्रेरो जेनेरेटिंग स्टेशन सेन फ्रांसिस्को खाड़ी में गर्म पानी निस्सरण करते हुए. सेलना, रॉबर्ट (2009). "पावर प्लांट का मछली मारने से रोकने की कोई योजना नहीं है।" सेन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल, 2 जनवरी 2009. थर्मल प्रदूषण किसी भी प्रकार के प्रदूषण की प्रक्रिया को कहा जायेगा जिससे व्यापक रूप में पानी के प्राकृतिक तापमान में बदलाव होता हो। थर्मल प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण बिजली संयंत्रों तथा औद्योगिक विनिर्माताओं द्वारा शीतलक पानी का प्रयोग करने से होता है। जब शीतलक हेतु प्रयोग किया गया पानी पुनः प्राकृतिक पर्यावरण में आता है तो उसका तापमान अधिक होता है, तापमान में बदलाव के कारण (क.) ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है (ख.) पारिस्थिथिकी तंत्र पर भी प्रभाव पड़ता है। नगरीय जल बहाव-- सड़कों और गाड़ियों को रखने के स्थानों से बहे पानी, ये सभी तापमान के बढ़ने के कारण हो सकते हैं। जब एक बिजली संयंत्र मरम्मत अथवा अन्य कारणों से खुलता और बंद होता है, तो इसकी वजह से मछलियां और अन्य तरह के जीवाणु जो की एक विशेष प्रकार के तापमान के आदि होते हैं, अचानक तापमान में हुई बढ़ोतरी से मर जाते हैं, इसे 'थर्मल झटका' कहा जाता है। थर्मल प्रदूषण का एक और कारण जलाशय तालाब/टंकी द्वारा बहुत ही ज्यादा ठन्डे पानी को उष्ण नदियों में बहाने से होता है। .

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थाइरेट्रॉन

थाइरेट्रॉन (thyratron) एक विशेष प्रकार की गैसयुक्त एलेक्ट्रॉन नलिका है जो उच्च शक्ति की नियंत्रित स्विच की तरह उपयोग की जाती है। इस प्रकार इसके उपयोग से नियंत्रित दिष्टकारी (कंट्रोल्ड रेक्टिफायर) बनाया जाता है। यद्यपि ट्रायोड, टेट्रोड एवं पेंटोड डिजाइन वाले थाइरेट्रॉन पहले बनाये जा चुके हैं किन्तु ट्रायोड वाली संरचना सबसे अधिक प्रचलित है। चूँकि इनमें गैस (हाइड्रोजन) भरी होती है, ये अपने समकक्ष के निर्वात ट्यूबों की तुलना में बहुत अधिक विद्युत धारा ले सकते हैं क्योंकि धनात्मक आयन भी अच्छी-खासी धारा का निर्माण करते हैं। थाइरेट्रॉनों में हाइड्रोजन, पारे की वाष्प, जेनॉन, नियॉन आदि भरी जाती हैं। थाइरेट्रॉन विशेषत: स्विच की तरह प्रयुक्त होता है। इसके द्वार संकेतों को रैखिक रूप में आवर्धित करना कठिन है जोकि ट्रायोड आदि निर्वात-नलिकाओं के द्वरा किया जाता है। ठोस-अवस्था की युक्तियों में सिलिकॉन नियंत्रित दिष्टकारी ((एससीआर) है जो थाइरेट्रॉन के समतुल्य है किन्तु यह थाइरेट्रॉन जितना तेज आन-आफ नहीं किया जा सकता। .

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दहन ऊष्मा

किसी तत्त्व या यौगिक की १ ग्राम-अणु मात्रा को ऑक्सीजन में स्थिर आयतन पर पूर्णतया जलाने से जितनी उष्मा निकलती है, उसे उस तत्व या यौगिक की दहन-उष्मा (Heat of combustion) कहते हैं। दहन ऊष्मा का मान निम्नलिखित इकाइयों में व्यक्त किया जा सकता है-.

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दाब रसायन

दाब रसायन में उस दबाव के प्रभाव का अध्ययन है जिसके कारण पदार्थ की भौतिक तथा रासायनिक दोनों अवस्थाओं में तथा औद्योगिक रसायन के प्रक्रमों में परिवर्तन होते हैं। रासायनिक परिवर्तन में उच्च दाब के उपयोग ने रसायन विज्ञान को अधिक विस्तृत बना दिया है। .

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धातु हाइड्रोजन

बृहस्पति जैसे कुछ गैस दानव ग्रहों के केन्द्रों में धातु हाइड्रोजन है धातु हाइड्रोजन (metallic hydrogen) हाइड्रोजन की ऐसी अवस्था को कहते हैं जब वह भयंकर दबाव में कुचली जाकर अवस्था परिवर्तन (phase transition) करके विकृत हो जाए।, Gabor Kalman, J. Martin Rommel, Krastan Blagoev, Kastan Blagoev, Springer, 1998, ISBN 978-0-306-46031-9,...

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नाभिकीय ऊर्जा

इकाटा परमाणु ऊर्जा संयंत्र, एक दबावयुक्त जल रिएक्टर जो समुद्र के साथ माध्यमिक शीतलक विनिमय द्वारा ठंडा करता है। सुसक्युहाना वाष्प विद्युत् केंद्र, एक उबलता जल रिएक्टर. रिएक्टर, शीतलक टावरों के सामने की ओर आयताकार रोकथाम इमारतों के अंदर स्थित हैं। परमाणु ऊर्जा चालित तीन जहाज, (ऊपर से नीचे) परमाणु क्रूजर USS बेनब्रिज और USS लोंग ब्रिज, USS इंटरप्राइज़ के साथ जो 1964 में पहला परमाणु संचालित विमान वाहक. चालक दल के सदस्य, उड़ान डेक पर आइंस्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा तुल्यता सूत्र को लिख रहे हैं E.

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नाभिकीय संलयन

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नाभिकीय उर्जा

एक दाबित जल परमाणु रिएक्टर नियंत्रित नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप प्राप्त उर्जा नाभिकीय उर्जा या परमाणु उर्जा कहलाती है। दो प्रकार की नाभिकीय अभिक्रियाओं से नाभिकीय उर्जा प्राप्त हो सकती है - नाभिकीय संलयन एवं नाभिकीय विखंडन। किन्तु वर्तमान समय में सभी वाणिज्यिक परमाणु-उर्जा इकाइयाँ नाभिकीय विखंडन पर ही आधारित हैं। सन् २००९ में विश्व की संपूर्ण विद्युत शक्ति का १३-१४% भाग नाभिकीय उर्जा से प्राप्त हुआ। .

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नाइट्रो यौगिक

नाइत्रो समूह की संरचना हाइड्रोकार्बनों का एक, या एक से अधिक, हाइड्रोजन जब नाइट्रो (- NO2) समूह या समूहों से विस्थापित होता है तब ऐसे यौगिकों को नाइट्रो यौगिक (नाइट्रो कम्पाउण्ड) कहते हैं। नाइट्रो यौगिकों में नाइट्रोजन परमाणु, कार्बन परमाणु से सीधे संबद्ध रहता है। एक दूसरे प्रकार के यौगिक नाइट्रस अम्ल एस्टर होते हैं। इनमें भी नाइट्रो समूह रहते हैं पर इनमें नाट्रोजन परमाणु, ऑक्सीजन परमाणु द्वारा कार्बन परमाणु से संबद्ध रहता है। रसायनज्ञों ने नाइट्रो यौगिक बौर दूसरे को ऐरोमैटिक नाइट्रो यौगिक कहते हैं। सर्वप्रथम नाइट्रो पैराफिन विक्टरमेयर और ओटो स्टुबर द्वारा १८७२ ई. में तैयार हुआ था। हाइड्रोकार्बन आयोडाइड पर सिल्वर नाइट्राइट की क्रिया से नाइट्रोपैराफिन प्राप्त होते हैं। सीधे नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से नाइट्रो पैराफिन साधारणतया नहीं बनते। १९४० ई. में उच्च ताप ३०० डिग्री - ५०० डिग्री सेल्सियस पर नाइट्रिक अम्ल और हाइड्रोकार्बनों के वाष्पों की क्रिया से कुछ नाइट्रोपैराफिन प्राप्त हुए थे। नाइट्रोपैराफिन के निम्नतर सदस्य वर्णहीन द्रव होते हैं। इनमें मंद गंध होती है। ये विषाक्त और जल में अल्पविलेय होते हैं। विलायक के रूप में इनका व्यवहार व्यापक रूप से होता है। अपचयन से नाइट्रो समूह, ऐमिनो समूह में परिणत हो जाता है। क्लोरीन से यह क्लोरोनाइट्रो यौगिक बनाता है। ऐसा एक यौगिक, क्लोरोपिक्रिन, कृमिनाशक के रूप में व्यवहृत होता है। बेंजीन वलयवाले ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बनों को नाइट्रिक अम्ल से उपचारित करने से ऐरोमेटिक नाइट्रोयौगिक प्राप्त होता है। सर्वप्रथम मिटशरले ने १८३४ ई. में नाइट्रोबेंजीन प्राप्त किया था। सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में नाइट्रेटीकरण शीघ्रता से होता है और नाइट्रो यौगिकों की उपलब्धि अच्छी होती है। यह क्रिया ढलवे लोहे के बड़े-बड़े पात्रों में संपन्न होती है और बहुत बड़ी मात्रा में नाइट्रोबेंज़ीन, नाइट्रोटॉलूईन, नाइट्रोनैपथलीन इत्यादि, नाइट्रो यौगिक इस प्रकार तैयार होते हैं। इनका उपयोग अनेक रंजकों, विस्फोटकों, ओषधियों और सुगंधित द्रव्यों के निर्माण में होता है। विलायक के रूप में भी इनका उपयोग व्यापक रूप से होता है। फोटो और रबर रसायनक भी इनसे बनते हैं। नाइट्रो यौगिकों के अपचयन से अनेक यौगिक बनते हैं, जिनमें ऐमिनो यौगिक बहुत महत्व के हैं। ऐनिलीन ऐसा ही ऐमिनो यौगिक है, जिससे अनेक ऐनिलीन रंजक तैयार हुए हैं। श्रेणी:नाइट्रो यौगिक.

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नाइट्रोजन

नाइट्रोजन (Nitrogen), भूयाति या नत्रजन एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक N है। इसका परमाणु क्रमांक 7 है। सामान्य ताप और दाब पर यह गैस है तथा पृथ्वी के वायुमण्डल का लगभग 78% नाइट्रोजन ही है। यह सर्वाधिक मात्रा में तत्व के रूप में उपलब्ब्ध पदार्थ भी है। यह एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन और प्रायः अक्रिय गैस है। इसकी खोज 1772 में स्कॉटलैण्ड के वैज्ञनिक डेनियल रदरफोर्ड ने की थी। आवर्त सारणी के १५ वें समूह का प्रथम तत्व है। नाइट्रोजन का रसायन अत्यंत मनोरंजक विषय है, क्योंकि समस्त जैव पदार्थों में इस तत्व का आवश्यक स्थान है। इसके दो स्थायी समस्थानिक, द्रव्यमान संख्या 14, 15 ज्ञात हैं तथा तीन अस्थायी समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 13, 16, 17) भी बनाए गए हैं। नाइट्रोजन तत्व की पहचान सर्वप्रथम 1772 ई. में रदरफोर्ड और शेले ने स्वतंत्र रूप से की। शेले ने उसी वर्ष यह स्थापित किया कि वायु में मुख्यत: दो गैसें उपस्थित हैं, जिसमें एक सक्रिय तथा दूसरी निष्क्रिय है। तभी प्रसिद्ध फ्रांसीसी वैज्ञानिक लाव्वाज़्ये ने नाइट्रोजन गैस को ऑक्सीजन (सक्रिय अंश) से अलग कर इसका नाम 'ऐजोट' रखा। 1790 में शाप्टाल (Chaptal) ने इसे नाइट्रोजन नाम दिया। .

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नाइयासिन

नाइयासिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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निम्नतापिकी

तुषारजनिकी में प्रयोग होने वाली तरल नाइट्रोजन गैस निम्नतापिकी, तुषारजनिकी या प्राशीतनी (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक्स) भौतिकी की वह शाखा है, जिसमें अत्यधिक निम्न ताप उत्पन्न करने व उसके अनुप्रयोगों के अध्ययन किया जाता है। क्रायोजेनिक का उद्गम यूनानी शब्द क्रायोस से बना है जिसका अर्थ होता है शीत यानी बर्फ की तरह शीतल। इस शाखा में (-१५०°से., −२३८ °फै. या १२३ कै.) तापमान पर काम किया जाता है। इस निम्न तापमान का उपयोग करने वाली प्रक्रियाओं और उपायों का क्रायोजेनिक अभियांत्रिकी के अंतर्गत अध्ययन करते हैं। यहां देखा जाता है कि कम तापमान पर धातुओं और गैसों में किस प्रकार के परिवर्तन आते हैं।|हिन्दुस्तान लाइव। ६ जून २०१० कई धातुएं कम तापमान पर पहले से अधिक ठोस हो जाती हैं। सरल शब्दों में यह शीतल तापमान पर धातुओं के आश्चर्यजनक व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान होता है। इसकी एक शाखा में इलेक्ट्रॉनिक तत्वों पर प्रशीतन के प्रभाव का अध्ययन और अन्य में मनुष्यों और पौधों पर प्रशीतन के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। कुछ वैज्ञानिक तुषारजनिकी को पूरी तरह कम तापमान तैयार करने की विधि से जोड़कर देखते हैं जबकि कुछ कम तापमान पर धातुओं में आने वाले परिवर्तन के अध्ययन के रूप में। एक तुषारजनिक वॉल्व क्रायोजेनिक्स में अध्ययन किए जाने वाले तापमान का परास काफी अधिक होता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें -१८०° फारेनहाइट (-१२३° सेल्सियस) से नीचे के तापमान पर ही अध्ययन किया जाता है। यह तापमान जल के प्रशीतन बिन्दु (०° से.) से काफी नीचे होता है और जब धातुओं को इस तापमान तक लाया जाता है तो उन पर आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाई देते हैं। इतना कम तापमान तैयार करने के कुछ तरीके होते हैं, जैसे विशेष प्रकार के प्रशीतक या नाइट्रोजन जैसी तरल गैस, जो अनुकूल दाब की स्थिति में तापमान को नियंत्रित कर सकती है। धातुओं को तुषारजनिकी द्वारा ठंडे किए जाने पर उनके अणुओं की क्षमता बढ़ती है। इससे वह धातु पहले से ठोस और मजबूत हो जाते हैं। इस विधि से कई तरह की औषधियाँ तैयार की जाती हैं और विभिन्न धातुओं को संरक्षित भी किया जाता है। रॉकेट और अंतरिक्ष यान में क्रायोजेनिक ईंधन का प्रयोग भी होता है। तुषारजनिकी का प्रयोग जी एस एल वी रॉकेट में भी किया जाता है। जी.एस.एल.वी.

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निम्नतापी रॉकेट इंजन

150px भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान में प्रयुक्त होने वाली द्रव ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन निम्नतापी रॉकेट इंजन या तुषारजनिक रॉकेट इंजन (अंग्रेज़ी:क्रायोजेनिक रॉकेट इंजिन) कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस इंजन में हाइड्रोजन और ईंधन क्रमश: ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट देते हैं। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र बढ़े कदम पा लेंगे मंजिल। हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१० क्रायोजेनिक इंजन के थ्रस्ट में तापमान बहुत ऊंचा (२००० डिग्री सेल्सियस से अधिक) होता है। अत: ऐसे में सर्वाधिक प्राथमिक कार्य अत्यंत विपरीत तापमानों पर इंजन व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता अर्जित करना होता है। क्रायोजेनिक इंजनों में -२५३ डिग्री सेल्सियस से लेकर २००० डिग्री सेल्सियस तक का उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए थ्रस्ट चैंबरों, टर्बाइनों और ईंधन के सिलेंडरों के लिए कुछ विशेष प्रकार की मिश्र-धातु की आवश्यकता होती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुत कम तापमान को आसानी से झेल सकने वाली मिश्रधातु विकसित कर ली है। .

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निम्नतापी ईंधन

निम्नतापी ईंधन या क्रायोजेनिक इंधन (Cryogenic fuels) उन ईंधनों को कहते हैं जिनको अत्यन्त कम ताप पर भण्डारित करना पड़ता है ताकि वे द्रव अवस्था में बने रहें। ये ईंधन उन यानों एवं मशीनों में प्रयुक्त होते हैं जो अन्तरिक्ष में जाते हैं (जैसे रॉकेट शिप, उपग्रह आदि)। सामान्य ईंधन अन्तरिक्ष में प्रयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि वहाँ साधारण ईंधन के जलने लिये आवश्यक वातावरण (environment) नहीं होता (आक्सीजन की अनुपस्थिति)। निम्नतापी ईंधन प्रायः द्रवीकृत गैसें होतीं हैं, जैसे द्रव हाइड्रोजन। .

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निहारिका

चील नॅब्युला का वह भाग जिसे "सृजन के स्तम्भ" कहा जाता है क्योंकि यहाँ बहुत से तारे जन्म ले रहे हैं। त्रिकोणीय उत्सर्जन गैरेन नीहारिका (द ट्रेंगुलम एमीशन गैरन नॅब्युला) ''NGC 604'' नासा द्वारा जारी क्रैब नॅब्युला (कर्कट नीहारिका) वीडियो निहारिका या नॅब्युला अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतरतारकीय बादल को कहते हैं जिसमें धूल, हाइड्रोजन गैस, हीलियम गैस और अन्य आयनीकृत (आयोनाइज़्ड) प्लाज़्मा गैसे उपस्थित हों। पुराने जमाने में "निहारिका" खगोल में दिखने वाली किसी भी विस्तृत वस्तु को कहते थे। आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) से परे कि किसी भी गैलेक्सी को नीहारिका ही कहा जाता था। बाद में जब एडविन हबल के अनुसन्धान से यह ज्ञात हुआ कि यह गैलेक्सियाँ हैं, तो नाम बदल दिए गए। उदाहरण के लिए एंड्रोमेडा गैलेक्सी (देवयानी मन्दाकिनी) को पहले एण्ड्रोमेडा नॅब्युला के नाम से जाना जाता था। नीहारिकाओं में अक्सर तारे और ग्रहीय मण्डल जन्म लेते हैं, जैसे कि चील नीहारिका में देखा गया है। यह नीहारिका नासा द्वारा खींचे गए "पिलर्स ऑफ़ क्रियेशन" अर्थात् "सृष्टि के स्तम्भ" नामक अति-प्रसिद्ध चित्र में दर्शाई गई है। इन क्षेत्रों में गैस, धूल और अन्य सामग्री की संरचनाएं परस्पर "एक साथ जुड़कर" बड़े ढेरों की रचना करती हैं, जो अन्य पदार्थों को आकर्षित करता है एवं क्रमशः सितारों का गठन करने योग्य पर्याप्त बड़ा आकार ले लेता हैं। माना जाता है कि शेष सामग्री ग्रहों एवं ग्रह प्रणाली की अन्य वस्तुओं का गठन करती है। .

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नौवां ग्रह

नौवां ग्रह (Planet Nine) एक सम्भावित ग्रह है जो शायद हमारे सौर मंडल के बाहरी भाग में काइपर घेरे से भी आगे स्थित हो। कई खगोलशास्त्रियों ने कुछ वरुण-पार वस्तुओं की विचित्र कक्षाओं (अरबिटों) का अध्ययन कर के यह प्रस्ताव दिया है कि इन कक्षाओं के पीछे सूरज से सुदूर क्षेत्र में परिक्रमा करते हुए एक बड़े आकार के ग्रह का गुरुत्वाकर्षक प्रभाव ही हो सकता है। उनका कहना है कि यह एक महापृथ्वी श्रेणी का ग्रह होगा और इसका द्रव्यमान (मास) हमारी पृथ्वी से लगभग १० गुना अधिक हो सकता है। इसके पास हाइड्रोजन और हीलियम का बना एक घना वायुमंडल हो सकता है और सम्भव है कि यह इतना दूर हो कि इसे सूरज की एक परिक्रमा करने के लिये १५,००० से २०,००० वर्ष लग जाएँ। .

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नोवा

अपने साथी से हाइड्रोजन खींचता हुआ एक सफ़ेद बौना तारा - यही हाइड्रोजन आगे चलकर एक नोवा विस्फोट करेगा (काल्पनिक चित्रण) सन् २००९ में स्रोतास्विनी तारामंडल में देखा गया ऍरिडानी नोवा नोवा या नवतारा किसी सफ़ेद बौने तारे की सतह पर हाइड्रोजन एकत्रित होने के बाद उसमें एक भयंकर परमाणु विस्फोट को कहते हैं जिसमें अनियंत्रित रफ़्तार से नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूज़न) होता है। हांलांकि इसका नाम महानोवा से मिलता-जुलता है, इन दोनों में कोई सम्बन्ध नहीं। .

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पदार्थ की मात्रा

किसी नमूने या प्रणाली के पदार्थ की मात्रा, n, एक भौतिक मात्रा है, जो कि उसमें स्थित मौलिक अस्तित्व कणों की संख्य के अनुपात में है। "मौलिक अस्तित्व कण" अणु, परमाणु, आयन, इलेक्ट्रान या कोई और कण भी हो सकते हैं, जिसका चुनाव सन्दर्भ आधारित है और नियत होना चाहिये.

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परमदानव तारा

परमदानव तारे वी॰वाए॰ कैनिस मेजौरिस का अर्धव्यास (रेडियस) क़रीब २००० \beginsmallmatrixR_\odot\endsmallmatrix है, यानि सूरज का दो हज़ार गुना - यह सब से बड़ा ज्ञात तारा है तारों की श्रेणियाँ दिखने वाला हर्ट्ज़स्प्रुंग-रसल चित्र परमदानव तारा एक अत्याधिक द्रव्यमान (मास) और चमक वाला तारा होता है जिस से लगातार गैस, प्लाज़्मा और अन्य द्रव्य बड़ी मात्राओं में अंतरिक्ष में उछलते रहते हैं। यर्कीज़ वर्णक्रम श्रेणीकरण में इसकी चमक की श्रेणी "0" है (यानि सारे तारों में सब से अधिक)। .

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परमाणु

एक परमाणु किसी भी साधारण से पदार्थ की सबसे छोटी घटक इकाई है जिसमे एक रासायनिक तत्व के गुण होते हैं। हर ठोस, तरल, गैस, और प्लाज्मा तटस्थ या आयनन परमाणुओं से बना है। परमाणुओं बहुत छोटे हैं; विशिष्ट आकार लगभग 100 pm (एक मीटर का एक दस अरबवें) हैं। हालांकि, परमाणुओं में अच्छी तरह परिभाषित सीमा नहीं होते है, और उनके आकार को परिभाषित करने के लिए अलग अलग तरीके होते हैं जोकि अलग लेकिन काफी करीब मूल्य देते हैं। परमाणुओं इतने छोटे है कि शास्त्रीय भौतिकी इसका काफ़ी गलत परिणाम देते हैं। हर परमाणु नाभिक से बना है और नाभिक एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन्स से सीमित है। नाभिक आम तौर पर एक या एक से अधिक न्यूट्रॉन और प्रोटॉन की एक समान संख्या से बना है। प्रोटान और न्यूट्रान न्यूक्लिऑन कहलाता है। परमाणु के द्रव्यमान का 99.94% से अधिक भाग नाभिक में होता है। प्रोटॉन पर सकारात्मक विद्युत आवेश होता है, इलेक्ट्रॉन्स पर नकारात्मक विद्युत आवेश होता है और न्यूट्रान पर कोई भी विद्युत आवेश नहीं होता है। एक परमाणु के इलेक्ट्रॉन्स इस विद्युत चुम्बकीय बल द्वारा एक परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन की ओर आकर्षित होता है। नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन एक अलग बल, यानि परमाणु बल के द्वारा एक दूसरे को आकर्षित करते है, जोकि विद्युत चुम्बकीय बल जिसमे सकारात्मक आवेशित प्रोटॉन एक दूसरे से पीछे हट रहे हैं, की तुलना में आम तौर पर शक्तिशाली है। परमाणु के केन्द्र में नाभिक (न्यूक्लिअस) होता है जिसका घनत्व बहुत अधिक होता है। नाभिक के चारो ओर ऋणात्मक आवेश वाले एलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं जिसको एलेक्ट्रान घन (एलेक्ट्रान क्लाउड) कहते हैं। नाभिक, धनात्मक आवेश वाले प्रोटानों एवं अनावेशित (न्यूट्रल) न्यूट्रानों से बना होता है। जब किसी परमाणु में एलेक्ट्रानों की संख्या उसके नाभिक में स्थित प्रोटानों की संख्या के समान होती है तब परमाणु वैद्युकीय दृष्टि से अनावेशित होता है; अन्यथा परमाणु धनावेशित या ऋणावेशित ऑयन के रूप में होता है। आधुनिक रसायनशास्त्र में शताधिक मूल भूत माने गए हैं, जिनमें से कुछ तो धातुएँ हैं जैसे ताँबा, सोना, लोहा, सीसा, चाँदी, राँगा, जस्ता; कुछ और खनिज हैं, जैसे, गंधक, फासफरस, पोटासियम, अंजन, पारा, हड़ताल, तथा कुछ गैस हैं, जैसे, आक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन आदि। इन्हीं मूल भूतों के अनुसार परमाणु आधुनिक रसायन में माने जाते हैं। पहले समझा जाता था कि ये अविभाज्य हैं। अब इनके भी टुकड़े कर दिए गए हैं। नाभिक में प्रोटॉन की संख्या किसी रासायनिक तत्व को परिभाषित करता है: जैसे सभी तांबा के परमाणु में 29 प्रोटॉन होते हैं। न्यूट्रॉन की संख्या तत्व के समस्थानिक को परिभाषित करता है। इलेक्ट्रॉनों की संख्या एक परमाणु के चुंबकीय गुण को प्रभावित करता है। परमाणु अणु के रूप में रासायनिक यौगिक बनाने के लिए रासायनिक आबंध द्वारा एक या अधिक अन्य परमाणुओं को संलग्न कर सकते हैं। परमाणु की संघटित और असंघटित करने की क्षमता प्रकृति में हुए बहुत से भौतिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है, और रसायन शास्त्र के अनुशासन का विषय है। .

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परमाणु कक्षक

पहले पांच परमाणु कक्षाओं का आकार क्वांटम यांत्रिकी में, एक परमाणु कक्षीय एक गणितीय समारोह में कहा कि या तो एक इलेक्ट्रॉन या एक परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की एक जोड़ी की लहर की तरह व्यवहार का वर्णन करता है। इस समारोह में एक परमाणु के किसी भी इलेक्ट्रॉन पाने की संभावना की गणना करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता परमाणु के नाभिक के चारों ओर किसी भी विशिष्ट क्षेत्र में। अवधि, परमाणु कक्षीय, यह भी शारीरिक क्षेत्र या स्थान जहां इलेक्ट्रॉन, के रूप में कक्षीय की विशेष गणितीय रूप से परिभाषित उपस्थित होने के लिए गणना की जा सकती करने के लिए उल्लेख कर सकते हैं। एक परमाणु में प्रत्येक कक्षीय तीन क्वांटम संख्या n, ℓ, और मीटर के मूल्यों, जो क्रमशः इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, कोणीय गति, और एक कोणीय गति वेक्टर घटक (चुंबकीय क्वांटम संख्या) के अनुरूप की एक अद्वितीय सेट की विशेषता है। इस तरह प्रत्येक कक्षीय दो इलेक्ट्रॉनों के साथ अपने स्वयं के स्पिन क्वांटम संख्या प्रत्येक की एक अधिकतम द्वारा कब्जा किया जा सकता है। परमाणु कक्षाओं परमाणु कक्षीय मॉडल (वैकल्पिक रूप से बादल इलेक्ट्रॉन या लहर यांत्रिकी मॉडल के रूप में जाना जाता है), इस मामले में इलेक्ट्रॉनों की उपसूक्ष्म व्यवहार विसशवलयिसिग के लिए एक आधुनिक ढांचे की बुनियादी इमारत ब्लॉकों हैं। इस मॉडल में एक बहु इलेक्ट्रॉन परमाणु के इलेक्ट्रॉन बादल (सन्निकटन में) का निर्माण किया जा रहा है एक इलेक्ट्रॉन विन्यास सरल हाइड्रोजन की तरह परमाणु कक्षाओं का एक उत्पाद है कि के रूप में देखा जा सकता है .

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परमाणु क्रमांक

रसायन विज्ञान एवं भौतिकी में सभी तत्वों का अलग-अलग परमाणु क्रमांक (atomic number) है जो एक तत्व को दूसरे तत्व से अलग करता है। किसी तत्व का परमाणु क्रमांक उसके तत्व के नाभिक में स्थित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होता है। इसे Z प्रतीक से प्रदर्शित किया जाता है। किसी आवेशरहित परमाणु पर एलेक्ट्रॉनों की संख्या भी परमाणु क्रमांक के बराबर होती है। रासायनिक तत्वों को उनके बढते हुए परमाणु क्रमांक के क्रम में विशेष रीति से सजाने से आवर्त सारणी का निर्माण होता है जिससे अनेक रासायनिक एवं भौतिक गुण स्वयं स्पष्ट हो जाते हैं।, American Institute of Physics .

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पादपरसायन

पादपरसायन के कारण ब्लूबेरी में गहरा रंग पादपरसायन या फाइटोकैमिकल बीटा कैरोटीन जैसे वो कार्बनिक यौगिक होते हैं, जो वनस्पतियों में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध होते हैं। ये रसायन स्वास्थ्य के लिये लाभकारक हो सकते हैं, किन्तु अभी तक पोषण के लिये आवश्यक सिद्ध नहीं हुए हैं। हालांकि इन रसायनों से परिपूर्ण फलों व सब्जियों से मिश्रित आहार का परामर्श देने हेतु पर्याप्त वैज्ञानिक एवं सरकारी समर्थन मिला हुआ है, किन्तु फिर भी कुछ विशेष पादपरसायनों के द्वारा मिलने वाले लाभों के बारे में मात्र कुछ ही सीमित प्रमाण उपलब्ध हैं। फलों और सब्जियों में रोगों से लड़ने वाले एंटीआक्सीडेंट्स और पादपरसायन पाये जाते हैं। फाइटोकैमिकल्स, हृदय रोग, कैंसर मधुमेह जैसे रोगों से लड़ने में मदद करते हैं। .

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पारगम्यता

निर्वात की पारगम्यता (लाल) की तुलना में लौहचुम्बकीय (भूरा), अनुचुम्बकीय (नीला) एवं प्रतिचुम्बकीय (हरा) पदार्थों की पारगम्यता का सरलीकृत चित्रण लौहचुम्बकीय पदार्थों की पारगम्यता उनमें उपस्थित फ्लक्स घनत्व का फलन होती है। विद्युतचुम्बकत्व के सन्दर्भ में पारगम्यता (permeability) किसी पदार्थ का वह गुण है जो उस पदार्थ में चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित किये जाने में उस पदार्थ द्वारा प्रदर्शित 'सहायता' की मात्रा की माप बताता है। इसे ग्रीक वर्ण μ (म्यू) से प्रदर्शित किया जाता है.। .

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पवन

पवन की दिशा बताने वाला यन्त्र पवनवेगदर्शी गतिशील वायु को पवन (Wind) कहते हैं। यह गति पृथ्वी की सतह के लगभग समांतर रहती है। पृथ्वी से कुछ मीटर ऊपर तक के पवन को सतही पवन और २०० मीटर या अधिक ऊँचाई के पवन को उपरितन पवन कहते हैं। जब किसी स्थान और ऊँचाई के पवन का निर्देश करना हो तब वहाँ के पवन की चाल और उसकी दिशा दोनों का उल्लेख होना चाहिए। पवन की दिशा का उल्लेख करने में जिस दिशा से पवन बह रहा है उसका उल्लेख दिक्सूचक के निम्नलिखित १६ संकेतों से करते हैं: अधिक यथार्थता (precision) से पवन की दिशा बताने के लिए यह दिशा अंशों में व्यक्त की जाती है। जब पवन दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में परिवर्तित होता है (जैसे उ से उ पू और पू), तब ऐसे परिवर्तन को पवन का दक्षिणावर्तन और वामावर्त दिश में परिवर्तन (जैसे उ से उप और प) का विपरीत पवन कहते हैं। वेधशाला में पवनदिक्सूचक नामक उपकरण हवा की दिशा बताता है। इसका नुकीला सिरा हमेशा उधर रहता है जिधर से हवा आ रही होती है। पवन का वेग मील प्रति घंटे, या मीटर प्रति सेकंड, में व्यक्त किया जाता है। सतह के पवन को मापने के लिए प्राय: प्याले के आकार का पवनमापी काम में आता है। पवनवेग का लगातार अभिलेख करने के लिए अनेक उपकरण काम में आते हैं, जिनमें दाबनली एवं पवनलेखक (Anemograph) महत्वपूर्ण एवं प्रचलित है। भिन्न भिन्न ऊँचाई के उपरितन पवन का निर्धारण करने के लिए हाइड्रोजन से भरा गुब्बारा उड़ाया जाता है और ऊपर उठते हुए तथा पवनहित बैलून की ऊँचाई और दिगंश (azimuth) ज्ञात करने के लिए इसका निरीक्षण सामान्य थियोडोलाइट (theodolite) या रेडियो थियोडोलाइट से करते हैं। तब बैलून की उड़ान का प्रक्षेपपथ (trajectory) तैयार किया जाता है और प्राय: बैलून के ऊपर उठने के वेग की दर की कल्पना करके, प्रक्षेपपथ के विभिन्न बिंदुओं से बैलून की संगत ऊँचाई की गणना की जाती है। प्रक्षेपपथ से, इच्छित ऊँचाई पर, पवन की चाल और दिशा ज्ञात की जाती है। .

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पुखराज

पुखराज एक बहुमूल्य रत्न होता है। बृहस्पति ग्रह से संबंधित रत्न, पुखराज को संस्कृत में पुष्पराग, हिन्दी में पुखराज कहा जाता है। चौबीस घंटे तक दूध में रखने पर यदि क्षीणता एवं फीकापन न आए तो असली होता है। पुखराज चिकना, चमकदार, पानीदार, पारदर्शी एवं व्यवस्थित किनारे वाला होता है। यह एल्युमिनियम और फ्लोरीन सहित सिलिकेट खनिज होता है जिसका रासायनिक सूत्र है Al2SiO4(F,OH)2। .

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प्रति-कण

कण (बायें) और प्रति-कण (दायें) के आकार और विद्युत आवेश का चित्रण। ऊपर से नीचे इलेक्ट्रॉन/पोजीट्रॉन,प्रोटॉन/प्रतिप्रोटोन, न्यूट्रॉन/प्रतिन्यूट्रॉन. किसी भी कण से संबद्ध प्रतिकण भी होता है जिसका द्रव्यमान अभिन्न होता है लेकिन विद्युत आवेश विपरीत होता है। उदाहरण के लिये इलेक्ट्रॉन का प्रति-कण प्रति-इलेक्ट्रॉन एक धनावेशित कण जिसे पोजीट्रॉन कहते हैं, सामान्यतः इसे रेडियोधर्मी पदार्थों के क्षय से बनाया जाता है। प्रकृति के नियम कणों और प्रतिकणो के लिये लगभग सममितीय होते हैं। उदाहरण के लिये एक प्रतिप्रोटोन और पोजीट्रॉन से प्रति-हाइड्रोजन परमाणु का निर्माण होता है, जिसके गुणधर्म भी हाइड्रोजन परमाणु के समान ही हैं। .

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प्रतिऑक्सीकारक

एक एंटीऑक्सीडेंट- मेटाबोलाइट ग्लूटाथायोन का प्रतिरूप। पीले गोले रेडॉक्स-सक्रिय गंधक अणु हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट क्रिया उपलब्ध कराते हैं और लाल, नीले व गहरे सलेटी गोले क्रमशः ऑक्सीजन, नाईट्रोजन, हाईड्रोजन एवं कार्बन परमाणु हैं। प्रतिऑक्सीकारक (Antioxidants) या प्रतिउपचायक वे यौगिक हैं जिनको अल्प मात्रा में दूसरे पदार्थो में मिला देने से वायुमडल के ऑक्सीजन के साथ उनकी अभिक्रिया का निरोध हो जाता है। इन यौगिकों को ऑक्सीकरण निरोधक (OXidation inhibitor) तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं तथा स्थायीकारी (Stabiliser) भी कहते हैं। अर्थात प्रति-आक्सीकारक वे अणु हैं, जो अन्य अणुओं को ऑक्सीकरण से बचाते हैं या अन्य अणुओं की आक्सीकरण प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। ऑक्सीकरण एक प्रकार की रासायनिक क्रिया है जिसके द्वारा किसी पदार्थ से इलेक्ट्रॉन या हाइड्रोजन ऑक्सीकारक एजेंट को स्थानांतरित हो जाते हैं। प्रतिआक्सीकारकों का उपयोग चिकित्साविज्ञान तथा उद्योगों में होता है। पेट्रोल में प्रतिआक्सीकारक मिलाए जाते हैं। ये प्रतिआक्सीकारक चिपचिपाहट पैदा करने वाले पदार्थ नहीं बनने देते जो अन्तर्दहन इंजन के लिए हानिकारक हैं। प्रायः प्रतिस्थापित फिनोल (Substituted phenols) एवं फेनिलेनेडिआमाइन के व्युत्पन्न (derivatives of phenylenediamine) इस काम के लिए प्रयुक्त होते हैं। .

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प्रत्यास्थलक

thumb प्रत्यास्थलक (.

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प्रकाश-संश्लेषण

हरी पत्तियाँ, प्रकाश संश्लेषण के लिये प्रधान अंग हैं। सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय उर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधों की हरी पत्तियों की कोंशिकाओं के अन्दर कार्बन डाइआक्साइड और पानी के संयोग से पहले साधारण कार्बोहाइड्रेट और बाद में जटिल काबोहाइड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सूक्रोज, ग्लूकोज, स्टार्च (मंड) आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। जल, कार्बनडाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल (पर्णहरित) को प्रकाश संश्लेषण का अवयव कहते हैं। इसमें से जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण का कच्चा माल कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं। प्रकाश संश्वेषण करने वाले सजीवों को स्वपोषी कहते हैं। .

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प्रोटियम

प्रोटियम हाइड्रोजन का सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध समस्थानिक होता है। इसमें मात्र एक प्रोटॉन ही होता है और न्यूट्रॉन अनुपस्थित होता है। यह मूल रूप से हाइड्रोजन परमाणु होता है। श्रेणी:हाइड्रोजन के समस्थानिक श्रेणी:नाभिकीय पदार्थ श्रेणी:रेडियोधर्मिता श्रेणी:रेडियोधर्मी ईंधन.

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प्रोटॉन

प्राणु संरचना प्राणु (प्रोटॉन) एक धनात्मक विध्युत आवेशयुक्त मूलभूत कण है, जो परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता हैं। इसे p प्रतिक चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है। इस पर 1 दो अप-क्वार्क और एक डाउन-क्वार्क से मिलकर बना होता है। स्वतंत्र रूप से यह उदजन आयन H+ के रूप में पाया जाता है। .

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प्रोटीन

रुधिरवर्णिका(हीमोग्लोबिन) की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जन्तुओं के शरीर के लिए कुछ आवश्यक प्रोटीन एन्जाइम, हार्मोन, ढोने वाला प्रोटीन, सिकुड़ने वाला प्रोटीन, संरचनात्मक प्रोटीन एवं सुरक्षात्मक प्रोटीन हैं। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं इन्जाइम के रूप में शरीर की जैवरसायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे ऊर्जा भी मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को ४.१ कैलीरी ऊष्मा प्राप्त होती है। प्रोटीन द्वारा ही प्रतिजैविक (एन्टीबॉडीज़) का निर्माण होता है जिससे शरीर प्रतिरक्षा होती है। जे.

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पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास

300px पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास इसके शैलों के स्तरों के अध्ययन के आधार पर निकाला जाता है। पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ। .

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पृथ्वी का वायुमण्डल

अंतरिक्ष से पृथ्वी का दृश्य: वायुमंडल नीला दिख रहा है। पृथ्वी को घेरती हुई जितने स्थान में वायु रहती है उसे वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल के अतिरिक्त पृथ्वी का स्थलमंडल ठोस पदार्थों से बना और जलमंडल जल से बने हैं। वायुमंडल कितनी दूर तक फैला हुआ है, इसका ठीक ठीक पता हमें नहीं है, पर यह निश्चित है कि पृथ्वी के चतुर्दिक् कई सौ मीलों तक यह फैला हुआ है। वायुमंडल के निचले भाग को (जो प्राय: चार से आठ मील तक फैला हुआ है) क्षोभमंडल, उसके ऊपर के भाग को समतापमंडल और उसके और ऊपर के भाग को मध्य मण्डलऔर उसके ऊपर के भाग को आयनमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल और समतापमंडल के बीच के बीच के भाग को "शांतमंडल" और समतापमंडल और आयनमंडल के बीच को स्ट्रैटोपॉज़ कहते हैं। साधारणतया ऊपर के तल बिलकुल शांत रहते हैं। प्राणियों और पादपों के जीवनपोषण के लिए वायु अत्यावश्यक है। पृथ्वीतल के अपक्षय पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। नाना प्रकार की भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ वायुमंडल की वायु के कारण ही संपन्न होती हैं। वायुमंडल के अनेक दृश्य, जैसे इंद्रधनुष, बिजली का चमकना और कड़कना, उत्तर ध्रुवीय ज्योति, दक्षिण ध्रुवीय ज्योति, प्रभामंडल, किरीट, मरीचिका इत्यादि प्रकाश या विद्युत के कारण उत्पन्न होते हैं। वायुमंडल का घनत्व एक सा नहीं रहता। समुद्रतल पर वायु का दबाव 760 मिलीमीटर पारे के स्तंभ के दाब के बराबर होता है। ऊपर उठने से दबाव में कमी होती जाती है। ताप या स्थान के परिवर्तन से भी दबाव में अंतर आ जाता है। सूर्य की लघुतरंग विकिरण ऊर्जा से पृथ्वी गरम होती है। पृथ्वी से दीर्घतरंग भौमिक ऊर्जा का विकिरण वायुमंडल में अवशोषित होता है। इससे वायुमंडल का ताप - 68 डिग्री सेल्सियस से 55 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रहता है। 100 किमी के ऊपर पराबैंगनी प्रकाश से आक्सीजन अणु आयनों में परिणत हो जाते हैं और परमाणु इलेक्ट्रॉनों में। इसी से इस मंडल को आयनमंडल कहते हैं। रात्रि में ये आयन या इलेक्ट्रॉन फिर परस्पर मिलकर अणु या परमाणु में परिणत हो जाते हैं जिससे रात्रि के प्रकाश के वर्णपट में हरी और लाल रेखाएँ दिखाई पड़ती हैं। .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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पूर्णहृदरोध

पूर्णहृदरोध, (जिसे कार्डियोपल्मोनरी अरेस्ट या सर्कुलेटरी अरेस्ट) हृदय द्वारा प्रभावी ढंग से सिकुड़ने में विफलता की वजह से रक्त के सामान्य संचरण का ठहराव है। चिकित्सा कर्मी एक अप्रत्याशित पूर्णहृदरोध को सडेन कार्डियक अरेस्ट या SCA सन्दर्भित कर सकते हैं। पूर्णहृदरोध, दिल के दौरे से भिन्न है (लेकिन उसकी वजह से हो सकता है) जिसके तहत हृदय की मांसपेशी में रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है। बाधित रक्त परिसंचरण, शरीर में ऑक्सीजन के वितरण को रोक देता है। मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी से चेतना का लोप हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सांस लेने में असामान्यता आ जाती है या श्वास अनुपस्थिति हो जाती है। यदि पूर्णहृदरोध पांच मिनट से अधिक देर तक अनुपचारित रहे तो मस्तिष्क घात की संभावना होती है। बचने और स्नायविक लाभ के सबसे अच्छे मौके के लिए तत्काल और निर्णायक इलाज आवश्यक है। पूर्णहृदरोध एक चिकित्सकीय आपातस्थिति है, कुछ ख़ास स्थितियों में अगर इसका समय से इलाज किया जाए तो संभावित रूप से सुधार आ जाता है। जब अप्रत्याशित पूर्णहृदरोध से मौत हो जाती है तो इसे सडेन कार्डिएक डेथ (SCD) कहा जाता है। पूर्णहृदरोध का उपचार कार्डियोपल्मोनरी पुनरुत्थान (CPR) है जिसके द्वारा परिसंचरण समर्थन प्रदान किया जाता है, जिसके बाद यदि कंपन देने योग्य लय मौजूद है तो डिफ़ाइब्रिलेशन होता है। सीपीआर और अन्य नैदानिक उपायों के बाद अगर कम्पन देने योग्य लय विद्यमान नहीं है तो मौत अनिवार्य है। .

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पेट्रोलियम उत्पाद

ग्रेंगमोउथ, स्कॉटलैंड में एक पेट्रोकेमिकल्स रिफाइनरी. पेट्रोलियम उत्पाद, तेल रिफाइनरियों में संसाधित कच्चे तेल (पेट्रोलियम) से प्राप्त होने वाली उपयोगी सामग्रियों को कहते हैं। कच्चे तेल की संरचना और मांग के अनुसार रिफाइनरियां पेट्रोलियम उत्पादों को विभिन्न मात्राओं में उत्पादित कर सकती हैं। तेल उत्पादों का सबसे अधिक मात्रा में उर्जा वाहकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि इंधन तेल तथा गैसोलीन (पेट्रोल) के विभिन्न प्रकार.

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पेन्टोथेनिक अम्ल

पेन्टोथेनिक अम्ल जिसे विटामिन बी5 भी कहते हैं एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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पॉलीमर

रिअल लीनिअर पॉलीमर कड़ियां, जो परमाणिव्क बल सूक्ष्मदर्शी द्वारा तरल माध्यम के अधीन देखी गयी हैं। इस बहुलक की चेन लंबाई ~२०४ नैनो.मीटर; मोटाई is ~०.४ नै.मी.वाई.रोइटर एवं एस.मिंको, http://dx.doi.org/10.1021/ja0558239 ईफ़एम सिंगल मॉलिक्यूल एक्स्पेरिमेंट्स ऐट सॉलिड-लिक्विड इंटरफ़ेस, अमरीकन कैमिकल सोसायटी का जर्नल, खण्ड १२७, ss. 45, pp. 15688-15689 (2005) वहुलक या पाॅलीमर बहुत अधिक अणु मात्रा वाला कार्बनिक यौगिक होता है। यह सरल अणुओं जिन्हें मोनोमर कहा जाता; के बहुत अधिक इकाईयों के पॉलीमेराइजेशन के फलस्वरूप बनता है।। नैनोविज्ञान। वर्ल्डप्रेस पर पॉलीमर में बहुत सारी एक ही तरह की आवर्ती संरचनात्मक इकाईयाँ यानि मोनोमर संयोजी बन्ध (कोवैलेन्ट बॉण्ड) से जुड़ी होती हैं। सेल्यूलोज, लकड़ी, रेशम, त्वचा, रबर आदि प्राकृतिक पॉलीमर हैं, ये खुली अवस्था में प्रकृति में पाए जाते हैं तथा इन्हें पौधों और जीवधारियों से प्राप्त किया जाता है। इसके रासायनिक नामों वाले अन्य उदाहरणों में पालीइथिलीन, टेफ्लान, पाॅली विनाइल क्लोराइड प्रमुख पाॅलीमर हैं। कृत्रिम या सिंथेटिक पॉलीमर मानव निर्मित होते हैं। इन्हें कारखानों में उत्पादित किया जा सकता है। प्लास्टिक, पाइपों, बोतलों, बाल्टियों आदि के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली पोलीथिन सिंथेटिक पॉलीमर है। बिजली के तारों, केबलों के ऊपर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक कवर भी सिंथेटिक पॉलीमर है। फाइबर, सीटकवर, मजबूत पाइप एवं बोतलों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली प्रोपाइलीन भी सिंथेटिक पॉलीमर है। वाल्व सील, फिल्टर क्लॉथ, गैस किट आदि टेफलॉन से बनाए जाते हैं। सिंथेटिक रबर भी पॉलीमर है जिससे मोटरगाड़ियों के टायर बनाए जाते हैं। हॉलैंड के वैज्ञानिकों के अनुसार मकड़ी में उपस्थित एक डोप नामक तरल पदार्थ उसके शरीर से बाहर निकलते ही एकप प्रोटीनयुक्त पॉलीमर के रूप में जाला बनाता है। पॉलीमर शब्द का प्रथम प्रयोग जोंस बर्जिलियस ने १८३३ में किया था। १९०७ में लियो बैकलैंड ने पहला सिंथेटिक पोलीमर, फिनोल और फॉर्मएल्डिहाइड की प्रक्रिया से बनाया। उन्होंने इसे बैकेलाइट नाम दिया। १९२२ में हर्मन स्टॉडिंगर को पॉलीमर के नए सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इससे पहले यह माना जाता था कि ये छोटे अणुओं का क्लस्टर है, जिन्हें कोलाइड्स कहते थे, जिसका आण्विक भार ज्ञात नहीं था। लेकिन इस सिद्धांत में कहा गया कि पाॅलीमर एक शृंखला में कोवेलेंट बंध द्वारा बंधे होते हैं। पॉलीमर शब्द पॉली (कई) और मेरोस (टुकड़ों) से मिलकर बना है। एक ही प्रकार की मोनोमर इकाईयों से बनने वाले बहुलक को होमोपॉलीमर कहते हैं। जैसे पॉलीस्टायरीन का एकमात्र मोनोमर स्टायरीन ही है। भिन्न प्रकार की मोनोमर इकाईयों से बनने वाले बहुलक को कोपॉलीमर कहते हैं। जैसे इथाइल-विनाइल-एसीटेट भिन्न प्रकार के मोनोमरों से बनता है। भौतिक व रासायनिक गुणों के आधार पर इन्हें दो वर्गों में बांटा जा सकता है: right.

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पोषक तत्व

सागर में पोषण चक्रएक पोषक तत्व या पोषकतत्व वह रसायन होता है, जिसकी आवश्यकता किसी जीव के उसके जीवन और वृद्धि के साथ साथ उसके शरीर के उपापचय की क्रिया को चलाने के लिए भी पड़ती है और जिसे वो अपने वातावरण से ग्रहण करता है।Whitney, Elanor and Sharon Rolfes.

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पीटर कपिज़ा

रूसी वैज्ञानिक पीटर कपिज़ा पीटर लीओ निडोविच कपिज़ा (रूसी: Пётр Леони́дович Капи́ца); 8 जुलाई 1894 - 8 अप्रैल 1984)) रूस के भौतिकविद् थे। उन्हे १९७८ में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनका जन्म ९ जुलाई सन १८९४ को क्रोंस्टाड्ट में हुआ। आपने प्रारंभिक शिक्षा पेट्रोग्राद में प्राप्त की। पदुपरांत आप कैंब्रिज में लार्ड रदरफ़र्ड के विद्यार्थी रहे और परमाणु विघटन अनुसंधान के क्षेत्र में अत्यंत प्रबल चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की तकनीकी क्रियाप्रणाली के विकास में विशेष दक्षता प्राप्त की। सन् १९२४ में आपकी नियुक्ति कैवेंडिश प्रयोगशाला में चुंबकीय अनुसंधान के सहायक निर्देशक के रूप में हुई और १९३२ ई. तक इस पद पर कार्य करते रहे। सन् १९३० से १९३५ तक आप रॉयल सोसाइटी के सदस्य चुने गए और १९४२ में आपको फ़ैरेडे पदक प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त भौतिकी का स्टैलिन पुरस्कार आपको सन् १९४१ में और फिर १९४३ में मिला। सन् १९४३ और १९४४ में आप ऑर्डर ऑव लेनिन उपाधि से भी विभूषित किए गए। सन् १९३४ में आप जब छुट्टी पर स्वदेश (रूस) गए तो सोवियत सरकार ने आपको पुन: देश से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी। कापिज़ा के लिए मास्को में कैवेंडिश प्रयोगशाला के टक्कर की प्रयोगशाला बनाई गई ताकि कापिज़ा सुचारु रूप से अपना अनुसंधान कार्य चला सकें। फलस्वरूप कापिज़ा कुछ ही समय उपरांत मास्को की भौतिकीय समस्या संस्था (इंस्टीट्यूट फ़ॉर फ़िज़िकल प्रॉब्लेम्स) के निर्देशक नियुक्त कर दिए गए। आपका मुख्य कार्य 'चुंबकत्व' तथा क्रायोजेनिक्स (अत्यंत ठंडे ताप) से संबंध रखता है। आपने ३० टेस्ला तक का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की और हाइड्रोजन तथा हीलियम के द्रवीकरण के प्लांट की भी सफल डिज़ाइन दी है। श्रेणी:वैज्ञानिक श्रेणी:1894 में जन्मे लोग श्रेणी:१९८४ में निधन श्रेणी:नोबेल पुरस्कार विजेता.

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पीएच मापक

एक पीएच मापक यंत्र पीएच मापक द्रव्यों की अम्लीयता और क्षारीयता यानि पीएच का स्तर मापन करने हेतु उपकरण होता है। इसके द्वारा जांचे गए द्रव्य में अम्लीयता और क्षारीयता का स्तर बराबर रहता है, तो वह द्रव्य उदासीन होता है। कई अर्ध-तरल पदार्थों की जांच हेतु विशेष प्रोब्स का प्रयोग भी किया जाता है। एक पीएच मापक यंत्र में एक मापक प्रोब (कांच की इलेक्ट्रोड) एक इलेक्ट्रॉनिक मीटर से जुड़ी रहती है, व पीएच का स्तर मीटर पर दिख जाता है। पहला वाणिज्यिक पीएच-मापक १९३६ में ब्रिटेन के डॉ॰ आर्नल्ड ओरविले बैकमैन ने बनाया था। कैलिफॉर्निया इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर बैकमैन को एक ऐसी युक्ति बनाने को कहा गया, जो नींबू के रस की अम्लीयता जल्दी और सही माप सके। .

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फरफुरल

फरफुरल, एक कार्बनिक यौगिक है जिसे विभिन्न प्रकार के कृषि उपोत्पादों जैसे कि मकई के बालों, जई, गेहूं के चोकर और लकड़ी के बुरादे आदि से प्राप्त किया जाता है। फरफुरल शब्द लतीनी शब्द फरफुर furfur, से आता है जिसका अर्थ भुसी या चोकर होता है। फरफुरल एक ऐरोमैटिक एल्डिहाइड है, जिसके छल्ले की संरचना दाएं हाथ पर दी गयी है। इसका रासायनिक सूत्र, OC4H3CHO है। यह एक रंगहीन तैलीय द्रव पर हवा के संपर्क में आने पर शीघ्रता से पीले रंग का हो जाता है, इसकी गंध बादाम के समान है। .

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फास्फोरस

‎भास्वर (फ़ॉस्फ़ोरस) एक रासायनिक तत्व है जिसका संकेत या P है तथा परमाणु संख्या 15। यह शब्द ग्रीक (यूनानी) भाषा के फॉस (प्रकाश) तथा फोरस (धारक) से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ प्रकाश का धारक। ये फॉस्फेट चट्टानों में पाया जाता है। इसकी संयोजकता 1, 3 और 5 होती है। तत्वों की आवर्त सारणी में ये भूयाति के समूह में आता है। ‎फ़ॉस्फ़ोरस एक अभिक्रियाशील तत्व है इसकारण ये मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता है। कुछ खनिजों में धातुओं के फॉस्फेट मिलते हैं। पशुओं की हड्डियों में 56% कैल्शियम फॉस्फेट पाया जाता है। जन्तुओं तथा पौधों के लिए यह एक अनिवार्य तत्व है। इसका अस्तित्व कई जैव अवयवों में मिलता है। .

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फिनाइललिथियम

फिनाइललिथियम फिनाइललिथियम एक कार्बनिक यौगिक है जिसमें कार्बन एवं लिथियम सीधे बंध द्वारा जुड़े होते हैं। लिथियम अपनी धात्विक प्रकृति के कारण इस बंध का अधिकांश आवेश कार्बन पर डाल देता है। जिससे कार्बन ऋणायन की तरह व्यवहार करता है एवं यौगिक क्षारिय हो जाता है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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फिनोल

फिनॉल फ़िनोल (IUPAC: Benzenol) वस्तुत: कार्बनिक यौगिकों की एक श्रेणी का नाम है जिसका प्रथम सदस्य 'फिनोल' या कार्बोलिक अम्ल है। बेंजीन केंद्रक का एक या एक से अधिक हाइड्रोजन जब हाइड्रॉक्सिल समूह से विस्थापित होता है, तब उससे जो उत्पाद प्राप्त होते हैं उसे फिनोल कहते हैं। यदि केंद्रक में एक ही हाइड्रॉक्सिल रहे, तो उसे मोनोहाइ-ड्रिक फिनोल, दो हाइड्रॉक्सिल रहें तो उसे डाइहॉइड्रिक फिनोल और तीन हाइड्रॉक्सिल रहें, तो उसे ट्राइहाइड्रिक फिनोल कहते हैं।; अन्य नाम .

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फ्रिडेल-क्राफ्ट्स अभिक्रिया

फ्रिडेल-क्राफ्ट्स अभिक्रियाएँ ('Friedel-Crafts reactions) कार्बनिक अभिक्रियाओं का एक समूह है जिसका आविष्कार चार्ल्स फ्रिडेल (Charles Friedel) और जेम्स क्राफ्ट्स (James Crafts) ने सन् १८७७ में किया था। वस्तुत: ये अभिक्रियाएँ ब्रेज़ीन वलय में एक या एक से अधिक हाइड्रोजन परमाणुओं को ऐल्किल (alkyl) या ऐसिल (acyl) समूहों द्वारा प्रतिस्थापित करने की विधियाँ हैं। इन अभिक्रियाएं मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं - एल्काइलीकरण अभिक्रियाएं (alkylation reactions) तथा एसीलीकरण (.

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फ्लोरीन

फ्लोरीन एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी (periodic table) के सप्तसमूह का प्रथम तत्व है, जिसमें सर्वाधिक अधातु गुण वर्तमान हैं। इसका एक स्थिर समस्थानिक (भारसंख्या 19) प्राप्त है और तीन रेडियोधर्मिता समस्थानिक (भारसंख्या 17,18 और 20) कृत्रिम साधनों से बनाए गए हैं। इस तत्व को 1886 ई. में मॉयसाँ ने पृथक्‌ किया। अत्यंत क्रियाशील तत्व होने के कारण इसको मुक्त अवस्था में बनाना अत्यंत कठिन कार्य था। मॉयसाँ ने विशुद्ध हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा दहातु तरस्विनिक के मिश्रण के वैद्युत्‌ अपघटन द्वारा यह तत्व प्राप्त किया था। तरस्विनी मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता। इसके यौगिक चूर्णातु तरस्विनिक (फ्लुओराइड), (चूर.त2) (CaF2) और क्रायोलाइड, (क्षा3स्फ.त6) (Na3AlF6) अनेक स्थानों पर मिलते हैं। तरस्विनी का निर्माण मॉयसाँ विधि द्वारा किया जाता है। महातु घनातु मिश्रधातु का बना यू (U) के आकार का विद्युत्‌ अपघटनी कोशिका लिया जाता है, जिसके विद्युदग्र भी इसी मिश्रधातु के बने रहते हैं। हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल में दहातु तरस्विनिक (फ्लुओराइड) विलयित कर - 23° सें.

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फोलिक अम्ल

फोलिक अम्ल को विटामिन बी-9 या फोलासीन और फोलेट के नाम से भी जाना जाता है। ये विटामिन बी-9 के जल-घुल्य रूप हैं। फोलिक एसीड शरीर के विभिन्न कार्यों के संपादन के लिए आवश्यक हैं। ये न्युक्लिटाइड के संश्लेषण से लेकर हिमोसाइटिन के रिमिथाइलेशन के लिए जरूरी है। यह कोशिका निर्माण और कोशिका वृद्धि के दौरान काफी उपयोगी माना जाता है। स्वस्थ रक्त कोशिका के निर्माण के लिए बच्चों और व्यस्कों में फोलिक एसीड समान रूप से जरूरी है। ये रक्तहीनता को रोकता है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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फीरोजा़

फीरोजा़ या टर्कौएश एक अपारदर्शी, नीले से हरा खनिज है। यह ताम्र एवं अल्यूमिनियम का हायड्रस फॉस्फेट है, जिसका रासायनिक सूत्र है: CuAl6(PO4)4(OH)8·4H2O.

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बायोगैस

बायोगैसचालित बस (स्वीडेन) जैवगैस या बायोगैस (Biogas) वह गैस मिश्रण है जो आक्सीजन की अनुपस्थिति में जैविक सामग्री के विघटन से उत्पन्न होती है। यह सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की तरह ही नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है। बायोगैस स्थानीय उपलब्ध कच्चे पदार्थों एवं कचरा से पैदा की जा सकती है। यह पर्यावरण-मित्र और CO2-न्यूट्रल है। .

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बिग बैंग सिद्धांत

महाविस्फोट प्रतिरूप के अनुसार, यह ब्रह्मांड अति सघन और ऊष्म अवस्था से विस्तृत हुआ है और अब तक इसका विस्तार चालू है। एक सामान्य धारणा के अनुसार अंतरिक्ष स्वयं भी अपनी आकाशगंगाओं सहित विस्तृत होता जा रहा है। ऊपर दर्शित चित्र ब्रह्माण्ड के एक सपाट भाग के विस्तार का कलात्मक दृश्य है। ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ। इसी को महाविस्फोट सिद्धान्त या बिग बैंग सिद्धान्त कहते हैं।।अमर उजाला।। श्य़ामरत्न पाठक, तारा भौतिकविद, जिसके अनुसार से लगभग बारह से चौदह अरब वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड एक परमाण्विक इकाई के रूप में था।।बीबीसी हिन्दी।। बीबीसी संवाददाता, लंदन:ममता गुप्ता और महबूब ख़ान उस समय मानवीय समय और स्थान जैसी कोई अवधारणा अस्तित्व में नहीं थी।।हिन्दुस्तान लाइव।।२७ अक्टूबर, २००९ महाविस्फोट सिद्धांत के अनुसार लगभग १३.७ अरब वर्ष पूर्व इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ। यह ऊर्जा इतनी अधिक थी जिसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जा रहा है। सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोट सिद्धांत कहा जाता है। महाविस्फोट नामक इस महाविस्फोट के धमाके के मात्र १.४३ सेकेंड अंतराल के बाद समय, अंतरिक्ष की वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं। भौतिकी के नियम लागू होने लग गये थे। १.३४वें सेकेंड में ब्रह्मांड १०३० गुणा फैल चुका था और क्वार्क, लैप्टान और फोटोन का गर्म द्रव्य बन चुका था। १.४ सेकेंड पर क्वार्क मिलकर प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाने लगे और ब्रह्मांड अब कुछ ठंडा हो चुका था। हाइड्रोजन, हीलियम आदि के अस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व बनने लगे थे। महाविस्फोट सिद्धान्त के आरंभ का इतिहास आधुनिक भौतिकी में जॉर्ज लिमेत्री ने लिखा हुआ है। लिमेत्री एक रोमन कैथोलिक पादरी थे और साथ ही वैज्ञानिक भी। उनका यह सिद्धान्त अल्बर्ट आइंसटीन के प्रसिद्ध सामान्य सापेक्षवाद के सिद्धांत पर आधारित था। महाविस्फोट सिद्धांत दो मुख्य धारणाओं पर आधारित होता है। पहला भौतिक नियम और दूसरा ब्रह्माण्डीय सिद्धांत। ब्रह्माण्डीय सिद्वांत के मुताबिक ब्रह्मांड सजातीय और समदैशिक (आइसोट्रॉपिक) होता है। १९६४ में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्गस ने महाविस्फोट के बाद एक सेकेंड के अरबें भाग में ब्रह्मांड के द्रव्यों को मिलने वाले भार का सिद्धांत प्रतिपादित किया था, जो भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस के बोसोन सिद्धांत पर ही आधारित था। इसे बाद में 'हिग्गस-बोसोन' के नाम से जाना गया। इस सिद्धांत ने जहां ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों पर से पर्दा उठाया, वहीं उसके स्वरूप को परिभाषित करने में भी मदद की।। दैट्स हिन्दी॥।१० सितंबर, २००८। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस। .

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बुध (ग्रह)

बुध (Mercury), सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है। गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमंडल चुंकि करीब करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100 K (−173 °C; −280 °F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रूप से 180 K (−93 °C; −136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रह पर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है। बुध को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के समान मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकडा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी स्थिर खडे सितारे के सापेक्ष देखने पर, यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धूरी के ईर्दगिर्द ठीक तीन बार घूम लेता है। सूर्य की ओर से, किसी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है, देखने पर यह हरेक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है। इस कारण बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस हरेक दो वर्षों का देखेगा। बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा (शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है। .

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ब्रोमीन

ब्रोमीन आवर्त सारणी (periodic table) के सप्तम मुख्य समूह का तत्व है और सामान्य ताप पर केवल यही अधातु द्रव अवस्था में रहती है। इसके दो स्थिर समस्थानिक (isotopes) प्राप्य हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 79 और 81 है। इसके अतिरिक्त इस तत्व के 11 रेडियोधर्मी समस्थानिक निर्मित हुए हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 75, 76, 77, 78, 80, 82, 83, 84, 85, 86 और 88 हैं। फ्रांस के वैज्ञानिक बैलार्ड ने ब्रोमीन की 1826 ई. में खोज की। इसकी तीक्ष्ण गंध, के कारण ही उसने इसका नाम 'ब्रोमीन' रखा, जिसका अर्थ यूनानी भाषा में 'दुर्गंध' होता है। ब्रोमीन सक्रिय तत्व होने के कारण मुक्त अवस्था में नहीं मिलता। इसके मुख्य यौगिक सोडियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम के ब्रोमाइड हैं। जर्मनी के शटासफुर्ट (Stassfurt) नामक स्थान में इसके यौगिक बहुत मात्रा में उपस्थित हैं। समुद्रतल भी इसका उत्तम स्रोत है। कुछ जलजीव एवं वनस्पति पदार्थो में ब्रोमीन यौगिक विद्यमान हैं। .

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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बृहस्पति का वायुमंडल

बृहस्पति पर सन् २००० में बादल प्रतिमान. बृहस्पति का वायुमंडल सौरमंडल में सबसे बड़ा ग्रहीय वायुमंडल है। एक मोटे सौर अनुपात में यह मुख्य रूप से आणविक हाइड्रोजन और हीलियम से बना है; अन्य रासायनिक यौगिकों की केवल छोटी मात्रा मौजूद हैं, जिसमें मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड और जल शामिल हैं। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि पानी वायुमंडल की गहराई में मौजूद है, इसके सीधे मापन की संभावना बहुत कम है। बृहस्पति के वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर और अक्रिय गैस की प्रचुरता लगभग तीन कारक के सौर मूल्यों से अधिक है बृहस्पति के वायुमंडल में एक स्पष्ट न्यूनतम सीमा का अभाव है और ग्रह के अंदरूनी तरल पदार्थ में धीरे-धीरे परिवर्तन होता है। निम्नतम से लेकर उच्चत्तर, वायुमंडलीय परतें क्रमशः क्षोभ मंडल, समताप मंडल, तापमंडल और बहिर्मंडल हैं। प्रत्येक परत की विशेषता तापमान ढलान है। निम्नतम परत यानि क्षोभ मंडल, बादलों और कुंहरों की एक जटिल प्रणाली है, जो अमोनिया, अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड और पानी की परतों से बना है। बृहस्पति के सतह पर दिखाई देने वाले अमोनिया के ऊपरी बादल भूमध्यरेखा के समानांतर एक दर्जन क्षेत्रीय धारीयों में एकीकृत हुए है और यह शक्तिशाली आंचलिक वायुमंडलीय प्रवाहों (वायु) से घिरे हुए है। रंग में एकांतर धारियाँ: गहरी धारीयों को पट्टियां कहा जाता है, जबकि हल्की धारीयों को क्षेत्र कहा जाता है। क्षेत्र, जो पट्टियों से ठन्डे होते है, उमड़ने के अनुरूप होते है, जबकि पट्टियाँ उतरती हवा की निशानी है | क्षेत्रों के हल्के रंग का परिणाम अमोनिया बर्फ से माना जाता है, जबकि पट्टियाँ स्वयं को गहरे से गहरा रंग किससे देती है यह निश्चितता के साथ नहीं ज्ञात हुआ है। धारीदार संरचना और प्रवाहों की उत्पत्तियों की अच्छी समझ नहीं हैं, हालांकि दो मॉडल मौजूद हैं: उथला मॉडल मानता है कि वे सतही घटना है जो एक स्थिर आंतरिक भाग ढंकती है, गहरे मॉडल में, धारियाँ और प्रवाहें बृहस्पति के आणविक हाइड्रोजन के आवरण में गहरी परिसंचरण की महज सतही अभिव्यक्तियां है, जो अनेकों लठ्ठों में एकत्रित हुए है। बृहस्पति वायुमंडल, एक विस्तृत श्रृंखला की सक्रिय घटना सहित धारी अस्थिरता, भेंवर (चक्रवात और प्रतिचक्रवात) तूफान और बिजली प्रदर्शित करता है। भेंवर बड़े लाल, सफेद या भूरे रंग के धब्बों (अंडो) के रूप में खुद को प्रकट करते हैं। सबसे बड़े दो लाल धब्बे ग्रेट रेड स्पॉट (GRS) और ओवल बीए हैं। ये दोनों और ​​अन्य अधिकतर बड़े धब्बे प्रतिचक्रवातीय है। छोटे चक्रवात सफेद हो जाते हैं। भेंवर गहराई के साथ अपेक्षाकृत उथले संरचनाओं के माने जाते है, कई सौ किलोमीटर से अधिक नहीं। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित GRS, सौरमंडल में सबसे बड़ा ज्ञात भंवर है। यह कई पृथ्वीयों को निगल गया है और कम से कम तीन सौ सालों के लिए अस्तित्व में हो सकता है। GRS के दक्षिण में स्थित ओवल बीए, GRS की एक तिहाई आकार का एक लाल धब्बा है जो सन् २००० में तीन सफेद अंडो के विलय से बना था। बृहस्पति पर शक्तिशाली तूफान है और यह वायुमंडल में नम संवहन का एक परिणाम हैं जो पानी के वाष्पीकरण और संघनन से जुड़ा हुआ है। वे हवा के मजबूत उर्ध्व गति के स्थल रहे हैं, जो उज्ज्वल और घने बादलों की रचना का नेतृत्व करते है। तूफ़ान मुख्यतः पट्टी क्षेत्रों में बनते है। बृहस्पति पर बिजली की गरज, पृथ्वी पर की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं। हालांकि, बिजली की गतिविधि का औसत स्तर पृथ्वी पर की तुलना में कम होता है। .

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बेटा कैसिओपिये तारा

बेटा कैसिओपिये शर्मिष्ठा तारामंडल में 'β' के चिह्न द्वारा नामांकित तारा है बेटा कैसिओपिये, जिसका बायर नाम भी यही (β Cassiopeiae या β Cas) है, शर्मिष्ठा तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ७१वाँ सब से रोशन तारा है। पृथ्वी से देखी गई इस तारे की चमक (सापेक्ष कान्तिमान) २.२७ मैग्नीट्यूड है और यह हमसे लगभग ५४ प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। .

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बेंजीन

बेंजीन के विभिन्न प्रकार के निरूपण बेंज़ीन या धूपेन्य एक हाइड्रोकार्बन है जिसका अणुसूत्र C6H6 है। बेंजीन का अणु ६ कार्बन परमाणुओं से बना होता है जो एक छल्ले की तरह जुड़े होते हैं तथा प्रत्येक कार्बन परमाणु से एक हाइड्रोजन परमाणु जुड़ा होता है। बेंजीन, पेट्रोलियम (क्रूड ऑयल) में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। कोयले के शुष्क आसवन से अलकतरा तथा अलकतरे के प्रभाजी आसवन (fractional distillation) से बेंजीन बड़ी मात्रा में तैयार होता है। प्रदीपन गैस से प्राप्त तेल से फैराडे ने 1825 ई. में सर्वप्रथम इसे प्राप्त किया था। मिटशरले ने 1834 ई. में बेंज़ोइक अम्ल से इसे प्राप्त किया और इसका नाम बेंजीन रखा। अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता पहले पहल 1845 ई. में हॉफमैन (Hoffmann) ने लगाया था। जर्मनी में बेंजीन को 'बेंज़ोल' कहते हैं। बेंजीन रंगहीन, मीठी गन्थ वाला, अत्यन्त ज्वलनशील द्रव है। इसका उपयोग एथिलबेंजीन्न और क्यूमीन (cumene) आदि भारी मात्रा में उत्पादित रसायनों के निर्माण में होता है। चूँकि बेंजीन का ऑक्टेन संख्या अधिक होती है, इसलिये पेट्रोल में कुछ प्रतिशत तक यह मिलाया गया होता है। यह कैंसरजन है जिसके कारण इसका गैर-औद्योगिक उपयोग कम ही होता है। .

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बोर त्रिज्या

बोर त्रिज्या (Bohr radius) एक भौतिक नियतांक है जो अपनी सब से कम ऊर्जा वाली अवस्था में किसी हाइड्रोजन परमाणु में उसके नाभिक (न्यूक्लियस) और उसके इकलौते इलेक्ट्रॉन में होती है। इसका नाम प्रसिद्ध भौतिकविज्ञानी नील्स बोर (Niels Bohr) पर रखा गया था। इसका चिह्न a0 है और इसका माप लगभग ५.३ × १०-११ मीटर है।, Lawrence S. Lerner, Jones & Bartlett Learning, 1996, ISBN 978-0-86720-487-2,...

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बोर्निऑल

बोर्निऑल के अणु का त्रिआयामि चित्र बोर्निऑल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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बीटा टाओरी तारा

काल्पनिक रेखाओं से बनी वृष तारामंडल की आकृति - बीटा टाओरी इस आकृति का सबसे ऊपर-दाई तरफ़ का तारा है मंगल और चन्द्रमा के बीच लटकते बीटा टाओरी (एल्नैट) की एक निशाकालीन तस्वीर बीटा टाओरी, जिसका बायर नामांकन में भी यही नाम (β Tau या β Tauri) दर्ज है, वृष तारामंडल का दूसरा सबसे रोशन तारा है। इसका पृथ्वी से देखा गया औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक) का मैग्निट्यूड) १.६८ है और यह पृथ्वी से १३० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से २८वा सब से रोशन तारा भी है। .

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बीटा महाश्वान तारा

महाश्वान तारामंडल में 'β' द्वारा नामांकित बीटा महाश्वान तारा बीटा महाश्वान, जिसका बायर नाम "बीटा कैनिस मेजोरिस" (β Canis Majoris या β CMa) है, महाश्वान तारामंडल में स्थित एक तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले सभी तारों से ४६वाँ सब से रोशन तारा माना जाता है। यह हमसे ५०० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १.९८ है। .

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बीएमडब्लू (BMW)

Bayerische Motoren Werke AG (हिंदी:बावेरियन मोटर वर्क्स (बीएमडब्लू) ऑटोमोबाइल, मोटरसाइकिल और इंजन का निर्माण करनेवाली एक जर्मन कंपनी है। 1916 में स्थापित यह कंपनी अपने कार्य-निष्पादन और लक्जरी वाहनों के लिए जानी जाती है। यह MINI (मिनी) ब्रांड की उत्पादनकर्ता एवं स्वामित्व वाली कंपनी है तथा रोल्स रॉयस मोटर कारों की भी मूल कंपनी है। .

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भूरा बौना

हमारे सूर्य, बृहस्पति ग्रह और हमारे सौर मण्डल से बाहर मिलने वाले भूरे बौने ग्लीज़ २२९बी और टेइडे १ के आकारों की तुलना भूरा बौना या ब्राउन ड्वार्फ़ ब्रह्माण्ड में ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो आकार में गैस दानव ग्रहों और तारों के दरम्यान का स्थान रखती हैं। भूरे बौने गैस के बने होते हैं, जिसमें हाइड्रोजन और हिलियम प्रधान होती हैं। भूरे बौनों का आकार तारों से छोटा होता है और उनमें इतना गुरुत्वाकर्षण नहीं होता के उनमें हाइड्रोजन गैस के परमाणुओं के कुचले जाने से नाभिकीय संलयन (न्यूक्लियर फ्यूज़न) की प्रक्रिया शुरू हो, लेकिन कुछ अन्य भारी तत्वों का संयलन आरम्भ अवश्य हो जाता है - जैसे की ड्यूटेरियम और लिथियम का। गैस दानव ग्रहों में बिलकुल किसी प्रकार का संयलन नहीं होता। वैज्ञानिकों में कुछ विवाद है के किस आकार पर वास्तु गैस दानव नहीं रहती और भूरा बौना बन जाती है और किस आकार पर तारा बन जाती है। अनुमान है के बृहस्पति से १३ गुना ज़्यादा द्रव्यमान (मास) होने पर भूरा बौना और ७५ गुना ज़्यादा द्रव्यमान होने पर तारा बन जाता है। .

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भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (अंग्रेज़ी:जियोस्टेशनरी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, लघु: जी.एस.एल.वी) अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। जीएसएलवी का इस्तेमाल अब तक बारह लॉन्च में किया गया है, 2001 में पहली बार लॉन्च होने के बाद से 29 मार्च, 2018 को जीएसएटी -6 ए संचार उपग्रह ले जाया गया था। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है।|हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१०। अनुराग मिश्र हालांकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (जीएसएलवी मार्क 3) नाम साझा करता है, यह एक पूरी तरह से अलग लॉन्चर है। .

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महादानव तारा

लाल महादानव तारे मू सिफ़ई के आगे सूरज नन्हा लगता है - मू सिफ़ई का अर्धव्यास (रेडियस) सूरज का १,६५० गुना है तारों की श्रेणियाँ दिखने वाला हर्ट्ज़स्प्रुंग-रसल चित्र महादानव तारा एक अत्याधिक द्रव्यमान (मास) और चमक वाला तारा होता है। यर्कीज़ वर्णक्रम श्रेणीकरण में इसकी चमक की श्रेणी "Ia" (बहुत चमकीले महादानव) और "Ib" (कम चमकीले महादानव) है। इनसे बड़े तारे ब्रह्माण्ड में मुट्ठी-भर ही हैं और वे परमदानव तारे कहलाते हैं। .

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मार्जरीन

एक टब में मार्जरीन मार्जरीन (या), सामान्य शब्द के रूप में, विस्तृत मक्खन स्थानापन्न पदार्थों में किसी भी एक को सूचित करता है। दुनिया के कई भागों में, मार्जरीन और स्प्रेड का बाज़ार अंश मक्खन से आगे निकल गया है। मार्जरीन कई खाद्य पदार्थों और व्यंजनों की तैयारी का एक घटक है, तथा बोलचाल की भाषा में इस कभी-कभी ओलियो कहा जाता है। मार्जरीन स्वाभाविक रूप से सफेद या लगभग सफेद दिखाई देता है: कृत्रिम रंजन कारकों को मिलाने की मनाही द्वारा, विधायकों ने कुछ क्षेत्राधिकारों में पाया है कि मार्जरीन के उपभोग को हतोत्साहित करते हुए वे अपने डेयरी उद्योग की रक्षा कर सकते हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रलेशिया और कनाडा में रंग मिलाने पर रोक आम बात हो गई; और कुछ मामलों में, ये प्रतिबंध लगभग 100 साल तक बने रहे। उदाहरण के लिए, 1960 तक, ऑस्ट्रेलिया में रंगीन मार्जरीन की बिक्री वैध नहीं थी। .

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मंगल ग्रह

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। इस गृह पर जीवन होने की संभावना है। 1965 में मेरिनर ४ के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं। मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है। .

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मंगलयान

मंगलयान, (औपचारिक नाम- मंगल कक्षित्र मिशन, Mars Orbiter Mission; मार्स ऑर्बिटर मिशन), भारत का प्रथम मंगल अभियान है। यह भारत की प्रथम ग्रहों के बीच का मिशन है। वस्तुत: यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की एक महत्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवम्बर 2013 को 2 बजकर 38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने हेतु छोड़ा गया एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसऍलवी) सी-25 के द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। वैसे अब तक मंगल को जानने के लिये शुरू किये गये दो तिहाई अभियान असफल भी रहे हैं परन्तु 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुँचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया है। इसके अतिरिक्त ये मंगल पर भेजा गया सबसे सस्ता मिशन भी है। भारत एशिया का भी ऐसा करने वाला प्रथम पहला देश बन गया। क्योंकि इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे। वस्तुतः यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन परियोजना है जिसका लक्ष्य अन्तरग्रहीय अन्तरिक्ष मिशनों के लिये आवश्यक डिजाइन, नियोजन, प्रबन्धन तथा क्रियान्वयन का विकास करना है। ऑर्बिटर अपने पांच उपकरणों के साथ मंगल की परिक्रमा करता रहेगा तथा वैज्ञानिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आंकड़े व तस्वीरें पृथ्वी पर भेजेगा। अंतरिक्ष यान पर वर्तमान में इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क (इस्ट्रैक),बंगलौर के अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र से भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क एंटीना की सहायता से नजर रखी जा रही है प्रतिष्ठित 'टाइम' पत्रिका ने मंगलयान को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में शामिल किया। .

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मॅजलॅनिक बादल

बड़ा और छोटा मॅजलॅनिक बादल मॅजलॅनिक बादल (Magellanic Clouds), हमारी मंदाकिनी से लगी हुई अनियमित आकार की दो पडोसी बौनी आकाशगंगाएं है। बड़ा मॅजलॅनिक बादल (LMC) हमसे 1,60,000 प्रकाश वर्ष दूर है और छोटा मॅजलॅनिक बादल (SMC) हमसे 1,80,000 प्रकाश वर्ष दूर है। दोनों को ही दक्षिणी अर्धगोलार्ध मे नंगी आंखों से देखा जा सकता है। इनकी उपस्थिति को पहली बार 1519 मे पुर्तगाली अन्वेषक फर्डीनैंड मॅजलॅन (Ferdinand Magellan) द्वारा दर्ज किया गया था। बाद मे वें उन्हीं पर नामित हो गये। मॅजलॅनिक बादल दो बेढंगी बौनी गैलेक्सियाँ हैं जो हमारी गैलेक्सी, आकाशगंगा, की उपग्रह हैं और हमारी समीपी गैलेक्सियों के स्थानीय समूह के सदस्य हैं। इन्हें पृथ्वी के आकाश में सिर्फ़ दक्षिणी गोलार्ध (हॅमिस्फ्येर) से देखा जा सकता है। इन दो गैलेक्सियों के नाम हैं -.

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मोटरवाहन

कार्ल बेन्ज़'स "वेलो"मॉडल (1894) -सबसे पहले गाड़ियों के होड़ में आई right विश्व मानचित्र प्रति 1000 लोग गाड़ी, मोटरवाहन, कार, मोटरकार या ऑटोमोबाइल एक पहियों वाला वाहन है, जो यात्रियों के परिवहन के काम आता है; और जो अपना इंजन या मोटर भी स्वयं उठाता है। इस शब्द की अधिकांश परिभाषाओं के अनुसार मोटरवाहन मुख्य रूप से सड़कों पर चलाने के लिए हैं, एक से आठ लोगों कों बैठाने के लिए हैं, आमतौर पर जिनके चार पहिये होते हैं, जिनका निर्माण मुख्य रूप से सामान के उपेक्षा लोगों के परिवहन के लिए किया जाता है। मोटरकार शब्द का प्रयोग विद्युतिकृत रेल प्रणाली के सन्दर्भ में, एक ऐसी कार के लिए प्रयुक्त होता है, जो एक छोटा लोकोमोटिव होने के साथ ही, इसमे लोगों और सामान के लिए जगह भी होती है। ये लोकोमोटिव कार उपनगरीय मार्गों में अंतर्नगरीय रेल प्रणालियों में इस्तेमाल की जाती हैं। 2002 तक, 590 मिलियन यात्री करें दुनिया भर में थी (मोटे तौर पर एक कार प्रति ग्यारह लोग).

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यूनाइटेड किंगडम

वृहत् ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैण्ड का यूनाइटेड किंगडम (सामान्यतः यूनाइटेड किंगडम, यूके, बर्तानिया, UK, या ब्रिटेन के रूप में जाना जाने वाला) एक विकसित देश है जो महाद्वीपीय यूरोप के पश्चिमोत्तर तट पर स्थित है। यह एक द्वीपीय देश है, यह ब्रिटिश द्वीप समूह में फैला है जिसमें ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड का पूर्वोत्तर भाग और कई छोटे द्वीप शामिल हैं।उत्तरी आयरलैंड, UK का एकमात्र ऐसा हिस्सा है जहां एक स्थल सीमा अन्य राष्ट्र से लगती है और यहां आयरलैण्ड यूके का पड़ोसी देश है। इस देश की सीमा के अलावा, UK अटलांटिक महासागर, उत्तरी सागर, इंग्लिश चैनल और आयरिश सागर से घिरा हुआ है। सबसे बड़ा द्वीप, ग्रेट ब्रिटेन, चैनल सुरंग द्वारा फ़्रांस से जुड़ा हुआ है। यूनाइटेड किंगडम एक संवैधानिक राजशाही और एकात्मक राज्य है जिसमें चार देश शामिल हैं: इंग्लैंड, उत्तरी आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स. यह एक संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है जिसकी राजधानी लंदन में सरकार बैठती है, लेकिन इसमें तीन न्यागत राष्ट्रीय प्रशासन हैं, बेलफ़ास्ट, कार्डिफ़ और एडिनबर्ग, क्रमशः उत्तरी आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड की राजधानी.जर्सी और ग्वेर्नसे द्वीप समूह, जिन्हें सामूहिक रूप से चैनल द्वीप कहा जाता है और मैन द्वीप (आईल ऑफ मान), यू के की राजत्व निर्भरता हैं और UK का हिस्सा नहीं हैं। इसके इलावा, UK के चौदह समुद्रपार निर्भर क्षेत्र हैं, ब्रिटिश साम्राज्य, जो १९२२ में अपने चरम पर था, दुनिया के तकरीबन एक चौथाई क्षेत्रफ़ल को घेरता था और इतिहास का सबसे बड़ा साम्रज्य था। इसके पूर्व उपनिवेशों की भाषा, संस्कृति और कानूनी प्रणाली में ब्रिटिश प्रभाव अभी भी देखा जा सकता है। प्रतीकत्मक सकल घरेलू उत्पाद द्वारा दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था और क्रय शक्ति समानता के हिसाब से सातवाँ बड़ा देश होने के साथ ही, यूके एक विकसित देश है। यह दुनिया का पहला औद्योगिक देश था और 19वीं और 20वीं शताब्दियों के दौरान विश्व की अग्रणी शक्ति था, लेकिन दो विश्व युद्धों की आर्थिक लागत और 20 वीं सदी के उत्तरार्ध में साम्राज्य के पतन ने वैश्विक मामलों में उसकी अग्रणी भूमिका को कम कर दिया फिर भी यूके अपने सुदृढ़ आर्थिक, सांस्कृतिक, सैन्य, वैज्ञानिक और राजनीतिक प्रभाव के कारण एक प्रमुख शक्ति बना हुआ है। यह एक परमाणु शक्ति है और दुनिया में चौथी सर्वाधिक रक्षा खर्चा करने वाला देश है। यह यूरोपीय संघ का सदस्य है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट धारण करता है और राष्ट्र के राष्ट्रमंडल, जी8, OECD, नाटो और विश्व व्यापार संगठन का सदस्य है। .

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यूरिक अम्ल

यूरिक अम्ल का संरचना सूत्र यूरिक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है जो कार्बन, हाईड्रोजन, आक्सीजन और नाईट्रोजन तत्वों से बना होता है। इसका अणुसूत्र C5H4N4O3 है। यह एक विषमचक्रीय योगिक है जो कि शरीर को प्रोटीन से एमिनो अम्ल के रूप में प्राप्त होता है। प्रोटीनों से प्राप्त ऐमिनो अम्लों को चार प्रमुख वर्गों में विभक्त किया गया है - 1.

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यूरेनियम

यूरेनियम आवर्त सारणी की एक अंतर्वर्ती श्रेणी, ऐक्टिनाइड श्रेणी (actinide series), का तृतीय तत्व है। इस श्रेणी में आंतरिक इलेक्ट्रॉनीय परिकक्षा (5 परिकक्षा) के इलेक्ट्रॉन स्थान लेते हैं। प्रकृति में पाए गए तत्वों में यह सबसे भारी तत्व है। कुछ समय पहले तक इस तत्व को छठे अंतर्वर्ती समूह का अंतिम तत्व माना जाता था। .

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रत्न

रत्न प्रकृति प्रदत्त एक मूल्यवान निधि है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न सुवासित, चित्ताकर्षक, चिरस्थायीव दुर्लभ होने तथा अपने अद्भुत प्रभाव के कारण भी मनुष्य को अपने मोहपाश में बाँधे हुए हैं। रत्न आभूषणों के रूप में शरीर की शोभा तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। रत्नों में चिरस्थायित्व का ऐसा गुण है कि ये ऋतुओं के परिवर्तन के कारण तथा समय-समय पर प्रकृति के भीषण उथल-पुथल से तहस-नहस होने के कारण भी प्रभावित नहीं होते। .

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रसायन विज्ञान का इतिहास

रसायन विज्ञान का इतिहास बहुत पुराना है। १००० ईसापूर्व में प्राचीन सभ्यताओं के लोग ऐसी प्राविधियों काo.

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रसायन विज्ञान की समयरेखा

जॉन डाल्टन के "अ न्यू सिस्टम ऑफ केमिकल फिलॉसफी" ले लिया गया चित्र - यह परमाणु सिद्धान्त की प्रथम आधुनिक व्याख्या थी इस समयरेखा में उन महत्वपूर्ण कृतियों, खोजों, विचारों एवं प्रयोगों को सूचीबद्ध किया गया है जिनके कारण पदार्थों की संरचना एवं उनके परस्पर क्रियाओं से सम्बन्धित मानव के ज्ञान में पर्याप्त वृद्धि हुई तथा जिसे आधुनिक विज्ञान में "रसायन विज्ञान" के नाम से जाना जाता है। यद्यपि रसायन विज्ञान की जड़ें ज्ञात इतिहास के आरम्भ काल तक पहुँची हुई हैं तथापि प्राय: आधुनिक रसायन के इतिहास का आरम्भ आयरलैण्ड के रसायनशास्त्री रॉबर्ट बॉयल से माना जाता है। .

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रासायनिक तत्व

रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्व (या केवल तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं। सन २००७ तक कुल ११७ तत्व खोजे या पाये जा चुके हैं जिसमें से ९४ तत्व धरती पर प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्व समय-समय पर खोजे जाते रहे हैं। .

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रासायनिक तत्वों की सूची

नीचे परमाणु क्रमांक के बढते हुए क्रम में रासायनिक तत्वों की सूची दी गयी है। अलग-अलग प्रकार के तत्वों को अलग-अलग रंगों से चिन्हित किया गया है। इस सूची में प्रत्येक तत्व का नाम, उसका रासायनिक प्रतीक, आवर्त सारणी में उसका समूह एवं पिरियड, रासायनिक श्रेणी, तथा परमाणु द्रब्यमान (सबसे स्थायी समस्थानिक का) दिये गये हैं। .

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रासायनिक प्रतीक

रासायनिक तत्वों के नामों के संक्षिप्त रूपों को रासायनिक प्रतीक कहते हैं। उदाहरण के लिये, नीचे एक रासायनिक अभिक्रिया को प्रतीकात्मक रूप में अभिव्यक्त किया गया है। इसमें उ (H) उदजन (हाइड्रोजन) के लिये एवं जा (O) जारक (आक्सीजन) के लिये प्रयुक्त हुई है। तत्वों के विशिष्ट समस्थानिक दिखाने, उनके परमाणु भार दिखाने एवं उनके आयनन की अवस्था या आक्सीकरण अवस्था आदि दिखाने के लिये रासायनिक संकेतों के साथ 'उपलिपि' (सबस्क्रिप्ट) एवं 'अधिकलिपि' (सुपरस्क्रिप्ट) भी जोड़े जाते हैं। .

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रासायनिक साम्य

जब अग्रक्रिया और पश्चक्रिया की गति समान हो जाती है तो साम्य की स्थिति होती है।'''नीला''': अग्रक्रिया '''लाल''': पश्चक्रियाक्षैतिज अक्ष पर समय तथा उर्ध्व अक्ष पर अभिक्रिया का वेग है। किसी रासायनिक अभिक्रिया के सन्दर्भ में रासायनिक साम्य (chemical equilibrium) उस अवस्था को कहते हैं जिसमें समय के साथ अभिकारकों एवं उत्पादों के सांद्रण में कोई परिवर्तन नहीं होता। प्रायः यह अवस्था तब आती है जब अग्र क्रिया (forward reaction) की गति पश्चक्रिया (reverse reaction) की गति के समान हो जाती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि अग्रक्रिया एवं पश्च क्रिया के वेग इस अवस्था में शून्य नहीं होते बल्कि समान होते हैं। यदि उच्च ताप (५०० डिग्री सेल्सियस) पर किसी बंद प्रक्रिया पात्र में हाइड्रोजेन तथा आयोडीन को आण्विक अनुपात में साथ साथ रखा जाए, तो निम्नांकित क्रिया प्रारंभ होती है: इस क्रिया में हाइड्रोजन तथा आयोडीन के संयोग से हाइड्रोजेन आयोडाइड बनता है तथा समय के साथ हाइड्रोजेन आयोडाइड की मात्रा में वृद्धि होती है। इस क्रिया के विपरीत, यदि शुद्ध हाइड्रोजेन आयोडाइड गैस को ५०० डिग्री सेल्सियस तक क्रियापात्र में गरम किया जाए, तो इस यौगिक का विपरीत क्रिया के द्वारा विघटन होता है, जिससे हाइड्रोजन आयोडाइड का हाइड्रोजन तथा आयोडीन में विघटन हो जाता है तथा इन उत्पादों के अनुपात में समय के साथ साथ वृद्धि होती है। यह क्रिया निम्नांकित रूप में होती हैं: उपर्युक्त दोनों ही क्रियाओं में क्रिया की गति क्रमश: मंद होती जाती है और अंत में पूर्णत: स्थिर हो जाती है। रासायनिक क्रिया की इस स्थिति को रासायनिक साम्यावस्था कहते हैं। क्रिया के साम्यावस्था मिश्रण में उपर्युक्त पदार्थों की आपेक्षिक मात्रा एक ही रहती है, चाहे यह क्रिया हाइड्रोजेन और आयोडीन के संयोग से हाइड्रोजेन आयोडाइड बनाने की हो, अथवा हाइड्रोजेन आयोडाइड के विघटन से हाइड्रोजन तथा आयोडीन में पृथक्करण हो, अथवा तीनों संघटकों के साम्यावस्था संतुलन मिश्रण की प्रक्रिया हो, जिसमें हाइड्रोजेन तथा आयेडीन परमाणुओं की समान संख्या उपस्थित रहती है। इसके अतिरिक्त प्रयोगशाला के परिणामों में यह पाया जाता है कि चाहे हाइड्रोजेन तथा आयोडीन के परमाणुओं की समस्त संख्या समान हो अथवा नहीं, दोनों ही दशाओं में समान ताप पर तैयार किए हुए साम्यावस्था मिश्रणों की सामयावस्था सांद्रता, अथवा साम्यावस्था दबाव के निम्नांकित अनुपातों का मान, स्थिर रहता है.

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रासायनिक सूत्र

रासायनिक सूत्र (chemical formula) किसी रासायनिक यौगिक को इस प्रकार निरूपित करता है जिससे पता चलता है कि वह यौगिक किन-किन तत्वों के कितने-कितने परमाणुओं से मिलकर बना है। सामान्य प्रयोग में प्रायः अणुसूत्र (molecular formula) के लिये भी 'रासायनिक सूत्र' का ही प्रयोग कर दिया जाता है। उदाहरण: मिथेन का अणुसूत्र प्रा.उ4 (CH4) है जो इंगित करता है कि मिथेन का अणु कार्बन एवं हाइड्रोजन के परमाणुओं से मिलकर बना है तथा मिथेन के एक अणु में कार्बन का एक परमाणु व हाइड्रोजन के चार परमाणु होते हैं। परन्तु इस सूत्र से यह पता नहीं चलता कि कार्बन का एक परमाणु व हाइड्रोजन के ये चार परमाणु किस प्रकार व्यवस्थित हैं। अर्थात ये एक ही समतल में हैं या त्रिबिम में हैं; इनके बंधों के बीच कितना कोण है; बन्धों की लम्बाई कितनी है, आदि का अणुसूत्र से कुछ भी ज्ञान नहीं होता। कई प्रकार के रासायनिक सूत्र उपयोग किये जाते हैं जिनकी अलग-अलग उपयोगिता है और अलग-अलग जटिलता भी। बढ़ते हुए जटिलता के क्रम में ये हैं - आनुभविक सूत्र, अणुसूत्र, संरचना सूत्र। .

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रासायनिक इंजीनियरी का इतिहास

रासायनिक इंजीनियरी की विधा अभी एक स वर्ष से कुछ अधिक पुरानी हो गयी है। इस विधा का विकास उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में यांत्रिक इंजीनियरी से हुआ। औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व काल में औद्योगिक रसायनों का निर्माण "बैच प्रक्रिया" (batch processing) के द्वारा होता था। बैच प्रक्रिया भोजन बनाने (कुकिंग) जैसी प्रक्रिया है - कुछ व्यक्ति एक पात्र में कुछ सामग्री मिलाते हैं, मिश्रण को गरम करते या दाबित करते हैं, इसका परीक्षण करते हैं और इसका शुद्धीकरण करते हैं तालि बिक्री-योग्य उत्पाद बन जाये। आज भी कुछ मूल्यवान रसायनों का निर्माण बैच प्रक्रिया द्वारा किया जाता है किन्तु अब अधिकांश औद्योगिक रसायनों का निर्माण सतत प्रक्रिया (continuous process) द्वारा ही किया जाता है क्योंकि बैच प्रक्रिया धीमी एवं कम दक्ष प्रक्रिया है। .

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रोहिणी तारा

रोहिणी और सूरज के आकारों और रंगों की तुलना रोहिणी या ऐल्डॅबरैन, जिसे बायर नामांकन में ऐल्फ़ा टौ (α Tau) कहते हैं, पृथ्वी से ६५ प्रकाश-वर्ष दूर वृष तारामंडल में स्थित एक नारंगी दानव तारा है। इसका पृथ्वी से देखा गया औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) ०.८७ है और यह अपने तारामंडल का सब से रोशन तारा है। पृथ्वी से भी दिखने वाले सारे तारों में से इसकी चमक सब से अधिक रोशन तारों में गिनी जाती है। संस्कृत में रोहिणी का अर्थ "लाल हिरण" होता है जो इस तारे की लालिमा की ओर इशारा है। .

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रीनियम

रेनियम (Rhenium; संकेत: Re) एक रासायनिक तत्व है। इसका परमाणुभार १८६.३१ तथा परमाणु संख्या ७५ है। इसका आविष्कार १९२५ ई. में इडा तथा वाल्टर नौडाक (Ida and Walter Noddock) द्वारा हुआ था। इसके स्थायी समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या १८५ है और अन्य रेडियोऐक्टिव समस्थानिक १८२, १८३, १८४, १८६, १८७ और १८८ द्रव्यमान संख्याओं के प्राप्त हैं। यह तत्व अनेक खनिजों में बहुत विस्तृत पाया जाता है, पर बड़ी अल्प मात्रा में ही। खनिजों में यह सल्फाइड के रूप में रहता है। इसके ऑक्साइड वाष्पशील होते हैं, अत: खनिजों के प्रद्रावण पर यह अवशेष में, या चिमनी धूल में, सांद्रित रहता है। इसका निष्कर्षण पोटैशियम पररेनेट के रूप में होता है, जो जल में अल्प विलेय है। लवण के पुन: क्रिस्टलीकरण से यह शुद्ध रूप में प्राप्त होता है। हाइड्रोजन के वातावरण में पोटैशियम या अमोनियम पररेनेट के अपचयन से धूसर, या काले चूर्ण के रूप में धातु प्राप्त होती है। ऊँचे ताप पर यह धातु स्थूल रूप में प्राप्त होती है। धातु का घनत्व २१ और गलनांक ३,१४० डिग्री सेल्सियस है। इसे १५० डिग्री सेल्सियस से ऊपर गरम करने से ऑक्साइड बनता है। इसके अनेक ऑक्साइड बनते हैं। इसका क्लोराइड, ऑक्सीक्लोराइड, सल्फाइड और फॉस्फाइड भी बनता है। यह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में अविलेय है, पर नाइट्रिक अम्ल में विलेय है। इसकी अनेक मिश्रधातुएँ बनी हैं। श्रेणी:रीनियम श्रेणी:रासायनिक तत्व श्रेणी:संक्रमण धातु श्रेणी:उच्चतापसह धातुएँ.

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लाल दानव तारा

एक लाल दानव तारे और सूरज के अंदरूनी ढाँचे की तुलना खगोलशास्त्र में लाल दानव तारा (red giant star, रॅड जायंट स्टार) ऐसे चमकीले दानव तारे को बोलते हैं जो हमारे सूरज के द्रव्यमान का ०.५ से १० गुना द्रव्यमान (मास) रखता हो और अपने जीवनक्रम में आगे की श्रेणी का हो (यानि बूढ़ा हो रहा हो)। ऐसे तारों का बाहरी वायुमंडल फूल कर पतला हो जाता है, जिस से उस का आकार भीमकाय और उसका सतही तापमान ५,००० कैल्विन या उस से भी कम हो जाता है। ऐसे तारों का रंग पीले-नारंगी से गहरे लाल के बीच का होता है। इनकी श्रेणी आम तौर पर K या M होती है, लेकिन S भी हो सकती है। कार्बन तारे (जिनमें ऑक्सीजन की तुलना में कार्बन अधिक होता है) भी ज़्यादातर लाल दानव ही होते हैं। प्रसिद्ध लाल दानवों में रोहिणी, स्वाति तारा और गेक्रक्स शामिल हैं। लाल दानव तारों से भी बड़े लाल महादानव तारे होते हैं, जिनमें ज्येष्ठा और आर्द्रा गिने जाते हैं। आज से अरबों वर्षों बाद हमारा सूरज भी एक लाल दानव बन जाएगा। .

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लाल महादानव तारा

स्वाती (आर्कत्युरस) भी दिखाया गया है लाल महादानव तारे वह महादानव तारे होते हैं जो 'K' या 'M' श्रेणी के तारे हों। यह ब्रह्माण्ड में व्यास (डायामीटर) के अनुसार सब से बड़े तारे होते हैं, हालांकि द्रव्यमान के अनुसार नहीं। आद्रा (बीटलजूस) ऐसे तारे का उदहारण है। जिन तारों का शुरू में द्रव्यमान 10 सौर द्रव्यमान से अधिक हो वह अपना हाइड्रोजन इंधन ख़त्म करने के बाद हीलियम का नाभिकीय संलयन (न्यूक्लीयर फ़्युज़न) करना आरम्भ कर देते हैं। इस चरण में वह लाल महादानव बन जाते हैं। इन तारों का सतही तापमान काफ़ी कम होता है (3500-4500 कैल्विन) और इनका आकार बहुत ही बड़ा हो जाता है। ज़्यादातर लाल दानवों का व्यास सूरज से 200-800 गुना अधिक होता है। इनका जीवनकाल लगभग 10 करोड़ वर्ष का होता है और ऐसे तारे अक्सर झुंडों में मिलते हैं। .

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लघु परिपथ

तूफान के दौरान पेड़ की शाखाओं द्वारा हुआ शॉर्ट सर्किट का दृष्य वैद्युत परिपथ में लघु परिपथ (शॉर्ट सर्किट) (कभी-कभी संक्षेप में शॉर्ट भी कहते है) उसे कहते हैं जो विद्युत्प्रवाह को उस मार्ग से जाने की अनुमति देता है जिसमे प्रतिबाधा शून्य या बहुत कम होती है। "खुला सर्किट" (ओपन सर्किट), लघु परिपथ का वैद्युतिक विलोम है जिसमें विद्युत परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओं के बीच प्रतिबाधा का मान अनन्त होता है। .

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लवण

लवण (Salt) वह यौगिक है जो किसी अम्ल के एक, या अधिक हाइड्रोजन परमाणु को किसी क्षारक के एक, या अधिक धनायन से प्रतिस्थापित करने पर बनता है। खानेवाला नमक एक प्रमुख लवण है। रसायनत: यह नमक सोडियम और क्लोरीन का सोडियम क्लोराइड नामक यौगिक है। पोटैशियम नाइट्रेट एक दूसरा लवण है, जो नाइट्रिक अम्ल के हाइड्रोजन आयन को पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के पोटैशियम आयन (धनायन) द्वारा प्रतिस्थापित करने से बनता है। नाइट्रिक अम्ल के अणु में केवल एक हाइड्रोजन होता है, जो पोटैशियम से प्रतिस्थापित होता है। सल्फ्यूरिक अम्ल में प्रतिस्थापनीय हाइड्रोजन की संख्या दो है। अत: सोडियम द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल के दोनों हाइड्रोजन के प्रतिस्थापित होने पर सोडियम सल्फेट नामक लवण प्राप्त होता है। दोनों ही यौगिक लवण कहलाते हैं। पहला नॉर्मल (normal) लवण और दूसरा अम्लीय लवण कहलाता है। विविध अम्लों और विविध क्षारों के सहयोग से अनेक लवण बने हैं। .

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लौह-हाइड्रोजन प्रतिरोध

लौह-हाइड्रोजन प्रतिरोध लौह-हाइड्रोजन प्रतिरोध (iron-hydrogen resistor) एक प्रतिरोध है जिसका मान ताप बढने पर बढ़ता है। यह लोहे का एक तार से निर्मित होता है जो हाइड्रोजन से भरे कांच के बल्ब में फिट किया होता है। इसका ताप गुणांक धनात्मक होता है, जिसका अर्थ है कि ताप बढ़ने पर प्रतिरोध भी बढ़ता है। अपने इस गुण के कारण इसका उपयोग पॉवर सप्लाई के वोल्टेज को अपरिवर्ती बनाये रखने के लिये (stabilizing) किया जाता है। प्रायः इसे बैरेट्टर (barretter) भी कहते हैं क्योंकि यह बैरेटर जैसा दिखता है जो रेडियो संकेतों के डिटेक्शन में काम आता है। आधुनिक काल में प्रयुक्त धारा स्रोत इसकी सन्तान है। श्रेणी:वैद्युत युक्ति.

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शनि (ग्रह)

शनि (Saturn), सूर्य से छठां ग्रह है तथा बृहस्पति के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह हैं। औसत व्यास में पृथ्वी से नौ गुना बड़ा शनि एक गैस दानव है। जबकि इसका औसत घनत्व पृथ्वी का एक आठवां है, अपने बड़े आयतन के साथ यह पृथ्वी से 95 गुने से भी थोड़ा बड़ा है। इसका खगोलिय चिन्ह ħ है। शनि का आंतरिक ढांचा संभवतया, लोहा, निकल और चट्टानों (सिलिकॉन और ऑक्सीजन यौगिक) के एक कोर से बना है, जो धातु हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा है, तरल हाइड्रोजन और तरल हीलियम की एक मध्यवर्ती परत तथा एक बाह्य गैसीय परत है। ग्रह अपने ऊपरी वायुमंडल के अमोनिया क्रिस्टल के कारण एक हल्का पीला रंग दर्शाता है। माना गया है धातु हाइड्रोजन परत के भीतर की विद्युतीय धारा, शनि के ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को उभार देती है, जो पृथ्वी की तुलना में कमजोर है और बृहस्पति की एक-बीसवीं शक्ति के करीब है। बाह्य वायुमंडल आम तौर पर नीरस और स्पष्टता में कमी है, हालांकि दिर्घायु आकृतियां दिखाई दे सकती है। शनि पर हवा की गति, 1800 किमी/घंटा (1100 मील) तक पहुंच सकती है, जो बृहस्पति पर की तुलना में तेज, पर उतनी तेज नहीं जितनी वह नेप्च्यून पर है। शनि की एक विशिष्ट वलय प्रणाली है जो नौ सतत मुख्य छल्लों और तीन असतत चाप से मिलकर बनी हैं, ज्यादातर चट्टानी मलबे व धूल की छोटी राशि के साथ बर्फ के कणों की बनी हुई है। बासठ चन्द्रमा ग्रह की परिक्रमा करते है; तिरेपन आधिकारिक तौर पर नामित हैं। इनमें छल्लों के भीतर के सैकड़ों " छोटे चंद्रमा" शामिल नहीं है। टाइटन, शनि का सबसे बड़ा और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह बुध ग्रह से बड़ा है और एक बड़े वायुमंडल को संजोकर रखने वाला सौरमंडल का एकमात्र चंद्रमा है। .

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शेवरॉन कॉर्पोरेशन

"बिग ऑइल" नाम से मशहूर प्रमुख ऊर्जा कंपनियों के चार्ट, नवीनतम प्रकाशित राजस्व के अनुसार अनुक्रमित कैलिफोर्निया के सैन रेमोन स्थित शेवरॉन मुख्यालय परिसर का प्रवेश द्वार विशाल शेवरॉन मुख्यालय परिसर का एक दृश्य शेवरॉन के पूर्व ट्रेडमार्क की रक्षा के शेवरॉन के "स्टेंडर्ड" नामक ब्रांड नाम से मशहूर 16 शेवरॉन के स्टेशनों में से एक; यह लास वेगास, नेवादा में स्थित है शेवरॉन कॉरपोरेशन एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय ऊर्जा निगम है। इसका मुख्यालय कैलिफोर्निया के सैन रमोन में है और यह 180 से अधिक देशों में सक्रिय है। यह तेल, गैस और भूतापीय ऊर्जा उद्योगों के प्रत्येक पहलू में कार्यरत है जिसमें अन्वेषण और उत्पादन; शोधन, विपणन और परिवहन; रसायन निर्माण एवं बिक्री; और शक्ति उत्पादन भी शामिल है। शेवरॉन दुनिया की छह "सुपरमेजर (अति विशाल)" तेल कंपनियों में से एक है। पिछले पांच साल से शेवरॉन को लगातार फॉर्च्यून 500 द्वारा अमेरिका की 5 सबसे बड़ी कंपनियों में से एक के रूप में श्रेणित किया जाता रहा है। .

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सतत वर्णक्रम

भौतिकी में सतत वर्णक्रम (continuous spectrum) ऊर्जा या तरंगदैर्घ्य जैसी किसी भौतिक राशि के सम्भव मूल्यों का ऐसा समुच्चय होता है जो वास्तविक संख्याओं का एक अंतराल हो। इसके विपरीत असतत वर्णक्रम (discrete spectrum) होता है जिसमें राशि का मूल्य किसी असतत समुच्चय का ही हो सकता है, यानि मूल्यों के बीच कुछ रिक्त स्थान होता है। सतत वर्णक्रम का एक बड़ा उदाहरण उत्सर्जन वर्णक्रम है, जिसमें उत्तेजित हाइड्रोजन परमाणुओं द्वारा उत्पन्न प्रकाश का तरंगदैर्घ्य (वेवलेन्थ) होता है। .

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सल्फ़ोनिक अम्ल

सल्फ़ोनिक अम्ल (sulfonic acid) कार्बन-सल्फर यौगिकों के समूह का एक सदस्य है जिसका सामान्य सूत्र R−S(.

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सायनेमाइड

सायनेमाइड (Cyanamide) एक कार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र CN2H2 है। .

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संधारणीय ऊर्जा

संधारणीय ऊर्जा (सस्टेनेबल इनर्जी), ऊर्जा के उस प्रावधान को कहते हैं जो भावी पीढ़ियों की ऊर्जा आवश्यकताओं से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करती है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों में अक्सर सभी नवीकरणीय स्रोत शामिल होते हैं, जैसे वनस्पति पदार्थ, सौर शक्ति, पवन शक्ति, भू-ऊष्मा शक्ति, तरंग शक्ति और ज्वार द्वारा उत्पन्न शक्ति.

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स्टर्लिंग इंजन

अल्फा प्रकार का स्टर्लिंग इंजन। एक विस्तारित सिलेंडर (लाल) को एक उच्च तापमान पर बनाए रखा गया है जबकि संपीड़न सिलेंडर (नीला) ठंडा है। दो सिलेंडरों के बीच पैसेज में पुनर्योजी शामिल हैं। स्टर्लिंग इंजिन एक ऐसा उष्मीय इंजिन है जो हवा, गैस या किसी तरल पदार्थ के भिन्न-भिन्न तापमानों में चक्रीय दबावों एवं फैलाव से इस तरह कार्यान्वित होती है कि वहां पर शुद्ध रूप में उष्मीय उर्जा का बदलाव यांत्रिक क्रिया में हो जाता है। यह इंजन एक भाप इंजन की तरह होता है जिसमें इंजन दीवार के माध्यम से पूर्ण ताप को स्थानांतरित किया जाता है। इसे परम्परागत रूप से आंतरिक दहन इंजन के विपरीत एक बाह्य दहन इंजन के रूप में जाना जाता है जहां कार्यरत तरल की राशी के भीतर ईंधन के दहन के द्वारा ताप इनपुट होता है। भाप इंजन द्वारा कार्यरत तरल के रूप में तरल और गैस, दोनों पदार्थों में पानी के इस्तेमाल के विपरीत स्टर्लिंग इंजन हवा या हीलियम जैसे गैसीय तरल की निश्चित मात्रा को स्थायी रूप से संलग्न करता है। जैसा कि सभी ताप इंजन में होता है, सामान्य चक्र में शामिल है ठंडी गैस का सम्पीड़न, गैस को गर्म करना, गर्म गैस का विस्तार करना और अंत में चक्र के दोहराव से पहले गैस को ठंडा करना। इसे भाप इंजन के प्रतिद्वंद्वी के रूप में मूलतः 1816 में एक औद्योगिक मुख्य चालक के रूप में विचारित किया गया था, इसका व्यावहारिक उपयोग एक बड़े पैमाने पर एक सदी से भी अधिक तक न्यून-बिजली घरेलू अनुप्रयोगों के लिए सीमित था। स्टर्लिंग इंजन को अपनी उच्च कार्यक्षमता (40% तक), निर्बाध संचालन और उस सुगमता के लिए जाना जाता है जिससे वह लगभग कोई भी ताप स्रोत का इस्तेमाल कर सकता है। वैकल्पिक और अक्षय ऊर्जा स्रोतों के साथ यह संगतता, पारम्परिक ईंधन की कीमत बढ़ने और जलवायु परिवर्तन और तेल के सीमित उत्पादन के मद्देनज़र तेज़ी से महत्वपूर्ण बन गई है। वर्तमान में यह इंजन, सूक्ष्म संयुक्त ताप और शक्ति (CHP) इकाई के मुख्य घटक के रूप में रूचि को बढ़ा रहा है, जिसमें यह एक तुलनीय भाप इंजन के मुकाबले अधिक कुशल और सुरक्षित है। अंतरिक्ष अनुसंधान में उपयोग के लिए स्टर्लिंग इंजन पर (विशेषकर मुक्त पिस्टन प्रकार) नासा द्वारा भी विचार किया जा रहा है। .

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स्टेरॉल

स्टेरॉल रासायनिक संरचना सांद्रव या स्टेरॉल कार्बनिक अणुओं की महत्त्वपूर्ण श्रेणी होते हैं। ये प्राकृतिक रूप से ये पेड़ओं, पशुओं एवं कवकओं में मिलते हैं। इनमें सबसे व्यापक रूप कोलेस्ट्रॉल है। .

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स्थलीय ग्रह

सीरीस (बौना ग्रह)। स्थलीय ग्रह या चट्टानी ग्रह मुख्य रूप से सिलिकेट शैल अथवा धातुओ से बना हुआ ग्रह होता है। हमारे सौर मण्डल में स्थलीय ग्रह, सूर्य के सबसे निकटतम, आंतरिक ग्रह है। स्थलीय ग्रह अपनी ठोस सतह की वजह से गैस दानवों से काफी अलग होते हैं, जो कि मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलियम और विभिन्न प्रावस्थाओ में मौजूद पानी के मिश्रण से बने होते हैं। .

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स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री

Solar flare photographed in the light of ionized helium, using the extreme-ultraviolet spectroheliograph of the U.S. Naval Research Laboratory. स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री या एकवर्ण सूर्यचित्रक (स्पेक्ट्रोहीलियोग्राफ़) वह यंत्र है जिसके द्वारा सूर्य के समूचे भाग या किसी एक भाग की विशेषताओं का चित्रांकन किसी भी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश द्वारा किया जा सकता है। इसका उपयोग खगोलिकी में किया जाता है। यह वास्तव में एक रश्मिचित्रांकक (स्पेक्ट्रोग्राफ़) है जो एक विशेष तरंगदैर्घ्य के विकिरण को (उदाहरणत: एक फ्राउनहोफ़र रेखा को) अलग कर लेता है और इस प्रकार सूर्य के समूचे भाग की जाँच इस रेखा के प्रकाश में करने की क्षमता प्रदान करता है। एक साधारण स्पेक्ट्रोग्राफ़ की कल्पना कीजिए जिसके अंतिम भाग में, जहाँ वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का फोटोग्राफ़ अंकित किया जाता है, एक दूसरा सँकरा छिद्र लगा हो। इस छिद्र के द्वारा कोई विशिष्ट वर्णक्रम रेखा (या उसका एक भाग) अलग हो सकता है। यह छिद्र इस प्रकार सारे विकिरण का वही भाग बाहर आने देता है जो एक विशेष तरंगदैर्घ्य का है और उस छिद्र पर पड़ रहा है। यदि फोटो खींचनेवाली पट्टिका इस दूसरे छिद्र के साथ सटाकर रख दी जाए तो इस छिद्र से होकर बाहर आनेवाले विकिरण का फोटो लिया जा सकता है। अब यदि सारा यंत्र धीरे धीरे बराबर, किंतु नियंत्रित गति से, इस प्रकार चलाया जाए कि यंत्र का अक्ष सूर्य के समूचे प्रतिबिंब को पार कर सके और छिद्र की सभी अनुगामी स्थितियाँ एक दूसरे के समांतर रह सकें, तो पट्टिका पर एक पूरा प्रतिबिंब बनेगा जो एकवर्णीय कहा जा सकता है। यदि प्रथम छिद्र सूर्यप्रतिबिंब के व्यास से बड़ा हो तो फोटो की पट्टिका पर बना प्रतिबिंब वास्तव में सूर्य के समूचे भाग में चित्र होगा। यह प्रथम छिद्र द्वारा लिए गए, रेखा के समान सँकरे, अनेक चित्रों का एकीकरण होगा। .

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सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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सेलुलोस

सेलुलोस (Cellulose) एक कार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र है। यह एक बहुशर्करा (पॉलीसैक्कराइड) है जिसमें एक ही प्रकार का अणु लगातार जुड़ने से एक हजारों अणुओं वाला पॉलीमर बन जाता है। बहुत सारे हरे पौधों की कोशिका भित्तियाँ सेलुलोस की ही बनी होतीं हैं और जीव-जगत में इसका बहुत महत्व है। कपास के रेशों का ९०% हिस्सा सेलुलोस होता है। .

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सेलोफेन

छपा हुआ और पारदर्शी सेलोफेन सेलोफेन या सिलोफ़न (Cellophane) पुनर्जीवित सेलूलोज़ से बना एक पतला और पारदर्शी पत्र है। हवा, तेल, ग्रीस और जीवाणुओं के विरुद्ध इसकी निम्न पारगम्यता इसे खाद्य संवेष्ठन (फूड पैकेजिंग) के लिए एक उपयुक्त सामग्री बनाती है। सेलोफेन कई देशों में इनोविया फिल्म्स लिमिटेड, कम्ब्रिया, ब्रिटेन का एक पंजीकृत व्यापार चिह्न है। .

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से्फ्रोल

से्फ्रोल (C10H10O2) एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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सोडियम

सोडियम (Sodium; संकेत, Na) एक रासायनिक तत्त्व है। यह आवर्त सारणी के प्रथम मुख्य समूह का दूसरा तत्व है। इस समूह में में धातुगण विद्यमान हैं। इसके एक स्थिर समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या २३) और चार रेडियोसक्रिय समस्थानिक (द्रव्यमन संख्या २१, २२, २४, २४) ज्ञात हैं। .

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सीटस तारामंडल

सीटस तारामंडल हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा खींची गयी माएरा तारे की तस्वीर सीटस (अंग्रेज़ी: Cetus) एक तारामंडल है। सीटस का अर्थ व्हेल मछली होता है। .

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सीरियम

सीरियम (Cerium; संकेत: Ce) एक रासायनिक तत्त्व है। यह विरल मृदा तत्त्व (Rare Earths) का एक प्रमुख सदस्य है। इसका; परमाणु संख्या ५८ तथा परमाणु भार १४०.१३ है। सीरियम के क्लोराइड को सोडियम अथवा मैगनीशियम के साथ गरम करने अथवा शुद्ध क्लोराइड को पौटैशियम और सोडियम क्लोराइड के साथ मिलाकर विद्युत अपघटन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। .

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हाबर प्रक्रम

फ्रिट्ज हाबर, 1918 हाबर प्रक्रम (Haber process) या हाबर-बॉश प्रक्रम (Haber–Bosch process) नाइट्रोजन स्थिरीकरण का एक कृत्रिम प्रक्रम है। इसके साथ ही वर्तमान समय में अमोनिया के औद्योगिक उत्पादन का मुख्य विधि है। Max Appl "Ammonia" in Ullmann's Encyclopedia of Industrial Chemistry 2006 Wiley-VCH, Weinheim.

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हाइड्राज़िन

हाइड्रेज़ीन (Hydrazine / H2N-NH2) अकार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र N2H4 है। यह रंगहीन, ज्वलनशील द्रव है जिसमें अमोनिया जैसी गंध आती है। इसे डायाजेन (diazane) भी कहते हैं। यह अत्यन्त विषैली तथा भयानक अस्थिर है इसलिये इसे इसे विलयन में ही रखा जाता है। हाइड्रेजीन मुख्यतः पॉलीमर फोम के निर्माण में 'फोमिंग एजेंट' के रूप में प्रयुक्त होती है। इसके अलावा यह बहुलीकारक उत्प्रेरक के उपयोग के पूर्व उपयोग की जाती है। औषधि निर्माण में भी इसका उपयोग है। यह रॉकेट के ईंधन में प्रयुक्त होती है। यह नाभिकीय और गैर-नाभिकीय विद्युत शक्ति संयंत्रों के वाष्प चक्र (steam cycles) में घुलित आक्सीजन की सांद्रता को कम करने के लिये प्रयुक्त होती है ताकि संक्षारण (corrosion) को कम किया जा सके। .

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हाइड्राइड

रसायन शास्त्र में हाइड्राइड (Hydride) हाइड्रोजन तत्व का ऋणायन (ऋणात्मक/निगेटिव आवेश वाला आयन) होता है, जिसे रासायनिक सूत्र H− द्वारा दर्शाया जाता है। यह अक्सर धातु तत्वों के साथ बने हाइड्रोजन के रासायनिक यौगिकों (क्म्पाउंड) में पाए जाते है, क्योंकि वह हाइड्रोजन से अधिक विद्युत-घनात्मक (इलेक्ट्रोपोज़िटिव) होते हैं और उनके साथ यौगिक बनाते हुए हाइड्रोजन एक इलेक्ट्रोन ले लेता है और ऋणात्मक आवेश (चार्ज) का आयन बन जाता है। इसका एक उदाहरन बोरोन हाइड्राइड है। .

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हाइड्रो़जन सल्फाइड

यह हाइड्रोजन और सल्फर के रासायनिक संयोग से बना सह संयोजी बंधन वाला अकार्बनिक योगिक है। श्रेणी:आधार श्रेणी:अकार्बनिक यौगिक.

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हाइड्रोजन परमाणु

हाइड्रोजन परमाणु रासायनिक तत्व हाइड्रोजन का एक परमाणु है। विद्युत तटस्थ परमाणु में एक सकारात्मक चार्ज प्रोटॉन होता है और एक एकल नकारात्मक आरोप लगाया इलेक्ट्रॉन जो कूल्ब बल द्वारा नाभिक के लिए बाध्य है। परमाणु हाइड्रोजन ब्रह्मांड के मूलभूत (बेरोनिक) द्रव्यमान का लगभग 75% है। पृथ्वी पर रोज़मर्रा की जिंदगी में, पृथक हाइड्रोजन परमाणु (आमतौर पर "परमाणु हाइड्रोजन" या अधिक सटीक, "मोनैटॉमिक हाइड्रोजन" कहा जाता है) अत्यंत दुर्लभ हैं। इसके बजाय, हाइड्रोजन यौगिकों में अन्य परमाणुओं के साथ संयोजित होता है, या स्वयं के साथ सामान्य (डायटोमिक) हाइड्रोजन गैस, एच 2 का निर्माण करता है। साधारण अंग्रेज़ी उपयोग में "परमाणु हाइड्रोजन" और "हाइड्रोजन परमाणु" अतिव्यापी है, फिर भी अलग, अर्थ। उदाहरण के लिए, एक पानी के अणु में दो हाइड्रोजन परमाणु होते हैं, लेकिन इसमें परमाणु हाइड्रोजन नहीं होता है (जो पृथक हाइड्रोजन परमाणुओं को संदर्भित करेगा)। हाइड्रोजन परमाणु की सैद्धांतिक समझ विकसित करने के प्रयास क्वांटम यांत्रिकी के इतिहास के लिए महत्वपूर्ण हैं। .

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हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी

हाइड्रोजन के उत्पादन एवं उपयोग से सम्बन्धित समस्त तकनीकें हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत आतीं हैं। हाइड्रोजन प्रौद्योगिकी का अनेकानेक क्षेत्रों में उपयोग हो रहा है या हो सकता है। कुछ हाइद्रोजन प्रौद्योगिकियाँ कार्बन न्यूट्रल हैं तथा इस कारण जलवायु परिवर्तन को रोकने तथा भविष्य की हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं। .

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हाइड्रोजन पेरॉक्साइड

'हाइड्रोजन परॉक्साइड (H2O2) एक बहुत हल्का नीला, पानी से जरा सा अधिक गाढ़ा द्रव है जो पतले घोल में रंगहीन दिखता है। इसमें आक्सीकरण के प्रबल गुण होते हैं और यह एक शक्तिशाली विरंजक है। इसका इस्तेमाल एक विसंक्रामक, रोगाणुरोधक, आक्सीकारक और रॉकेट्री में प्रणोदक के रूप में किया जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड की आक्सीकरण क्षमता इतनी प्रबल होती है कि इसे आक्सीजन की उच्च प्रतिक्रिया वाली जाति समझा जाता है। हाइड्रोजन परॉक्साइड जीवों में आक्सीकरण चयापचय के उपोत्पाद के रूप में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है। लगभग सभी जीवित वस्तुओं (विशेषकर, सभी आब्लिगेटिव और फेकल्टेटिव वातापेक्षी जीव) में परॉक्सिडेज नामक एन्ज़ाइम होते हैं जो बिना हानि पहुंचाए और उत्प्रेरण द्वारा उदजन परूजारक की छोटी मात्राओं को पानी और आक्सीजन में विघटित करते हैं। .

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हाइड्रोजन आबंध

doi.

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हाइड्रोजन क्लोराइड

हाइड्रोजन क्लोराइड (Hydrogen chloride) एक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र एचसीएल (HCl) होता है। कमरे के तापमान पर यह एक रंगहीन गैस होती है, जो वातावरण की आर्द्रता के संपर्क के साथ हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के सफेद धुएं बनाती है। हाइड्रोजन क्लोराइड गैस और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल प्रौद्योगिकी और उद्योग में महत्वपूर्ण हैं। हाइड्रोजन क्लोराइड के जलकृत विलयन हाइड्रोक्लोरिक अम्ल को भी सामान्यतः सूत्र एचसीएल दिया जाता है। .

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हाइड्रोजन के समस्थानिक

प्रोटियम, हाइड्रोजन का प्रचुरतम उपलब्ध समस्थानिक; में एक प्रोटोन व एक इलेक्ट्रॉन होता है हाइड्रोजन या उदजन (H) (मानक परमाणु भार: 1.00794(7) u) के तीन प्राकृतिक उपलब्ध हाइड्रोजन.

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हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था

हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के घटक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की सम्भावित समयरेखा हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था (हाइड्रोजन इकनॉमी) से आशय उस प्रस्तावित प्रणाली से है जिसमें अधिकांश ऊर्जा, हाइड्रोजन से प्राप्त होगी। 'हाइड्रोजन इकनॉमी' नामक शब्द का प्रयोग सबसे पहले १९७० में जॉन बोकरिस ने एक व्याख्यान के समय किया था। .

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हाइड्रोजनीकरण

हाइड्रोजनीकरण (Hydrogenation) का अभिप्राय केवल असंतृप्त कार्बनिक यौगिकों से हाइड्रोजन की क्रिया द्वारा संतृप्त यौगिकों के प्राप्त करने से है। उदाहरण के लिये, हाइड्रोजनीकरण द्वारा एथिलीन अथवा ऐंसेटिलीन से एथेन प्राप्त किया जाता है। मैलिक अम्ल (maleic acid) में हाइड्रोजन के योग से सक्सीनिक अम्ल (succinic acid) का निर्माण हाइड्रोजनीकरण का अच्छा उदाहरण है: center .

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हाइड्रोकार्बन

मिथेन एक प्रमुख हाइड्रोकार्बन है। इसके अणु का त्रि-बिमीय 'बाल ऐण्ड स्टिक मॉडल' हाइड्रोकार्बन कार्बनिक यौगिक होते हैं जो हाइड्रोजन और कार्बन के परमाणुओं से मिलकर बने होते हैं। इनका मुख्य स्रोत भूतैल है। प्राकृतिक गैस में भी केवल हाइड्रोकार्बन पाए जाते हैं। हाइड्रोकार्बन संतृप्त तथा असंतृप्त दो प्रकार के होते हैं। .

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हाइड्रोक्लोरिक अम्ल

३०% सान्द्रता वाला हाइड्रोक्लोरिक अम्ल हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक प्रमुख अकार्बनिक अम्ल है। वस्तुतः हाइड्रोजन क्लोराइड गैस के जलीय विलयन को ही हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कहते हैं। इस अम्ल का उल्लेख ग्लौबर ने १६४८ ई. में पहले पहल किया था। जोसेफ़ प्रीस्टली ने १७७२ में पहले पहल तैयार किया और सर हंफ्री डेवी ने १८१० ई. में सिद्ध किया कि हाइड्रोजन और क्लोरीन का यौगिक है। इससे पहले लोगों की गलत धारणा थी कि इसमें ऑक्सीजन भी रहता है। तब इसका नाम 'म्यूरिएटिक अम्ल' पड़ा या जो आज भी कहीं कहीं प्रयोग में आता है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ज्वालामुखी गैसों में पाया जाता है। मानव जठर में इसकी अल्प मात्रा रहती है और आहार पाचन में सहायक होती है। .

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हाइब्रिड वाहन

होंडा इनसाइट हाइब्रिड NYPD आवागमन प्रवर्तन द्वारा उपयोग किया जाने वाला प्रियूस एक हाइब्रिड वाहन एक ऐसा वाहन है, जो वाहन को चलाने के लिए दो या दो से अधिक भिन्न ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करता है। यह शब्द सबसे अधिक हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व़ीइकल्स अर्थात् संकर विद्युत वाहन (HEVs), के रूप में जाना जाता है, जिसमें एक आंतरिक दहन इंजन और एक या एक से अधिक विद्युत मोटर होते हैं। .

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हिलियम

तरलीकृत हीलियम शुद्ध हीलियम से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हिलियम (Helium) एक रासायनिक तत्त्व है जो प्रायः गैसीय अवस्था में रहता है। यह एक निष्क्रिय गैस या नोबेल गैस (Noble gas) है तथा रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, विष-हीन (नॉन-टॉक्सिक) भी है। इसका परमाणु क्रमांक २ है। सभी तत्वों में इसका क्वथनांक (boiling point) एवं गलनांक (melting point) सबसे कम है। द्रव हिलियम का प्रयोग पदार्थों को अत्यन्त कम ताप तक ठण्डा करने के लिये किया जाता है; जैसे अतिचालक तारों को १.९ डिग्री केल्विन तक ठण्डा करने के लिये। हीलियम अक्रिय गैसों का एक प्रमुख सदस्य है। इसका संकेत He, परमाणुभार ४, परमाणुसंख्या २, घनत्व ०.१७८५, क्रांतिक ताप -२६७.९०० और क्रांतिक दबाव २ २६ वायुमंडल, क्वथनांक -२६८.९० सें.

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हंस तारा

हंस तारा हमारे सूरज से 200 गुना से भी ज़्यादा बड़ा है हंस या डॅनॅब​, जिसका बायर नाम "अल्फ़ा सिगनाए" (α Cygni या α Cyg) है, हंस तारामंडल का सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से उन्नीसवा सब से रोशन तारा है। हंस तारे की अंदरूनी चमक (निरपेक्ष कान्तिमान) बहुत भयंकर है और इसका माप -7.0 मैग्नीट्यूड है। यह सूरज से 60,000 गुना ज़्यादा चमकीला है। .

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हेनरी कैवेंडिश

हेनरी कैवेंडिश (10 अक्टूबर 1731 - 24 फ़रवरी 1810) एक ब्रिटिश प्राकृतिक दार्शनिक, वैज्ञानिक, और एक महत्वपूर्ण प्रायोगिक और सैद्धांतिक रसायनज्ञ और भौतिक विज्ञानी था। कैवेंडिश उसकी हाइड्रोजन की खोज या जिन्हें वह "ज्वलनशील हवा" कहा करते थे के लिए विख्यात है।Cavendish, Henry (1766).

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हॉपर गुब्बारा

हॉपर गुब्बारों की एक जोड़ी हॉपर गुब्बारा (hopper balloon) (या केवल हॉपर) गर्म हवा से उड़ने वाला एक छोटा, एक व्यक्ति की क्षमता वाला गुब्बारा होता है। पारंपरिक गर्म हवा वाले गुब्बारे में जहां लोगों के खड़े होने के लिए एक टोकरी लगी होती है, वहीं हॉपर गुब्बारे में ऐसी कोई टोकरी नहीं होती है। इसके बजाए हॉपर पायलट आमतौर पर एक कुर्सी पर बैठता है या साज पहनता है जो पैराशूट जैसा होता है। हॉपर आमतौर पर मनोरंजन के लिए उड़ान भरते हैं। इन विमानों को कभी-कभार "बादल हॉपर्स" या "क्लाउडहॉपर" ("Cloudhoppers") भी कहा जाता है। हालांकि ये नाम औपचारिक तौर पर एक खास निर्माता के उत्पादों, विशेष कर लिंडस्ट्रैंड बलूंस (Lindstrand Balloons) का उल्लेख करने के लिए किया जाता है। फिर भी, बहुत लोग व्यापक ट्रेडमार्क के तौर पर इसे "क्लाउडहॉपर" नाम से ही पुकारते हैं जिसका मतलब इस तरह के सभी विमान होते हैं। अधिक सावधानीपूर्वक इस्तेमाल में हॉपर (कूदनेवाला) व्यापक शब्दावली है। ज्यादातर हॉपर गुब्बारों में आवरण होते हैं जिनकी मात्रा होती है और जिनकी अधिकतम उड़ान क्षमता एक से डेढ़ घंटे होती है। फिलहाल हॉपर गुब्बारा बनाने वाले दो प्रमुख व्यावसायिक गुब्बारा निर्माताओं के नाम कैमेरॉन बलूंस (Cameron Balloons) और लिंडस्ट्रैंड बलूंस (Lindstrand Balloons) हैं। इसके अलावा ज्यादातर हॉपर गुब्बारे प्रयोगात्मक विमान हैं जिन्हें शौकिया निर्माता तैयार करते हैं। .

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जर्मेनियम

जर्मेनियम (Germanium) एक रासायनिक तत्व है। इसका स्थान आवर्त सारणी में उसी वर्ग में है, जिसमें सीस और टिन हैं। इसका आविष्कार 1886 ई. सी.

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जल

जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है। पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है। खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है। जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुॅचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहँचता है लगभग 36 Tt (1012किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।.

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जल का विद्युत अपघटन

जब जल से होकर विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो जल के अणुओं का विघटन हो जाता है और हाइड्रोजन एवं आक्सीजन प्राप्त होतीं हैं। इसे ही जल का विद्युत अपघटन (Electrolysis of water) कहते हैं। चूंकि शुद्ध जल विद्युत का कुचालक है इसलिये आसानी से कम वोल्टता लगाकर ही धारा प्रवाहित करने के लिये शुद्ध जल में बहुत कम मात्रा में अम्ल मिला दिया जाता है। thumb .

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जलगैस

जलगैस प्रतिक्रिया का समीकरण। मोटे अक्षरजलगैस (Water gas) एक कृत्रिम गैस (synthesis gas) है। इसमें कार्बन मोनोआक्साइड और हाइड्रोजन मिश्रित होती है। कोयला गैस के साथ मिलाकर जलगैस ईंधन में काम आती है। इससे बड़ी मात्रा में हाइड्रोजन तैयार होती है और पेट्रोलियम तथा मेथिल ऐलकोहल का संश्लेषण भी होता है। यह बहुत उपयोगी है किन्तु इसके प्रयोग में विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि जलगैस कार्बन मोनोक्साइड के कारण प्रबल विषाक्त होती है। कोई गंध न हेने के कारण विष की भयंकरता बढ़ जाती है। इसकी ज्वाला बड़ी गरम होती है। ताप 1,600 डिग्री सें.

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ज़र्कोनियम

जरकोनियम (Zirconium) एक रासायनिक तत्व है जो आवर्त सारणी के चतुर्थ अंतवर्ती समूह (transition group) का तत्व है। इस तत्व के पाँच स्थिर समस्थानिक पाये जाते हैं, जिनका परमाणु भार 90, 91, 92, 94, 96 है। कुछ अन्य रेडियधर्मी समस्थानिक जैसे परमाणु भार 89 भी कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। इस तत्व की खोज ज़रकान अयस्क में, क्लोंप्रोट नामक वैज्ञानिक ने सन् 1789 में की थी। सन् 1824 में स्विडन के प्रसिद्ध रसायनज्ञ बर्ज़ीलियस ने ज़रकोनियम धातु तैयार की। ज़रकोनियम की गणना विरल तत्वों में की जाती है यद्यपि पृथ्वी की सतह पर इसकी मात्रा अनेक सामान्य तत्वों से अधिक है। तत्वों की प्राप्ति सारणी में इसका स्थान बीसवाँ है। ऐसा अनुमान है कि ज़रकोनियम की मात्रा ताम्र, यशद एवं सीस तीनों की संयुक्त मात्रा से अधिक है। .

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जैवहाइड्रोजन

शिवाल (काई) से हाइड्रोजन उत्पादन जीवों द्वारा उत्पन्न हाइड्रोजन, जैवहाइड्रोजन (Biohydrogen) कहलाती है। कुछ शैवाल (algae), जीवाणु (bacteria) और आर्किया (archaeon) हाइड्रोजन पैदा करते हैं। जैवहाइड्रोजन एक संभाव्य जैवईंधन है जिसकी खेती भी की जाती है और जो कचरा जैविक पदार्थों से भी प्राप्त होती है। श्रेणी:जैवईंधन.

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जैवाणु

मानव का हीमोग्लोबिन एक जैव अणु है। इसके प्रोटीन भाग के दोनो उप इकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखलाया गया है। उन सभी अणुओं को जैवाणु कहते है जो किसी भी जीव (living organisms) में पाये जाते हैं। ये जटिल कार्बनिक अणु होते हैं। इनका निर्माण सजीवों के शरीर में होता है। ये सजीवों के शरीर के विकास तथा रखरखाव के लिए आवश्यक होते हैं। कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए प्रमुख जैवाणु हैं। कार्बनिक यौगिको की तरह इनका निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन से होता है, कभी-कभी फॉस्फोरस तथा सल्फर आदि तत्व भी अल्प मात्रा में हो सकते हैं। .

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जूनो (अंतरिक्ष यान)

बृहस्पति के आगे जूनो शोध यान का काल्पनिक चित्र जूनो (अंग्रेज़ी: Juno) अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान परिषद्, नासा, द्वारा हमारे सौर मंडल के पाँचवे ग्रह, बृहस्पति, पर अध्ययन करने के लिए पृथ्वी से ५ अगस्त २०११ को छोड़ा गया एक अंतरिक्ष शोध यान है। लगभग ५ वर्ष लंबी यात्रा के बाद ५ जुलाई २०१६ को यह बृहस्पति तक पहुँचने में सफल रहा। इस अभियान पर लगभग १.१ अरब डॉलर की लागत का अनुमान है। .

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जूल-टॉमसन प्रभाव

यदि किसी द्रव या गैस को किसी वाल्व या सछिद्र प्लग से होकर गुजारा जाता है और बाहर से इंसुलेट करके इसमें उष्मा का आदान-प्रदान नहीं होने दिया जाता तो उस तरल का ताप बदल जाता है जिसे उष्मागतिकी में जूल-थॉमसन प्रभाव (Joule–Thomson effect) के नाम से जाना जाता है। इसे "केल्विन-जूल प्रभाव" भी कहते हैं। उक्त प्रक्रम को थ्रॉटिलिंग कहा जाता है। सामान्य ताप पर हाइड्रोजन, हिलियम एवं नियान के अतिरिक्त सभी गैसें इस प्रभाव के कारण ठण्डी हो जातीं हैं। जूल थोम्सन एक रुधोस्म प्रक्रम है। जिसमें गैस का दाब उच्च से अचानक कम हो जाता है और रुधोस्म प्रक्रम की तरह ही तापमान कम हो जाता है। .

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जेम्स प्रेस्कॉट जूल

जूल का ऊष्मा-उपकरण जेम्स प्रेस्कॉट जूल (अंग्रेजी: James Prescott Joule, जन्म: 24 दिसम्बर 1818 - मृत्यु: 11 अक्टूबर 1889) सैल्फोर्ड, लंकाशायर में जन्मे एक अंग्रेज भौतिकविज्ञानी और शराब निर्माता थे। .

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जीनोम परियोजना

जीनोमिक्स का चित्रण जीनोम परियोजना वह वैज्ञानिक परियोजना है, जिसका लक्ष्य किसी प्राणी के संपूर्ण जीनोम अनुक्रम का पता करना है। जीन हमारे जीवन की कुंजी है। हम वैसे ही दिखते या करते हैं, जो काफी अंश तक हमारे देह में छिपे सूक्ष्म जीन तय करते हैं। यही नहीं, जीन मानव इतिहास और भविष्य की ओर भी संकेत करते हैं। जीन वैज्ञानिकों का मानना है, कि यदि एक बार मानव जाति के समस्त जीनों की संरचना का पता लग जये, तो मनुष्य की जीन-कुण्डली के आधार पर, उसके जीवन की समस्त जैविक घटनाओं और दैहिक लक्षणों की भविष्यवाणी करना संभव हो जायेगा। यद्यपि यह कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि मानव शरीर में हजारों लाखों जीवित कोशिकएं होतीं हैं। जीनों के इस विशाल समूह को जीनोम कहते हैं। आज से लगभग 136 वर्ष पूर्व, बोहेमियन भिक्षुक ग्रेगर जॉन मेंडल ने मटर के दानों पर किये अपने प्रयोगों को प्रकाशित किया था, जिसमें अनुवांशिकी के अध्ययन का एक नया युग आरंभ हुआ था। इन्हीं लेखों से कालांतर में आनुवांशिकी के नियम बनाए गए। उन्होंने इसमें एक नयी अनुवांशिकीय इकाई का नाम जीन रखा, तथा इसके पृथक होने के नियमों का गठन किया। थॉमस हंट मॉर्गन ने १९१० में ड्रोसोफिला (फलमक्खी) के ऊपर शोधकार्य करते हुए, यह सिद्ध किया, कि जीन गुणसूत्र में, एक सीधी पंक्ति में सजे हुए रहते हैं, तथा कौन सा जीन गुणसूत्र में किस जगह पर है, इसका भी पता लगाया जा सकता है। हर्मन मुलर ने १९२६ में खोज की, कि ड्रोसोफिला के जीन में एक्सरे से अनुवांशिकीय परिवर्तन हो जाता है, जिसे उत्परिवर्तन भी कहते हैं। सन १९४४ में यह प्रमाणित हुआ कि प्रोटीन नहीं, वरन डी एन ए ही जीन होता है। सन १९५३ में वॉटसन और क्रिक ने डी एन ए की संरचना का पता लगाया और बतया, कि यह दो तंतुओं से बना हुआ घुमावदार सीढ़ीनुमा, या दोहरी कुंडलिनी के आकार का होता है। .

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जीवविज्ञान का इतिहास

कोई विवरण नहीं।

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ईन्धन

जलती हुई प्राकृतिक गैस ईधंन (Fuel) ऐसे पदार्थ हैं, जो आक्सीजन के साथ संयोग कर काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 'ईंधन' संस्कृत की इन्ध्‌ धातु से निकला है जिसका अर्थ है - 'जलाना'। ठोस ईंधनों में काष्ठ (लकड़ी), पीट, लिग्नाइट एवं कोयला प्रमुख हैं। पेट्रोलियम, मिट्टी का तेल तथा गैसोलीन द्रव ईधंन हैं। कोलगैस, भाप-अंगार-गैस, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस और प्राकृतिक गैस आदि गैसीय ईंधनों में प्रमुख हैं। आजकल परमाणु ऊर्जा भी शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग की जाती है, इसलिए विखंडनीय पदार्थों (fissile materials) को भी अब ईंधन माना जाता है। वैज्ञानिक और सैनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जानेवाले राकेटों में, एल्कोहाल, अमोनिया एवं हाइड्रोजन जैसे अनेक रासायनिक यौगिक भी ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इन पदार्थों से ऊर्जा की प्राप्ति तीव्र गति से होती है। विद्युत्‌ ऊर्जा का प्रयोग भी ऊष्मा की प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसे भी कभी-कभी ईंधनों में सम्मिलित कर लिया जाता है। .

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वर्णमण्डल

सन् १९९९ के पूर्ण सूर्यग्रहण के समय सूर्य का वर्णमण्डल दिखायी दे रहा है सूर्य के वायुमंडल का निम्नस्तर, जो प्रकाशमंडल (photosphere) के ठीक ऊपर स्थित है उत्क्रमण मंडल (Reversing layer) कहलाता है। इस उत्क्रमण मंडल से ऊपर लगभग 11,200 किलोमीटर तक फैले हुए गोलीय मंडल को वर्णमंडल कहते हैं। पूर्ण सूर्यग्रहण के समय इस मंडल का वर्ण सिंदूरी (scarlet) होता है। यह वर्ण हाइड्रोजन के परमाणुओं द्वारा किए गए विकिरण की अधिकता के कारण उत्पन्न होता है। .

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वान डर वाल्स त्रिज्या

किसी तत्व की ठोस अवस्था में उसके दो समीपवर्ती परमाणुओं के नाभिकों के बीच की दूरी के आधे को उस तत्व की वान्डरवॉल त्रिज्या कहते हैं | .

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वान डर वाल्स समीकरण

वान डर वाल्स समीकरण (van der Waals equation या van der Waals equation of state) गैसों के अवस्था का समीकरण है जिसे वान डर वाल्स ने 1877 में प्रस्तुत किया था। वास्तविक गैसें, आदर्श गैस समीकरण का ठीक से पालन नहीं करतीं, जबकि वान डर वाल्स का समीकरण काफी सीमा तक वास्तविक गैसों के व्यवहार का ठीक से वर्णन करता है। जहाँ R सार्वत्रिक गैस नियतांक है, T गैस का ताप है, P दाब है तथा V आयतन है। वान डर वाल्स के दाब-आयतन समतापी वक्र .

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वायु

वायु पंचमहाभूतों मे एक हैं| अन्य है पृथिवी, जल, अग्नि व आकाश वायु वस्तुत: गैसो का मिश्रण है, जिसमे अनेक प्रकार की गैस जैसे जारक, प्रांगार द्विजारेय, नाट्रोजन, उदजन ईत्यादि शामिल है।.

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वाष्पन की पूर्ण उष्मा

वाष्पन की पूर्ण ऊष्मा या वाष्पन की एन्थैल्पी (enthalpy of vaporization; प्रतीक ∆Hvap) ऊर्जा की वह मात्रा है जो द्रव के इकाई मात्रा को गैस में बदलने के लिये आवश्यक होती है। इसे वाष्पन की गुप्त ऊष्मा भी कहते हैं। वाष्पन की एन्थैल्पी, उस दाब पर भी निर्भर करती है जिस पर यह अवस्था परिवर्तन किया जाता है। .

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विटामिन बी६

विटामिन बी६ एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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विद्युत

वायुमण्डलीय विद्युत विद्युत आवेशों के मौजूदगी और बहाव से जुड़े भौतिक परिघटनाओं के समुच्चय को विद्युत (Electricity) कहा जाता है। विद्युत से अनेक जानी-मानी घटनाएं जुड़ी है जैसे कि तडित, स्थैतिक विद्युत, विद्युतचुम्बकीय प्रेरण, तथा विद्युत धारा। इसके अतिरिक्त, विद्युत के द्वारा ही वैद्युतचुम्बकीय तरंगो (जैसे रेडियो तरंग) का सृजन एवं प्राप्ति सम्भव होता है? विद्युत के साथ चुम्बकत्व जुड़ी हुई घटना है। विद्युत आवेश वैद्युतचुम्बकीय क्षेत्र पैदा करते हैं। विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत आवेशों पर बल लगता है। समस्त विद्युत का आधार इलेक्ट्रॉन हैं। इलेक्ट्रानों के हस्तानान्तरण के कारण ही कोई वस्तु आवेशित होती है। आवेश की गति ही विद्युत धारा है। विद्युत के अनेक प्रभाव हैं जैसे चुम्बकीय क्षेत्र, ऊष्मा, रासायनिक प्रभाव आदि। जब विद्युत और चुम्बकत्व का एक साथ अध्ययन किया जाता है तो इसे विद्युत चुम्बकत्व कहते हैं। विद्युत को अनेकों प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है किन्तु सरल शब्दों में कहा जाये तो विद्युत आवेश की उपस्थिति तथा बहाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न उस सामान्य अवस्था को विद्युत कहते हैं जिसमें अनेकों कार्यों को सम्पन्न करने की क्षमता होती है। विद्युत चल अथवा अचल इलेक्ट्रान या प्रोटान से सम्बद्ध एक भौतिक घटना है। किसी चालक में विद्युत आवेशों के बहाव से उत्पन्न उर्जा को विद्युत कहते हैं। .

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विद्युत अपघटन

डेनियल सेल से मेल खाता हा एक विद्युतरासायनिक सेल रसायन विज्ञान एवं निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) मे विद्युत अपघटन (electrolysis) उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा किसी रासायनिक यौगिक में विद्युत-धारा प्रवाहित करके उसके रासायनिक बन्धों को को तोड़ा जाता है। उदाहरण के लिये जल में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर जल, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में विघटित हो जाता है जिसे जल का विद्युत अपघटन कहते हैं। विद्युत अपघटन के बहुत से उपयोग हैं। अयस्कों को प्रसंस्कारित करके उनमें निहित रासायनिक तत्व को शुद्ध करना एवं उसे अलग करना इसका सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक एवं व्यावसायिक उपयोग है। .

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विद्युत्-रसायन

जॉन डेनियल और माइकल फैराडे (दायें तरफ), जिन्हे विद्युतरसायन का जनक माना जाता है विद्युतरसायन (eletro-chemistry), भौतिक रसायन की वह शाखा है जिसमें उन रासायनिक अभिक्रियों का अध्ययन किया जाता है जो किसी विलयन (सलूशन्) के अन्दर एक एलेक्ट्रान चालक और एक ऑयनिक चालक (विद्युत अपघट्य) के मिलन-तल (इन्टरफेस) पर होती है। इसमें इलेक्ट्रान चालक कोई धातु या अर्धचालक हो सकता है। यदि रासायनिक अभिक्रिया किसी बाहर से आरोपित विभवान्तर (वोल्टेज्) के कारण घटित होती है (जैसे विद्युत अपघटन में); या रासायनिकभिक्रिया के परिणामस्वरूप विभवान्तर पैदा होता है (जैसे बैटरी में) तो ऐसी रासायनिक अभिक्रियों को विद्युत्त्-रासायनिक अभिक्रिया (electrochemical reaction) कहते हैं। सामान्य रूप से देखें तो पाते हैं कि विद्युत रासायनिक अभिक्रियाओं में ऑक्सीकरण एवं अपचयन क्रियाएं निहित होती हैं जो समय या स्थान (स्पेस और टाइम) में अलग होती हैं और किसी बाहरी परिपथ से जुड़ी होती हैं। .

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विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र

विशाल अणुकणिका संयोजन का एक उदाहरण, जा़न-मारी लैह्न और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Angew. Chem., Int. Ed. Engl. 1996, 35, 1838-1840.) cucurbit10uril डे और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Angew. Chem. Int. Ed., 2002, 275-277.) विशाल-अणुकणिका रासायन शास्त्र, रसायन शास्त्र का वह शाखा़ है, जिसमे अणुकणिकाओं के बीच गैर सह-संयुज बोन्डिंग का अध्ययन किया जाता है। सामान्य तौर पर रसायन शास्त्र में ध्यान सह-संयुज बोन्डिंग पर रहा है, किन्तु विशाल-अणुकणिका रासायन शास्त्र में ध्यान अणुकणिकाओं के बीच शक्तिहीन और उत्त्क्रमात्मक अंतःक्रियाओं पर होता है। ये शक्तियाँ हैं हाइड्रोजन बाँड, धातु तालमेल, जल विरोधी बल, वॉन डर वॉल बल, pi-pi अंतःक्रिया और स्थिरविद्युत प्रभावें। यह शास्त्र महत्वपूर्ण सिद्धांतों का स्पष्टीकरण करता है, जैसे कि आणुविक स्व-संयोजन, रासायनिक बलन, आणुविक अभिज्ञान, परिचारक-अतिथि रसायन, यांत्र-आलिंगित आणुविक ढांचे और गतिक संयुज रसायन। गैर सह-संयुज का अध्ययन आवश्यक है जैविक प्रकृयाओं को समझने के लिये। इस अनुसन्धान में जीवाणु ही अकसर प्रयोगशालाएँ होंतीं हैं। इन प्रकृयाओं से नये तकनीकों के आविष्कार के लिये, जिनका प्रयोग नैनोतकनीकी मे किया जा सकता है। .

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विशिष्ट ऊष्मा धारिता

यह एक सामान्य अनुभव है कि किसी वस्तु का ताप बढ़ाने के लिये उसे उष्मा देनी पड़ती है। किन्तु अलग-अलग पदार्थों की समान मात्रा का ताप समान मात्रा से बढ़ाने के लिये अलग-अलग मात्रा में उष्मा की जरूरत होती है। किसी पदार्थ की इकाई मात्रा का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक उष्मा की मात्रा को उस पदार्थ का विशिष्ट उष्मा धारिता (Specific heat capacity) या केवल विशिष्ट उष्मा कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि जिस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा अधिक होगी उसे गर्म करने के लिये अधिक उष्मा की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिये, शीशा (लेड) का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये जितनी उष्मा लगती है उससे आठ गुना उष्मा एक किलोग्राम मग्नीशियम का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक होती है। किसी भी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा मापी जा सकती है। .

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विश्व के प्रसिद्ध वैज्ञानिक और उनके अविष्कारों का संक्षिप्त वर्णन

अंग्रेज भौतिकविद विलियम हेनरी ब्रेग (१८६२-१९४२) और उनके पुत्र विलियम लॉरेन्स ब्रेग ने खोज की कि जब क्ष-किरण क्रिस्टल में से होकर गुजरती है तो वो फोटोग्रफिक फिल्म पर बिन्दुओ की विशिष्ट प्रतिकृति बनाती है। यह प्रतिकृति क्रिस्टल के भीतर मौजुद परमाणुओ कि विशिष्ट व्यवस्था को दर्शाती है। श्रेणी:वैज्ञानिक.

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वुल्फ़-रायेट तारा

डब्ल्यू॰आर॰ १२४ नामक एक वुल्फ़-रायेट तारा और उसके इर्द-गिर्द की नीहारिका वुल्फ़-रायेट तारे वह बड़ी आयु के भीमकाय तारे होते हैं जो स्वयं से उत्पन्न तारकीय आंधी के कारण तेज़ी से द्रव्यमान (मास) खो रहे होते हैं। इनसे उभरने वाली आंधी की गति २,००० किलोमीटर प्रति सैकिंड तक की होती है। हमारा सूरज हर वर्ष लगभग १०-१४ सौर द्रव्यमान (यानि सूरज के द्रव्यमान के सौ खरबवे हिस्से के बराबर) खोता है। इसकी तुलना में वुल्फ़-रायेट तारे हर वर्ष १०-५ सौर द्रव्यमान (यानि सूरज के द्रव्यमान के दस हज़ारवे हिस्से के बराबर) खोते हैं। ऐसे तारों का सतही तापमान बहुत अधिक होता है: २५,००० से ५०,००० कैल्विन तक। अक्सर ऐसे तारों के इर्द-गिर्द इनके आंधी से नीहरिकाएँ (नेब्युला) बन जाते हैं। .

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वुल्फगांग पौली

वुल्फगांग पौली वुल्फगाँ पाउलि (Wolfgang Pauli; सन् १९००-१९५८), नोबेल पुरस्कार विजेता तथा आस्ट्रियन-स्विस भौतिकविद् थे। .

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वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग

वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (सीएसटीटी) हिन्दी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दों को परिभाषित एवं नए शब्दों का विकास करता है। भारत की स्वतंत्रता के बाद वैज्ञानिक-तकनीकी शब्दावली के लिए शिक्षा मंत्रालय ने सन् १९५० में बोर्ड की स्थापना की। सन् १९५२ में बोर्ड के तत्त्वावधान में शब्दावली निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। अन्तत: १९६० में केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय और 1961 ई. में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना हुई। इस प्रकार विभिन्न अवसरों पर तैयार शब्दावली को 'पारिभाषिक शब्द संग्रह' शीर्षक से प्रकाशित किया गया, जिसका उद्देश्य एक ओर वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के समन्वय कार्य के लिए आधार प्रदान करना था और दूसरी ओर अन्तरिम अवधि में लेखकों को नई संकल्पनाओं के लिए सर्वसम्मत पारिभाषिक शब्द प्रदान करना था। स्वतंत्रता के बाद भारत के संविधान के निर्माताओं का ध्यान देश की सभी प्रमुख भाषाओं के विकास की ओर गया। संविधान में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई और केंद्रीय सरकार को यह दायित्व सौंपा गया कि वह हिंदी का विकास-प्रसार करें एवं उसे समृद्ध करे। तदनुसार भारत सरकार के केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 351 के अधीन हिंदी का विकास एवं समृद्धि की अनेक योजनाएँ आरंभ कीं। इन योजनाओं में हिंदी में तकनीकी शब्दावली के निर्माण का कार्यक्रम भी शामिल किया गया ताकी ज्ञान-विज्ञान की सभी शाखाओं में हिंदी के माध्यम से अध्ययन एवं अध्यापन हो सके। शब्दावली निर्माण कार्यक्रम को सही दिशा देने के लिए 1950 में शिक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में वैज्ञानिक शब्दावली बोर्ड की स्थापना की गई। पहले यह कार्य शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत हिंदी एकक द्वारा किया जाता था किन्तु बाद में विभिनन विषयों की हिंदी शब्दावली का निर्माण करने के दौरान यह ज्ञात हुआ कि यह काम बहुत ही अधिक विशाल, गहन और बहुआयामी है। इसके पूरे होने में बहुत सकय लगेगा और इस कार्य के लिए सभी विषयों के विशेषज्ञों एवं भाषाविदों की आवश्यकता होगी। अतः भारत सरकार ने 1 अक्तूबर, 1961 को प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ॰ डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की ताकि शब्दावली निर्माण का कार्य सही एवं व्यापक परिप्रेक्ष्य में कार्यान्वित किया जा सके। .

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वॉयेजर प्रथम

वोयेजर प्रथम अंतरिक्ष यान एक ७२२ कि.ग्रा का रोबोटिक अंतरिक्ष प्रोब था। इसे ५ सितंबर, १९७७ को लॉन्च किया गया था। वायेजर १ अंतरिक्ष शोध यान एक ८१५ कि.ग्रा वजन का मानव रहित यान है जिसे हमारे सौर मंडल और उसके बाहर की खोज के लिये प्रक्षेपित किया गया था। यह अभी भी (मार्च २००७) कार्य कर रहा है। यह नासा का सबसे लम्बा अभियान है। इस यान ने गुरू और शनि ग्रहों की यात्रा की है और यह यान इन महाकाय ग्रहों के चन्द्रमा की तस्वीरें भेजने वाला पहला शोध यान है। वायेजर १ मानव निर्मित सबसे दूरी पर स्थित वस्तु है और यह पृथ्वी और सूर्य दोनों से दूर अनंत अंतरिक्ष में अभी भी गतिशील है। न्यू हॉराइज़ंस शोध यान जो इसके बाद छोड़ा गया था, वायेजर १ की तुलना में कम गति से चल रहा है इसलिये वह कभी भी वायेजर १ को पीछे नहीं छोड़ पायेगा। .

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खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण

बिग बैंग के धमाके का सबूत माना जाता है खगोलशास्त्र में खगोलीय पार्श्व सूक्ष्मतरंगी विकिरण (ख॰पा॰सू॰वि॰, अंग्रेज़ी: cosmic microwave background radiation, कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडियेशन) उस विकिरण (रेडियेशन) को बोलते हैं जो पृथ्वी से देखे जा सकने वाले ब्रह्माण्ड में बराबर स्तर से हर और फैली हुई है। आम प्रकाश देखने वाली दूरबीन से आकाश में कुछ जगह वस्तुएँ (जैसे ग्रह, गैलेक्सियाँ, वग़ैराह) दिखाई देती हैं और अन्य जगहों पर अँधेरा। लेकिन सूक्ष्मतरंग (माइक्रोवेव) माप सकने वाले रेडिओ दूरबीन (रेडीओ टेलिस्कोप) से देखा जाए तो हर दिशा में एक हलकी सूक्ष्म्तरंगी लालिमा फैली हुई है। वैज्ञानिक मानते हैं के यह ख॰पा॰सू॰वि॰ बिग बैंग सिद्धांत का सबूत देता है। अरबों साल पहले, जब ब्रह्माण्ड पैदा हुआ था उसके फ़ौरन बाद उसका अकार आज के मुक़ाबले में बहुत छोटा था और उसमें खौलती हुई हाइड्रोजन की प्लाज़्मा गैस फैली हुई थी। उस गैस की उर्जा से जो फ़ोटोन (प्रकाश या सूक्ष्मतरंग के कण) पैदा हुए थे वे तब से ब्रह्माण्ड में इधर-उधर घूम रहे हैं और वही हम आज ख॰पा॰सू॰वि॰ के रूप में देखते हैं। .

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खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी

लिक वेधशाला (Lick Observatory) का स्टार-स्पेक्ट्रोस्कोप खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी (Astronomical spectroscopy) वह विज्ञान है जिसका उपयोग आकाशीय पिंडों के परिमंडल की भौतिक अवस्थाओं के अध्ययन के लिए किया जाता है। प्लैस्केट के मतानुसार भौतिकविद् के लिए स्पेक्ट्रमिकी वृहद् शस्त्रागार में रखे हुए अनेक अस्त्रों में से एक अस्त्र है। खगोल भौतिकविद् के लिए आकाशीय पिंडों के परिमंडल की भौतिक अवस्थाओं के अध्ययन का यह एकमात्र साधन है। .

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गन्धकाम्ल

गन्धकाम्ल (सल्फ्युरिक एसिड) एक तीव्र अकार्बनिक अम्ल है। प्राय: सभी आधुनिक उद्योगों में गन्धकाम्ल अत्यावश्यक होता है। अत: ऐसा माना जाता है कि किसी देश द्वारा गन्धकाम्ल का उपभोग उस देश के औद्योगीकरण का सूचक है। गन्धकाम्ल के विपुल उपभोगवाले देश अधिक समृद्ध माने जाते हैं। शुद्ध गन्धकाम्ल रंगहीन, गंधहीन, तेल जैसा भारी तरल पदार्थ है जो जल में हर परिमाण में विलेय है। इसका उपयोग प्रयोगशाला में प्रतिकारक के रूप में तथा अनेक रासायनिक उद्योगों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संश्लेषण में होता है। बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने के लिए सम्पर्क विधि का प्रयोग किया जाता है जिसमें गन्धक को वायु की उपस्थिति में जलाकर विभिन्न प्रतिकारकों से क्रिया कराई जाती है। खनिज अम्लों में सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला यह महत्त्वपूर्ण अम्ल है। प्राचीन काल में हराकसीस (फेरस सल्फेट) के द्वारा तैयार गन्धक द्विजारकिक गैस को जल में घोलकर इसे तैयार किया गया। यह तेल जैसा चिपचिपा होता है। इन्ही कारणों से प्राचीन काल में इसका नाम 'आयँल ऑफ विट्रिआँल' रखा गया था। हाइड्रोजन, गन्धक तथा जारक तीन तत्वों के परमाणुओं द्वारा गन्धकाम्ल के अणु का संश्लेषण होता है। आक्सीजन युक्ति होने के कारण इस अम्ल को 'आक्सी अम्ल' कहा जाता है। इसका अणुसूत्र H2SO4 है तथा अणु भार ९८ है। गन्धकाम्ल प्राचीनकाल के कीमियागर एवं रसविद् आचार्यों को गन्धकाम्ल के संबंध में बहुत समय से पता था। उस समय हरे कसीस को गरम करने से यह अम्ल प्राप्त होता था। बाद में फिटकरी को तेज आँच पर गरम करने से भी यह अम्ल प्राप्त होने लगा। प्रारंभ में गन्धकाम्ल चूँकि हरे कसीस से प्राप्त होता था, अत: इसे "कसीस का तेल' कहा जाता था। तेल शब्द का प्रयोग इसलिए हुआ कि इस अम्ल का प्रकृत स्वरूप तेल सा है। .

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गामा लियोनिस तारा

सिंह (लियो) तारामंडल में गामा लियोनिस तारा 'γ' द्वारा नामांकित है ग्रह का एक काल्पनिक चित्रण गामा लियोनिस, जिसका बायर नाम भी यही (γ Leonis या γ Leo) है, सिंह तारामंडल में स्थित एक द्वितारा है (जो बिना दूरबीन से देखने पर एक ही तारा प्रतीत होता है)। इस जोड़े का अधिक रोशन तारा पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ७३वाँ सब से रोशन तारा है। पृथ्वी से देखी गई इसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) +२.२८ मैग्नीट्यूड है और दोनों तारों की चमक मिलाकर +१.९८ मैग्नीट्यूड है (ध्यान दें की मैग्नीट्यूड ऐसा उल्टा माप है जो जितना अधिक हो तारा उतना ही कम रोशन होता है)। यह द्वितारा पृथ्वी से लगभग १२६ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। .

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गंधक

हल्के पीले रंग के गंधक के क्रिस्टल गंधक (Sulfur) एक रासायनिक अधातुक तत्त्व है। .

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ग्लाइकोल

द्वि-हाइड्राक्सि ऐलकोहलों को ग्लाइकोल (Glycol) के नाम से संबोधित किया जाता है। इनकी उत्पत्ति किसी हाइड्रोकार्बन के दो हाइड्रोजन परमाणुओं को दो हाइड्राक्सिल समूहों से प्रतिस्थापित करके हो सकती है, पर दोनों हाइड्राक्सिल समूह भिन्न भिन्न कार्बनों से संयुक्त होने चाहिए। हाइड्राक्सिल समूहों के पारस्परिक स्थानों के विचार से इन्हें ऐल्फा-, बीटा-, गामा-, अथवा डेल्टा-ग्लाइकोलों में श्रेणीबद्ध किया जाता है। इस वर्ग का सबसे सरल यौगिक एथिलीन ग्लाइकोल है, जिसे केवल ग्लाइकोल भी कहते हैं। इसका रासायनिक सूत्र HO-CH2-CH2-OH है। इनके उच्च सजातीय, ऐल्फा प्रोपिलीन ग्लाइकोल CH3.

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ग्लीसरीन

ग्लिसरिन या ग्लीसरॉल (glycerin or glycerine or Glycerol / C H2 O H. C H O H C H2 O H) एक कार्बनिक यौगिक है। यह तेल और वसा में पाया जाता है। यह रंगहीन, गंधहीन एवं श्यान द्रव है जिसका प्रयोग औषधि निर्माण में बहुतायत से होता है। ग्लिसरॉल में तीन जलप्रेमी (hydrophilic) हाइडॉक्सिल समूह होते हैं जो इसकी जल में विलेयता के लिये उत्तरदायी हैं तथा इन्हीं हाइड्रॉक्सिल समूहों के कारण ही यह यह नमी-शोषक (hygroscopic) होता है। ग्लिसरॉल बहुत से लिपिड्स का मुख्य घटक है। यह स्वाद में मीठा-मीठा एवं कम विषाक्तता (toxicity) वाला होता है। .

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गैनिमीड (उपग्रह)

गैनीमीड का अंदरूनी ढांचा - सब से बाहर सख़्त बर्फ़ की पर्त, फिर पानी का महासागर, फिर एक पथरीला गोला और केंद्र में लोहे और अन्य धातुओं का गोला गैनिमीड हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का भी सब से बड़ा चन्द्रमा है। इसका व्यास (डायामीटर) 5,268 किमी है, जो बुध ग्रह से भी 8% बड़ा है। इसका द्रव्यमान भी सौर मंडल के सारे चंद्रमाओं में सबसे ज़्यादा है और पृथ्वी के चन्द्रमा का 2.2 गुना है। .

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गैस

गैसों का कण मॉडल: गैसों के कणों के बीच की औसत दूरी अपेक्षाकृत अधिक होती है। गैस (Gas) पदार्थ की तीन अवस्थाओं में से एक अवस्था का नाम है (अन्य दो अवस्थाएँ हैं - ठोस तथा द्रव)। गैस अवस्था में पदार्थ का न तो निश्चित आकार होता है न नियत आयतन। ये जिस बर्तन में रखे जाते हैं उसी का आकार और पूरा आयतन ग्रहण कर लेते हैं। जीवधारियों के लिये दो गैसे मुख्य हैं, आक्सीजन गैस जिसके द्वारा जीवधारी जीवित रहता है, दूसरी जिसे जीवधारी अपने शरीर से छोड़ते हैं, उसका नाम कार्बन डाई आक्साइड है। इनके अलावा अन्य गैसों का भी बहु-प्रयोग होता है, जैसे खाना पकाने वाली रसोई गैस। पानी दो गैसों से मिलकर बनता है, आक्सीजन और हाइड्रोजन। .

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गैस दानव

हमारे सौर मण्डल के चार गैस दानव - सूर्य के आगे दर्शाए गए गैस दानव उन ग्रहों को कहा जाता है जिनमें मिटटी-पत्थर की बजाय ज़्यादातर गैस ही गैस होती है और जिनका आकार बहुत ही विशाल होता है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रह इस श्रेणी में आते हैं - बृहस्पति, शनि, अरुण (युरेनस)) और वरुण (नॅप्टयून)। इनमें पायी जाने वाली गैस ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम होती है, हालाँकि इनमें अक्सर और गैसें भी मिलती हैं, जैसे कि अमोनिया। अन्य सौर मंडलों में बहुत से गैस दानव ग्रह पाए जा चुके हैं। .

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गैस प्रदीपन

गैस प्रदीपन (Gas lighting) का आशय किसी गैसीय ईंधन को जलाकर प्रकाश उत्पन्न करने की प्रौद्योगिकी से है। इसमें हाइड्रोजन, मिथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड, प्रोपेन, ब्यूटेन, एसिटिलीन और इथिलीन सहित अन्य गैसीय ईंधन प्रयोग किये जाते हैं। जब तक बिजली का प्रयोग आर्थिक और तकनीकी रूप से व्यापक नहीं हो पाया था, तब तक नगरों और उपनगरों में प्रकाश करने (प्रदीपन) के लिये गैसों का ही सर्वाधिक प्रयोग होता था। श्रेणी:प्रदीपन श्रेणी:दीप श्रेणी:गैस प्रौद्योगिकी ru:Светильный газ.

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गैस वेल्डन

गैसों की सहायता से वेल्डन की क्रिया एक सी होती है, लेकिन उनका विभाजन उपयोग में आनेवाली गैस के अनुसार किया जाता है। ये गैसें बहुधा ऑक्सीजन और ऐसीटिलीन का मिश्रण, कोल गैस और हाइड्रोजन आदि हुआ करती हैं। इनमें से ऑक्सी-ऐसीटिलीन वेल्डन सबसे अधिक प्रचलित है। वेल्डनोपयोगी गैसें तैयार करनेवाली व्यापारिक कंपनियाँ इस्पात के मजबूत सिलिंडरों (cylinders) में गैस को कई वायुमंडलों के दबाव पर भरकर वेल्डन के लिए बेचा करती हैं। वेल्डन के बड़े-बड़े कारखानों में निजी गैस जनित्रों द्वारा कैल्सियम कार्बाइड और पानी के मिश्रण से यह गैस कम दाबस पर तैयार की जाती है। ऐसीटिलीन को ऐसीटोन में घुला देने से उसे विस्फोटन का डर नहीं रहता। चाहे किसी भी प्रकार की गैस का व्यवहार किया जाए, वेल्डन के लिए उसे किसी प्रकार की फुँकनी (blowpipe) के द्वारा ही वेल्डन के स्थान पर पहुँचाया जाता है, जिनमें लगे एक बाल्व की सहायता से गैस के बहाव पर नियंत्रण कर उचित आकार की लौ बना ली जाती है। चित्र 4.

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गैसनिर्माण

गैसनिर्माण दो उद्देश्यों से होता है। कुछ गैसें प्रकाश उत्पन्न करने के लिये बनाई जाती हैं। ऐसी गैसों को "प्रदीपक गैस" कहते हैं। कुछ गैसें ईंधन के लिये बनाई जाती हैं। ऐसी गैसों को "तापन गैस" कहते हैं। दोनों किस्म की गैसें "दाह्म गैस" हैं। इन्हें "औद्योगिक गैस" भी कहते हैं। गैसनिर्माण के एक संयंत्र की रूपरेखा (IGCC .

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गैसीकरण

गैसीकरण (Gasification) वह प्रक्रिया है जिसमें जैविक पदार्थों या जीवाश्म आधारित कार्बनयुक्त पदार्थों को कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन, कार्बन डाईऑक्साइड और मिथेन में बदला जाता है। इस प्रक्रिया में पदार्थ को उच्च ताप (>700 °C) पर ले जाकर, बिना ज्वलन के, नियंत्रित मात्रा में ऑक्सीजन और/या जलवाष्प से क्रिया करायी जाती है। प्राप्त गैस का मिश्रण प्रोड्युसर गैस या 'सिंथेटिक गैस' कहलाती है जो स्वयं एक ईंधन है। इसका महत्व इस बात में है कि यह नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्ति का एक स्रोत है। गैसीकरण का लाभ यह है कि सिंथेटिक गैस को उपयोग में लाना मूल पदार्थ को उपयोग में लाने की अपेक्षा अधिक दक्ष (efficient) है क्योंकि इसे अधिक ताप पर भी जलाया जा सकता है या ईंधन सेल में भी जलाया जा सकता है। इस गैस को सीधे गैस इंजनों में भी जलाया जा सकता है। इस गैस को फिशर-ट्रॉप्स प्रक्रिया (Fischer-Tropsch process) द्वारा मेथेनॉल और हाइड्रोजन में बदला जा सकता है। गैसीकरण के लिये ऐसे पदार्थ का भी उपयोग किया जा सकता है जो अन्यथा कचड़ा समझकर फेंक दिया जाता है। इस समय जीवाश्म ईंधन का गैसीकरण औद्योगिक पैमाने बहुतायत में हो रहा है जिससे बिजली पैदा की जाती है। .

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ऑक्सीजन

ऑक्सीजन या प्राणवायु या जारक (Oxygen) रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधरहित गैस है। इसकी खोज, प्राप्ति अथवा प्रारंभिक अध्ययन में जे.

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ऑक्सीकरण संख्या

ऑक्सीकरण संख्या (oxidation number) या ऑक्सीकरण अवस्था (oxidation state) किसी रासायनिक यौगिक में बंधे हुए किसी परमाणु के ऑक्सीकरण (oxidation) के दर्जे का सूचक होता है। यह संख्या गिनाती है कि उस यौगिक के रासायनिक बंध में वह परमाणु कितने इलेक्ट्रान उस यौगिक में स्थित अन्य परमाणुओं को खो चुका है। उदाहरण के लिए, पानी (जिसका रासायनिक सूत्र H2O है) में दोनो हाइड्रोजन परमाणु अपना एक-एक इलेक्ट्रान ऑक्सीजन परमाणु को दे चुके होते हैं। इसलिये जल में हर हाइड्रोजन परमाणु की ऑक्सीकरण संख्या +1 होती है जबकि ऑक्सीजन की -2 होती है (क्योंकि वह खोने की बजाय दो इलेक्ट्रान प्राप्त कर लेता है)। .

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औद्योगिक गैस

सिलिंडरों में दबी हाइड्रोजन गैस, ट्रक में ले जाई जा रही है औद्योगिक गैस (Industrial gas) ऐसी गैस को कहा जाता है जिसका प्रयोग किसी औद्योगिक प्रक्रिया में हो। अक्सर यह गैसें इन्हीं इस्तेमालों के लिये विषेश रूप से बनाई या शुद्ध की जाती हैं। नाइट्रोजन, ओक्सीजन, कार्बन डायोक्साइड, आर्गन, हायड्रोजन, हीलीयम और ऐसिटलीन सबसे ज़्यादा प्रयोग की जाने वाली औद्योगिक गैसें हैं। .

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आटो स्टर्न

आटो स्टर्न ऑटो स्टर्न (Otto Stern; सन् १८८८ - १९६९) जर्मन भौतिकीविद् थे जिन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। .

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आणविक बादल

यह धूल और गैस का आणविक बादल कैरीना नॅब्युला का एक टूटा हुआ अंश है और इसके पास नवजात तारे नज़र आ रहे हैं। इन तारों की रोशनी खगोलीय धूल से गुज़रती हुई नीली लगने लगी है क्योंकि यह धूल नीला रंग अधिक फैलती है। इन तारों का कठोर प्रकाश कुछ लाख सालों में इस आणविक बदल को उबल कर ख़तम कर देगा। यह छवि १९९९ में हबल अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी थी। बार्नार्ड ६८ का विशाल आणविक बादल इतना घना है के यह एक "काले नॅब्युला" की तरह प्रतीत होता है, क्योंकि यह पीछे से आने वाले तारों की रोशनी को एक परदे की तरह रोक रहा है। "सॅफ़्यस बी" नामक आणविक बादल और उसमें नए जन्मे तारे। खगोलशास्त्र में आणविक बादल अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर स्पेस) में स्थित ऐसे अंतरतारकीय बादल (इन्टरस्टॅलर क्लाउड) को कहते हैं जिसका घनत्व और और आकार अणुओं को बनाने के लिए पार्यप्त हो। अधिकतर यह अणु हाइड्रोजन (H2) के होते हैं, हालांकि आणविक बादलों में और भी प्रकार के अणु मिलते हैं। आणविक बादलों में मौजूद हाइड्रोजन अणुओं को उनसे उभरने वाली विद्युतचुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) के ज़रिये पहचान लेना मुश्किल है इसलिए इन बादलों में हाइड्रोजन की मात्रा का अनुमान लगाना कठिन होता है। सौभाग्य से, हमारी आकाशगंगा (गैलॅक्सी) में देखा गया है के आणविक बादलों में हाइड्रोजन के साथ-साथ कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के अणु भी मिलते हैं और इस कार्बन मोनोऑक्साइड से उभरती रोशनी उतनी ही प्रबल होती है जितनी उसके इर्द-गिर्द हाइड्रोजन की मात्रा होती है। हालांकि यह हाइड्रोजन की मात्रा को अनुमानित करने का तरीका हमारी आकाशगंगा में तो चल जाता है, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है के कार्बन मोनोऑक्साइड के रोशानपन और हाइड्रोजन की मात्रा का यह सम्बन्ध शायद कुछ दूसरी आकाशगंगाओं में सच न हो। .

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आदर्श गैस

आदर्श गैस के नियत ताप पर pV आरेख आदर्श गैस एक काल्पनिक सैद्धान्तिक गैस है जिसके कण यादृच्छ गति करने वाले, परस्पर अन्योन्यक्रिया न करने वाले और 'बिन्दुवत' हैं। आदर्श गैस की संकल्पना उपयोगी है क्योंकि आदर्श गैस आदर्श गैस नियम का पालन करती है जो एक सरलीकृत एवं सुविधाजनक समीकरण है। सामान्य परिस्थितियों में (जैसे मानक ताप व दाब पर) अधिकांश वास्तविक गैसें गुणात्मक रूप से आदर्श गैस की भांति ही व्यवहार करतीं हैं। नाइट्रोजन, आक्सीजन, हाइड्रोजन, अक्रिय गैसें और कुछ भारी गैसें जैसे कार्बन डाई आक्साइड आदि को कुछ त्रुटि के साथ आदर्श गैस जैसा माना जा सकता है। प्रायः जितना ही अधिक ताप तथा जितना कम दाब हो, किसी गैस का व्यवहार 'आदर्श गैस' के उतना ही समीप होता हैं। .

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आनुभविक सूत्र

रसायन विज्ञान में किसी यौगिक का आनुभविक सूत्र (प्रयोगाधारित सूत्र / मूलानुपाती सूत्र / empirical formula) वह सूत्र है जो बताता है कि उस यौगिक के अणु में कौन-कौन से परमाणु हैं तथा उन परमाणुओं की संख्या का सरलतम अनुपात क्या है। उदाहरण के लिये हेक्सेन का प्रयोगाधारित सूत्र C3H7 है जबकि उसका अणुसूत्र C6H14 है। प्रयोगाधारित सूत्र या 'इम्पिरिकल फॉर्मूला' नाम इसलिये पड़ा है कि जिस विधि से ये सूत्र ज्ञात किये जाते हैं वह प्रयोग पर आधारित है और इसमें अणु में परमाणुओं का सापेक्षिक अनुपात ही पता चल पाता है, परमाणुओं की वास्तविक संख्या का पता नहीं चलता (जिसे किसी अन्य विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है)। बेंजीन अणु का '''आनुभविक सूत्र''' (1), आणविक सूत्र (2) तथा अन्य निरूपण: (3) केकुले संरचना (अनुनादी समावयी); (4) समतल षटकोणीय संरचना, जिसमें आबन्ध की लम्बाई और कोण भी लिखे गये हैं; (5) sp2 संकर ऑर्बिटल के बीच सिगमा आबन्ध; (6) परमाणविक कक्षक; (7) Molecular orbital delocalized pi; (8) बेंजीन रिंग .

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आयनन ऊर्जा

किसी विलगित (आइसोलेटेड) गैसीय अवस्था वाले परमाणु के सबसे शिथिलतः बद्ध (लूजली बाउण्ड) इलेक्ट्रान को परमाणु से अलग करने के लिये आवश्यक ऊर्जा, आयनन ऊर्जा (ionization energy (IE)) या 'आयनन विभव' या 'आयनन एन्थैल्पी' कहलाती है। \ A_ + E_ \to A^+_ \ + e^-.

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आयोनोन

आयोनोन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आर्थ्रो-टॉल्विक अम्ल

आर्थ्रो-टॉल्विक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आर्जिनिन

आर्जिनिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आहारीय खनिज

आहारीय खनिज वे खनिज होते हैं, जो आहार के संग शरीर को मिलते हैं एवं पोषण करने में सहाय्क होते हैं। शरीर के लिए पांच महत्त्वपूर्ण तत्त्व कैल्शियम, मैग्नेशियम, फ़ास्फ़ोरस, पोटाशियम और सोडियम अत्यावश्वक होते हैं। इनके अलावा अन्य महत्वपूर्ण किंतु सूक्ष्म मात्रिक तत्व हैं, क्रोमियम, तांबा, आयोडिन, लोहा, मैगनीज और जस्ता। इसके अतिरिक्त सेलेनियम भी अच्छे स्वास्थ्य बनाये रखने में एक उपयोगी है। अन्य सूक्ष्म मात्रिक तत्त्वों में सल्फ़र, निकल, कोबाल्ट, फ़्यूरीन, आंक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन भी हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। ये सब मिलकर आहारीय खनिज कहलाते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने विटामिन इत्यादि। लौह रक्त के लिए और कैल्शियम हडिडयों के लिए सम्पूरक के रूप में गर्भावस्था में महत्वपूर्ण है। आयोडिन की कमी गलगण्ड और मन्दबुद्धि, तथा मैग्नेशियम की कमी कैन्सर का कारण बन सकती है। मैगनीज और क्रोमियम का भी हृदय-रोग से संबध है। सामान्य रक्त-शर्करा के स्तरों को बनाए रखने के लिए क्रोमियम की आवश्यकता है। पाचन-तंत्र में जस्ते की कमी से गंजापन, भूख न लगना और यौन-दुष्क्रिया के परिणाम हो सकते है। एक ७० किलों भार वाले मनुष्य के लिए खनिजांश और उसके दैनिक औसत अन्नग्रहण की आवश्यकताओं का अनुमान निम्न प्रकार से है-.

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आवर्त सारणी

आवर्त सारणी (अथवा, तत्वों की आवर्त सारणी) रासायनिक तत्वों को उनकी संगत विशेषताओं के साथ एक सारणी के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। आवर्त सारणी में रासायनिक तत्त्व परमाणु क्रमांक के बढ़ते क्रम में सजाये गये हैं तथा आवर्त (पिरियड), प्राथमिक समूह, द्वितीयक समूह में वर्गीकृत किया गया है। वर्तमान आवर्त सारणी मैं ११८ ज्ञात तत्व सम्मिलित हैं। सबसे पहले रूसी रसायन-शास्त्री मेंडलीफ (सही उच्चारण- मेन्देलेयेव) ने सन १८६९ में आवर्त नियम प्रस्तुत किया और तत्वों को एक सारणी के रूप में प्रस्तुत किया। इसके कुछ महीनों बाद जर्मन वैज्ञानिक लोथर मेयर (1830-1895) ने भी स्वतन्त्र रूप से आवर्त सारणी का निर्माण किया। मेन्देलेयेव की सारणी से अल्फ्रेड वर्नर (Alfred Werner) ने आवर्त सारणी का वर्तमान स्वरूप निर्मित किया। सन १९५२ में कोस्टा रिका के वैज्ञानिक गिल चावेरी (scientist Gil Chaverri) ने आवर्त सारणी का एक नया रूप प्रस्तुत किया जो तत्वों के इलेक्ट्रानिक संरचना पर आधारित था। रसायन शास्त्रियों के लिये आवर्त सारणी अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। इसके कारण कम तत्वों के गुणधर्मों को ही याद रखने से काम चल जाता है क्योंकि आवर्त सारणी में किसी समूह (उर्ध्वाधर पंक्ति) या किसी आवर्त (क्षैतिज पंक्ति) में गुणधर्म एक निश्चित क्रम से एवं तर्कसम्मत तरीके से बदलते हैं। नीचे आवर्त सारणी का आधुनिक रूप दिखाया गया है जिसमें १८ वर्ग तथा ७ आवर्त हैं- .

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आवर्त सारणी के नमूने

नमूनों द्वारा प्रदर्शित रासायनिक तत्व, जिन्हें परमाणु अंक से क्रमबद्ध किया गया है। इन रासायनिक तत्वों के बारे में अधिक जानकारी के लिये उनके लेखों पर जायें। .

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आवश्यक वसीय अम्ल

भुने हुए अखरोट का तेल, आवश्यक वसीय अम्ल स्रोत आवश्यक वसीय अम्ल (अंग्रेज़ी:असेन्शियल फैटी एसिड, ई.एफ.ए) जिसे प्रायः विटामिन-एफ भी कह देते हैं, वसीय अम्ल (फैटी एसिड) से बना होता है। इसीलिए इसका नाम विटामिन-एफ पड़ा है। ये दो प्रकार के होते हैं - ओमेगा-३ तथा ओमेगा-६। इस विटामिन का मुख्य कार्य शरीर के ऊतकों का निर्माण और उनकी मरम्मत करना होता है। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ.डी.ए.) विटामिन-एफ को अपने दिन के पूरे कैलोरी भुक्तक्रिया (इन्टेक) में से एक से दो प्रतिशत ग्रहण करने का सझाव देता है। इसके अलावा, शरीर के चयापचय, बालों तथा त्वचा के लिए भी विटामिन-एफ काफी लाभदायक होते हैं।|हिन्दुस्तान लाइव|२२ जून २०१०|सारांश जैन शरीर में जब भी कहीं चोट लगती है तो उससे त्वचा के ऊतकों को काफी हाणि पहुंचती है। विटामिन-एफ इन ऊतकों की मरम्मत कर उन्हें ठीक करते हैं। केवल दो प्रकार के आवश्यक वसीय अम्ल होते हैं: अल्फा-लिनोलेनिक अम्ल जो एक ओमेगा-३ वसीय अम्ल एवं लिनोलेनिक अम्ल जो एक ओमेगा-६ वसीय अम्ल है। कुछ शोधकर्ता गामा लिनोलेनिक अम्ल (ओमेगा-६), लॉरिक अम्ल (संतृप्त वसीय अम्ल), एवं पामिटोलेइक अम्ल (एकलसंतृप्त वसीय अम्ल) को कुछ स्थितियों सहित आवश्यक मानते हैं। .

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आइबोप्रोफेन

आइबोप्रोफेन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसो ऑक्टेनॉल

आइसो ऑक्टेनॉल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोएक्साजॉल

आइसोएक्साजॉल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोप्थैलिक अम्ल

आइसोप्थैलिक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोप्रोपेनॉल

आइसोप्रोपेनॉल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोफ्लुरेन

आइसोफ्लुरेन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोबेन्जोफ्यूरॉन

आइसोबेन्जोफ्यूरॉन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोबोर्नियल

आइसोबोर्नियल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोल्यूसिन

आइसोल्यूसिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोइंडोल

आइसोइंडोल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आइसोक्वीनोलिन

आइसोक्वीनोलिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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आक्सिम

300px ऐलडिहाइडों तथा कीटोनों पर हाइड्रॉक्सिल-ऐमिन की प्रतिक्रिया से जो यौगिक प्राप्त होते हैं उन्हें आक्सिम (Oximes) कहते हैं। ऐलडिहाडो से बने यौगिकों को ऐलडॉक्सिम तथा कीटोनों से बने यौगिक कीटॉक्सिम कहलाते हैं। इनके सूत्र सामने के चित्र में दर्शाए गये हैं। आक्सिम वे रासायनिक यौगिक हैं जिनका सामान्य सूत्र R1R2C.

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इट्राकोनाजोल

इट्राकोनाजोल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इथाइल 4-एमाइनोबेंजोएट

इथाइल 4-एमाइनोबेंजोएट एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इथाइल एमाइन

इथाइल एमाइन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इथाइल एसिटेट

इथाइल एसिटेट एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इथाइल अल्कोहल

इथाइल एल्कोहॉल इथेनॉल C2H5OH रंगहीन, वाष्पशील, ज्वलनशील द्रव्य। शीरा, अनाज, आलू आदि कार्बोहाइड्रेट के किण्वन से बनता है। इथीन के जल अपघटन द्वारा व्यापारिक उत्पादन होता है। प्रभाजी आसवन (फ्रैक्श्नल डिस्टिलेशन) द्वारा ९५% शुद्ध अल्कोहॉल प्राप्त किया जाता है। इथाइल एल्कोहाँल परम एल्कोहॉल इस जल को किसी निर्जलीकारक का प्रयोग करके प्राप्त करते हैं। पेय पदार्थों में प्रयुक्त। वसाओं, तेलों तथा रेज़िनों के विलायक के रूप में उपयोगी। अनेक कार्बनिक यौगिकों का कच्चा माल। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इन्सुलिन

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इस्पात

इस्पात (Steel), लोहा, कार्बन तथा कुछ अन्य तत्वों का मिश्रातु है। इसकी तन्य शक्ति (tensile strength) अधिक होती है जबकि प्रति टन मूल्य कम होने के कारण यह भवनों, अधोसंरचना, औजार, जलयान, वाहन, और मशीनों के निर्माण में प्रयुक्त होता है। 'इस्पात' शब्द इतने विविध प्रकार के परस्पर अत्यधिक भिन्न गुणोंवाले पदार्थो के लिए प्रयुक्त होता है कि इस शब्द की ठीक-ठीक परिभाषा करना वस्तुत: असंभव है। परंतु व्यवहारत: इस्पात से लोहे तथा कार्बन (कार्बन) की मिश्र धातु ही समझी जाती है (दूसरे तत्व भी साथ में चाहे हों अथवा न हों)। इसमें कार्बन की मात्रा साधारणतया 0.002% से 2.14% तक होती है। किसी अन्य तत्व की अपेक्षा कार्बन, लोहे के गुणों को अधिक प्रभावित करता है; इससे अद्वितीय विस्तार में विभिन्न गुण प्राप्त होते हैं। वेसे तो कई अन्य साधारण तत्व भी मिलाए जाने पर लोहे तथा इस्पात के गुणों को बहुत बदल देते हैं, परंतु इनमें कार्बन ही प्रधान मिश्रधातुकारी तत्व है। यह लोहे की कठोरता तथा पुष्टता समानुपातिक मात्रा में बढ़ाता है, विशेषकर उचित उष्मा उपचार के उपरांत। इस्पात एक मिश्रण है जिसमें अधिकांश हिस्सा लोहा का होता है। इस्पात में 0.2 प्रतिशत से 2.14 प्रतिशत के बीच कार्बन होता है। लोहा के साथ कार्बन सबसे किफायत मिश्रक होता है, लेकिन जरूरत के अनुसार, इसमें मैंगनीज, क्रोमियम, वैंनेडियम और टंग्सटन भी मिलाए जाते हैं। कार्बन और दूसरे पदार्थ मिश्र-धातु को कठोरता प्रदान करते हैं। लौहे के साथ, उचित मात्रा में मिश्रक मिलाकर लोहे को आवश्यक कठोरता, तन्यता और सुघट्यता प्रदान किया जाता है। लौहे में जितना ज्यादा कार्बन मिलाते हैं इस्पात उतना ही कठोर बनता जाता है, कठोरता बढ़ने के साथ ही उसकी भंगुरता भी बढ़ती जाती है। 1149 डिग्री सेल्सियस पर लौहे में कार्बन की अधिकतम घुल्यता 2.14 प्रतिशत है। कम तापमान पर अगर लौहे में ज्यादा मात्रा में कार्बन हो तो इससे सिमेंटाइट का निर्माण होगा। लौहे में अगर इससे ज्यादा कार्बन हो तो यह कास्ट आयरन कहलाता है, क्योंकि इसका गलनाक कम हो जाता है। इस्पात, कास्ट आयरन से इसलिए भी अलग होता है क्योंकि इसमें दूसरे तत्वों की मात्रा अत्यंत कम होती है यानी 1 से तीन प्रतिशत के करीब.

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इंडाजोल

इंडाजोल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इंडिन

इंडिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इंड्रिन

इंड्रिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इंडोल-3-एसिटिक अम्ल

इंडोल-3-एसिटिक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इंडोलिन

इंडोलिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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इंडोसल्फेन

इंडोसल्फेन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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कार्बधातुक यौगिक

उन रासायनिक वस्तुओं को, जिनमें एक या अधिक हाइड्रोकार्बन मूलक धातु या उपधातु (metalloid) से ऋजु संयोजित होते हैं, कार्बधातुक यौगिक (Organomettllic Compounds) कहते हैं। प्रकृति में ये अप्राप्य हैं, पर प्रयोगशाला में संश्लेषित इन यौगिकों की संख्या बहुत बड़ी है। फ़्रैंकलैंड ने सर्वप्रथम 1849 ई. में डाइ-एथिल जस्ता नामक एक कार्बधातुक यौगिक का पृथक्करण किया और उसकी संरचना निर्धारित की। बाद में अनेक धातुओं और उपधातुओं के संयोग से कई यौगिकों का संश्लेषण किया गया। इन यौगिकों ने आधुनिक रसायन की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे टेट्रा-एथिल सीस (Lead) एक बेहद उपयोगी प्रत्याघात (antiknock) है, जिसका उपयोग मोटर ईंधन में होता है। ये यौगिक कई प्रकार के हैं, जिन्हें साधारणत दो भागों में विभाजित किया जाता है: (1) "सरल" कार्बधातुक यौगिक, जिनमें कार्बनिक समूह आर (R) (ऐल्किल, ऐरिल आदि) धातु से संयोजित हैं और (2) कार्बधातुक यौगिक "मिश्रित", जब आर (R) और एक्स (X) (हैलोजन, हाइड्राक्सिल, हाइड्रोजन आदि) दोनों ही धातु से संबद्ध हों। इन यौगिकों का संश्लेषण प्राय: जस्ता, मैग्नीशियम, पारद आदि धातुओं और ऐल्किल आयोडाइडों की अभिक्रिया से होता है। विशेष क्रियाशील होने के कारण इनका उपयोग रासायनिक संश्लेषण क्रियाओं में अधिकता से होता है। सोडियम मेथिल (NaCH3) जैसे सोडियम ऐल्किल की प्राप्ति, पारद ऐल्किलों पर सोडियम की अभिक्रिया से, होती है। शुद्ध रूप में ये अमणिभीय पदार्थ हैं, जो भिन्न-भिन्न विलायकों में अविलेय हैं। गर्म करने पर बिना द्रवित हुए ही विच्छेदित होते हैं। .

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कार्बन

कार्बन का एक बहुरूप हीरा। कार्बन का एक अन्य बहुरूप ग्रेफाइट। पृथ्वी पर पाए जाने वाले तत्वों में कार्बन या प्रांगार एक प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इस रासायनिक तत्त्व का संकेत C तथा परमाणु संख्या ६, मात्रा संख्या १२ एवं परमाणु भार १२.००० है। कार्बन के तीन प्राकृतिक समस्थानिक 6C12, 6C13 एवं 6C14 होते हैं। कार्बन के समस्थानिकों के अनुपात को मापकर प्राचीन तथा पुरातात्विक अवशेषों की आयु मापी जाती है। कार्बन के परमाणुओं में कैटिनेशन नामक एक विशेष गुण पाया जाता है जिसके कारण कार्बन के बहुत से परमाणु आपस में संयोग करके एक लम्बी शृंखला का निर्माण कर लेते हैं। इसके इस गुण के कारण पृथ्वी पर कार्बनिक पदार्थों की संख्या सबसे अधिक है। यह मुक्त एवं संयुक्त दोनों ही अवस्थाओं में पाया जाता है। इसके विविध गुणों वाले कई बहुरूप हैं जिनमें हीरा, ग्रेफाइट काजल, कोयला प्रमुख हैं। इसका एक अपरूप हीरा जहाँ अत्यन्त कठोर होता है वहीं दूसरा अपरूप ग्रेफाइट इतना मुलायम होता है कि इससे कागज पर निशान तक बना सकते हैं। हीरा विद्युत का कुचालक होता है एवं ग्रेफाइट सुचालक होता है। इसके सभी अपरूप सामान्य तापमान पर ठोस होते हैं एवं वायु में जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड गैस बनाते हैं। हाइड्रोजन, हीलियम एवं आक्सीजन के बाद विश्व में सबसे अधिक पाया जाने वाला यह तत्व विभिन्न रूपों में संसार के समस्त प्राणियों एवं पेड़-पौधों में उपस्थित है। यह सभी सजीवों का एक महत्त्वपूर्ण अवयव होता है, मनुष्य के शरीर में इसकी मात्रा १८.५ प्रतिशत होती है और इसको जीवन का रासायनिक आधार कहते हैं। कार्बन शब्द लैटिन भाषा के कार्बो शब्द से आया है जिसका अर्थ कोयला या चारकोल होता है। कार्बन की खोज प्रागैतिहासिक युग में हुई थी। कार्बन तत्व का ज्ञान विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं को भी था। चीन के लोग ५००० वर्षों पहले हीरे के बारे में जानते थे और रोम के लोग लकड़ी को मिट्टी के पिरामिड से ढककर चारकोल बनाते थे। लेवोजियर ने १७७२ में अपने प्रयोगो द्वारा यह प्रमाणित किया कि हीरा कार्बन का ही एक अपरूप है एवं कोयले की ही तरह यह जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड गैस उत्पन्न करता है। कार्बन का बहुत ही उपयोगी बहुरूप फुलेरेन की खोज १९९५ ई. में राइस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर इ स्मैली तथा उनके सहकर्मियों ने की। इस खोज के लिए उन्हें वर्ष १९९६ ई. का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। .

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कार्बन डाईऑक्साइड

कार्बन डाइआक्साइड (Carbon dioxide) (रासायनिक सूत्र CO2) एक रंगहीन तथा गन्धहीन गैस है जो पृथ्वी पर जीवन के लिये अत्यावश्यक है। धरती पर यह प्राकृतिक रूप से पायी जाती है। धरती के वायुमण्डल में यह गैस आयतन के हिसाब से लगभग 0.03 प्रतिशत होती है। कार्बन डाईऑक्साइड कार्बन डाइआक्साइड का निर्माण आक्सीजन के दो परमाणु तथा कार्बन के एक परमाणु से मिलकर हुआ है। सामान्य तापमान तथा दबाव पर यह गैसीय अवस्था में रहती है। वायुमंडल में यह गैस 0.03% 0.04% तक पाई जाती है, परन्तु मौसम में परिवर्तन के साथ वायु में इसकी सान्द्रता भी थोड़ी परिवर्तित होती रहती है। यह एक ग्रीनहाउस गैस है, क्योंकि सूर्य से आने वाली किरणों को तो यह पृथ्वी के धरातल पर पहुंचने देती है परन्तु पृथ्वी की गर्मी जब वापस अंतरिक्ष में जाना चाहती है तो यह उसे रोकती है। पृथ्वी के सभी सजीव अपनी श्वसन की क्रिया में कार्बन डाइआक्साइड का त्याग करते है। जबकि हरे पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करते समय इस गैस को ग्रहण करके कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं। इस प्रकार कार्बन डाइआक्साइड कार्बन चक्र का प्रमुख अवयव है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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कार्बन नैनोट्यूब

कार्बन नैनोट्यूब का घूर्णन करता यह एनिमेशन उसकी 3 डी संरचना को दर्शाता है। कार्बन नैनोट्यूब (CNTs) एक बेलनाकार नैनोसंरचना वाले कार्बन के एलोट्रोप्स हैं। नैनोट्यूब को 28,000,000:1 तक के लंबाई से व्यास अनुपात के साथ निर्मित किया गया है, जो महत्वपूर्ण रूप से किसी भी अन्य द्रव्य से बड़ा है। इन बेलनाकार कार्बन अणुओं में नवीन गुण हैं जो उन्हें नैनोतकनीक, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रकाशिकी और पदार्थ विज्ञान के अन्य क्षेत्रों के कई अनुप्रयोगों के साथ-साथ वास्तु क्षेत्र में संभावित रूप से उपयोगी बनाते हैं। वे असाधारण शक्ति और अद्वितीय विद्युत् गुण प्रदर्शित करते हैं और कुशल ताप परिचालक हैं। उनका अंतिम उपयोग, लेकिन, उनकी संभावित विषाक्तता और रासायनिक शोधन की प्रतिक्रिया में उनके गुण परिवर्तन को नियंत्रित करने के द्वारा सीमित हो सकता है। नैनोट्यूब फुलरीन संरचनात्मक परिवार के सदस्य हैं, जिसमें गोलाकार बकिबॉल भी शामिल हैं। एक नैनोट्यूब के छोर को बकिबॉल संरचना के एक गोलार्द्ध के साथ ढका जा सकता है। उनका नाम उनके आकार से लिया गया है, चूंकि एक नैनोट्यूब का व्यास कुछ नैनोमीटर के क्रम में है (एक मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 1/50,000 वां हिस्सा), जबकि वे लंबाई में कई मिलीमीटर हो सकते हैं (यथा 2008).

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कार्बनिक यौगिक

मिथेन सबसे सरल कार्बनिक यौगिक कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। .

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कार्बनिक रसायन

कार्बनिक रसायन रसायन विज्ञान की एक प्रमुख शाखा है, दूसरी प्रमुख शाखा है - अकार्बनिक रसायन। कार्बनिक रसायन का सम्बन्ध मुख्यतः कार्बन और हाइड्रोजन के अणुओं वाले रासायनिक यौगिकों के संरचना, गुणधर्म, रासायनिक अभिक्रियाओं एवं उनके निर्माण (संश्लेषण या सिन्थेसिस एवं अन्य प्रक्रिया द्वारा) आदि के वैज्ञानिक अध्ययन से है। कार्बनिक यौगिकों में कार्बन और हाइड्रोजन के अतिरिक्त अन्य अणु भी हो सकते हैं, जैसे- नाइट्रोजन (नत्रजन), ऑक्सीजन, हैलोजन, फॉस्फोरस, सिलिकॉन, गंधक (सल्फर) आदि।.

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कार्बोहाइड्रेट

रासायनिक रुप से ‘‘कार्बोहाइड्रेट्स पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स होते हैं तथा स्वयं के जलीय अपघटन के फलस्वरुप पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स देते हैं।’’ कार्बोहाइड्रेट्स, कार्बनिक पदार्थ हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन होते है। इसमें हाइड्रोजन व आक्सीजन का अनुपात जल के समान होता है। कुछ कार्बोहाइड्रेट्स सजीवों के शरीर के रचनात्मक तत्वों का निर्माण करते हैं जैसे कि सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज, काइटिन तथा पेक्टिन। जबकि कुछ कार्बोहाइड्रेट्स उर्जा प्रदान करते हैं, जैसे कि मण्ड, शर्करा, ग्लूकोज़, ग्लाइकोजेन.

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काइटिन

काइटिन अणु की संरचना, एन-एसिटाइलग्लूकोसेमाइन की इकाइयों को दो दिखाते हुए β-1,4 बंध में वृहत-श्रृंखला बनाने के लिए दोहराते हैं। काइटिन (C8H13O5N)n ग्लूकोज से व्युत्पन्न एन -एसिटाइलग्लूकोसेमाइन का वृहत-श्रृंखला बहुलक है, जो समस्त प्रकृति जगत में अनेक स्थानों पर पाया जाता है। यह कवक की कोशिका भित्ति, जलीय संधिपादों (उदाहरण के लिए, केकड़ा, झींगा और चिराट) और कीटों के बाह्यकंकालों, घोंघे के घर्षित्रों तथा समुद्रफेनी व ऑक्टोपस सहित शीर्षपादों की चोंचों का मुख्य घटक है। काइटिन की बहुशर्कराइड सेलुलोस और प्रोटीन किरेटिन से तुलना की जा सकती है। हालांकि किरेटिन एक प्रोटीन है, काइटिन की भांति कार्बोहाइड्रेट नहीं है, किरेटिन और काइटिन के संरचनात्मक प्रकार्य समान होते हैं। काइटिन अनेक चिकित्सा और औद्योगिक प्रयोजनों के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। .

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कुशल इलेक्ट्रोलिसिस

कुशल और भरपूर मात्रा में वैकल्पिक ईंधन लगाने की इस् दौड मे, शोधकर्ताओं ने हमेशा जब समुद्री जल के बंटवारे की एक कारगर तरीका अपनाने के लिए हाइड्रोजन ईंधन का उत्पादन करने की कोशिश की है तब मात खाई है। जून 10 पर, इलेक्ट्रोमटेरियल् विज्ञान के लिए उत्कृष्टता के ऑस्ट्रेलियाई अनुसंधान परिषद सेंटर की एक टीम एक उत्प्रेरक खोज निकाला है जिसे बहुत कम ऊर्जा चहिय्.जो उत्प्रेरक है एक लचीला प्लास्टिक की फिल्म है जो सुर्य किर्णो से प्राप्त उर्जा के साथ समुद्र के पानी को विभाजित करने में सक्षम है। मौजूदा तरीकों मे पानी के ऑक्सीकरण करने के लिए बहुत् बड़ी राशि मे ऊर्जा की आवश्यकता के विपरीत, इस विधि के द्वारा औसत से एक् घर और पूरे दिन के लिए कार को केवल 5 लीटर (1.3 लड़की) समुद्री जल के उपयोग से पर्याप्त ऊर्जा का उत्पादन होगा। फिल्म में एक सूर्य की ऊर्जा का दोहन करने के लिए सिंथेटिक क्लोरोफिल अणु है, ठीक उसी तरह जैसे पौधों की पत्तियों में होते हैं। न ही इस पद्धति का उपयोग करके कोइ नुक्सान है, मौजूदा जल बंटवारे तरीका जहरीला क्लोरीन गैस का उत्पादन करता है। यह एक बहुत कुशल् विधि है,पेट्रोल ईंधन की तुलना मे, ये तरीका ईंधन की लागत को कम कर सकता है। वॉलोन्गॉन्ग विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जून चेन ने कहा, "हम प्रणाली सामग्री सहित डिज़ाइन किया गया, हमें विभिन्न उपकरणों और अनुप्रयोगों के एक पानी बंटवारे स्रोत के रूप में समुद्र के पानी का उपयोग कर डिजाइन करने का अवसर देता है।सामग्री की लचीली प्रकृति भी पोर्टेबल हाइड्रोजन के उत्पादन के उपकरणों का निर्माण करने की संभावना प्रदान करता है।" ए.सी.इ.एस् कार्यकारी अनुसंधान निदेशक प्रोफेसर गॉर्डन वालेस ने कहा, "आज की दुनिया में उच्च प्रदर्शन सामग्री की खोज पर्याप्त नहीं है।" .

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क्रोटाइल अल्कोहल

यह एक प्रकार का अल्कोहल है। श्रेणी:अल्कोहल .

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क्लोरल

क्लोरल (Chloral, ट्रॉइक्लोरी ऐसीटेल्डीहाइड, CCI3 CHO) एक कार्बनिक यौगिक है। यह एक निद्रापक (hypnotie) है। औद्योगिक पैमाने पर यह एथिल ऐलकोहल पर क्लोरिन की क्रिया से प्राप्त किया जाता है। पहले ठंडे एथिल ऐलकोहल में क्लोरीन प्रवाहित किया जाता है और फिर ६०० सें.

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क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी)

क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) एक कार्बनिक यौगिक है जो केवल कार्बन, क्लोरीन, हाइड्रोजन और फ्लोरीन परमाणुओं से बनता है। सीएफसी का इस्तेमाल रेफ्रिजरेंट, प्रणोदक (एयरोसोल अनुप्रयोगों में) और विलायक के तौर पर व्यापक रूप से होता है।ओजोन निःशेषण में इसका योगदान देखते हुए, सीएफसी जैसे यौगिकों का निर्माण मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत चरणबद्ध तरीके से बंद कर दिया गया है। CF-C श्रेणी:पर्यावरण श्रेणी:रसायन श्रेणी:जलवायु परिवर्तन कारक श्रेणी:वैश्विक तापन श्रेणी:ग्रीनहाउस गैसें श्रेणी:अग्निशमन.

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कृत्तिका तारागुच्छ

कृत्तिका तारागुच्छ अवरक्त प्रकाश (इन्फ़्रारॅड) में कृत्तिका के एक हिस्से का दृश्य - धूल का ग़ुबार साफ़ दिख रहा है कृत्तिका का एक नक़्शा कृत्तिका, जिसे प्लीयडीज़ भी कहते हैं, वृष तारामंडल में स्थित B श्रेणी के तारों का एक खुला तारागुच्छ है। यह पृथ्वी के सब से समीप वाले तारागुच्छों में से एक है और बिना दूरबीन के दिखने वाले तारागुच्छों में से सब से साफ़ नज़र आता है। कृत्तिका तारागुच्छ का बहुत सी मानव सभ्यताओं में अलग-अलग महत्व रहा है। इसमें स्थित ज़्यादातर तारे पिछले १० करोड़ वर्षों के अन्दर जन्में हुए नीले रंग के गरम और बहुत ही रोशन तारे हैं। इसके सबसे रोशन तारों के इर्द-गिर्द धूल भी दमकती हुई नज़र आती है। पहले समझा जाता था कि यह यहाँ के तारों के निर्माण के बाद बची-कुची धूल है, लेकिन अब ज्ञात हुआ है कि यह अंतरतारकीय माध्यम (इन्टरस्टॅलर मीडयम) में स्थित एक अलग ही धूल और गैस का बादल है जिसमें से कृत्तिका के तारे गुज़र रहें हैं। खगोलशास्त्रियों का अनुमान है कि इस तारागुच्छ और २५ करोड़ वर्षों तक साथ हैं लेकिन उसके बाद आसपास गुरुत्वाकर्षण कि खींचातानी से एक-दूसरे से बिछड़कर तित्तर-बित्तर हो जाएँगे। कृत्तिका पृथ्वी से ४०० और ५०० प्रकाश वर्ष के बीच की दूरी पर स्थित है और इसकी ठीक दूरी पर वैज्ञानिकों में ४०० से लेकर ५०० प्रकाश वर्षों के बीच के आंकड़ों में अनबन रही है। .

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कैल्सियम

कैल्सियम (Calcium) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्तसारणी के द्वितीय मुख्य समूह का धातु तत्व है। यह क्षारीय मृदा धातु है और शुद्ध अवस्था में यह अनुपलब्ध है। किन्तु इसके अनेक यौगिक प्रचुर मात्रा में भूमि में मिलते है। भूमि में उपस्थित तत्वों में मात्रा के अनुसार इसका पाँचवाँ स्थान है। यह जीवित प्राणियों के लिए अत्यावश्यक होता है। भोजन में इसकी समुचित मात्र होनी चाहिए। खाने योग्य कैल्शियम दूध सहित कई खाद्य पदार्थो में मिलती है। खान-पान के साथ-साथ कैल्शियम के कई औद्योगिक इस्तेमाल भी हैं जहां इसका शुद्ध रूप और इसके कई यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। आवर्त सारणी में कैल्शियम का अणु क्रमांक 20 है और इसे अंग्रेजी शब्दों ‘Ca’ से इंगित किया गया है। 1808 में सर हम्फ्री डैवी ने इसे खोजा था। उन्होंने इसे कैल्सियम क्लोराइड से अलग किया था। चूना पत्थर, कैल्सियम का महत्वपूर्ण खनिज स्रोत है। पौधों में भी कैल्शियम पाया जाता है। अपने शुद्ध रूप में कैल्शियम चमकीले रंग का होता है। यह अपने अन्य साथी तत्वों के बजाय कम क्रियाशील होता है। जलाने पर इसमें से पीला और लाल धुआं उठता है। इसे आज भी कैल्शियम क्लोराइड से उसी प्रक्रिया से अलग किया जाता है जो सर हम्फ्री डैवी ने 1808 में इस्तेमाल की थी। कैल्शियम से जुड़े ही एक अन्य यौगिक, कैल्सियम कार्बोनेट को कंक्रीट, सीमेंट, चूना इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अन्य कैल्शियम कंपाउंड अयस्कों, कीटनाशक, दुर्गन्धहर, खाद, कपड़ा उत्पादन, कॉस्मेटिक्स, लाइटिंग इत्यादि में इस्तेमाल किया जाता है। जीवित प्राणियों में कैल्शियम हड्डियों, दांतों और शरीर के अन्य हिस्सों में पाया जाता है। यह रक्त में भी होता है और शरीर की अंदरूनी देखभाल में इसकी विशेष भूमिका होती है। कैल्सियम अत्यंत सक्रिय तत्व है। इस कारण इसको शुद्ध अवस्था में प्राप्त करना कठिन कार्य है। आजकल कैल्सियम क्लोराइड तथा फ्लोरस्पार के मिश्रण को ग्रेफाइट मूषा में रखकर विद्युतविच्छेदन द्वारा इस तत्व को तैयार करते हैं। शुद्ध अवस्था में यह सफेद चमकदार रहता है। परन्तु सक्रिय होने के कारण वायु के आक्सीजन एवं नाइट्रोजन से अभिक्रिया करता है। इसके क्रिस्टल फलक केंद्रित घनाकार रूप में होते हैं। यह आघातवर्ध्य तथा तन्य तत्व है। इसके कुछ गुणधर्म निम्नांकित हैं- साधारण ताप पर यह वायु के ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से धीरे धीरे अभिक्रिया करता है, परंतु उच्च ताप पर तीव्र अभिक्रिया द्वारा चमक के साथ जलता है और कैलसियम आक्साइड (CaO) बनाता है। जल के साथ अभिक्रिया कर यह हाइड्रोजन उन्मुक्त करता है और लगभग समस्त अधातुओं के साथ अभिक्रिरिया कर यौगिक बनाता है। इसके रासायनिक गुण अन्य क्षारीय मृदा तत्वों (स्ट्रांशियम, बेरियम तथा रेडियम) की भाँति है। यह अभिक्रिया द्वारा द्विसंयोजकीय यौगिक बनाता है। ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होने पर कैलसियम ऑक्साइड का निर्माण होता है, जिसे कली चूना और बिना बुझा चूना (quiklime) भी कहते हैं। पानी में घुलने पर कैल्सियम हाइड्रॉक्साइड या शमित चूना या बुझा चूना (slaked lime) बनता है। यह क्षारीय पदार्थ है जिसका उपयोग गृह निर्माण कार्य में पुरतान काल से होता आया है। चूने में बालू, जल आदि मिलाने पर प्लास्टर बनता है, जो सूखने पर कठोर हो जाता है और धीरे-धीरे वायुमण्डल के कार्बन डाइऑक्साइड से अभिक्रिया कर कैलसियम कार्बोनेट में परिणत हो जाता है। कैलसियम अनेक तत्वों (जैसे हाइड्रोजन, फ्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन आयोडीन, नाइट्रोजन सल्फर आदि) के साथ अभिक्रिया कर यौगिक बनता है। कैलसियम क्लोराइड, हाइड्रोक्साइड, तथा हाइपोक्लोराइड का एक मिश्रण और ब्लिचिंग पाउडर कहलाता है जो वस्त्रों आदि के विरंजन में उपयोगी है। कैलसियम कार्बोनेट तथा बाइकार्बोनेट भी उपयोगी है। अपाचयक तत्व होने के कारण कैलसियम अन्य धातुओं के निर्माण में काम आता है। कुछ धातुओं में कैलसियम मिश्रित करने पर उपयोगी मिश्र धातुएँ बनती हैं। कैलसियम के यौगिक के अनेक उपयोग हैं। कुछ यौगिक (नाइट्रेट, फॉसफेट आदि) उर्वरक के रूप में उपयोग में आते है। कैलसियम कार्बाइड का उपयोग नाइट्रोजन स्थिरीकरण उद्योग में होता है और इसके द्वारा एसिटिलीन गैस बनाई जाती है। कैलसियम सल्फेट द्वारा प्लास्टर ऑफ पेरिस बनाया जाता है। इसके अतिरक्ति कुछ यौगिक चिकित्सा, पोर्स्लोिन उद्योग, काच उद्योग, चर्म उद्योग तथा लेप आदि के निर्माण में उपयोगी है। भारत के प्राचीन निवासी कैलसियम के यौगिक तत्वों से परिचित थे। उनमें चूना (कैलसियम आक्साइड) मुख्य है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के भग्नावशेषों से ज्ञात होता है तत्कालीन निवासी चूने का उपयोग अनेक कार्यों में करते थे। चूने के साथ कतिपय अन्य पदार्थों के मिश्रण से 'वज्रलेप' तैयार करने का प्राचीन साहित्य में प्राप्त होता है। चरक ने ऐसे क्षारों का वर्णन किया है जिनको विभिन्न समाक्षारों पर चूने की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता था। कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में कोपिया नामक एक स्थान से काँच बनाने के एक प्राचीन कारखाने के अवशेष प्राप्त हुए हैं। उसका काल लगभग पाँचवी शती ईसवी पूर्व अनुमान किया जाता है। वहाँ से मिली काँच की वस्तुओं की परीक्षा से ज्ञात हुआ है कि उस काल के काँच बनाने में चूने का उपयोग होता था। .

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कोयला

कोयला एक ठोस कार्बनिक पदार्थ है जिसको ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में कोयला अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कुल प्रयुक्त ऊर्जा का ३५% से ४०% भाग कोयलें से पाप्त होता हैं। विभिन्न प्रकार के कोयले में कार्बन की मात्रा अलग-अलग होती है। कोयले से अन्य दहनशील तथा उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त किया जाता है। ऊर्जा के अन्य स्रोतों में पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद का नाम सर्वोपरि है। .

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कोलेस्टेरॉल

कोलेस्ट्रॉल क्रिस्टल का सूक्ष्मदर्शी दर्शन, जल में। छायाचित्र ध्युवीकृत प्रकाश में लिया गया है। कोलेस्ट्रॉल या पित्तसांद्रव मोम जैसा एक पदार्थ होता है, जो यकृत से उत्पन्न होता है। यह सभी पशुओं और मनुष्यों के कोशिका झिल्ली समेत शरीर के हर भाग में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल कोशिका झिल्ली का एक महत्वपूर्ण भाग है, जहां उचित मात्रा में पारगम्यता और तरलता स्थापित करने में इसकी आवश्यकता होती है। कोलेस्ट्रॉल शरीर में विटामिन डी, हार्मोन्स और पित्त का निर्माण करता है, जो शरीर के अंदर पाए जाने वाले वसा को पचाने में मदद करता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल भोजन में मांसाहारी आहार के माध्यम से भी पहुंचता है यानी अंडे, मांस, मछली और डेयरी उत्पाद इसके प्रमुख स्रोत हैं। अनाज, फल और सब्जियों में कोलेस्ट्रॉल नहीं पाया जाता। शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लगभग २५ प्रतिशत उत्पादन यकृत के माध्यम से होता है। कोलेस्ट्रॉल शब्द यूनानी शब्द कोले और और स्टीयरियोज (ठोस) से बना है और इसमें रासायनिक प्रत्यय ओल लगा हुआ है। १७६९ में फ्रेंकोइस पुलीटियर दी ला सैले ने गैलेस्टान में इसे ठोस रूप में पहचाना था। १८१५ में रसायनशास्त्री यूजीन चुरवेल ने इसका नाम कोलेस्ट्राइन रखा था। मानव शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता मुख्यतः कोशिकाओं के निर्माण के लिए, हारमोन के निर्माण के लिए और बाइल जूस के निर्माण के लिए जो वसा के पाचन में मदद करता है; होती है। फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में नैशनल पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के प्रमुख रिसर्चर डॉ॰ गांग हू के अनुसार कोलेस्ट्रॉल अधिक होने से पार्किंसन रोग की आशंका बढ़ जाती है। .

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कीटोन

कीटोन अल्केन में किसी बीच वाले कार्बन से जुड़े दोनों हाइड्रोजन परमाणुओं को एक ऑक्सीजन परमाणु द्वारा विस्थापित करने पर जो कार्बनिक यौगिक प्राप्त होता है उसे कीटोन कहते हैं। कीटोन में कम से कम एक -C.

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अणु

साधारण चीनी का अणु - इसमें १२ कार्बन (काला रंग), २२ हाइड्रोजन (सफ़ेद रंग) और ११ आक्सीजन (लाल रंग) के परमाणु एक दुसरे से जुड़े हुए होते हैं अणु पदार्थ का वह छोटा कण है जो प्रकृति के स्वतंत्र अवस्था में पाया जाता है लेकिन रासायनिक प्रतिक्रिया में भाग नहीं ले सकता है। रसायन विज्ञान में अणु दो या दो से अधिक, एक ही प्रकार या अलग अलग प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना होता है। परमाणु मजबूत रसायनिक बंधन के कारण आपस में जुड़े रहते हैं और अणु का निर्माण करते हैं। अणु की संकल्पना ठोस, द्रव और गैस के लिये अलग अलग हो सकती है। अणु पदार्थ के सबसे छोटे भाग को कहते हैं। यह कथन गैसो के लिये ज्यादा उपयुक्त है। उदाहरण के लिये, ओक्सीजन गैस उसके स्वतन्त्र अणुओ का एक समूह है। द्रव और ठोस में अणु एक दूसरे से किसी ना किसी बन्धन में रह्ते है, इनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता है। कई अणु एक दूसरे से जुडे होते है और एक अणु को अलग नहीं किया जा सकता है। अणु में कोई विद्युत आवेश नहीं होता है। अणु एक ही तत्व के परमाणु से मिलकर बने हो सकते हैं या अलग अलग तत्वों के परमाणु से मिलकर। .

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अतिशीतल बौना

अतिशीतल बौना (ultra-cool dwarf) वर्णक्रम श्रेणी M की ऐसी तारकीय या उपतारकीय खगोलीय वस्तु होती है जिसका तापमान 2,700 कैल्विन से कम हो। ट्रैपिस्ट-१ एक जाना-पहचाना अतिशीतल बौना तारा है। हमारे सूरज के पड़ोस के सभी तारों में से लगभग 15% अतिशीतल बौने हैं। अतिशीतल बौनों में हाइड्रोजन का संलयन (फ्यूज़न) धीमी गति से चलता है जिस कारणवश इनकी आयु बहुत लम्बी होती है। जहाँ हमारे सूरज की आयु 4.6 अरब वर्ष है और इसके पास अभी 5.4 अरब और वर्षों तक खपाने को हाइड्रोजन गैस है, अतिशीतल बौनों की आयु 100 अरब वर्षों से भी अधिक हो सकती है। हमारे ब्रह्माण्ड की कुल आयु केवल 13.8 अरब वर्ष होने के कारण सभी अतिशीतल बौने अभी अपने आरम्भिक काल में ही हैं और उनका बहुत जीवन शेष है। .

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अधातु

अधातु (non-metals) रासायनिक वर्गीकरण में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द है। आवर्त सारणी का प्रत्येक तत्व अपने रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर धातु अथवा अधातु श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है। (कुछ तत्व जिनमें दोनों के गुण पाये जाते हैं उन्हें उपधातु (metaloid) की श्रेणी में रखा जाता है।) आवर्त सारणी में ये १४वें (XIV) से लेकर १८वें (XVIII) समूह में दाहिने-ऊपरी कोने में स्थित हैं। इसके अलावा प्रथम समूह में सबसे उपर स्थित उदजन भी अधातु है। हाइड्रोजन के अलावा जारक, प्रांगार, भूयाति, गंधक, भास्वर, हैलोजन, तथा अक्रिय गैसें अधातु मानी जाती हैं। प्रायः आवर्त सारणी के केवल 18 तत्व अधातु की श्रेणी में गिने जाते हैं जबकि धातु की श्रेणी में 80 से भी अधिक तत्व आते हैं। फिर भी पृथ्वी के गर्भ का, वायुमण्डल और जलमण्डल का अधिकांश भाग अधातुएँ ही हैं। जीवों की संरचना में भी अधातुओं का ही अधिकांशता है। .

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अन्डेकानोल

अन्डेकानोल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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अन्तर्दहन इंजन

42-सिलिण्डर वाला JSC Zvezda M503 डीजल इंजन, 2940 kW अन्तर्दहन इंजन (अन्तः दहन इंजन या आन्तरिक दहन इंजन या internal combustion engine) ऐसा इंजन है जिसमें ईंधन एवं आक्सीकारक सभी तरफ से बन्द एक बेलानाकार दहन कक्ष में जलते हैं। दहन की इस क्रिया में प्रायः हवा ही आक्सीकारक का काम करती है। जिस बन्द कक्ष में दहन होता है उसे दहन कक्ष (कम्बशन चैम्बर) कहते हैं। दहन की यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी (exothermic reaction) होती है जो उच्च ताप एवं दाब वाली गैसें उत्पन्न करती है। ये गैसें दहन कक्ष में लगे हुए एक पिस्टन को धकेलती हुए फैलतीं है। पिस्टन एक कनेक्टिंग रॉड के माध्यम से एक क्रेंक शाफ्ट(घुमने वाली छड़) से जुड़ा होता है, इस प्रकार जब पिस्टन नीचे की तरफ जाता है तो कनेक्टिंग रॉड से जुड़ी क्रेंक शाफ्ट घुमने लगती है, इस प्रकार ईंधन की रासायनिक ऊर्जा पहले ऊष्मीय ऊर्जा में बदलती है और फिर ऊष्मीय ऊर्जा यांत्रिक उर्जा में बदल जाती है। अन्तर्दहन इंजन के विपरीत बहिर्दहन इंजन, (जैसे, वाष्प इंजन) में कार्य करने वाला तरल (जैसे वाष्प) किसी अन्य कक्ष में किसी तरल को गरम करके प्राप्त किया जाता है। प्रायः पिस्टनयुक्त प्रत्यागामी इंजन, जिसमें कुछ-कुछ समयान्तराल के बाद दहन होता है (लगातार नहीं), को ही अन्तर्दहन इंजन कहा जाता है किन्तु जेट इंजन, अधिकांश रॉकेट एवं अनेक गैस टर्बाइनें भी अन्तर्दहन इंजन की श्रेणी में आती हैं जिनमें दहन की क्रिया अनवरत रूप से चलती रहती है। .

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अपचायक

रसायन शास्त्र में अपचायक (reducing agent) ऐसे रासायनिक तत्व या रासायनिक यौगिक को कहते हैं जो रासायनिक अभिक्रिया (रिऐक्शन) में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन किसी अन्य रसायन को देता है। इलेक्ट्रॉन लेने वाले रसायन को आक्सीकारक (oxidizing agent) कहते हैं और अपचायक व आक्सीकारक की आपसी अभिक्रिया को रेडॉक्स अभिक्रिया कहते हैं। मसलन हाइड्रोजन और ओक्सीजन जब अभिक्रिया कर के पानी बनाते हैं इसमें हाइड्रोजन अपचायक होता है और उसके दो परमाणु एक ओक्सीजन के परमाणु को एक-एक इलेक्ट्रॉन देते हैं। इस अभिक्रिया में ओक्सीजन आक्सीकारक होता है। .

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अपशिष्ट प्रबंधन

बर्कशायर, इंग्लैंड में पहियों वाला कचरे का डब्बा अपशिष्ट प्रबंधन परिवहन (transport), संसाधन (processing), पुनर्चक्रण (recycling) या अपशिष्ट (waste) के काम में प्रयोग की जाने वाली सामग्री का संग्रह है। यह शब्द आम तौर पर उस सामग्री को इंगित करता है जो मानव गतिविधियों से बनती हैं और ये इसलिए किया जाता है ताकि मानव पर उस के स्वस्थ, पर्यावरण (environment) या सौंदर्यशास्त्र.

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अभिजित तारा

अभिजित या वेगा (Vega), जिसका बायर नाम "अल्फ़ा लायरे" (α Lyrae या α Lyr) है, लायरा तारामंडल का सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से पाँचवा सब से रोशन तारा भी है। अभिजित पृथ्वी से 25 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। खगोलशास्त्री हज़ारों सालों से अभिजित का अध्ययन करते आए हैं और कभी-कभी कहा जाता है के यह "सूरज के बाद शायद आसमान में सब से महत्त्वपूर्ण तारा है"। .

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अम्बेलिफेरोन

अम्बेलिफेरोन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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अरुण (ग्रह)

अरुण (Uranus), या यूरेनस हमारे सौर मण्डल में सूर्य से सातवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का तीसरा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर चौथा बड़ा ग्रह है। द्रव्यमान में यह पृथ्वी से १४.५ गुना अधिक भारी और अकार में पृथ्वी से ६३ गुना अधिक बड़ा है। औसत रूप में देखा जाए तो पृथ्वी से बहुत कम घना है - क्योंकि पृथ्वी पर पत्थर और अन्य भारी पदार्थ अधिक प्रतिशत में हैं जबकि अरुण पर गैस अधिक है। इसीलिए पृथ्वी से तिरेसठ गुना बड़ा अकार रखने के बाद भी यह पृथ्वी से केवल साढ़े चौदह गुना भारी है। हालांकि अरुण को बिना दूरबीन के आँख से भी देखा जा सकता है, यह इतना दूर है और इतनी माध्यम रोशनी का प्रतीत होता है के प्राचीन विद्वानों ने कभी भी इसे ग्रह का दर्जा नहीं दिया और इसे एक दूर टिमटिमाता तारा ही समझा। १३ मार्च १७८१ में विलियम हरशल ने इसकी खोज की घोषणा करी। अरुण दूरबीन द्वारा पाए जाने वाला पहला ग्रह था। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। अरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और वरुण (नॅप्टयून) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। सौर मण्डल के सारे ग्रहों में से अरुण का वायुमण्डल सब से ठण्डा पाया गया है और उसका न्यूनतम तापमान -४९ कैल्विन (यानी -२२४° सेण्टीग्रेड) देखा गया है। इस ग्रह में बादलों की कई तहें देखी गई हैं। मानना है के सब से नीचे पानी के बादल हैं और सब से ऊपर मीथेन गैस के बादल हैं। यह भी माना जाता है कि यदि किसी प्रकार अरुण के बिलकुल बीच जाकर इसका केन्द्र देखा जा सकता तो वहाँ बर्फ़ और पत्थर पाए जाते। .

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अल्फ़ा फ़ीनाइसिस तारा

अमरपक्षी (फ़ीनिक्स) तारामंडल में 'α' के चिह्न द्वारा नामांकित तारा है अल्फ़ा फ़ीनाइसिस, जिसका बायर नाम भी यही (α Phoenicis या α Phe) है, अमरपक्षी तारामंडल का सब से रोशन तारा है और पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ७९वाँ सब से रोशन तारा है। यह हमसे क़रीब ८५ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) लगभग +२.४ है। .

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अल्सियान ब्लू

अल्सियान ब्लू एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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अवोगाद्रो का नियम

अवोगाद्रो का नियम गैस से सम्बन्धित एक नियम है जिसका नाम अमेदिओ अवोगाद्रो (Amedeo Avogadro) के नाम पर रखा गया है। इसे "अवोगाद्रो की परिकल्पना" (Avogadro's hypothesis) एवं "अवोगाद्रो का सिद्धान्त" के नाम से भी जाना जाता है। सन् १८११ में अवोगाद्रो ने यह परिकल्पना प्रस्तुत की, जो इस प्रकार है - (Equal volumes of ideal or perfect gases, at the same temperature and pressure, contain the same number of particles, or molecules.) .

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अंतरतारकीय माध्यम

से दिखाई देता है। यह अंतरतारकीय माध्यम स्वरूप फैला हुआ है। अंतरखगोलीय माध्यम या अंतरतारकीय माध्यम हाइड्रोजन और हिलीयम के कणों का मिश्रण होता है जो अत्यंत कम घनत्व की स्थिती मे सारे ब्रह्मांड मे फैला हुआ रहता है। आयनीकृत हाइड्रोजन के फैलाव (जिसे खगोलज्ञ पुरातन खगोलीय शब्दावली अनुसार H II कहते हैं) का पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध से विस्कन्सिन Hα मैपर द्वारा लिया गया हुआ चित्र दिखाया गया है। यह अंतरतारकीय माध्यम स्वरूप फैला हुआ है। .

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अंतरराष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र

आई। टी.ई.आर निर्वात वैसल के प्रतिरूप का चित्र; जिसमें डाईवर्टर कैसेट्स की अंदरूनी सतहों पर ४४० ब्लैंकेट्स जुड़े दिख रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय तापनाभिकीय प्रायोगिक संयंत्र (अंग्रेज़ी:इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर)) ऊर्जा की कमी की समस्या से निबटने के लिए भारत सहित विश्व के कई राष्ट्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सहयोग से मिलकर बनाया जा रहा संलयन नाभिकीय प्रक्रिया पर आधारित ऐसा विशाल रिएक्टर है, जो कम ईंधन की सहायता से ही अपार ऊर्जा उत्पन्न करेगा। सस्ती, प्रदूषणविहीन और असीमित ऊर्जा पैदा करने की दिशा में हाइड्रोजन बम के सिद्धांत पर इस नाभिकीय महापरियोजना को प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया है। इसमें संलयन से उसी प्रकार से ऊर्जा मिलेगी जैसे पृथ्वी को सूर्य या अन्य तारों से मिलती है। .

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अंतरिक्ष

किसी ब्रह्माण्डीय पिण्ड, जैसे पृथ्वी, से दूर जो शून्य (void) होता है उसे अंतरिक्ष (Outer space) कहते हैं। यह पूर्णतः शून्य (empty) तो नहीं होता किन्तु अत्यधिक निर्वात वाला क्षेत्र होता है जिसमें कणों का घनत्व अति अल्प होता है। इसमें हाइड्रोजन एवं हिलियम का प्लाज्मा, विद्युतचुम्बकीय विकिरण, चुम्बकीय क्षेत्र तथा न्युट्रिनो होते हैं। सैद्धान्तिक रूप से इसमें 'डार्क मैटर' dark matter) और 'डार्क ऊर्जा' (dark energy) भी होती है। .

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अंतरिक्ष विज्ञान

गैलेक्सी के एक भाग को प्रदर्शित करता हुआ एक तस्वीर अंतरिक्ष विज्ञान एक व्यापक शब्द है जो ब्रह्मांड के अध्ययन से जुड़े विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों का वर्णन करता है तथा सामान्य तौर पर इसका अर्थ "पृथ्वी के अतिरिक्त" तथा "पृथ्वी के वातावरण से बाहर" भी है। मूलतः, इन सभी क्षेत्रों को खगोल विज्ञान का हिस्सा माना गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में खगोल के कुछ क्षेत्रों, जैसे कि खगोल भौतिकी, का इतना विस्तार हुआ है कि अब इन्हें अपनी तरह का एक अलग क्षेत्र माना जाता है। कुल मिला कर आठ श्रेणियाँ हैं, जिनका वर्णन अलग से किया जा सकता है; खगोल भौतिकी, गैलेक्सी विज्ञान, तारकीय विज्ञान, पृथ्वी से असंबंधित ग्रह विज्ञान, अन्य ग्रहों का जीव विज्ञान, एस्ट्रोनॉटिक्स/ अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष औपनिवेशीकरण और अंतरिक्ष रक्षा.

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अंगिरस तारा

सप्तर्षि तारामंडल में अंगिरस तारे (ε UMa) का स्थान अंगिरस, जिसका बायर नामांकन "ऍप्सिलन अर्से मॅजोरिस" (ε UMa या ε Ursae Majoris) है, सप्तर्षि तारामंडल का सबसे रोशन तारा और पृथ्वी से दिखने वाले सभी तारों में से ३३वाँ सब से रोशन तारा है। यह हमसे ८१ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) १.७६ है। .

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उपतारकीय वस्तु

उपतारकीय वस्तु (substellar object), जिसे उपतारा (substar), ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसका द्रव्यमान इतना न हो कि उसमें हाइड्रोजन का नाभिकीय संलयन (फ़्यूज़न) हो सके। यह लगभग 0.08 सौर द्रव्यमान के बराबर होता है। उपतारकीय वस्तुओं में भूरे बौने और ग्रह शामिल हैं। .

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उपदानव तारा

तारों की श्रेणियाँ दिखने वाला हर्ट्ज़स्प्रुंग-रसल चित्र उपदानव तारा ऐसा तारा होता है जो मुख्य अनुक्रम के बौने तारों से तो अधिक चमकीला हो लेकिन इतनी भी चमक और द्रव्यमान न रखता हो के दानव तारों की श्रेणी में आ सके। यर्कीज़ वर्णक्रम श्रेणीकरण में इसकी चमक की श्रेणी "IV" होती है। वॄश्चिक तारामंडल का सर्गस नाम का तारा (जिसका बायर नाम "θ स्को" है) ऐसे एक चमकीले दानव का उदहारण है। .

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छल्ला नीहारिका

छल्ला नीहारिका छल्ला नीहारिका से उत्पन्न होते अवरक्त (इन्फ़्रारॅड) प्रकाश की तस्वीर छल्ला नीहारिका (अंग्रेज़ी: Ring Nebula, रिंग नॅब्युला), जिसे मॅसिये वस्तु ५७ और ऍन॰जी॰सी॰ ६७२० भी कहा जाता है, एक ग्रहीय नीहारिका है जो आकाश में लायरा तारामंडल के क्षेत्र में नज़र आती है। यह एक लाल दानव तारे के अवशेषों कि बनी हुई है जिसने अपना जीवन अपने मलबे को आसपास के अंतरतारकीय माध्यम में उगलकर ख़त्म किया। .

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१ एक संख्या, संख्यांक और ग्लिफ़ है। इसको एक कहते है। अंग्रेज़ी भाषा में इसे वन (One) या 1 लिखते है। वह प्राकृतिक संख्याओं के अनंत अनुक्रम में पहला आता है, और उसके बाद २ आता है। .

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४-फिनाइल-४-(१-पिपेरिडिनाइल)साइक्लोहेक्सेन

४-फिनाइल-४-(१-पिपेरिडिनाइल) साइक्लोहेक्सेन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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DABCO

DABCO एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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G श्रेणी का मुख्य-अनुक्रम तारा

श्रेणी का मुख्य अनुक्रम तारा है G श्रेणी का मुख्य-अनुक्रम तारा (G-type main-sequence star या G.V), जिसे पीला बौना या G बौना भी कहा जाता है, ऐसे मुख्य अनुक्रम तारे को बोलते हैं जिसकी वर्णक्रम श्रेणी G हो और जिसकी (तापमान और चमक पर आधारित) यर्कीज़ श्रेणी V हो। इन तारों का द्रव्यमान (मास) सूरज के द्रव्यमान का ०.८ से १.२ गुना और इनका सतही तापमान ५,३०० कैल्विन से ६,००० कैल्विन के बीच होता है।, G. M. H. J. Habets and J. R. W. Heintze, Astronomy and Astrophysics Supplement 46 (November 1981), pp.

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N,N-डाइमिथाइलफोर्मामाइड

N,N-डाइमिथाइलफोर्मामाइड एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,1,1-ट्राइफ्लोरोइथेन

1,1,1-ट्राइफ्लोरोइथेन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,2-डाइब्रोमोमिथेन

1,2-डाइब्रोमोमिथेन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,2-डाइमिथाइलबेंजिन

1,2-डाइमिथाइलबेंजिन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,2-इथेनडाइथायोल

1,2-इथेनडाइथायोल एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,3-डाइमिथाइलबेंजिन

1,3-डाइमिथाइलबेंजिन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,3-ब्यूटाडाइइन

1,3-ब्यूटाडाइइन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,3-साइक्लोहेक्साडाइईन

1,3-साइक्लोहेक्साडाइईन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,4-डाइमिथाइलबेंजिन

1,4-डाइमिथाइलबेंजिन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,4-डाइक्लोरोबेंजिन

1, 4-डाइक्लोरोबेंजिन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,4-साइक्लोहेक्साडाइईन

1, 4-साइक्लोहेक्साडाइईन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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1,8-बिस(डाइमिथाइलएमाइनो)नैप्थालिन

1, 8-बिस (डाइमिथाइलएमाइनो) नैप्थालिन एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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18-क्राउन-6

18-क्राउन-6 एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2,2'-बाइपाइरिडिन

2,2'-बाइपाइरिडिन की संरचना 2,2'-बाइपाइरिडिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2,2,2-ट्राइफ्लोरोइथेनॉल

2,2,2-ट्राइफ्लोरोइथेनॉल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2,2,4-ट्राइमिथाइलपेन्टेन

2,2,4-ट्राइमिथाइलपेन्टेन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2,4,6-ट्राइक्लोरोएनिसोल

2,4,6-ट्राइक्लोरोएनिसोल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2,4,6-ट्राइक्लोरोफिनोल

2,4,6-ट्राइक्लोरोफिनोल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2,4-डाइक्लोरोफिनॉक्सीएसिटिक अम्ल

2,4-डाइक्लोरोफिनॉक्सीएसिटिक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2,6-डाइ-टर्ट-ब्यूटाइलफेनोल

2,6-डाइ-टर्ट-ब्यूटाइलफेनोल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2,6-ल्यूटिडिन

2,6-ल्यूटिडिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-पाइरोडिन

2-पाइरोडिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-प्रोपेनोन

2-प्रोपेनोन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-ब्यूटाइन-1,4-डाइऑल

रसायन विज्ञान 2-ब्यूटाइन-1,4-डाइऑल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-ब्यूटॉक्सीइथेनाल

2-ब्यूटॉक्सीइथेनाल 2-ब्यूटॉक्सीइथेनाल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-ब्रोमो-1-क्लोरो-प्रोपेन

2-ब्रोमो-1-क्लोरो-प्रोपेन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-ब्रोमोप्रोपेन

2-ब्रोमोप्रोपेन की संरचना 2-ब्रोमोप्रोपेन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-मर्केप्टोइथेनाल

2-मर्केप्टोइथेनाल एक कार्बनिक यौगिक है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-मिथाइलप्रोपिन

2-मिथाइलप्रोपिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-मिथाइलबेन्जोइक अम्ल

2-मिथाइलबेन्जोइक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-मिथाइलक्वीनोलिन

2-मिथाइलक्वीनोलिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-इथाइल-1-हेक्सानॉल

2-इथाइल-1-हेक्सानॉल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-क्लोरो-2-मिथाइलप्रोपेन

2-क्लोरो-2-मिथाइलप्रोपेन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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2-क्लोरोबेंजोइक अम्ल

2-क्लोरोबेंजोइक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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3,3'-डाइएमाइनोबेंजिडिन

3,3'-डाइएमाइनोबेंजिडिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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4-मिथाइलबेन्जोइक अम्ल

4-मिथाइलबेन्जोइक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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4-मिथोक्सीबेन्जालडिहाइड

4-मिथोक्सीबेन्जालडिहाइड एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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4-क्लोरोएनिलिन

4-क्लोरोएनिलिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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5-हाइड्रॉक्सिट्रिप्टामिन

5-हाइड्रॉक्सिट्रिप्टामिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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9-फ्लूरिनोन

9-फ्लूरिनोन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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हायड्रोजन, हाईड्रोजन, उदजन

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