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हांसी

सूची हांसी

श्रेणी:हरियाणा श्रेणी:हरियाणा के शहर श्रेणी:हिसार जिला श्रेणी:पृथ्वीराज चौहान.

6 संबंधों: तराइन का युद्ध, धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान, पृथ्वीराज तोमर, भारत के शहरों की सूची, गोगाजी, असिगढ़ दुर्ग

तराइन का युद्ध

तराइन का युद्ध तराइन का युद्ध अथवा तरावड़ी का युद्ध युद्धों (1191 और 1192) की एक ऐसी शृंखला है, जिसने पूरे उत्तर भारत को मुस्लिम नियंत्रण के लिए खोल दिया। ये युद्ध मोहम्मद ग़ौरी (मूल नाम: मुईज़ुद्दीन मुहम्मद बिन साम) और अजमेर तथा दिल्ली के चौहान (चहमान) राजपूत शासक पृथ्वी राज तृतीय के बीच हुये। युद्ध क्षेत्र भारत के वर्तमान राज्य हरियाणा के करनाल जिले में करनाल और थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) के बीच था, जो दिल्ली से 113 किमी उत्तर में स्थित है। .

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धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान

धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान एक टेलीविजन कार्यक्रम था जो भारतीय टेलीविजन चैनल स्टार प्लस पर प्रसारित सागर आर्ट्स द्वारा प्रारंभ किया गया जिन्होंने पहले रामायण, महाभारत और हातिम टेलीविजन शृंखला शुरू किया है। यह हिंदी टीवी धारावाहिक मध्यकालीन भारतीय इतिहास के सबसे मशहूर हिन्दू राजाओं में से एक राजा पृथ्वीराज चौहान, उसका प्रारम्बिक जीवन, उसके साहसिक कार्य, राजकुमारी संयोगिता के लिए उसका प्रेम की कहानी को दर्शाता है। ज्यादातर यह प्रारम्बिक हिंदी/अपभ्रंश कवि चन्दवरदाई का महाकाव्य पृथ्वीराज रासो, से आता है लेकिन निर्माताओं ने इस प्रेम कथा को दर्शाने के लिए बहुत अधिक छुट ली है। यह मोहक गाथा मार्च 15, 2009 को दुखद अंत के साथ समाप्त हुआ। .

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पृथ्वीराज तोमर

पृथ्वीराज तोमर (1167-1189 ई.) दिल्ली का तोमर शासक था। पृथ्वीराज तोमर अजमेर के राजा सोमेश्वर और पृथ्वीराज चौहान के समकालीन राजा था, नाम में समानताएं होने के कारण जनता समझने लगी की चौहानो का राज्य दिल्ली पर भी है। मदनपाल तोमर के पश्चात दिल्ली के राजसिंहासन पर पृथ्वीराज तोमर बैढे।महेन्द्र सिंह तंवर खेतासर, तंवर (तोमर) राजवंश का राजनीतिक एवम सांस्कृतिक इतिहास, पृष्ठ-74 अबुल फजल द्वारा दी गई वंशावली के अनुसार पृथ्वीराज तोमर का राज्य 1189 ई. तक रहा और उसने 22 वर्ष 2 माह 16 दिन तक शासन किया। इसके विपरीत इन्द्रप्रस्थ प्रबंध का लेखक उसे 24 वर्ष 3 माह 6 दिन 17 घडी शासन करना बतलाता है। इन्द्रप्रस्थ प्रबंध के अनुसार पृथ्वीराज तोमर का राज्य 1191 तक होता है परन्तु उसका उत्तराअधिकार चाहड़पाल जिसकी मुद्रायें प्राप्त होती है उसका केवल 1 वर्ष का राज्यकाल मिलता है जो ठिक प्रतित नहीं होता। द्विवेदी के अनुसार पृथ्वीराज तोमर ने 1167 ई. में दिल्ली का शासन ग्रहण किया तथा 1189 ई. तक वे शासन करते रहे। पृथ्वीराज तोमर की मुद्राए प्राप्त होती है जिनके एक ओर भाले सहित अश्वारोही के साथ 'पृथ्वीराज देव ' और दुसरी तरफ नन्दी के ऊपर 'असावरी सामन्तदेव' लिखा प्राप्त होता है। इसका उल्लेख ढक्कर फेरू की द्रव्य परीक्षा और कनिंगम ने भी किया है। यह तो सर्वविदित है कि मदनपाल के पश्चात दिल्ली के राजा पृथ्वीराज तोमर थे जो कि अजमेर के राजा सोमेश्वर और पृथ्वीराज चौहान के समकालीन थे। पृथ्वीराज के राज्य रोहण के समय शाकम्भरी पर उसका भांजा अपरगांगेय शासन कर रहा था। इसी बीच विग्रहराज के भाई जगदेव का पुत्र पृथ्वीभट्ट जिसने अपने मामा चित्तोड के राजा गुहिलोत किल्लण के सहयोग से हांसी पे हमला कर दिया और 1167 ई. में उस पे अधिकार कर लिया और उस गढ पर अपने मामा किल्लण को छोडकर स्वयं शाकम्भरी पर आक्रमण कर दिया। उस समय दिल्ली के तोमर राजा पृथ्वीराज ने उसे रोकने का प्रयास किया और पृथ्वीराज तोमर के सामंत हांसी के राजा वास्तुपाल से पृथ्वीभट्ट का युद्ध हुआ था। वास्तुपाल पराजित हुआ और पृथ्वीभट्ट ने शाकम्भरी पे हमला कर अपरगांगेय को मार डाला और 1168 ई. में शाकम्भरी का राजा बना।महेन्द्र सिंह तंवर खेतासर, तंवर (तोमर) राजवंश का राजनीतिक एवम सांस्कृतिक इतिहास, पृष्ठ-75 अपरगांगेय का छोटा भाई नागार्जुन भागकर दिल्ली आ गया। पृथ्वीभट्ट की मृत्यु के बाद सोमेश्वर शाकम्भरी का राजा बना और उसकी मृत्यु के बाद अबुल फजल के अनुसार दिल्ली के राजा पृथ्वीराज तोमर का भांजा नागार्जुन कुछ समय के लिए शाकम्भरी के राज सिंहासन बैढा था, इसलिए 1177 ई. में पृथ्वीराज चौहान और नागार्जुन के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष में पृथ्वीराज तोमर ने नागार्जुन की सहायता के लिए अपने सामन्त देव भट्ट को भेजा। नागार्जुन ने गुडपुर के गढ में अपनी सेना एकत्र की और वहाँ से अभयगढ पर आक्रमण किया। राय पिथोरा की माता कर्पुरीदेवी के नेतृत्व में भुवनैकमल्ल ओर कैमास सहित चौहान सेना ने गुडपुर (गुडगाँव) को घेर लिया और नागार्जुन किसी तरह बचकर दिल्ली भाग गये और तोमर सामंत देवभट्ट और उसके समस्त सैनिक युद्ध में मारे गए। सन् 1189 ई. में पृथ्वीराज तोमर की मृत्यु हो गई। उन्होंने जीवन पर्यन्त अपरगांगेय और नागार्जुन के उत्तराअधिकारी के प्रश्न को लेकर पृथ्वीभट्ट, सोमेश्वर, कर्पुरीदेवी, कैमास और भुवनैकमल्ल से अनेक वर्षों तक संघर्ष किया। संभवत: वे इसमें असफल रहे। उनकी इस असफलता का प्रभाव तोमर साम्राज्य की दृढता पर पढा। इससे पूर्व 1177 ई. के पश्चात उत्तर-पश्चिम भारत विश्रृंखल राजाओं का संघ रह गया था, जो दिल्ली के तोमर राजा को अपना मुखिया मानता था। पृथ्वीराज तोमर के चौहानो के साथ लम्बे संघर्ष के परीणाम स्वरुप यह नियन्त्रण शिथिल अवश्य दिखाई देता है। पृथ्वीराज तोमर की मृत्यु के पश्चात 1189 ई. में दिल्ली के राजसिंहासन पर उनका पुत्र चहाडपाल तोमर बैठा। .

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भारत के शहरों की सूची

कोई विवरण नहीं।

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गोगाजी

गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे 'जाहरवीर गोग राणा के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादों शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है। इन्हें हिन्दू और मुसलमान दोनो पूजते हैं। वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिष्य थे। उनका जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था। सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के अंतर्गत आता है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्‍था टेककर मन्नत माँगते हैं। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। उत्तर प्रदेश में इन्हें जहर पीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी खड़े रहते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोगा पीर व जाहिर वीर के जयकारों के साथ गोगाजी तथा गुरु गोरक्षनाथ के प्रति भक्ति की अविरल धारा बहती है। भक्तजन गुरु गोरक्षनाथ के टीले पर जाकर शीश नवाते हैं, फिर गोगाजी की समाधि पर आकर ढोक देते हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग गोगा जी के मंदिर में मत्था टेक तथा छड़ियों की विशेष पूजा करते हैं। प्रदेश की लोक संस्कृति में गोगाजी के प्रति अपार आदर भाव देखते हुए कहा गया है कि गाँव-गाँव में खेजड़ी, गाँव-गाँव में गोगा वीर गोगाजी का आदर्श व्यक्तित्व भक्तजनों के लिए सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा है। गोरखटीला स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियाँ माँगते हैं। विद्वानों व इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है। लोक देवता जाहरवीर गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवा में भादवा मास के दौरान लगने वाले मेले के दृष्टिगत पंचमी (सोमवार) को श्रद्धालुओं की संख्या में और बढ़ोतरी हुई। मेले में राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। जातरु ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं बल्कि वहां अखाड़े (ग्रुप) में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में गाकर सुनाते हैं। प्रसंगानुसार जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों में डैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकले मारता है। मान्यता है कि गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है। गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। .

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असिगढ़ दुर्ग

असिगढ़ हरियाणा राज्य के हिसार शहर में स्थित एक दुर्ग है। यह अमटी सरोवर के पूर्वी तट पर स्थित है और इसे पृथ्वीराज चौहान का क़िला या हांसी का किला भी कहते हैं। पृथ्वीराज चौहान ने मुग़ल शासकों से रक्षा के लिए इस दुर्ग का निर्माण कराया था। कालान्तर में मुग़ल शासकों ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया था। बाद में उन्होंने इस दुर्ग में एक मस्जिद का निर्माण भी करवाया था। वर्तमान में यह अधिकांशतः एक खण्डहर टीले में परिवर्तित हो चुका है। वर्तमान में इसका अनुरक्षण भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधीन है। .

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