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हनुमान

सूची हनुमान

हनुमान (संस्कृत: हनुमान्, आंजनेय और मारुति भी) परमेश्वर की भक्ति (हिंदू धर्म में भगवान की भक्ति) की सबसे लोकप्रिय अवधारणाओं और भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में प्रधान हैं। वह कुछ विचारों के अनुसार भगवान शिवजी के ११वें रुद्रावतार, सबसे बलवान और बुद्धिमान माने जाते हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री कराई और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, वह अत्यन्त प्रसिद्ध है। ज्योतिषीयों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले तथा लोकमान्यता के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से पहाड़ी गाँव के एक गुफ़ा में हुआ था। इन्हें बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। वे पवन-पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। वायु अथवा पवन (हवा के देवता) ने हनुमान को पालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मारुत (संस्कृत: मरुत्) का अर्थ हवा है। नंदन का अर्थ बेटा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान "मारुति" अर्थात "मारुत-नंदन" (हवा का बेटा) हैं। हनुमान प्रतिमा .

147 संबंधों: चन्देल, चामुंडा देवी मंदिर, चित्रकूट, चीन में हिन्दू धर्म, तारा (रामायण), तुलसी मानस मन्दिर, तुलसीदास, दिल्ली के दर्शनीय स्थल, दूत, दूतकाव्य, देवता, नारद पुराण, पराप्राकृतिक शिमला, पश्चिम की यात्रा, पारसगढ़ दुर्ग, पाली, हरियाणा, पावन धाम, प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति, प्रतापगढ़, राजस्थान, प्रेअह सिहानूक प्रान्त, पूनरासर बालाजी, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान, बालि, बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची, बजरंगबली (1976 फ़िल्म), बगलामुखी मंदिर, इंदौर, बकुलाही नदी, बेलखरनाथ मन्दिर, भयहरणनाथ मन्दिर, भाटुन्द, भारत में अन्धविश्वास, भारतीय चित्रकला, भारतीय राजनय का इतिहास, भृङ्गदूतम्, मध्वाचार्य, मल्लयुद्ध, महाभारत में विभिन्न अवतार, महावीर (बहुविकल्पी), महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार, माता-पिता, मारुति, मांगरोल, बौंली, मंगलवार, मंगलवार व्रत कथा, मुसाफिरखाना, मुगल रामायण, राम, राम तांडव स्तोत्र, राम नवमी, रामभद्राचार्य, ..., रामायण, रामायण (टीवी धारावाहिक), रामजात्तौ, रामेश्वरम तीर्थ, रामेश्वरम शहर, रावण, रावण हत्था, रघुविलास, रुद्रावतार, लखनऊ, लंगुरिया, लंका, लंका दहन, लंकाकाण्ड, लक्ष्मी नारायण मंदिर, मोदीनगर, शनि की साढ़े साती, शबरी धाम, शिमला, शिवानन्द गोस्वामी, श्री नीलकंठेश्वर महादेव, मथुरा, श्रीभार्गवराघवीयम्, सालासर, सालासर बालाजी, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, संस्कृत भाषा का इतिहास, संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची, संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द, संकटमोचन महाबली हनुमान, सुन्दरकाण्ड, सुरसा, सुरेश कुमार खन्ना, सुल्तानपुर जिला, सुलोचना, सुग्रीव, स्थानेश्वर महादेव मन्दिर, सोमनाथ मन्दिर, सीता, हनु, हनुमत धाम, हनुमन्नाटक, हनुमान चालीसा, हनुमान मंदिर, हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस, हनुमान मंदिर, अलीगंज लखनऊ, हनुमान लंगूर में पूँछ वहन, हनुमान सेतु मंदिर, हनुमान जयंती, हिन्दू देवी देवताओं की सूची, हिन्दू धर्म, हिन्दू पर्वों की सूची, हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र, हिन्दी पुस्तकों की सूची/श, जटोली शिव मंदिर, जबड़ा, जम्बूद्वीप, जलपरी, जलालाबाद (शाहजहाँपुर), जिब्राल्टर हिन्दू मंदिर, जगद्गुरु रामभद्राचार्य ग्रंथसूची, जगन्नाथ मंदिर, त्यागराजनगर, दिल्ली, जगन्नाथ मंदिर, हौज खास, दिल्ली, वानर, वायु देव, वाराणसी, वाल्मीकि रामायण, विराटनगर (राजस्थान), विजेथुवा महावीरन, वैदिक देवता, खाप, खजराना मंदिर, गदा, गुरु हनुमान, ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर, गीतरामायणम्, औषधिपर्वत, आद्या कात्यायिनी मंदिर, दिल्ली, आनन्द रामायण, आष्टा,मध्यप्रदेश, कडपा, कर्ण, कलिंजर, कालनेमि, कालाराम मन्दिर, काव्य, किष्किन्धाकाण्ड, ककरहानाथ मंदिर, कैथल, कोकिला वन, अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह, अद्भुत रामायण, अफानासी निकितिन, अलीगंज, अहिरावण, अंजनेरी, अंजनी, अंगद, अंकोरवाट मंदिर सूचकांक विस्तार (97 अधिक) »

चन्देल

खजुराहो का कंदरीय महादेव मंदिर चन्देल वंश मध्यकालीन भारत का प्रसिद्ध राजवंश, जिसने 08वीं से 12वीं शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से यमुना और नर्मदा के बीच, बुंदेलखंड तथा उत्तर प्रदेश के दक्षिणी-पश्चिमी भाग पर राज किया। चंदेल वंश के शासकों का बुंदेलखंड के इतिहास में विशेष योगदान रहा है। उन्‍होंने लगभग चार शताब्दियों तक बुंदेलखंड पर शासन किया। चन्देल शासक न केवल महान विजेता तथा सफल शासक थे, अपितु कला के प्रसार तथा संरक्षण में भी उनका महत्‍वपूर्ण योगदान रहा। चंदेलों का शासनकाल आमतौर पर बुंदेलखंड के शांति और समृद्धि के काल के रूप में याद किया जाता है। चंदेलकालीन स्‍थापत्‍य कला ने समूचे विश्‍व को प्रभावित किया उस दौरान वास्तुकला तथा मूर्तिकला अपने उत्‍कर्ष पर थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं खजुराहो के मंदिर। .

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चामुंडा देवी मंदिर

श्री '''चामुंडा देवी मंदिर''', कांगडा, हिमाचल प्रदेश हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे हिमाचल प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर है और इनमें से ज्यादातर प्रमुख आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। इन मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा देवी का मंदिर है जो कि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। यहां पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प मां चामुण्डा देवी के चरणों में अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। देश के कोने-कोने से भक्त यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चामुण्डा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी.

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चित्रकूट

चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। उत्तर प्रदेश में 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के किनार बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। माना जाता है कि भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था। .

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चीन में हिन्दू धर्म

हिन्दू उत्कीर्णन, च्वानजो संग्रहालय। ये चित्र होली के समारोह के लिए नरसिंह कथा वर्णन करता है। चीन में हिंदू धर्म का अभ्यास अल्पसंख्यक चीनी नागरिकों द्वारा होता है। आधुनिक चीनी मुख्यधारा में हिन्दू धर्म की उपस्थिति अपने आप में बहुत ही सीमित, परन्तु पुरातात्विक साक्ष्य से पता चलता है कि, मध्ययुगीन चीन के विभिन्न प्रांतों में हिंदू धर्म की उपस्थिति थी। Huang Xinchuan (1986), Hinduism and China, in Freedom, Progress, and Society (Editors: Balasubramanian et al. चीन के अपने इतिहास से अधिक बौद्ध धर्म के विस्तार से सम्पूर्ण देश में हिंदू प्रभाव अवशोषित हुआ। भारती की वैदिक काल से चली आ रही वास्तविक परम्परायें चीन में लोकप्रिय है, जैसे कि योग और ध्यान।  हिंदू समुदाय विशेष रूप से अय्यवोले और मनिग्रामम् के तमिल व्यापारी मंडली के माध्यम से, एक बार मध्यकालीन दक्षिण चीन में प्रतिष्ठित हुआ। इसका प्रमाण दक्षिण पूर्व चीन के च्वानजो और फ़ुज़ियान प्रांत के काई-यु-आन-मंदिर जैसे स्थानों में प्रात हो रहे हिन्दू रूपांकनों और मंदिरों से मिलता है।John Guy (2001), The Emporium of the World: Maritime Quanzhou 1000-1400 (Editor: Angela Schottenhammer), ISBN 978-9004117730, Brill Academic, pp. 294-308 हाँग काँग में हिन्दू आप्रवासीयों (immigrant) का छोटा समूदाय अस्तित्व में है। .

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तारा (रामायण)

लक्ष्मण तारा (सबसे बायें) से मिलते हुये, उसका दूसरा पति सुग्रीव (बायें से दूसरा) तथा हनुमान (सबसे दायें) किष्किन्धा के महल में तारा हिन्दू महाकाव्य रामायण में वानरराज वालि की पत्नी है। तारा की बुद्धिमता, प्रत्युत्पन्नमतित्वता, साहस तथा अपने पति के प्रति कर्तव्यनिष्ठा को सभी पौराणिक ग्रन्थों में सराहा गया है। तारा को हिन्दू धर्म ने पंचकन्याओं में से एक माना है। पौराणिक ग्रन्थों में पंचकन्याओं के विषय में कहा गया है:- अहिल्या द्रौपदी कुन्ती तारा मन्दोदरी तथा। पंचकन्या स्मरणित्यं महापातक नाशक॥ (अर्थात् अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं का प्रतिदिन स्मरण करने से सारे पाप धुल जाते हैं) हालांकि तारा को मुख्य भूमिका में वाल्मीकि रामायण में केवल तीन ही जगह दर्शाया गया है, लेकिन उसके चरित्र ने रामायण कथा को समझनेवालों के मन में एक अमिट छाप छोड़ दी है। जिन तीन जगह तारा का चरित्र मुख्य भूमिका में है, वह इस प्रकार हैं:-.

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तुलसी मानस मन्दिर

तुलसी मानस मन्दिर काशी के आधुनिक मंदिरों में एक बहुत ही मनोरम मन्दिर है। यह मन्दिर वाराणसी कैन्ट से लगभग पाँच कि॰ मि॰ दुर्गा मन्दिर के समीप में है। इस मन्दिर को सेठ रतन लाल सुरेका ने बनवाया था। पूरी तरह संगमरमर से बने इस मंदिर का उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा सन॒ 1964 में किया गया। इस मन्दिर के मध्य मे श्री राम, माता जानकी, लक्ष्मणजी एवं हनुमानजी विराजमान है। इनके एक ओर माता अन्नपूर्णा एवं शिवजी तथा दूसरी तरफ सत्यनारायणजी का मन्दिर है। इस मन्दिर के सम्पूर्ण दीवार पर रामचरितमानस लिखा गया है। इसके दूसरी मंजिल पर संत तुलसी दास जी विराजमान है, साथ ही इसी मंजिल पर स्वचालित श्री राम एवं कृष्ण लीला होती है। इस मन्दिर के चारो तरफ बहुत सुहावना घास (लान) एवं रंगीन फुहारा है, जो बहुत ही मनमोहक है। यहाँ अन्नकूट महोत्सव पर छप्पन भोग की झाकी बहुत ही मनमोहक लगती है। मंदिर के प्रथम मंजिल पर राम चरिच मानस की विभिन्न भाषाओं में दुर्लभ प्रतियों का पुस्तकालय मौजूद है। सम्पूर्ण मंदिर के परिधी में बहुत ही कलात्मक ढंग से ऐक पहाड़ी पर शिव जी के मूर्ति से झरने का अलौकिक छटा देखते ही बनती है। .

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तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास (1511 - 1623) हिंदी साहित्य के महान कवि थे। इनका जन्म सोरों शूकरक्षेत्र, वर्तमान में कासगंज (एटा) उत्तर प्रदेश में हुआ था। कुछ विद्वान् आपका जन्म राजापुर जिला बाँदा(वर्तमान में चित्रकूट) में हुआ मानते हैं। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। रामचरितमानस लोक ग्रन्थ है और इसे उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका उनका एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है। महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया। .

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दिल्ली के दर्शनीय स्थल

दिल्ली भारत की राजधानी ही नहीं पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र भी है। राजधानी होने के कारण भारतीय सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं प्राचीन नगर होने का कारण इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से कुतुबमीनार और लौह स्तंभ जैसे विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केंद्र समझे जाते हैं। एक ओर हुमायूँ का मकबरा जैसा मुगल शैली की ऐतिहासिक राजसिक इमारत यहाँ है तो दूसरी ओर निज़ामुद्दीन औलिया की पारलौकिक दरगाह। लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं विरला मंदिर, बंगला साहब का गुरुद्वारा, बहाई मंदिर और देश पर जान देने वालों का स्मारक भी राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। भारत के प्रधान मंत्रियों की समाधियाँ हैं, जंतर मंतर है, लाल किला है साथ ही अनेक प्रकार के संग्रहालय और बाज़ार हैं जो दिल्ली घूमने आने वालों का दिल लूट लेते हैं। .

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दूत

मोहम्मद अली मुगल साम्राज्य में भेजे गये ईरान के शाह अब्बास के दूत थे। दूत संदेशा देने वाले को कहते हैं। दूत का कार्य बहुत महत्व का माना गया है। प्राचीन भारतीय साहित्य में अनेक ग्रन्थों में दूत के लिये आवश्यक गुणों का विस्तार से विवेचन किया गया है। रामायण में लक्ष्मण से हनुमान का परिचय कराते हुए श्रीराम कहते हैं - (अवश्य ही इन्होने सम्पूर्ण व्याकरण सुन लिया लिया है क्योंकि बहुत कुछ बोलने के बाद भी इनके भाषण में कोई त्रुटि नहीं मिली।। यह बहुत अधिक विस्तार से नहीं बोलते; असंदिग्ध बोलते हैं; न धीमी गति से बोलते हैं और न तेज गति से। इनके हृदय से निकलकर कंठ तक आने वाला वाक्य मध्यम स्वर में होता है। ये कयाणमयी वाणी बोलते हैं जो दुखी मन वाले और तलवार ताने हुए शत्रु के हृदय को छू जाती है। यदि ऐसा व्यक्ति किसी का दूत न हो तो उसके कार्य कैसे सिद्ध होंगे?) इसमें दूत के सभी गुणों का सुन्दर वर्णन है। .

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दूतकाव्य

यह लेख संस्कृत के महाकवि भास की रचना 'दूतवाक्य' के बारे में नहीं है। ---- दूतकाव्य, संस्कृत काव्य की एक विशिष्ट परंपरा है जिसका आरंभ भास तथा घटकर्पर के काव्यों और महाकवि कालिदास के मेघदूत में मिलता है, तथापि, इसके बीज और अधिक पुराने प्रतीत होते हैं। परिनिष्ठित काव्यों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित वह प्रसंग, जिसें राम ने सीता के पास अपना विरह संदेश भेजा, इस परंपरा की आदि कड़ी माना जाता है। स्वयं कालिदास ने भी अपने "मेघदूत" में इस बात का संकेत किया है कि उन्हें मेघ को दूत बनाने की प्रेरणा वाल्मीकि "रामायण" के हनुमानवाले प्रसंग से मिली है। दूसरी और इस परंपरा के बीज लोककाव्यों में भी स्थित जान पड़ते हैं, जहाँ विरही और विरहिणियाँ अपने अपने प्रेमपात्रों के पति भ्रमर, शुक, चातक, काक आदि पक्षियों के द्वारा संदेश ले जाने का विनय करती मिलती हैं। .

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देवता

अंकोरवाट के मन्दिर में चित्रित समुद्र मन्थन का दृश्य, जिसमें देवता और दैत्य बासुकी नाग को रस्सी बनाकर मन्दराचल की मथनी से समुद्र मथ रहे हैं। देवता, दिव् धातु, जिसका अर्थ प्रकाशमान होना है, से निकलता है। अर्थ है कोई भी परालौकिक शक्ति का पात्र, जो अमर और पराप्राकृतिक है और इसलिये पूजनीय है। देवता अथवा देव इस तरह के पुरुषों के लिये प्रयुक्त होता है और देवी इस तरह की स्त्रियों के लिये। हिन्दू धर्म में देवताओं को या तो परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक रूप माना जाता है, या तो उन्हें ईश्वर का सगुण रूप माना जाता है। बृहदारण्य उपनिषद में एक बहुत सुन्दर संवाद है जिसमें यह प्रश्न है कि कितने देव हैं। उत्तर यह है कि वास्तव में केवल एक है जिसके कई रूप हैं। पहला उत्तर है ३३ करोड़; और पूछने पर ३३३९; और पूछने पर ३३; और पूछने पर ३ और अन्त में डेढ और फिर केवल एक। वेद मन्त्रों के विभिन्न देवता है। प्रत्येक मन्त्र का ऋषि, कीलक और देवता होता है। .

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नारद पुराण

नारद पुराण या 'नारदीय पुराण' अट्ठारह महुराणों में से एक पुराण है। यह स्वयं महर्षि नारद के मुख से कहा गया एक वैष्णव पुराण है। महर्षि व्यास द्वारा लिपिबद्ध किए गए १८ पुराणों में से एक है। नारदपुराण में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द-शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवान की उपासना का विस्तृत वर्णन है। यह पुराण इस दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें अठारह पुराणों की अनुक्रमणिका दी गई है। इस पुराण के विषय में कहा जाता है कि इसका श्रवण करने से पापी व्यक्ति भी पापमुक्त हो जाते हैं। पापियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो व्यक्ति ब्रह्महत्या का दोषी है, मदिरापान करता है, मांस भक्षण करता है, वेश्यागमन करता हे, तामसिक भोजन खाता है तथा चोरी करता है; वह पापी है। इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय विष्णुभक्ति है। .

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पराप्राकृतिक शिमला

पराप्राकृतिक शिमला या “सिमला क्रीड” शिमला का एक विचित्र रूप है, अन्य रूप हैं ब्रितानी राज की “ग्रीष्म राजघानी” तथा मूल निवासियों की “छोटी विलायत”। सिमला या शिमला का पराप्राकृतिक रूप अंग्रेजी राज में बसते शहर के जन मानस को उजागर करता है जिसमें बाहरी लोगों के साथ आई पराप्राकृतिक सत्ताएं तथा उनसे जुड़ी आस्थाएं और अधिष्ठान इस वन आच्छादित भू-भाग पर नए पराप्राकृतिक क्षेत्र बनाते गए। सिमला की सबसे ऊँची चोटी जाखू पर पहले से ही एक हनुमान मंदिर, तथा तीन अन्य पहाड़ियों पर काली या देवियों के मंदिर थे। जैसे-जैसे यूरोप से आने वाले भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के लोग इन पहाड़ियों पर बसते गए, नए व पुराने पराप्राकृतिक तत्वों से जुड़े कथानकों ने “सिमला क्रीड” को जन्म दिया। कोटगढ़ की “लिस्पेथ” का इसाई जगत से वापस स्थानीय देवी की शरण लेना; अलान अक्तावियन ह्यूम का पराप्राकृतिक तत्वों में रुझान; धर्मविज्ञान की राजनीति में पैठ से एनी बेसेन्ट और महात्मा गाँधी के बीच मतभेद, पराप्राकृतिक तत्वों के जन-मानस पर प्रभावों के कुछ उदाहरण हैं। इतिहासकारों का मानना है कि 1857 के ग़दर से पहले इन पराप्राकृतिक तत्वों के समूहों या क्षेत्रों में मेल-जोल होने लगा था, ग़दर के बाद इन में खाई पड़ गयी। और, परमानसिक अनुसंधान से मानवीय अनुभवों और वैज्ञानिकों के बीच आपसी सहायता बढ़ाना, विलिअम जेम्स का सपना था। .

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पश्चिम की यात्रा

वानर-राज सुन वुकौंग (उपन्यास की एक प्रति के चित्रण में) पश्चिम की यात्रा (चीनी: 西遊記) चीनी साहित्य के चार महान प्राचीन उपन्यासों में से एक है। इसका प्रकाशन मिंग राजवंश के काल में सन् 1590 के दशक में बेनाम तरीक़े से हुआ था। बीसवी सदी में इसकी लिखाई और अन्य तथ्यों की जाँच करी गई और इसे लिखने का श्रेय वू चॅन्गॅन (吴承恩, 1500-1582) नामक लेखक को दिया गया। इसकी कहानी प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग की भारत की यात्रा पर आधारित है। ह्वेन त्सांग तंग राजवंश के काल के दौरान "पश्चिमी क्षेत्रों" (जिनमें भारत शामिल है) के दौरे पर बौद्ध सूत्र और ग्रन्थ लेने आये थे। इस उपन्यास में दिखाया गया है कि महात्मा बुद्ध के निर्देश पर गुआन यिन नामक बोधिसत्त्व (एक जागृत आत्मा) ने ह्वेन त्सांग को भारत से धार्मिक ग्रन्थ लाने का कार्य सौंपा। साथ ही उन्होंने ह्वेन त्सांग को शिष्यों के रूप में तीन रक्षक दिए: सुन वुकौंग (एक शक्तिशाली वानर), झू बाजिए (एक आधा इंसान - आधा सूअर जैसा प्राणी) और शा वुजिंग (एक भैंसे की प्रवृति वाला योद्धा)। इस उपन्यास का मुख्य पात्र सुन वुकौंग (वानर) है और कभी-कभी इस कहानी को "बन्दर की कहानी", "बन्दर देव की कहानी" या सिर्फ़ "बन्दर" भी कहा जाता है। बहुत से विद्वानों का मानना है कि सुन वुकौंग की प्रेरणा वास्तव में हनुमान के चरित्र से हुई है।Jenner, W.J.F. (1984).

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पारसगढ़ दुर्ग

पारसगढ़ दुर्ग, सौंदत्ती, उत्तरी कर्नाटक पारसगढ़ दुर्ग कर्नाटक राज्य के बेलगाम जिला में एक दुर्ग के अवशेष हैं। यह आलीशान दुर्ग १०वीं शताब्दी में रत्ता वंश के शासकों ने बनवाया था। दुर्ग सौन्दत्ती से २ कि॰मी॰ दक्षिण में एक पहाड़ी के दक्षिण-पश्चिमी छोर से लगा हुआ बना है। यहां हिन्दू पंचांग के अनुसार शक संवत ९०१ का एक शिलालेख है और एक हनुमान जी का मंदिर भी है। Image:Parasgad_Fort_5.jpg|Parasgad Fort, Saundatti, North Karnataka Image:Parasgad_Fort_2.jpg|Parasgad Fort, Saundatti, North Karnataka Image:Parasgad_Fort_1.jpg|Parasgad Fort, Saundatti, North Karnataka .

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पाली, हरियाणा

पाली भारत के हरियाणा राज्य के रिवाड़ी जिले का सबसे बड़ा ग्राम है। यह रेवाड़ी-नारनौल राजमार्ग पर रिवाड़ी से १७ किमी पर स्थित है। यह स्थान यहाँ स्थित बाबा निमाड़ी वाले हनुमानजी मंदिर के लिये प्रसिद्ध रहा है। इस मन्दिर को तीर्थ की तरह माना जाता है एवं स्थानीय लोगों के मन में यहां के लिये अपार श्रद्धा है। यह मन्दिर भूमि से ६०० फ़ीट की ऊंचाई पर पाली ग्राम से १.५ कि.मी दूर स्थित है। यह जिले का सबसे बड़ा ग्राम है एवं इसकी जनसंख्या लगभग ५,००० है। इनमें यदुवंशी अहीरों के कई गोत्र के लोग निवास करते हैं, किन्तु इनमें कलालिया प्रमुख हैं। इनके अलाआ यहां हरिजन, ब्राह्मण, नाईं एवं वालमीकि समुदाय के लोग भी रहते हैं। पाली की सीमाएं १३ ग्रामों से लगती हैं जिनमें नांगली, बालाहीर, माजरा बवाना, कुण्डाल, गोथरा, सातु एवं ममरिया कुछ हैं। यहां वर्ष २००९ में स्थानीय पंचायत के भ्रष्टाचार के विरोध में एक 'युवा विकास समिति' गठित हुई थी जिसने सफ़लतापूर्वक ध्येय प्राप्त किया एवं प्रसिद्धि भी पाई। यहां के अहीरवाल ग्राम के प्रत्येक परिवार से कम से कम एक युवा के भारतीय सशस्त्र सेनाओं में सदस्य भर्ती होने का गर्व महसूस करते हैं। सरकार इस ग्राम में शीघ्र ही एक सैनिक स्कूल की स्थापना करने वाली है। हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (हुडा) यहां जोहाड के निकट आवासीय परिसर का विकास कर रहा है। पाली रेलवे स्टेशन के निकट एक ऐतिहासिक स्मारक भी बना है जिसे ननद-भावज की छतरी कहा जाता है। यह ५०० वर्ष से अधिक प्राचीन है। .

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पावन धाम

पावन धाम (पंच्खंड पीठ) पावन धाम: जयपुर से पहले विराटनगर (पुराना नाम बैराठ) नामक एक क़स्बा आता है। यह वही स्थान है जहाँ पांड्वो ने अज्ञातवास के दौरान अपना जीवन व्यतीत किया था। यहीं पंचखंड पर्वत पर भारत वर्ष का सबसे अनोखा और एकमात्र हनुमान मंदिर है जहाँ हनुमान जी की बिना बन्दर और पूछ वाली मूर्ति स्थापित है। इसका नाम वज्रांग मंदिर है और इसकी स्थापना अमर हुतात्मा गोभक्त, महान स्वतंत्रता सेनानी, यशश्वी लेखक, हिन्दू संत, हिन्दू नेता श्रीमन महात्मा रामचन्द्र वीर जी ने की थी। .

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प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति

सीतामाता मंदिर के सामने एक मीणा आदिवासी: छाया: हे. शे. हालाँकि प्रतापगढ़ में सभी धर्मों, मतों, विश्वासों और जातियों के लोग सद्भावनापूर्वक निवास करते हैं, पर यहाँ की जनसँख्या का मुख्य घटक- लगभग ६० प्रतिशत, मीना आदिवासी हैं, जो राज्य में 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में वर्गीकृत हैं। पीपल खूंट उपखंड में तो ८० फीसदी से ज्यादा आबादी मीणा जनजाति की ही है। जीवन-यापन के लिए ये मीना-परिवार मूलतः कृषि, मजदूरी, पशुपालन और वन-उपज पर आश्रित हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट-संस्कृति, बोली और वेशभूषा रही है। अन्य जातियां गूजर, भील, बलाई, भांटी, ढोली, राजपूत, ब्राह्मण, महाजन, सुनार, लुहार, चमार, नाई, तेली, तम्बोली, लखेरा, रंगरेज, रैबारी, गवारिया, धोबी, कुम्हार, धाकड, कुलमी, आंजना, पाटीदार और डांगी आदि हैं। सिख-सरदार इस तरफ़ ढूँढने से भी नज़र नहीं आते.

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प्रतापगढ़, राजस्थान

प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .

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प्रेअह सिहानूक प्रान्त

प्रेअह सिहानूक प्रान्त, जिसे सिहानूकविल प्रान्त भी कहते हैं, दक्षिणपूर्वी एशिया के कम्बोडिया देश का एक प्रान्त है। यह देश के दक्षिणपश्चिम भाग में स्थित है और इसकी दक्षिणी सीमा थाईलैण्ड की खाड़ी से तटवर्ती है। .

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पूनरासर बालाजी

पूनरासर राजस्थान प्रान्त का एक ग्राम है। पूनरासर बालाजी पूनरासर की पहचान है। पूनरास‍र धाम,हनुमानजी महाराज की असीम कृपावश सुदी‍र्घ भु-भाग मे विख्यात है | यह एक जागृत हनुमद स्थान है- हनुमानजी महाराज अपने भक्तो को सभी प्रकार के कष्टो से मुक्ति दिलाकर उन्हे भय मुक्त करते है | हनुमानजी महाराज के दरबार मे वर्ष पर्यन्त श्रधालुगन अपनी अर्जी प्रस्तुत करते है | कहा गया है जैसा भाव वैसा प्रभाव | हनुमानजी महाराज के इस भव्य एवम विशाल मन्दिर का इतिहास काफी प्राचीन रहा है | .

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फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान

फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक फूलों की घाटी का नाम है, जिसे अंग्रेजी में Valley of Flowers कहते हैं। यह भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में है। यह फूलों की घाटी विश्व संगठन, यूनेस्को द्वारा सन् 1982 में घोषित विश्व धरोहर स्थल नन्दा देवी अभयारण्य नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग है। .

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बालि

वालि वध वालि (संस्कृत) या बालि रामायण का एक पात्र है। वह सुग्रीव का बड़ा भाई था। वह किष्किन्धा का राजा था तथा इन्द्र का पुत्र बताया जाता है। विष्णु के अवतार राम ने उसका वध किया। हालाँकि रामायण की पुस्तक किष्किन्धाकाण्ड के ६७ अध्यायों में से अध्याय ५ से लेकर २६ तक ही वालि का वर्णन किया गया है, फिर भी रामायण में वालि की एक मुख्य भूमिका रही है, विशेषकर उसके वध को लेकर। .

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बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची

बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची .

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बजरंगबली (1976 फ़िल्म)

जय बजरंग बली 1976 में बनी हिन्दी फिल्म है। .

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बगलामुखी मंदिर, इंदौर

माता बगलामुखी का यह मंदिर मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के नलखेड़ा कस्बे में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। यह मन्दिर तीन मुखों वाली त्रिशक्ति बगलामुखी देवी को समर्पित है। मान्यता है कि द्वापर युग से चला आ रहा यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक भी है। इस मन्दिर में विभिन्न राज्यों से तथा स्थानीय लोग भी एवं शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। यहाँ बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती की मूर्तियां भी स्थापित हैं। कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय के उद्देश्य से भगवान कृष्ण की सलाह पर युधिष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहाँ की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है। प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख है जिनमें से एक है बगलामुखी। माँ भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। यह मन्दिर उन्हीं से एक बताया जाता है। .

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बकुलाही नदी

प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में बहने वाली एक नदी है। उत्तर प्रदेश के कई ज़िले बकुलाही नदी के पावन तट पर बसे हुए है। यह रायबरेली जिले के भरतपुर झील से निकली है। .

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बेलखरनाथ मन्दिर

बाबा बेलखरनाथ मन्दिर (धाम) उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद मे सई नदी के तट पर स्थित हैं। बाबा बेलखरनाथ धाम प्रतापगढ़ मुख्यालय से १५ किलोमीटर पट्टी मार्ग पर लगभग ९० मीटर ऊँचे टीले पर स्थित है। यह स्थल ग्राम अहियापुर में स्थित है। वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि पर्व पर व् प्रत्येक तीसरे वर्ष मलमास में यहाँ १ महीने तक विशाल मेला चलता है जिसमे कई जिलो से शिवभक्त व संत महात्मा यहाँ आकर पूजन प्रवचन किया करते हैं। प्रत्येक शनिवार को यहाँ हजारो की संख्या में पहुचने वाले श्रद्धालु भगवान शिव की आराधना किया करते है। .

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भयहरणनाथ मन्दिर

बाबा भयहरणनाथ मन्दिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मन्दिर हैं। यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में स्थित एक पांडव युगीन मंदिर हैं, जो ग्राम कटरा गुलाब सिंह में पौराणिक बकुलाही नदी के तट पर विद्यमान हैं। माना जाता है की अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की जिसमें यहां पांडवों ने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की.

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भाटुन्द

भाटुन्द, राजस्थान के पाली जिले में स्थित एक गाँव है। यह गाँव पाली जिले के बाली तहसील से 21 किमी दूर है। गाँव की जनसंख्या लगभग 6 - 7 हजार है। यह गाँव पहले सिरोही रियासत में आता था। देश आजाद होने के बाद अब पाली ज़िले में चला गया है। गाँव से 3 किमी दूर चेतन बालाजी का भव्य तीर्थ स्थल है। गाँव में एक ऐतिहासिक सूर्य मन्दिर है। यह मन्दिर लगभग 10 वी व 11 वी शताब्दी के बीच श्री महाराजा भोज ने बनाया था। ईस गाँव में लगभग 13 वी शताब्दी में 18 परिवारों सहित श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) ने लाखाजौहर किया था। यह जौहर अलाउद्दीन खिलजी, चित्तौड़गढ़ फतह करने के बाद जालौर रियासत पर आक्रमण करने के लिए ईसी गाँव से गुजर रहे थे। रास्ता ऊस समय इस गाँव से निकलता था, यहाँ पर आदोरजी महाराज के परिवार की मुगली सेना से लडाई हो गई। ईसके कारण मुगली साम्राज्य की सेना के हाथो न मरने के कारण लाखाजौहर में 18 परिवारों सहित समर्पित हो गए थे। यह घटना चित्तौड़गढ़ कि रानी पद्मिनी के जौहर के ठीक 6 माह बाद की है। यह गाँव सिरोही दरबार द्वारा 3600 बीघा जमीन दान के रूप में श्री आदोरजी महाराज (आदरशी महाराज) को भेंट में यह गाँव दिय़ा हुआ था। ईस गाँव का नामकरन भी उन्होंने ही करवाया था। जो गाँव का नाम दरबार में खताता था। ऊसे दरबार में खत श्री की उपमा से नवाजा जाता था। आज भी आदोरजी महाराज के परिवार को खत् नाम से भी संबोधित किया जाता है। पुरा परिवार लाखा जौहर में समर्पित होने के बाद, ईनकी एक बहु मुहर्रते गई हुई थी। जिसके लडके का वंशज आज विद्यमान हैं। ईस गाँव के नामकरण के लिए श्री आदोरजी महाराज ने भाट (राव) को बुलवाया गया। भाट ने ब्राहमणो के मुँह से बार बार अपनी जाति का नाम लेने के प्रयोजन से उन्होंने भाटुन नाम सुझाया गया, ईस गाँव का नाम श्री आदोरजी महाराज ने भाटून रखा। बाद में यह भाटुन्द पडा। यहाँ पर काफी देवताओं के बड़े भव्य मंदिर हैं। कहाँ जाता है कि यह गाँव भुकंम्भ के कारण दो से तीन बार उजड़ा (डटन) भी है। यह सदियों पुरानी ब्राहमणो की नगरी है। ब्राहमणो के आव्हान पर माँ शीतला माता साक्षात दर्शन देकर यहाँ विराजमान हुईं है। साल में दो बार माँ शीतला माताज़ी का विशाल मेला लगता है। सदियों पुरानी एतिहासिक कहानी इस प्रकार है कि यहाँ पहाड़ी जंगलों में ऐक राक्षस रहता था। यह राक्षस किसी की शादी नहीं होने देता था, जब किसी की शादी होती, फैरे लेने के समय आ जाता था और वर (दुल्ला)को खा जाता था। इस कारण यहाँ कि लड़कियों से कोई शादी नहीं करता था। लड़कियों का ऐसा हाल देखकर ब्राहमणों ने शीतला माता की घोर तपस्या की, जब माँ ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए और ब्राहमणो ने अपनी तकलीफ का वर्णन किया, माँ बोली अब आप लोग धूमधाम से शादी करो मैं आप लोगों की रक्षा करूँगी। इस प्रकार माँ का वचन सुनकर ब्राहमण लोग बहुत खुश हो गए। ब्राहमणो ने अपनी बच्चियों के विवाह की तैयारियां चालु की। फैरो के समय राक्षस आ गया, माँ शीतला ने अपने त्रिशूल से राक्षस का वध किया था। वध करते समय राक्षस ने माँ शीतला माता से पानी पीने व खाने की इच्छा प्रकट की, माँ ने राक्षस को वरदान दिया कि साल में दो बार तुझको पानी व खाने केलिए दिया जाएगा। जो हर साल चैत्र शुक्ल ७ को, वह ज्येष्ठ शुक्ल १५ को दिया जाता है। माँ शीतला माता के सामने ऐक शीतला माता कुण्ड (ऊखली) है जो ऐक फिट गहरी है। पुरा गांव ईस ऊखली में घड़ो से पानी डालता है, लेकिन पानी किधर जाता है, ईसका आज तक किसको मालुम नहीं है। पुरा पानी राक्षस पिता है। ऐसा गाँव वालो का मानना है। ऐक बार सिरोही दरबार ने भी ईस ऐक फुट गहरी ऊखली को दो कुआं का पानी लाकर भरने की निष्फल कोशिश की थी। माँ के प्रकोप का सामना करना पड़ा था। पूरे शरीर पर कोड निकल गये थे। माँ की आराधना करने से ही कोड समाप्त हुए थे। .

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भारत में अन्धविश्वास

अंधविश्वासों के प्रथाओं हानिरहित हो सकते है, जैसे कि बुरी नजर दूर रखने वाली नींबुऔर मिर्च। मगर वे जल की तरह गंभीर भी हो सकते है। अंधविश्वासों को अच्छे तथा बुरे अंधविश्वासों में बांटा जा सकता है। .

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भारतीय चित्रकला

'''भीमवेटका''': पुरापाषाण काल की भारतीय गुफा चित्रकला भारत मैं चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना रहा हैं। पाषाण काल में ही मानव ने गुफा चित्रण करना शुरु कर दिया था। होशंगाबाद और भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र मिले हैं। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी कई शताब्दियों में तैय्यार हुई थी, इसकी सबसे प्राचिन चित्रकारी ई.पू.

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भारतीय राजनय का इतिहास

यद्यपि भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि वह एक छत्र शासक के अन्तर्गत न रहकर विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित रहा था तथापि राजनय के उद्भव और विकास की दृष्टि से यह स्थिति अपना विशिष्ट मूल्य रखती है। यह दुर्भाग्य उस समय और भी बढ़ा जब इन राज्यों में मित्रता और एकता न रहकर आपसी कलह और मतभेद बढ़ते रहे। बाद में कुछ बड़े साम्राज्य भी अस्तित्व में आये। इनके बीच पारस्परिक सम्बन्ध थे। एक-दूसरे के साथ शांति, व्यापार, सम्मेलन और सूचना लाने ले जाने आदि कार्यों की पूर्ति के लिये राजा दूतों का उपयोग करते थे। साम, दान, भेद और दण्ड की नीति, षाडगुण्य नीति और मण्डल सिद्धान्त आदि इस बात के प्रमाण हैं कि इस समय तक राज्यों के बाह्य सम्बन्ध विकसित हो चुके थे। दूत इस समय राजा को युद्ध और संधियों की सहायता से अपने प्रभाव की वृद्धि करने में सहायता देते थे। भारत में राजनय का प्रयोग अति प्राचीन काल से चलता चला आ रहा है। वैदिक काल के राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है। महाकाव्य तथा पौराणिक गाथाओं में राजनयिक गतिविधियों के अनेकों उदाहरण मिलते हैं। प्राचीन भारतीय राजनयिक विचार का केन्द्र बिन्दु राजा होता था, अतः प्रायः सभी राजनीतिक विचारकों- कौटिल्य, मनु, अश्वघोष, बृहस्पति, भीष्म, विशाखदत्त आदि ने राजाओं के कर्तव्यों का वर्णन किया है। स्मृति में तो राजा के जीवन तथा उसका दिनचर्या के नियमों तक का भी वर्णन मिलता है। राजशास्त्र, नृपशास्त्र, राजविद्या, क्षत्रिय विद्या, दंड नीति, नीति शास्त्र तथा राजधर्म आदि शास्त्र, राज्य तथा राजा के सम्बन्ध में बोध कराते हैं। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, कामन्दक नीति शास्त्र, शुक्रनीति, आदि में राजनय से सम्बन्धित उपलब्ध विशेष विवरण आज के राजनीतिक सन्दर्भ में भी उपयोगी हैं। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद राजा को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जासूसी, चालाकी, छल-कपट और धोखा आदि के प्रयोग का परामर्श देते हैं। ऋग्वेद में सरमा, इन्द्र की दूती बनकर, पाणियों के पास जाती है। पौराणिक गाथाओं में नारद का दूत के रूप में कार्य करने का वर्णन है। यूनानी पृथ्वी के देवता 'हर्मेस' की भांति नारद वाक चाटुकारिता व चातुर्य के लिये प्रसिद्ध थे। वे स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य एक-दूसरे राजाओं को सूचना लेने व देने का कार्य करते थे। वे एक चतुर राजदूत थे। इस प्रकार पुरातन काल से ही भारतीय राजनय का विशिष्ट स्थान रहा है। .

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भृङ्गदूतम्

भृंगदूतम् (२००४), (शब्दार्थ:भ्रमर दूत)) जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा दूतकाव्य शैली में रचित एक संस्कृत खण्डकाव्य है। काव्य दो भागों में विभक्त है और इसमें मन्दाक्रान्ता छंद में रचित ५०१ श्लोक हैं। काव्य की कथा रामायण के किष्किन्धाकाण्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसमें भगवान राम वर्षा ऋतु के चार महीने किष्किन्धा में स्थित प्रवर्षण पर्वत पर सीता के विरह में व्यतीत करते हैं। प्रस्तुत खण्डकाव्य में राम इस अवधि में अपनी पत्नी, सीता, जो की रावण द्वारा लंका में बंदी बना ली गई हैं, को स्मरण करते हुए एक भ्रमर (भौंरा) को दूत बनाकर सीता के लिए संदेश प्रेषित करते हैं। काव्य की एक प्रति स्वयं कवि द्वारा रचित "गुंजन" नामक हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन ३० अगस्त २००४ को किया गया था। .

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मध्वाचार्य

मध्वाचार्य, माधवाचार्य विद्यारण्य से भिन्न हैं। ---- मध्वाचार्य मध्वाचार्य (तुलु: ಶ್ರೀ ಮಧ್ವಾಚಾರ್ಯರು) (1238-1317) भारत में भक्ति आन्दोलन के समय के सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिकों में से एक थे। वे पूर्णप्रज्ञ व आनंदतीर्थ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। वे तत्ववाद के प्रवर्तक थे जिसे द्वैतवाद के नाम से जाना जाता है। द्वैतवाद, वेदान्त की तीन प्रमुख दर्शनों में एक है। मध्वाचार्य को वायु का तृतीय अवतार माना जाता है (हनुमान और भीम क्रमशः प्रथम व द्वितीय अवतार थे)। मध्वाचार्य कई अर्थों में अपने समय के अग्रदूत थे, वे कई बार प्रचलित रीतियों के विरुद्ध चले गये हैं। उन्होने द्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया। इन्होने द्वैत दर्शन के ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा और अपने वेदांत के व्याख्यान की तार्किक पुष्टि के लिये एक स्वतंत्र ग्रंथ 'अनुव्याख्यान' भी लिखा। श्रीमद्भगवद्गीता और उपनिषदों पर टीकाएँ, महाभारत के तात्पर्य की व्याख्या करनेवाला ग्रंथ महाभारततात्पर्यनिर्णय तथा श्रीमद्भागवतपुराण पर टीका ये इनके अन्य ग्रंथ है। ऋग्वेद के पहले चालीस सूक्तों पर भी एक टीका लिखी और अनेक स्वतंत्र प्रकरणों में अपने मत का प्रतिपादन किया। ऐसा लगता है कि ये अपने मत के समर्थन के लिये प्रस्थानत्रयी की अपेक्षा पुराणों पर अधिक निर्भर हैं। .

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मल्लयुद्ध

मल्लयुद्ध भारत का एक पारम्परिक युद्धकला है। भारत के अतिरिक्त यह पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा श्रीलंका में भी प्रचलित थी। यह दक्षिणपूर्वी एशियाई कुश्ती की शैलियों जैसे नाबन से निकट संबंधी है। मल्लयुद्ध चार प्रकारों में विभाजित है जिनमें से प्रत्येक एक हिन्दू देवता या पौराणिक योद्धा के नाम पर है:- हनुमन्ती तकनीकी श्रेष्ठता पर केन्द्रित है, जाम्बुवन्ती प्रतिद्वन्दी को आत्मसर्मपण के लिये मजबूर करने हेतु लॉक्स तथा होल्डस का प्रयोग करती है, जरासन्धी अंगों तथा जोड़ों को तोड़ने पर केन्द्रित है जबकि भीमसेनी विशुद्ध रूप से ताकत पर केन्द्रित है। यह कुस्ती का प्राचीन रूप है। इसके दो प्रमुख प्रकार हैं धरनीपट्ट एबं आसुरा। धरनीपट्ट में हार-जीत का निश्चय विपक्षी को धरती पर पीठ के बल गिराना होता है। भीमसेनी तथा हनुमन्ती इसी तरह की उदहारण है। आसरा, मुक्त युद्ध है इसमे विपक्षी चोट पहुचाई जा सकती है लेकिन मिरतु नहीं होनी चाहिए। .

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महाभारत में विभिन्न अवतार

यहाँ पर महाभारत में वर्णित अवतारों की सूची दी गयी है और साथ में वे किस देवता के अवतार हैं, यह भी दर्शाया गया है। .

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महावीर (बहुविकल्पी)

कोई विवरण नहीं।

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महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार

बिहार राज्य के सीवान जिला से लगभग 35 किमी दूर सिसवन प्रखण्ड के अतिप्रसिद्ध मेंहदार गांव में स्थित भगवान शिव के प्राचीन महेंद्रनाथ मन्दिर का निर्माण नेपाल नरेश महेंद्रवीर विक्रम सहदेव सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था और इसका नाम महेंद्रनाथ रखा था। ऐसी मान्यता है कि मेंहदार के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने पर नि:संतानों को संतान व चर्म रोगियों को चर्म रोग रोग से निजात मिल जाती है । .

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माता-पिता

माता-पिता या जनक का अंग्रेजी अनुवाद अधिक प्रयोग में आता है, जिसे  parent शब्द से उल्लिखित किया जाता है। भारतीय सभ्यता में माता-पिता का एक विशिष्ट स्थान है उन्हें गुरु व भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। इसे अति सरल शब्दो में समझनें के लिये बस इतना ही पर्याप्त है कि भारत में जितने भी अवतार आज तक हुए हैं, उन में से अधिकतर ने किसी न किसी माता के गर्भ से ही जन्म लिया है। चाहे भगवान श्री राम चन्द्र हो, श्री कृष्ण हो, श्री वामन अवतार हो, परशुराम अवतार हो या फिर संकट मोचन हनुमान हो। ये अवतार चाहे किसी भी भगवान ने लिया हो सब को किसी न किसी माता के गर्भ से जन्म लेना ही पड़ा है। अर्थात् हर अवतार को परिपूर्ण रूप से माता-पिता की स्नेह रूपी छाया में रह कर प्राम्भिक शिक्षा, संस्कार व आचार विहार सब कुछ ग्रहण करना पड़ता है। इस श्रेणी में पालक माता-पिता और पालक सम्बन्धी भी अन्तर्भूत होते हैं। जिसका सन्दर्भ श्रीकृष्ण की पालक/अभिभावक माता यशोदा और नन्द हैं। भारतीय सभ्यता का मूल रूप व आचरण सर्व प्र्थम माता-पिता द्वारा दी गई प्रारम्भिक शिक्षा पर ही निर्भर करता है। जिसके लिये भारतवर्ष पूर्णतय शक्ष्म है लेकिन इन्ही सस्कांरो,आचरणो व आचार विहार को खण्डित करने में उन सभी बाहरी ताकतो ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी जिन्होने इस पावन धरती पर हजारों साल राज किया और हमारी धरोहर संस्कृति को तार-२ करने में कोई कसर नहीं छोडी। ये सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पूर्वज कितने गुणवान,सभ्य व स्ंस्कारी थे और भारत का इतिहास व स्ंरचना तो ऐसे कर्मठ योगियों,साधु-सन्तो व ऋषि-मुनियों द्वारा रचित की गई है जो अपने आप में उस समय के पुर्ण विज्ञानिक थे उनके एक-२ शोध वेदों व विज्ञानिक दृषिट से सम्पुर्ण थे। भारतीय संस्कृति में माता-पिता का आदर करना,उनके द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करना बच्चो का प्र्मुख कर्त्तव्य रहता है भारतीय समाज निर्माण में भी माता-पिता का एक विशिष्ठ स्थान है यह एक ऐसा सत्य है जिसके बीसीयों परिमाण हमारे देश में मौज़ूद है माता-पिता के आदर्शो पर चलने वाले असख्य्ं ऐसे महापुरषों के उदाहरण है जेसे:- आदर्श पुरुष श्री राम चन्द्र जी, श्रवण कुमार, महाराजा रण्जीत सिंह, शिवाजी महाराजा, शहिद भगत सिंह व अन्य कितनी विडम्बना है कि आज के परिपेक्ष में हम लोग ही अपनी धरोहर संस्कृति से दूर होते जा रहें है इन सब के अनेक कारण है जेसे:- संयुक्त परिवार चित्र:गुणराज अवस्थीको परिवार.jpg|संयुक्त परिवार संयुक्त परिवार का विघटन, हजारों साल की गुलामी,पाश्चात्य संस्कृति का बिना सोचे समझे अनुसरण,कार्य की अत्यधिक व्यस्तता, बडों के प्र्ति आदर-सम्मान की कमी व मोबाईल और नेट के अत्य्धिक प्रचलन ने भी हमें अपनो से ही दूर होने पर मजबुर कर दिया है इस का एक और अत्यधिक सवेदनशील् ज्जवलंत कारण है पेसा कमाने की होड में आज के परिपेक्ष में माता-पिता दोनो का नौकरी करना जिसकी वजह से आज के युग में भारतीय बच्चे अपने माता-पिता के सुख व उनके द्वारा दिये जाने वाले संस्कारो से वंचित रह रहे हैं दूसरे एकाकी परिवारवाद ने भी हमें अपने बजुर्गो के आशिर्वाद से हमें वंचित कर दिया है परन्तुं अभी भी आधुनिक् भारतीय परिपेक्ष में हमनें अपने वैदिक संस्कारों को नहीं भुला है माता-पिता जितना भी हो सके अपने बच्चों में भरतीय संस्कार देना नहीं भुलते। .

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मारुति

मारुति शब्द का तात्पर्य निम्न से हो सकता है.

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मांगरोल, बौंली

गांव राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के अंतर्गत आने वाला मांगरोल गांव एक छोटा सा गांव है। गांव की तहसील बौंली लगती है वही ग्राम पंचायत व पोस्ट मुख्यालय पीपलवाड़ा लगता है। मांगरोल गांव में सबसे अधिक आबादी मीणा जनजाति की है जो कि महर गौत्र से संबंधित है। मीणा जनजाति का महर गौत्र मीणा समाज का महत्व पूर्ण गौत्र है। इसी गौत्र के मीणाओं ने राजस्थान के लोकदेवता वीर तेजाजी महाराज को बुरी तरह से घायल कर दिया था लेकिन तेजाजी महाराज ने महर गौत्र के मीणों पर विजय पाई थी। .

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मंगलवार

मंगलवार सप्ताह का तीसरा दिन है। यह सोमवार के बाद और बुधवार से पहले आता है। मंगलवार का यह नाम मंगल से पड़ा है जिसका अर्थ कुशल या शुभ होता है, मंगल का अर्थ भगवान हनुमान से भी लगाया जाता है। .

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मंगलवार व्रत कथा

यह उपवास सप्ताह के दूसरे दिवस मंगलवार को रखा जाता है। .

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मुसाफिरखाना

मुसाफिरखाना भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में स्थित एक कस्बा व नगर पंचायत क्षेत्र  है, पूर्व में यह सुल्तानपुर जिले की एक महत्वपूर्ण तहसील थी। 'मुसाफिरखाना' शब्द का अर्थ है सराय या धर्मशाला। मुसाफिरखाना उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में स्थित' है। यह लखनऊ-अमेठी रोड पर स्थित है  गौरीगंज और अमेठी सड़क मार्ग माध्यम से मुसाफिरखाना पहुँचा जा सकता हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन अमेठी रेलवे स्टेशन है। निकटतम हवाई अड्डा अमौसी है। भौगोलिक दृष्टि से, शहर 26.37 ° उत्तरी अक्षांश और 81.8 ° पूर्वी देशांतर में स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 102 मीटर (334 फुट) है। .

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मुगल रामायण

मुगल बादशाह अकबर द्वारा रामायण का फारसी अनुवाद करवाया था। उसके बाद हमीदाबानू बेगम, रहीम और जहाँगीर ने भी अपने लिये रामायण का अनुवाद करवाया था। .

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राम

राम (रामचन्द्र) प्राचीन भारत में अवतार रूपी भगवान के रूप में मान्य हैं। हिन्दू धर्म में राम विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाओं में अनेक रामायणों की रचना हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं और हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं) और इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के लंका के राजा रावण का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदहारण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। सौतेले भाई लक्ष्मण ने भी भाई के साथ चौदह वर्ष वन में बिताये। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आये। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। राम की पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। राम ने उस समय की एक जनजाति वानर के लोगों की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके पुत्र कुश व लव ने इन राज्यों को सँभाला। हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुड़े हुए हैं। .

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राम तांडव स्तोत्र

श्रीराम तांडव स्तोत्रम् इंद्रादयो ऊचु: (इंद्र आदि ने कहा) जटासमूह से युक्त विशालमस्तक वाले श्रीहरि के क्रोधित हुए लाल आंखों की तिरछी नज़र से, विशाल जटाओं के बिखर जाने से रौद्र मुखाकृति एवं प्रचण्ड वेग से आक्रमण करने के कारण विचलित होती, इधर उधर भागती शत्रुसेना के मध्य तांडव (उद्धत विनाशक क्रियाकलाप) स्वरूप धारी भगवान् हरि शोभित हो रहे हैं। अब वो देखो !! महान् धनुष एवं तरकश धारण वाले प्रभु की अग्रेगामिनी, एवं पार्श्वरक्षिणी महान् सेना जिसमें हनुमान्, जाम्बवन्त, सुग्रीव, अंगद आदि वीर हैं, प्रचण्ड दानवसेना रूपी अग्नि के शमन के लिए समुद्रतुल्य जलराशि के समान नाशक हैं, ऐसे मृत्युरूपी दैत्यसेना के भक्षक के लिए मेरा प्रणाम है। शरीर में मुनियों के समान वल्कल वस्त्र एवं हाथ मे विशाल धनुष धारण करते हुए, बाणों से शत्रु के शरीर को विदीर्ण करने की इच्छा से दोनों पैरों को फैलाकर एवं गोलाई बनाकर, हृदय में रावण के द्वारा किये गए सीता हरण के घोर अपराध का चिन्तन करते हुए प्रभु राघव प्रचण्ड तांडवीय स्वरूप धारण करके राक्षसगण को विदीर्ण कर रहे हैं। अपने तीक्ष्ण बाणों से निंदित कर्म करने वाले असुरों के शरीर को वेध देने वाले, अधर्म की वृद्धि के लिए माया और असत्य का आश्रय लेने वाले प्रमत्त असुरों का मर्दन करने वाले, अपने पराक्रम एवं धनुष की डोर से, चातुर्य से एवं राक्षसों को प्रतिहत करने की इच्छा से प्रचण्ड संहारक, समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर जाने वाले राघव को मैं भजता हूँ। वानरों से घिरे, शरीर में रक्त की धार से नहाए हुए जिनके द्वारा बहुत बड़ी शक्ति, तलवार, दण्ड, पाश आदि धारण करने वाले राक्षसों के मांस, चर्बी, कलेजा, आंत, एवं टुकड़े टुकड़े हुए शवों के द्वारा सम्पूर्ण युद्धभूमि ढक दी गयी है....

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राम नवमी

रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी मनाया जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म हुआ था। .

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रामभद्राचार्य

जगद्गुरु रामभद्राचार्य (जगद्गुरुरामभद्राचार्यः) (१९५०–), पूर्वाश्रम नाम गिरिधर मिश्र चित्रकूट (उत्तर प्रदेश, भारत) में रहने वाले एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं। वे रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर १९८८ ई से प्रतिष्ठित हैं।अग्रवाल २०१०, पृष्ठ ११०८-१११०।दिनकर २००८, पृष्ठ ३२। वे चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वे चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं। यह विश्वविद्यालय केवल चतुर्विध विकलांग विद्यार्थियों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और डिग्री प्रदान करता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य दो मास की आयु में नेत्र की ज्योति से रहित हो गए थे और तभी से प्रज्ञाचक्षु हैं। अध्ययन या रचना के लिए उन्होंने कभी भी ब्रेल लिपि का प्रयोग नहीं किया है। वे बहुभाषाविद् हैं और २२ भाषाएँ बोलते हैं। वे संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं। उन्होंने ८० से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में), रामचरितमानस पर हिन्दी टीका, अष्टाध्यायी पर काव्यात्मक संस्कृत टीका और प्रस्थानत्रयी (ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और प्रधान उपनिषदों) पर संस्कृत भाष्य सम्मिलित हैं।दिनकर २००८, पृष्ठ ४०–४३। उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है, और वे रामचरितमानस की एक प्रामाणिक प्रति के सम्पादक हैं, जिसका प्रकाशन तुलसी पीठ द्वारा किया गया है। स्वामी रामभद्राचार्य रामायण और भागवत के प्रसिद्ध कथाकार हैं – भारत के भिन्न-भिन्न नगरों में और विदेशों में भी नियमित रूप से उनकी कथा आयोजित होती रहती है और कथा के कार्यक्रम संस्कार टीवी, सनातन टीवी इत्यादि चैनलों पर प्रसारित भी होते हैं। २०१५ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया। .

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रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

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रामायण (टीवी धारावाहिक)

रामायण एक बहुत ही सफ़ल भारतीय टीवी श्रृंखला है, जिसका निर्माण, लेखन और निर्देशन रामानन्द सागर के द्वारा किया गया था। ७८-कड़ियों के इस धारावाहिक का मूल प्रसारण दूरदर्शन पर २५ जनवरी, १९८७ से ३१ जुलाई, १९८८ तक रविवार के दिन सुबह ९:३० किया जाता था। यह एक प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्थ रामायण का टीवी रूपांतरण है और मुख्यतः वाल्मीकि रामायण और तुलसीदासजी की रामचरितमानस पर आधारित है। इसका कुछ भाग कम्बन की कम्बरामायण और अन्य कार्यों से लिया गया है। .

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रामजात्तौ

बर्मी रामायण नृत्य (राम और सीता) रामजात्तौ (बर्मी लिपि में: ရာမဇာတ်တော်; बर्मी उच्चारण: यामज़ातो) बर्मी भाषा का रामायण है। अघोषित रूप से इसे म्यांमार का 'राष्ट्रीय महाकाव्य' माना जाता है। म्यांमार में रामजात्तौ की नौ प्रतियाँ उपलब्ध हैं। .

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रामेश्वरम तीर्थ

रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है। यह तमिल नाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह तीर्थ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। इसके अलावा यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। भारत के उत्तर मे काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। बहुत पहले यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि के साथ जुड़ा हुआ था, परन्तु बाद में सागर की लहरों ने इस मिलाने वाली कड़ी को काट डाला, जिससे वह चारों ओर पानी से घिरकर टापू बन गया। यहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व एक पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिसपर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। बाद में राम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। आज भी इस ३० मील (४८ कि.मी) लंबे आदि-सेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं। यहां के मंदिर के तीसरे प्राकार का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। .

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रामेश्वरम शहर

रामेश्वरम् (तमिळ - इरोमेस्वरम्) दक्षिण भारत के तट पर स्थित एक द्वीप-शहर है जो हिंदुओं का पवित्र तीर्थ भी है। उत्तर भारत में काशी (वाराणसी या बनारस) की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् की है। धार्मिक हिंदुओं के लिए वहां की यात्रा उतना की महत्व रखती है, जितना कि काशी की। रामेश्वरम् मद्रास से कोई ६०० किमी दक्षिण में है। रामेश्वरम् एक सुन्दर टापू है। हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी इसको चारों ओर से घेरे हुए हैं। यहाँ पर रामायण से संबंधित अन्य धार्मिक स्थल भी हैं। यह तमिळनाडु के रामनाथपुरम ज़िले का तीसरा सबसे बड़ा शहर है जिसकी देखरेख १९९४ में स्थापित नगरपालिका करती है। पौराणिक कथाओं के अतिरिक्त यहाँ पर श्रीलंक के जाफ़ना के राजा, चोळ और अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर की भी उपस्थिति रही है। श्रीलंका के गृहयुद्ध के दौरान विस्थापित तमिलों, ईसाई मिशनरियों और रामसेतु को तोड़कर नौवहन का रास्ता तैयार करने के लिए भी यह शहर चर्चा में रहा है। जिला मुख्यालय, रामनाथपुरम से यह कोई ५० किलेमीटर पूर्व की दिशा में पड़ता है। पर्यटन तथा मत्स्यव्यापार यहाँ के वासियों की मुख्य आजीविका है। .

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रावण

त्रिंकोमली के कोणेश्वरम मन्दिर में रावण की प्रतिमा रावण रामायण का एक प्रमुख प्रतिचरित्र है। रावण लंका का राजा था। वह अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिसके कारण उसका नाम दशानन (दश .

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रावण हत्था

रावण हत्था एक भारतीय वाद्य यंत्र है। यह एक प्राचीन मुड़ा हुआ वायलिन है, जो भारत और श्रीलंका के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रों में लोकप्रिय है। यह एक प्राचीन भारतीय तानेवाला संगीत वाद्ययंत्र है जिस पर पश्चिमी वाद्य संगीत वाद्य जैसे वायलिन और वायला बाद में आधारित थे। .

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रघुविलास

रघुविलास एक संस्कृत नाटक है जिसके रचयिता जैन नाट्यकार रामचन्द्र सूरि थे। वे आचार्य हेमचंद्र के शिष्य थे। रामचन्द्र सूरि का समय संवत ११४५ से १२३० का है। उन्होंने संस्कृत में ११ नाटक लिखे है। उनके अनुसार यह उनकी चार सर्वोतम कृतियों में से एक है। .

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रुद्रावतार

रुद्रावतार भगवान् शिव (रूद्र) के अवतारों को कहा जाता है। शास्त्र अनुसार महादेव के २८ अवतार हुए थे उनमें भी १० प्रमुख है । .

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लखनऊ

लखनऊ (भारत के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी है। इस शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। २००६ मे इसकी जनसंख्या २,५४१,१०१ तथा साक्षरता दर ६८.६३% थी। भारत सरकार की २००१ की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है। लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को नवाबों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं। .

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लंगुरिया

लंगुरिया बुंदेलखंड क्षेत्र का एक लोक नृत्य और लोक गीत है। इसे हनुमान के साथ भी जोड़ा जाता है। .

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लंका

सोने की लंका का कलात्मक चित्रण लंका एक पौराणिक द्वीप है जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत आदि हिन्दू ग्रन्थों में हुआ है। इसका राजा रावण था। यह 'त्रिकुट' नामक तीन पर्वतों से घिरी थी। रामायण के अनुसार, जब रावण ने हनुमान को दण्ड देने के लिए उनकी पूँछ में कपड़े लपेटकर उसको तेल में भिगोकर आग लगा दी थी तब हनुमान ने पूरी लंका में कूद-कूदकर उसे जला दिया था। जब राम ने रावण का वध किया तब उसके भाई विभीषण को लंका का राजा बनाया। आज का श्री लंका ही पौराणिक लंका माना जाता है। पाण्डवों के समय रावण के वंशज ही लंका पर राज्य कर रहे थे। महाभारत के अनुसार, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की पूर्ति के लिए सहदेव अश्व लेकर लंका गये थे। .

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लंका दहन

लंका दहन १९१७ कि भारतीय मूक फ़िल्म है जिसे दादासाहब फालके ने निर्देशित किया था। ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखित हिंदू महाकाव्य रामायण के एक प्रकरण पर आधारित इस फ़िल्म का लेखन भी फालके ने किया था। १९१३ कि फ़िल्म राजा हरिश्चन्द्र, जो पहली पूर्ण रूप से भारतीय फीचर फ़िल्म थी, के बाद फालके की यह दूसरी फीचर फ़िल्म थी। फालके ने बीच में विभिन्न लघु फिल्मों का निर्देशन किया था। अण्णा सालुंके ने इस फिल्म में दो भूमिका निभाई थी। उन्होंने पहले फालके के राजा हरिश्चन्द्र में रानी तारामती की भूमिका निभाई थी। चूंकि उस जमानेमे प्रदर्शनकारी कलाओं में भाग लेने से महिलाओं को निषिद्ध किया जाता था, पुरुष ही महिला पात्रों को निभाते थे। सालुंके ने इस फ़िल्म में राम के पुरुष चरित्र और साथ ही उनकी पत्नी सीता का महिला चरित्र भी निभाया है। इस प्रकार उन्हें भारतीय सिनेमा में पहली बार दोहरी भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है। .

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लंकाकाण्ड

लंका जाने के लिए रामसेतु का निर्माण करते हुई वानर सेना लंकाकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। जाम्बवन्त के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यंत व्याकुल हुआ। मन्दोदरी के राम से बैर न लेने के लिये समझाने पर भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ सुबेल पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना। शांति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया परन्तु यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बिठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलम्ब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये। बालासाहेब पंत प्रतिनिधि द्वारा चित्र जिसमे रावण वध दर्शाया गया है रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी राम के शरण में जाने की असफल मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुये और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया। विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पकविमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थान किया। .

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लक्ष्मी नारायण मंदिर, मोदीनगर

लक्ष्मीनारायण मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मोदीनगर कस्बे में स्थित है। इसे प्रचलित रूप में मोदी मंदिर भी कहा जाता है। दिल्ली के बिड़ला मंदिर से कुछ कुछ मेल खाते हुए इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। .

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शनि की साढ़े साती

शनि की साढ़े साती, भारतीय ज्योतिष के अनुसार नवग्रहों में से एक ग्रह, शनि की साढ़े सात वर्ष चलने वाली एक प्रकार की ग्रह दशा होती है। ज्योतिष एवं खगोलशास्त्र के नियमानुसार सभी ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते रहते हैं। इस प्रकार जब शनि ग्रह लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपना समय चक्र पूरा करता है। शनि की मंथर गति से चलने के कारण ये ग्रह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष यात्रा करता है, इस प्रकार एक वर्तमान के पहले एक पिछले तथा एक अगले ग्रह पर प्रभाव डालते हुए ये तीन गुणा, अर्थात साढ़े सात वर्ष की अवधि का काल साढ़े सात वर्ष का होता है। भारतीय ज्योतिष में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है। .

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शबरी धाम

शबरी धाम दक्षिण-पश्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा से 33 किलोमीटर और सापुतारा से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुबीर गांव के पास स्थित है। माना जाता है कि शबरी धाम वही जगह है जहां शबरी और भगवान राम की मुलाकात हुई थी। शबरी धाम अब एक धार्मिक पर्यटन स्थल में परिवर्तित होता जा रहा है। यहां से कुछ ही किलोमाटर की दूरी पर पम्पा सरोवर है। ऐसा माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां हनुमान की तरह शबरी ने भी स्नान किया था। घने जंगल को वही दण्डकारण्य माना जाता है जहां से 14 साल के वनवास के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता गुजरे थे। यहाँ के जनजातीय लोगों की लोककथाएं भगवान राम, सीता और लक्ष्मण से भरी हुई हैं। रामायण के अनुसार शबरी ने भगवान राम को जंगली बेर खिलाए थे लेकिन इससे पहले उन्होंने इन बेरों को चखकर यह सुनिश्चित कर लिया था कि ये मीठे हैं या नहीं। यहां एक छोटी सी पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है और लोगों का मानना है कि शबरी यहीं रहती थीं। यहां मंदिर के आसपास छोटे-छोटे बेर के पेड़ दिखते हैं। मंदिर में रामायण से जुड़ी और खासतौर पर रामायण के शबरी प्रसंग से जुड़ी तस्वीरें बनी हुई हैं। यहां 'शबरी कुम्भ' आयोजित होत है। .

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शिमला

शिमला, हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। 1864 में, शिमला को भारत में ब्रिटिश राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया था। एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल, शिमला को अक्सर पहाड़ों की रानी के रूप में जाना जाता है। .

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शिवानन्द गोस्वामी

शिवानन्द गोस्वामी | शिरोमणि भट्ट (अनुमानित काल: संवत् १७१०-१७९७) तंत्र-मंत्र, साहित्य, काव्यशास्त्र, आयुर्वेद, सम्प्रदाय-ज्ञान, वेद-वेदांग, कर्मकांड, धर्मशास्त्र, खगोलशास्त्र-ज्योतिष, होरा शास्त्र, व्याकरण आदि अनेक विषयों के जाने-माने विद्वान थे। इनके पूर्वज मूलतः तेलंगाना के तेलगूभाषी उच्चकुलीन पंचद्रविड़ वेल्लनाडू ब्राह्मण थे, जो उत्तर भारतीय राजा-महाराजाओं के आग्रह और निमंत्रण पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के अन्य प्रान्तों में आ कर कुलगुरु, राजगुरु, धर्मपीठ निर्देशक, आदि पदों पर आसीन हुए| शिवानन्द गोस्वामी त्रिपुर-सुन्दरी के अनन्य साधक और शक्ति-उपासक थे। एक चमत्कारिक मान्त्रिक और तांत्रिक के रूप में उनकी साधना और सिद्धियों की अनेक घटनाएँ उल्लेखनीय हैं। श्रीमद्भागवत के बाद सबसे विपुल ग्रन्थ सिंह-सिद्धांत-सिन्धु लिखने का श्रेय शिवानंद गोस्वामी को है।" .

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श्री नीलकंठेश्वर महादेव, मथुरा

श्री नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत मथुरा नगर में मथुरा-वृंदावन मार्ग पर मोक्ष धाम के निकट स्थित है। इस मंदिर का उल्लेख वराह पुराण के अंतर्गत गोकर्ण सरस्वती माहात्म्य शुक्र वृत्तांत, मथुरा पुरागमन मोक्ष प्राप्ति वृत्तांत में है। कालांतर में यहाँ नागा संतों ने महामृत्युंजय यंत्र के आधार पर मुख्य मंदिर में कसौटी पत्थर से निर्मित विशाल अनुपम अलौकिक शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कर लगभग 400 वर्षों तक तप साधना की। लंबे समय तक यह मंदिर सुनसान और विस्मृत रहा। सन् 1850 में लखनऊ निवासी अयोध्या प्रसाद ने नागा संतों द्वारा स्थापित पुराने मूल मंदिर का विस्तार कर परिसर को भव्यता प्रदान की। मुख्य मंदिर के एक ओर महालक्ष्मी, महाकाली और महा सरस्वती के मंदिर हैं तथा दूसरी तरफ गंगा और गरुड के मंदिर है। मुख्य मंदिर के बगल में हनुमान का मंदिर है। मान्यता है कि श्री नीलकंठेश्वर के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। पुरातात्विक महत्व के इस पौराणिक सिद्धपीठ के विभिन्न मंदिर, प्रवेशद्वार, परकोटे आदि समय और प्रकृति के थपेड़ों से अत्यंत जीर्णशीर्ण हालत में हैं। लंबे समय से लोगों की उपेक्षा और अतिक्रमण ने इसे नष्ट-भ्रष्ट कर गिरासू हालत में पहुँचा दिया है। वर्तमान में इस मंदिर के पुरातन पौराणिक स्वरूप को बचाने के लिए कुछ भक्तजन और संस्कृतिप्रेमी लोगों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के मंदिर श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:मथुरा श्रेणी:उत्तर प्रदेश श्रेणी:शिव मंदिर.

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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सालासर

सालासर गाँव.

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सालासर बालाजी

सालासर बालाजी भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है। वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। इस समय 6 से 7 लाख लोग अपने इस देवता को श्रद्धांजलि देने के लिए यहाँ एकत्रित होते हैं। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। बाकि चेहरे पर राम भक्ति में राम आयु बढ़ाने का सिंदूर चढ़ा हुआ है। कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण मुस्लिम कारीगरों ने किया था, जिसमे मुख्य थे फतेहपुर से नूर मोहम्मद व दाऊ। हनुमान सेवा समिति, मंदिर और मेलों के प्रबन्धन का काम करती है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं। श्री हनुमान मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है। वर्त्तमान में सालासर हनुमान सेवा समिति ने भक्तों की तादाद बढ़ते देखकर दर्शन के लिए अच्छी व्यवस्था की है। .

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संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी

संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा के प्रकाण्ड विद्वान तथा आध्यात्म के पुरोधा थे। ब्रह्मचारी जी साधना, समाज सेवा, संस्कृति, साहित्य, स्वाधीनता, शिक्षा के समर्पित पोषक एवं प्रेरणा-स्रोत थे। बलदेव, बरसाना, खुर्जा, नरवर एवं वाराणसी में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। स्वामी करपात्रीजी एवं साहित्यकार कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' उनके सहपाठी थे। वे ' श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव ' मंत्र के द्रष्टा थे। उनके जीवन के चार संकल्प थे - दिल्ली में हनुमान जी की ४० फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना, राजधानी स्थित पांडवों के किले (इन्द्रप्रस्थ) में भगवान विष्णु की ६० फुट ऊंची प्रतिमा की स्थापना, गोहत्या पर प्रतिबंध तथा श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति। वे इस सदी के महान संत थे। उन्होंने सतत्‌ नाम संकीर्तन की ज्योति जलाकर सदैव देश और समाज की समृद्धि की कामना की थी। गोरक्षा, गंगा की पवित्रता, हिन्दी भाषा, भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म की सेवा उनके जीवन के लक्ष्य थे। उन्होंने गोरक्षा के मुद्दे पर अनशन, आन्दोलन तथा यात्राएं भी कीं। .

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संस्कृत भाषा का इतिहास

जिस प्रकार देवता अमर हैं उसी प्रकार सँस्कृत भाषा भी अपने विशाल-साहित्य, लोक हित की भावना,विभिन्न प्रयासों तथा उपसर्गो के द्वारा नवीन-नवीन शब्दों के निर्माण की क्षमता आदि के द्वारा अमर है। आधुनिक विद्वानों के अनुसार संस्कृत भाषा का अखंड प्रवाह पाँच सहस्र वर्षों से बहता चला आ रहा है। भारत में यह आर्यभाषा का सर्वाधिक महत्वशाली, व्यापक और संपन्न स्वरूप है। इसके माध्यम से भारत की उत्कृष्टतम मनीषा, प्रतिभा, अमूल्य चिंतन, मनन, विवेक, रचनात्मक, सर्जना और वैचारिक प्रज्ञा का अभिव्यंजन हुआ है। आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा ग्रंथनिर्माण की क्षीण धारा अविच्छिन्न रूप से वह रही है। आज भी यह भाषा, अत्यंत सीमित क्षेत्र में ही सही, बोली जाती है। इसमें व्याख्यान होते हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक भाषाभाषी पंडितजन इसका परस्पर वार्तालाप में प्रयोग करते हैं। हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं (डेड लैंग्वेजेज़) से संस्कृत की स्थिति भिन्न है। यह मृतभाषा नहीं, अमरभाषा है। .

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संस्कृत मूल के अंग्रेज़ी शब्दों की सूची

यह संस्कृत मूल के अंग्रेजी शब्दों की सूची है। इनमें से कई शब्द सीधे संस्कृत से नहीं आये बल्कि ग्रीक, लैटिन, फारसी आदि से होते हुए आये हैं। इस यात्रा में कुछ शब्दों के अर्थ भी थोड़े-बहुत बदल गये हैं। .

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संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द

हिन्दी भाषी क्षेत्र में कतिपय संख्यावाची विशिष्ट गूढ़ार्थक शब्द प्रचलित हैं। जैसे- सप्तऋषि, सप्तसिन्धु, पंच पीर, द्वादश वन, सत्ताईस नक्षत्र आदि। इनका प्रयोग भाषा में भी होता है। इन शब्दों के गूढ़ अर्थ जानना बहुत जरूरी हो जाता है। इनमें अनेक शब्द ऐसे हैं जिनका सम्बंध भारतीय संस्कृति से है। जब तक इनकी जानकारी नहीं होती तब तक इनके निहितार्थ को नहीं समझा जा सकता। यह लेख अभी निर्माणाधीन हॅ .

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संकटमोचन महाबली हनुमान

संकटमोचन महाबली हनुमान यह एक भारतीय पौराणिक शैली पर आधारित एक टेलिविज़न कार्यक्रम है जो 04 मई 2015 को रात 8:00 सोनी टेलिविज़न पर शुरू होगा। इसमें मुख्य किरदार के रूप में निर्भय वाधवा हनुमान जी का किरदार निभा रहे हैं। .

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सुन्दरकाण्ड

सुंदरकाण्ड मूलतः वाल्मीकि कृत रामायण का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस तथा अन्य भाषाओं के रामायण में भी सुन्दरकाण्ड उपस्थित है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान द्वारा किये गये महान कार्यों का वर्णन है। रामायण पाठ में सुन्दरकाण्ड के पाठ का विशेष महत्व माना जाता है। सुंदरकाण्ड में हनुमान का लंका प्रस्थान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। इस सोपान के मुख्य घटनाक्रम है – हनुमानजी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीता से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसी। रामायण में सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण रामायण कथा श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है किन्तु सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है, जो सिर्फ हनुमानजी की शक्ति और विजय का कांड है। .

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सुरसा

सुरसा नागमाता का नाम है। उन्हें देवताओं ने हनुमान के शक्‍ति की परीक्षा लेने के लिये भेजा था। श्रेणी:रामायण के पात्र.

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सुरेश कुमार खन्ना

सुरेश कुमार खन्ना (अंग्रेजी: Suresh Kumar Khanna, जन्म: 1954) भारतीय जनता पार्टी के एकमात्र ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने शाहजहाँपुर शहर से उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव 1989 से 2017 तक लगातार 8 बार जीता। शहर में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा ने उन्हें सन् 2004 में शाहजहाँपुर जिले से लोक सभा का चुनाव लड़ाया जिसमें उन्हें केवल 16.34% मत प्राप्त हुए। शाहजहाँपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से सन् 2004 में सांसद का चुनाव हारने के बाद उन्होंने विधायक के रूप में ही राजनीति में रहना पसन्द किया। वे सुरेश खन्ना के नाम से ही अधिक लोकप्रिय हैं। .

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सुल्तानपुर जिला

उत्तर प्रदेश भारत देश का सर्वाधिक जिलों वाला राज्य है, जिसमें कुल 75 जिले हैं। आदिगंगा गोमती नदी के तट पर बसा सुल्तानपुर इसी राज्य का एक प्रमुख जिला है। यहाँ के लोग सामान्यत: वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर और लखनऊ जिलों में पढ़ाई करने जाते हैं। सुल्तानपुर जिले की स्थानीय बोलचाल की भाषा अवधी और खड़ी बोली है। .

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सुलोचना

सुलोचना (सुलोचना .

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सुग्रीव

सुग्रीव रामायण का एक प्रमुख पात्र है। वह वालि का अनुज है। हनुमान के कारण राम से उसकी मित्रता हुयी। वाल्मीकि रामायण में किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड तथा युद्धकाण्ड में सुग्रीव का वर्णन वानरराज के रूप में किया गया है। जब राम से उसकी मित्रता हुयी तब वह अपने अग्रज वालि के भय से ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान तथा कुछ अन्य वफ़ादार रीछ (ॠक्ष) (जामवंत) तथा वानर सेनापतियों के साथ रह रहा था। लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने ही वानर तथा ॠक्ष सेना का प्रबन्ध किया था। .

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स्थानेश्वर महादेव मन्दिर

स्थानेश्वर महादेव मन्दिर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर शहर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर है। यह मंदिर भगवान शिव का समर्पित है और कुरुक्षेत्र के प्राचीन मंदिरों मे से एक है। मंदिर के सामने एक छोटा कुण्ड स्थित है जिसके बारे में पौराणिक सन्दर्भ अनुसार यह माना जाता है कि इसकी कुछ बूँदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था। कहते हैं कि भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी। इसलिए कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नही मानी जाती हैै। स्थाणु शब्द का अर्थ होता है शिव का निवास। इसी शहर को सम्राट हर्षवर्धन के राज्य काल में राजधानी का गौरव मिला, जिसके साथ साथ इसका नाम बिगड़कर अपभ्रंश रूप में थानेसर हो गया। .

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सोमनाथ मन्दिर

सोमनाथ मन्दिर भूमंडल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक सूर्य मन्दिर का नाम है। यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे आज भी भारत के १२ ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है। यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है। यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है। .

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सीता

सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थी। इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है। त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते हैं। .

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हनु

हनु संस्कृत भाषा का एक शब्द है जिसके दो अर्थ निकलते हैं.

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हनुमत धाम

हनुमत धाम हनुमत धाम भारत में उत्तरप्रदेश के ऐतिहासिक नगर शाहजहाँपुर में बिसरात घाट पर खन्नौत नदी के बीचोबीच स्थित एक पर्यटन स्थल है। यहाँ पर 104 फुट ऊँची हनुमान की विशालकाय मूर्ति स्थापित है। हनुमत धाम को बनाने का संकल्प शहर के विधायक सुरेश कुमार खन्ना ने उस समय लिया था जब वे पहली वार उत्तर प्रदेश सरकार में मन्त्री बने थे। ऐसा माना जाता है कि भारतवर्ष में हनुमानजी की यह सबसे बड़ी प्रतिमा है। .

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हनुमन्नाटक

हनुमन्नाटक संवत १६२३ में संस्कृत भाषा मे रचित कवि हृदयराम द्वारा रचित भगवान राम के जीवन पर आधारित धार्मिक ग्रन्थ हैं। श्री बाली के अनुसार हृदयराम पंजाबी थे, तथा उनके "हनुमन्नाटक" को गुरु गोविन्द सिंह सदा अपने साथ रखते थे। इससे सीखो में भी बड़ा सम्मान हैं। पूरा ग्रन्थ लगभग डेढ़ हजार छंदों में समाप्त हुआ हैं। "हनुमन्नाटक" में हनुमान का चरित नहीं, अपितु भगवान राम का जीवन वृत्त, जानकी-स्वयंवर से लेकर राज्याभिषेक तक प्रस्तुत है। .

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हनुमान चालीसा

हनुमान चालीसा तुलसीदास की अवधी में लिखी एक काव्यात्मक कृति है जिसमें प्रभु राम के महान भक्त हनुमान के गुणों एवं कार्यों का चालीस चौपाइयों में वर्णन है। यह अत्यन्त लघु रचना है जिसमें पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुन्दर स्तुति की गई है। इसमें बजरंग बली‍ की भावपूर्ण वंदना तो है ही, श्रीराम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। वैसे तो पूरे भारत में यह लोकप्रिय है किन्तु विशेष रूप से उत्तर भारत में यह बहुत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। लगभग सभी हिन्दुओं को यह कंठस्थ होती है। कहा जाता है कि इसके पाठ से भय दूर होता है, क्लेष मिटते हैं। इसके गंभीर भावों पर विचार करने से मन में श्रेष्ठ ज्ञान के साथ भक्तिभाव जाग्रत होता है। हनुमान प्रतिमा .

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हनुमान मंदिर

हनुमान मन्दिर में मुख्य देवता हनुमान होते हैं। भारत में, इण्डोनेशिया में, श्रीलंका में, नेपाल में, बांगलादेश में अनेको प्रसिद्ध हनुमान मन्दिर हैं। गुजरात के सारंगपुर में हनुमान का प्रसिद्ध मन्दिर है, जो संकटमोचन हनुमान के रूप में प्रसिद्ध है। खंडार किले में प्रवेश करते समय चढाई के दोरान रस्ते में पड़ता हैं यह मंदीर एक शिला पर है इस मंदिर के सामने शिला के निचे गुफा में स्थित कई चमत्कारी मूर्ति हैं इसे किले का प्रथम विश्राम भी कहते हैं *.

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हनुमान मंदिर, कनॉट प्लेस

नई दिल्ली के हृदय कनॉट प्लेस में महाभारत कालीन श्री हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर उपस्थित हनुमान जी स्वयंभू हैं। बालचन्द्र अंकित शिखर वाला यह मंदिर आस्था का महान केंद्र है।। हनुमान जयंती इसके साथ बने शनि मंदिर का भी प्राचीन इतिहास है। एक दक्षिण भारतीय द्वारा बनवाए गए कनॉट प्लेस शनि मंदिर में दुनिया भर के दक्षिण भारतीय दर्शनों के लिए आते हैं।। नवभारत टाइम्स। १८ अप्रैल २००७। पीयुष के जैन प्रत्येक मंगलवार एवं विशेषतः हनुमान जयंती के पावन पर्व पर यहां भजन संध्या और भंडारे लगाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है। इसके साथ ही भागीरथी संस्था के तत्वाधान में संध्या का आयोजन किया जाता है, साथ ही क्षेत्र में झांकी निकाली जाती है।। याहू जागरण। .

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हनुमान मंदिर, अलीगंज लखनऊ

अलीगंज का महावीर मंदिर, लखनऊ अलीगंज में स्थित एक प्राचीन हनुमान जी का एक मंदिर है। यह मंदिर बहुत पुराना है एवं इसकी बहुत मान्यता है। मंदिर में ज्येष्ठ मास में बड़े मंगल को मेला लगता है। इसके अलावा हनुमान जयंती पर भी मेला लगता है। श्रेणी:लखनऊ श्रेणी:हनुमान मंदिर.

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हनुमान लंगूर में पूँछ वहन

हनुमान लंगूर में पूँछ वहन एक सहज व्यवहार है और जैव वैज्ञानिक रूनवाल के अनुसार भारत के लंगूरों में इसकी कई शैलियाँ हैं। पूँछ वहन की इन शैलियों के आधार पर लंगूरों को समूहों में बांटा जा सकता है। पुरानी दुनिया का हनुमान लंगूर लगभग पूरे भारत में पाया जाता है, और हिन्दू इसे भगवन हनुमान का अवतार मानते हैं। फिलिप का कहना है कि भाषा और साहित्य में यह काले मूंह और लम्बी पूंछ वाला बंदर लांगुल का पर्याय है। प्राणी विज्ञान में लंगूर नरवानर गण में आता है, पहले इसका नाम प्रेसबाईटेस एंटेलस था और इसकी १६ किसमों का वर्णन है, किन्तु लगभग २००० के बाद इसका नाम सेमनोपीथेकस, और इसकी ज़्यादातर किस्मों को प्रजातियों में बदल दिया गया। अर्थात हनुमान लंगूर या प्रेसबाईटेस, जिसकी पूंछ की बात यहाँ हो रही है, उसे अब सेमनोपीथेकस कहते हैं। इस लेख के पहले भाग में लंगूरों में पूँछ वहन की चार मुख्य शैलियों का वर्णन, दूसरे भाग में हनुमान और लंगूर की पूँछ वहन शैलियों की तुलना, और अंत में बंदर की कुछ अन्य प्रजातियों की अनोखी पूँछों से परिचय है। .

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हनुमान सेतु मंदिर

मंदिर में स्थापित हनुमानजी की मूर्ति हनुमान सेतु मंदिर, लखनऊ में गोमती नदी के किनारे एक हनुमान मंदिर है। यह मंदिर नदी पर बने एक पुल के किनारे बना है। इस कारण यह पुल हनुमान सेतु एवं मंदिर हनुमान सेतु मंदिर कहलाता है। यह मंदिर नीम करौरी बाबा ने बनवाया है। इस मंदिर से लगा बाबा का भी एक मंदिर बना है। यह सेतु लखनऊ विश्वविद्यालय से हज़रतगंज को जोड़ता है। पहले इस स्थान पर मंकी ब्रिज हुआ करता था, जो १९७२ में आई गोमती नदी की बाढ़ में बह गया था। उस ही स्थान पर नया सेतु बना है। सेतु के किनारे ही लखनऊ विश्वविद्यालय का यूनियन भवन एवं केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआराई) की आवासीय कालोनी है। दूसरी ओर सेतु से उतरते ही परिवर्तन चौक है, जिसके दायीं ओर होटाल क्लार्क्स अवध एवं छतर मंजिल है। .

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हनुमान जयंती

हनुमान जयंती एक हिन्दू पर्व है। यह चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन हनुमानजी का जन्म हुआ माना जाता है। .

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हिन्दू देवी देवताओं की सूची

यह हिन्दू देवी देवताओं की सूची है। हिन्दू लेखों के अनुसार, धर्म में तैंतीस कोटि (कोटि के अर्थ-प्रकार और करोड़) देवी-देवता बताये गये हैं। इनमें स्थानीय व क्षेत्रीय देवी-देवता भी शामिल हैं)। वे सभी तो यहां सम्मिलित नहीं किये जा सकते हैं। फिर भी इस सूची में तीन सौ से अधिक संख्या सम्मिलित है। .

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हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। .

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हिन्दू पर्वों की सूची

यहाँ हिन्दू त्यौहारों की सूची दी गयी है। हिन्दू लोग बहुत से पर्व मनाते हैं जैसे दीपावली, विजया दशमी, होली आदि। .

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हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र

हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र एक हिंदू मंदिर और हिन्दू सांस्कृतिक का केंद्र है जो mississauga canada में पड़ता है।  25 000 वर्ग फुट मंदिर कनाडा का एक प्रसिध मंदिर माना जाता है.

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/श

संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.

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जटोली शिव मंदिर

जटोली शिव मंदिर की स्थापना श्री श्री 1008 स्वामी कृष्णानंद परमहंस महाराज ने की थी। स्वामी कृष्णानंद परमहंस 1950 में जटोली आए थे। 1974 में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया था। जटोली की हसीन वादियों में स्थित है यह भव्य शिव मंदिर। इसका निर्माण पिछले 35 वर्ष से चल रहा है। जटोली में मंदिर की स्थापना स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने 1973 की थी जो 1983 में ब्रह्मलीन हो गए। जटोली की हसीन वादियों में स्थित है यह भव्य शिव मंदिऱ। इसका निर्माण पिछले 35 वर्ष से चल रहा है। .

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जबड़ा

मानव जबड़े का निचला हिस्सा जबड़ा या हनु (अंग्रेजी: jaw, जॉ) किसी प्राणी के मुँह के प्रवेश-क्षेत्र पर स्थित उस ढाँचे को बोलते हैं जो मुंह को खोलता और बंद करता है और जिसके प्रयोग से खाने को मुख द्वारा पकड़ा जाता है तथा (कुछ जानवरों में) चबाया जाता है। मानव समेत बहुत से अन्य जानवरों में जबड़े के दो हिस्से होते हैं जो एक दूसरे से चूल (हिन्ज) के ज़रिये जुड़े होते हैं जिसके प्रयोग से जबड़ा ऊपर-नीचे होकर मुख खोलता है या बंद करता है। ऐसे प्राणियों में खाद्य सामग्री चबाने या चीरने के लिए जबड़ों में अक्सर दांत लगे होते हैं। इसके विपरीत बहुत से कीटों के जबड़े मुख के दाई-बाई तरफ़ लगे दो छोटे शाखनुमा अंग होते हैं जो चिमटे की तरह खाना पकड़कर उनके मुख तक ले जाते हैं। .

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जम्बूद्वीप

यह लेख हिन्दू धर्मानुसार वर्णित है। भारतवर्ष कर्मप्रधान वर्ष है। इस वर्ष में जन्म लेने के लिये देवता भी लालायित रहते हैं। वे कहते हैं कि भारतवर्ष में जन्म लेने वाले प्राणी धन्य हैं। इस भारतवर्ष में अनेकों ऊँचे-ऊँचे रम्य पर्वत तथा नद-नदी विद्यमान हैं। इन पर्वतों पर और नदियों के तट पर बड़े-बड़े आत्मज्ञानी ऋषि आश्रम बनाकर रहते हैं। यहाँ पर जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल प्राप्त होता है। भारतवासी यज्ञादि कर्म करते समय भिन्न भिन्न देवताओं को हर्वि प्रदान करते हैं जिसे यज्ञपुरुष स्वयं पधार कर स्वीकार करते हैं। वे सकाम भाव वाले मनुष्यों की कामना पूर्ण करते हैं तथा निष्काम भाव वाले मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करते हैं। महाराज सगर के पुत्रों के पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं।.

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जलपरी

जलपरी (Mermaid) एक म्रिथक जलीय जीव है जिसका सिर एवं धड़ औरत का होता है और निचले भाग में पैरों के स्थान पर मछली की दुम होती है। जलपरियां कईं कहानियों व दंत कथाओं में पाई जाती है। .

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जलालाबाद (शाहजहाँपुर)

जलालाबाद (शाहजहाँपुर) (अंग्रेजी: Jalalabad (Shahjahanpur), उर्दू: جلال آباد (Jalālābād) शाहजहाँपुर जिले का एक प्रमुख ऐतिहासिक नगर है जिसकी देखरेख यहाँ की नगरपालिका करती है। यह नगर भारतवर्ष के राज्य उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत आता है। जलालाबाद सिर्फ़ एक नगर ही नहीं बल्कि शाहजहाँपुर जिले की तहसील भी है। .

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जिब्राल्टर हिन्दू मंदिर

जिब्राल्टर हिन्दू मंदिर ब्रिटिश प्रवासी शासित प्रदेश जिब्राल्टर में स्थित हिन्दू मंदिर है। वर्ष 2000 में निर्मित हुआ जिब्राल्टर हिन्दू मंदिर इंजीनियर्स लेन पर स्थित है। यह जिब्राल्टर में मौजूद एकमात्र हिन्दू मंदिर है तथा क्षेत्र की हिन्दू आबादी के लिए आध्यात्म का केंद्र है। जिब्राल्टेरियन हिन्दू जिब्राल्टर की आबादी का लगभग 1.8 प्रतिशत हैं। इनमें से ज्यादातर लोग वर्तमान पाकिस्तान के सिंध राज्य से आए व्यापारीयो के वंशज हैं। मंदिर एक धर्मार्थ संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य जिब्राल्टर में हिन्दू सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण करना है। मंदिर में प्रमुख आराध्य राम हैं, जो अपनी धर्मपत्नी सीता, भाई लक्ष्मण और परम भगत हनुमान के साथ मंदिर की प्रमुख वेदी में विराजमान हैं। इनके आलावा मंदिर में कई अन्य हिन्दू देवी-देवताओ की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर में रोजाना शाम के 7:30 बजे आरती होती है तथा हर महीने की पूर्णिमा को सत्यनारायण कथा भी आयोजित की जाती है। मंदिर हिन्दू धर्म से सम्बंधित विभिन्न प्रकार की धार्मिक कक्षाओं का भी आयोजन करता है। .

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य ग्रंथसूची

जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य (जगद्गुरु रामभद्राचार्य अथवा स्वामी रामभद्राचार्य के रूप में अधिक प्रसिद्ध) चित्रकूट धाम, भारत के एक हिंदू धार्मिकनेता, शिक्षाविद्, संस्कृतविद्वान, बहुभाषाविद, कवि, लेखक, टीकाकार, दार्शनिक, संगीतकार, गायक, नाटककार और कथाकलाकार हैं। उनकी रचनाओं में कविताएँ, नाटक, शोध-निबंध, टीकाएँ, प्रवचन और अपने ग्रंथों पर स्वयं सृजित संगीतबद्ध प्रस्तुतियाँ सम्मिलित हैं। वे ९० से अधिक साहित्यिक कृतियों की रचना कर चुके हैं, जिनमें प्रकाशित पुस्तकें और अप्रकाशित पांडुलिपियां, चार महाकाव्य,संस्कृत और हिंदी में दो प्रत्येक। तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस पर एक हिंदी भाष्य,अष्टाध्यायी पर पद्यरूप में संस्कृत भाष्य और प्रस्थानत्रयी शास्त्रों पर संस्कृत टीकाएँ शामिल हैं।दिनकर २००८, प्रप्र.

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जगन्नाथ मंदिर, त्यागराजनगर, दिल्ली

नई दिल्ली में त्यागराज नगर में स्थित है भगवान जगन्नाथ जी का एक भव्य मंदिर। .

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जगन्नाथ मंदिर, हौज खास, दिल्ली

नई दिल्ली में हौज खास क्षेत्र में स्थित है भगवान जगन्नाथ जी का एक भव्य मंदिर। .

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वानर

हनुमान, द्रोणगिरि पर्वत उठाते हुए वानर हिन्दू गाथा रामायण में वर्णित मानवनुमा कपियों की एक जाति थी जिसके सदस्य साहस, शक्ति, बुद्धि और जिज्ञासा के गुण रखते थे। .

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वायु देव

वायु देव हवा के देवता को कहा जाता है, वेदो में इनका कई बार वर्णन आता है। इन्हें भीम का पिता माना जाता है और हनुमान के आध्यात्मिक पिता माना जाता है। इन्हें वात देव अथवा पवन देव के नाम से भी जाना जाता है। कभी-कभी इन्हें प्राण देव भी कहा जाता है। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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वाल्मीकि रामायण

वाल्मीकीय रामायण संस्कृत साहित्य का एक आरम्भिक महाकाव्य है जो संस्कृत भाषा में अनुष्टुप छन्दों में रचित है। इसमें श्रीराम के चरित्र का उत्तम एवं वृहद् विवरण काव्य रूप में उपस्थापित हुआ है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित होने के कारण इसे 'वाल्मीकीय रामायण' कहा जाता है। वर्तमान में राम के चरित्र पर आधारित जितने भी ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन सभी का मूल महर्षि वाल्मीकि कृत 'वाल्मीकीय रामायण' ही है। 'वाल्मीकीय रामायण' के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' माना जाता है और इसीलिए यह महाकाव्य 'आदिकाव्य' माना गया है। यह महाकाव्य भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण आयामों को प्रतिबिम्बित करने वाला होने से साहित्य रूप में अक्षय निधि है। .

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विराटनगर (राजस्थान)

नेपाल के विराटनगर के लिये देखें, विराटनगर विराट नगर (बैराठ) राजस्थान प्रान्त के जयपुर जिले का एक शहर है। इसका पुराना नाम बैराठ है। विराट नगर राजस्थान में उत्तर में स्थित है। यह नगरी प्राचीन मत्स्य राज की राजधानी रही है। चारो और सुरम्य पर्वतों से घिरे प्राचीन मत्स्य देश की राजधानी रहे विराटनगर में पुरातात्विक अवशेषों की सम्पदा बिखरी पड़ी है या भूगर्भ में समायी हुई है। विराट नगर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। राजस्थान के जयपुर जिले में शाहपुरा के अलवर-जयपुर रोड के उत्तर-पूर्व की तरफ 25 किलोमीटर दूर विराट नगर कस्बा अपनी पौराणिक ऐतिहासिक विरासत को आज भी समेटे हुए हैं। विराटनगर नाम से प्राय: लोगों को भ्रम हो जाता है। विराटनगर नामक एक क़स्बा नेपाल की सीमा में भी है। किन्तु नेपाल का विराट नगर, महाभारत कालीन विराटनगर नहीं है। महाभारतकालीन गौरव में आराध्यदेव भगवान श्री केशवराय का मंदिर,जिसमे 3 ही कृष्ण एवम् 3 ही विष्णु की प्रतिमाये स्थित है। 64 खम्बे व108 टोड़ी है। ये केशवराय मंदिर विश्व दर्शन के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।इस सम्बन्ध विराटनगर पौराणिक, प्रगेतिहासिक, महाभारतकालीन तथा गुप्तकालीन ही नहीं मुगलकालीन महत्वपूर्ण घटनाओ को भी अपने में समेटे हुए, राजस्थान के जयपुर और अलवर जिले की सीमा पर स्थित है विराटनगर में पौराणिक शक्तिपीठ, गुहा चित्रों के अवशेष, बोद्ध माथों के भग्नावशेष, अशोक का शिला लेख और मुगलकालीन भवन विद्यमान है। अनेक जलाशय और कुंड इस क्षेत्र की शोभा बढा रहे हैं। प्राकर्तिक शोभा से प्रान्त परिपूर्ण है। विराटनगर के निकट सरिस्का राष्ट्रीय व्याघ्र अभ्यारण, भर्तृहरी का तपोवन, पाण्डुपोल नाल्देश्वर और सिलिसेढ़ जैसे रमणीय तथा दर्शनीय स्थल लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते है। यहाँ के दर्शय दर्शनीय स्थलो में प्रसिद्ध श्रीकेश्वराय मंदिर नगर के मध्य आकर्षक का केंद्र है। जिसमे भगवान केशव एवम् विष्णु के साथ कोई देवी (शक्ति) नहीं है। भगवान केशव का जो रूप महाभारत में था। उसी स्वरूप में भगवन श्रीकृष्ण का मंदिर दर्शनीय है। जो विराटनगर पर्यटन नगरी में सुविख्यात है। .

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विजेथुवा महावीरन

सुल्तानपुर जिले के कादीपुर तहसील में स्थित विजेथुवा महावीरन "भगवान हनुमान" को समर्पित एक प्रसिद्ध पौराणिक मंदिर है। माना जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ पर पवनपुत्र भगवान हनुमान ने लंकाधिपति रावण के मामा "कालनेमी" नामक दानव का वध किया था। लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए जब हनुमान जी "संजीवनी बूटी" लेने के लिए गए थे, तो रावण द्वारा भेजे गए कालनेमी दानव ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया था। उस समय हनुमान जी ने कालनेमी दानव का वध इसी स्थान पर किया था। यहीं से कुछ दूरी पर उमरपुर नामक गाँव में भगवान शिव जी का मंदिर भी स्थित है।.

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वैदिक देवता

भारतीय ग्रंथ वेदों में वर्णित देवताओं को वैदिक देवता कहते हैं - ये आधुनिक हिन्दू धर्म में प्रचलित देवताओं से थोड़े अलग हैं। वेदों के प्रत्येक मंत्र का एक देवता होता है, देवता का अर्थ - दाता, प्रेरक या ज्ञान-प्रदाता होता है । जिन देवताओं का मुख्य रूप से वर्णन हुआ है वे हैं - अग्नि, इंद्र, सोम, मित्रा-वरुण, सूर्य, अशिवनौ, ईश्वर, द्यावा-पृथ्वी आदि। ये वैदिक देवता आज भारतीय हिन्दू धर्म में व्यक्ति आधारित देवता जैसे - राम, कृष्ण, हनुमान, शिव, लक्ष्मी, गणेश, बालाजी, विष्णु, पेरुमल, गणेश, शक्ति आदि से अलग हैं। वेदों में शाश्वत वस्तुओं और भावनाओं को देवता माना गया है, जबकि पुराणों में दिव्य व्यक्तियों और प्राणियों को - जिन्होने अनेक व्यक्तियों को सन्मार्ग दिखाया है। आधुनिक हिन्दू धर्म में पुराण और अन्य स्मृति ग्रंथों के देवताओं का अधिक प्रयोग है। अन्य वैदिक देवताओं में रूद्र, आदित्य, दम्पत्ति, बृहस्पति आदि आते हैं। वेदों में विश्वेदेवा करके अखिल-देवताओं का भी ज़िक्र है जो इन सबको एक साथ संबोधित करता है। .

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खाप

खाप या सर्वखाप एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति है जो भारत के उत्तर पश्चिमी प्रदेशों यथा राजस्थान, हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में अति प्राचीन काल से प्रचलित है। इसके अनुरूप अन्य प्रचलित संस्थाएं हैं पाल, गण, गणसंघ, सभा, समिति, जनपद अथवा गणतंत्र। समाज में सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने के लिए मनमर्जी से काम करने वालों अथवा असामाजिक कार्य करने वालों को नियंत्रित किये जाने की आवश्यकता होती है, यदि ऐसा न किया जावे तो स्थापित मान्यताये, विश्वास, परम्पराए और मर्यादाएं ख़त्म हो जावेंगी और जंगल राज स्थापित हो जायेगा। मनु ने समाज पर नियंत्रण के लिए एक व्यवस्था दी। इस व्यवस्था में परिवार के मुखिया को सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में स्वीकार किया गया है। जिसकी सहायता से प्रबुद्ध व्यक्तियों की एक पंचायत होती थी। जाट समाज में यह न्याय व्यवस्था आज भी प्रचलन में है। इसी अधार पर बाद में ग्राम पंचायत का जन्म हुआ।डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया: जाट समुदाय के प्रमुख आधार बिंदु, आगरा, 2004, पृ.

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खजराना मंदिर

खजराना गणेश मंदिर खजराना गणपति मंदिर खजराना मंदिर इन्दौर का प्रसिद्ध गणेश मंदिर है। यह मंदिर विजय नगर से कुछ दूरी पर खजराना चौक के पास में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण अहिल्या बाई होल्कर द्वारा किया गया था। इस मंदिर में मुख्य मूर्ति भगवान गणपति की है, जो केवल सिन्दूर द्वारा निर्मित है।ठीक सामने बहुत ही मनोहारी कछुऐ की स्थापना की गयी है । इस मंदिर में गणेश जी के अतिरिक्त माता दुर्गा जी, महाकालेश्वर की भूमिगत शिवलिंग, गंगा जी की मगरमच्छ पर जलधारा मूर्ति, लक्ष्मी जी का मंदिर, साथ ही हनुमान जी की झाँकी मन मुग्ध करने वाली है। यहाँ शनि देव मंदिर एवं साई नाथ का भी भव्य मंदिर विराजमान है, यहाँ इस तरह की अनुभूति होती है,जैसे सारे देवी, देवता एक स्थान पर उपस्थित हो गये हों। यहाँ की मंदिर व्यवस्था बहुत ही उत्तम कोटि की है। इस मंदिर में 10,000 से लोग हर दिन दर्शन करते है। यहाँ जो भी भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये गणेश जी के पीठ पर उल्टा स्वास्तिक बनाता है,गणपति जी उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात पुनः सीधा स्वास्तिक बनाते हैं।यहाँ गणेश जी की विशेष आराधना बुध वार ऐवं चतुर्थी को की जाती है,इस दिनों भक्तों की अपार भीड़ दर्शनार्थ जुटते हैं। .

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गदा

द्रोणगिरि पर्वत उठाये तथा बायें हाथ में गदा लिये हनुमान की प्रतिमा गदा, एक प्राचीन भारतीय पौराणिक आयुध है। इसमें एक लम्बा दण्ड होता है ओर उसके एक सिरे पर भारी गोल लट्टू सरीखा शीर्ष होता है। दण्ड पकड़कर शीर्ष की ओर से शत्रु पर प्रहार किया जाता था। इसका प्रयोग बल सापेक्ष्य और अति कठिन माना जाता था। गदा हनुमान (जो कि भगवान शिव के अवतार हैं) का मुख्य हथियार है। हनुमान को बल-सौष्ठव (विशेषकर पहलवानी) का देवता माना जाता है। हिन्दू धर्म में त्रिदेव में से एक विष्णु भी एक हाथ में गदा धारण करते हैं। .

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गुरु हनुमान

गुरु हनुमान (अंग्रेजी: Guru Hanuman, जन्म: १९०१, मृत्यु: १९९९) भारत के प्रख्यात कुश्ती प्रशिक्षक (कोच) तो थे ही, स्वयं बहुत अच्छे पहलवान भी थे। उन्‍होंने सम्‍पूर्ण विश्‍व में भारतीय कुश्‍ती को महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिलाया। कुश्‍ती के क्षेत्र में विशेष उपलब्धियों के लिये उन्हें १९८३ में पद्मश्री पुरस्कार.

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ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर

झोंपड़ा गाँव राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में आने वाली प्रमुख ग्राम पंचायत है ! ग्राम पंचायत का सबसे बड़ा गाँव झोंपड़ा है जिसमें मीणा जनजाति का नारेड़ा गोत्र मुख्य रूप से निवास करता हैं। ग्राम पंचायत में झोंपड़ा, बगीना, सिरोही, नाहीखुर्द एवं झड़कुंड गाँव शामिल है। झोंपड़ा ग्राम पंचायत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 5184 है और ग्राम पंचायत में कुल घरों की संख्या 1080 है। ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी नदी बनास नदी है वहीं पंचायत की सबसे लम्बी घाटी चढ़ाई बगीना गाँव में बनास नदी पर पड़ती है। ग्राम पंचायत का सबसे विशाल एवं प्राचीन वृक्ष धंड की पीपली है जो झोंपड़ा, बगीना एवं जगमोंदा गाँवों से लगभग बराबर दूरी पर पड़ती है। .

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गीतरामायणम्

गीतरामायणम् (२०११), शब्दार्थ: गीतों में रामायण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००९ और २०१० ई में रचित गीतकाव्य शैली का एक संस्कृत महाकाव्य है। इसमें संस्कृत के १००८ गीत हैं जो कि सात कांडों में विभाजित हैं - प्रत्येक कांड एक अथवा अधिक सर्गों में पुनः विभाजित है। कुल मिलाकर काव्य में २८ सर्ग हैं और प्रत्येक सर्ग में ३६-३६ गीत हैं। इस महाकाव्य के गीत भारतीय लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के विभिन्न गीतों की ढाल, लय, धुन अथवा राग पर आधारित हैं। प्रत्येक गीत रामायण के एक या एकाधिक पात्र अथवा कवि द्वारा गाया गया है। गीत एकालाप और संवादों के माध्यम से क्रमानुसार रामायण की कथा सुनाते हैं। गीतों के बीच में कुछ संस्कृत छंद हैं, जो कथा को आगे ले जाते हैं। काव्य की एक प्रतिलिपि कवि की हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन संस्कृत कवि अभिराज राजेंद्र मिश्र द्वारा जनवरी १४, २०११ को मकर संक्रांति के दिन किया गया था। .

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औषधिपर्वत

औषधि पर्वत हिमालय पर स्थित एक पर्वत था, जिसका नाम द्रोणाचल था। जब लक्ष्मण को मेघनाद ने शक्तिप्रहार किया था तब लंका के सुप्रसिद्ध वैद्य सुषेन के परामर्श से हनुमान जी ने द्रोणाचल को उखाड कर लंका मे स्थपित किया एवं लक्ष्मण जी को स्वस्थ किया। यह उस क्षेत्र का एकमात्र ऐसा पर्वत है जो आज भी हरियाली से युक्त है। श्रेणी:रामायण में स्थान श्रेणी:हिन्दू पुराण आधार.

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आद्या कात्यायिनी मंदिर, दिल्ली

छतरपुर मन्दिर दिल्ली के दक्षिण में स्थित एक मन्दिर है। इसका वास्तविक नाम श्री आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ मन्दिर है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा मन्दिर परिसर है। यह मन्दिर देवी कात्यायनी को समर्पित है। इस मन्दिर की स्थापना बाबा सन्त नागपाल जी द्वारा १९७४ में हुई थी। यह मंदिर गुंड़गांव-महरौली मार्ग के निकट छतरपुर में स्थित है। यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी सजावट बहुत की आकर्षक है। दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर विशाल क्षेत्र में फैला है। मंदिर परिसर में खूबसूरत लॉन और बगीचे हैं। मूल रूप से यह मंदिर माँ दुर्गा को समर्पित है। इसके अतिरिक्त यहाँ भगवान शिव, विष्णु, देवी लक्ष्मी, हनुमान, भगवान गणेश और राम आदि देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। दुर्गा पूजा और नवरात्रि के अवसर पर पूरे देश से यहां भक्त एकत्र होते हैं और समारोह में भाग लेते हैं। इस दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है। यहां एक पेड़ है जहां श्रद्धालु धागे और रंग-बिरंगी चूड़ियां बांधते हैं। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से मनोकामना पूर्ण होती है। श्रेणी:दिल्ली के हिन्दू मंदिर.

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आनन्द रामायण

आनंद रामायण राम के द्वारा रावण का वघ तथा राम के उत्तर जीवन का वर्णन करती हैं जिसमे लेखक वाल्मीकि हैं। .

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आष्टा,मध्यप्रदेश

आष्टा,भारत में मध्य प्रदेश राज्य के सीहोर जिले में स्थित एक शहर और एक नगर पालिका है। .

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कडपा

कडपा भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के दक्षिण-मध्य में स्थित एक शहर है। यह कडपा जिला का जिला मुख्यालय भी है। कड़पा शब्द की उत्पत्ति तेलुगु शब्द गडपा से हुई है जिसका अर्थ द्वार होता है। पहले ये कड़प्पा नाम से जाना जाता था बाद में कड़पा हो गया। मध्यकाल कड़पा अनेक महापुरूषों के लिए जाना जाता था। वेमना, पोतुलूरी वीराब्रह्मम, अन्नमाचार्य, पेम्मसानी तिम्मा नायुडु जैसे महापुरूष यहीं पैदा हुए। कड़पा आंध्रप्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र का मशहूर शहर है। यह आंध्रप्रदेश के दक्षिण मध्य में स्थित है। यह पेन्ना नदी से आठ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह शहर तीन ओर से नल्लमला और पालकोंडा पहाड़ियों से घिरा है। इस शहर को द्वार भी कहा जाता है। दरअसल यह उत्तर से तिरूपती स्थित भगवान श्री वेंकटेश्वर की पवित्र पहाड़ी पगोडा आने वाले लोगों के लिए द्वार जैसा है। रामायण के सात कांडों में एक किष्किंधकांड, कडपा के वोंटिमिट्टा में हुई घटना माना जाता है। वोंतमित्ता कड़पा शहर से बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां का आंजनेय स्वामी गांडी भी रामायण का हिस्सा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम ने अपने बाण से गांडी पर आंजनेय स्वामी विग्रहम बनाया था, जो श्री सीता की खोज में आंजनेय हनुमान से सहायता मांगने का प्रतीक है। कडपा अपने इतिहास में विभिन्न शासकों के अधीन रहा है, जिनमें निजाम और चोला, विजयनगर साम्राज्य और मैसूर साम्राज्य शामिल हैं। यह अपने मसालेदार व्यंजन के लिए भी जाना जाता है। .

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कर्ण

जावानी रंगमंच में कर्ण। कर्ण महाभारत के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक है। कर्ण की वास्तविक माँ कुन्ती थी। कर्ण का जन्म कुन्ती का पाण्डु के साथ विवाह होने से पूर्व हुआ था। कर्ण दुर्योधन का सबसे अच्छा मित्र था और महाभारत के युद्ध में वह अपने भाइयों के विरुद्ध लड़ा। वह सूर्य पुत्र था। कर्ण को एक आदर्श दानवीर माना जाता है क्योंकि कर्ण ने कभी भी किसी माँगने वाले को दान में कुछ भी देने से कभी भी मना नहीं किया भले ही इसके परिणामस्वरूप उसके अपने ही प्राण संकट में क्यों न पड़ गए हों। कर्ण की छवि आज भी भारतीय जनमानस में एक ऐसे महायोद्धा की है जो जीवनभर प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता रहा। बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि कर्ण को कभी भी वह सब नहीं मिला जिसका वह वास्तविक रूप से अधिकारी था। तर्कसंगत रूप से कहा जाए तो हस्तिनापुर के सिंहासन का वास्तविक अधिकारी कर्ण ही था क्योंकि वह कुरु राजपरिवार से ही था और युधिष्ठिर और दुर्योधन से ज्येष्ठ था, लेकिन उसकी वास्तविक पहचान उसकी मृत्यु तक अज्ञात ही रही। कर्ण की छवि द्रौपदी का अपमान किए जाने और अभिमन्यु वध में उसकी नकारात्मक भूमिका के कारण धूमिल भी हुई थी लेकिन कुल मिलाकर कर्ण को एक दानवीर और महान योद्धा माना जाता है। .

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कलिंजर

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित कालिंजर बुंदेलखंड का ऐतिहासिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति साम्राज्य के अधीन था। यहां का किला भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। 9वीं से 15वीं शताब्दी तक यहां चंदेल शासकों का शासन था। चंदेल राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक,शेर शाह सूरी और हुमांयू ने आक्रमण किए लेकिन जीतने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बावजूद मुगल कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: 1569 में अकबर ने यह किला जीता और अपने नवरत्नों में एक बीरबल को उपहारस्वरूप प्रदान किया। बीरबल क बाद यह किला बुंदेल राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। छत्रसाल के बाद किले पर पन्ना के हरदेव शाह का अधिकार हो गया। 1812 में यह किला अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया। एक समय कालिंजर चारों ओर से ऊंची दीवार से घिरा हुआ था और इसमें चार प्रवेश द्वार थे। वर्तमान में कामता द्वार, पन्ना द्वार और रीवा द्वार नामक तीन प्रवेश द्वार ही शेष बचे हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह नगर पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। पर्यटक यहां इतिहास से रूबरू होने के लिए नियमित रूप से आते रहते हैं। धार्मिक लेख बताते हैं, कि प्रत्येक युग में इस स्थान के भिन्न नाम रहे.

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कालनेमि

कालनेमि रामायण में एक मायावी राक्षस एवं लंकेश्वर रावण का मामा था। कालनेमि का उल्लेख सनातन धर्म से संबंधित रामायण काव्य में अता है जब लंका युद्ध के समय रावण के पुत्र मेघनाद द्वारा छोड़े गए शक्तिबाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गये तो सुषेन वैद्य ने इसका उपचार संजीवनी बूटी बताया जो कि हिमालय पर्वत पर उपलब्ध था। हनुमान ने तुरंत हिमालय के लिये प्रस्थान किया। रावण ने हनुमान को रोकने हेतु मायावी कालनेमि राक्षस को आज्ञा दी। कालनेमि ने माया की रचना की तथा हनुमान को मार्ग में रोक लिया। हनुमान को मायावी कालनेमि का कुटिल उद्देश्य ज्ञात हुआ तो उन्होने उसका वध कर दिया। हनुमान जी ने कालनेमि दानव का वध जिस जगह पर किया आज वह स्थान सुल्तानपुर जिले के कादीपुर तहसील में विजेथुवा महावीरन नाम से सुविख्यात है एवं इस स्थान पर "भगवान हनुमान" को समर्पित एक सुप्रसिद्ध पौराणिक मंदिर भी स्थापित है। .

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कालाराम मन्दिर

कालाराम मन्दिर एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर है जिसमें भगवान राम की मूर्ति स्थापित है। यह मन्दिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक ज़िले के पंचवटी के निकट स्थित है। .

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काव्य

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .

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किष्किन्धाकाण्ड

Rama Meets Sugreeva किष्किन्धाकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। राम ऋष्यमूक पर्वत के निकट आ गये। उस पर्वत पर अपने मंत्रियों सहित सुग्रीव रहता था। सुग्रीव ने, इस आशंका में कि कहीं बालि ने उसे मारने के लिये उन दोनों वीरों को न भेजा हो, हनुमान को राम और लक्ष्मण के विषय में जानकारी लेने के लिये ब्राह्मण के रूप में भेजा। यह जानने के बाद कि उन्हें बालि ने नहीं भेजा है हनुमान ने राम और सुग्रीव में मित्रता करवा दी। सुग्रीव ने राम को सान्त्वना दी कि जानकी जी मिल जायेंगीं और उन्हें खोजने में वह सहायता देगा साथ ही अपने भाई बालि के अपने ऊपर किये गये अत्याचार के विषय में बताया। राम ने बालि का वध कर के सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य तथा बालि के पुत्र अंगद को युवराज का पद दे दिया। Rama gives his ring to Maruti, so Sita can recognize him as a messenger राज्य प्राप्ति के बाद सुग्रीव विलास में लिप्त हो गया और वर्षा तथा शरद् ऋतु व्यतीत हो गई। राम के नाराजगी पर सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज के लिये भेजा। सीता की खोज में गये वानरों को एक गुफा में एक तपस्विनी के दर्शन हुये। तपस्विनी ने खोज दल को योगशक्ति से समुद्रतट पर पहुँचा दिया जहाँ पर उनकी भेंट सम्पाती से हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को लंका अशोकवाटिका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र लांघने के लिये उत्साहित किया। .

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ककरहानाथ मंदिर

ककरहानाथ मंदिर मध्य प्रदेश के रीवा जिले के सिरमौर तहसील के अन्तर्गत मऊ गांव में हनुमान जी को समर्पित प्रसिद्ध एक मंदिर है। यह मंदिर लगभग १५० वर्ष पुराना है। श्रेणी:मध्य प्रदेश के हिन्दू मंदिर.

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कैथल

कैथल हरियाणा प्रान्त का एक महाभारत कालीन ऐतिहासिक शहर है। इसकी सीमा करनाल, कुरुक्षेत्र, जीन्द और पंजाब के पटियाला जिले से मिली हुई है। पुराणों के अनुसार इसकी स्थापना युधिष्ठिर ने की थी। इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान भी माना जाता है। इसीलिए पहले इसे कपिस्थल के नाम से जाना जाता था। आधुनिक कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। लेकिन 1973 ई. में यह कुरूक्षेत्र में चला गया। बाद में हरियाणा सरकार ने इसे कुरूक्षेत्र से अलग कर 1 नवम्बर 1989 ई. को स्वतंत्र जिला घोषित कर दिया। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर स्थित है। .

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कोकिला वन

कोकिला वन अथवा कोकिलावन भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के मथुरा में कोसी कलाँ नामक स्थान के समीप एक हिन्दू मंदिर परिसर है। यहाँ के मुख्य देवता शनि देव हैं। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार शनि ने यहाँ श्री कृष्ण के दर्शनार्थ कठोर तप किया जिससे प्रसन्न हो कर कृष्ण ने उन्हें कोयल के रूप में दर्शन दिए। यहाँ के अन्य मंदिरों में कृष्ण और हनुमान के मंदिर प्रमुख हैं। इस तीर्थ का परिक्रमा पथ लगभग चार किलोमीटर लम्बा है। .

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अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह

अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह (बंगाली:আন্দামান ও নিকোবর দ্বীপপুঞ্জ) भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है। ये बंगाल की खाड़ी के दक्षिण में हिन्द महासागर में स्थित है। अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह लगभग 572 छोटे बड़े द्वीपों से मिलकर बना है जिनमें से सिर्फ कुछ ही द्वीपों पर लोग रहते हैं। यहाँ की राजधानी पोर्ट ब्लेयर है। भारत का यह केन्द्र शासित प्रदेश हिंद महासागर में स्थित है और भौगोलिक दृष्टि से दक्षिण पूर्व एशिया का हिस्सा है। यह इंडोनेशिया के आचेह के उत्तर में 150 किमी पर स्थित है तथा अंडमान सागर इसे थाईलैंड और म्यांमार से अलग करता है। दो प्रमुख द्वीपसमूहों से मिलकर बने इस द्वीपसमूह को 10° उ अक्षांश पृथक करती है, जिसके उत्तर में अंडमान द्वीप समूह और दक्षिण में निकोबार द्वीप समूह स्थित हैं। इस द्वीपसमूह के पूर्व में अंडमान सागर और पश्चिम में बंगाल की खाड़ी स्थित है। द्वीपसमूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर एक अंडमानी शहर है। 2001 की भारत की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 356152 है। पूरे क्षेत्र का कुल भूमि क्षेत्र लगभग 6496 किमी² या 2508 वर्ग मील है। .

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अद्भुत रामायण

अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्यविशेष है। कहा जाता है, इस ग्रंथ के प्रणेता बाल्मीकि थे। किंतु इसकी भाषा और रचना से लगता है, किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है। .

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अफानासी निकितिन

अफ़नासिय निकीतिन का स्मारक अफानासी निकितिन (रूसी: Афанасий Никитин) - एक रुसी व्यापारी था जिसने १५वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की। वह लेखक के रूप में भी प्रसिद्ध है - उसकी पुस्तक "तीन समुद्र पार का सफरनामा" यह भारत के इतिहास का अहम सूत्र है। वास्को डि गामा से २५ वर्ष पूर्व भारत की धरती पर कदम रखने वाला पहला यूरोपीय अफ़नासी निकीतीन मूल रूप से रूस का रहने वाला था। वह सन् 1466 से 1475 के बीच लगभग तीन वर्ष तक भारत में रहा। निकीतीन रूस से चल कर जार्जिया, अरमेनिया, ईरान के रास्ते मुंबई पहुंचा था। सन् 1475 में वह अफ्रीका होता हुआ वापिस लौटा, लेकिन अपने घर त्वेर पहुंचने से पहले ही उसका निधन हो गया। निकीतीन द्वारा भारत-यात्रा पर लिखे संस्मरणों को १९वीं सदी में रूस के जाने-माने इतिहासविद् एन.एम.

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अलीगंज

(1) अलीगंज लखनऊ शहर का एक महत्वपूर्ण मुहल्ला है। यहाँ प्राचीन हनुमान जी का एक मंदिर स्थित है। यह मंदिर बहुत पुराना है एवं इसकी बहुत मान्यता है। मंदिर में ज्येष्ठ मास में बड़े मंगल को मेला लगता है। इसके अलावा हनुमान जयंती पर भी मेला लगता है। (2) अलीगंज एटा जिले का महत्वपूर्ण कस्वा भी हॅ। इसे 1747 में याकूत ख़ाँ ने बसाया था। यहाँ बहुत बड़ा मिट्टी का क़िला है। .

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अहिरावण

कृत्तिवास रामायण में अहिरावण विश्रवा ऋषि के पुत्र और रावण के भाई थे। वो राक्षस थे और गुप्त रूप से राम और उनके भाई लक्ष्मण को नरग-लोक में ले गये और वहाँ पर अपनी आराघ्य महामाया के लिए दोनो भाइयों की बलि देने को तैयार हो गये। लेकिन हनुमान ने अहिरावण और उनकी सेना को मारकर इनकी रक्षा की। .

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अंजनेरी

अंजनेरी (अंग्रेजी:Anjaneri) महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में स्थित एक प्राचीन दुर्ग है। जो त्रिम्बकेश्वर श्रृंखला के अंतर्गत आता है। यह दुर्ग नासिक से त्रिम्बक रोड़ से २० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। .

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अंजनी

अंजनी हनुमान की माता का नाम था। .

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अंगद

अंगद रामायण का एक पात्र, पंचकन्या में से एक तारा तथा किष्किंधा के राजा बाली का पुत्र और सुग्रीव का भतीजा, रावण की लंका को ध्वस्त करने वाली राम सेना का एक प्रमुख योद्धा था। बाली की मृत्यु के उपरांत सुग्रीव किष्किंधा का राजा और अंगद युवराज बना। तारा तथा अंगद अपने दूत-कर्म के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए। राम ने उसे रावण के पास दूत बनाकर भेजा था। वहां की राजसभा का कोइ भी योद्धा उनका पैर तक नहीं डिगा सका। अंगद संबंधी प्राचीन आख्यानों में केवल वाल्मीकि रामायण ही प्रमाण है। यद्यपि वाल्मीकि के अंगद में हनुमान के समान बल, साहस, बुद्धि और विवेक है। परंतु उनमें हनुमान जैसी हृदय की सरलता और पवित्रता नहीं है। सीता शोध में विफल होने पर जब वानर प्राण दंड की संभावना से भयभीत होकर विद्रोह करने पर तत्पर दिखाई पड़ते हैं तब अंगद भी विचलित हो जाते हैं। यदि वे अंततोगत्वा कर्तव्य पथ पर दृढ़ रहते हैं तो इसका कारण हनुमान के विरोध की आशंका ही है। श्रेणी:पौराणिक/साहित्यिक चरित्र श्रेणी:रामायण के पात्र श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अंकोरवाट मंदिर

अंकोरवाट (खमेर भाषा: អង្គរវត្ត) कंबोडिया में एक मंदिर परिसर और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, 162.6 हेक्टेयर (1,626,000 एम 2; 402 एकड़) को मापने वाले एक साइट पर। यह मूल रूप से खमेर साम्राज्य के लिए भगवान विष्णु के एक हिंदू मंदिर के रूप में बनाया गया था, जो धीरे-धीरे 12 वीं शताब्दी के अंत में बौद्ध मंदिर में परिवर्तित हो गया था। यह कंबोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर' था। इसका निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (१११२-५३ई.) के शासनकाल में हुआ था। यह विष्णु मन्दिर है जबकि इसके पूर्ववर्ती शासकों ने प्रायः शिवमंदिरों का निर्माण किया था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है जो सैकड़ों वर्ग मील में फैला हुआ है। राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को १९८३ से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है। यह मन्दिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है। इसकी दीवारों पर भारतीय धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का चित्रण है। इन प्रसंगों में अप्सराएं बहुत सुंदर चित्रित की गई हैं, असुरों और देवताओं के बीच समुद्र मन्थन का दृश्य भी दिखाया गया है। विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। पर्यटक यहाँ केवल वास्तुशास्त्र का अनुपम सौंदर्य देखने ही नहीं आते बल्कि यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने भी आते हैं। सनातनी लोग इसे पवित्र तीर्थस्थान मानते हैं। .

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