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हंस (संपादक प्रेमचंद)

सूची हंस (संपादक प्रेमचंद)

हंस का प्रकाशन सन् 1930 ई० में बनारस से प्रारम्भ हुआ था। इसके सम्पादक मुंशी प्रेमचन्द थे। प्रेमचन्द के सम्पादकत्व में यह पत्रिका हिन्दी की प्रगति में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई। सन् 1933 में प्रेमचन्द ने इसका काशी विशेषांक बड़े परिश्रम से निकाला। वे सन् 1930 से लेकर 1936 तक इसके सम्पादक रहे। उसके बाद जैनेन्द्र और प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने संयुक्त रूप से इसका सम्पादन प्रारम्भ किया। हंस के विशेषांकों में प्रेमचन्द स्मृति अंक, एकांकी नाटक अंक 1938, रेखाचित्र अंक, कहानी अंक, प्रगति अंक तथा शान्ति अंक विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे। जैनेन्द्र और शिवरानी देवी के बाद इसके सम्पादक शिवदान सिंह चौहान और श्रीपत राय उसके बाद अमृत राय और तत्पश्चात् नरोत्तम नागर रहे। बहुत दिनों बाद सन् 1959 में हंस का एक वृहत् संकलन सामने आया जिसमें बालकृष्ण राव और अमृत राय के संयुक्त सम्पादन में आधुनिक साहित्य एवं उससे सम्बन्धित नवीन मूल्यों पर विचार किया गया था। .

6 संबंधों: डॉ॰ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, प्रेमचंद, राजेन्द्र यादव, हँस, हंस पत्रिका, जागरण साप्ताहिक

डॉ॰ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय

डॉ॰ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, पूर्व नाम आगरा विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर आगरा के सबसे प्राचीन संस्थानों में से एक है। .

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प्रेमचंद

प्रेमचंद (३१ जुलाई १८८० – ८ अक्टूबर १९३६) हिन्दी और उर्दू के महानतम भारतीय लेखकों में से एक हैं। मूल नाम धनपत राय प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था, उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्‍य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्‍यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। .

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राजेन्द्र यादव

राजेन्द्र यादव (अंग्रेजी: Rajendra Yadav, जन्म: 28 अगस्त 1929 आगरा – मृत्यु: 28 अक्टूबर 2013 दिल्ली) हिन्दी के सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक होने के साथ-साथ हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय संपादक भी थे। नयी कहानी के नाम से हिन्दी साहित्य में उन्होंने एक नयी विधा का सूत्रपात किया। उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सन् 1930 में स्थापित साहित्यिक पत्रिका हंस का पुनर्प्रकाशन उन्होंने प्रेमचन्द की जयन्ती के दिन 31 जुलाई 1986 को प्रारम्भ किया था। यह पत्रिका सन् 1953 में बन्द हो गयी थी। इसके प्रकाशन का दायित्व उन्होंने स्वयं लिया और अपने मरते दम तक पूरे 27 वर्ष निभाया। 28 अगस्त 1929 ई० को उत्तर प्रदेश के शहर आगरा में जन्मे राजेन्द्र यादव ने 1951 ई० में आगरा विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा हिन्दी साहित्य में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। उनका विवाह सुपरिचित हिन्दी लेखिका मन्नू भण्डारी के साथ हुआ था। वे हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध हंस पत्रिका के सम्पादक थे। हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा राजेन्द्र यादव को उनके समग्र लेखन के लिये वर्ष 2003-04 का सर्वोच्च सम्मान (शलाका सम्मान) प्रदान किया गया था। 28 अक्टूबर 2013 की रात्रि को नई दिल्ली में 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। .

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हँस

कोई विवरण नहीं।

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हंस पत्रिका

हंस दिल्ली से प्रकाशित होने वाली हिन्दी की एक कथा मासिक पत्रिका है जिसका सम्पादन राजेन्द्र यादव ने 1986 से 2013 तक पूरे 27 वर्ष किया। उपन्यास सम्राट प्रेमचंद द्वारा स्थापित और सम्पादित हंस अपने समय की अत्यन्त महत्वपूर्ण पत्रिका रही है। महात्मा गांधी और कन्हैयालाल माणिक लाल मुंशी भी दो वर्ष तक हंस के सम्पादक मण्डल में शामिल रहे। मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु के बाद हंस का सम्पादन उनके पुत्र कथाकार अमृतराय ने किया। अनेक वर्षों तक हंस का प्रकाशन बन्द रहा। बाद में मुंशी प्रेमचंद की जन्मतिथि (31 जुलाई) को ही सन् 1986 से अक्षर प्रकाशन ने कथाकार राजेन्द्र यादव के सम्पादन में इस पत्रिका को एक कथा मासिक के रूप में फिर से प्रकाशित करना प्रारम्भ किया। वर्तमान में हंस एक सांस्कृतिक, साहित्यिक और विचारशील पत्रिका के रूप में जानी जाती है। .

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जागरण साप्ताहिक

प्रेमचन्द हंस से संतुष्ट न थे। वे एक सप्ताहिक पत्र भी निकालना चाहते थे। अवसर मिलते ही उन्होंने विनोदशंकर व्यास से जागरण ले लिया और २२ अगस्त, १९३२ को उनके सम्पादकत्व में इसका पहला अंक निकला, किन्तु आर्थिक हानि के कारण उन्हें इसका अन्तिम अंक २१ मई, १९३४ को निकाल कर इसे बन्द करना पड़ा। .

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