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स्पेक्ट्रोस्कोपी

सूची स्पेक्ट्रोस्कोपी

स्पेक्ट्रमिकी का सबसे सरल उदाहरण: श्वेत प्रकाश को प्रिज्म होकर ले जाने पर वह सात रंगों में बंट जाती है। स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं। मूलत: विकिरण एवं पदार्थ के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से दृष्य प्रकाश का किसी प्रिज्म से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग रास्ते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था। बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है: E .

20 संबंधों: एक्स-किरण स्पेक्ट्रमिकी, धधकी तारा, पश्चिमी संस्कृति, प्रत्यक्ष वर्णक्रम, प्रायोगिक भौतिकी, पोलारिस, बृहस्पति (ग्रह), भौतिक विज्ञानी, मुरली मनोहर जोशी, रासायनिक तत्व, रुबिडियम, रेडियल वेग, शुक्र, जेम्स वेब खगोलीय दूरदर्शी, वर्णक्रममापी, विवर्तन, खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी, गणित, अंतरिक्ष विज्ञान, ९०३७७ सेडना

एक्स-किरण स्पेक्ट्रमिकी

एक क्रिस्ट्रल पर एक्स-किरण के विवर्तन (डिफ्रैक्शन) से प्राप्त विवर्तन-पैटर्न। इसकी सहायता से क्रिस्टल की संरचना निकाली जा सकती है। स्पेक्ट्रमिकी के इस विभाग में एक्स किरणों के स्पेक्ट्रम का अध्ययन किया जाता है। इससे परमाणुओं की संरचना का ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है। एक्स किरणों की खोज डब्ल्यू॰के॰ रुटगेन (W. K. Rontgen) ने 1895 ई. में की थी। ये किरणें भी विद्युत् चुंबकीय तरंगें होती हैं। एक्स किरणों का तरंगदैर्घ्य बहुत छोटा, 100 एंग्स्ट्रॉम से 1 एंग्स्ट्रॉम तक होता है। स्पेक्ट्रमिकी के इस विभाग की नींव डालनेवाले वैज्ञानिकों में हेनरी जेफ्री मोस्ले, ब्रैग और लावे के नाम उल्लेखनीय हैं। जब तीव्र गति से चलते हुए इलेक्ट्रानों की धारा को किसी धातु के "टार्जेंट" पर रोक दिया जाता है तब उससे एक्स-किरणें निकलने लगती हैं। इनसे प्राप्त स्पेक्ट्रम दो प्रकार के होते हैं-रेखा स्पेक्ट्रम और सतत स्पेक्ट्रम। रेखा स्पेक्ट्रम टार्जेट के तल का लाक्षणिक स्पेक्ट्रम (Charactgeristic Spectrum) होता है। सतत स्पेक्ट्रम में एक सीमित क्षेत्र की प्रत्येक आवृत्ति की रश्मियाँ होती हैं। इस स्पेक्ट्रम की उच्चतम आवृत्तिसीमा तीक्ष्ण और स्पष्ट होती है किंतु निम्न आवृत्तिसीमा निश्चित नहीं होती है। उच्चतम आवृत्तिसीमा को एक्स-स्पेक्ट्रम की क्वांटम-सीमा कहते हैं। .

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धधकी तारा

धधकी तारा (flare star) ऐसा परिवर्ती तारा होता है जो कभी-कभी बिना चेतावनी के अचानक कुछ मिनटों के लिये अपनी चमक को साधारण से बहुत अधिक बढ़ा दे। खगोलशास्त्रियों का अनुमान है कि यह प्रक्रिया हमारे सूरज के सौर प्रज्वालों के समान है और उन तारों के वायुमण्डल में एकत्रित चुम्बकीय ऊर्जा के कारण होती है। स्पेक्ट्रोस्कोपी जाँच से पता चला है कि चमक की यह बढ़ौतरी रेडियो तरंगों से लेकर एक्स रे तक पूरे वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में देखी जा सकती है। सबसे पहले ज्ञात धधकी तारे वी१३९६ सिगनाए (V1396 Cygni) और एटी माइक्रोस्कोपाए (AT Microscopii) थे जिनकी खोज सन् १९२४ में हुई। सबसे अधिक पहचाने जाना वाला धधकी तारा यूवी सेटाए (UV Ceti) है, जो १९४८ में मिला था। अधिकतर धधकी तारे कम चमक वाले लाल बौने होते हैं हालांकि हाल में हुए अनुसन्धान में संकेत मिला है कि कम द्रव्यमान (मास) वाले भूरे बौने भी धधकने में सक्षम हो सकते हैं। कुछ दानव तारे भी धधकते हुए मिले हैं लेकिन यह उनके द्वितारा मंडल में होने से उनके साथी तारे के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षक खींचाव के कारण हुआ समझा जाता है। इसके अलावा सूरज से मिलते-जुलते ९ तारों में भी धधकन देखी गई है, जिसके बारे में खगोलशास्त्री समझते हैं कि यह उनके इर्द-गिर्द बृहस्पति जैसे भीमकाय ग्रह की बहुत ही समीपी कक्षा में उपस्थिति की वजह से है। .

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पश्चिमी संस्कृति

पश्चिमी संस्कृति (जिसे कभी-कभी पश्चिमी सभ्यता या यूरोपीय सभ्यता के समान माना जाता है), यूरोपीय मूल की संस्कृतियों को सन्दर्भित करती है। यूनानियों के साथ शुरू होने वाली पश्चिमी संस्कृति का विस्तार और सुदृढ़ीकरण रोमनों द्वारा हुआ, पंद्रहवी सदी के पुनर्जागरण एवं सुधार के माध्यम से इसका सुधार और इसका आधुनिकीकरण हुआ और सोलहवीं सदी से लेकर बीसवीं सदी तक जीवन और शिक्षा के यूरोपीय तरीकों का प्रसार करने वाले उत्तरोत्तर यूरोपीय साम्राज्यों द्वारा इसका वैश्वीकरण हुआ। दर्शन, मध्ययुगीन मतवाद एवं रहस्यवाद, ईसाई एवं धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद की एक जटिल श्रृंखला के साथ यूरोपीय संस्कृति का विकास हुआ। ज्ञानोदय, प्रकृतिवाद, स्वच्छंदतावाद (रोमेन्टिसिज्म), विज्ञान, लोकतंत्र और समाजवाद के प्रयोगों के साथ परिवर्तन एवं निर्माण के एक लंबे युग के माध्यम से तर्कसंगत विचारधारा विकसित हुई.

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प्रत्यक्ष वर्णक्रम

प्रत्यक्ष वर्णक्रम या दृष्य वर्णक्रम विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम का एक भाग है, जो मानवीय चक्षुओं को दिखाई देता है। इस श्रेणी की विद्युत चुम्बकीय तरंगों को प्रकाश कहते हैं। एक आदर्श मानवी चक्षु वायु में देखती है 380 नैनोमीटर से 750 नैनोमीटर तरंगदर्घ्य की प्रकाश को देख सकती है।। इसके अनुसार जल में और अन्य माध्यमों में यह उस माध्यम के अपवर्तन गुणांक (refractive index) के गुणक में दृश्यता घट जाती है। आवृत्ति के अनुसार, यह 400-790 टैरा हर्ट्ज के बराबर की पट्टी में पङता है। आँख द्वारा देखे गए प्रकाश की अधिकतम संवेदनशीलता 555 nm (540 THz) होती है (वर्णक्रम के हरे क्षेत्र में)। वैसे वर्णक्रम में वे सभी रंग नहीं होते जो कि मानवी आँख या मस्तिष्क देख या पहचान सकता है जैसे भूरा, गुलाबी या रानी अनुपस्थित हैं। यह इसलिए क्योंकि ये मिश्रित तरंग दैर्घ्य से बनते हैं, खासकर लाल के छाया। प्रत्यक्ष प्रकाश के वर्णक्रम का sRGB अनुवाद .

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प्रायोगिक भौतिकी

भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में, प्रायोगिक भौतिकी ब्रह्माण्ड के बारे में आँकड़े संग्रहित करने के क्रम में भौतिक परिघटनाओं के प्रेक्षण से सम्बंधित विषय और उप-विषयों की श्रेणी है। इसकी विधियाँ एक विषय से दूसरे विषय में बहुत परिवर्तित होता है जैसे सरल प्रयोग से प्रेक्षण जैसे कैवेंडिश प्रयोग से बहुत जटिल प्रयोगों में से एक वृहद हेड्रॉन संघट्टक तक। .

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पोलारिस

पोलारिस (यूएमआई (UMi), उर्से मिनोरिस (Ursae Minoris), अल्फा उर्से मिनोरिस (Alpha Ursae Minoris), आमतौर पर उत्तर (इय) तारा या, पोल तारा, या ध्रुव तारा, या कभी लोडस्टार) उर्सा माइनर तारासमूह का सबसे चमकता हुआ सितारा है। यह उत्तरीय खगोलीय ध्रुव के सबसे करीब है, जो इसे मौजूदा उत्तरीय पोल तारा बनाता है। पोलारिस एक विविध सितारा है और धरती से लगभग 430 प्रकाश-वर्ष दूर है। यूएमआई ए छह सूर्य भारविलैंड पृष्ठ 3: ए और पी के मासेस...(6.0+1.54M⊙) के बराबर है F7 ब्राईट जायेंट (II) या सुपरजायेंट (lb).

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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मुरली मनोहर जोशी

डॉ॰ मुरली मनोहर जोशी, भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शासनकाल में वे भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री थे। .

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रासायनिक तत्व

रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्व (या केवल तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं। सन २००७ तक कुल ११७ तत्व खोजे या पाये जा चुके हैं जिसमें से ९४ तत्व धरती पर प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्व समय-समय पर खोजे जाते रहे हैं। .

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रुबिडियम

रूबिडियम (Rubidium) एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी के प्रथम मुख्य समूह का चौथा तत्व है। इसमें धातुगुण वर्तमान हैं। इसके तीन स्थिर समस्थानिक प्राप्त हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ क्रमश: ८५, ८६, ८७ हैं। इस तत्व की खोज बुंसन तथा किर्खहॉफ़ ने १८६० ई. में स्पेक्ट्रमदर्शी (spectroscope) द्वारा की थी। स्पेक्ट्रमदर्शी द्वारा प्रयोगों में दो नई लाल रेखाएँ मिलीं, जिनके कारण इसका नाम 'रूबिडियम' रखा गया। लेपिडोलाइट अयस्क में रूबिडियम की मात्रा लगभग १ प्रतिशत रहती है। इसके अतिरिक्त अभ्रक तथा कार्टेलाइड में भी यह न्यून मात्रा में मिलता है। पोटैशियम तथा रूबिडियम के प्लैटिनिक क्लोराइडों की विलेयता भिन्न भिन्न है, जिसके कारण इन दोनों को पृथक् किया जा सकता है। .

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रेडियल वेग

रेडियल वेग को मापकर ग़ैर-सौरीय ग्रह ढूंढें जाते हैं - जब कोई अनदेखा ग्रह किसी तारे की परिक्रमा करता है तो वह तारा भी उसके गुरुत्वाकर्षक प्रभाव से हिलता है - यदि किसी तारे में लालिमा-नीलिमा का बढ़ता-घटता नियमानुसार क्रम ज्ञात हो जाए तो वह उसकी परिक्रमा करते ग्रह का संकेत होता है रेडियल वेग या त्रिज्या वेग (radial velocity) किसी वस्तु के उस वेग को कहते हैं जो सीधा किसी दर्शक की तरफ़ या उस से उल्टी तरफ़ हो। अगर दर्शक कहीं स्थित हो और वस्तु हिल रही हो तो रेडियल वेग उस वस्तु के पूर्ण वेग का केवल वह हिस्सा है जो उस वस्तु को दर्शक के पास ला रहा है या उस से दूर ले जा रहा है। इसमें से उस वेग का भाग हटा दिया जाता है तो वस्तु को दर्शक के दाई या बाई ओर ले जा रहा हो। खगोलशास्त्र में अक्सर किसी खगोलीय वस्तु के रेडियल वेग का अनुमान स्पेक्ट्रोस्कोपी द्वारा वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का अध्ययन करके लगाया जाता है। डॉप्लर प्रभाव के कारण दूर जाती वस्तुओं का वर्णक्रम में अधिक लालिमा आ जाती है जबकि पास आती वस्तुओं के वर्णक्रम में अधिक नीलिमा आ जाती है। दूरबीन द्वारा खगोलीय अध्ययन करके भी रेडियल वेग का बिना वर्णक्रम का प्रयोग करे भी अंदाज़ा लगाया जा सकता है।, Lucy-Ann Adams McFadden, Paul Robert Weissman, Torrence V. Johnson, pp.

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शुक्र

शुक्र (Venus), सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है। ग्रह का नामकरण प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी पर हुआ है। चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है। इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लिए पर्याप्त उज्जवलता है। चूँकि शुक्र एक अवर ग्रह है इसलिए पृथ्वी से देखने पर यह कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है: इसका प्रसरकोण 47.8 डिग्री के अधिकतम तक पहुँचता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुँचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है। शुक्र एक स्थलीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत है और समान आकार, गुरुत्वाकर्षण और संरचना के कारण कभी कभी उसे पृथ्वी का "बहन ग्रह" कहा गया है। शुक्र आकार और दूरी दोनों मे पृथ्वी के निकटतम है। हालांकि अन्य मामलों में यह पृथ्वी से एकदम अलग नज़र आता है। शुक्र सल्फ्यूरिक एसिड युक्त अत्यधिक परावर्तक बादलों की एक अपारदर्शी परत से ढँका हुआ है। जिसने इसकी सतह को दृश्य प्रकाश में अंतरिक्ष से निहारने से बचा रखा है। इसका वायुमंडल चार स्थलीय ग्रहों मे सघनतम है और अधिकाँशतः कार्बन डाईऑक्साइड से बना है। ग्रह की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना मे 92 गुना है। 735° K (462°C,863°F) के औसत सतही तापमान के साथ शुक्र सौर मंडल मे अब तक का सबसे तप्त ग्रह है। कार्बन को चट्टानों और सतही भूआकृतियों में वापस जकड़ने के लिए यहाँ कोई कार्बन चक्र मौजूद नही है और ना ही ज़ीवद्रव्य को इसमे अवशोषित करने के लिए कोई कार्बनिक जीवन यहाँ नज़र आता है। शुक्र पर अतीत में महासागर हो सकते हैलेकिन अनवरत ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वह वाष्पीकृत होते गये होंगे |B.M. Jakosky, "Atmospheres of the Terrestrial Planets", in Beatty, Petersen and Chaikin (eds), The New Solar System, 4th edition 1999, Sky Publishing Company (Boston) and Cambridge University Press (Cambridge), pp.

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जेम्स वेब खगोलीय दूरदर्शी

100px जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरदर्शी (James Webb Space Telescope (JWST)) एक प्रकार की अवरक्त अंतरिक्ष वेधशाला है। यह हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी का वैज्ञानिक उत्तराधिकारी और आधुनिक पीढ़ी का दूरदर्शी है, जिसे जून २०१४ में एरियन ५ राकेट से प्रक्षेपित किया जाएगा। इसका मुख्य कार्य ब्रह्माण्ड के उन सुदूर निकायों का अवलोकन करना है जो पृथ्वी पर स्थित वेधशालाओं और हबल दूरदर्शी के पहुँच के बाहर है। JWST, नासा और यूनाइटेड स्टेट स्पेस एजेंसी की एक परियोजना है जिसे यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA), केनेडियन स्पेस एजेंसी (CSA) और पंद्रह अन्य देशों का अन्तराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त है। इसका असली नाम अगली पीढ़ी का अंतरिक्ष दूरदर्शी (Next Generation Space Telescope (NGST)) था, जिसका सन २००२ में नासा के द्वितीय प्रशासक जेम्स एडविन वेब (१९०६-१९९२) के नाम पर दोबारा नामकरण किया गया। जेम्स एडविन वेब ने केनेडी से लेकर ज़ोंनसन प्रशासन काल (१९६१-६८) तक नासा का नेतृत्व किया था। उनकी देखरेख में नासा ने कई महत्वपूर्ण प्रक्षेपण किए, जिसमे जेमिनी कार्यक्रम के अंतर्गत बुध के सारे प्रक्षेपण एवं प्रथम मानव युक्त अपोलो उड़ान शामिल है। JWST की कक्षा पृथ्वी से परे पंद्रह लाख किलोमीटर दूर लग्रांज बिन्दु L2 पर होगी अर्थात पृथ्वी की स्थिति हमेंशा सूर्य और L2 बिंदु के बीच बनी रहेगी। चूँकि L2 बिंदु में स्थित वस्तुएं हमेंशा पृथ्वी की आड़ में सूर्य की परिक्रमा करती है इसलिए JWST को केवल एक विकिरण कवच की जरुरत होगी जो दूरदर्शी और पृथ्वी के बीच लगी होगी। यह विकिरण कवच सूर्य से आने वाली गर्मी और प्रकाश से तथा कुछ मात्रा में पृथ्वी से आने वाली अवरक्त विकिरणों से दूरदर्शी की रक्षा करेगी। L2 बिंदु के आसपास स्थित JWST की कक्षा की त्रिज्या बहुत अधिक (८ लाख कि.मी.) है, जिस कारण पृथ्वी के किसी भी हिस्से की छाया इस पर नहीं पड़ेगी। सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी से काफी करीब होने के बावजूद JWST पर कोई ग्रहण नहीं लगेगा। .

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वर्णक्रममापी

वर्णक्रममापी (स्पेक्ट्रोमीटर, स्पेक्ट्रोफोटोमीटर, स्पेक्ट्रोग्राफ या स्पेक्ट्रोस्कोप) विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के एक विशिष्ट भाग के लिए प्रकाश की विशेषतायों के मापन हेतु उपयोग किया जाना वाला यंत्र है जो आम तौर पर सामग्री की पहचान के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपी विश्लेषण में इस्तेमाल किया जाता है। मापित चर अक्सर प्रकाश की तीव्रता होता है, लेकिन उदाहरण के लिए यह ध्रुवीकरण स्थिति भी हो सकती है। स्वतंत्र चर आमतौर पर या तो प्रकाश की तरंग दैर्ध्य या फोटोन उर्जा के लिए सीधे आनुपातिक एक इकाई होता है जैसे वेवनंबर या इलेक्ट्रॉन वोल्ट जिसका तरंग दैर्ध्य के साथ व्युत्क्रम संबंध होता है। स्पेक्ट्रोमीटर स्पेक्ट्रोस्कोपी में वर्णक्रमीय पंक्तियों के उत्पादन तथा तरंगदैर्य और तीव्रता के मापन हेतु प्रयोग किया जाता है। स्पेक्ट्रोमीटर एक शब्दावली है जो गामा रेज़ और एक्स रेज़ से लेकर फार इन्फ्रारेड की व्यापक रेंज के तरंग दैर्ध्य पर संचालित होने वाले उपकरणों पर लागू की जाती है। अगर रूचि का क्षेत्र विजिबिल स्पेक्ट्रम के पास प्रतिबंधित है, तो अध्ययन को स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री कहा जाता है। सामान्यत: कोई भी विशेष उपकरण इस पूर्ण रेंज के एक छोटे से हिस्से पर संचालित हो सकता है ऐसा स्पेक्ट्रम के विभिन्न भागों को मापने के लिए इस्तेमाल की जानी वाली तकनीक की वजह से होता है। ऑप्टिकल आवृत्तियों के नीचे (जैसे माइक्रोवेव और रेडियो आवृत्तियों में), स्पेक्ट्रम विश्लेषक एक निकटीय संबंधित इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है। .

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विवर्तन

एक वर्गाकार द्वारक (aperture) से विवर्तन के परिणामस्वरूप पर्दे पर निर्मित विवर्तन पैटर्न जब प्रकाश या ध्वनि तरंगे किसी अवरोध से टकराती हैं, तो वे अवरोध के किनारों पर मुड जाती हैं और अवरोधक के की ज्यामितिय छाया में प्रवेश कर जती हैं। तरंगो के इस प्रकार मुड़ने की घटना को विवर्तन (Diffraction) कहते हैं। ऐसा पाया गया है कि लघु आकार के अवरोधों से टकराने के बाद तरंगें मुड़ जातीं हैं तथा जब लघु आकार के छिद्रों (openings) से होकर तरंग गुजरती है तो यह फैल जाती है। सभी प्रकार की तरंगों से विवर्तन होता है (ध्वनि, जल तरंग, विद्युतचुम्बकीय तरंग आदि)। .

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खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी

लिक वेधशाला (Lick Observatory) का स्टार-स्पेक्ट्रोस्कोप खगोलीय स्पेक्ट्रमिकी (Astronomical spectroscopy) वह विज्ञान है जिसका उपयोग आकाशीय पिंडों के परिमंडल की भौतिक अवस्थाओं के अध्ययन के लिए किया जाता है। प्लैस्केट के मतानुसार भौतिकविद् के लिए स्पेक्ट्रमिकी वृहद् शस्त्रागार में रखे हुए अनेक अस्त्रों में से एक अस्त्र है। खगोल भौतिकविद् के लिए आकाशीय पिंडों के परिमंडल की भौतिक अवस्थाओं के अध्ययन का यह एकमात्र साधन है। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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अंतरिक्ष विज्ञान

गैलेक्सी के एक भाग को प्रदर्शित करता हुआ एक तस्वीर अंतरिक्ष विज्ञान एक व्यापक शब्द है जो ब्रह्मांड के अध्ययन से जुड़े विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों का वर्णन करता है तथा सामान्य तौर पर इसका अर्थ "पृथ्वी के अतिरिक्त" तथा "पृथ्वी के वातावरण से बाहर" भी है। मूलतः, इन सभी क्षेत्रों को खगोल विज्ञान का हिस्सा माना गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में खगोल के कुछ क्षेत्रों, जैसे कि खगोल भौतिकी, का इतना विस्तार हुआ है कि अब इन्हें अपनी तरह का एक अलग क्षेत्र माना जाता है। कुल मिला कर आठ श्रेणियाँ हैं, जिनका वर्णन अलग से किया जा सकता है; खगोल भौतिकी, गैलेक्सी विज्ञान, तारकीय विज्ञान, पृथ्वी से असंबंधित ग्रह विज्ञान, अन्य ग्रहों का जीव विज्ञान, एस्ट्रोनॉटिक्स/ अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष औपनिवेशीकरण और अंतरिक्ष रक्षा.

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९०३७७ सेडना

सेडना का एक काल्पनिक चित्रण। कक्षा (ऑरबिट) यहाँ लाल रंग में दर्शायी गई है। ११,४०० वर्षों की एक परिक्रमा में सेडना की सूरज से दूरी में महान उतार-चढ़ाव आते हैं। ९०२७७ सेडना (90377 Sedna) एक बहुत बड़ी नेप्चून-पार वस्तु है, जो सन् २०१२ में सूर्य से नेप्चून से भी लगभग तीन गुना दूर थी। स्पेक्ट्रोस्कोपी से पता चला है कि सेडना की सतह की संरचना इसी तरह की कुछ अन्य दूसरी नेप्चून-पार वस्तुओं के समान है, जो बड़े पैमाने पर जल, मीथेन और थोलिंस युक्त नाइट्रोजन बर्फ के एक मिश्रण से बनी हुई है। इसकी सतह सौरमंडल में सबसे अधिक लालिमायुक्त सतहों में से एक है। सेडना का ना तो द्रव्यमान ज्ञात है, ना इसका आकार अच्छी तरह से मालूम है और ना ही इसे आई'''.'''ए'''.'''यु'''.''' से एक बौने ग्रह के रूप में औपचारिक मान्यता मिली है, हालांकि कई खगोलविदों द्वारा इसे उनमे से एक माना जाता है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

स्पेक्ट्रमदर्शी, स्पेक्ट्रमिकी

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