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सौर मण्डल

सूची सौर मण्डल

सौर मंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भी सनदी क्षेत्रों से लगभग एक हजार गुना दूरी से परे मौजूद हो सकता है। सूर्य से होने वाला प्लाज़्मा का प्रवाह (सौर हवा) सौर मंडल को भेदता है। यह तारे के बीच के माध्यम में एक बुलबुला बनाता है जिसे हेलिओमंडल कहते हैं, जो इससे बाहर फैल कर बिखरी हुई तश्तरी के बीच तक जाता है। .

180 संबंधों: चन्द्रमा, ट्राइटन (उपग्रह), ट्रैपिस्ट-१, टॅथिस (उपग्रह), ऍचडी १०१८०, ऍनसॅलअडस (उपग्रह), ऍरिस (बौना ग्रह), एटा ऍरिडानी तारा, एटा कराइनी तारा, एण्ड्रोमेडा गैलेक्सी, डस्पीना (उपग्रह), डायोनी (उपग्रह), डिस्नोमिया (उपग्रह), डॉन (अंतरिक्ष यान), तारायान, तंग घाटी, थलैसा (उपग्रह), द प्लैनेटरी सोसाइटी, दोहरा क्षुद्रग्रह, धनु ए*, धातु हाइड्रोजन, धूमकेतु, धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९, नियरीड (उपग्रह), न्यू होराइज़न्स, नौवां ग्रह, नैअड (उपग्रह), नीसो (उपग्रह), परमाणुवाद, पलायन वेग, पायोनियर कार्यक्रम, पियेर सिमों लाप्लास, पुंगा सागर, प्रहार क्रेटर, प्राग सम्मेलन, प्राकृतिक उपग्रह, प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी, प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी, प्रोटिअस (उपग्रह), प्लूटो (बौना ग्रह), पृथ्वी द्रव्यमान, पृथ्वी का इतिहास, पृथ्वी-समीप वस्तु, पैलस (क्षुद्रग्रह), फ़ुमलहौत बी, बर्नार्ड-तारा, बहिर्ग्रह, बहिर्ग्रह खोज की विधियाँ, बहिर्ग्रहशास्त्र, बिखरा चक्र, ..., बुध (ग्रह), ब्रह्माण्ड किरण, बृहस्पति (ग्रह), बृहस्पति का वायुमंडल, बृहस्पति के प्राकृतिक उपग्रह, बोरॉन, भूपर्पटी, महापृथ्वी, मायावती तारा, माइमस (उपग्रह), माकेमाके (बौना ग्रह), मघा तारा, मंगल ग्रह, यम के प्राकृतिक उपग्रह, यूरोपा (उपग्रह), रिया (उपग्रह), रोसेटा (अंतरिक्ष यान), लरिसा (उपग्रह), लाइजीया सागर, लेओमडीआ (उपग्रह), शनि (ग्रह), शनि के प्राकृतिक उपग्रह, शनि के छल्ले, शिकारी-हन्स भुजा, शकट चक्र गैलेक्सी, शुक्र, शैरन (उपग्रह), सन्दर्भ समतल, सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इन्टेलीजेन्स, सिम्बाद, सिग्मा सैजिटेरियाइ तारा, स्थलीय ग्रह, सौर मण्डल की छोटी वस्तुएँ, सौर मंडल का गठन और विकास, सैमअथी (उपग्रह), सूर्य, सूर्य देवता, सूर्य केंद्रीय सिद्धांत, सेओ (उपग्रह), सीरीस (बौना ग्रह), हिन्दी पुस्तकों की सूची/श, हंस तारा, हउमेया (बौना ग्रह), हैलिमीडी (उपग्रह), हैली धूमकेतु, हेलियोस्फीयर, हीन ग्रह, हीन ग्रह नामांकन, जन्तर मन्तर (जयपुर), जिओवानी स्क्यापारेल्ली, ज्येष्ठा तारा, ज्वारभाटा बल, जूनो (अंतरिक्ष यान), जेनिस ऐलेन वोस, जी॰जे॰ ५०४ बी ग्रह, घूर्णन काल, वरुण (ग्रह), वरुण के प्राकृतिक उपग्रह, वरुण-पार वस्तुएँ, विद्युत वाहन, विशेष चाल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी २०१०, वॅस्टा (क्षुद्रग्रह), वॉयेजर द्वितीय, वी वाई महाश्वान, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, खगोलीय दूरी, खगोलीय धूल, खगोलीय वस्तु, गति के नियम, गामा ऍरिडानी तारा, गांगेय वर्ष, ग्रह, ग्रहीय मण्डल, ग्रहीय क्रोड, ग्लीज़ 581सी, ग्लीज़ २२९, गैनिमीड (उपग्रह), गैलाटिआ (उपग्रह), गैलिलेयो (अंतरिक्ष यान), गैलीलियन चंद्रमा, गैस दानव, गूगल स्काई, और्ट बादल, आऐपिटस (उपग्रह), आदिग्रह चक्र, आयो (उपग्रह), आर्यभट, आकाशगंगा, इथाका घाटी (टॅथिस), कलिस्टो (उपग्रह), कालोरिस द्रोणी, काइपर घेरा, किन्नर (हीन ग्रह), कक्षीय राशियाँ, क्रैकन सागर, क्लाइड टॉमबॉ, क्षुद्रग्रह, क्षुद्रग्रह घेरा, कैसिनी-होयगेन्स, केप्लर के ग्रहीय गति के नियम, कॅप्लर-१० तारा, कॅप्लर-१०बी, कॅप्लर-१६ तारा, कॅप्लर-२२ तारा, कॅप्लर-२२बी, कॅप्लर-६९ तारा, कोन्ड्राइट, कोन्ड्रूल, अपोलो अभियान, अभिजित तारा, अरुण (ग्रह), अरुण के प्राकृतिक उपग्रह, अर्सिया मॉन्स, अजीवात् जीवोत्पत्ति, अंतरतारकीय अंतरिक्ष उड़ान, अकोन्ड्राइट, उत्तर फाल्गुनी तारा, उत्तरी गोलार्ध, उपग्रह, उपग्रही छल्ला, १ स्कोर्पाए तारा, १० हायजीया, १०१९९ करिक्लो, २०००० वरुण, ५०००० क्वावार, ९०३७७ सेडना, B-श्रेणी क्षुद्रग्रह, D-श्रेणी क्षुद्रग्रह, V-श्रेणी क्षुद्रग्रह सूचकांक विस्तार (130 अधिक) »

चन्द्रमा

कोई विवरण नहीं।

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ट्राइटन (उपग्रह)

ट्राइटन सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण (नॅप्टयून) का सबसे बड़ा उपग्रह है और हमारे सौर मण्डल के सारे चंद्रमाओं में से सातवा सब से बड़ा चन्द्रमा है। अगर वरुण के सारे चंद्रमाओं का कुल द्रव्यमान देखा जाए तो उसका ९९.५% इस एक उपग्रह में निहित है। ट्राइटन वरुण का इकलौता उपग्रह है जो अपने गुरुत्वाकर्षक खिचाव से अपना अकार गोल कर चुका है। बाक़ी सभी चंद्रमाओं के अकार बेढंगे हैं। ट्राइटन का अपना पतला वायुमंडल भी है, जिसमें नाइट्रोजन के साथ-साथ थोड़ी मात्रा में मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड भी मौजूद हैं। ट्राइटन की सतह पर औसत तापमान -२३५.२° सेंटीग्रेड है। १९८६ में पास से गुज़रते हुए वॉयेजर द्वितीय यान ने कुछ ऐसी तस्वीरें ली जिनमें ट्राइटन के वातावरण में बादलों जैसी चीज़ें नज़र आई थीं। ट्राइटन वरुण के इर्द-गिर्द अपनी कक्षा में परिक्रमा में प्रतिगामी चाल रखता है और इसकी बनावट यम ग्रह (प्लूटो) से मिलती-जुलती है जिस से वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के ट्राइटन वरुण से दूर काइपर घेरे में बना था और भटकते हुए वरुण के पास जा पहुंचा जहाँ वह वरुण के तगड़े गुरुत्वाकर्षण की पकड़ में आ गया और तब से उसकी परिक्रमा कर रहा है। .

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ट्रैपिस्ट-१

ट्रैपिस्ट-१ (TRAPPIST-1), जिसे 2MASS J23062928-0502285 भी नामांकित करा जाता है, कुम्भ तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक अतिशीतल बौना तारा है जो हमारे सौर मंडल के बृहस्पति ग्रह से ज़रा बड़ा है। यह सूरज से लगभग 39.5 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है। इसके इर्द-गिर्द एक ग्रहीय मंडल है और फ़रवरी 2017 तक इस मंडल में सात स्थलीय ग्रह इस तारे की परिक्रमा करते पाए गए थे जो किसी भी अन्य ज्ञात ग्रहीय मंडल से अधिक हैं। .

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टॅथिस (उपग्रह)

इथाका नाम की महान और लम्बी घाटी नज़र आ रही है कैसीनी यान द्वारा २४ दिसम्बर २००५ को ली गयी इस तस्वीर में ४५० किमी व्यास का ओडेसियस नामक प्रहार क्रेटर नज़र आ रहा है १९८१ में वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी टॅथिस की तस्वीर टॅथिस हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का पाँचवा सब से बड़ा उपग्रह है। पूरे सौर मण्डल में यह १६वा सब से बड़ा उपग्रह है और अपने से छोटे सारे उपग्रहों के मिले हुए द्रव्यमान से बड़ा है। यह लगभग सारा-का-सारा ही पानी की बर्फ़ का बना है और इसमें मुश्किल से ६% भाग पत्थरीला है। इसका पक्का अनुमान नहीं लगाया जा पाया है के टॅथिस में पत्थर और बर्फ़ की अलग तहें हैं या पत्थर बर्फ़ में ही मिला हुआ है, लेकिन वैज्ञानिकों को यह ज्ञात हो गया है के अगर इसके केंद्र में पत्थर का एक अलग गोला है तो उस गोले का व्यास २९० किमी या उसे से कम ही होगा। टॅथिस पर उल्कापिंडों के बनाए हुए कई सरे प्रहार क्रेटर हैं। इसकी सतह पर बर्फ़ की बनी हुई पहाड़ियाँ और घाटियाँ देखी जा सकती हैं। उपग्रह के एक भाग में एक समतल मैदान भी देखा गया है। जिस दिशा में टॅथिस शनि की परिक्रमा कर रहा है उस तरफ के रुख़ पर एक ओडेसियस नाम का बड़ा क्रेटर है जिसका व्यास लगभग ४५० किमी है। ओडेसियस के बीच में एक २-४ किमी गहरा गड्ढा है जिसके इर्द-गिर्द ६-९ किमी लम्बी दीवारें हैं। टॅथिस की ज़मीन पर एक और बड़ी आकृति इथाका घाटी की है जो १०० किमी चौड़ी और ३ किमी गहरी है और पूरे चाँद के तीन-चौथाई हिस्से में २,००० किमी तक चलती है। टॅथिस की सतह का तापमान -१८७ डिग्री सेंटीग्रेड है। टॅथिस का व्यास (डायामीटर) लगभग १,०६६ किमी है। तुलना के लिए पृथ्वी के चन्द्रमा का व्यास लगभग ३,४७० किमी है, यानि टॅथिस से क़रीब तिगुना। .

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ऍचडी १०१८०

ऍचडी १०१८० तारा ऍचडी १०१८० के ग्रहीय मंडल का काल्पनिक वीडियो चित्रकार की कल्पना से बनी तस्वीर जिसमें ऍचडी १०१८० डी (d) ग्रह से उसका तारा देखा जा रहा है - इसमें ऍचडी १०१८० बी (b) और ऍचडी १०१८० सी (c) भी छोटे-से दूर नज़र आ रहे हैं ऍचडी १०१८० (HD 10180) पृथ्वी से अनुमानित १२७ प्रकाश वर्ष दूर नर जलसर्प तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक G1V श्रेणी का सूर्य-जैसा मुख्य अनुक्रम तारा है। इसके इर्द-गिर्द कम-से-कम ७ ग़ैर-सौरीय ग्रह परिक्रमा करते हुए ज्ञात हुए हैं और सम्भव है कि इन ग्रहों की कुल संख्या ९ भी हो। अभी तक यह सभी ज्ञात ग्रहीय मंडलों में सबसे अधिक ग्रहों वाला मंडल है और इसमें सम्भवतः हमारे सौर मंडल से भी ज़्यादा ग्रह हैं।, Mikko Tuomi, Astronomy & Astrophysics (Journal), 6 अप्रैल 2012 .

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ऍनसॅलअडस (उपग्रह)

२६ अगस्त १९८१ को वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी ऍनसॅलअडस की तस्वीर ऍनसॅलअडस के दक्षिणी ध्रुव के पास के "शेर धारियाँ" क्षेत्र में पानी और बर्फ़ उगलते हुए ऊंचे फुव्वारे ऍनसॅलअडस के दक्षिणी ध्रुव के पास की "शेर धारियाँ" इस तस्वीर में साफ़ नज़र आ रही हैं ऍनसॅलअडस हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का छठा सब से बड़ा उपग्रह है। ऍनसॅलअडस आकार में बहुत छोटा है - इसका व्यास (डायामीटर) केवल ४०० किमी है, जो शनि के सब से बड़े चद्रमा, टाइटन, का सिर्फ़ दसवाँ है। इस छोटे आकार के बावजूद इसकी सतह पर टीले-खाइयों से लेकर उल्कापिंडों के प्रहार से बने हुए गड्ढों तक तरह-तरह की चीजें देखी जाती हैं। ऍनसॅलअडस की सतह पर अधिकतर पानी की बर्फ़ की एक मोटी तह फैली हुई है। इस बर्फ़ीली सतह की वजह से ऍनसॅलअडस का ऐल्बीडो (सफ़ेदपन या चमकीलापन) १.३८ है, जो सौर मण्डल की किसी भी अन्य ज्ञात वस्तु से अधिक है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने इस उपग्रह की सतह पर मौजूद बहुत से आकारों के नाम आलिफ़ लैला की कहानियों के पात्रों पर रखे हैं, जैसे की समरक़न्द खाइयाँ, अलादीन गड्ढा, सरान्दीब मैदान, वग़ैराह। .

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ऍरिस (बौना ग्रह)

हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई ऍरिस और डिस्नोमिया की तस्वीर - ऍरिस बड़ा वाला गोला है ऍरिस हमारे सौर मण्डल का सब से बड़ा ज्ञात बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६११९ ऍरिस" है। ऍरिस हमारे सौर मण्डल में सूरज की परिक्रमा करती सभी ज्ञात खगोलीय वस्तुओं में से नौवी सबसे बड़ी वस्तु है। इसका व्यास (डायामीटर) २,३००-२,४०० किमी अनुमानित किया जाता है। इसका द्रव्यमान (मास) यम (प्लूटो) से २७% ज़्यादा और पृथ्वी के द्रव्यमान का केवल ०.२७% है। ऍरिस की खोज सन् २००५ में की गयी थी। यह एक वरुण-पार वस्तु है (यानि वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा से भी बाहार है)। ऍरिस सूरज से बेहद दूर है और काइपर घेरे से भी बाहर एक बिखरे चक्र नाम के क्षेत्र में स्थित है। २०११ में यह सूरज से ९६.६ खगोलीय इकाई की दूरी पर था, जो प्लूटो से भी तीन गुना अधिक है। ऍरिस के इर्द-गिर्द इसका उपग्रह डिस्नोमिया परिक्रमा करता है। आज की तारीख़ में ऍरिस और डिस्नोमिया हमारे सौर मण्डल की सब से दूरी पर स्थित प्राकृतिक वस्तुएँ हैं। .

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एटा ऍरिडानी तारा

एटा ऍरिडानी (Eta Eridani) या आझ़ा (Azha), जिसका बायर नाम η ऍरिडानी (η Eridani, η Eri) है, स्रोतास्विनी तारामंडल में स्थित एक दानव तारा है। यह हमारे सौर मंडल से लगभग 137 प्रकाशवर्ष दूर है। .

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एटा कराइनी तारा

एटा कराइनी (Eta Carinae, η Carinae, η Car), जिसका बायर नाम भी यही है, कराइना तारामंडल में स्थित एक तारकीय मंडल है जिसमें कम-से-कम दो तारे हैं जिनकी मिली-जुली तेजस्विता हमारे सूरज से ५० लाख गुना है। यह हमारे सौर मंडल से ७,५०० प्रकाशवर्ष दूर है। १९वीं शताब्दी में एटा कराइनी का सापेक्ष कांतिमान ४ के आसपास आंका गया था लेकिन सन् १८३७-१८५६ काल में इसकी चमक में अचानक बढ़त होने लगी और ११ से १४ मार्च १८४३ काल में यह आकाश का दूसरे सबसे चमकदार तारा हो गया। इस घटना को महान विस्फोट (Great Eruption) कहा जाता है। इसके बाद यह धीरे-धीरे फीका पड़ने लगा और फिर दूरबीन के बिना दिखना बन्द हो गया। १९४० के बाद इसकी चमक फिर बढ़ने लगी और इसका सापेक्ष कांतिमान २०१४ में ४.५ पहुँच चुका था। पृथ्वी पर एटा कराइनी ३०° दक्षिण अक्षांश (लैटिट्यूड) से दक्षिण में परिध्रुवी है यानि लगभग ३०° उत्तर से ऊपर रहने वाले लोग इसे कभी नहीं देख सकते। .

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एण्ड्रोमेडा गैलेक्सी

एंड्रोमेडा तारामंडल (Andromeda) निहारिका के समान तारामंडल है जो पृथ्वी से दूर एंड्रोमेडा नक्षत्र-मंड़ल में स्थित है। यह मैसीयर ३१, एम३१ या एनजीसी २२४ कहलाता है और अक्सर ग्रंथों में इसका संदर्भ महान एंड्रोमेडा निहारिका के रूप में दिया जाता है। एंड्रोमेडा सर्पिलाकार तारा पुंज, हमारी सबसे निकटतम आकाशगंगा है लेकिन कुल मिलाकर यह सबसे निकटतम तारामंडल नहीं है। इसे अमावस की रात को धब्बे के रूप में देखा जा सकता है, इसे नग्न आंखों से दूर तक के पिंडों को देखा जा सकता है और दूरबीन से शहरी क्षेत्रों में भी देखा जा सकता है। इसके नाम को उस आकाश क्षेत्र से लिया गया है जहां यह प्रकट होता है, एंड्रोमेडा नक्षत्रमंडल (जिसे हिन्दी में देवयानी तारामंडल कहते हैं) और जिसका नाम पौराणिक राजकुमारी एंड्रोमेडा के नाम पर रखा गया है। एंड्रोमेडा स्थानीय समूह का सबसे बड़ा तारापुंज है जिसमें एंड्रोमेंडा तारापुंज, आकाशगंगा तारापुंज, ट्रियांगुलम तारापुंज और ३० अन्य छोटे तारापुंज शामिल हैं। हालांकि, सबसे बड़ा एंड्रोमेडा बहुत विशालकाय नहीं है, क्योंकि हाल ही खोजों से पता चला है कि आकाशगंगा में बहुत से छुपे मामले हैं और जिनके उससे भी विशालकाय स्वरूप हो सकते हैं। स्पिट्जर स्पेस टेलीस्कोप द्वारा २००६ में देखने पर यह पता लगा है कि M३१ में करोड़ों (१०१२) तारे शामिल हैं जिनकी संख्या हमारे तारापुंज के ग्रहों से कई अधिक है जिनकी संख्या लगभग c. २००-४०० अरब है।.

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डस्पीना (उपग्रह)

वरुण ग्रह को दर्शाता है जिसके इर्द-गिर्द डस्पीना परिक्रमा करता है डस्पीना सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से उस से तीसरा सबसे समीप परिक्रमा करने वाला उपग्रह है। डस्पीना का औसत व्यास १५० किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और डस्पीना उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। वरुण के कुछ अन्य अंदरूनी चंद्रमाओं की तरह, डस्पीना भी धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। .

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डायोनी (उपग्रह)

कैसिनी द्वारा ली गयी डायोनी की तस्वीर जिसमें गाढ़े रंग वाला क्षेत्र भी नज़र आ रहा है इस चित्र में डायोनी के एक रुख़ पर बर्फ़ की चट्टानों के महीन बिछे हुए जले नज़र आ रहे हैं शनि के छल्लों के आगे डायोनी का एक दृश्य डायोनी हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का चौथा सब से बड़ा उपग्रह है। पूरे सौर मण्डल में यह १५वा सब से बड़ा उपग्रह है और अपने से छोटे सारे उपग्रहों के मिले हुए द्रव्यमान से बड़ा है। वैसे तो यह अधिकतर पानी की बर्फ़ का बना है, लेकिन टाइटन और ऍनसॅलअडस के बाद शनि का तीसरा सब से घनत्व वाला उपग्रह है, जिस से यह अनुमान लगाया जाता है के इसकी बनवात में आधे से थोड़ा कम (४६%) हिस्सा पत्थरीला है। जिस दिशा में यह परिक्रमा करता है, उस तरफ के रुख़ पर उल्कापिंडों के टकराव से बाने गए काफ़ी प्रहार क्रेटर हैं, जबकि दूसरे रुख़ पर चमकती हुई बर्फ़ की चट्टानों के जले बिछे हुए हैं। डायोनी का व्यास (डायामीटर) लगभग १,१२२ किमी है। तुलना के लिए पृथ्वी के चन्द्रमा का व्यास लगभग ३,४७० किमी है, यानि क़रीब डायोनी से तिगुना। .

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डिस्नोमिया (उपग्रह)

ऍरिस बड़ा गोला है और डिस्नोमिया उसके ऊपर छोटा-सा गोला है, ऊपर बाँहिनी तरफ दूर सूरज चमक रहा है डिस्नोमिया हमारे सौर मण्डल के सब से बड़े ज्ञात बौने ग्रह ऍरिस का इकलौता ज्ञात उपग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "(१३६११९) ऍरिस १ डिस्नोमिया" है। इसका व्यास (डायामीटर) १००-२५० किमी अनुमानित किया जाता है। ऍरिस और डिस्नोमिया दोनों की खोज सन् २००५ में की गयी थी। दोनों ही वरुण-पार वस्तुएँ हैं, यानि वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा से भी बाहार हैं। ये दोनों सूरज से बेहद दूर हैं और काइपर घेरे से भी बाहर एक बिखरे चक्र नाम के क्षेत्र में स्थित हैं। २०११ में ऍरिस और डिस्नोमिया सूरज से ९६.६ खगोलीय इकाई की दूरी पर थे, जो प्लूटो से भी तीन गुना अधिक है। आज की तारीख़ में ऍरिस और डिस्नोमिया हमारे सौर मण्डल की सब से दूरी पर स्थित प्राकृतिक वस्तुएँ हैं। .

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डॉन (अंतरिक्ष यान)

वॅस्टा) के साथ दर्शाया गया है डॉन अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान एजेंसी नासा का एक अंतरिक्ष यान है जिसे 27 सितम्बर 2007 को पृथ्वी से राकेट पर छोड़ा गया था और जिसका ध्येय हमारे सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे के दो प्रमुख सदस्यों पर शोध करना है। यह सीरीस नाम का बौना ग्रह है और वॅस्टा नाम का क्षुद्रग्रह है। 16 जुलाई 2011 को डॉन यान वॅस्टा पहुँच गया और उसके इर्द-गिर्द कक्षा (ऑर्बिट) में दाख़िल होकर उसकी परिक्रमा करने लगा। यह यान 2012 तक यहीं रहेगा और फिर सीरीस की तरफ़ रवाना हो जाएगा जहाँ यह 2015 में पहुँचेगा.

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तारायान

सन् १९७८ में डेडलस परियोजना में प्रस्तावित तारायान का चित्रण तारायान ऐसे अंतरिक्ष यान को कहते हैं जो एक तारे से दुसरे तारे तक यात्रा करने में सक्षम हो। ऐसे यान वर्तमान में केवल काल्पनिक हैं और विज्ञान कथा साहित्य में इनपर आधारित बहुत कहानियाँ मिलती हैं। हक़ीक़त में, मनुष्यों ने सौर मंडल के अन्दर यात्रा कर सकने वाले तो कई यान बनाए हैं लेकिन सूरज से किसी अन्य तारे तक जा सकने वाले कोई यान नहीं बनाए। केवल वॉयेजर प्रथम, वॉयेजर द्वितीय, पायोनीअर १० और पायोनीअर ११ ही सूरज के वातावरण से निकलकर अंतरतारकीय दिक् (इन्टरस्टॅलर स्पेस, यानि तारों के बीच का व्योम) में दाख़िल होने की क्षमता रखने वाले मानवों द्वारा निर्मित यान हैं। लेकिन इनमें स्वचालन शक्ति नहीं है और न ही इनमें कोई मनुष्य यात्रा कर रहे हैं। यह केवल अपनी गति से व्योम में बहते जा रहे हैं, इसलिए इन्हें सही अर्थों में तारायान नहीं कहा जा सकता। सूरज के बाद, पृथ्वी का सब से निकटतम तारा प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी है जो मित्र तारे के बहु तारा मंडल में मिलता है और हमसे ४.२४ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। वॉयेजर प्रथम मानवों द्वारा बनाया गया सब से तेज़ गति का यान है और इसका वेग वर्तमान में प्रकाश की गति का १/१८,००० हिस्सा है (यानि १८ हज़ार गुना कम)। अगर इस गति पर मनुष्य पृथ्वी से प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी जाने का प्रयास करें, तो उन्हें ७२,००० साल लगेंगे। इसलिए यदि मनुष्य कभी कोई तारायान बनाते हैं तो उन्हें नयी तकनीकों का आविष्कार करने की ज़रुरत है जिनकी गति वॉयेजर प्रथम से बहुत अधिक होगी। बिना इसके मनुष्यों का किसी अन्य सौर मंडल में पहुँच पाने का कोई ज्ञात ज़रिया नहीं है। .

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तंग घाटी

अमेरिका के यूटाह राज्य में स्थित ग्लेन कैन्यन एक तंग घाटी है जिसे कॉलोरैडो नदी ने लाखों साल लगाकर तराशा है मोरक्को की तोद्रा वादी, जो तोद्रा नदी द्वारा काटी गयी तंग घाटी है तंग घाटी पहाड़ों या चट्टानों के बीच में स्थित ऐसी घाटी होती है जिसकी चौड़ाई आम घाटी की तुलना में कम हो और जिसकी दीवारों की ढलान भी साधारण घाटियों के मुक़ाबले में अधिक सीधी लगे (यानि धीमी ढलान की बजाए जल्दी ही गहरी होती जाए)। तंग घाटियाँ अक्सर तब बन जाती हैं जब कोई नदी सदियों तक चलती हुई किसी जगह पर धरती में एक घाटी काट दे। भारत में चम्बल नदी की घाटियाँ ऐसी ही तंग घाटियों की मिसालें हैं। .

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थलैसा (उपग्रह)

वरुण ग्रह को दर्शाता है जिसके इर्द-गिर्द थलैसा परिक्रमा करता है थलैसा सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से उस से दूसरा सबसे समीप परिक्रमा करने वाला उपग्रह है। थलैसा का औसत व्यास ८२ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और थलैसा उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। वरुण के कुछ अन्य अंदरूनी चंद्रमाओं की तरह, थलैसा भी धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। .

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द प्लैनेटरी सोसाइटी

द प्लैनेटरी सोसाइटी (The Planetary Society, अर्थ: ग्रहीय समिति) एक अमेरिकी, ग़ैर-सरकारी, ग़ैर-मुनाफ़ाकारी संस्था है जिसका सदस्य कोई भी बन सकता है। यह खगोलशास्त्र, ग्रहीय विज्ञान, और खोज, और इन से सम्बन्धित जन-शिक्षा और राजनैतिक पक्ष-पैरवी के कामों में जुटी हुई है। इसकी स्थापना सन् १९८० में कार्ल सेगन, ब्रूस मर्रे और लुइस फ़्रीडमन ने की थी और सन् २०१५ में इसके १०० देशों से ४०,००० सदस्य थे। द प्लैनेटरी सोसाइटी का लक्ष्य सौर मंडल में खोजकार्य, पृथ्वी-समीप वस्तुओं की खोज व छानबीन और ग़ैर-सांसारिक जीवों की खोज है। .

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दोहरा क्षुद्रग्रह

दोहरा क्षुद्रग्रह (binary asteroid) दो क्षुद्रग्रहों का एक ऐसा मंडल होता है जिसमें वे एक-दूसरे से गुरुत्वाकर्षक आकर्षण से सम्बन्धित हों और दोनों अपने सांझे संहति-केन्द्र (center of mass) के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रहे हों। हमारे सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे में ऐसे कई दोहरे क्षुद्रग्रह देखे गए हैं, और कुछ तिहरे क्षुद्रग्रह भी देखे गए हैं। .

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धनु ए*

धनु ए* (Sagittarius A, Sgr A) हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग के केन्द्र में स्थित एक संकुचित और शक्तिशाली रेडियो स्रोत है। यह धनु ए नामक एक बड़े क्षेत्र का भाग है और आकाश के खगोलीय गोले में धनु तारामंडल में वॄश्चिक तारामंडल की सीमा के पास स्थित है। बहुत से खगोलशास्त्रियों के अनुसार यह एक विशालकाय काला छिद्र है। माना जाता है कि अधिकांश सर्पिल और अंडाकार गैलेक्सियों के केन्द्र में ऐसा एक भीमकाय कालाछिद्र स्थित होता है। धनु ए* और पृथ्वी के बीच खगोलीय धूल के कई बादल हैं जिस कारणवश घनु ए* को प्रत्यक्ष वर्णक्रम में नहीं देखा जा सका है। फिर भी धनु ए* की तेज़ी से परिक्रमा कर रहे ऍस२ (S2) तारे के अध्ययन से धनु ए* के बारे में जानकारी मिल सकी है और उसके आधार पर धनु ए* का विशालकाय कालाछिद्र होने का भरोसा बहुत बढ़ गया है। धनु ए* हमारे सौर मंडल से २६,००० प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है। .

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धातु हाइड्रोजन

बृहस्पति जैसे कुछ गैस दानव ग्रहों के केन्द्रों में धातु हाइड्रोजन है धातु हाइड्रोजन (metallic hydrogen) हाइड्रोजन की ऐसी अवस्था को कहते हैं जब वह भयंकर दबाव में कुचली जाकर अवस्था परिवर्तन (phase transition) करके विकृत हो जाए।, Gabor Kalman, J. Martin Rommel, Krastan Blagoev, Kastan Blagoev, Springer, 1998, ISBN 978-0-306-46031-9,...

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धूमकेतु

हेल-बॉप धुमकेतू २९ मार्च १९९७ में पेजिन, क्रोएशिया में देखा गया धूमकेतु सौरमण्डलीय निकाय है जो पत्थर, धूल, बर्फ और गैस के बने हुए छोटे-छोटे खण्ड होते है। यह ग्रहो के समान सूर्य की परिक्रमा करते है। छोटे पथ वाले धूमकेतु सूर्य की परिक्रमा एक अण्डाकार पथ में लगभग ६ से २०० वर्ष में पूरी करते है। कुछ धूमकेतु का पथ वलयाकार होता है और वो मात्र एक बार ही दिखाई देते है। लम्बे पथ वाले धूमकेतु एक परिक्रमा करने में हजारों वर्ष लगाते है। अधिकतर धूमकेतु बर्फ, कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया तथा अन्य पदार्थ जैसे सिलिकेट और कार्बनिक मिश्रण के बने होते है। .

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धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९

हबल अंतरिक्ष दूरबीन से १७ मई १९९४ को शूमेकर-लेवी ९ के २१ टुकड़ों की तस्वीर बृहस्पति ग्रह के दक्षिणी गोलार्ध पर कुछ टकराव स्थलों पर धब्बे धूमकेतु शूमेकर-लेवी ९ (Comet Shoemaker–Levy 9), जिसका औपचारिक नाम डी/१९९३ ऍफ़२ (D/1993 F2) था, एक धूमकेतु (कोमॅट) था जो जुलाई १९९४ में बृहस्पति ग्रह से टकराकर ध्वस्त हो गया। हमारे सौर मंडल में यह पृथ्वी से असंबंधित खगोलीय वस्तुओं की सबसे पहली देखी गई टक्कर थी, जिस वजह से इसपर समाचारों में भारी चर्चा हुई। दुनिया-भर के खगोलशास्त्रियों ने टकराव से पहले इस धूमकेतु पर नज़रें गाढ़ लीं। टकराव से बृहस्पति के बारे में और उसके अंदरूनी सौर मंडल से मलबा हटाने की प्रक्रियाओं पर और जानकारी मिली। शूमेकर-लेवी ९ की खोज तीन अमेरिकी खगोलशास्त्रियों ने की थी - कैरोलाइन और यूजीन शूमेकर (Caroline और Eugene Shoemaker) तथा डेविड लेवी (David Levy)। उन्होने २४ मार्च १९९३ को इसकी बृहस्पति की परिक्रमा करते हुए तस्वीर उतारी। यह किसी ग्रह की परिक्रमा करते हुआ पहला ज्ञात धूमकेतु था और समझा जाता है कि बृहस्पति ने इसे अपने गुरुत्वाकर्षण से २०-३० साल पहले पकड़ लिया था। हिसाब लगाने पर पता चला कि इसका टूटा-सा स्वरूप इसके जुलाई १९९२ में बृहस्पति के अधिक पास आने से हुए था। उस समय शूमेकर-लेवी ९ की कक्षा (ऑर्बिट) बृहस्पति की रोश सीमा के भीतर आ जाने से बृहस्पति के ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ दिया था। बाद में इसे २ किमी तक के व्यास (डायामीटर) वाले टुकड़ों में देखा गया। यह टुकड़े १९९४ में १६ जुलाई से २२ जुलाई तक बृहस्पति के दक्षिणी गोलार्ध (हेमिसफ़्येर​) से ६० किमी प्रति सैकिंड (यानि २,१६,००० किमी प्रति घंटे) की गति से टकराकर ध्वस्त हो गए। इनसे बृहस्पति के वायुमंडल में गहरी ख़रोंचे बन गई जो महीनो तक दिखाई देती रहीं। पृथ्वी से यह बृहस्पति के महान लाल धब्बे (Great Red Spot) से भी स्पष्ट दिखाई देती थी।, Kenneth R. Lang, Cambridge University Press, 2003, ISBN 978-0-521-81306-8,...

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नियरीड (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी नियरीड की तस्वीर नियरीड सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से तीसरा सबसे बड़ा है। इसकी कभी कोई साफ़ छवि नहीं देखी गयी इसलिए इसका अकार ज्ञात नहीं है, लेकिन इसका औसत व्यास ३४० किमी अनुमानित किया जाता है। .

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न्यू होराइज़न्स

न्यू होराइज़न्स (अंग्रेज़ी: New Horizons, हिंदी अर्थ: "नए क्षितिज") अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्था नासा का एक अंतरिक्ष शोध यान है जो हमारे सौर मंडल के बाहरी बौने ग्रह यम (प्लूटो) के अध्ययन के लिये छोड़ा गया था। इस यान का प्रक्षेपण 19 जनवरी 2006 किया गया था जो नौ वर्षों के बाद 14 जुलाई 2015 को प्लूटो के सबसे नजदीक से होकर गुजरा। यह प्लूटो और उसके पांचों ज्ञात उपग्रहों - शैरन, निक्स, हाएड्रा, स्टायक्स और ऍस/२०११ पी १ (S/2011 P 1) के आँकड़े भेजेगा। इसके बाद अगर कोई अन्य काइपर घेरे की वस्तु देखने योग्य मिलती है तो संभव है की इस यान के द्वारा उसके पास से भी निकलकर जानकारी और तस्वीरें हासिल की जा सकें। न्यू होराइजन्स यान को रॉकेट के ऊपर लगाकर १९ जनवरी २००६ को छोड़ा गया था। ७ अप्रैल २००६ को इसने मंगल ग्रह की कक्षा (ऑरबिट) पार की, २८ फ़रवरी २००७ को बृहस्पति ग्रह की, ८ जून २००८ को शनि ग्रह की और १८ मार्च २०११ को अरुण ग्रह (यूरेनस) की। इसे छोड़ने की गति किसी भी मानव कृत वस्तु से अधिक रही थी - अपने आखरी रॉकेट के बंद होने तक इसकी रफ़्तार १६.२६ किलोमीटर प्रति सैकिंड पहुँच चुकी थी। .

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नौवां ग्रह

नौवां ग्रह (Planet Nine) एक सम्भावित ग्रह है जो शायद हमारे सौर मंडल के बाहरी भाग में काइपर घेरे से भी आगे स्थित हो। कई खगोलशास्त्रियों ने कुछ वरुण-पार वस्तुओं की विचित्र कक्षाओं (अरबिटों) का अध्ययन कर के यह प्रस्ताव दिया है कि इन कक्षाओं के पीछे सूरज से सुदूर क्षेत्र में परिक्रमा करते हुए एक बड़े आकार के ग्रह का गुरुत्वाकर्षक प्रभाव ही हो सकता है। उनका कहना है कि यह एक महापृथ्वी श्रेणी का ग्रह होगा और इसका द्रव्यमान (मास) हमारी पृथ्वी से लगभग १० गुना अधिक हो सकता है। इसके पास हाइड्रोजन और हीलियम का बना एक घना वायुमंडल हो सकता है और सम्भव है कि यह इतना दूर हो कि इसे सूरज की एक परिक्रमा करने के लिये १५,००० से २०,००० वर्ष लग जाएँ। .

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नैअड (उपग्रह)

वरुण ग्रह को दर्शाता है जिसके इर्द-गिर्द नैअड परिक्रमा करता है) नैअड सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से उस से सबसे समीप परिक्रमा करने वाला उपग्रह है। नैअड का औसत व्यास ६६ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और नैअड उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। वरुण के कुछ अन्य अंदरूनी चंद्रमाओं की तरह, नैअड भी धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। फ़िलहाल नैअड वरुण के वायुमंडल के ऊपरी बादलों से २३,५०० किमी ऊपर उस ग्रह की परिक्रमा कर रहा है। .

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नीसो (उपग्रह)

नीसो का एक काल्पनिक चित्रण नीसो सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के उपग्रहों में एक बाहरी कक्षा में परिक्रमा करने वाला उपग्रह माना जाता है। नीसो का औसत व्यास लगभग ६० किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। नीसो वरुण से क़रीब ४.९३ करोड़ किमी की दूरी पर उसकी परिक्रमा करता है - यह इतना दूर है के नीसो को वरुण का एक चक्कर लेने में २६ साल से भी अधिक लग जाते हैं। नीसो का परिक्रमा करने का ढंग और उसकी परिक्रमा की कक्षा वरुण के एक अन्य चन्द्रमा (सैमअथी) से इतनी मिलती-जुलती है के कई वैज्ञानिकों का कहना है के यह सैमअथी और नीसो कभी एक ही बड़े चन्द्रमा के दो हिस्से हैं जो किसी कारण से अतीत में टूट गया। सैमअथी और नीसो वरुण से जितनी दूरी पर हैं उतनी दूरी पर हमारे सौर मण्डल में कोई भी अन्य उपग्रह अपने ग्रह से नहीं है। .

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परमाणुवाद

परमाणुवाद (Atomic theory) के विकास में अनेक विचारकों ने भाग लिया है। प्राचीन विचारकों में डिमाक्राइटस और कणाद के नाम और आधुनिक विचारकों में न्यूटन, रदरफोर्ड और हाइसनबर्ग के नाम विशेष महत्व के हैं। डिमाक्राइटस के अनुसार परमाणु परिमाण, आकार और स्थान में एक दूसरे से भिन्न हैं, परंतु इनमें गुणभेद नहीं। संयोग वियोग में गति आवश्यक है और गति अवकाश में ही हो सकती है। इसलिये परमाणुओं के अतिरिक्त अवकाश भी सत्ता का अंतिम अंश है। बोझिल होने के कारण परमाणु नीचे गिरते हैं; भारी परमाणु अधिक वेग से गिरते हैं और नीचे के हलके परमाणुओं से आ टकराते हैं। इस तरह परमाणुओं में संयोग होता है। न्यूटन ने परमाणुओं को भारी, ठोस और एकरस माना और उनमें गुणभेद को भी स्वीकार किया। परमाणु की सरलता चिरकाल तक मान्य रही; नवीन भौतिकी ने इसे अमान्य ठहराया है। रदरफोर्ड के अनुसार परमाणु एक नन्हा सा सौरमंडल है, जिसमें अनेक इलेक्ट्रान अत्यधिक वेग से केंद्र के गिर्द चक्कर लगा रहे हैं। हाइसनवर्ग का अनिर्णीतता का नियम एक और पुराने विचार को ठोकर लगाता है, इस नियम के अनुसार परमाणुओं के समूहों की दशा में नियम का शासन प्रतीत होता है, परंतु व्यक्तिगत क्रिया में परमाणु नियम की उपेक्षा करते हैं; इनकी गति अनिर्णीत है। कणाद ने परमाणुओं में गुणभेद देखा। भौतिक द्रव्यों में गुणभेद है और इस भेद के कारण हमें रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द का बोध होता है। संभवत:, सवेदनाओं के भेद ने उसे परमाणुओं में गुणभेद देखने को प्रेरणा की। नवीन विज्ञान कहता है कि कुछ तत्वों को छोड़ अन्य तत्वों के परमाणु अकेले नहीं मिलते, अपितु २, ३, ४ के समूहों में मिलते हैं। कणाद के विचार में परमाणुओं का मिलकर भी "चतुरणुक बनाना सृष्टि में मौलिक घटना है, इस संयोग का टूटना ही संहार या प्रलय है। .

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पलायन वेग

कक्षाओं में पृथ्वी की परिक्रमा करने लगती हैं, केवल E की गति पलायन वेग से अधिक थी और वह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षक जकड़ तोड़कर अंतरिक्ष में निकल जाती है भौतिकी में किसी वस्तु (जैसे की पृथ्वी) का पलायन वेग उस वेग को कहते हैं जिसपर यदि कोई दूसरी वस्तु (जैसे की कोई रॉकेट) पहली वस्तु से रवाना हो तो उसके गुरुत्वाकर्षण की जकड़ से बाहर पहुँच सकती है। यदि दूसरी वस्तु की गति पलायन वेग से कम हो तो वह या तो पहली वस्तु के गुरुत्वाकर्षक क्षेत्र में ही रहती है - या तो वह वापस आकर पहली वस्तु पर गिर जाती है या फिर उसके गुरुत्व क्षेत्र में सीमित रहकर किसी कक्षा में उसकी परिक्रमा करने लगती है। .

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पायोनियर कार्यक्रम

१९७१ में निर्मित होता हुआ पायोनियर १० यान पायोनियर कार्यक्रम संयुक्त राज्य अमेरिका के अंतरिक्ष शोध यानों की शृंखला थी जिसने हमारे सौर मंडल के कुछ ग्रहों पर अनुसन्धान किया। वैसे तो इस कार्यक्रम में बहुत से यान और रॉकेट शामिल थे लेकिन इनमें से पायोनियर १० और पायोनियर ११ यान सबसे प्रसिद्ध हैं जिन्होंने मानव इतिहास में सबसे पहले बृहस्पति ग्रह और शनि ग्रह के पास से गुज़रकर उन ग्रहों की तस्वीरें वापस पृथ्वी भेजीं।, Joseph A. Angelo, Infobase Publishing, 2007, ISBN 978-0-8160-5773-3 .

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पियेर सिमों लाप्लास

पियेर सिमों लाप्लास पियेर सिमों लाप्लास (Pierre Simon Laplace, १७४९ ई. - १८२७ ई.) फ्रांसीसी गणितज्ञ, भौतिकशास्त्री तथा खगोलविद थे। लाप्लास का जन्म २८ मार्च १७४९ ई., को एक दरिद्र किसान के परिवार में हुआ। इनकी शिक्षा धनी पड़ोसियों की सहायता से हुई। .

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पुंगा सागर

पुंगा सागर (Punga Mare) सौर मंडल के शनि ग्रह के सबसे बड़े चन्द्रमा टाइटन के उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र में स्थित एक झील है। यह टाइटन पर तीसरी सबसे बड़ी ज्ञात झील है (पहला स्थान क्रैकन सागर और दूसरा स्थान लाइजीया सागर का है)। टाइटन की अन्य झीलों की तरह इसमें भी पानी की जगह मीथेन जैसे हाइड्रोकार्बन द्रवावस्था में भरे हैं।, Patrick Moore, pp.

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प्रहार क्रेटर

पृथ्वी के चन्द्रमा की सतह पर स्थित टाएको क्रेटर एक प्रहार क्रेटर है प्रहार क्रेटर वह प्राकृतिक या कृतिम क्रेटर या गोल आकार के गड्ढे होते हैं जो किसी तेज़ रफ़्तार से चलती हुई वस्तु या प्रक्षेप्य (प्रोजॅक्टाइल) के किसी बड़ी वस्तु पर टकराने से बन जाये। खगोलशास्त्र में ऐसे क्रेटर हमारे सौर मण्डल के कई ग्रहों, उपग्रहों और क्षुद्रग्रहों पर उल्कापिंडों के गिरने से बन जाते हैं। मिसाल के तौर पर भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित लोनार झील ऐसे ही एक प्रहार क्रेटर में पानी भर जाने से बनी है। हमारे चन्द्रमा और अन्य ग्रहों और उपग्रहों पर ऐसे कई क्रेटर हैं। इन क्रेटरों का सृजन ज्वालामुखीय क्रेटरों से भिन्न होता है जो किसी ज्वालामुखी के फटने से बन जाते हैं। प्रहार क्रेटरों की दीवारें इर्द-गिर्द की ज़मीन की सतह से ऊंची होती हैं। कुछ प्रहार क्रेटर तो देखने में एक साधारण कटोरी से लगते हैं लेकिन दुसरे क्रेटरों में एक के अन्दर एक संकेंद्रिक (कॉन्सॅन्ट्रिक) गोले बन जाते हैं। .

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प्राग सम्मेलन

प्राग सम्मेलन, सौरमंडल में ग्रहों को नई परिभाषा देने के लिए 15-24 अगस्त, 2006 को चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा एक आयोजित किया गया एक सम्मेलन था। इस सम्मेलन में कुल 75 देशों के 2500 से अधिक खगोलविदों ने भाग लिया। सम्मेलन में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसके द्वारा प्लूटो को खगोलविदों ने ग्रहों के परिवार से अलग कर दिया और उसे बौने ग्रह की श्रेणी में रखा गया, जिससे ग्रहों की संख्या 9 से घटकर 8 रह गयी। यह सम्मेलन 10 दिन तक चला। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इसे अपमानजनक बताते हुए इसका विरोध किया था। .

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प्राकृतिक उपग्रह

टाइटन) इतना बड़ा है के उसका अपना वायु मण्डल है - आकारों की तुलना के लिए पृथ्वी भी दिखाई गई है प्राकृतिक उपग्रह या चन्द्रमा ऐसी खगोलीय वस्तु को कहा जाता है जो किसी ग्रह, क्षुद्रग्रह या अन्य वस्तु के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता हो। जुलाई २००९ तक हमारे सौर मण्डल में ३३६ वस्तुओं को इस श्रेणी में पाया गया था, जिसमें से १६८ ग्रहों की, ६ बौने ग्रहों की, १०४ क्षुद्रग्रहों की और ५८ वरुण (नॅप्ट्यून) से आगे पाई जाने वाली बड़ी वस्तुओं की परिक्रमा कर रहे थे। क़रीब १५० अतिरिक्त वस्तुएँ शनि के उपग्रही छल्लों में भी देखी गई हैं लेकिन यह ठीक से अंदाज़ा नहीं लग पाया है के वे शनि की उपग्रहों की तरह परिक्रमा कर रही हैं या नहीं। हमारे सौर मण्डल से बाहर मिले ग्रहों के इर्द-गिर्द अभी कोई उपग्रह नहीं मिला है लेकिन वैज्ञानिकों का विशवास है के ऐसे उपग्रह भी बड़ी संख्या में ज़रूर मौजूद होंगे। जो उपग्रह बड़े होते हैं वे अपने अधिक गुरुत्वाकर्षण की वजह से अन्दर खिचकर गोल अकार के हो जाते हैं, जबकि छोटे चन्द्रमा टेढ़े-मेढ़े भी होते हैं (जैसे मंगल के उपग्रह - फ़ोबस और डाइमस)। .

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प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी

प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी या मित्र सी, जिसका बायर नाम α Centauri C या α Cen C है, नरतुरंग तारामंडल में स्थित एक लाल बौना तारा है। हमारे सूरज के बाद, प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी हमारी पृथ्वी का सब से नज़दीकी तारा है और हमसे ४.२४ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर है।, Pierre Kervella and Frederic Thevenin, ESO, 15 मार्च 2003 फिर भी प्रॉक्सिमा सॅन्टौरी इतना छोटा है के बिना दूरबीन के देखा नहीं जा सकता।, Govert Schilling, स्प्रिंगर, 2011, ISBN 978-1-4419-7810-3,...

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प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी

प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी (Proxima Centauri b), जिसे केवल प्रॉक्सिमा बी (Proxima Centauri b) भी कहते हैं, प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी नामक लाल बौने तारे के वासयोग्य क्षेत्र में उस तारे की परिक्रमा करता हुआ एक ग़ैर-सौरीय ग्रह (यानि बहिर्ग्रह) है। हमारे सौर मंडल से लगभग ४.२ प्रकाशवर्ष (यानि एक ट्रिलियन या दस खरब किलोमीटर) दूर स्थित प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी तारा सूरज के बाद पृथ्वी का सबसे समीपी तारा है और मित्र तारे (उर्फ़ अल्फ़ा सेन्टॉरी, Alpha Centauri) के त्रितारा मंडल में से एक है और हमारे अपने सौर मंडल के बाद सबसे समीपी ग्रहीय मंडल है। पृथ्वी में ऊपर देखने पर मित्र तारा आकाश के नरतुरंग तारामंडल क्षेत्र में दिखता है। प्रॉक्सिमा बी ग्रह मिलने यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला ने अगस्त २०१६ में की थी। .

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प्रोटिअस (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी प्रोटिअस की तस्वीर प्रोटिअस सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से दूसरा सबसे बड़ा है। प्रोटिअस का औसत व्यास ४०० किमी है और इसका अकार थोड़ा बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इसकी ज़मीन उबड़-खाबड़ है और इसपर कुछ ऊँचाइयाँ २० किमी तक की देखी गयी हैं। उल्का-पिंडों के गिरने से इस पर कई गढढे भी हैं और ऐसे सब से बड़े गढढे की चौड़ाई २०० किमी है। इस उपग्रह का रंग गढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और प्रोटिअस उसी का नतीजा है। .

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प्लूटो (बौना ग्रह)

यम या प्लूटो सौर मण्डल का दुसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है (सबसे बड़ा ऍरिस है)। प्लूटो को कभी सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का अकार और द्रव्यमान काफ़ी छोटा है - इसका आकार पृथ्वी के चन्द्रमा से सिर्फ़ एक-तिहाई है। सूरज के इर्द-गिर्द इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बेढंगी है - यह कभी तो वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा के अन्दर जाकर सूरज से ३० खगोलीय इकाई (यानि ४.४ अरब किमी) दूर होता है और कभी दूर जाकर सूर्य से ४५ ख॰ई॰ (यानि ७.४ अरब किमी) पर पहुँच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह अधिकतर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ़, पानी की बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। प्लूटो को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करते हुए २४८.०९ वर्ष लग जाते हैं। .

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पृथ्वी द्रव्यमान

पृथ्वी के द्रव्यमान की नेप्चून के द्रव्यमान से तुलना. पृथ्वी द्रव्यमान (M⊕), द्रव्यमान की वह इकाई है जिसका मान पृथ्वी के द्रव्यमान के बराबर है | १ M⊕ .

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पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी के इतिहास के युगों की सापेक्ष लंबाइयां प्रदर्शित करने वाले, भूगर्भीय घड़ी नामक एक चित्र में डाला गया भूवैज्ञानिक समय. पृथ्वी का इतिहास 4.6 बिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी ग्रह के निर्माण से लेकर आज तक के इसके विकास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और बुनियादी चरणों का वर्णन करता है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के इतिहास की प्रमुख घटनाओं को स्पष्ट करने में अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की आयु ब्रह्माण्ड की आयु की लगभग एक-तिहाई है। उस काल-खण्ड के दौरान व्यापक भूगर्भीय तथा जैविक परिवर्तन हुए हैं। .

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पृथ्वी-समीप वस्तु

४३३ इरोस, एक पृथ्वी-समीप वस्तु ४१७९ तूतातिस, एक ४ किमी लम्बा पृथ्वी-समीप क्षुद्रग्रह पृथ्वी-समीप वस्तु (Near-Earth object) हमारे सौर मंडल में मौजूद ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जो सूरज के इर्द-गिर्द ऐसी कक्षा (ऑरबिट) में परिक्रमा कर रही हो जो उसे समय-समय पर पृथ्वी के समीप ले आती हो। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की परिभाषा के अनुसार ऐसी वस्तुओं को ही पृथ्वी-समीप कहा जाता है जो अपनी परिक्रमा-पथ में किसी बिन्दु पर सूरज से १.३ खगोलीय ईकाई की दूरी या उस से भी समीप आती हो। सन् २०१५ तक ज्ञात​ पृथ्वी-समीप वस्तुओं की सूची में १०,००० से अधिक पृथ्वी-समीप क्षुद्रग्रह (ऐस्टेरोयड), पृथ्वी-समीप धूमकेतु, सूरज की परिक्रमा करते कई अंतरिक्ष यान और पृथ्वी से दिख सकने वाले उल्का शामिल हैं। वैज्ञानिक मत अब यह बात स्वीकारता है कि ऐसी पृथ्वी-समीप वस्तुएँ हमारे ग्रह से अरबों वर्षों से टकराती आई हैं और उनके इन प्रहारों से पृथ्वी पर अक्सर महान बदलाव आएँ हैं। .

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पैलस (क्षुद्रग्रह)

हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई पैलस की तस्वीर पैलस, जिसका औपचारिक नाम 2 पैलस (2 Pallas) है, सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे में स्थित एक क्षुद्रग्रह है। इसका व्यास (डायामीटर) 530 से 565 किलोमीटर है, यानि अकार में यह वॅस्टा के बराबर है या उस से थोड़ा बड़ा है। फिर भी वॅस्टा से घनत्व कम होने के कारण इसका द्रव्यमान (मास) वॅस्टा से लगभग 20% कम है। माना जाता है यह सौर मण्डल की सब से बड़ी वस्तु है जिसे उसके अपने गुरुत्वाकर्षण बल ने गोल नहीं कर दिया है। सूरज के इर्द-गिर्द परिक्रमा करते हुए इसकी कक्षा (ऑर्बिट) थोड़ी बेढंगी है, जिस वजह से इसके पास शोध यान भेजने में विशेष कठिनाई है। .

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फ़ुमलहौत बी

धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) फ़ुमलहौत तारे के इर्द-गिर्द की धूल में फ़ुमलहौत बी का एक काल्पनिक चित्र फ़ुमलहौत बी पृथ्वी से २५ प्रकाश-वर्ष दूर स्थित एक ग़ैर-सौरीय ग्रह है जो दक्षिण मीन तारामंडल के फ़ुमलहौत तारे की परिक्रमा कर रहा है। इसे २००८ में हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीरों के ज़रिये ढूँढा गया था। यह अपने तारे की ११५ खगोलीय इकाई की दूरी पर परिक्रमा कर रहा है। .

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बर्नार्ड-तारा

बारनर्ड का तारा अपना आकाश में स्थान बदलता रहता है - यह तस्वीर उसका हर पाँचवे साल का स्थान दर्शा रहा है बारनर्ड का तारा सर्पधारी तारामंडल में नज़र आने वाला एक बहुत ही कम द्रव्यमान (मास) वाला लाल बौना तारा है। यह पृथ्वी से लगभग 6 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है। मित्र तारे के मंडल के तीन तारों के बाद बारनर्ड का तारा ही पृथ्वी का सब से समीपी तारा है। यह एक M4 श्रेणी का तारा है और पृथ्वी से इसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) को 9। 54 मैग्नीट्यूड पर मापा गया है। आकाश में यह अपना स्थान बदलता रहता है इसलिए इसे "बारनर्ड का भागता तारा" भी कहते हैं। .

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बहिर्ग्रह

धूल के बादल में फ़ुमलहौत बी ग्रह परिक्रमा करता हुआ पाया गया (हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई तस्वीर) बहिर्ग्रह (exoplanet) या ग़ैर-सौरीय ग्रह (extrasolar planet, ऍक्स्ट्रासोलर प्लैनॅट) ऐसे ग्रह को कहा जाता है जो हमारे सौर मण्डल से बाहर स्थित हो। सन् १९९२ तक खगोलशास्त्रियों को एक भी ग़ैर-सौरीय ग्रह के अस्तित्व का ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके बाद बहुत से ऐसे ग्रह मिल चुके हैं। २४ मई २०११ तक ५५२ ग़ैर-सौरीय ग्रह ज्ञात हो चुके थे। क्योंकि इनमें से अधिकतर को सीधा देखने के लिए तकनीकें अभी विकसित नहीं हुई हैं, इसलिए सौ प्रतिशत भरोसे से नहीं कहा जा सकता के वास्तव में यह सारे ग्रह मौजूद हैं, लेकिन इनके तारों पर पड़ रहे गुरुत्वाकर्षक प्रभाव और अन्य लक्षणों से वैज्ञानिक इनके अस्तित्व के बारे में विश्वस्त हैं। अनुमान लगाया जाता है के सूरज की श्रेणी के लगभग १०% तारों के इर्द-गिर्द ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं, हालांकि यह संख्या उस से भी अधिक हो सकती है। कॅप्लर अंतरिक्ष क्षोध यान द्वारा एकत्रित जानकारी के बूते पर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है के आकाशगंगा (हमारी गैलेक्सी) में कम-से-कम ५० अरब ग्रहों के होने की सम्भावना है। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जनवरी २०१३ में अनुमान लगाया कि आकाशगंगा में इस अनुमान से भी दुगने, यानि १०० अरब, ग्रह हो सकते हैं। .

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बहिर्ग्रह खोज की विधियाँ

खगोलिकी में कोई भी ग्रह दूर से देखे जाने पर अपने पितृ तारे (जिसके इर्द-गिर्द वह कक्षा या ऑरबिट में हो) की कांति के सामने लगभग अदृश्य होता है। उदाहरण के लिए हमारा सूर्य हमारे सौर मंडल के किसी भी ग्रह से एक अरब गुना से भी अधिक चमक रखता है। वैसे भी ग्रहों की चमक केवल उनके द्वारा अपने पितृतारे के प्रकाश के प्रतिबिम्ब से ही आती है और पितृग्रह की भयंकर चमके के आगे धुलकर ग़ायब-सी हो जाती है। यही कारण है कि बहुत ही कम मानव-अनवेषित बहिर्ग्रह (यानि हमारे सौर मंडल से बाहर स्थित ग्रह) सीधे उनकी छवि देखे जाने से पाए गए हैं। इसकी बजाय लगभग सभी ज्ञात बहिर्ग्रह परोक्ष विधियों से ढूंढे गए हैं, और खगोलज्ञों ऐसी विधियों का तीव्रता से विस्तार कर रहे हैं।Stuart Shaklan.

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बहिर्ग्रहशास्त्र

बहिर्ग्रहशास्त्र (exoplanetology) या बहिर्ग्रह विज्ञान (exoplanetary science) ग़ैर-सौरीय ग्रहों (बहिर्ग्रहों) के अध्ययन को कहते हैं, यानि वह ग्रह जो हमारे सौर मंडल में नहीं हैं और सूरज के अलावा किसी अन्य तारे की परिक्रमा कर रहे हैं। सितम्बर २०१६ तक २,६३५ ग्रहीय मंडलों में ३,५१८ बहिर्ग्रह मिल चुके थे (जिनमें से ५९५ बहुग्रहीय मंडलों में थे) और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। .

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बिखरा चक्र

डिस्नोमिआ भी देखा जा सकता है बिखरा चक्र या स्कैटर्ड डिस्क (अंग्रेज़ी:scattered disk) हमारे सौर मण्डल का एक बाहरी क्षेत्र है। यह वरुण-पार वस्तुओं के बड़े क्षेत्र का एक उपक्षेत्र है। इसमें बहुत से बर्फ़ीले हीन ग्रह हैं लेकिन यह अधिकतर एक-दुसरे से काफ़ी दूर हैं जिस से यह क्षेत्र बहुत ख़ाली सा है। माना जाता है के इनमें से कुछ हमारे सौर मण्डल के गैस दानव ग्रहों के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से इस क्षेत्र में फेंके गए हैं। इनमें से बहुत सी वस्तुएँ सूरज की परिक्रमा बड़ी टेढ़ी-मेढ़ी कक्षाओं में कर रहे हैं, जो इस बात का संकेत है के इन्हें किसी बड़े ग्रह ने अपने गुरुत्वाकर्षण के थपेड़ों से इन्हें गुलेल की तरह यहाँ फेंक दिया है। यह वस्तुएँ परिक्रमा करते हुए कभी तो सूरज से ३५ खगोलीय इकाई की दूरी पर पहुँच जाती हैं और फिर कभी १०० ख॰ई॰ से भी दूर चली जाती हैं। ऍरिस, जो सौर मण्डल का सब से बड़ा बौना ग्रह है, बिखरे चक्र की सब से बड़ी ज्ञात वस्तु भी है। .

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बुध (ग्रह)

बुध (Mercury), सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन है। पृथ्वी से देखने पर, यह अपनी कक्षा के ईर्दगिर्द 116 दिवसो में घूमता नजर आता है जो कि ग्रहों में सबसे तेज है। गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमंडल चुंकि करीब करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सर्वाधिक उतार-चढाव महसूस करता है, जो कि 100 K (−173 °C; −280 °F) रात्रि से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के समय 700 K (427 °C; 800 °F) तक है। वहीं ध्रुवों के तापमान स्थायी रूप से 180 K (−93 °C; −136 °F) के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है (एक डीग्री का करीब), परंतु कक्षीय विकेन्द्रता सर्वाधिक है। बुध ग्रह पर की तुलना में सूर्य से करीब 1.5 गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पडी है तथा बिलकुल हमारे चन्द्रमा जैसी नजर आती है, जो इंगित करता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो वर्षों तक मृतप्राय रहा है। बुध को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के समान मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकडा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी स्थिर खडे सितारे के सापेक्ष देखने पर, यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धूरी के ईर्दगिर्द ठीक तीन बार घूम लेता है। सूर्य की ओर से, किसी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है, देखने पर यह हरेक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है। इस कारण बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस हरेक दो वर्षों का देखेगा। बुध की कक्षा चुंकि पृथ्वी की कक्षा (शुक्र के भी) के भीतर स्थित है, यह पृथ्वी के आसमान में सुबह में या शाम को दिखाई दे सकता है, परंतु अर्धरात्रि को नहीं। पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चन्द्रमा की तरह कलाओं के सभी रुपों का प्रदर्शन करता है। हालांकि बुध ग्रह बहुत उज्जवल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देख जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है। .

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ब्रह्माण्ड किरण

ब्रह्माण्डीय किरण का उर्जा-स्पेक्ट्रम ब्रह्माण्ड किरणें (cosmic ray) अत्यधिक उर्जा वाले कण हैं जो बाहरी अंतरिक्ष में पैदा होते हैं और छिटक कर पृथ्वी पर आ जाते हैं। लगभग ९०% ब्रह्माण्ड किरण (कण) प्रोटॉन होते हैं; लगभग १०% हिलियम के नाभिक होते हैं; तथा १% से कम ही भारी तत्व तथा इलेक्ट्रॉन (बीटा मिनस कण) होते हैं। वस्तुत: इनको "किरण" कहना ठीक नहीं है क्योंकि धरती पर पहुँचने वाले ब्रह्माण्डीय कण अकेले होते हैं न कि किसी पुंज या किरण के रूप में। .

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बृहस्पति (ग्रह)

बृहस्पति सूर्य से पांचवाँ और हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक गैस दानव है जिसका द्रव्यमान सूर्य के हजारवें भाग के बराबर तथा सौरमंडल में मौजूद अन्य सात ग्रहों के कुल द्रव्यमान का ढाई गुना है। बृहस्पति को शनि, अरुण और वरुण के साथ एक गैसीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन चारों ग्रहों को बाहरी ग्रहों के रूप में जाना जाता है। यह ग्रह प्राचीन काल से ही खगोलविदों द्वारा जाना जाता रहा है तथा यह अनेकों संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों के साथ जुड़ा हुआ था। रोमन सभ्यता ने अपने देवता जुपिटर के नाम पर इसका नाम रखा था। इसे जब पृथ्वी से देखा गया, बृहस्पति -2.94 के सापेक्ष कांतिमान तक पहुंच सकता है, छाया डालने लायक पर्याप्त उज्जवल, जो इसे चन्द्रमा और शुक्र के बाद आसमान की औसत तृतीय सर्वाधिक चमकीली वस्तु बनाता है। (मंगल ग्रह अपनी कक्षा के कुछ बिंदुओं पर बृहस्पति की चमक से मेल खाता है)। बृहस्पति एक चौथाई हीलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है और इसका भारी तत्वों से युक्त एक चट्टानी कोर हो सकता है।अपने तेज घूर्णन के कारण बृहस्पति का आकार एक चपटा उपगोल (भूमध्य रेखा के पास चारों ओर एक मामूली लेकिन ध्यान देने योग्य उभार लिए हुए) है। इसके बाहरी वातावरण में विभिन्न अक्षांशों पर कई पृथक दृश्य पट्टियां नजर आती है जो अपनी सीमाओं के साथ भिन्न भिन्न वातावरण के परिणामस्वरूप बनती है। बृहस्पति के विश्मयकारी 'महान लाल धब्बा' (Great Red Spot), जो कि एक विशाल तूफ़ान है, के अस्तित्व को १७ वीं सदी के बाद तब से ही जान लिया गया था जब इसे पहली बार दूरबीन से देखा गया था। यह ग्रह एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र और एक धुंधले ग्रहीय वलय प्रणाली से घिरा हुआ है। बृहस्पति के कम से कम ६४ चन्द्रमा है। इनमें वो चार सबसे बड़े चन्द्रमा भी शामिल है जिसे गेलीलियन चन्द्रमा कहा जाता है जिसे सन् १६१० में पहली बार गैलीलियो गैलिली द्वारा खोजा गया था। गैनिमीड सबसे बड़ा चन्द्रमा है जिसका व्यास बुध ग्रह से भी ज्यादा है। यहाँ चन्द्रमा का तात्पर्य उपग्रह से है। बृहस्पति का अनेक अवसरों पर रोबोटिक अंतरिक्ष यान द्वारा, विशेष रूप से पहले पायोनियर और वॉयजर मिशन के दौरान और बाद में गैलिलियो यान के द्वारा, अन्वेषण किया जाता रहा है। फरवरी २००७ में न्यू होराएज़न्ज़ प्लूटो सहित बृहस्पति की यात्रा करने वाला अंतिम अंतरिक्ष यान था। इस यान की गति बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण का इस्तेमाल कर बढाई गई थी। इस बाहरी ग्रहीय प्रणाली के भविष्य के अन्वेषण के लिए संभवतः अगला लक्ष्य यूरोपा चंद्रमा पर बर्फ से ढके हुए तरल सागर शामिल हैं। .

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बृहस्पति का वायुमंडल

बृहस्पति पर सन् २००० में बादल प्रतिमान. बृहस्पति का वायुमंडल सौरमंडल में सबसे बड़ा ग्रहीय वायुमंडल है। एक मोटे सौर अनुपात में यह मुख्य रूप से आणविक हाइड्रोजन और हीलियम से बना है; अन्य रासायनिक यौगिकों की केवल छोटी मात्रा मौजूद हैं, जिसमें मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड और जल शामिल हैं। हालांकि, ऐसा माना जाता है कि पानी वायुमंडल की गहराई में मौजूद है, इसके सीधे मापन की संभावना बहुत कम है। बृहस्पति के वायुमंडल में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर और अक्रिय गैस की प्रचुरता लगभग तीन कारक के सौर मूल्यों से अधिक है बृहस्पति के वायुमंडल में एक स्पष्ट न्यूनतम सीमा का अभाव है और ग्रह के अंदरूनी तरल पदार्थ में धीरे-धीरे परिवर्तन होता है। निम्नतम से लेकर उच्चत्तर, वायुमंडलीय परतें क्रमशः क्षोभ मंडल, समताप मंडल, तापमंडल और बहिर्मंडल हैं। प्रत्येक परत की विशेषता तापमान ढलान है। निम्नतम परत यानि क्षोभ मंडल, बादलों और कुंहरों की एक जटिल प्रणाली है, जो अमोनिया, अमोनियम हाइड्रोसल्फाइड और पानी की परतों से बना है। बृहस्पति के सतह पर दिखाई देने वाले अमोनिया के ऊपरी बादल भूमध्यरेखा के समानांतर एक दर्जन क्षेत्रीय धारीयों में एकीकृत हुए है और यह शक्तिशाली आंचलिक वायुमंडलीय प्रवाहों (वायु) से घिरे हुए है। रंग में एकांतर धारियाँ: गहरी धारीयों को पट्टियां कहा जाता है, जबकि हल्की धारीयों को क्षेत्र कहा जाता है। क्षेत्र, जो पट्टियों से ठन्डे होते है, उमड़ने के अनुरूप होते है, जबकि पट्टियाँ उतरती हवा की निशानी है | क्षेत्रों के हल्के रंग का परिणाम अमोनिया बर्फ से माना जाता है, जबकि पट्टियाँ स्वयं को गहरे से गहरा रंग किससे देती है यह निश्चितता के साथ नहीं ज्ञात हुआ है। धारीदार संरचना और प्रवाहों की उत्पत्तियों की अच्छी समझ नहीं हैं, हालांकि दो मॉडल मौजूद हैं: उथला मॉडल मानता है कि वे सतही घटना है जो एक स्थिर आंतरिक भाग ढंकती है, गहरे मॉडल में, धारियाँ और प्रवाहें बृहस्पति के आणविक हाइड्रोजन के आवरण में गहरी परिसंचरण की महज सतही अभिव्यक्तियां है, जो अनेकों लठ्ठों में एकत्रित हुए है। बृहस्पति वायुमंडल, एक विस्तृत श्रृंखला की सक्रिय घटना सहित धारी अस्थिरता, भेंवर (चक्रवात और प्रतिचक्रवात) तूफान और बिजली प्रदर्शित करता है। भेंवर बड़े लाल, सफेद या भूरे रंग के धब्बों (अंडो) के रूप में खुद को प्रकट करते हैं। सबसे बड़े दो लाल धब्बे ग्रेट रेड स्पॉट (GRS) और ओवल बीए हैं। ये दोनों और ​​अन्य अधिकतर बड़े धब्बे प्रतिचक्रवातीय है। छोटे चक्रवात सफेद हो जाते हैं। भेंवर गहराई के साथ अपेक्षाकृत उथले संरचनाओं के माने जाते है, कई सौ किलोमीटर से अधिक नहीं। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित GRS, सौरमंडल में सबसे बड़ा ज्ञात भंवर है। यह कई पृथ्वीयों को निगल गया है और कम से कम तीन सौ सालों के लिए अस्तित्व में हो सकता है। GRS के दक्षिण में स्थित ओवल बीए, GRS की एक तिहाई आकार का एक लाल धब्बा है जो सन् २००० में तीन सफेद अंडो के विलय से बना था। बृहस्पति पर शक्तिशाली तूफान है और यह वायुमंडल में नम संवहन का एक परिणाम हैं जो पानी के वाष्पीकरण और संघनन से जुड़ा हुआ है। वे हवा के मजबूत उर्ध्व गति के स्थल रहे हैं, जो उज्ज्वल और घने बादलों की रचना का नेतृत्व करते है। तूफ़ान मुख्यतः पट्टी क्षेत्रों में बनते है। बृहस्पति पर बिजली की गरज, पृथ्वी पर की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं। हालांकि, बिजली की गतिविधि का औसत स्तर पृथ्वी पर की तुलना में कम होता है। .

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बृहस्पति के प्राकृतिक उपग्रह

कलिस्टो हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति के 67 ज्ञात उपग्रह हैं जिनकी परिक्रमा की कक्षाएँ परखी जा चुकी हैं और स्थाई पायी गयी हैं। यह संख्या सौर मण्डल के किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। इन उपग्रहों में से चार चन्द्रमा काफी बड़े आकार के हैं - गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा। इनकी खोज गैलीलियो गैलिली ने सन् 1610 में की थी इसलिए इन चारों को बृहस्पति के गैलिलीयाई चन्द्रमा भी कहा जाता है। यह चार पहले उपग्रह थे जो पृथ्वी से अन्य किसी ग्रह की परिक्रमा करते पाए गए थे। इन चारों का व्यास (डायामीटर) ३,१०० कि॰मी॰ से अधिक है। बृहस्पति के बाक़ी किसी भी उपग्रह का व्यास २५० कि॰मी॰ से अधिक नहीं और अधिकतर तो ५ कि॰मी॰ से भी कम का व्यास रखते हैं। .

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बोरॉन

बोरॉन (Boron) एक रासायनिक तत्व है। प्रकृति में इस तत्व का निर्माण ब्रह्माण्ड किरणों (कोस्मिक किरणों) द्वारा किसी वस्तु पर हुए प्रहारों से होता है, न की तारों में तारकीय नाभिकीय संश्लेषण की प्रक्रिया में। इसलिये हमारे सौर मंडल में इसकी तादाद अन्य तत्वों की तुलना में कम है। दुनिया में यह अपने जल में घुलने वाले बोरेट (borate) खनिजों के रूप में अधिक मिलता है, जिसमें सुहागा (बोरैक्स) सबसे ज़्यादा जाना-माना है। पृथ्वी पर बोरॉन केवल अन्य तत्वों के साथ बने रासायनिक यौगिकों के रूप में ही मिलता है। शुद्ध रूप में बोरॉन तत्व पृथ्वी पर केवल उल्का गिरने से ही पहुँचता है और इस रूप में यह एक उपधातु है। .

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भूपर्पटी

भूपर्पटी या क्रस्ट (अंग्रेज़ी: crust) भूविज्ञान में किसी पथरीले ग्रह या प्राकृतिक उपग्रह की सबसे ऊपर की ठोस परत को कहते हैं। यह जिस सामग्री का बना होता है वह इसके नीचे की भूप्रावार (मैन्टल) कहलाई जाने वाली परत से रसायनिक तौर पर भिन्न होती है। हमारे सौरमंडल में पृथ्वी, शुक्र, बुध, मंगल, चन्द्रमा, आयो और कुछ अन्य खगोलीय पिण्डों के भूपटल ज़्यादातर ज्वालामुखीय प्रक्रियाओं में बने हैं (यानि अंदर से उगले गये हैं)।, pp.

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महापृथ्वी

पृथ्वी और "कॅप्लर-१०बी" नामक महापृथ्वी ग्रह के आकारों की तुलना व्यास (r) और द्रव्यमान (m) एक सीमा में संतुलन में होने से कोई ग्रह महापृथ्वी बनता है - नीली लकीर पर स्थित ग्रह पूरे बानी और बर्फ़ के होंगे और लाल लकीर वाले ग्रह लगभग पूरे लोहे के होंगे - इन दोनों के बीच में महापृथ्वियाँ मिलती हैं वरुण के आकारों की तुलना महापृथ्वी ऐसे ग़ैर-सौरीय ग्रह को कहा जाता है जो पृथ्वी से अधिक द्रव्यमान (मास) रखता हो लेकिन सौर मंडल के बृहस्पति और शनि जैसे गैस दानव ग्रहों से काफ़ी कम द्रव्यमान रखे।Valencia et al., Radius and structure models of the first super-Earth planet, September 2006, published in The Astrophysical Journal, February 2007 .

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मायावती तारा

द्वितारे में एक तारे के कभी खुले चमकने और कभी ग्रहण हो जाने से उसकी चमक परिवर्तित होती रहती है - नीचे की लक़ीर पृथ्वी तक पहुँच रही चमक को माप रही है ययाति (पर्सियस) तारामंडल में मायावती (अलग़ोल) तारा 'β' द्वारा नामांकित है मायावती या अलग़ोल, जिसका बायर नाम बेटा परसई (β Persei या β Per) है, ययाति तारामंडल का दूसरा सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ५९वाँ सब से रोशन तारा भी है। यह एक ऐसा द्वितारा है जिसके मुख्य तारे के इर्द-गिर्द घूमता साथी तारा कभी तो उसके और पृथ्वी के बीच आ जाता है और कभी नहीं। इस से यह पृथ्वी से एक परिवर्ती तारा लगता है जिसकी चमक बदलती रहती है। वैदिक काल में इसकी मायावी बदलती प्रकृति के कारण ही इसका नाम "मायावती" पड़ा। इसे पश्चिम और अरब संस्कृतियों में एक दुर्भाग्य का तारा माना जाता था। यह पृथ्वी से लगभग ९३ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। पृथ्वी से देखी गई इसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) वैसे तो +२.१० मैग्नीट्यूड पर रहती है लेकिन हर २ दिन २० घंटे और ४९ मिनटों के बाद इसकी चमक गिरकर +३.४ हो जाती है (याद रखें कि मैग्नीट्यूड एक ऐसा उल्टा माप है कि यह जितना कम हो रोशनी उतनी अधिक होती है)। .

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माइमस (उपग्रह)

कैसिनी द्वारा फरवरी २०१० में ली गयी माइमस की तस्वीर जिसमें हरशॅल क्रेटर नज़र आ रहा है माइमस का नक़्शा छल्लों के ऍफ़ छल्ले के पीछे माइमस माइमस हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का सातवा सब से बड़ा उपग्रह है। पूरे सौर मण्डल में यह बीसवा सब से बड़ा उपग्रह है। माइमस सब से छोटी ज्ञात खगोलीय वस्तु है जो अपने गुरुत्वाकर्षण के खींचाव से स्वयं को गोल कर चुकी है। माइमस का व्यास (डायामीटर) ३९६ किमी है। .

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माकेमाके (बौना ग्रह)

माकेमाके का काल्पनिक चित्रण हबल अंतरिक्ष दूरबीन से ली गई माकेमाके की तस्वीर माकेमाके हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित एक बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६४७२ माकेमाके" है। यह हमारे सौर मण्डल का तीसरा सब से बड़ा बौना ग्रह है और इसका औसत व्यास (डायामीटर) १,३६० से १,४८० किमी के आसपास अनुमानित है, यानि यम (प्लूटो) का लगभग तीन-चौथाई। माकेमाके का कोई ज्ञात उपग्रह नहीं, जो काइपर घेरे की बड़ी वस्तुओं में असामान्य बात है। इसकी खोज २००५ में हुई थी। .

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मघा तारा

मघा (रॅग्युलस) तारा मघा या रॅग्युलस​, जिसका बायर नाम "अल्फ़ा लियोनिस" (α Leonis या α Leo) है, सिंह तारामंडल का सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से बाईसवा सब से रोशन तारा है। मघा हमारे सौर मंडल से लगभग 77.5 प्रकाश-वर्ष दूर है। वास्तव में मघा एक तारा नहीं बल्कि दो द्वितारों का मंडल है, यानि कुल मिलकर चार तारे हैं। .

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मंगल ग्रह

मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनमें ज़मीन होती है और "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। हमारे सौरमंडल का सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है। साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र पृथ्वी के समान हैं। इस गृह पर जीवन होने की संभावना है। 1965 में मेरिनर ४ के द्वारा की पहली मंगल उडान से पहले तक यह माना जाता था कि ग्रह की सतह पर तरल अवस्था में जल हो सकता है। यह हल्के और गहरे रंग के धब्बों की आवर्तिक सूचनाओं पर आधारित था विशेष तौर पर, ध्रुवीय अक्षांशों, जो लंबे होने पर समुद्र और महाद्वीपों की तरह दिखते हैं, काले striations की व्याख्या कुछ प्रेक्षकों द्वारा पानी की सिंचाई नहरों के रूप में की गयी है। इन् सीधी रेखाओं की मौजूदगी बाद में सिद्ध नहीं हो पायी और ये माना गया कि ये रेखायें मात्र प्रकाशीय भ्रम के अलावा कुछ और नहीं हैं। फिर भी, सौर मंडल के सभी ग्रहों में हमारी पृथ्वी के अलावा, मंगल ग्रह पर जीवन और पानी होने की संभावना सबसे अधिक है। वर्तमान में मंगल ग्रह की परिक्रमा तीन कार्यशील अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी, मार्स एक्सप्रेस और टोही मार्स ओर्बिटर है, यह सौर मंडल में पृथ्वी को छोड़कर किसी भी अन्य ग्रह से अधिक है। मंगल पर दो अन्वेषण रोवर्स (स्पिरिट और् ओप्रुच्युनिटी), लैंडर फ़ीनिक्स, के साथ ही कई निष्क्रिय रोवर्स और लैंडर हैं जो या तो असफल हो गये हैं या उनका अभियान पूरा हो गया है। इनके या इनके पूर्ववर्ती अभियानो द्वारा जुटाये गये भूवैज्ञानिक सबूत इस ओर इंगित करते हैं कि कभी मंगल ग्रह पर बडे़ पैमाने पर पानी की उपस्थिति थी साथ ही इन्होने ये संकेत भी दिये हैं कि हाल के वर्षों में छोटे गर्म पानी के फव्वारे यहाँ फूटे हैं। नासा के मार्स ग्लोबल सर्वेयर की खोजों द्वारा इस बात के प्रमाण मिले हैं कि दक्षिणी ध्रुवीय बर्फीली चोटियाँ घट रही हैं। मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस गये हैं। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण -2.9, तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल दिखाई देता है। .

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यम के प्राकृतिक उपग्रह

यम (प्लूटो) और उसके तीन चंद्रमाओं की २००६ में ली गयी फ़ोटो यम (प्लूटो) और शैरन दोनों अपने सांझे द्रव्यमान केन्द्र की परिक्रमा करते हैं यम (प्लूटो) के चार प्राकृतिक उपग्रह वैज्ञानिकों को ज्ञात हैं: १९७८ में खोज किया गया शैरन, २००५ में खोज किये गए दो नन्हे चन्द्रमा, निक्स और हाएड्रा और २० जुलाई २०११ को घोषित किया गया ऍस/२०११ पी १ (S/2011 P 1)। अन्य ग्रहों और बौने ग्रहों की तुलना में प्लूटो के चन्द्रमा उसके बहुत पास परिक्रमा करते हैं। चारों के बारे में अनुमान है के वे बर्फ़ और पत्थर के बने हुए हैं। .

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यूरोपा (उपग्रह)

यूरोपा (Europa), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का चौथा सब से बड़ा उपग्रह है। इसका व्यास (डायामीटर) लगभग 3,138 किमी है जो हमारे चन्द्रमा से चंद किलोमीटर ही छोटा है। .

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रिया (उपग्रह)

कैसीनी अंतरिक्ष यान द्वारा ली गयी रिया की तस्वीर पृथ्वी (दाएँ), हमारे चन्द्रमा (ऊपर बाएँ) और रिया (नीचे बाएँ) के आकारों की तुलना रिया हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है। रिया सौर मण्डल के सारे उपग्रहों में से नौवा सब से बड़ा उपग्रह है। इसकी खोज १६७२ में इटली के खगोलशास्त्री जिओवान्नी कैसीनी ने की थी। रिया के घनत्व को देखते हुए वैज्ञानिकों का अनुमान है के यह २५% पत्थर और ७५% पानी की बर्फ़ का बना हुआ है। इस उपग्रह का तापमान धूप पर निर्भर करता है। जहाँ धूप पड़ रही हो वहाँ इसका तापमान -१७४ डिग्री सेंटीग्रेड (९९ कैल्विन) है और जहाँ अँधेरा हो वहाँ यह गिरकर -२२० डिग्री सेंटीग्रेड (५३ कैल्विन) चला जाता है। इसकी सतह पर अंतरिक्ष से गिरे हुए उल्कापिंडों की वजह से बहुत से गढ्ढे हैं, जिनमें से दो तो बहुत ही बड़े हैं और ४०० से ५०० किमी का व्यास (डायामीटर) रखते हैं। .

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रोसेटा (अंतरिक्ष यान)

रोसेटा अंतरिक्ष यान रोसेटा (Rosetta) यूरोपीय अंतरिक्ष अभिकरण का एक अंतरिक्ष यान है जिसे २ मार्च २००४ को पृथ्वी से छोड़ा गया था। इसका ध्येय ६७पी/चुरयुमोव-गेरासिमेंको (67P/Churyumov–Gerasimenko) नामक धूमकेतु के समीप पहुँचकर उसका अध्ययन करना है। यह यान सन् २०१४ के मध्य में उस धूमकेतु तक पहुँचेगा और फिर उसके इर्द-गिर्द कक्षा में परिक्रमा करेगा। १० नवम्बर २०१४ को इस से एक छोटा-सा फाईले (Philae) नमक शोध-यान धूमकेतु की सतह पर उतारकर और क़रीब से उसका अध्ययन करेगा।, Kenneth R. Lang, Cambridge University Press, 2011, ISBN 978-0-521-19857-8,...

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लरिसा (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी लरिसा की दो तस्वीरें लरिसा सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से चौथा सबसे बड़ा है। लरिसा का औसत व्यास २०० किमी से ज़रा कम है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और लरिसा उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। लरिसा धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। .

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लाइजीया सागर

लाइजीया सागर (Ligeia Mare) सौर मंडल के शनि ग्रह के सबसे बड़े चन्द्रमा टाइटन के उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र में स्थित एक झील है। क्रैकन​ सागर के बाद यह टाइटन पर दूसरी सबसे बड़ी ज्ञात झील है। कैसिनी-होयगेन्स अंतरिक्ष यान ने इसका अकार पूरी तरह मापा था - इसकी चौड़ाई ३५० किमी और लम्बाई ४२० किमी है। इसका सतही क्षेत्रफल १,२६,००० किमी२ है (यानी भारत के बिहार राज्य से लगभग सवा गुना) और इसका इर्द-गिर्द का तट २,००० किमी लम्बा है। टाइटन की अन्य झीलों की तरह इसमें भी पानी की जगह मीथेन जैसे हाइड्रोकार्बन द्रवावस्था में भरे हैं। .

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लेओमडीआ (उपग्रह)

लेओमडीआ सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के उपग्रहों में एक बाहरी कक्षा में परिक्रमा करने वाला उपग्रह माना जाता है। लेओमडीआ का औसत व्यास लगभग ४२ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। लेओमडीआ वरुण से क़रीब २.३६ करोड़ किमी की दूरी पर उसकी परिक्रमा करता है। .

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शनि (ग्रह)

शनि (Saturn), सूर्य से छठां ग्रह है तथा बृहस्पति के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह हैं। औसत व्यास में पृथ्वी से नौ गुना बड़ा शनि एक गैस दानव है। जबकि इसका औसत घनत्व पृथ्वी का एक आठवां है, अपने बड़े आयतन के साथ यह पृथ्वी से 95 गुने से भी थोड़ा बड़ा है। इसका खगोलिय चिन्ह ħ है। शनि का आंतरिक ढांचा संभवतया, लोहा, निकल और चट्टानों (सिलिकॉन और ऑक्सीजन यौगिक) के एक कोर से बना है, जो धातु हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा है, तरल हाइड्रोजन और तरल हीलियम की एक मध्यवर्ती परत तथा एक बाह्य गैसीय परत है। ग्रह अपने ऊपरी वायुमंडल के अमोनिया क्रिस्टल के कारण एक हल्का पीला रंग दर्शाता है। माना गया है धातु हाइड्रोजन परत के भीतर की विद्युतीय धारा, शनि के ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को उभार देती है, जो पृथ्वी की तुलना में कमजोर है और बृहस्पति की एक-बीसवीं शक्ति के करीब है। बाह्य वायुमंडल आम तौर पर नीरस और स्पष्टता में कमी है, हालांकि दिर्घायु आकृतियां दिखाई दे सकती है। शनि पर हवा की गति, 1800 किमी/घंटा (1100 मील) तक पहुंच सकती है, जो बृहस्पति पर की तुलना में तेज, पर उतनी तेज नहीं जितनी वह नेप्च्यून पर है। शनि की एक विशिष्ट वलय प्रणाली है जो नौ सतत मुख्य छल्लों और तीन असतत चाप से मिलकर बनी हैं, ज्यादातर चट्टानी मलबे व धूल की छोटी राशि के साथ बर्फ के कणों की बनी हुई है। बासठ चन्द्रमा ग्रह की परिक्रमा करते है; तिरेपन आधिकारिक तौर पर नामित हैं। इनमें छल्लों के भीतर के सैकड़ों " छोटे चंद्रमा" शामिल नहीं है। टाइटन, शनि का सबसे बड़ा और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चंद्रमा है। यह बुध ग्रह से बड़ा है और एक बड़े वायुमंडल को संजोकर रखने वाला सौरमंडल का एकमात्र चंद्रमा है। .

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शनि के प्राकृतिक उपग्रह

छल्ले और उसके कुछ मुख्य उपग्रह (चित्रकार द्वारा बनाया गया चित्र) शनि के कुछ मुख्य उपग्रह: टाइटन बीच का बड़ा नारंगी गोला है जिसके ऊपर बाक़ी चन्द्रमा दर्शाए गए हैं हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि के बहुत से भिन्न-भिन्न प्रकार के उपग्रह हैं, जिनमें १ कि॰मी॰ से भी कम आकार के नन्हे चाँद और भयंकर आकार वाला टाइटन (जो बुध ग्रह से भी बड़ा है) शामिल हैं। शनि के छल्लों में लाखों वस्तुएँ शनि की परिक्रमा कर रहीं हैं - लेकिन इनमें से बहुत तो छोटे-छोटे पत्थर या धुल के कण ही हैं। कुल मिलकर, सन् २०१० तक, शनि के ६२ ज्ञात उपग्रह थे जिनकी परिक्रमा की कक्षाएँ परखी जा चुकी थीं। इनमें से केवल १३ का व्यास (डायामीटर) ५० किमी से अधिक था और इनमें से ५३ का नामकरण किया जा चुका था। शनि के सात चन्द्रमा इतने बड़े हैं के वे अपने गुरुत्वाकर्षण की खींच से स्वयं को पूरा गोल आकार का कर पाएँ हैं। इन सारे चंद्रमाओं में से दो वैज्ञानिकों की लिए विशेष दिलचस्पी रखते हैं: टाइटन, जो सौरमंडल का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है और जिसपर पृथ्वी की तरह नाइट्रोजन गैस से भरपूर पृथ्वी से भी घना वायुमंडल है और ऍनसॅलअडस, जिसपर गैस और धुल के फव्वारे हैं और जिसके दक्षिणी ध्रुव की सतह के नीचे पानी का बड़ा जलाशय होने की सम्भावना है। .

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शनि के छल्ले

शनि के छल्लों की तस्वीर - बाहरी "ए" छल्ले और भीतरी "बी" छल्ले के बीच की कैसिनी दरार साफ़ नज़र आ रही है शनि के छल्ले हमारे सौर मण्डल के सबसे शानदार उपग्रही छल्लों का गुट हैं। यह छोटे-छोटे कणों से लेकर कई मीटर बड़े अनगिनत टुकड़ों से बने हुए हैं जो सारे इन छल्लों का हिस्सा बने शनि की परिक्रमा कर रहें हैं। यह सारे टुकड़े अधिकतर पानी की बर्फ़ के बने हुए हैं जिनमें कुछ-कुछ धुल भी मिश्रित है। यह सारे छल्ले एक चपटे चक्र में एक के अन्दर एक हैं। इस चक्र में छल्लों के बीच कुछ ख़ाली छल्ले-रुपी अंतराल या दरारे भी हैं। इन में से कुछ दरारे तो इस चक्र में परिक्रमा करते हुए उपग्रहों ने बना लीं हैं: जहाँ इनकी परिक्रमा की कक्षाएँ हैं वहाँ इन्होने छल्लों में से मलबा हटा दिया है। लेकिन कुछ दरारों के कारण अभी वैज्ञानिकों को ज्ञात नहीं हैं। .

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शिकारी-हन्स भुजा

शिकारी शाख (ओरायन स्पर) में सूरज और अन्य खगोलीय वस्तुओं का स्थान शिकारी-हन्स भुजा हमारी गैलेक्सी (आकाशगंगा) की एक सर्पिल (स्पाइरल) भुजा है। यह लगभग ३,५०० प्रकाश वर्ष चौड़ी और १०,००० प्रकाश वर्ष लम्बी है, लेकिन आकाशगंगा के महान आकार के हिसाब से एक छोटी बाज़ू समझी जाती है। पृथ्वी, हमारा सूरज और हमारा पूरा सौर मंडल इसमें स्थित है, इसलिए इस भुजा को "स्थानीय भुजा" (अंग्रेज़ी में "लोकल आर्म") भी कहा जाता है। कभी-कभी इसे "शिकारी शाख" (ओरायन स्पर) भी कहते हैं। इस बाज़ू का औपचारिक नाम शिकारी-हन्स भुजा इसलिए पड़ा क्योंकि आसमान में देखने पर इसके तारे अधिकतर शिकारी तारामंडल और हंस तारामंडल के क्षेत्रों में नज़र आते हैं। शिकारी-हंस भुजा आकाशगंगा की दो अन्य बाज़ुओं के बीच स्थित है: कराइना-धनु भुजा (Carina–Sagittarius Arm, कराइना-सैजीटेरियस आर्म) और ययाति भुजा (पर्सियस आर्म, Perseus Arm)। हमारा सौर मंडल शिकारी-हंस भुजा के बीच में है और क्षीरमार्ग के केंद्र से लगभग २६,००० प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। .

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शकट चक्र गैलेक्सी

शकट चक्र गैलेक्सी (Cartwheel Galaxy), जो ईऍसओ 350-40 (ESO 350-40) भी कहलाती है, हमारे सौर मण्डल से लगभग 50 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर स्थित एक लेंसनुमा गैलेक्सी है। पृथ्वी की सतह से देखें जाने पर यह आकाश के भास्कर तारामंडल क्षेत्र में दिखती है। इस गैलेक्सी का व्यास लगभग 1,50,000 प्रकाशवर्ष है (यानि हमारी गैलेक्सी, क्षीरमार्ग से ज़रा बड़ा) और इसका अनुमानित द्रव्यमान 2.9 – 4.8 × 109सौर द्रव्यमान है। यह 217 किमी/सैकंड की गति से घूर्णन कर रही है। खगोलज्ञों का मानना है कि इसका टकराव एक छोटी गैलेक्सी से हुआ था, जिसके कारण इसके केन्द्रीय भाग से बाहर एक चक्र बन गया, ठीक उसी तरह जैसे पानी में पत्थर फेंकने से पानी में लहर से चक्र बन जाते हैं। .

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शुक्र

शुक्र (Venus), सूर्य से दूसरा ग्रह है और प्रत्येक 224.7 पृथ्वी दिनों मे सूर्य परिक्रमा करता है। ग्रह का नामकरण प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी पर हुआ है। चंद्रमा के बाद यह रात्रि आकाश में सबसे चमकीली प्राकृतिक वस्तु है। इसका आभासी परिमाण -4.6 के स्तर तक पहुँच जाता है और यह छाया डालने के लिए पर्याप्त उज्जवलता है। चूँकि शुक्र एक अवर ग्रह है इसलिए पृथ्वी से देखने पर यह कभी सूर्य से दूर नज़र नहीं आता है: इसका प्रसरकोण 47.8 डिग्री के अधिकतम तक पहुँचता है। शुक्र सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद केवल थोड़ी देर के लए ही अपनी अधिकतम चमक पर पहुँचता है। यहीं कारण है जिसके लिए यह प्राचीन संस्कृतियों के द्वारा सुबह का तारा या शाम का तारा के रूप में संदर्भित किया गया है। शुक्र एक स्थलीय ग्रह के रूप में वर्गीकृत है और समान आकार, गुरुत्वाकर्षण और संरचना के कारण कभी कभी उसे पृथ्वी का "बहन ग्रह" कहा गया है। शुक्र आकार और दूरी दोनों मे पृथ्वी के निकटतम है। हालांकि अन्य मामलों में यह पृथ्वी से एकदम अलग नज़र आता है। शुक्र सल्फ्यूरिक एसिड युक्त अत्यधिक परावर्तक बादलों की एक अपारदर्शी परत से ढँका हुआ है। जिसने इसकी सतह को दृश्य प्रकाश में अंतरिक्ष से निहारने से बचा रखा है। इसका वायुमंडल चार स्थलीय ग्रहों मे सघनतम है और अधिकाँशतः कार्बन डाईऑक्साइड से बना है। ग्रह की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी की तुलना मे 92 गुना है। 735° K (462°C,863°F) के औसत सतही तापमान के साथ शुक्र सौर मंडल मे अब तक का सबसे तप्त ग्रह है। कार्बन को चट्टानों और सतही भूआकृतियों में वापस जकड़ने के लिए यहाँ कोई कार्बन चक्र मौजूद नही है और ना ही ज़ीवद्रव्य को इसमे अवशोषित करने के लिए कोई कार्बनिक जीवन यहाँ नज़र आता है। शुक्र पर अतीत में महासागर हो सकते हैलेकिन अनवरत ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण बढ़ते तापमान के साथ वह वाष्पीकृत होते गये होंगे |B.M. Jakosky, "Atmospheres of the Terrestrial Planets", in Beatty, Petersen and Chaikin (eds), The New Solar System, 4th edition 1999, Sky Publishing Company (Boston) and Cambridge University Press (Cambridge), pp.

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शैरन (उपग्रह)

यम (प्लूटो) और शैरन दोनों अपने सांझे द्रव्यमान केन्द्र की परिक्रमा करते हैं शैरन, जिसे कैरन भी कहतें हैं, बौने ग्रह यम (प्लूटो) का सब से बड़ा उपग्रह है। इसकी खोज १९७८ में हुई थी। २०१५ में प्लूटो और शैरन का अध्ययन करने के लिए अमेरिकी सरकार द्वारा एक "न्यू होराएज़न्ज़" (हिंदी अर्थ: "नए क्षितिज") नाम का मनुष्य-रहित अंतरिक्ष यान भेजने की योजना है। शैरन गोलाकार है और उसका व्यास १,२०७ किमी है, जो प्लूटो के व्यास के आधे से थोड़ा अधिक है। उसकी सतह का कुल क्षेत्रफल लगभग ४५.८ लाख वर्ग किलोमीटर है। जहाँ प्लूटो की सतह पर नाइट्रोजन और मीथेन की जमी गुई बर्फ़ है वहाँ शैरन पर उसकी बजाए पानी की बर्फ़ है। प्लूटो पर एक पतला वायुमंडल है लेकिन शैरन के अध्ययन से संकेत मिला है के उसपर कोई वायुमंडल नहीं है और उसकी सतह के ऊपर सिर्फ़ खुले अंतरिक्ष का व्योम है। शैरन पर प्लूटो की तुलना में पत्थर कम हैं और बर्फ़ अधिक है। .

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सन्दर्भ समतल

खगोलीय यांत्रिकी में सन्दर्भ समतल (plane of reference) कक्षीय राशियाँ परिभाषित करने के लिए प्रयोग करा गया समतल है। सन्दर्भ समतल के हिसाब से मापे जाने वाली दो कक्षीय राशियाँ (orbital elements) कक्षीय झुकाव (inclination) और आरोही ताख का अक्षांश (longitude of the ascending node) हैं। .

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सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इन्टेलीजेन्स

SETI@home, के लिये बने एक स्क्रीनसेवर का स्क्रीनशॉट। ये एक वितरित संगणन परियोजना थी, जिसमें लोगों ने स्वेच्छा से अपने खाली पड़े कंप्यूटरों को परा-पार्थिव बुद्धिमता चिह्नों की खोज हेतु दान किये थे। सेटी (अंग्रेज़ी:सर्च फॉर एक्स्ट्रा-टेरेस्ट्रियल इंटेलीजेंस) अमरीका में सुदूर ब्रह्मांड में जीवन की खोज करने की सामूहिक क्रिया-कलापों को कहते हैं। तलाशने के काम में लगा है। इस कार्य के लिए सेटी रेडियो संकेतों का प्रयोग करता है। इसके अलावा, ऑप्टीकल दूरदर्शी और अन्य विधियों को प्रयोग किए जाने की भी सिफारिशें की गई हैं। सेटी अपने प्रयासों में व्यस्त रहता है और किसी अन्य ग्रह पर बौद्धिक जीवन के बारे में सूचनाओं की खोज करता रहता है। विश्व की शक्तिशाली वेधशालाओं और दूरदर्शियों की मदद से सेटी ब्रह्मांड के कोने कोने से आने वाले रेडियो संप्रेषणों को एकत्रित कर उनका विश्लेषण करती है। अभी तक अभी तक की गणना के अनुसार ब्रह्मांड में हम अकेले हैं।। हिन्दुस्तान लाईव। १८ अप्रैल २०१० एक पृथ्वी स्थित सिस्टम से दिखती माइक्रोवेव विंडो। स्रोत:नासा रिपोर्ट: SP-419: अंतरिक्ष में निर्वात होने के कारण वह अपने आप में कोई विशेष शक्तिशाली रेडियो संकेतवाहक नहीं है। सेटी के वैज्ञानिकों के अनुसार यदि सुदूर अंतरिक्ष में कोई अनजान सभ्यता पृथ्वी से भेजे गए रेडियो संकेतों को पकड़ती है तो उसे उत्तर में अंतरिक्ष में सूचनाएं छोड़नी चाहिए जैसे कि हम रेडियो और टीवी स्टेशनों के माध्यम से सूचनाएं छोड़ते हैं। यदि अंतरिक्ष में कोई सभ्यता है तो उनके लिए इन संदेशों को पकड़ना भी अच्छा-खासा चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। इनका मानना है कि जिस तरह से हमारे पास कई लाख प्रकाश वर्ष की दूरी तक अपने संदेश पहुंचाने की क्षमता और तकनीक है वैसी ही तकनीक किसी दूसरे ग्रह के लोगों (यदि कोई हैं तो) के पास भी हो सकती है। जैसे पृथ्वी से रेडियो, टीवी, राडार के संकेत निकलकर अंतरिक्ष में फैलते हैं वैसे ही अन्य ग्रहों के रेडियो संकेत भी अंतरिक्ष में होंगे। इन संकेतों को पकड़कर दूसरी दुनिया के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं। सेटी द्वारा हो रहे इस अध्ययन को आरंभ में अमरीका ने वित्तीय मदद दी लेकिन बाद में इसे बन्द कर दिया। सेटी के अनेक शोधकर्ता यह भी मानते हैं कि किसी बाहरी सभ्यता की खोज के लिए हमें मध्यम आवृत्ति भेजी जानी चाहिए और सौरमंडल से बाहर भेजा जाने वाला कोई भी संदेश अंतरिक्ष में किसी एक स्थान पर स्थित ही रहना चाहिए। इसके लिए सेटी के खगोलविदों ने विशालकाय सुपरकंप्यूटरों द्वारा संदेशों को स्कैन करने का काम किया है, जिसके बाद अंतत:यह कार्य एक विकेंद्रीकृत कंप्यूटिंग नेटवर्क, SETI@home को दे दिया गया। वैसे अभी तक किसी अन्य खगोलीय सभ्यता के कोई लक्षण सामने नहीं आए हैं। अनेक खगोलविदों के अनुसार कोई भी बाहरी सभ्यता रेडियो संदेशों का आदान-प्रदान नहीं करेगी, चूंकि बहुत संभव है कि वह पृथ्वी की सभ्यता से कहीं आगे होगी। इसलिए खगोलविद् अंतरिक्ष में लेजर किरणों की भी खोज कर रहे हैं। यदि अंतरिक्ष में सूचनाएं भेजने का यह प्रयास अंतत: विफल रहता है तो सेटी को कोई यान ही भेजना पड़ेगा, जो इससे भी कहीं कठिन कार्य होगा। .

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सिम्बाद

स्त्रासबूर्ग की वेधशाला सिम्बाद (अंग्रेज़ी: SIMBAD) हमारे सौर मंडल के बाहर पायी गयी खगोलीय वस्तुओं का एक कोष है। इसकी देख-रेख फ्रांस में स्थित "स्त्रासबूर्ग खगोलीय जानकारी केंद्र" (Centre de données astronomiques de Strasbourg) करता है। १४ जून २००७ तक इस कोष में ३८,२४,१९५ वस्तुएँ दर्ज थीं जिनके लिए १,१२,००,७९५ नाम भी दर्ज थे। इस केंद्र के योगदान को पहचानते हुए एक क्षुद्रग्रह का नाम इसके ऊपर "४६९२ सिम्बाद" रखा गया। .

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सिग्मा सैजिटेरियाइ तारा

धनु तारामंडल में सिग्मा सैजिटेरियाइ तारा "σ Sgr" से नामांकित है सिग्मा सैजिटेरियाइ जिसके बायर नामांकन में भी यही नाम (σ Sgr या σ Sagittarii) दर्ज है, आकाश में धनु तारामंडल का दूसरा सब से रोशन तारा है और पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ५२वाँ सब से रोशन तारा है। यह हमसे २२८ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) २.०६ है। .

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स्थलीय ग्रह

सीरीस (बौना ग्रह)। स्थलीय ग्रह या चट्टानी ग्रह मुख्य रूप से सिलिकेट शैल अथवा धातुओ से बना हुआ ग्रह होता है। हमारे सौर मण्डल में स्थलीय ग्रह, सूर्य के सबसे निकटतम, आंतरिक ग्रह है। स्थलीय ग्रह अपनी ठोस सतह की वजह से गैस दानवों से काफी अलग होते हैं, जो कि मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलियम और विभिन्न प्रावस्थाओ में मौजूद पानी के मिश्रण से बने होते हैं। .

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सौर मण्डल की छोटी वस्तुएँ

१८ किमी लम्बा क्षुद्रग्रह ९५१ गैस्प्रा औपचारिक रूप से "सौर मण्डल की छोटी वस्तु" की श्रेणी में आता है सौर मण्डल की छोटी वस्तुएँ खगोलीय वस्तुओं की एक श्रेणी है जो २००६ में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने स्थापित की थी। इस परिभाषा में हमारे सौर मण्डल में मौजूद वे सारी वस्तुएँ आती हैं जो न तो ग्रह हैं, न बौना ग्रह हैं और न ही किसी ग्रह या बौना ग्रह के उपग्रह हैं। इस नयी श्रेणी में अधिकतर क्षुद्रग्रहों, वरुण-पार वस्तुओं और धूमकेतुओं का शुमार होता है। इसमें वे सारे हीन ग्रह भी शामिल हैं जिन्हें बौना ग्रह का दर्जा न मिला हो। तो उन हीन ग्रहों की फ़हरिस्त जिन्हें सौर मण्डल की छोटी वस्तुओं में गिना जाता है कुछ इस प्रकार है -.

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सौर मंडल का गठन और विकास

सौरमंडल का गठन एक विशाल आणविक बादल के छोटे से हिस्से के गुरुत्वाकर्षण पतन के साथ 4.6 अरब साल पहले शुरू होने का अनुमान है। अधिकांश ढहा द्रव्यमान केंद्र में एकत्र हुआ, सूर्य को बनाया, जबकि बाकी एक प्रोटोप्लेनेटरी डिस्क में चपट गया जिसमे से ग्रहों, चन्द्रमाओं, क्षुद्रग्रहों और अन्य छोटे सौरमंडलीय निकायों का निर्माण हुआ। .

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सैमअथी (उपग्रह)

वरुण ग्रह है सैमअथी सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के उपग्रहों में एक बाहरी कक्षा में परिक्रमा करने वाला उपग्रह माना जाता है। सैमअथी का औसत व्यास लगभग ४० किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। सैमअथी वरुण से क़रीब ४.६७ करोड़ किमी की दूरी पर उसकी परिक्रमा करता है - यह इतना दूर है के सैमअथी को वरुण का एक चक्कर लेने में २५ साल लग जाते हैं। सैमअथी का परिक्रमा करने का ढंग और उसकी परिक्रमा की कक्षा वरुण के एक अन्य चन्द्रमा (नीसो) से इतनी मिलती-जुलती है के कई वैज्ञानिकों का कहना है के यह सैमअथी और नीसो कभी एक ही बड़े चन्द्रमा के दो हिस्से हैं जो किसी कारण से अतीत में टूट गया। सैमअथी और नीसो वरुण से जितनी दूरी पर हैं उतनी दूरी पर हमारे सौर मण्डल में कोई भी अन्य उपग्रह अपने ग्रह से नहीं है। .

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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सूर्य देवता

कोई विवरण नहीं।

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सूर्य केंद्रीय सिद्धांत

सूर्य केंद्रीय सिद्धांत अथवा सूर्य केन्द्रीयता (heliocentricism), एक खगोलीय मॉडल है जिसमें पृथ्वी और ग्रह सौरमंडल के केंद्र में एक अपेक्षाकृत स्थिर सूर्य के चारों ओर घूमते है। यह शब्द प्राचीन यूनानी भाषा से आया है (ἥλιος हिलीयस "सूर्य" और κέντρον केंट्रोन "केंद्र")। ऐतिहासिक रूप से, सूर्य केन्द्रीयता ने भूकेंद्रीयता का विरोध किया था जिसने पृथ्वी को केंद्र पर रखा था। यह धारणा कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, सैमोस के एरिसटेरकस द्वारा तीसरी शताब्दी ईपू के उत्तरार्ध में प्रस्तावित किया गया था। किंतु एरिसटेरकस के सूर्य केन्द्रीयता ने थोड़े समय के लिए ध्यान आकर्षित किया जब तक कोपरनिकस पुनर्जीवित हुआ और इसका सविस्तार हुआ। तथापि, लुसियो रुसो का तर्क है कि यह हेलेनिस्टिक युग के वैज्ञानिक कार्यों के नुकसान से उत्पन्न एक भ्रामक धारणा है। अप्रत्यक्ष प्रमाण का प्रयोग कर वे तर्क देते हैं कि एक सूर्य केंद्रीय विचार को हिप्पारकस के गुरुत्वाकर्षण पर कार्य में समझाया गया था। .

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सेओ (उपग्रह)

सेओ सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के उपग्रहों में एक बाहरी कक्षा में परिक्रमा करने वाला उपग्रह माना जाता है। सेओ का औसत व्यास लगभग ४४ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। सेओ वरुण से क़रीब २.२४ करोड़ किमी की दूरी पर उसकी परिक्रमा करता है। .

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सीरीस (बौना ग्रह)

हबल अन्तरिक्षीय दूरबीन द्वारा २००३-०४ में ली गयी सीरीस की तस्वीर सीरीस या सीरीज़ हमारे सौर मण्डल के क्षुद्रग्रह घेरे में स्थित एक बौना ग्रह है। इसका व्यास लगभग ९५० किमी है और यह अपने स्वयं के गुरुत्वाकर्षक खिचाव से गोल अकार पा चुका है। यह क्षुद्रग्रह घेरे की सब से बड़ी वस्तु है और इसमें उस पूरे घेरे की लाखों खगोलीय वस्तुओं के पूरे सम्मिलित द्रव्यमान का लगभग एक-तिहाई सीरीस में निहित है। माना जाता है के सीरीस बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। अधिकतर वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के इसकी सतह बर्फ़ीली और अन्दर का केंद्रीय भाग पत्थरीला है। ऐसा भी संभव है के पत्थर और बर्फ़ के बीच एक पानी की मोटी तह हो। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/श

संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.

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हंस तारा

हंस तारा हमारे सूरज से 200 गुना से भी ज़्यादा बड़ा है हंस या डॅनॅब​, जिसका बायर नाम "अल्फ़ा सिगनाए" (α Cygni या α Cyg) है, हंस तारामंडल का सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से उन्नीसवा सब से रोशन तारा है। हंस तारे की अंदरूनी चमक (निरपेक्ष कान्तिमान) बहुत भयंकर है और इसका माप -7.0 मैग्नीट्यूड है। यह सूरज से 60,000 गुना ज़्यादा चमकीला है। .

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हउमेया (बौना ग्रह)

हउमेया और उसके उपग्रहों (हिइआका और नामाका) का काल्पनिक चित्रण हउमेया हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित एक बौना ग्रह है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम "१३६१०८ हउमेया" है। यह हमारे सौर मण्डल का चौथा सब से बड़ा बौना ग्रह है और इसका द्रव्यमान यम (प्लूटो) का एक-तिहाई है। हउमेया का औसत व्यास (डायामीटर) लगभग १,४३६ किमी है। इसकी खोज २००४ में की गयी थी। हउमेया का आकार सारे ज्ञात बौने ग्रहों में अनूठा है - जहाँ बाक़ी सब गोल हैं यह एक पिचका हुआ गोला है। हउमेया की चौड़ाई उसकी लम्बाई से दो गुना ज़्यादा है। इसके इस अजीब आकार के साथ-साथ इसमें कुछ और भी भिन्नताएँ हैं - यह बहुत तेज़ी से अपने घूर्णन अक्ष (ऐक्सिस) पर घूमता है और इसका घनत्व बाहरी सौर मण्डल के अन्य बौने ग्रहों से अधिक है। इन विशेषताओं को देखकर लगता है के हउमेया अतीत में किसी भयंकर टकराव का नतीजा है। .

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हैलिमीडी (उपग्रह)

वरुण की परिक्रमा करते हुए हैलिमीडी की धुंधली से तीन तस्वीरें हैलिमीडी सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के उपग्रहों में एक बाहरी कक्षा में परिक्रमा करने वाला उपग्रह माना जाता है। हैलिमीडी का औसत व्यास लगभग ६२ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग भूरा प्रतीत होता है। यह उपग्रह वरुण की घूमने की दिशा से उलटी दिशा में परिक्रमा करता है, जिसे भौतिकी में प्रतिगामी चाल कहते हैं। हैलिमीडी का रंग वरुण के एक अन्य उपग्रह नियरीड से बहुत मिलता-जुलता है, जिस से कुछ वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के शायद अतीत में कभी नियरीड की किसी और वास्तु से टक्कर हुई हो और हैलिमीडी उसका ही एक टूटा हुआ अंश हो। .

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हैली धूमकेतु

(विकिपीडिया अंग्रेजी से अनुवादित) हैली धूमकेतु (आधिकारिक तौर पर नामित 1P/Halley) को एक लघु-अवधि धूमकेतु के रूप में बेहतर जाना जाता है। यह प्रत्येक ७५ से ७६ वर्ष के अंतराल में पृथ्वी से नजर आता है। हैली ही एक मात्र लघु-अवधि धूमकेतु है जिसे पृथ्वी से नग्न आँखों से साफ़-साफ़ देखा जा सकता है और यह नग्न आँखों से देखे जाने वाला एक मात्र धूमकेतु है जो मानव जीवन में दो बार दिखाई देता है। नग्न आँखों से दिखाई देने वाले अन्य धूमकेतु चमकदार और अधिक दर्शनीय हो सकते है लेकिन वह हजारों वर्षों में केवल एक बार दिखाई देते है। हैली के भीतरी सौरमंडल में लौटने पर इसका खगोलविज्ञानियों द्वारा २४० इ.पू.

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हेलियोस्फीयर

हेलियोस्फीयर के घटकों का आरेख। इसक आकार गलत हो सकता है। सूर्य से लाखों मील प्रति घंटे के वेग से चलने वाली सौर वायु। हिन्दुस्तान लाइव। २७ नवम्बर २००९ सौरमंडल के आसपास एक सुरक्षात्मक बुलबुला निर्माण करती हैं। इसे हेलियोस्फीयर कहा जाता है। यह पृथ्वी के वातावरण के साथ-साथ सौर मंडल की सीमा के भीतर की दशाओं को तय करती हैं।। नवभारत टाइम्स। २४ सितंबर २००८ हेलियोस्फीयर में सौर वायु सबसे गहरी होती है। पिछले ५० वर्षों में सौर वायु इस समय सबसे कमजोर पड़ गई हैं। वैसे सौर वायु की सक्रियता समय-समय पर कम या अधिक होती रहती है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। .

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हीन ग्रह

हीन ग्रह ऐसी खगोलीय वस्तुओं को कहा जाता है जो सौर मण्डल में सूरज की परिक्रमा तो करती हैं लेकिन ना तो वह इतनी बड़ी हैं के उन्हें ग्रह या बौना ग्रह बुलाया जाए और न ही वे धूमकेतु की श्रेणी में आती हैं। "हीन ग्रह केंद्र" नाम का संगठन ऐसे हीन ग्रहों के नाम और कक्षाएँ दर्ज करता है और यहाँ पर ५ लाख से अधिक हीन ग्रहों को दर्ज किया गया है। इनमें से सर्वाधिक हीन ग्रह सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे में पाए जाते हैं। .

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हीन ग्रह नामांकन

हीन ग्रह नामांकन (Minor planet designation) अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के हीन ग्रह केन्द्र की एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा बौने ग्रहों और, धूमकेतुओं के अलावा, सौर मंडल की क्षुद्रग्रहों जैसी सभी अन्य छोटी वस्तुओं को एक औपचारिक नाम दिया जाता है। यह नामांकन एक संख्या और एक नाम को मिलाकर किया जाता है। आम तौर पर यह नाम किसी वस्तु के पाए जाने के बाद उसकी कक्षा का अध्ययन करने के उपरांत दिया जाता है। उस से पहले वस्तु को अनौपचारिक नाम से बुलाया जाता है। .

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जन्तर मन्तर (जयपुर)

जन्तर-मन्तर, जयपुर जयपुर का जन्तर मन्तर सवाई जयसिंह द्वारा १७२४ से १७३४ के बीच निर्मित एक खगोलीय वेधशाला है। यह यूनेस्को के 'विश्व धरोहर सूची' में सम्मिलित है। इस वेधशाला में १४ प्रमुख यन्त्र हैं जो समय मापने, ग्रहण की भविष्यवाणी करने, किसी तारे की गति एवं स्थिति जानने, सौर मण्डल के ग्रहों के दिक्पात जानने आदि में सहायक हैं। इन यन्त्रों को देखने से पता चलता है कि भारत के लोगों को गणित एवं खगोलिकी के जटिल संकल्पनाओं (कॉंसेप्ट्स) का इतना गहन ज्ञान था कि वे इन संकल्पनाओं को एक 'शैक्षणिक वेधशाला' का रूप दे सके ताकि कोई भी उन्हें जान सके और उसका आनन्द ले सके। जयपुर में पुराने राजमहल 'चन्द्रमहल' से जुडी एक आश्चर्यजनक मध्यकालीन उपलब्धि है- जंतर मंतर! प्राचीन खगोलीय यंत्रों और जटिल गणितीय संरचनाओं के माध्यम से ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध इस अप्रतिम वेधशाला का निर्माण जयपुर नगर के संस्थापक आमेर के राजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने 1728 में अपनी निजी देखरेख में शुरू करवाया था, जो सन 1734में पूरा हुआ था। सवाई जयसिंह एक खगोल वैज्ञानिक भी थे, जिनके योगदान और व्यक्तित्व की प्रशंसा जवाहर लाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' ('भारत: एक खोज') में सम्मानपूर्वक की है। सवाई जयसिंह ने इस वेधशाला के निर्माण से पहले विश्व के कई देशों में अपने सांस्कृतिक दूत भेज कर वहां से खगोल-विज्ञान के प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथों की पांडुलिपियाँ मंगवाईं थीं और उन्हें अपने पोथीखाने (पुस्तकालय) में संरक्षित कर अपने अध्ययन के लिए उनका अनुवाद भी करवाया था। महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने हिन्दू खगोलशास्त्र में आधार पर देश भर में पांच वेधशालाओं का निर्माण कराया था। ये वेधशालाएं जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बनवाई गई। इन वेधशालाओं के निर्माण में उन्होंने उस समय के प्रख्यात खगोशास्त्रियों की मदद ली थी। सबसे पहले महारजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने उज्जैन में सम्राट यन्त्र का निर्माण करवाया, उसके बाद दिल्ली स्थित वेधशाला (जंतर-मंतर) और उसके दस वर्षों बाद जयपुर में जंतर-मंतर का निर्माण करवाया था। देश की सभी पांच वेधशालाओं में जयपुर की वेधशाला सबसे बड़ी है। इस वेधशाला के निर्माण के लिए 1724 में कार्य प्रारम्भ किया गया और 1734 में यह निर्माण कार्य पूरा हुआ।http://www.bhaskar.com/article/RAJ-JAI-challenge-the-world-4236516-PHO.html?seq.

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जिओवानी स्क्यापारेल्ली

जिओवानी विर्गिनियो स्क्यापारेल्ली (14 मार्च 1835 - 4 जुलाई 1910) एक इतालवी खगोलज्ञ और वैज्ञानिक इतिहासकार थे। उन्होंने टुरिन विश्वविद्यालय और बर्लिन वेधशाला में अध्ययन किया था। 1859-1860 में उन्होंने पुलकोवो वेधशाला में काम किया और बाद में ब्रेरा वेधशाला में चालीस वर्षों से ऊपर काम किया। वे इटली साम्राज्य के सभासद भी थे, आकादेमिया दी लिंसी, द अकादेमिया डेल्ले स्सिएंज़े दी तोरिनो और द रेगियो इस्तिठुठो लोम्बर्दो के भी सदस्य थे और विशेष रूप से मंगल ग्रह के अपने अध्ययन के लिए जाने जाते हैं। उनकी भतीजी, एल्सा स्क्यापारेल्ली, एक प्रसिद्ध फ़ैशनेबल वस्त्र-निर्माता बनी। .

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ज्येष्ठा तारा

स्वाती (आर्कत्युरस) भी दिखाया गया है ज्येष्ठा या अन्तारॅस, जिसका बायर नाम "अल्फ़ा स्कोर्पाए" (α Scorpii या α Sco) है, वॄश्चिक तारामंडल का सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले सोलहवा सब से रोशन तारा है। ज्येष्ठा समय के साथ अपनी चमक कम-ज़्यादा करने वाला एक परिवर्ती तारा है जिसकी औसत चमक (सापेक्ष कान्तिमान) +1.09 मैग्नीट्यूड है। यह पृथ्वी से लगभग 600 प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। .

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ज्वारभाटा बल

बृहस्पति से टकराया - बृहस्पति के भयंकर ज्वारभाटा बल ने उसे तोड़ डाला पृथ्वी पर ज्वार-भाटा चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण से बने ज्वारभाटा बल से आते हैं शनि के उपग्रही छल्ले ज्वारभाटा बल की वजह से जुड़कर उपग्रह नहीं बन जाते ज्वारभाटा बल वह बल है जो एक वस्तु अपने गुरुत्वाकर्षण से किसी दूसरी वस्तु पर स्थित अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग स्तर से लगाती है। पृथ्वी पर समुद्र में ज्वार-भाटा के उतार-चढ़ाव का यही कारण है। .

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जूनो (अंतरिक्ष यान)

बृहस्पति के आगे जूनो शोध यान का काल्पनिक चित्र जूनो (अंग्रेज़ी: Juno) अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान परिषद्, नासा, द्वारा हमारे सौर मंडल के पाँचवे ग्रह, बृहस्पति, पर अध्ययन करने के लिए पृथ्वी से ५ अगस्त २०११ को छोड़ा गया एक अंतरिक्ष शोध यान है। लगभग ५ वर्ष लंबी यात्रा के बाद ५ जुलाई २०१६ को यह बृहस्पति तक पहुँचने में सफल रहा। इस अभियान पर लगभग १.१ अरब डॉलर की लागत का अनुमान है। .

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जेनिस ऐलेन वोस

जेनिस ऐलेन वोस एक अमेरिकी इंजीनियर और नासा के अंतरिक्ष यात्री थी। उन्होंने अमेरिकी महिलाओं के रिकॉर्ड को बरकरार रखते हुए पांच बार अंतरिक्ष में उड़ान भरी। जेनिस ऐलेन वोस की मृत्यु ६ फ़रवरी, २०१२ को स्तन कैंसर से हुई थी। वोस ने १९७२ में विल्ब्राम मैसाचुसेट्स में मिनेछाग क्षेत्रीय हाई स्कूल से अपनी स्कूल की पढाई पूरी की और जॉनसन स्पेस सेंटर में सह-ऑप पर काम करते हुए उन्होंने पर्ड्यू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि अर्जित की। उन्होंने १९७७ में एमआईटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस में अपनी मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की और १९७७ से १९७८ तक राइस विश्वविद्यालय में अंतरिक्ष भौतिकी का अध्ययन करने के बाद, उन्होंने एमआईटी से १९७९ में एरोनेटिक्स/एस्ट्रोनॉटिक्स में डॉक्टरेट की उपाधि भी अर्जित की। .

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जी॰जे॰ ५०४ बी ग्रह

जी॰जे॰ ५०४ बी (GJ 504 b) कन्या तारामंडल के ५९ कन्या तारे (उर्फ़ ५९ वर्जिनिस या जी॰जे॰ ५०४) की परिक्रमा करता हुआ एक गैस दानव ग्रह है। अगस्त २०१३ में मिले इस ग्रह का द्रव्यमान (मास) हमारे सौर मंडल के बृहस्पति ग्रह से लगभग ४ गुना अनुमानित किया गया है। अन्दाज़ा लगाया जाता है कि यदि इस ग्रह को आँखों द्वारा सीधा देखा जा सकता तो इसका रंग गाढ़ा गुलाबी प्रतीत होता। ५९ कन्या तारा सूरज से मिलता-जुलता G-श्रेणी का मुख्य अनुक्रम तारा है और जिस समय जी॰जे॰ ५०४ बी की खोज हुई थी वह सूरज-जैसे तारों के ग्रहीय मंडलों में तब तक पाए गए ग्रहों में से सबसे कम द्रव्यमान रखता था।, August 06, 2013, Space.com,...

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घूर्णन काल

अपने घूर्णन अक्ष पर घूर्णन करता हुआ एक गोला भौतिकी में, घूर्णन काल (rotation period) उस समय के अवधि को कहते हैं जिसमें कोई घूर्णन करती हुई (यानि लट्टू की तरह घूमती हुई) वस्तु अपने घूर्णन अक्ष के इर्द-गिर्द एक चक्कर पूरा कर लेती है। उदाहरण के लिए, पृथ्वी अपने अक्ष पर लगभग चौबीस घंटे (यानि लगभग एक दिन) में एक चक्कर पूरा कर लेती है, इसलिए उसका घूर्णन काल लगभग एक दिन है। हमारे सौर मण्डल का सूरज भी घूर्णन कर रहा है लेकिन चूँकि वह पूरा गैस का बना है और उसमें पृथ्वी जैसी सख्ती नहीं है इसलिए उसका मध्य हिस्सा उसके ध्रुवों की अपेक्षा जल्दी घूर्णन करता है। सूरज की मध्य रेखा पर घूर्णन काल २५ दिन ९ घंटे ७ मिनट है, जबकि उसके ध्रुवों का घूर्णन काल ३५ दिन है। .

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वरुण (ग्रह)

वरुण, नॅप्टयून या नॅप्चयून हमारे सौर मण्डल में सूर्य से आठवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का चौथा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर तीसरा बड़ा ग्रह है। वरुण का द्रव्यमान पृथ्वी से १७ गुना अधिक है और अपने पड़ौसी ग्रह अरुण (युरेनस) से थोड़ा अधिक है। खगोलीय इकाई के हिसाब से वरुण की कक्षा सूरज से ३०.१ ख॰ई॰ की औसत दूरी पर है, यानि वरुण पृथ्वी के मुक़ाबले में सूरज से लगभग तीस गुना अधिक दूर है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में १६४.७९ वर्ष लगते हैं, यानि एक वरुण वर्ष १६४.७९ पृथ्वी वर्षों के बराबर है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। वरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और अरुण (युरेनस) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। .

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वरुण के प्राकृतिक उपग्रह

ट्राइटन, की तस्वीर हमारे सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण (नॅप्टयून) के १३ ज्ञात प्राकृतिक उपग्रह हैं। इनमें से ट्राइटन बाक़ी सबसे बहुत बड़ा है। अगर वरुण के सारे चंद्रमाओं का कुल द्रव्यमान देखा जाए तो उसका ९९.५% इस एक उपग्रह में निहित है। ट्राइटन वरुण का इकलौता उपग्रह है जो अपने गुरुत्वाकर्षक खिचाव से अपना अकार गोल कर चुका है। बाक़ी सभी चंद्रमाओं के अकार बेढंगे हैं। ट्राइटन का अपना पतला वायुमंडल भी है, जिसमें नाइट्रोजन के साथ-साथ थोड़ी मात्रा में मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड भी मौजूद हैं। ट्राइटन की सतह पर औसत तापमान -२३५.२° सेंटीग्रेड है। १९८६ में पास से गुज़रते हुए वॉयेजर द्वितीय यान ने कुछ ऐसी तस्वीरें ली जिनमें ट्राइटन के वातावरण में बादलों जैसी चीज़ें नज़र आई थीं। ट्राइटन की वरुण की इर्द-गिर्द परिक्रमा की कक्षा थोड़ी अजीब है जिस से वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के ट्राइटन वरुण से दूर कहीं और बना था और भटकते हुए वरुण के पास जा पहुंचा जहाँ वह वरुण के तगड़े गुरुत्वाकर्षण की पकड़ में आ गया और तब से उसकी परिक्रमा कर रहा है। .

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वरुण-पार वस्तुएँ

वरुण-पार वस्तुएँ (व॰पा॰व॰, अंग्रेज़ी: Trans-Neptunian objects, ट्रांस-नॅप्ट्यूनियन ऑब्जेक्ट्स) सौर मण्डल की ऐसी खगोलीय वस्तुएँ हैं जो वरुण (नॅप्ट्यून) की कक्षा से बाहर सूरज की परिक्रमा करती हैं। यह वस्तुएँ तीन क्षेत्रों में पायी जाती हैं - काइपर घेरा, बिखरा चक्र और और्ट बादल। सब से पहली खोजी गयी वरुण-पार वस्तु यम (प्लूटो) था जो १९३० में पाया गया। उसके बाद ४८ साल तक कोई अन्य वरुण-पार वस्तु नहीं मिली। १९७८ में जाकर यम का उपग्रह शैरन मिला और फिर १९९२ के बाद से हज़ार से ज़्यादा वस्तुएँ मिल चुकी हैं। .

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विद्युत वाहन

विद्युतीय वाहन या विद्युत वाहन एक प्रकार के विद्युत से चलने वाले वाहन होते हैं। यह वाहन अपने बैटरी द्वारा चलते हैं या कोई बाहरी स्रोत द्वारा विद्युत दिये जाने पर। इसमें विद्युत से चलने वाले रेल भी शामिल हैं। यह ऊपर दिये गए तार द्वारा उच्च विद्युत प्रवाह किए जाने पर चलते हैं। लेकिन कभी कभी इसमें गलती से इसके ऊपर चले जाते हैं और विद्युत प्रवाह के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है। लेकिन यह रेल कई प्रकार से उपयोगी है। इसके द्वारा पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है और इसमें बहुत से लोग अपनी यात्रा कर सकते हैं। जिससे लागत में कमी आती है। .

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विशेष चाल

किसी तारे की कुल चाल (space velocity) में दो हिस्से होते हैं - रेडियल वेग जो उसके हमारे पास-दूर आने का माप है और 'विशेष चाल' जो उसके दाएँ-बाएँ जाने का माप है खगोलशास्त्र में विशेष चाल (proper motion) हमारे सौर मंडल के द्रव्यमान केंद्र से देखे गए किसी तारे के स्थान में समय के साथ-साथ हुए कोण (ऐंगल) में परिवर्तन को कहते हैं। इसका माप आर्कसैकिंड प्रति वर्ष (arcseconds per year) में किया जाता है - aik डिग्री कोण में ३,६०० आर्कसैकिंड होते हैं। यदि सौर मंडल के द्रव्यमान केंद्र पर कोई दर्शक स्थित हो तो उसके लिए तारे का दाएँ-बाएँ hilna 'विशेष चाल' कहलाएगा जबकि तारे का उसके पास आना या उस से दूर जाना रेडियल वेग कहलाएगा। ध्यान दें कि विशेष चाल वास्तव में केवल तारे की चाल पर निर्भर नहीं है क्योंकि हमारा सौर मंडल स्वयं भी ब्रह्माण्ड के दिक् (स्पेस) में चल रहा है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि अगर हम तारे के दूर या पास होने को अलग छोड़ दें तो उसकी विशेष चाल खगोलीय गोले पर देखी गए उसके स्थान-परिवर्तन का माप है।, William Millar, pp.

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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी २०१०

इन्हें भी देखें- भारत 2010 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2010 साहित्य संगीत कला 2010 खेल जगत 2010 .

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वॅस्टा (क्षुद्रग्रह)

घूर्णन (रोटेशन) करते हुए वॅस्टा का चित्रण डॉन शोध यान द्वारा ली गई वॅस्टा की तस्वीर वॅस्टा (Vesta), जिसका औपचारिक नाम 4 वॅस्टा है, सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे में स्थित एक क्षुद्रग्रह है। इसका व्यास (डायामीटर) लगभग 530 किलोमीटर है और सीरीस बौने ग्रह के बाद यह क्षुद्रग्रह घेरे की दूसरी सब से बड़ी वस्तु है। पूरे क्षुद्रग्रह घेरे की सारी वस्तुओं को अगर मिला लिया जाए तो उसका 9% द्रव्यमान (मास) वॅस्टा में है। यह क्षुद्रग्रह घेरे की सब से रोशन वस्तु भी है। 16 जुलाई 2011 को अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान एजेंसी नासा का डॉन शोध यान वॅस्टा के इर्द-गिर्द कक्षा में आकर उसकी परिक्रमा करने लगा। .

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वॉयेजर द्वितीय

वायेजर द्वितीय एक अमरीकी मानव रहित अंतरग्रहीय शोध यान था जिसे वायेजर १ से पहले २० अगस्त १९७७ को अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। यह काफी कुछ अपने पूर्व संस्करण यान वायेजर १ के समान ही था, किन्तु उससे अलग इसका यात्रा पथ कुछ धीमा है। इसे धीमा रखने का कारण था इसका पथ युरेनस और नेपचून तक पहुंचने के लिये अनुकूल बनाना। इसके पथ में जब शनि ग्रह आया, तब उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण यह युरेनस की ओर अग्रसर हुआ था और इस कारण यह भी वायेजर १ के समान ही बृहस्पति के चन्द्रमा टाईटन का अवलोकन नहीं कर पाया था। किन्तु फिर भी यह युरेनस और नेपच्युन तक पहुंचने वाला प्रथम यान था। इसकी यात्रा में एक विशेष ग्रहीय परिस्थिति का लाभ उठाया गया था जिसमे सभी ग्रह एक सरल रेखा मे आ जाते है। यह विशेष स्थिति प्रत्येक १७६ वर्ष पश्चात ही आती है। इस कारण इसकी ऊर्जा में बड़ी बचत हुई और इसने ग्रहों के गुरुत्व का प्रयोग किया था। .

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वी वाई महाश्वान

वी वाई महाश्वान हमारे सूरज से लगभग दो हज़ार गुना बड़ा है वी वाई महाश्वान (बायर नाम: VY CMa) महाश्वान तारामंडल में स्थित एक लाल परमदानव तारा जो पूरे पूरे ब्रह्माण्ड में अब तक सब से बड़ा मिला तारा है। इसका व्यास (डायामीटर) १८०० से २१०० सौर व्यास के बराबर है, यानी हमारे सूरज के व्यास से लगभग दो हज़ार गुना। वी वाई महाश्वान पृथ्वी से ४,९०० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर है। यह तारा इतना बड़ा है के अगर पृथ्वी के सौर मंडल से सूरज हटाकर इसे रख दिया जाए तो शनि की कक्षा तक की जगह इसी तारे के अन्दर हो जाए। .

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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खगोलीय दूरी

खगोलीय दूरियाँ बाहरी अंतरिक्ष की दूरियां होती हैं, जो पॄथ्वी के ऊपर की दूरियों के मुकाबले काफ़ी अधिक बडी़ होती हैं। जैसे कि हमारे सौर मंडल के निकटतम तारे, प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी पृथ्वी से लगभग 40,000,000,000,000 किलोमीटर है। इस कारण खगोलीय दूरियों के लिये प्रकाश वर्ष का प्रयोग होता है। अतएव किसी खगोलीय वस्तु की दूरी बताने हेतु प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की जाने वाली दूरी की संख्या में बताते हैं। जैसे सूर्य पृथ्वी से 150,000,000 कि॰मी॰ दूर है, या 8 प्रकाश मिनट दूर है। अल्फा सेन्टॉरी .

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खगोलीय धूल

खगोलीय धूल का कण - यह कॉन्ड्राइट, यानि पत्थरीले पदार्थ, का बना है चील नॅब्युला जहाँ गैस और खगोलीय धूल के बादल में तारे बन रहे हैं खगोलीय धूल अंतरिक्ष में मिलने वाले वह कण होते हैं जो आकार में कुछ अणुओं के झुण्ड से लेकर ०.१ माइक्रोमीटर तक होते हैं। इस धूल में कई प्रकार के पदार्थ हो सकते हैं। खगोलीय धूल ब्रह्माण्ड में कई जगह मिलती है -.

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खगोलीय वस्तु

आकाशगंगा सब से बड़ी खगोलीय वस्तुएँ होती हैं - एन॰जी॰सी॰ ४४१४ हमारे सौर मण्डल से ६ करोड़ प्रकाश-वर्ष दूर एक ५५,००० प्रकाश-वर्ष के व्यास की आकाशगंगा है खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक रूप से पायी जाती है, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी आदि शामिल हैं। .

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गति के नियम

* शास्त्रीय (क्लासिकल) यांत्रिकी.

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गामा ऍरिडानी तारा

गामा ऍरिडानी (Gamma Eridani) या ज़ौराक (Zaurak), जिसका बायर नाम γ ऍरिडानी (γ Eridani, γ Eri) है, स्रोतास्विनी तारामंडल में स्थित एक परिवर्ती तारा है। यह हमारे सौर मंडल से लगभग 203 प्रकाशवर्ष दूर है और पृथ्वी से देखे जाने पर 2.9 का सापेक्ष कांतिमान रखता है। गामा ऍरिडानी एक विकसित लाल दानव तारा है। .

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गांगेय वर्ष

गांगेय वर्ष (Galactic year), सौरमंडल द्वारा आकाशगंगा के केंद्र का एक पूर्ण चक्कर लगाने में लिया जाने वाला समय है |, Fact Guru, University of Ottawa एक गांगेय वर्ष का अनुमानित मान २२ से २५ करोड़ वर्ष है | इसे GY संकेत द्वारा दर्शाया जाता है | नासा के अनुसार, सौर मंडल 8,28,000 किमी/घंटा (230 किमी/सेकंड) या 5,14,000 मील प्रति घंटा (143 मील/सेकंड) की औसत गति से यात्रा कर रहा है,http://starchild.gsfc.nasa.gov/docs/StarChild/questions/question18.html NASA - StarChild Question of the Month for February 2000 जो प्रकाश की गति का 1300वां है। यदि आप इसी गति से एक जेट विमान में भूमध्य रेखा के साथ-साथ यात्रा कर सकते हो, तो आपका दुनिया भर में जाना करीब 2 मिनट और 54 सेकंड में हो पाएगा। नासा के अनुसार, यहां तक ​​कि इस अविश्वसनीय गति पर, यह भी मिल्कीवे आकाशगंगा के केन्द्र की एक बार परिक्रमा के लिए सौरमंडल के 23 करोड़ साल लेता है | गांगेय वर्ष ब्रह्मांडीय और भूवैज्ञानिक समयावधि के चित्रण के लिए एक साथ एक सुविधाजनक उपयोगी इकाई प्रदान करता है। इसके विपरीत, एक "अरब-वर्ष" पैमाना भूगर्भिक घटनाओं के बीच उपयोगी विभेद की अनुमति नहीं देता है और एक "लाख-वर्ष" पैमाने को कुछ हद तक ही बड़ी संख्या की जरुरत होती है | .

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ग्रह

हमारे सौरमण्डल के ग्रह - दायें से बाएं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून सौर मंडल के ग्रहों, सूर्य और अन्य पिंडों के तुलनात्मक चित्र सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिण्डों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह और हैं - सीरीस, प्लूटो और एरीस। प्राचीन खगोलशास्त्रियों ने तारों और ग्रहों के बीच में अन्तर इस तरह किया- रात में आकाश में चमकने वाले अधिकतर पिण्ड हमेशा पूरब की दिशा से उठते हैं, एक निश्चित गति प्राप्त करते हैं और पश्चिम की दिशा में अस्त होते हैं। इन पिण्डों का आपस में एक दूसरे के सापेक्ष भी कोई परिवर्तन नहीं होता है। इन पिण्डों को तारा कहा गया। पर कुछ ऐसे भी पिण्ड हैं जो बाकी पिण्डों के सापेक्ष में कभी आगे जाते थे और कभी पीछे - यानी कि वे घुमक्कड़ थे। Planet एक लैटिन का शब्द है, जिसका अर्थ होता है इधर-उधर घूमने वाला। इसलिये इन पिण्डों का नाम Planet और हिन्दी में ग्रह रख दिया गया। शनि के परे के ग्रह दूरबीन के बिना नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए प्राचीन वैज्ञानिकों को केवल पाँच ग्रहों का ज्ञान था, पृथ्वी को उस समय ग्रह नहीं माना जाता था। ज्योतिष के अनुसार ग्रह की परिभाषा अलग है। भारतीय ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नौ ग्रह गिने जाते हैं, सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। .

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ग्रहीय मण्डल

एक काल्पनिक ग्रहीय मण्डल एक और काल्पनिक ग्रहीय मण्डल का नज़दीकी दृश्य - इसमें पत्थर, गैस और धूल अपने तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा कर रहें हैं ग्रहीय मण्डल किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। .

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ग्रहीय क्रोड

सौर मंडल के कुछ अंदरूनी ग्रहों की आंतरिक संरचना ग्रहीय क्रोड (planetary core) किसी ग्रह, उपग्रह या बड़े क्षुद्रग्रह की सबसे भीतरी तह को कहा जाता है। यह ठोस या द्रव (लिक्विड) या उन दोनों की परतों का सम्मिलन हो सकती है। हमारे सौर मंडल में ग्रहीय क्रोड का पूरी वस्तु की त्रिज्या (रेडियस) में हिस्सा चंद्रमा में २०% से लेकर बुध ग्रह (मर्क्युरी) में ८५% तक है। गैस दानवों की भी क्रोडें होती हैं लेकिन उनकी बनावट पर बहस जारी है - वह पत्थर की, बर्फ़ की या फिर धातु हाइड्रोजन के द्रव की हो सकती है। .

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ग्लीज़ 581सी

ग्लीज़ 581सी एक सुपर पृथ्वी है और यह अपने सौर मंडल से परे है। यह लाल बौने तारे ग्लीज़ 581 का चक्कर लगाता रहता है। एसा माना गया है कि तारे को घेरने वाले क्षेत्र का तापमान रहन योग्य हो स्कता है और पानी की उपस्थिति की भी संभावना है। यह ग्रह पृथ्वी से 20.5 प्रकाश वर्ष दूर है।.

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ग्लीज़ २२९

ग्लीज़ २२९ तारे के इर्द-गिर्द घूमता हुआ ग्लीज़ २२९बी (छोटा गोला), जो एक भूरा बौना है ग्लीज़ २२९, जिसे जी आई २२९ (GI229) और जी जे २२९ (GJ229) भी कहा जाता है, हमारे सौर मण्डल से १९ प्रकाश-वर्ष दूर ख़रगोश तारामंडल (अंग्रेज़ी में लीपस तारामंडल) में पाया जाने वाला एक लाल बौना तारा है। इसका एक क़रीबी पड़ौसी ग्लीज़ २२९बी है जो एक भूरा बौना है (ग्रह और तारे के बीच की एक वस्तु)। .

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गैनिमीड (उपग्रह)

गैनीमीड का अंदरूनी ढांचा - सब से बाहर सख़्त बर्फ़ की पर्त, फिर पानी का महासागर, फिर एक पथरीला गोला और केंद्र में लोहे और अन्य धातुओं का गोला गैनिमीड हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का भी सब से बड़ा चन्द्रमा है। इसका व्यास (डायामीटर) 5,268 किमी है, जो बुध ग्रह से भी 8% बड़ा है। इसका द्रव्यमान भी सौर मंडल के सारे चंद्रमाओं में सबसे ज़्यादा है और पृथ्वी के चन्द्रमा का 2.2 गुना है। .

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गैलाटिआ (उपग्रह)

वॉयेजर द्वितीय यान द्वारा ली गयी गैलाटिआ की तस्वीर - यह चित्र थोड़ा खिचा हुआ है, वास्तव में गैलाटिआ इतना लम्बा नहीं है गैलाटिआ सौर मण्डल के आठवे ग्रह वरुण का एक उपग्रह है। यह वरुण के सारे उपग्रहों में से उस से चौथा सबसे समीप परिक्रमा करने वाला उपग्रह है। लरिसा का औसत व्यास १७६ किमी है और इसका अकार बेढंगा है (यानि गोल नहीं है)। इस उपग्रह का रंग गाढ़ा प्रतीत होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है के वरुण का यह चन्द्रमा वरुण के साथ-साथ निर्मित नहीं हुआ था, बल्कि उस मलबे के कुछ जमावड़े से बन गया है जब वरुण नें अपने से पास गुज़रते हुए ट्राइटन को अपने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण के क़ब्ज़े में लेकर उसे अपना उपग्रह बना लिया। उस दौरान वरुण के इर्द-गिर्द घूम रहे पुराने उपग्रहों में गुरुत्वकर्षण के बदलते प्रभाव से काफ़ी टकराव हुए थे जिनसे वे उपग्रह ध्वस्त हो गए और अपना मलबा छोड़ गए और गैलाटिआ उसी का नतीजा है। ट्राइटन को छोड़कर, वरुण के अन्य उपग्रहों का निर्माण कुछ ऐसे ही हुआ था। वरुण के कुछ अन्य अंदरूनी चंद्रमाओं की तरह, गैलाटिआ भी धीरे-धीरे वरुण के समीप आता जा रहा है और वैज्ञानिकों का विचार है के कुछ समय बात यह या तो वरुण के वायुमंडल में गिरकर ध्वस्त हो जाएगा या वरुण की रोश सीमा के अन्दर आने से उसके गुरुत्वाकर्षण द्वारा तोड़कर एक उपग्रही छल्ले के लिए मलबा बन जाएगा। .

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गैलिलेयो (अंतरिक्ष यान)

गैलिलेयो यान निर्मित होते हुए गैलिलेयो (या गैलिलियो) एक अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषण यान था जो कि बृहस्पति ग्रह का अन्वेषण करता था। गैलिलेयो (Galileo) अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा द्वारा अंतरिक्ष शटल अटलांटिस से भेजा गया अंतरिक्ष यान था जो हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति और उसके प्राकृतिक उपग्रहों का अध्ययन करने के लिए भेजा गया था। यह परिक्रमा करने वाले ऑर्बिटर प्रकार का था। .

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गैलीलियन चंद्रमा

गैलीलियन चन्द्रमा (Galilean moons), गैलीलियो गैलीली द्वारा जनवरी 1610 में खोजे गए बृहस्पति के चार चन्द्रमा हैं। वे बृहस्पति के कई चन्द्रमाओं में से सबसे बड़े हैं और वें है: आयो, युरोपा, गेनिमेड और कैलिस्टो। सूर्य और आठ ग्रहों को छोड़कर किसी भी वामन ग्रह से बड़ी त्रिज्या के साथ वें सौरमंडल में सबसे बड़े चंद्रमाओं में से है। तीन भीतरी चांद - गेनीमेड, यूरोपा और आयो एक 1: 2: 4 के कक्षीय अनुनाद में भाग लेते हैं। यह चारों चंद्रमा सन् 1609 और 1610 के बीच किसी समय खोजे गए जब गैलिलियो ने अपनी दूरबीन मे सुधार किया, जिसे उन्हे उन सूदूर आकाशीय पिंडो के प्रेक्षण के योग्य बनाया जिन्हे पहले कभी देखने की संभावना नहीं थी।Galilei, Galileo, Sidereus Nuncius.

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गैस दानव

हमारे सौर मण्डल के चार गैस दानव - सूर्य के आगे दर्शाए गए गैस दानव उन ग्रहों को कहा जाता है जिनमें मिटटी-पत्थर की बजाय ज़्यादातर गैस ही गैस होती है और जिनका आकार बहुत ही विशाल होता है। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रह इस श्रेणी में आते हैं - बृहस्पति, शनि, अरुण (युरेनस)) और वरुण (नॅप्टयून)। इनमें पायी जाने वाली गैस ज़्यादातर हाइड्रोजन और हीलियम होती है, हालाँकि इनमें अक्सर और गैसें भी मिलती हैं, जैसे कि अमोनिया। अन्य सौर मंडलों में बहुत से गैस दानव ग्रह पाए जा चुके हैं। .

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गूगल स्काई

गूगल स्काई, गूगल के गूगल अर्थ की एक सुविधा है और www.google.com/sky पर एक ऑनलाइन स्काई/आउटर स्पेस व्यूअर है। यह स्काई दृश्यों को दिखाता है जो हब्बल दूरबीन के अंतरिक्ष तस्वीरों के सहयोग से बना होता है। इसे 27 अगस्त 2007 को बनाया गया था। .

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और्ट बादल

चित्रकार द्वारा कल्पित और्ट बादल का चित्र - ऊपर बाएँ की और काइपर घेरा दिखाया गया है और्ट बादल या और्ट क्लाउड एक गोले के रूप का धूमकेतुओं का बादल है जो सूर्य से लगभग एक प्रकाश-वर्ष के दूरी पर हमारे सौर मण्डल को घेरे हुए है। इसमें अरबों की संख्या में धूमकेतु हैं। खगोलीय इकाई में एक प्रकाश वर्ष लगभग ५०,००० ख॰ई॰ होता है (१ ख॰ई॰ पृथ्वी से सूरज की दूरी है), यानि और्ट बादल सूरज से पृथ्वी के मुक़ाबले में पचास हज़ार गुना अधिक दूर है। और्ट बादल सौर मण्डल के सब से दूर-तरीन क्षेत्र है। सौर मण्डल के काइपर घेरे और बिखरा चक्र वाले क्षेत्र - जो वैसे बहुत बाहर की ओर माने जाते हैं - दोनों और्ट बादल के हज़ार गुना अधिक सूरज के पास है। यह बात ध्यान योग्य है के वैज्ञानिकों ने और्ट बादल के अस्तित्व के मिल जाने की भविष्यवाणी तो की है लेकिन इसके अस्तित्व का अभी कोई पक्का प्रमाण नहीं मिला है। मानना है के और्ट बादल हमारे सौर मण्डल की गुरुत्वाकर्षक सीमा पर है और उसके बाद सूरज का खिचाव बहुत कम रह जाता है। .

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आऐपिटस (उपग्रह)

कैसीनी यान से ली गयी आऐपिटस की तस्वीर जिसमें इसके दो अलग-अलग रंग वाले भाग साफ़ नज़र आ रहे हैं आऐपिटस की भूमध्य चट्टान का एक नज़दीकी चित्र आऐपिटस हमारे सौर मण्डल के छठे ग्रह शनि का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है। आऐपिटस सौर मण्डल के सारे उपग्रहों में से ग्यारहवाँ सब से बड़ा उपग्रह है। इसकी खोज १६७१ में इटली के खगोलशास्त्री जिओवान्नी कैसीनी ने की थी। आऐपिटस इस बात के लिए मशहूर है के उसके एक भाग का रंग काफ़ी हल्का है और दुसरे भाग का रंग बहुत ही गाढ़ा है। इस उपग्रह के ठीक मध्य रेखा में एक उठी हुई चट्टान देखी गयी है जो इस चाँद के आधे हिस्से तक चलती है। आऐपिटस का घनत्व काफ़ी कम है और वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के इसमें सिर्फ़ २०% पत्थर है और बाक़ी सब पानी की बर्फ़ है। .

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आदिग्रह चक्र

एक चित्रकार द्वारा कल्पनित किसी तारे के इर्द-गिर्द परिक्रमा करता आदिग्रह चक्र आदिग्रह चक्र या प्रोटोप्लैनॅटेरी डिस्क या प्रॉपलिड एक नए जन्में तारे के इर्द-गिर्द घूमता घनी गैस का चक्र होता है। कभी-कभी इस चक्र में जगह-जगह पर पदार्थों का जमावड़ा हो जाने से पहले धूल के कण और फिर ग्रह जन्म ले लेते हैं। .

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आयो (उपग्रह)

आयो (Io), हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का तीसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का चौथा सब से बड़ा चन्द्रमा है। आयो का व्यास (डायामीटर) 3,642 किमी है। बृहस्पति के चार प्रमुख उपग्रहों (गैनिमीड, कलिस्टो, आयो और यूरोपा) में यह बृहस्पति की सब से क़रीबी कक्षा में परिक्रमा करने वाला चन्द्रमा है। बृहस्पति के इतना समीप होने की वजह से उस ग्रह के भयंकर गुरुत्वाकर्षण से पैदा होने वाला ज्वारभाटा बल आयो को गूंथता रहता है जिस से इस उपग्रह पर बहुत से ज्वालामुखी हैं। सन् 2010 तक आयो पर 400 से भी अधिक सक्रीय ज्वालामुखी गिने जा चुके थे। पूरे सौर मंडल में और कोई वस्तु नहीं जहाँ आयो से ज़्यादा भौगोलिक उथल-पुथल हो रही हो। सौर मंडल के बाहरी चंद्रमाओं की बनावट में ज़्यादातर बर्फ़ की बहुतायत होती है लेकिन आयो पर ऐसा नहीं है। आयो अधिकतर पत्थरीले पदार्थों का बना हुआ है। .

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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आकाशगंगा

स्पिट्ज़र अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी आकाशगंगा के केन्द्रीय भाग की इन्फ़्रारेड प्रकाश की तस्वीर। अलग रंगों में आकाशगंगा की विभिन्न भुजाएँ। आकाशगंगा के केंद्र की तस्वीर। ऍन॰जी॰सी॰ १३६५ (एक सर्पिल गैलेक्सी) - अगर आकाशगंगा की दो मुख्य भुजाएँ हैं जो उसका आकार इस जैसा होगा। आकाशगंगा, मिल्की वे, क्षीरमार्ग या मन्दाकिनी हमारी गैलेक्सी को कहते हैं, जिसमें पृथ्वी और हमारा सौर मण्डल स्थित है। आकाशगंगा आकृति में एक सर्पिल (स्पाइरल) गैलेक्सी है, जिसका एक बड़ा केंद्र है और उस से निकलती हुई कई वक्र भुजाएँ। हमारा सौर मण्डल इसकी शिकारी-हन्स भुजा (ओरायन-सिग्नस भुजा) पर स्थित है। आकाशगंगा में १०० अरब से ४०० अरब के बीच तारे हैं और अनुमान लगाया जाता है कि लगभग ५० अरब ग्रह होंगे, जिनमें से ५० करोड़ अपने तारों से जीवन-योग्य तापमान रखने की दूरी पर हैं। सन् २०११ में होने वाले एक सर्वेक्षण में यह संभावना पायी गई कि इस अनुमान से अधिक ग्रह हों - इस अध्ययन के अनुसार आकाशगंगा में तारों की संख्या से दुगने ग्रह हो सकते हैं। हमारा सौर मण्डल आकाशगंगा के बाहरी इलाक़े में स्थित है और आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक पूरी परिक्रमा करने में लगभग २२.५ से २५ करोड़ वर्ष लग जाते हैं। .

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इथाका घाटी (टॅथिस)

कैसिनी अंतरिक्ष यान द्वारा लिया गया इथाका घाटी के दक्षिणी हिस्से का चित्र इथाका घाटी का एक काल्पनिक दृश्य इथाका घाटी हमारे सौर मंडल के छठे ग्रह शनि के उपग्रह टॅथिस पर स्थित एक खगोलवैज्ञानिकों में प्रसिद्ध तंग घाटी है। यह १०० किलोमीटर चौड़ी, ३ से ५ किमी गहरी और २,००० किमी लम्बी है और टॅथिस के पूरे व्यूह के तीन-चौथाई हिस्से तक चलती है। इसकी चौड़ाई जगह-जगह पर बदलती रहती है - कहीं तो यह सिर्फ़ चंद किलोमीटर ही चौड़ी है और कहीं पर १०० किमी तक चौड़ी है। वैज्ञानिक अनुमान लगते हैं के यह तंग घाटी टॅथिस पर पिछले ४ अरब वर्षों से मौजूद है। वह मानते हैं के टॅथिस पर बहुत सा पानी था जिसके ऊपर बर्फ की मोती परत थी। फिर यह अंदरूनी पानी धीरे-धीरे जमने लगा। पानी जब बर्फ़ बनता है तो उसका आकार फैलता है (यही वजह है के बर्फ़ में रखी पानी की बोतले फट जाती हैं)। जैसे-जैसे यह पानी जमा, उसके फैलने से ऊपर का बर्फीला खोल तंग पड़ गया और फट गया। यही दरार अब इथाका घाटी कहलाती है। .

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कलिस्टो (उपग्रह)

कलिस्टो हमारे सौर मण्डल के पाँचवे ग्रह बृहस्पति का दूसरा सब से बड़ा उपग्रह है और यह पूरे सौर मंडल का तीसरा सब से बड़ा चन्द्रमा है (बृहस्पति के ही गैनिमीड और शनि के टाइटन के बाद)। इसका व्यास (डायामीटर) लगभग 4,820 किमी है, जो बुध ग्रह का 99% है लेकिन बुध से काफ़ी घनत्व होने के कारण इसका द्रव्यमान बुध का केवल एक-तिहाई है। .

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कालोरिस द्रोणी

मेसेंजर यान द्वारा खींचा गया कालोरिस द्रोणी का चित्र कालोरिस द्रोणी (अंग्रेज़ी: Caloris Basin) या कालोरिस प्लानितिया (अंग्रेज़ी: Caloris Planitia) बुध ग्रह (मरक्यूरी) पर स्थित एक बड़ा प्रहार क्रेटर है। इसका व्यास १,५५० किमी (९६० मील) है। हमारे सौर मंडल में यह सबसे विशाल प्रहार द्रोणियों में से एक गिना जाता है। बुध ग्रह का एक रुख़​ सदैव सूरज की ओर होता है, जिसके कारण बुध के एक गोलार्ध (हेमिसफियर) में हमेशा रोशनी और दूसरे में हमेशा रात रहती है। कालोरिस द्रोणी उस रेखा पर स्थित है जो ठीक इन अनंत दिन-रात वाले गोलार्धों के बीच है। इस क्रेटर की सीमा पर २ किमी ऊंचे पहाड़ों का घेरा है। .

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काइपर घेरा

काइपर घेरे की ज्ञात वस्तुएँ - मुख्य घेरे की वस्तुएँ हरे रंग में, घेरे की बिखरी हुई वस्तुएँ नारंगी रंग में, सौर मण्डल के चार बाहरी ग्रह नीले रंग में, वरुण (नॅप्ट्यून) के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ पीले रंग में और बृहस्पति के इर्द-गिर्द की वस्तुएँ गुलाबी रंग में दिखाई गयी हैं काइपर घेरा, काइपर-ऍजवर्थ घेरा या काइपर बॅल्ट हमारे सौर मण्डल का एक बाहरी क्षेत्र है जो वरुण ग्रह (नॅप्ट्यून) की कक्षा (जो सूरज से लगभग ३० खगोलीय इकाई दूर है) से लेकर सूर्य से ५५ ख॰इ॰ तक फैला हुआ है। क्षुद्रग्रह घेरे की तरह इसमें भी हज़ारों-लाखों छोटी-बड़ी खगोलीय वस्तुएँ हैं जो सौर मण्डल के ग्रहों के सृजनात्मक दौर से बची हुई रह गयी। काइपर घेरा का क्षेत्र क्षुद्रग्रह घेरे के क्षेत्र से २० गुना चौड़ा और २०० गुना ज़्यादा फैला हुआ है। जहाँ क्षुद्रग्रह घेरे की वस्तुएँ पत्थर और धातुओं की बनी हुई हैं, वहाँ काइपर घेरे की वस्तुएँ सर्दी की सख्ती से जमे हुए पानी, मीथेन और अमोनिया की मिली-जुली बर्फ़ों की बनी हुई हैं। सौर मण्डल के ज्ञात बौने ग्रहों में से तीन - यम, हउमेया और माकेमाके - काइपर घेरे के निवासी हैं। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है के सौर मण्डल के कुछ प्राकृतिक उपग्रह भी इसी घेरे में जन्मे और घुमते-फिरते अपने ग्रहों के निटक पहुँच कर उनके गुरुत्वाकर्षण में फँस कर उनकी परिक्रमा करने लगे, जैसे की वरुण (नॅप्ट्यून) का उपग्रह ट्राइटन और शनि का उपग्रह फ़ीबी। काइपर घेरे का नाम डच-अमेरिकी खगोलशास्त्री जेरार्ड काइपर के नाम पर रखा गया हालाँकि, वास्तव में खुद उन्होंने इसके अस्तित्व की भविष्यवाणी नहीं की थी। वर्ष 1992 में, यम के बाद खोजा जाने वाला पहला काइपर घेरा वस्तु (केबीओ) था। इसकी खोज के बाद से अब तक, ज्ञात काइपर घेरा वस्तुओं (केबीओ'स) की संख्या हज़ार से अधिक हो चुकी है और से अधिक व्यास वाले 1,00,000 से अधिक केबीओ'स के होने का अनुमान है। प्रारम्भ में यह सोचा गया था कि काइपर बेल्ट ही उन सावधिक धूमकेतुओं का भण्डार है जिनकी कक्षायें 200 सालों से कम अवधि वाली हैं। हालाँकि, नब्बे के दशक के बाद के अध्ययनों ने दर्शाया है कि यह घेरा गतिशीलता की दृष्टि से स्थायित्व वाला है, और धूमकेतुओं की उत्पत्ति का वास्तविक स्थल एक प्रकीर्ण डिस्क है जो नेपच्यून की बहिर्मुखी गति द्वारा 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व निर्मित, गतिशीलता के दृष्टि से एक सक्रिय मंडल है; इस प्रकीर्ण डिस्क के कुछ पिण्डों, जैसे कि ऍरिस इत्यादि, की विकेन्द्रता अत्यंत अधिक है और वे अपने परिक्रमा पथ में सूर्य से 100 AU तक की दूरी तक भी चले जाते हैं। .

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किन्नर (हीन ग्रह)

सौर मण्डल की कुछ वस्तुएँ - हरे रंग में काइपर घेरे की वस्तुएँ हैं - किन्नर नारंगी रंग की वह वस्तुएँ हैं जो काइपर घेरे के अन्दर लेकिन क्षुद्रग्रह घेरे के बाहर हैं किन्नर या सॅन्टॉर ऐसे हीन ग्रह को कहा जाता है जिसमें क्षुद्रग्रह (ऐस्टरौएड) और धूमकेतु (कॉमॅट) दोनों के लक्षण हों। इनका नाम किन्नर नाम की काल्पनिक जाती पर पड़ा है जो घोड़े और मनुष्य का मिश्रण थे। किन्नरों की कक्षाएँ ऐसी होती हैं के वे एक या एक से अधिक गैस दानव ग्रहों की कक्षाओं को पार करते हैं। इनकी कक्षाएँ बहुत ही बेढंगी होती हैं और अक्सर बड़े ग्रहों के पास आने से उनके गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से बदलती रहती हैं। ज़्यादातर किन्नरों का जीवनकाल १० लाख वर्षों से अधिक नहीं होता। या तो वे सूरज या किसी बड़े ग्रह से टकरा जाते हैं, या फिर किसी बड़े ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से गुलेल की तरह सौर मंडल के बाहर फेंक दिए जाते हैं। .

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कक्षीय राशियाँ

खगोलशास्त्र और भौतिकी में कक्षीय राशियाँ (Orbital elements) वह प्राचल (पैरामीटर) होते हैं जिन्हें निर्धारित करने से किसी वस्तु की किसी और वस्तु के इर्द-गिर्द करने वाली कक्षा (ऑरबिट) पूरी तरह निर्धारित हो जाती है। किसी भी कक्षा को कई प्राचल के साथ समझा जा सकता है लेकिन कुछ विधियाँ (जिसमें प्रत्येक में छह प्राचल प्रयोग होते हैं) खगोलशास्त्रियों द्वारा आम प्रयोग होती हैं। .

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क्रैकन सागर

क्रैकन सागर (Kraken Mare) सौर मंडल के शनि ग्रह के सबसे बड़े चन्द्रमा टाइटन के उत्तर ध्रुवीय क्षेत्र में स्थित एक झील है। यह टाइटन पर सबसे बड़ी ज्ञात झील है (दूसरा स्थान लाइजीया सागर का है)। सन् २००७ में कैसिनी-होयगेन्स अंतरिक्ष यान ने इसे खोज निकला था और इसका नाम २००८ में एक काल्पनिक समुद्री दानव (क्रैकन) पर रखा गया। इसका आकार पृथ्वी के कैस्पियन सागर के आसपास अनुमानित किया जाता है। टाइटन की अन्य झीलों की तरह इसमें भी पानी की जगह मीथेन जैसे हाइड्रोकार्बन द्रवावस्था में भरे हैं।, pp.

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क्लाइड टॉमबॉ

क्लाइड विलियम टॉमबॉ (Clyde William Tombaugh, जन्म: ४ फ़रवरी १९०६, देहांत:१७ जनवरी १९९७) एक अमेरिकी खगोलशास्त्री थे, जिन्होने १९३० में प्लूटो (बौने ग्रह) की खोज की। यह हमारे सौर मंडल के काइपर घेरे में पाई जाने वाली सर्वप्रथम वस्तु थी। इसके अतिरिक्त उन्होने कई क्षुद्रग्रहों की भी खोज की थी। .

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क्षुद्रग्रह

क्षुद्रग्रह क्षुद्रग्रह (English: Asteroid) अथवा ऐस्टरौएड एक खगोलिय पिंड होते है जो ब्रह्माण्ड में विचरण करते रहते हे। यह आपने आकार में ग्रहो से छोटे और उल्का पिंडो से बड़े होते है। खोजा जाने वाला पहला क्षुद्रग्रह, सेरेस, 1819 में ग्यूसेप पियाज़ी द्वारा पाया गया था और इसे मूल रूप से एक नया ग्रह माना जाता था। इसके बाद अन्य समान निकायों की खोज के बाद, जो समय के उपकरण के साथ, प्रकाश के अंक होने लगते हैं, जैसे सितारों, छोटे या कोई ग्रहिक डिस्क नहीं दिखाते हैं, हालांकि उनके स्पष्ट गति के कारण सितारों से आसानी से अलग हो सकते हैं। इसने खगोल विज्ञानी सर विलियम हर्शल को "ग्रह", शब्द को प्रस्तावित करने के लिए प्रेरित किया, जिसे ग्रीस में ἀστεροειδής या एस्टरियोइड्स के रूप में तब्दील किया गया, जिसका अर्थ है 'तारा-जैसे, तारा-आकार', और प्राचीन ग्रीक ἀστήρ astér 'तारा, ग्रह से व्युत्पन्न '। उन्नीसवीं सदी के शुरुआती छमाही में, शब्द "क्षुद्रग्रह" और "ग्रह" (हमेशा "नाबालिग" के रूप में योग्य नहीं) अभी भी एक दूसरे का प्रयोग किया गया था पिछले दो शताब्दियों में एस्टरॉयड डिस्कवरी विधियों में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है 18 वीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में, बैरन फ्रांज एक्सवेर वॉन जैच ने 24 खगोलविदों के समूह को एक ग्रह का आयोजन किया, जिसमें आकाश के बारे में 2.8 एयू के बारे में अनुमानित ग्रह के लिए आकाश की खोज थी, जिसे टिटियस-बोद कानून द्वारा आंशिक रूप से खोज की गई थी। कानून द्वारा अनुमानित दूरी पर ग्रह यूरेनस के 1781 में सर विलियम हर्शल। इस काम के लिए ज़ोनियाकल बैंड के सभी सितारों के लिए हाथों से तैयार हुए आकाश चार्ट तैयार किए जाने की आवश्यकता है, जो कि संवेदनाहीनता की सीमा के नीचे है। बाद की रातों में, आकाश फिर से सनदी जाएगा और किसी भी चलती वस्तु को उम्मीद है, देखा जाना चाहिए। लापता ग्रह की उम्मीद की गति प्रति घंटे 30 सेकंड का चाप था, पर्यवेक्षकों द्वारा आसानी से पता चला। मंगल ग्रह से पहले क्षुद्रग्रह छवि (सेरेस और वेस्ता) - जिज्ञासा (20 अप्रैल 2014) द्वारा देखा गया। पहला उद्देश्य, सेरेस, समूह के किसी सदस्य द्वारा नहीं खोजा गया था, बल्कि 1801 में सिसिली में पालेर्मो के वेधशाला के निदेशक ग्यूसेप पियाज़ी ने दुर्घटना के कारण नहीं खोजा था। उन्होंने वृषभ में एक नया सितारा की तरह वस्तु की खोज की और कई वस्तुओं के दौरान इस ऑब्जेक्ट के विस्थापन का अनुसरण किया। उस वर्ष बाद, कार्ल फ्रेडरिक गॉस ने इस अज्ञात वस्तु की कक्षा की गणना करने के लिए इन टिप्पणियों का इस्तेमाल किया, जो मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच पाया गया था। पियाजी ने इसे कृषि के रोमन देवी सेरेस के नाम पर रखा था। अगले कुछ वर्षों में तीनों क्षुद्रग्रहों (2 पल्लस, 3 जूनो और 4 वेस्ता) की खोज की गई, साथ में वेस्ता को 1807 में मिला। आठ वर्षों के व्यर्थ खोजों के बाद, अधिकांश खगोलविदों ने मान लिया था कि अब और नहीं और आगे की खोजों को छोड़ दिया गया था। हालांकि, कार्ल लुडविग हेन्के ने दृढ़ किया, और 1830 में अधिक क्षुद्रग्रहों की खोज करना शुरू कर दिया। पन्द्रह वर्ष बाद, उन्हें 38 अस्वास्थापों में पहला नया क्षुद्रग्रह पाया गया, जो 5 अस्त्रिया पाए गए। उन्होंने यह भी पाया 6 हेबे कम से कम दो साल बाद इसके बाद, अन्य खगोलविदों ने खोज में शामिल हो गए और इसके बाद हर वर्ष कम से कम एक नया क्षुद्रग्रह पाया गया (युद्धकालीन वर्ष 1 9 45 को छोड़कर) इस शुरुआती युग के उल्लेखनीय क्षुद्रग्रह शिकारी जे आर हिंद, एनीबेल डी गैसपरिस, रॉबर्ट लूथर, एचएमएस गोल्डस्मिथ, जीन चिकार्नाक, जेम्स फर्ग्यूसन, नॉर्मन रॉबर्ट पॉगसन, ईडब्ल्यू टेम्पाल, जेसी वाटसन, सीएफ़एफ़ पीटर्स, ए। बोरलिलली, जे। पॉलिसा, हेनरी भाई और अगस्टे चार्लोइस 1891 में, मैक्स वुल्फ ने क्षुद्रग्रहों का पता लगाने के लिए "आस्ट्रोफ़ोटोग्राफी" के इस्तेमाल की शुरुआत की, जो लंबे समय तक एक्सपोजर फोटोग्राफिक प्लेट्स पर छोटी धारियों के रूप में दिखाई दिए। इससे पहले दृश्य तरीकों की तुलना में नाटकीय रूप से पहचान की दर में वृद्धि हुई: वुल्फ ने केवल 248 क्षुद्रग्रहों की खोज की, 323 ब्रुसिया से शुरुआत करते हुए, जबकि उस समय तक केवल 300 से थोड़ा अधिक की खोज की गई थी यह ज्ञात था कि वहां बहुत अधिक थे, लेकिन अधिकांश खगोलविदों ने उनके साथ परेशान नहीं किया, उन्हें "आसमान की किरण" कहा, एडुआर्ड सूसे और एडमंड वेज़ के लिए अलग-अलग वाक्यांशों का श्रेय। यहां तक ​​कि एक सदी बाद, केवल कुछ हज़ार क्षुद्रग्रहों की पहचान की गई,क्षुद्रग्रह छोटे ग्रह हैं, विशेषकर इनर सौर मंडल के बड़े लोगों को ग्रहोइड कहा जाता है इन शब्दों को ऐतिहासिक रूप से किसी भी खगोलीय वस्तु पर लागू किया गया है जो कि सूर्य की परिक्रमा करता है, जो कि किसी ग्रह की डिस्क नहीं दिखाया था और सक्रिय धूमकेतु की विशेषताओं को देखते हुए नहीं देखा गया था। के रूप में बाहरी सौर मंडल में छोटे ग्रहों की खोज की गई और उन्हें ज्वालामुखी-आधारित सतहों को मिला जो कि धूमकेतु के समान थे, वे अक्सर क्षुद्रग्रह बेल्ट के क्षुद्रग्रहों से अलग थे। इस लेख में, "एस्टरॉयड" शब्द का अर्थ आंतरिक सौर मंडल के छोटे ग्रहों को संदर्भित करता है जिसमें उन सह-कक्षाओं में बृहस्पति शामिल हैं। वहाँ लाखों क्षुद्रग्रह हैं, बहुत से ग्रहों के बिखर अवशेष, सूर्य के सौर नेब्यूला के भीतर निकाले जाने वाले शरीर के रूप में माना जाता है, जो कि ग्रह बनने के लिए बड़े पैमाने पर कभी बड़ा नहीं बनता था। मंगल और बृहस्पति के कक्षाओं के बीच क्षुद्रग्रहों के बेल्ट में ज्ञात क्षुद्रग्रहों की बड़ी संख्या, या बृहस्पति (बृहस्पति ट्रोजन) के साथ सह-कक्षीय हैं। हालांकि, अन्य कक्षीय परिवारों में पास-पृथ्वी ऑब्जेक्ट्स सहित महत्वपूर्ण आबादी मौजूद है। व्यक्तिगत क्षुद्रग्रहों को उनके विशिष्ट स्पेक्ट्रा द्वारा वर्गीकृत किया जाता है, जिनमें बहुमत तीन मुख्य समूहों में आती है: सी-टाइप, एम-प्रकार और एस-टाइप। इसका नाम क्रमशः कार्बन-समृद्ध, धातु, और सिलिकेट (पत्थर) रचनाओं के नाम पर रखा गया था। क्षुद्रग्रहों का आकार बहुत भिन्न होता है, कुछ तक पहुंचते हुए 1000 किमी तक पहुंचते हैं। क्षुद्रग्रहों को धूमकेतु और मेटोरोइड से विभेदित किया जाता है धूमकेतु के मामले में, अंतर संरचना में से एक है: जबकि क्षुद्रग्रह मुख्य रूप से खनिज और चट्टान से बना है, धूमकेतु धूल और बर्फ से बना है इसके अलावा, क्षुद्रग्रहों ने सूरज के करीब का गठन किया, जो कि ऊपर उल्लिखित धूमकेतू बर्फ के विकास को रोकता है। क्षुद्रग्रहों और meteorids के बीच का अंतर मुख्य रूप से आकार में से एक है: उल्कापिंडों का एक मीटर से कम का व्यास है, जबकि क्षुद्रग्रहों का एक मीटर से अधिक का व्यास है। अंत में, उल्कामी द्रव्य या तो समृद्ध या क्षुद्रग्रहयुक्त पदार्थों से बना हो सकता है। केवल एक क्षुद्रग्रह, 4 वेस्ता, जो एक अपेक्षाकृत चिंतनशील सतह है, आमतौर पर नग्न आंखों के लिए दिखाई देता है, और यह केवल बहुत ही अंधेरे आसमान में है जब यह अनुकूल स्थिति है शायद ही, छोटे क्षुद्रग्रह पृथ्वी के नजदीक से गुजरते हैं, कम समय के लिए नग्न आंखों में दिखाई दे सकते हैं। मार्च 2016 तक, माइनर प्लैनेट सेंटर के आंतरिक और बाहरी सौर मंडल में 1.3 मिलियन से अधिक ऑब्जेक्ट्स पर डेटा था, जिसमें से 750,000 में पर्याप्त जानकारी दी गई पदनामों की जानी थी। संयुक्त राष्ट्र ने 30 जून को अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह दिवस की घोषणा की ताकि क्षुद्रग्रहों के बारे में जनता को शिक्षित किया जा सके। अंतर्राष्ट्रीय एस्टरॉयड दिवस की तारीख 30 जून 1 9 08 को साइबेरिया, रूसी संघ पर टंगुस्का क्षुद्रग्रह की सालगिरह की स्मृति मनाई जाती है।  .

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क्षुद्रग्रह घेरा

कक्षाओं के बीच स्थित है - सफ़ेद बिन्दुएँ इस घेरे में मौजूद क्षुद्रग्रहों को दर्शाती हैं क्षुद्रग्रह घेरा या ऐस्टरौएड बॅल्ट हमारे सौर मण्डल का एक क्षेत्र है जो मंगल ग्रह (मार्ज़) और बृहस्पति ग्रह (ज्यूपिटर) की कक्षाओं के बीच स्थित है और जिसमें हज़ारों-लाखों क्षुद्रग्रह (ऐस्टरौएड) सूरज की परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें एक ९५० किमी के व्यास वाला सीरीस नाम का बौना ग्रह भी है जो अपने स्वयं के गुरुत्वाकर्षक खिचाव से गोल अकार पा चुका है। यहाँ तीन और ४०० किमी के व्यास से बड़े क्षुद्रग्रह पाए जा चुके हैं - वॅस्टा, पैलस और हाइजिआ। पूरे क्षुद्रग्रह घेरे के कुल द्रव्यमान में से आधे से ज़्यादा इन्ही चार वस्तुओं में निहित है। बाक़ी वस्तुओं का अकार भिन्न-भिन्न है - कुछ तो दसियों किलोमीटर बड़े हैं और कुछ धूल के कण मात्र हैं। .

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कैसिनी-होयगेन्स

छल्लों के आगे कैसिनी शोध यान का काल्पनिक चित्रण कैसिनी-होयगेन्स (Cassini-Huygens) एक अंतरिक्ष यान मिशन है जो सन् २००४ से हमारे सौर मंडल के दूसरे सबसे बड़े ग्रह शनि और उसके प्राकृतिक उपग्रहों का अध्ययन कर रहा है। यह १९९७ में पृथ्वी से रोकेट के ज़रिये छोड़ा गया और इस मिशन में शनि के इर्द-गर्द कक्षा (ऑरबिट) में घूमने वाला एक कृत्रिम उपग्रह और शनि के सबसे बड़े चन्द्रमा टाइटन पर उतरना वाला एक यान शामिल थे। टाइटन पर उतरने वाले यान का नाम 'होयगेन्स' था और २००५ में वह मुख्य कैसिनी यान से अलग होकर उस उपग्रह पर उतरा। कैसिनी सन् २०१५ तक शनि की परिक्रमा करके उसकी तस्वीरें लेता रहेगा और उसपर जानकारी एकत्रिक कर के पृथ्वी की ओर प्रसारित करता रहेगा। २०१५ में उसे शनि के भयंकर वायुमंडल में गिराकर ध्वस्त का दिया जाएगा।, Michele Dougherty, Larry Esposito, Springer, 2009, ISBN 978-1-4020-9216-9, David Michael Harland, Springer, 2007, ISBN 978-0-387-26129-4 .

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केप्लर के ग्रहीय गति के नियम

चित्र १: केप्लेर के तीनो नियमों का दो ग्रहीय कक्षाओं के माध्यम से प्रदर्शन (1) कक्षाएँ दीर्घवृत्ताकार हैं एवं उनकी नाभियाँ पहले ग्रह के लिये (focal points) ''ƒ''1 and ''ƒ''2 पर हैं तथा दूसरे ग्रह के लिये ''ƒ''1 and ''ƒ''3 पर हैं। सूर्य नाभिक बिन्दु ''ƒ''1 पर स्थित है। (2) ग्रह (१) के लिये दोनो छायांकित (shaded) सेक्टर ''A''1 and ''A''2 का क्षेत्रफल समान है तथा ग्रह (१) के लिये सेगमेन्ट ''A''1 को पार करने में लगा समय उतना ही है जितना सेगमेन्ट ''A''2 को पार करने में लगता है। (3) ग्रह (१) एवं ग्रह (२) को अपनी-अपनी कक्षा की परिक्रमा करने में लगे कुल समय ''a''13/2: ''a''23/2 के अनुपात में हैं। खगोल विज्ञान में केप्लर के ग्रहीय गति के तीन नियम इस प्रकार हैं -.

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कॅप्लर-१० तारा

कॅप्लर-१० का ग्रहीय मंडल, जिसमें कॅप्लर-१०सी एक गैस दानव ग्रह के रूप में और कॅप्लर-१०बी अपने तारे के आगे एक छोटे से बिंदु के रूप में दर्शाया गया है कॅप्लर-१०बी ग्रह का एक काल्पनिक चित्रण कॅप्लर-१०, जिसे कॅप्लर-१०ए (Kepler-10a) और केओआई-७२ (KOI-72) के नाम से भी जाना जाता है, पृथ्वी से ५६४ प्रकाश वर्ष दूर शिशुमार तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक G श्रेणी का मुख्य अनुक्रम तारा है। यह आकार में हमारे सूरज से ज़रा बड़ा, द्रव्यमान (मास) में ज़रा छोटा और और तापमान में उस से ठंडा है। २०११ में इस तारे के इर्द-गिर्द हमारे सौर मंडल से बहार मिला सब से पहला पत्थरीला ग्रह परिक्रमा करता पाया गया था।, Richard A. Lovett, National Geographic Society .

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कॅप्लर-१०बी

कॅप्लर-१०बी ग्रह का एक काल्पनिक चित्रण कॅप्लर-१० का ग्रहीय मंडल, जिसमें कॅप्लर-१०सी एक गैस दानव ग्रह के रूप में और कॅप्लर-१०बी कॅप्लर-१० तारे के आगे एक छोटे से बिंदु के रूप में दर्शाया गया है कॅप्लर-१०बी (Kepler-10b) पृथ्वी से ५६४ प्रकाश वर्ष दूर शिशुमार तारामंडल के क्षेत्र में स्थित कॅप्लर-१० तारे की परिक्रमा करता हुआ एक ग़ैर-सौरीय ग्रह है। यह १० जनवरी २०११ को मिला था और हमारे सौर मंडल से बहार मिला सब से पहला पत्थरीला ग्रह था (अन्य ग्रह गैस दानव श्रेणी के थे)।, Richard A. Lovett, National Geographic Society वैज्ञानिकों ने इस ग्रह का पता कॅप्लर अंतरिक्ष यान के ज़रिये लगाया था। अंदाज़ा लगाया जाता है कि यह पृथ्वी का १.४ गुना व्यास (डायामीटर) रखता है और इसका द्रव्यमान (मास) पृत्वी के ३.३ से ५.७ गुने के बीच में है। यह अपने तारे का हर ०.८ दिनों में चक्कर काट लेता है और अपने तारे के बहुत पास होने के कारण उसके वासयोग्य क्षेत्र में नहीं पड़ता (यानि यहाँ जीवन की सम्भावना बहुत कम है)। इसका घनत्व पृथ्वी से बहुत ज्यादा है और लोहे के घनत्व से मिलता-जुलता है। यह एक महापृथ्वी श्रेणी का ग्रह है। .

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कॅप्लर-१६ तारा

गैस दानव ग्रह है कॅप्लर-१६ (Kepler-16) एक द्वितारा मंडल है जिस पर कॅप्लर अंतरिक्ष यान द्वारा खगोलशास्त्री अध्ययन कर रहें हैं। आकाश में यह हंस तारामंडल के क्षेत्र में पड़ता है और पृथ्वी से लगभग २०० प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। इसके दोनों तारे एक-दूसरे से लगभग ०.२२ खगोलीय इकाईयों की दूरी पर हैं। दोनों ही तारे हमारे सूरज से छोटे बौने तारे हैं: इनमें से मुख्य तारा नारंगी रंग वाला K श्रेणी का तारा है और दूसरा लाल रंग का M श्रेणी का तारा है। सितम्बर २०११ में वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि इस मंडल में हमारे सौर मंडल के शनि के आकार का एक गैस दानव ग्रह मिला है जो इन दोनों तारों की परिक्रमा कर रहा है। यह पहला ज्ञात ग्रह है जो किसी द्वितारे की परिक्रमा करता पाया गया है और इसका नामकरण कॅप्लर-१६बी किया गया है। .

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कॅप्लर-२२ तारा

कॅप्लर २२ के ग्रहीय मंडल की हमारे सौर मंडल के अंदरूनी भाग से तुलना कॅप्लर-२२ उर्फ़ कॅप्लर-२२ए (Kepler-22a) पृथ्वी से ६०० प्रकाश वर्ष दूर हंस तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक G श्रेणी का मुख्य अनुक्रम तारा है। यह आकार में हमारे सूरज से ज़रा छोटा और तापमान में उस से ठंडा है। .

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कॅप्लर-२२बी

कॅप्लर २२ के ग्रहीय मंडल की हमारे सौर मंडल के अंदरूनी भाग से तुलना कॅप्लर-२२बी (Kepler-22b) पहला ज्ञात ग़ैर-सौरीय ग्रह है जो पृथ्वी जैसा है और एक सूरज जैसे तारे के वासयोग्य क्षेत्र में परिक्रमा कर रहा है। यह पृथ्वी से ६०० प्रकाश वर्ष दूर हंस तारामंडल के क्षेत्र में स्थित कॅप्लर-२२ तारे की परिक्रमा कर रहा है।NASA Press Release, "NASA's Kepler Confirms Its First Planet In Habitable Zone", 12/5/2011, http://www.nasa.gov/centers/ames/news/releases/2011/11-99AR.html वैज्ञानिकों ने इस ग्रह का पता कॅप्लर अंतरिक्ष यान के ज़रिये लगाया और इसके अस्तित्व की घोषणा ५ दिसम्बर २०११ को की। BBC NEWS, "Kepler 22-b: Earth-like planet confirmed" 12/5/2011 http://www.bbc.co.uk/news/science-environment-16040655 अंदाज़ा लगाया जाता है कि यह पृथ्वी का २.४ गुना व्यास (डायामीटर) रखता है, लेकिन इसकी सतह कैसी है इसका कोई अनुमान नहीं लग पाया है। अगर इसका घनत्व (डॅन्सिटी) पृथ्वी जैसा हुआ तो इसका द्रव्यमान (मास) पृथ्वी का १३.८ गुना होगा और इसकी सतह पर इसका गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी का २.४ गुना होगा। यानि इसकी सतह पर खड़ा ७० किलोग्राम के भार वाला आदमी अपने आप को १६८ किलो का महसूस करेगा। इस श्रेणी के ग्रहों को महापृथ्वी कहा जाता है। इस ग्रह को अपने तारे की एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग २९० दिन लगते हैं। इसकी अपने तारे से दूरी पृथ्वी की सूरज की दूरी से ज़रा कम है लेकिन इसका तारा सूरज से ज़रा छोटा और ठंडा भी है। अगर इस ग्रह पर वायुमंडल ही न हुआ (यानि सतह के ऊपर खुले अंतरिक्ष का ख़ाली व्योम हुआ) तो इसकी सतह का औसत तापमान -११ °सेंटीग्रेड हो सकता है। लेकिन अगर इसका पृथ्वी जैसा वायुमंडल हुआ तो इसकी सतह का औसत तापमान २२ °सेंटीग्रेड के आसपास होगा, जिसमें मनुष्य जैसे जीव रह सकते है। .

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कॅप्लर-६९ तारा

कॅप्लर-६९ (Kepler-69) पृथ्वी से २,७०० प्रकाश-वर्ष की दूरी पर आकाश में हंस तारामंडल के क्षेत्र में स्थित एक हमारे सूरज के जैसा G-श्रेणी का मुख्य अनुक्रम तारा है। १८ अप्रैल २०१३ को वैज्ञानिकों ने इसके इर्द-गिर्द दो ग्रहों की मौजूदगी ज्ञात होने की घोषणा करी। शुरु में उनका अनुमान था कि इनमें से एक 'कॅप्लर-६९सी' द्वारा नामांकित ग्रह इस ग्रहीय मंडल के वासयोग्य क्षेत्र में स्थित है लेकिन बाद में यह स्पष्ट हुआ कि यह वास-योग्य क्षेत्र से अन्दर है। इसका अर्थ था कि यह हमारे सौर मंडल के शुक्र जैसी परिस्थितियाँ रखता होगा और यहाँ जीवन का पनप पाना बहुत कठिन है। .

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कोन्ड्राइट

NWA८६९ नामक कोन्ड्राइट उल्का का एक ७०० ग्राम का अंश कोन्ड्राइट (Chondrite) ऐसे पत्थरीले (ग़ैर-धातुदार) उल्काओं (मीट्योराइटों) को कहा जाता है जो उस धूल व कणों के बने हों जो सौर मंडल के शुरुआती सृष्टि-क्रम में मौजूद थे। ग्रहों, उपग्रहों और अन्य बड़ी वस्तुओं के निर्माण में उनमें शामिल सामग्री में पिघलाव और परतों में छट जाने जैसी प्रक्रिया हुई। प्रहारों के कारण इनसे भी उखड़कर उल्का बने लेकिन कोन्ड्राइट केवल वही उल्का होते हैं जिनमें ऐसी प्रक्रियाएँ न हुई हों और जो काफ़ी हद तक सौर मंडल के आरम्भिक काल में जैसे थे वैसे ही हों। ध्यान दें कि किसी कोन्ड्राइट में अक्सर ज़रा-बहुत धातु भी उपस्थित हो सकती है लेकिन उसका अधिकतर भाग पत्थरीला होता है। .

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कोन्ड्रूल

एक 'ग्रासलैन्ड' नामक कोन्ड्राइट उल्का के कटे अंश में कोन्ड्रूलों के गोल आकार कोन्ड्रूल (Chondrule) वह गोल आकार के कण होते हैं जो कोन्ड्राइटों (पत्थरीले उल्काओं) में पाए जाते हैं। यह अंतरिक्ष में पिघली या आधी-पिघली हुई बूंदो के जुड़ने से बनते हैं और फिर इनके जमावड़े से क्षुद्रग्रह बनते हैं। यह कोन्ड्रूल हमारे सौर मंडल की सबसे पुरानी निर्माण सामग्री है और इन्हें समझना हमारे सौर मंडल के सृष्टि-क्रम को समझ पाने का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। .

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अपोलो अभियान

अपोलो कार्यक्रम यह संयुक्त राज्य अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मानव उड़ानो की एक श्रंखला थ। इस में सैटर्न राकेट और अपोलो यानो का प्रयोग किया गया था। यह श्रंखला उड़ान १९६१-१९७४ के मध्य में हुयी थी। यह श्रंखला अमरीकी राष्ट्रपति जान एफ केनेडी के १९६० के दशक में चन्द्रमा पर मानव के सपने को समर्पित थी। यह सपना १९६९ में अपोलो ११ की उड़ान ने पूरा किया था। यह अभियान १९७० के दशक के शुरुवाती वर्षो में भी चलता रहा, इस कार्यक्रम में चन्द्रमा पर छः मानव अवतरणो के साथ चन्द्रमा का वैज्ञानिक अध्ययन कार्य किया गया। इस कार्यक्रम के बाद आज २००७ तक पृथ्वी की निचली कक्षा के बाहर कोई मानव अभियान नहीं संचालित किया गया है। बाद के स्कायलैब कार्यक्रम और अमरीकी सोवियत संयुक्त कार्यक्रम अपोलो-सोयुज जांच कार्यक्रम जिन्होने अपोलो कार्यक्रम के उपकरणो का प्रयोग किया था, इसी अपोलो कार्यक्रम का भाग माना जाता है। बहुत सारी सफलताओ के बावजूद इस कार्यक्रम को दो बड़ी असफलताओ को झेलना पड़ा। इसमे से पहली असफलता अपोलो १ की प्रक्षेपण स्थल पर लगी आग थी जिसमे विर्गील ग्रीसम, एड व्हाईट और रोजर कैफी शहीद हो गये थे। इस अभियान का नाम AS२०४ था लेकिन बाद में शहीदो की विधवाओं के आग्रह पर अपोलो १ कर दिया गया था। दूसरी असफलता अपोलो १३ में हुआ भीषण विस्फोट था लेकिन इसमे तीनो यात्रीयों को सकुशल बचा लीया गया था। इस अभियान का नाम सूर्य के ग्रीक देवता अपोलो को समर्पित था। नील आर्मस्ट्रांग २० जुलाई १९६९ को चन्द्रमा की धरती पर पहला कदम रखा यह अमेरिकी नागरिक थे १ .

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अभिजित तारा

अभिजित या वेगा (Vega), जिसका बायर नाम "अल्फ़ा लायरे" (α Lyrae या α Lyr) है, लायरा तारामंडल का सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से पाँचवा सब से रोशन तारा भी है। अभिजित पृथ्वी से 25 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। खगोलशास्त्री हज़ारों सालों से अभिजित का अध्ययन करते आए हैं और कभी-कभी कहा जाता है के यह "सूरज के बाद शायद आसमान में सब से महत्त्वपूर्ण तारा है"। .

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अरुण (ग्रह)

अरुण (Uranus), या यूरेनस हमारे सौर मण्डल में सूर्य से सातवाँ ग्रह है। व्यास के आधार पर यह सौर मण्डल का तीसरा बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर चौथा बड़ा ग्रह है। द्रव्यमान में यह पृथ्वी से १४.५ गुना अधिक भारी और अकार में पृथ्वी से ६३ गुना अधिक बड़ा है। औसत रूप में देखा जाए तो पृथ्वी से बहुत कम घना है - क्योंकि पृथ्वी पर पत्थर और अन्य भारी पदार्थ अधिक प्रतिशत में हैं जबकि अरुण पर गैस अधिक है। इसीलिए पृथ्वी से तिरेसठ गुना बड़ा अकार रखने के बाद भी यह पृथ्वी से केवल साढ़े चौदह गुना भारी है। हालांकि अरुण को बिना दूरबीन के आँख से भी देखा जा सकता है, यह इतना दूर है और इतनी माध्यम रोशनी का प्रतीत होता है के प्राचीन विद्वानों ने कभी भी इसे ग्रह का दर्जा नहीं दिया और इसे एक दूर टिमटिमाता तारा ही समझा। १३ मार्च १७८१ में विलियम हरशल ने इसकी खोज की घोषणा करी। अरुण दूरबीन द्वारा पाए जाने वाला पहला ग्रह था। हमारे सौर मण्डल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है, क्योंकि इनमें मिटटी-पत्थर की बजाय अधिकतर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है। अरुण इनमे से एक है - बाकी तीन बृहस्पति, शनि और वरुण (नॅप्टयून) हैं। इनमें से अरुण की बनावट वरुण से बहुत मिलती-जुलती है। अरुण और वरुण के वातावरण में बृहस्पति और शनि के तुलना में बर्फ़ अधिक है - पानी की बर्फ़ के अतिरिक्त इनमें जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ़ भी है। इसलिए कभी-कभी खगोलशास्त्री इन दोनों को "बर्फ़ीले गैस दानव" नाम की श्रेणी में डाल देते हैं। सौर मण्डल के सारे ग्रहों में से अरुण का वायुमण्डल सब से ठण्डा पाया गया है और उसका न्यूनतम तापमान -४९ कैल्विन (यानी -२२४° सेण्टीग्रेड) देखा गया है। इस ग्रह में बादलों की कई तहें देखी गई हैं। मानना है के सब से नीचे पानी के बादल हैं और सब से ऊपर मीथेन गैस के बादल हैं। यह भी माना जाता है कि यदि किसी प्रकार अरुण के बिलकुल बीच जाकर इसका केन्द्र देखा जा सकता तो वहाँ बर्फ़ और पत्थर पाए जाते। .

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अरुण के प्राकृतिक उपग्रह

ओबेरॉन हमारे सौर मण्डल के सातवे ग्रह अरुण (युरेनस) के २७ ज्ञात प्राकृतिक उपग्रह हैं।, ऍस ऍस शॅपर्ड, डेविड जॅविट, क्लेना जॅविट (२००५), खगोलशास्त्रिय पत्रिका (एस्ट्रोनॉमिकल जर्नल) १२९, पृष्ठ ५१८-५२५, Bibcode 2005AJ....129..518S.

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अर्सिया मॉन्स

अर्सिया मोन्स तीन ज्वालामुखियों में से सबसे सुदूर दक्षिणी है (संयुक्त रूप से थर्सिस मोंट के रूप में जाने जाते हैं) और मंगल ग्रह के भूमध्य रेखा के नजदीक थर्सिस उठान पर स्थित है। अर्सिया के उत्तर में पावोनिस मोन्स है, आगे और उत्तर में एस्क्रेयस मोन्स है। सौरमंडल में सबसे बड़ा पर्वत ओलम्पस मोन्स इसके उत्तर-पश्चिम में है। अर्सिया नाम गियोवन्नी शिअपरेल्ली के एक नक्शे पर की इसी तरह की एल्बिडो आकृति से आता है, जो कि अर्सिया सिल्वा के रोमन पौराणिक वन पर से नामित है। श्रेणी:मंगल ग्रह श्रेणी:शील्ड ज्वालामुखी श्रेणी:मंगल ग्रह का ज्वालामुखी.

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अजीवात् जीवोत्पत्ति

अजीवात् जीवोत्पत्ति सरल कार्बनिक यौगिक जैसे अजीवात् पदार्थों से जीवन की उत्पत्ति की प्राकृतिक प्रक्रिया को कहते हैं। जीवोत्पत्ति पृथ्वी पर अनुमानित ३.८ से ४ अरब वर्ष पूर्व हुई थी। इसका अध्ययन प्रयोगशाला में किए गए कुछ प्रयोगों के द्वारा, और आज के जीवों के जेनेटिक पदार्थों से जीवन पूर्व पृथ्वी पर हुए उन रासायनिक अभिक्रियाओं का अनुमान लगा कर किया गया है जिनसे संभवतः जीवन की उत्पत्ति हुई है। जीवोत्पत्ति के अध्ययन के लिए मुख्यतः तीन तरह की परिस्थितियों का ध्यान रखना पड़ता है: भूभौतिकी, रासायनिक और जीवविज्ञानी। बहुत अध्ययन यह अनुसंधान करते हैं कि अपनी प्रतिलिपि बनाने वाले अणु कैसे उत्पन्न हुए। यह स्वीकृत है कि आज के सभी जीव आर एन ए अणुओं के वंशज हैं.

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अंतरतारकीय अंतरिक्ष उड़ान

अंतरतारकीय अंतरिक्ष उड़ान (interstellar travel) दो भिन्न तारों या ग्रहीय मण्डलों के बीच की अंतरिक्ष उड़ान द्वारा करी गई यात्रा को कहते हैं। फ़िलहाल यह पूरी तरह काल्पनिक ही है। जहाँ सौर मंडल के ग्रहों के बीच की दूरी औसतन केवल ३० खगोलीय इकाईयों के लगभग ही होती है, वहाँ तारों के बीच की दूरी लाखों खगोलीय इकाईयों में गिनी जाती है। इतना अधिक फ़ासला तय करने के लिये या तो किसी अंतरिक्ष यान को प्रकाश की गति के एक बड़े भाग तक का वेग देने की आवश्यकता है या फिर यान को हमारी पृथ्वी से सूरज से अगले सबसे समीपी तारे प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी तक भी पहुँचने के लिये दसियों हज़ार वर्ष लगेंगे। यदि यान को किसी तरह प्रकाश की गति का १०% भी गति दी जा सके तो उसे पहुँचने में ४० वर्षों से अधिक लगेंगे। फिर भी अभियान्त्रिक और वैज्ञानिक इस का प्रयास करने के लिये तकनीकों और नये वैज्ञानिक सिद्धांतों की खोज में हैं। .

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अकोन्ड्राइट

कम्बरलैंड फ़ॉल्ज़ नामक अकोन्ड्राइट उल्का का कटा अंश अकोन्ड्राइट (Chondrite) ऐसे पत्थरीले (ग़ैर-धातुदार) उल्काओं (मीट्योराइटों) को कहा जाता है जिनमें कोन्ड्रूल (गोलाकार पत्थरीले आदि-कण) न हों। क्योंकि यह कण सौर मंडल के शुरुआती सृष्टि-क्रम में मौजूद थे इनकी अनुपस्थिति का मतलब यह है कि उल्का किसी बड़ी वस्तु का अंश है जिसमें उसकी सामग्री पर पिघलाव और परतीकरण जैसी प्रक्रियाएँ हुई हैं। इस कारणवश कोन्ड्राइट और अकोन्ड्राइट उल्काओं को काटकर देखा जाए तो उनका ग्रंथन एक-दूसरे से भिन्न लगता है। .

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उत्तर फाल्गुनी तारा

सिंह (लियो) तारामंडल में उत्तर फाल्गुनी (डॅनॅबोला) तारा 'Denebola' द्वारा नामांकित है उत्तर फाल्गुनी या डॅनॅबोला, जिसका बायर नाम बेटा लियोनिस (β Leonis या β Leo) है, सिंह तारामंडल का दूसरा सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ६१वाँ सब से रोशन तारा भी है। पृथ्वी से देखी गई इसकी चमक (सापेक्ष कान्तिमान) +२.१४ मैग्नीट्यूड है और यह पृथ्वी से लगभग ३६ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र में यह तारा एक नक्षत्र मना जाता था। यह एक परिवर्ती तारा है जिसकी चमक चंद घंटों के काल में हलकी-सी ऊपर-नीचे होती रहती है। .

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उत्तरी गोलार्ध

उत्तरी गोलार्ध पीले में दर्शित उत्तरी गोलार्ध उत्तरी ध्रुव के ऊपर से उत्तरी गोलार्ध पृथ्वी का वह भाग है जो भूमध्य रेखा के उत्तर में है। अन्य सौर मण्डल के ग्रहों की उत्तर दिशा पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के स्थिर समतल में लिया जाता है। पृथ्वी के अक्षीय झुकाव की वजह से उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु, दक्षिणायन (२२ दिसंबर के आसपास) से वसंत विषुव (लगभग २३ मार्च) तक चलता है और ग्रीष्म ऋतु, उत्तरायण (२१ जून) से शरद विषुव (लगभग २३ सितंबर) तक चलता है। उत्तरी गोलार्ध का उत्तरी ‌छोर पूरी तरह ठोस नहीं है, वहाँ समुद्र के बीच जगह-जगह विशाल हिमखन्ड मिलते हैं। .

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उपग्रह

ERS 2) अन्तरिक्ष उड़ान (spaceflight) के संदर्भ में, उपग्रह एक वस्तु है जिसे मानव (USA 193) .

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उपग्रही छल्ला

हमारे सौर मण्डल के शनि ग्रह के मशहूर उपग्रहीय छल्ले बर्फ़ और धूल के बने हैं खगोलशास्त्र में उपग्रही छल्ला किसी ग्रह के इर्द गिर्द घूमता हुआ पत्थरों, धुल, बर्फ़ और अन्य पदार्थों का बना हुआ छल्ला होता है। हमारे सौर मण्डल में इसकी सबसे बड़ी मिसाल शनि की परिक्रमा करते हुए उसके छल्ले हैं। हमारे सौर मण्डल के अन्य तीन गैस दानव ग्रहों - बृहस्पति, अरुण और वरुण - के इर्द-गिर्द भी उपग्रहीय छल्ले हैं लेकिन उनकी संख्या और चौड़ाई शनि के छल्लों से कई कम है। .

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१ स्कोर्पाए तारा

१ स्कोर्पाए (1 Scorpii) या बी स्कोर्पाए (b Scorpii) वॄश्चिक तारामंडल में स्थित एक तारा है। इसका सापेक्ष कांतिमान 4.63 है, यानि इसे अंधेरी रात में बिना दूरबीन के धुंधला-सा देखा जा सकता है। यह हमारे सौर मंडल से लगभग 490 प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है। .

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१० हायजीया

१० हायजीया की परिक्रमा कक्षा (नीले रंग) में मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह (सबसे बाहरी लाल) की कक्षाओं के बीच है १० हायजीया (10 Hygiea) हमारे सौर मंडल का चौथा सबसे बड़ा क्षुद्रग्रह है। यह क्षुद्रग्रह घेरे में स्थित है और ३५०-५०० किमी के लगभग अंडाकार आकार के साथ इसमें क्षुद्रग्रह घेरे के कुल द्रव्यमान (मास) का क़रीब २.९% इसी एक क्षुद्रग्रह में निहित है। यह C-श्रेणी क्षुद्रग्रहों का सबसे बड़ा सदस्य है और एक गाढ़े रंग की कार्बनयुक्त सतह रखता है। अपने गहरे रंग के कारण इसे अपने बड़े आकार के बावजूद पृथ्वी से देखना कठिन है। .

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१०१९९ करिक्लो

अपने छल्लों के साथ करिक्लो का काल्पनिक चित्रण करिक्लो की सतह के पास से उसके छल्लों के दृश्य का एक और काल्पनिक चित्रण​ १०१९९ करिक्लो (10199 Chariklo) हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ज्ञात किन्नर (हीन ग्रह) है। यह शनि और अरुण (युरेनस) की कक्षाओं (ऑरबिटों) के बीच में सूर्य की परिक्रमा करता है। करिक्लो की खोज सन् १९९७ में हुई थी। २०१४ में खगोलशास्त्रियों ने करिक्लो के इर्द-गिर्द दो छल्लों की खोज की घोषणा करी। इन छल्लों का नाम ओइयापोक (Oiapoque) और चुई (Oiapoque) रखा गया। .

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२०००० वरुण

२०००० वरुण का काल्पनिक चित्रण - तेज़ घूर्णन (रोटेशन) से इसका आकार पिचका हुआ है कक्षा (ऑरबिट) की तुलना में २०००० वरुण की कक्षा ज़्यादा गोलाकार है २०००० वरुण (20000 Varuna) हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित एक खगोलीय वस्तु है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के नियमों के तहत यदी ग्रह से छोटी कोई वस्तु इतना द्रव्यमान रखती हो कि स्वयं को गोलाकार कर सके तो उसे बौना ग्रह का दर्जा दिया जाता है। २०००० वरुण पृथ्वी से इतना दूर है कि उसका आकार सही रूप से अनुमानित नहीं हो पाया है, इसलिये यह ज्ञात​ नहीं कि यह बौना ग्रह है या नहीं। फिर भी अधिकतर खगोलशास्त्रियों का अनुमान है कि और जानकारी मिलने पर अंततः यह बौना ग्रह ही निकलेगा। .

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५०००० क्वावार

हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई १६ तस्वीरों को मिलाकर बना क्वावार का चित्र क्वावार और उसके उपग्रह वेवोट का काल्पनिक चित्रण क्वावार, जिसका अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया इसका औपचारिक नाम ५०००० क्वावार (50000 Quaoar) है, हमारे सौर मण्डल के काइपर घेरे में स्थित यम (प्लूटो) से लगभग आधे आकार की एक खगोलीय वस्तु है। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के नियमों के तहत यदी ग्रह से छोटी कोई वस्तु इतना द्रव्यमान रखती हो कि स्वयं को गोलाकार कर सके तो उसे बौना ग्रह का दर्जा दिया जाता है। क्वावार पृथ्वी से इतना दूर है कि उसका आकार सही रूप से अनुमानित नहीं हो पाया है, इसलिये यह ज्ञात​ नहीं कि यह बौना ग्रह है या नहीं। क्वावार का एक वेवोट (Weywot) नाम का ज्ञात​ उपग्रह है। क्ववार की खोज २००२ में और उसके उपग्रह वेवोट की खोज २००७ में हुई थी। .

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९०३७७ सेडना

सेडना का एक काल्पनिक चित्रण। कक्षा (ऑरबिट) यहाँ लाल रंग में दर्शायी गई है। ११,४०० वर्षों की एक परिक्रमा में सेडना की सूरज से दूरी में महान उतार-चढ़ाव आते हैं। ९०२७७ सेडना (90377 Sedna) एक बहुत बड़ी नेप्चून-पार वस्तु है, जो सन् २०१२ में सूर्य से नेप्चून से भी लगभग तीन गुना दूर थी। स्पेक्ट्रोस्कोपी से पता चला है कि सेडना की सतह की संरचना इसी तरह की कुछ अन्य दूसरी नेप्चून-पार वस्तुओं के समान है, जो बड़े पैमाने पर जल, मीथेन और थोलिंस युक्त नाइट्रोजन बर्फ के एक मिश्रण से बनी हुई है। इसकी सतह सौरमंडल में सबसे अधिक लालिमायुक्त सतहों में से एक है। सेडना का ना तो द्रव्यमान ज्ञात है, ना इसका आकार अच्छी तरह से मालूम है और ना ही इसे आई'''.'''ए'''.'''यु'''.''' से एक बौने ग्रह के रूप में औपचारिक मान्यता मिली है, हालांकि कई खगोलविदों द्वारा इसे उनमे से एक माना जाता है। .

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B-श्रेणी क्षुद्रग्रह

हबल अंतरिक्ष दूरबीन द्वारा ली गई २ पैलस की तस्वीर - यह एक B-श्रेणी का क्षुद्रग्रह है B-श्रेणी क्षुद्रग्रह (B-type asteroid) C-श्रेणी क्षुद्रग्रहों की एक असाधारण श्रेणी है जो कार्बन-युक्त होते हैं। यह आमतौर पर क्षुद्रग्रह घेरे (ऐस्टेरायड बेल्ट) के बाहरी हिस्से में पाए जाते हैं। २ पैलस वाले पैलस परिवार के अधिकांश क्षुद्रग्रह इसी श्रेणी के हैं। माना जाता है कि इनका निर्माण सौर मंडल के सृष्टि-काल में हुआ था। .

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D-श्रेणी क्षुद्रग्रह

D-श्रेणी क्षुद्रग्रह (D-type asteroid) क्षुद्रग्रहों की एक श्रेणी है। इसके सदस्यों का ऐल्बीडो (चमकीलापन) बहुत कम (०.१ से कम) होता है और जिनका उत्सर्जन वर्णक्रम (एमिशन स्पेक्ट्रम) बिना किसी ख़ास अवशोषण बैंड (absorption band) के सिर्फ़ एक लालिमा दिखाता है। D-श्रेणी के क्षुद्रग्रह क्षुद्रग्रह घेरे के बाहरी भाग में और उस से भी आगे पाए जाते हैं। कुछ खगोलशास्त्रियों का विचार है कि इस श्रेणी के क्षुद्रग्रह सौर मंडल के दूर-दराज़ कायपर घेरे में उत्पन्न हुए थे। सम्भव है कि सन् २००० में कनाडा में गिरा टगिश झील उल्का एक D-श्रेणी क्षुद्रग्रह का अंश रहा हो। यह भी संकेत है कि मंगल ग्रह का फ़ोबोस उपग्रह भी एक D-श्रेणी क्षुद्रग्रह रहा हो जो मंगल के गुरुत्वाकर्षण द्वारा फंसा लिया गया हो और उसके इर्द-गिर्द परिक्रमा करने लगा। .

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V-श्रेणी क्षुद्रग्रह

डॉन शोध यान द्वारा ली गई ४ वेस्टा की तस्वीर - V-श्रेणी का नाम इसी पर पड़ा है V-श्रेणी क्षुद्रग्रह (V-type asteroid) क्षुद्रग्रहों की एक श्रेणी है जिसके सदस्य ४ वेस्टा से मिलते-जुलते हैं (और जिस कारण से इस श्रेणी को 'V' कहा जाता है)। ४ वेस्टा इस श्रेणी का सबसे विशालकाय क्षुद्रग्रह है। हमारे सौर मंडल के क्षुद्रग्रह घेरे के लगभग ६% क्षुद्रग्रह इस श्रेणी के हैं।Tholen, D. J. (1989).

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

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