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सौमित्र चटर्जी

सूची सौमित्र चटर्जी

सौमित्र चटर्जी बांग्ला फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। .

11 संबंधों: दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, देवी (१९६० फ़िल्म), पुरस्कार/सम्मान-2012, बाघिनी (1968 फ़िल्म), भारतीय सिनेमा, शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय, शैडो ऑफ टाइम (2004 फ़िल्म), सत्यजित राय, सोनार केल्ला (1974 फ़िल्म), जॉय बाबा फेलुनाथ (१९७८ फ़िल्म), २००४ में पद्म भूषण धारक

दादासाहेब फाल्के पुरस्कार

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है, को कि किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सिनेमा में उसके आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार का प्रारंम्भ दादा साहेब फाल्के के जन्म शताब्दी वर्ष 1969 से हुआ। यह पुरस्कार उस वर्ष के अंत में रास्ट्रीय पुरस्कार के साथ प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार में 10 लाख रुपया और सुवणॅ कमल दिया जाता है। .

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देवी (१९६० फ़िल्म)

देवी 1960 में बनी बांग्ला भाषा की फिल्म है। .

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पुरस्कार/सम्मान-2012

वर्ष-2012 में अनेक शख़्सियतों को सम्मानित किया गया, जिसका क्रमवार विवरण निम्न है: पंडित रविशंकर चंद्रकांत देवताले गोपाल दास नीरज दिलीप कुमार उदय प्रकाश कुलदीप नैयर पूर्णिमा वर्मन रवीन्द्र प्रभात हेमा मालिनी गुलज़ार अमिताभ बच्चन शाहरुख खान सचिन तेंदुलकर श्याम बेनेगल भुपेन हजारिका .

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बाघिनी (1968 फ़िल्म)

बाघिनी 1968 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। .

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भारतीय सिनेमा

भारतीय सिनेमा के अन्तर्गत भारत के विभिन्न भागों और भाषाओं में बनने वाली फिल्में आती हैं जिनमें आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और बॉलीवुड शामिल हैं। भारतीय सिनेमा ने २०वीं सदी की शुरुआत से ही विश्व के चलचित्र जगत पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।। भारतीय फिल्मों का अनुकरण पूरे दक्षिणी एशिया, ग्रेटर मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्व सोवियत संघ में भी होता है। भारतीय प्रवासियों की बढ़ती संख्या की वजह से अब संयुक्त राज्य अमरीका और यूनाइटेड किंगडम भी भारतीय फिल्मों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार बन गए हैं। एक माध्यम(परिवर्तन) के रूप में सिनेमा ने देश में अभूतपूर्व लोकप्रियता हासिल की और सिनेमा की लोकप्रियता का इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ सभी भाषाओं में मिलाकर प्रति वर्ष 1,600 तक फिल्में बनी हैं। दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के जनक के रूप में जाना जाते हैं। दादा साहब फाल्के के भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के प्रतीक स्वरुप और 1969 में दादा साहब के जन्म शताब्दी वर्ष में भारत सरकार द्वारा दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की स्थापना उनके सम्मान में की गयी। आज यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित और वांछित पुरस्कार हो गया है। २०वीं सदी में भारतीय सिनेमा, संयुक्त राज्य अमरीका का सिनेमा हॉलीवुड तथा चीनी फिल्म उद्योग के साथ एक वैश्विक उद्योग बन गया।Khanna, 155 2013 में भारत वार्षिक फिल्म निर्माण में पहले स्थान पर था इसके बाद नाइजीरिया सिनेमा, हॉलीवुड और चीन के सिनेमा का स्थान आता है। वर्ष 2012 में भारत में 1602 फ़िल्मों का निर्माण हुआ जिसमें तमिल सिनेमा अग्रणी रहा जिसके बाद तेलुगु और बॉलीवुड का स्थान आता है। भारतीय फ़िल्म उद्योग की वर्ष 2011 में कुल आय $1.86 अरब (₹ 93 अरब) की रही। जिसके वर्ष 2016 तक $3 अरब (₹ 150 अरब) तक पहुँचने का अनुमान है। बढ़ती हुई तकनीक और ग्लोबल प्रभाव ने भारतीय सिनेमा का चेहरा बदला है। अब सुपर हीरो तथा विज्ञानं कल्प जैसी फ़िल्में न केवल बन रही हैं बल्कि ऐसी कई फिल्में एंथीरन, रा.वन, ईगा और कृष 3 ब्लॉकबस्टर फिल्मों के रूप में सफल हुई है। भारतीय सिनेमा ने 90 से ज़्यादा देशों में बाजार पाया है जहाँ भारतीय फिल्मे प्रदर्शित होती हैं। Khanna, 158 सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक, मृणाल सेन, अडूर गोपालकृष्णन, बुद्धदेव दासगुप्ता, जी अरविंदन, अपर्णा सेन, शाजी एन करुण, और गिरीश कासरावल्ली जैसे निर्देशकों ने समानांतर सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और वैश्विक प्रशंसा जीती है। शेखर कपूर, मीरा नायर और दीपा मेहता सरीखे फिल्म निर्माताओं ने विदेशों में भी सफलता पाई है। 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रावधान से 20वीं सेंचुरी फॉक्स, सोनी पिक्चर्स, वॉल्ट डिज्नी पिक्चर्स और वार्नर ब्रदर्स आदि विदेशी उद्यमों के लिए भारतीय फिल्म बाजार को आकर्षक बना दिया है। Khanna, 156 एवीएम प्रोडक्शंस, प्रसाद समूह, सन पिक्चर्स, पीवीपी सिनेमा,जी, यूटीवी, सुरेश प्रोडक्शंस, इरोज फिल्म्स, अयनगर्न इंटरनेशनल, पिरामिड साइमिरा, आस्कार फिल्म्स पीवीआर सिनेमा यशराज फिल्म्स धर्मा प्रोडक्शन्स और एडलैब्स आदि भारतीय उद्यमों ने भी फिल्म उत्पादन और वितरण में सफलता पाई। मल्टीप्लेक्स के लिए कर में छूट से भारत में मल्टीप्लेक्सों की संख्या बढ़ी है और फिल्म दर्शकों के लिए सुविधा भी। 2003 तक फिल्म निर्माण / वितरण / प्रदर्शन से सम्बंधित 30 से ज़्यादा कम्पनियां भारत के नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध की गयी थी जो फिल्म माध्यम के बढ़ते वाणिज्यिक प्रभाव और व्यसायिकरण का सबूत हैं। दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग दक्षिण भारत की चार फिल्म संस्कृतियों को एक इकाई के रूप में परिभाषित करता है। ये कन्नड़ सिनेमा, मलयालम सिनेमा, तेलुगू सिनेमा और तमिल सिनेमा हैं। हालाँकि ये स्वतंत्र रूप से विकसित हुए हैं लेकिन इनमे फिल्म कलाकारों और तकनीशियनों के आदान-प्रदान और वैष्वीकरण ने इस नई पहचान के जन्म में मदद की। भारत से बाहर निवास कर रहे प्रवासी भारतीय जिनकी संख्या आज लाखों में हैं, उनके लिए भारतीय फिल्में डीवीडी या व्यावसायिक रूप से संभव जगहों में स्क्रीनिंग के माध्यम से प्रदर्शित होती हैं। Potts, 74 इस विदेशी बाजार का भारतीय फिल्मों की आय में 12% तक का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। इसके अलावा भारतीय सिनेमा में संगीत भी राजस्व का एक साधन है। फिल्मों के संगीत अधिकार एक फिल्म की 4 -5 % शुद्ध आय का साधन हो सकते हैं। .

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शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय

शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय (१५ सितंबर, १८७६ - १६ जनवरी, १९३८) बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंट्रेंस पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने "बासा" (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। शरतचन्द्र ललित कला के छात्र थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह इस विषय की पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार के तलाश में शरतचन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। कुछ समय बर्मा रहकर कलकत्ता लौटने के बाद उन्होंने गंभीरता के साथ लेखन शुरू कर दिया। बर्मा से लौटने के बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ जो था तो बड़ा विद्वान पर शराबी और उछृंखल था। यहीं से चरित्रहीन का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है। जब वह एक बार बर्मा से कलकत्ता आए तो अपनी कुछ रचनाएँ कलकत्ते में एक मित्र के पास छोड़ गए। शरत को बिना बताए उनमें से एक रचना "बड़ी दीदी" का १९०७ में धारावाहिक प्रकाशन शुरु हो गया। दो एक किश्त निकलते ही लोगों में सनसनी फैल गई और वे कहने लगे कि शायद रवींद्रनाथ नाम बदलकर लिख रहे हैं। शरत को इसकी खबर साढ़े पाँच साल बाद मिली। कुछ भी हो ख्याति तो हो ही गई, फिर भी "चरित्रहीन" के छपने में बड़ी दिक्कत हुई। भारतवर्ष के संपादक कविवर द्विजेंद्रलाल राय ने इसे यह कहकर छापने से मना कर दिया किया कि यह सदाचार के विरुद्ध है। विष्णु प्रभाकर द्वारा आवारा मसीहा शीर्षक रचित से उनका प्रामाणिक जीवन परिचय बहुत प्रसिद्ध है। .

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शैडो ऑफ टाइम (2004 फ़िल्म)

शैडो ऑफ टाइम 2004 में बनी अंग्रेजी भाषा की फिल्म है। .

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सत्यजित राय

सत्यजित राय (बंगाली: शॉत्तोजित् राय्) (२ मई १९२१–२३ अप्रैल १९९२) एक भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्हें २०वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिना जाता है। इनका जन्म कला और साहित्य के जगत में जाने-माने कोलकाता (तब कलकत्ता) के एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज और विश्व-भारती विश्वविद्यालय में हुई। इन्होने अपने कैरियर की शुरुआत पेशेवर चित्रकार की तरह की। फ़्रांसिसी फ़िल्म निर्देशक ज़ाँ रन्वार से मिलने पर और लंदन में इतालवी फ़िल्म लाद्री दी बिसिक्लेत (Ladri di biciclette, बाइसिकल चोर) देखने के बाद फ़िल्म निर्देशन की ओर इनका रुझान हुआ। राय ने अपने जीवन में ३७ फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिनमें फ़ीचर फ़िल्में, वृत्त चित्र और लघु फ़िल्में शामिल हैं। इनकी पहली फ़िल्म पथेर पांचाली (পথের পাঁচালী, पथ का गीत) को कान फ़िल्मोत्सव में मिले “सर्वोत्तम मानवीय प्रलेख” पुरस्कार को मिलाकर कुल ग्यारह अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। यह फ़िल्म अपराजितो (অপরাজিত) और अपुर संसार (অপুর সংসার, अपु का संसार) के साथ इनकी प्रसिद्ध अपु त्रयी में शामिल है। राय फ़िल्म निर्माण से सम्बन्धित कई काम ख़ुद ही करते थे — पटकथा लिखना, अभिनेता ढूंढना, पार्श्व संगीत लिखना, चलचित्रण, कला निर्देशन, संपादन और प्रचार सामग्री की रचना करना। फ़िल्में बनाने के अतिरिक्त वे कहानीकार, प्रकाशक, चित्रकार और फ़िल्म आलोचक भी थे। राय को जीवन में कई पुरस्कार मिले जिनमें अकादमी मानद पुरस्कार और भारत रत्न शामिल हैं। .

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सोनार केल्ला (1974 फ़िल्म)

सोनार केल्ला 1974 में बनी बांग्ला भाषा की फिल्म है। .

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जॉय बाबा फेलुनाथ (१९७८ फ़िल्म)

जॉय बाबा फेलुनाथ 1978 में बनी बांग्ला भाषा की फिल्म है। .

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२००४ में पद्म भूषण धारक

श्रेणी:पद्म भूषण.

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