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सूर्य ग्रहण

सूची सूर्य ग्रहण

सूर्य ग्रहण एक तरह का ग्रहण है जब चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है तथा पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूर्ण अथवा आंशिक रूप से चन्द्रमा द्वारा आच्छादित होता है। भौतिक विज्ञान की दृष्टि से जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढक जाता है, उसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चाँद पृथ्वी की। कभी-कभी चाँद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है। फिर वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है जिससे धरती पर साया फैल जाता है। इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। यह घटना सदा सर्वदा अमावस्या को ही होती है। .

29 संबंधों: चन्द्रमा, चंद्रग्रहण, चीन में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का इतिहास, धूप के चश्मे, ब्रह्मसरोवर, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारत में अन्धविश्वास, भारत २०१०, भारतीय गणित का इतिहास, भौतिक विज्ञानी, युति-वियुति, शुक्र पारगमन, श्रीपति, सूर्य, सूर्य ग्रहण १५ जनवरी २०१०, सूर्यसिद्धान्त, हिलियम, वर्णमण्डल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी २०१०, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, गणित, ग्रहण, ग्रहण का परिमाण, कुरुक्षेत्र युद्ध, १५ जनवरी, २०१०, २०१२, २०१९, २२ जुलाई २००९ का सूर्यग्रहण

चन्द्रमा

कोई विवरण नहीं।

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चंद्रग्रहण

जून २०११ का पूर्ण चंद्रग्रहण चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते है जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में अवस्थित हों। इस ज्यामितीय प्रतिबंध के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को घटित हो सकता है। चंद्रग्रहण का प्रकार एवं अवधि चंद्र आसंधियों के सापेक्ष चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करते हैं। किसी सूर्यग्रहण के विपरीत, जो कि पृथ्वी के एक अपेक्षाकृत छोटे भाग से ही दिख पाता है, चंद्रग्रहण को पृथ्वी के रात्रि पक्ष के किसी भी भाग से देखा जा सकता है। जहाँ चंद्रमा की छाया की लघुता के कारण सूर्यग्रहण किसी भी स्थान से केवल कुछ मिनटों तक ही दिखता है, वहीं चंद्रग्रहण की अवधि कुछ घंटों की होती है। इसके अतिरिक्त चंद्रग्रहण को, सूर्यग्रहण के विपरीत, आँखों के लिए बिना किसी विशेष सुरक्षा के देखा जा सकता है, क्योंकि चंद्रग्रहण की उज्ज्वलता पूर्ण चंद्र से भी कम होती है। चन्द्रग्रहण का सरलीकृत चित्रण .

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चीन में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का इतिहास

चीन में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का इतिहास बहुत पुराना एवं समृद्ध है। पुराने काल से ही विश्व के अन्य देशों एवं सभ्यताओं से स्वतंत्र रूप से चीन के दार्शनिकों ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, गणित, खगोल आदि में उल्लेखनीय प्रगति की थी। पारम्परिक चीनी औषधि, एक्युपंचर तथा आयुर्वेदिक औषधियों का चीन में प्राचीन काल से प्रचलन है। चीनियों द्वारा विश्व के अन्य लोगों से पूर्व कॉमेट, सूर्य ग्रहण एवं सुपरनोवा रेकार्ड किये गये थे। .

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धूप के चश्मे

प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश में धूप का चश्मा पहनना: बड़ा लेंस अच्छी सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन अगल-बगल से "अनचाहे प्रकाश" को रोकने के लिए चौड़ी बनावट वाले की ज़रूरत है। धूप के चश्मे एक प्रकार के सुरक्षात्मक नेत्र पहनावे हैं जिन्हें प्राथमिक रूप से आखों को सूरज की तेज़ रोशनी और उच्च-उर्जा वाले दृश्यमान प्रकाश के कारण होने वाली हानि या परेशानी से बचने के लिए डिजाइन किया गया है। वे कभी-कभी एक दृश्य सहायक के रूप में भी कार्य करते हैं, चूंकि विभिन्न नामों से ज्ञात चश्मे मौजूद हैं, जिनकी विशेषता यह होती है की उनका लेंस रंगीन, ध्रुवीकृत या गहरे रंग वाली होती है। 20वीं सदी के पूर्वार्ध में इन्हें सन चीटर्स के नाम से भी जाना जाता था (अमेरिकी अशिष्ट भाषा में चश्मो के लिए चीटर्स शब्द का इस्तेमाल किया जाता था).

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ब्रह्मसरोवर

कुरूक्षेत्र के जिन स्थानों की प्रसिद्धि संपूर्ण विश्व में फैली हई है उनमें ब्रह्मसरोवर सबसे प्रमुख है। इस तीर्थ के विषय में विभिन्न प्रकार की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। अगर उनकी बात हम न भी करें तो भी इस तीर्थ के विषय में महाभारत तथा वामन पुराण में भी उल्लेख मिलता है। जिसमें इस तीर्थ को परमपिता ब्रह्म जी से जोड़ा गया है। सूर्यग्रहण के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लाखों लोग ब्रह्मसरोवर में स्नान करते हैं। कई एकड़ में फैला हुआ यह तीर्थ वर्तमान में बहुत सुदंर एवं सुसज्जित बना दिया गया है। कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड के द्वारा बहुत दर्शनीय रूप प्रदान किया गया है तथा रात्रि में प्रकाश की भी व्यवस्था की गयी है। श्रेणी:धार्मिक स्थान श्रेणी:हरियाणा.

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भारत में अन्धविश्वास

अंधविश्वासों के प्रथाओं हानिरहित हो सकते है, जैसे कि बुरी नजर दूर रखने वाली नींबुऔर मिर्च। मगर वे जल की तरह गंभीर भी हो सकते है। अंधविश्वासों को अच्छे तथा बुरे अंधविश्वासों में बांटा जा सकता है। .

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भारत २०१०

इन्हें भी देखें 2014 भारत 2014 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2014 साहित्य संगीत कला 2014 खेल जगत 2014 .

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भारतीय गणित का इतिहास

सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित संख्या-प्रणाली का प्रचलन था। भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-.

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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युति-वियुति

खगोल विज्ञान में, युति-वियुति (syzygy), एक गुरुत्वाकर्षण प्रणाली में तीन खगोलीय पिंडों का एक सरल रेखिय विन्यास है। सरल शब्दों में, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में होते हैं तो यह स्थिति युति-वियुति कहलाती है। युति-वियुति स्थिति में चंद्रमा या तो सूर्य के साथ संयोजन में होता है या सूर्य से विमुख होता है। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण युति-वियुति के समय पर होता है। .

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शुक्र पारगमन

शुक्र पारगमन (Transit of Venus), तब होता है जब शुक्र ग्रह सीधे सूर्य और पृथ्वी (या कोई अन्य ग्रह) के बीच आ जाता है। पारगमन के दरम्यान शुक्र ग्रह सूर्य के मुखाकृति पर एक तिल की भांति नजर आता है तथा आर पार खिसकता हुआ दिखाई देता है। यह सूर्य के मामूली हिस्से भर को ढंक पाता है। इस तरह के पारगमन के दौर आम तौर पर (2012 का पारगमन 6 घंटे और 40 मिनट तक चला था) घंटों में मापे गए है। पारगमन असल में चंद्रमा द्वारा किए गए किसी सूर्यग्रहण के समान है। शुक्र का व्यास चन्द्रमा का तिगुना है फिर भी छोटा दिखाई देता है और सूर्य के मुखाबिंद के आर पार बहुत धीमे चलता हुआ प्रतीत होता है क्योंकि यह पृथ्वी से अपेक्षाकृत कहीं अधिक दूर है। शुक्र के पारगमन दुर्लभतम् पूर्वानुमानित खगोलीय घटनाओं में से हैं। पारगमन चक्रों में पाए जाते है और सामान्यतः हर 243 वर्षों में दोहराए जाते हैं। पहले दो पारगमन आठ वर्षों के अंतराल में होते हैं, फिर करीब 105.5 वर्षीय या 121.5 वर्षीय लंबा विराम और फिर से वही आठ वर्षीय अंतराल के नए पारगमन जोड़ो का दौर शूरू होता है। इस दोहराहट के असली कारण पृथ्वी व शुक्र के कक्षीय अनुनादों में छिपे हुए हैं जो क्रमशः 8:13 और 243:395 है। शुक्र का विगत पारगमन 5 व 6 जून 2012 को था, साथ ही यह 21 वीं सदी का अंतिम शुक्र पारगमन भी था, इसके पूर्व का पारगमन 8 जून 2004 को संपन्न हुआ। पारगमन की पूर्ववर्ती जोड़ी दिसंबर 1874 और दिसंबर 1882 में हुई; आगामी जोड़ी दिसंबर 2117 और दिसंबर 2125 में घटित होगी। .

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श्रीपति

श्रीपति (१०१९ - १०६६) भारतीय खगोलज्ञ तथा गणितज्ञ थे। वे ११वीं शताब्दी के भारत के सर्वोत्कृष्ट गणितज्य थे। .

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सूर्य

सूर्य अथवा सूरज सौरमंडल के केन्द्र में स्थित एक तारा जिसके चारों तरफ पृथ्वी और सौरमंडल के अन्य अवयव घूमते हैं। सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। ऊर्जा का यह शक्तिशाली भंडार मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक विशाल गोला है। परमाणु विलय की प्रक्रिया द्वारा सूर्य अपने केंद्र में ऊर्जा पैदा करता है। सूर्य से निकली ऊर्जा का छोटा सा भाग ही पृथ्वी पर पहुँचता है जिसमें से १५ प्रतिशत अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है, ३० प्रतिशत पानी को भाप बनाने में काम आता है और बहुत सी ऊर्जा पेड़-पौधे समुद्र सोख लेते हैं। इसकी मजबूत गुरुत्वाकर्षण शक्ति विभिन्न कक्षाओं में घूमते हुए पृथ्वी और अन्य ग्रहों को इसकी तरफ खींच कर रखती है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। इसी प्रकाशीय ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण नामक एक महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। यह पृथ्वी के जलवायु और मौसम को प्रभावित करता है। सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हिलियम, लोहा, निकेल, ऑक्सीजन, सिलिकन, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम तत्वों से हुआ है। इनमें से हाइड्रोजन सूर्य के सतह की मात्रा का ७४ % तथा हिलियम २४ % है। इस जलते हुए गैसीय पिंड को दूरदर्शी यंत्र से देखने पर इसकी सतह पर छोटे-बड़े धब्बे दिखलाई पड़ते हैं। इन्हें सौर कलंक कहा जाता है। ये कलंक अपने स्थान से सरकते हुए दिखाई पड़ते हैं। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि सूर्य पूरब से पश्चिम की ओर २७ दिनों में अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करता है। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। Barnhart, Robert K. (1995) The Barnhart Concise Dictionary of Etymology, page 776.

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सूर्य ग्रहण १५ जनवरी २०१०

१५ जनवरी २०१० का सूर्य ग्रहण एक वलयाकार या कंकणाकार सूर्य ग्रहण था। इसका परिमाण ०.९१९० रहा। वलयाकार सूर्यग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा सामान्य स्थिति की तुलना में पृथ्वी से दूर हो जाता है। परिणामस्वरूप उसका आकार इतना नहीं दिखता कि वह पूरी तरह सूर्य को ढक पाये। वलयाकार सूर्यग्रहण में चंद्रमा के बाहरी किनारे पर सूर्य मुद्रिका यानी वलय की तरह काफ़ी चमकदार नजर आता है।। बीबीसी हिन्दी। १५ जनवरी २०१० यह ग्रहण भारतीय समयानुसार ११ बजकर ०६ मिनट पर आरंभ हुआ और यह दोपहर ३ बजे के बाद तक चालू रहा। वैज्ञानिकों के अनुसार दोपहर १ बजकर १५ मिनट पर सूर्य ग्रहण अपने चरम पर था। भारत के अलावा सूर्यग्रहण अफ्रीका, हिन्द महासागर, मालदीव, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया में दिखाई दिया। इससे पहले वलयाकार सूर्यग्रहण २२ नवम्बर १९६५ को दिखाई पड़ा था और इसके बाद अगला वलयाकार सूर्यग्रहण २१ जून २०२० को दिखेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इतनी लंबी अवधि का सूर्यग्रहण इसके बाद वर्ष ३०४३ से पहले नहीं दिखाई पड़ेगा। .

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सूर्यसिद्धान्त

सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि.

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हिलियम

तरलीकृत हीलियम शुद्ध हीलियम से भरी गैस डिस्चार्ज ट्यूब हिलियम (Helium) एक रासायनिक तत्त्व है जो प्रायः गैसीय अवस्था में रहता है। यह एक निष्क्रिय गैस या नोबेल गैस (Noble gas) है तथा रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, विष-हीन (नॉन-टॉक्सिक) भी है। इसका परमाणु क्रमांक २ है। सभी तत्वों में इसका क्वथनांक (boiling point) एवं गलनांक (melting point) सबसे कम है। द्रव हिलियम का प्रयोग पदार्थों को अत्यन्त कम ताप तक ठण्डा करने के लिये किया जाता है; जैसे अतिचालक तारों को १.९ डिग्री केल्विन तक ठण्डा करने के लिये। हीलियम अक्रिय गैसों का एक प्रमुख सदस्य है। इसका संकेत He, परमाणुभार ४, परमाणुसंख्या २, घनत्व ०.१७८५, क्रांतिक ताप -२६७.९०० और क्रांतिक दबाव २ २६ वायुमंडल, क्वथनांक -२६८.९० सें.

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वर्णमण्डल

सन् १९९९ के पूर्ण सूर्यग्रहण के समय सूर्य का वर्णमण्डल दिखायी दे रहा है सूर्य के वायुमंडल का निम्नस्तर, जो प्रकाशमंडल (photosphere) के ठीक ऊपर स्थित है उत्क्रमण मंडल (Reversing layer) कहलाता है। इस उत्क्रमण मंडल से ऊपर लगभग 11,200 किलोमीटर तक फैले हुए गोलीय मंडल को वर्णमंडल कहते हैं। पूर्ण सूर्यग्रहण के समय इस मंडल का वर्ण सिंदूरी (scarlet) होता है। यह वर्ण हाइड्रोजन के परमाणुओं द्वारा किए गए विकिरण की अधिकता के कारण उत्पन्न होता है। .

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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी २०१०

इन्हें भी देखें- भारत 2010 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2010 साहित्य संगीत कला 2010 खेल जगत 2010 .

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खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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ग्रहण

सूर्यग्रहण का एक दृष्य ग्रहण एक खगोलीय अवस्था है जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्रोत जैसे सूर्य और दूसरे खगोलिय पिंड जैसे पृथ्वी के बीच आ जाता है जिससे प्रकाश का कुछ समय के लिये अवरोध हो जाता है। इनमें मुख्य रूप से पृथ्वी के साथ होने वाले ग्रहणों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं.

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ग्रहण का परिमाण

इस माप को यह समझकर भ्रमित न हों: आभासी परिमाण (कान्ति अर्थात् चमक का लघुगणकीय पैमाना), जो कि भिन्न है। सूर्यग्रहण में, ग्रहण का परिमाण, वह अनुपात है जो ग्रहण के दौरान चंद्रमा तथा सूर्य के आभासी कोणीय व्यासों के बीच होता है। दोनों के आभासी आकार लगभग बराबर होते हैं, परंतु पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच की दूरी बदलने से ये बदलते रहते हैं। (पृथ्वी व सूर्य के बीच की दूरी भी बदलती रहती है, परंतु इसका प्रभाव तुलनात्मक रूप से हल्का होता है।) .

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कुरुक्षेत्र युद्ध

कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,सौप्तिकपर्व इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गये जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था। इस युद्ध में सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के क्षत्रिय वीरों ने भी भाग लिया और सब के सब वीर गति को प्राप्त हो गये। महाभारत-गीताप्रेस गोरखपुर,भीष्मपर्व इस युद्ध के परिणामस्वरुप भारत में ज्ञान और विज्ञान दोनों के साथ-साथ वीर क्षत्रियों का अभाव हो गया। एक तरह से वैदिक संस्कृति और सभ्यता जो विकास के चरम पर थी उसका एकाएक विनाश हो गया। प्राचीन भारत की स्वर्णिम वैदिक सभ्यता इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो गयी। इस महान युद्ध का उस समय के महान ऋषि और दार्शनिक भगवान वेदव्यास ने अपने महाकाव्य महाभारत में वर्णन किया, जिसे सहस्राब्दियों तक सम्पूर्ण भारतवर्ष में गाकर एवं सुनकर याद रखा गया। महाभारत में मुख्यतः चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का वृत्तांत है। १०० कौरवों और पाँच पाण्डवों के बीच कुरु साम्राज्य की भूमि के लिए जो संघर्ष चला उससे अंतत: महाभारत युद्ध का सृजन हुआ। उक्त युद्ध को हरियाणा में स्थित कुरुक्षेत्र के आसपास हुआ माना जाता है। इस युद्ध में पाण्डव विजयी हुए थे। महाभारत में इस युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया है, क्योंकि यह सत्य और न्याय के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध था। महाभारत काल से जुड़े कई अवशेष दिल्ली में पुराना किला में मिले हैं। पुराना किला को पाण्डवों का किला भी कहा जाता है। कुरुक्षेत्र में भी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा महाभारत काल के बाण और भाले प्राप्त हुए हैं। गुजरात के पश्चिमी तट पर समुद्र में डूबे ७०००-३५०० वर्ष पुराने शहर खोजे गये हैं, जिनको महाभारत में वर्णित द्वारका के सन्दर्भों से जोड़ा गया, इसके अलावा बरनावा में भी लाक्षागृह के अवशेष मिले हैं, ये सभी प्रमाण महाभारत की वास्तविकता को सिद्ध करते हैं। .

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१५ जनवरी

15 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 15वाँ दिन है। साल में अभी और 350 दिन बाकी है (लीप वर्ष में 351)। .

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२०१०

वर्ष २०१० वर्तमान वर्ष है। यह शुक्रवार को प्रारम्भ हुआ है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष २०१० को अंतराष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इन्हें भी देखें 2010 भारत 2010 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2010 साहित्य संगीत कला 2010 खेल जगत 2010 .

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२०१२

२०१२ (MMXII) ग्रेगोरियन कैलेंडर के रविवार को शुरू होने वाला एक अधिवर्ष अथवा लीप ईयर होगा। इस वर्ष को गणितज्ञ ट्यूरिंग, कंप्यूटर के अग्र-दूत और कोड -भंजक, की याद में उनकी सौवीं वर्षगांठ पर एलन ट्यूरिंग वर्ष नामित किया गया है। .

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२०१९

कोई विवरण नहीं।

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२२ जुलाई २००९ का सूर्यग्रहण

२२ जुलाई २००९ का सूर्यग्रहण २१वीं सदी का सबसे लंबा पूर्ण सूर्यग्रहण था, जो कि कुछ स्थानों पर 6 मिनट 39 सेकंड तक रहा। इसके कारण चीन, नेपाल व भारत में पर्यटन-रुचि भी बढ़ी। यह ग्रहण सौर-चक्र 136 का एक भाग है, जैसे कि कीर्तिमान-स्थापक 11 जुलाई 1991 का सूर्यग्रहण था। इस शृंखला में अगली घटना 2 अगस्त 2027 में होगी। इसकी अनोखी लंबी अवधि इसलिए हैं, कि चंद्रमा उपभू बिंदु पर है, जिससे चंद्रमा का आभासी व्यास सूर्य से 8% बड़ा है (परिमाण 1.080) तथा पृथ्वी अपसौरिका के निकट है जहाँ पर सूर्य थोड़ा सा छोटा दिखाई देता है। यह इसी महीने के तीन ग्रहणों की शृंखला में दूसरी होगा, जिसमें अन्य हैं 7 जुलाई का चंद्रग्रहण तथा 6 अगस्त का चंद्रग्रहण। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सूर्यग्रहण

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