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सुभाष काक

सूची सुभाष काक

सुभाष काक सुभाष काक (जन्म 26 मार्च 1947) प्रमुख भारतीय-अमेरिकी कवि, दार्शनिक और वैज्ञानिक हैं। वे अमेरिका के ओक्लाहोमा प्रान्त में संगणक विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके कई ग्रन्थ वेद, कला और इतिहास पर भी प्रकाशित हुए हैं। उनका जन्म श्रीनगर, कश्मीर में राम नाथ काक और सरोजिनी काक के यहाँ हुआ। उनकी शिक्षा कश्मीर और दिल्ली में हुई। .

18 संबंधों: एक ताल, एक दर्पण, पारसी धर्म, पुनर्गमनवाद, प्राचीन वंशावली, प्रज्ञा सूत्र, यमल विरोधाभास, राम नाथ काक, राजीव मल्होत्रा, सिद्धान्त शिरोमणि, सुखदेव(राजा), हिन्दू धर्म, ज़रथुश्त्र, आर्यभट, कश्मीर, कश्मीरी साहित्य, अश्वमेध यज्ञ: विधि और युक्ति, अखेनातेन, ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष

एक ताल, एक दर्पण

एक ताल, एक दर्पण सुभाष काक की लिखी कविता की पुस्तक है।.

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पारसी धर्म

पारसी धर्म ईरान का प्राचीन काल से प्रचलित धर्म है। ये ज़न्द अवेस्ता नाम के धर्मग्रंथ पर आधारित है। इसके प्रस्थापक महात्मा ज़रथुष्ट्र हैं, इसलिये इस धर्म को ज़रथुष्ट्री धर्म (Zoroastrianism) भी कहते हैं। .

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पुनर्गमनवाद

पुनर्गमनवाद एक दार्शनिक दृष्टिकोण है जिससे याथार्थ्य की विवेचना भारतीय परम्परा में होती है। पुनर्गमन का अर्थ विधान अथवा व्यवस्था के रूप का विभिन्न स्थानों पर उत्थान। इसका उत्गम वेद के महावाक्य यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे है। एक ही समय पूरे ब्रह्माण्ड को ईश्वर का रूप और ईश्वर का आत्मा से समीकरण इस मत से आनुरूप्य हैं। पर इसका प्रमाण समकालीन विज्ञान में भी मिलता है। यह विरोधाभास है और अनोखी बात है कि इसे दर्शन का नव्योत्तर विषय अथवा वैदिक विचार का प्रबन्ध माना जा सकता है। सुभाष काक ने इस दार्शनिक मत पर कई कृतियां लिखीं हैं। इस विचारधारा से एक प्राचीन वैदिक ज्योतिष का ज्ञान हुआ है, जिससे भारत की संस्कृति, विज्ञान और कालक्रम पर नया प्रकाश पड़ता है। इनमें से सबसे रोचक १०८ अंक, जो भारतीय संस्कृति में बहुत आता है, की व्याख्या है। प्रमुख देवी-देवताओं के १०८ नाम हैं, जपमाला में १०८ दाने, १०८ धाम हैं, आदि। सुभाष काक के शोध ने दिखाया है कि वैदिक काल में यह ज्ञान था कि सूर्य और चन्द्रमा पृथिवी से लगभग १०८ निजि व्यास के गुणा दूर हैं। आधुनिक ज्योतिष ने तो यह भी दिखाया है कि सूर्य का व्यास पृथिवी के व्यास से लगभग १०८ गुणा है। .

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प्राचीन वंशावली

भारतीय इतिहास अति प्राचीन है। पौराणिक वंशावली अधस्तात् दी गयी है। यह वंशावली कृत युग से द्वापर के अन्त तक की है। नीचे लिखी सूचियां मनु (प्रथम मानव) से आरम्भ होती हैं और भगवान कृष्ण की पीढी पर समाप्त होती हैं। पूरी वंशावली जो पुराणों मे उपलब्ध है, नन्द वंश तक की है।सुभाष काक, दि एस्ट्रोनोमिकल कोड ऑफ दि ऋग्वेद (ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष), मुंशीराम मनोहारलाल, नई दिल्ली, २०००। यह देखिये कि राम की पीढी ६५ है जबकि कृष्ण की ९४। इससे उनके बीच की अवधि का अनुमान बताया जा सकता है। इन पीढियों का जितना सम्भव था उतना समक्रमण किया गया है। भारत के प्राचीन सप्तर्षि पंचांग के अनुसार यह कालक्रम ६६७६ ईपू से आरम्भ होता है। उस काल के विभिन्न आर्य राजाओं के बारे में इन वंशावलीयों से बहुत ज्ञान मिलता है। .

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प्रज्ञा सूत्र

प्रज्ञा सूत्र सुभाष काक द्वारा २००२ में रचित वेदान्त का एक नया ग्रन्थ है। संस्कृत में लिखे यह सूत्र निम्नलिखित हैं: बन्धु-परोक्ष-यज्ञाः विज्ञानस्य त्रिपादाः। १। देव-भूत-जीवात्मानोऽन्तरेण बन्धुः। २। मनसि प्रतिबिम्बितं ब्रह्माण्डम्। ३। चिदाकाशस्य तदीयौ सूर्य-चन्द्रौ। ४। सूर्य-चन्द्राव्-अष्टोत्तर-शत-अंशात्मकौ। ५। सामान्य-आधारितं-ज्ञानम्। ६। शब्दः बन्धः। ७। भाषा अपरा। ८। विरुद्धानि इव अपि दर्शनानि परस्पर-पूरकानि। ९। आन्तरिक-स्थितयः परिसंख्या-योग्याः। १०। भाषा-लोक-विरुद्ध-आभास-अतीतम् विज्ञानम्। ११। यज्ञात् प्रज्ञा आविर्भवति। १२। चित्तम्-आव्रियते वर्णैः। १३। पशु-आसुर-राक्षसा आत्मनि निवसन्ति। १४। पशुत्वस्य नाशनम् एव मुक्तिः। १५। यज्ञो योगः परिणामः परिवर्तनं च। १६। शरीर-मनसि असम्भूति-सम्भूती अविद्या-विद्ये पक्षाविव। १७। प्रज्ञा ऐश्वर्यं पक्षिणः उड्डयनम्। १८। स्पष्ट है कि यह सूत्र वेद का रहस्य बन्धु, परोक्ष और यज्ञ में देखते हैं। बन्धु पिण्ड और ब्रह्माण्ड के बीच में जोड के बारे में है, परोक्ष द्वन्द्व का द्योतक है और यज्ञ जीवन को परिवर्तन के रूप में पाता है। इन सूत्रों में उपनिषद के महावाक्यों की झलक है और आधुनिक काल के लिये सनातन तथ्यों की पुनरोक्ति भी। .

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यमल विरोधाभास

यमल विरोधाभास यमल विरोधाभास १०० वर्ष पुराना सापेक्षवाद सिद्धान्त की समस्या है। यह विरोधाभास आइन्सटाइन के नाम से जुडा हुआ है। अभी समाचार में आया है कि सुभाष काक ने इसका समाधान एक नए सिद्धान्त से ढूंढ निकाला है।.

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राम नाथ काक

राम नाथ काक (१९१७-१९९३) श्रीनगर में जन्मे। उनकी जीवनी Autumn Leaves: Kashmiri Reminiscences को बहुत ख्याति मिली। ब्रिटिश लेखिका ताया ज़िंकिन के अनुसार यह आधुनिक कश्मीर पर एक विशिष्ट, सम्मोहित करने वाली किताब है। इतिहासकार रवीन्द्र कुमार के अनुसार यह कश्मीर के दुःखद दौर का शक्तिशाली विवरण देता है। उनका विवाह सरोजिनी काक से हुआ। इनके बच्चे अविनाश, सुभाष, शक्ति, जयश्री और नीरज प्रमुख लेखक अथवा वैज्ञानिक हुए। .

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राजीव मल्होत्रा

राजीव मल्होत्रा (जन्म: सितम्बर, 1950) भारतीय मूल के अमेरिकी लेखक, विचारक तथा प्रखर वक्ता हैं। वे 'इनफिनिटी फाउण्डेशन' के संस्थापक हैं। मल्होत्रा के ‘इनफिंटी फाउंडेशन’ ने पिछले कई वर्षों में बहुत-से विद्वानों और परियोजनाओं को आर्थिक सहायता देकर विश्वविद्यालयों में भारतीय ज्ञान परंपरा को स्थापित करने का प्रयास किया है। .

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सिद्धान्त शिरोमणि

सिद्धान्त शिरोमणि, संस्कृत में रचित गणित और खगोल शास्त्र का एक प्राचीन ग्रन्थ है। इसकी रचना भास्कर द्वितीय (या भास्कराचार्य) ने सन ११५० के आसपास की थी। सिद्धान्त शिरोमणि का रचीता। इसके चार भाग हैं: ग्रहगणिताध्याय और गोलाध्याय में खगोलशास्त्र का विवेचन है। .

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सुखदेव(राजा)

इसी नाम से प्रसिद्ध एक भारतीय क्रांतिकारी के बारे में जानने के लिए यहां जाँय - सुखदेव महाभारत के पश्चात के कुरु वंश के राजा।.

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हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। .

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ज़रथुश्त्र

ज़रथुश्त्र, ज़रथुष्ट्र (फ़ारसी: زرتشت ज़रतोश्त, अवेस्तन: ज़र.थुश्त्र, संस्कृत: हरित् + उष्ट्र, सुनहरी ऊंट वाला) प्राचीन ईरान के पारसी धर्म के संस्थापक माने जाते हैं जो प्राचीन ग्रीस के निवासियों तथा पाश्चात्य लेखकों को इसके ग्रीक रूप जारोस्टर के नाम से ज्ञात है। फारसी में जरदुश्त्र: गुजराती तथा अन्य भारतीय भाषाओं में जरथुश्त। उनके जन्म और मरण के काल के बारे में इतिहासकारों में मतभेद है। उनके जीवन काल का अनुमान विभिन्न विद्वानों द्वारा १४०० से ६०० ईपू है। ज़रथुश्त्र (अहुरा मज़्दा) के सन्देशवाहक थे। उन्होंने सर्वप्रथम दाएवों (बुरी और शैतानी शक्तिओं) की निन्दा की और अहुरा मज़्दा को एक, अकेला और सच्चा ईश्वर माना। उन्होंने एक नये धर्म "ज़रथुश्त्री धर्म" (पारसी धर्म) की शुरुआत की और पारसी धर्मग्रन्थ अवेस्ता में पहले के कई काण्ड (गाथाएँ) लिखे। सबसे पहले शुद्ध अद्वैतवाद के प्रचारक जोरोस्ट्रीय धर्म ने यहूदी धर्म को प्रभावित किया और उसके द्वारा ईसाई और इस्लाम धर्म को। इस धर्म ने एक बार हिमालय पार के प्रदेशों तथा ग्रीक और रोमन विचार एवं दर्शन को प्रभावित किया था, किंतु 600 वर्ष ad के लगभग इस्लाम धर्म ने इसका स्थान ले लिया। यद्यपि अपने उद्भवस्थान आधुनिक ईरान में यह धर्म वस्तुत: समाप्त है, प्राचीन जोरोस्ट्रीयनों के मुट्ठीभर बचे खुचे लोगों के अतिरिक्त, जो विवशताओं के बावजूद ईरान में रहे और उनके वंशजों के अतिरिक्त जो अपने धर्म को बचाने के लिए बारह शताब्दियों से अधिक हुआ पूर्व भारत भाग आए थे, उनमें उस महान प्रभु की वाणी अब भी जीवित है और आज तक उनके घरों और उपासनागृहों में सुनी जाती है। गीतों के रूप में गाथा नाम से उनके उपदेश सुरक्षित हैं जिनका सांराश है अच्छे विचार, अच्छी वाणी, अच्छे कार्य। .

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आर्यभट

आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है। एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की। .

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कश्मीर

ये लेख कश्मीर की वादी के बारे में है। इस राज्य का लेख देखने के लिये यहाँ जायें: जम्मू और कश्मीर। एडवर्ड मॉलीनक्स द्वारा बनाया श्रीनगर का दृश्य कश्मीर (कश्मीरी: (नस्तालीक़), कॅशीर) भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे उत्तरी भौगोलिक क्षेत्र है। कश्मीर एक मुस्लिमबहुल प्रदेश है। आज ये आतंकवाद से जूझ रहा है। इसकी मुख्य भाषा कश्मीरी है। जम्मू और कश्मीर के बाक़ी दो खण्ड हैं जम्मू और लद्दाख़। .

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कश्मीरी साहित्य

परम्परागत रूप से कश्मीर का साहित्य संस्कृत में था। नीचे काश्मीर के संस्कृत के प्रमुख साहित्यकारों के नाम दिये गये हैं-.

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अश्वमेध यज्ञ: विधि और युक्ति

अश्वमेध यज्ञ: विधि और युक्ति (The Ashvamedha: The Rite and its Logic) सुभाष काक की लिखी एक पुस्तक है जिसे मोतीलाल बनारसीदास ने २००१ में प्रकाशित किया। इसमें यह दिखलाया है कि प्रारम्भ में यह यज्ञ आन्तरिक और बाह्य सूर्य के समीकरण और स्वप्रेरणा से जुडा हुआ था। .

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अखेनातेन

फारो अखेनातेन फारो अखेनातेन (१३५१-१३३४ ईपू) मिस्र के १८वें वंश का था। उसने मिस्र के प्राचीन धर्म पर प्रतिबन्ध लगाया और केवल अतेन नामी सूर्य की चक्रिका की उपासना का आदेश दिया। उसे पाश्चात्य विद्वान विश्व का पहला एकेश्वरवादी मानते हैं। पहले इसका नाम अमेनहोतेप ४ था। पर नया धर्म चलाने के पश्चात इसने यह बदलकर अखेनातेन कर दिया। अखेनातेन और उसका परिवार सूर्य की पूजा करता हुआनेफरतिति उसकी पहली पत्नी थी। मित्तानी राजकुमारी तदुक्षिपा उसकी दूसरी रानी बनी। एक अवधारणा यह है कि इसका धार्मिक परिवर्तन तदुक्षिपा के आगम की भ्रमित समझ पर आधारित था। सुभाष काक के अनुसार उसके सूर्य स्तोत्र और ऋग्वेद के सूर्य सूक्तों में महत्त्वपूर्ण सादृश्य है। अखेनातेन का सूर्य स्तोत्र बाइबल के पूर्वविधान (Old Testament) में १०४वें स्तोत्र के रूप में मिलता है। उसकी मृत्यु पशचात उसके नये धर्म दबाया गया। कुछ विद्वान समझते हैं कि मूसा ने इसी के विचारों को दुबारा उठाना चाहा। यदि यह सिद्धान्त सही है तो यह विडम्बना है कि अखेनातन की परम्परा, जिसे यहूदी ईसाई और इसलामी धर्मों का पूर्वरूप माना जाता है, स्वयं इसकी विरोधी सनातन धर्म की परम्परा पर आधारित है। अखेनातेन, नेफरतिति और उनके बच्चे .

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ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष

सुभाष काक द्वारा लिखी गई-ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष। ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष यह अंग्रेज़ी में लिखी सुभाष काक की १९९४ (और २००० में बडा संस्करण) प्रकाशित पुस्तक दि एस्ट्रोनोमिकल कोड ऑफ दि ऋग्वेद है। इसमें सदियों से लुप्त वैदिक काल के ज्योतिष की व्याख्या है। इसका भारत के इतिहास की समझ के लिये भी बहुत महत्व है। इससे काल-क्रम पर भी प्रकाश डलता है। और यह समझ आती है कि क्यों ऋग्वेद में ४३२००० अक्षर हैं। इस ग्रन्थ से वैदिक अध्ययन को बहुत स्फूर्ति मिली है। अमेरिका के वेदपण्डित वामदेव शास्त्री ने इस शोध को स्मारकीय उपलब्धि (monumental achievement) कहा है।'दि एस्ट्रोनोमिकल कोड ऑफ दि ऋग्वेद' के जिल्द से, मुंशीराम मनोहारलाल, नई दिल्ली, २०००। कनाडा के विख्यात आचार्य क्लास क्लास्टरमेयर के अनुसार, "मेरी बहुत देर की समझ थी कि ऋग्वेद में भाषाशास्त्र और इतिहास के परे बहुत कुछ था। यह है वह!...

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