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सुथार

सूची सुथार

सुथार (संस्कृत: सूत्रधार) भारत में एक जाति है। मूलतः इस जाति के लोगों का काम है लकड़ी की अन्य वस्तुएँ बनाना है। इस जाति के लोग विश्वकर्मा को अपने ईष्ट देवता मानते हैं। सुथार शब्द का प्रयोग ज्यादातर राजस्थान में ही किया जाता है। सुथार जाति का पारंपरिक काम बढ़ई होता है। बढ़ई शब्द का उल्लेख प्राचीन कालों में भी मिलता है। इनकी आबादी भारत में 7.3 करोड़ के आस पास पाई जाती है और ये भारत के सारे राज्यो में पाई जाती है। .

7 संबंधों: ठाडिया, राजस्थान, रंदा, सूत्रधार, आरी, आलसर, असम के सूत्रधर, उपनाम

ठाडिया, राजस्थान

ठाडिया एक छोटा सा गाँव है जो राजस्थान के जोधपुर जिले के बालेसर तहसील तथा देचू कस्बे में स्थित है। यह गाँव पोस्ट ऑफिस से युक्त है तथा इसका पिनकोड ३४२३१४ है। गाँव में कई सरकारी तथा कई निजी विद्यालय भी है। यहां पर कई छोटे गाँव भी है।गाँव में बाबा रामदेव का मन्दिर भी है,इनके अलावा मां सती दादी का भी मन्दिर है। बाबा रामदेव के मन्दिर को यहाँ के पनपालिया परिवार ने बनवाया है। गाँव में एक छोटा बाजार तथा उचित मूल्य की दुकान भी है। यहां पर अनेक जातियां निवास करती है जिनमें - सुथार, राजपूत, बिश्नोई, भील, जोगी, मेहतर, बनिया, मेघवाल आदि शामिल है। गाँव की जनसंख्या २०११ की जनगणना के अनुसार लगभग १०४९ हैं। .

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रंदा

रंदा (अंग्रेजी:Plane (tool) एक औजार होता है इसका उपयोग सुथार तथा फर्नीचर बनाने वाले लोग फर्नीचर बनाने में करते हैं। रंदा लकड़ी तथा लोहे का होता है। .

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सूत्रधार

सूत्रधार नाटक के सभी सूत्र अपने हाथों में धारण करता है। वही नाटक का प्रारंभ करता है और वही अंत भी करता है। कभी कभी नाटक के बीच में भी उसकी उपस्थिति होती है। कभी कभी वह मंच के पीछे अर्थात नेपथ्य से भी नाटक का संचालन करता है। भारतीय रंगपरंपरा में सूत्रधार को अपने नाम के अनुरूप महत्व प्राप्त है। भारतीय समाज में संसार को रंगमंच, जीवन को नाट्य, मनुष्य या जीव को अभिनेता और ईश्वर को सूत्रधार कहा जाता है। यह माना जाता है कि ईश्वर ही वह सूत्रधार है, जिसके हाथ में सारे सूत्र होते हैं और वह मनुष्य या जीव रूपी अभिनेता को संसार के रंगमंच पर जीवन के नाट्य में संचालित करता है। सूत्रधार की यह नियामक भूमिका हमारी रंगपरंपरा में स्पष्ट देखने को मिलती है। वह एक शक्तिशाली रंगरूढ़ि के रूप में संस्कृत रंगमंच पर उपलब्ध रहा है। पारंपारिक नाट्यरूपों के निर्माण और विकास में भी सूत्रधार के योगदान को रेखांकित किया जा सकता है। आधुनिक रंगकर्म के लिए सूत्रधार अनेक रंगयुक्तियों को रचने में सक्षम है, जिसके कारण रंगमंच के नए आयाम सामने आ सकते हैं। यह एक ऐसा रूढ़ चरित्र है, जिसे बार-बार आविष्कृत करने का प्रयास किया गया है और आज भी वह नई रंगजिज्ञासा पैदा करने में समर्थ है। वह अभिनेता, दर्शक और नाटक के बीच सूत्र बनाए रखने का महत्वपूर्ण काम करता है। सूत्रधार के सूत्र संस्कृत रंगपरंपरा से गहरे जुड़े हुए हैं। वहाँ इसे संपूर्ण अर्थ का प्रकाशक, नांदी के पश्चात मंच पर संचरण करने वाला पात्र तथा शिल्पी कहा गया है। सूचक और बीजदर्शक के रूप में भी सूत्रधार को मान्यता मिली है। सूत्रभृत, सूत्री और सूत्रकृत आदि नामों से भी यह संबोधित किया जाता रहा है। 'भाव' का संबोधन भी इसे मिला है। अमरकोष 'भाव' को विद्वान का पर्याय मानता है। नाट्याचार्य भी सूत्रधार के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। पर्याय के रूप में प्रयुक्त होने वाले सूत्रधार के विविध नामों के भीतर छिपे गुणों के आधार पर लक्षणग्रंथों और शास्त्रों में सूत्रधार की विवेचना होती रही है। नाट्यशास्त्र में भरत मुनि सूत्रधार को भावयुक्त गीतों, वाद्य तथा पाठ्य के सूत्रों का ज्ञाता मानते हैं और उपदेष्टा भी कहते हैं। नाट्याचार्य की उपाधि उसे उपदेष्टा होने के कारण प्राप्त हुई। प्राचीन आचार्यों ने सूत्रधार के लक्षणों की विवेचना करते हुए उसे 'संगीत सर्वस्व' भी माना है। नृत्य, नाट्य और कथा के सूत्रों को आपस में गूँथने के कारण भी उसे सूत्रधार की संज्ञा दी गई। वह प्रस्तुत किए जाने वाले काव्य (रूपक) की वस्तु, नेता और रस को सूत्र रूप में सूचित करता है। नायक और कवि (रूपककार या नाटककार) तथा वस्तु के वैशिष्ट्य को भी सूत्रबद्ध करता है। वह प्रसाधन में दक्ष (रंगप्रसाधन प्रौढः) होता है। रूपक की प्रस्तावना को उपस्थापित करने वाला यह चरित्र सभी अभिनेताओं का प्रधान माना गया है। सूत्रधार के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए नाट्यशास्त्र के आचार्य मातृगुप्त उसे चार प्रकार के प्रकाश में निष्णात, अनेक भाषाओं का ज्ञाता, विविध प्रकार के भाषणों (संवादों) का तत्वज्ञ, नीतिशास्त्र वेत्ता, वेशभूषा का जानकार, समाज का दीर्घदर्शी, गतिप्रचार जानने वाला, रसभाव विशारद, नाट्य-प्रयोग तथा विविध शिल्प कलाओं में दक्ष, छंदोविधान का मर्मज्ञ, शास्त्रों का पंडित, गीतों के लिए लय-ताल का ज्ञाता और दूसरों को शिक्षित करने में निपुण माना है। प्राचीन आचार्य शांतकर्णि सूत्रधार के लक्षणों को प्रतिपादित करते हुए अनुष्ठान (रंग अनुष्ठान) को प्रयोग का सूत्र और उसे धारण करने वाले को सूत्रधार मानते हैं। हालाँकि सूत्रधार की भूमिका को किंचित संकुचित करते हुए शांतकर्णि मानते हैं कि वह नाटक में कोई भूमिका नहीं करता, अतः वह बाह्य-पात्र है। आचार्य कोहल यह माँग करते हैं कि सूत्रधार को नांदी संबोधित किया जाना चाहिए क्योंकि वह नांदी पाठ करता है। भास उसे प्रस्तावना, प्रस्तुति और समापन-तीनों का नियामक मानते हैं। .

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आरी

आरी (अंग्रेजी:Saw या hand saw) एक औजार का नाम है जो लोहे तथा कई और धातुओं में बनी मिलती है इसका प्रयोग सुथार तथा अन्य जाति के लोग फर्नीचर बनाने में करते हैं। इससे लकड़ी तथा धातु को आसानी से काटा जाता है। .

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आलसर

आलसर राजस्थान राज्य के चुरु जिले की रतनगढ तहसील का एक छोटा सा गाँव है। यहाँ के 75% लोग खेती करते हैं! शिक्षा: यहाँ पर एक सरकारी माध्यमिक विद्यालय व एक प्राथमिक विद्यालय है। .

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असम के सूत्रधर

सूत्रधर (असमिया:সূত্ৰধৰ) या सुथार एक जातिगत समूह है जो मुख्यतः लकड़ी का कार्य (जैसे- लकड़ी काटना, घर और नाव आदि बनाना, लकड़ी के घरेलू सामान और कृषि उपकरण आदि बनाना) करते हैं। .

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उपनाम

नाम के साथ प्रयोग हुआ दूसरा शब्द जो नाम कि जाति या किसी विशेषता को व्यक्त करता है उपनाम (Surname / सरनेम) कहलाता है। जैसे महात्मा गाँधी, सचिन तेंदुलकर, भगत सिंह आदि में दूसरा शब्द गाँधी, तेंदुलकर, सिंह उपनाम हैं। .

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