लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

सर्वहारा

सूची सर्वहारा

रूमानिया का एक साम्यवादी क्रांतिकारी पोस्टर जिसमें ध्वज पर लिखा है 'विश्वभर के प्रोलितारियनों एक हो जाओ' सर्वहारा (प्रोलितारियत / प्रोलिटेरियट​ / Proletariat) समाजशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में समाज की नीचे वाली श्रेणियों को कहा जाता है, जो अक्सर शारीरिक श्रम से जीवनी चलाते हैं। औद्योगिक समाजों में अक्सर कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूरों को 'प्रोलिटेरियट​' कहा जाता था लेकिन कभी-कभी कृषकों और अन्य ग़रीब मेहनत करने वाले लोगों को भी इसमें शामिल किया जाता है। .

8 संबंधों: त्रोत्स्की, बूर्जुआ, भ्रान्त चेतना, राज्य की मार्क्सवादी अवधारणा, लोकतंत्र, समाजशास्त्र, सर्वहारा की तानाशाही, १९०५ की रूसी क्रांति

त्रोत्स्की

लेव त्रोत्स्की (१९२९ में) लेव त्रोत्सकी (रूसी:: Лев Дави́дович Тро́цкий; उच्चारण:; Leon Trotsky; 7 नवम्बर 1879 – 21 अगस्त 1940) रूस के मार्क्सवादी क्रांतिकारी तथा सिद्धान्तकार, सोवियत राजनेता तथा लाल सेना के संस्थापक व प्रथम नेता थे। रूसी क्रांति के बाद हुए भीषण गृह युद्ध में विजयी रही लाल सेना की कमान ट्रॉट्स्की के हाथ में ही थी। एक सिद्धांतकार के रूप में स्थायी क्रांति के सिद्धान्त के जरिये उन्होने मार्क्सवादी विमर्श में योगदान किया। इसके साथ ही ट्रॉट्स्की ने एक नियम का प्रतिपादन भी किया कि पूँजीवाद के विकास का स्तर सभी जगह एक सा नहीं होता जिसका परिणाम पिछड़े देशों में सामाजिक और ऐतिहासिक विकास के दो चरणों के एक साथ घटित हो जाने में निकलता है। बीसवीं सदी के पहले दशक में मार्क्सवादियों के बीच चल रहे बहस-मुबाहिसे के बीच ट्रॉट्स्की की इस सैद्धांतिक उपलब्धि ने रूस जैसे औद्योगिक रूप से पिछड़े देश में क्रांति करने के तर्क को मजबूती प्रदान की। लेनिन के देहांत के बाद ट्रॉट्स्की ने स्तालिन द्वारा प्रवर्तित एक देश में समाजवाद की स्थापना के सिद्धांत का विरोध किया, लेकिन वे पार्टी के भीतर होने वाले संघर्ष में अकेले पड़ते चले गये। पहले उन्हें पार्टी से निकाला गया, और फिर सोवियत राज्य के विरुद्ध षडयन्त्र करने के आरोप में देश-निकाला दे दिया गया। निष्कासन के दौरान ट्रॉट्स्की ने स्तालिन के नेतृत्व में बन रहे सोवियत संघ की कड़ी आलोचना करते हुए उसे नौकरशाह, निरंकुश और राजकीय पूँजीवादी राज्य की संज्ञा दी। सोवियत सीक्रेट पुलिस से बचने के लिए सारी दुनिया में भटकते हुए ट्रॉट्स्की ने 'परमानेंट रेवोल्यूशन' (1930), 'रेवोल्यूशन बिट्रेड' (1937) और तीन खण्डों में 'द हिस्ट्री ऑफ़ रशियन रेवोल्यूशन' (1931-33) जैसे क्लासिक ग्रंथ की रचना की। विश्व-क्रांति के अपने सपने को धरती पर उतारने के लिए उन्होंने चौथे कम्युनिस्ट इंटरनैशनल की स्थापना भी की जिसे कोई खास कामयाबी नहीं मिली। निष्कासन के दौरान ही मैक्सिको में स्तालिन के एक एजेंट के हाथों उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा। ट्रॉट्स्की के अनुयायियों ने दुनिया के कई देशों में छोटी- छोटी कम्युनिस्ट पार्टियाँ बना रखी हैं। सोवियत शैली के कम्युनिज़म के विकल्प के रूप में उनके विचारों को ट्रॉट्स्कीवाद की संज्ञा मिल चुकी है। .

नई!!: सर्वहारा और त्रोत्स्की · और देखें »

बूर्जुआ

साम्यवाद विचारधारा के संस्थापक कार्ल मार्क्स ने समाज में बूर्ज़वाज़ी वर्ग की भूमिका पर बहुत लिखा बूर्जुआ (Bourgeoisie) समाजशास्त्र, राजनीति और अर्थशास्त्र में मध्य वर्ग से अधिक धनवान श्रेणी को कहा जाता है और इस शब्द का प्रयोग बाएँ की राजनीति के सन्दर्भ में अधिक होता है। यह मूल रूप से फ़्रांसीसी भाषा का शब्द है। यूरोप में १८वीं सदी में इस वर्ग को पूँजीपति और पूँजी से सम्बंधित संस्कृति पर नियंत्रण रखने वाला समझा जाता था। .

नई!!: सर्वहारा और बूर्जुआ · और देखें »

भ्रान्त चेतना

मार्क्सवादी विचारधारा के अंतर्गत भ्रांत चेतना (False consciousness) को ऐसी अवस्था माना जाता है जिसमें सर्वहारा वर्ग को स्वयं यह ज्ञात नहीं होता कि उसके हित वास्तव में किस राजनीतिक दल-समूह, विचारधारा से जुड़े हुए हैं और इतिहास में उसकी वास्तविक भूमिका क्या है। वे ऐसी विचारधारा के प्रभाव में रहते हैं जो उनके हितों के विरुद्ध होती है। भ्रांत चेतना पैदा करके शासक वर्ग सर्वहारा के उत्पीड़न और शोषण की स्थितियाँ बनाये रखता है और सर्वहारा स्वयं उस शोषण को सही मानने लगता है। मार्क्स ने अपनी प्रसिद्ध कृति कम्युनिस्ट मैनिफ़ेस्टो में लिखा है कि किसी भी दौर के शासक वर्ग के विचार ही शासक-विचार होते हैं। यानी सत्तारूढ़ वर्ग के विचार ही सर्वाधिक प्रभावशाली विचार बन जाते हैं। इस सामाजिक चेतना तथा प्रभावशाली विचारों का संबंध भी भ्रांत चेतना से है क्योंकि सर्वहारा निजी चेतना के विकास के स्थान पर शासक वर्ग द्वारा विकसित चेतना को अपना लेता है। मार्क्स के अनुसार यह थोपी हुई अर्थात् झूठी चेतना होती है। कालांतर में सर्वहारा यह समझने लगता है कि सत्तारूढ़ वर्ग ने वास्तविकता के प्रति जो चेतना पैदा की है, वह उनके वर्ग हितों के अनुरूप नहीं है और फिर भ्रांत चेतना के स्थान पर वास्तविक वर्ग-चेतना पैदा हो जाती है। .

नई!!: सर्वहारा और भ्रान्त चेतना · और देखें »

राज्य की मार्क्सवादी अवधारणा

कार्ल मार्क्स ने अपने पीएचडी शोध-प्रबंध के बाद लिखी गयी पहली लम्बी रचना में काफ़ी गहनता से राज्य की अवधारणा का विश्लेषण किया था। इस रचना का शीर्षक था: 'क्रिटीक ऑफ़ हीगेल्स फ़िलॉसफ़ी ऑफ़ स्टेट' (1843)। बाद में मार्क्स ने अपने ऐतिहासिक लेखन में राज्य पर गहराई से विचार किया। इस संदर्भ में 'क्लास स्ट्रगल इन फ़्रांस' (1850), 'एट्टींथ ब्रूमेर ऑफ़ लुई बोनापार्ट' (1852) और 'सिविल वार इन फ़्रांस' (1871) का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। एंगेल्स ने भी एंटी-ड्युहरिंग (1878) और ऑरिजिन ऑफ़ फैमिली (1894) में राज्य पर विस्तार से चर्चा की है। लेनिन ने बोल्शेविक क्रांति से ठीक पहले लिखे गये अपने प्रबंध स्टेट ऐंड रेवोल्यूशन में राज्य के मार्क्सवादी सिद्घांत की पुनर्व्याख्या करने की कोशिश की। परवर्ती मार्क्सवादी चिंतकों में ग्राम्शी ने भी राज्य की भूमिका पर गहराई से विचार किया। लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मार्क्सवाद में होने वाले वाद-विवाद में राज्य पर कम ध्यान दिये जाने का एक बड़ा कारण आधिकारिक या सोवियत मार्क्सवाद के भीतर स्तालिनवाद का वर्चस्व था। इसके तहत कोशिश रहती थी कि मार्क्सवाद के भीतर विभिन्न श्रेणियों के बारे में किसी गहरे वाद-विवाद को बढ़ावा न दिया जाए। इसके अलावा, मार्क्सवाद पर अक्सर हावी होने वाले आर्थिक निर्धारणवाद के कारण भी राज्य की अवधारणा की उपेक्षा की गयी। इसके तहत मान लिया गया था कि राज्य अधिरचना का भाग है, जिसकी रूपरेखा और प्रकृति हमेशा ही आर्थिक आधार द्वारा तय होती है। लेकिन साठ के दशक से मार्क्सवाद के भीतर राज्य और इसकी ‘सापेक्षिक स्वायत्तता’ के बारे में काफ़ी गहराई से वाद-विवाद शुरू हुआ। इसमें अलथुसे, पोलांत्साज़ और मिलिबैंड जैसे विद्वानों ने योगदान किया। .

नई!!: सर्वहारा और राज्य की मार्क्सवादी अवधारणा · और देखें »

लोकतंत्र

लोकतंत्र (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत में लोक, "जनता" तथा तंत्र, "शासन") या प्रजातंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है। यह शब्द लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक सन्दर्भ में किया जाता है, किंतु लोकतंत्र का सिद्धांत दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। मूलतः लोकतंत्र भिन्न भिन्न सिद्धांतों के मिश्रण से बनते हैं, पर मतदान को लोकतंत्र के अधिकांश प्रकारों का चरित्रगत लक्षण माना जाता है। .

नई!!: सर्वहारा और लोकतंत्र · और देखें »

समाजशास्त्र

समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से संबंधित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचनगिडेंस, एंथोनी, डनेर, मिशेल, एप्पल बाम, रिचर्ड.

नई!!: सर्वहारा और समाजशास्त्र · और देखें »

सर्वहारा की तानाशाही

मार्क्सवादी सामाजिक-राजनीतिक चिन्तन में, सर्वहारा की तानाशाही (dictatorship of the proletariat) का तात्पर्य उस राज्यव्यवस्था से है जिसमें राजनैतिक शक्ति सर्वहारा (श्रमिक वर्ग) के हाथों में हो। श्रेणी:मार्क्सवाद.

नई!!: सर्वहारा और सर्वहारा की तानाशाही · और देखें »

१९०५ की रूसी क्रांति

सन १९०५ में रूसी साम्राज्य के एक विशाल भाग में राजनीति एवं सामाजिक जनान्दोलन हुए जिन्हें १९०५ की रूसी क्रान्ति कहते हैं। यह क्रान्ति कुछ सीमा तक सरकार के विरुद्ध थी और कुछ सीमा तक दिशाहीन। श्रमिकों ने हड़ताल किये, किसान आन्दोलित हो उठे, सेना में विद्रोह हुआ। इसके फलस्वरूप कई संवैधानिक सुधार किये गये जिसमें मुख्य हैं- रूसी साम्राज्य के ड्युमा की स्थापना, बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था, १९०६ का रूसी संविधान। .

नई!!: सर्वहारा और १९०५ की रूसी क्रांति · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

प्रोलितारियत, प्रोलिटेरियट, श्रमजीवी

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »