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सर्वनाम

सूची सर्वनाम

सर्वनाम संज्ञा के स्थान पर आता है। संज्ञा और संज्ञा वाक्यांशों को आम तौर पर वह, यह, उसका और इसका जैसे सर्वनाम द्वारा प्रतिस्थापित कर सकते हैं, ताकि दोहराव या सुस्पष्ट पहचान के परिहार, या अन्य किसी कारण से.

20 संबंधों: धातु (संस्कृत के क्रिया शब्द), ब्रजभाषा, भारतीय गणित का इतिहास, लिंग (व्याकरण), शब्द, शब्दशक्ति, संस्कृत भाषा, संज्ञा, हिन्दी एवं उर्दू, हिन्दी पुस्तकों की सूची/श, हिन्दी व्याकरण, वचन (व्याकरण), विभक्ति, विशेषण, गीतावली, कर्ता, कारक, अवधी, अंग्रेज़ी भाषा, अंग्रेज़ी व्याकरण

धातु (संस्कृत के क्रिया शब्द)

संस्कृत व्याकरण में क्रियाओं (verbs) के मूल रूप को धातु कहते हैं। धातु ही संस्कृत शब्दों के निर्माण के लिए मूल तत्त्व (कच्चा माल) है। इनकी संख्या लगभग 2012 है। धातुओं के साथ उपसर्ग, प्रत्यय मिलकर तथा सामासिक क्रियाओं के द्वारा सभी शब्द (संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि) बनते हैं। दूसरे शब्द में कहें तो संस्कृत का लगभग हर शब्द अन्ततः धातुओं के रूप में तोड़ा जा सकता है। कृ, भू, स्था, अन्, ज्ञा, युज्, गम्, मन्, जन्, दृश् आदि कुछ प्रमुख धातुएँ हैं। 'धातु' शब्द स्वयं 'धा' में 'तिन्' प्रत्यय जोड़ने से बना है। रूच धातु कहां है। व्याकरणशास्त्र में पाँच अंगों की परम्परा दिखती है। इसीलिये 'पंचांग व्याकरण' भी प्रसिद्ध है। पाँच अंग ये हैं- सूत्रपाठ, धातुपाठ, गणपाठ, उणादिपाठ तथा लिंगानुशासन। इन पाँच अंगों में से धातुपाठ अतिमहत्वपूर्ण है। प्रायः सभी शब्दों की व्युत्पत्ति धातुओं से की जाती है। कहा गया है - सर्वं च नाम धातुजमाह। अनेकों वैयाकरणों ने धातुपाठों का प्रवचन किया है। श्रीमान युधिष्ठिर मीमांसक ने व्याकरशास्त्र के इतिहास में २६ वैयाकरणों का उल्लेख किया है। उनके व्याकरण आजकल प्राप्त नहीं हैं अतः कहना कठिन है कि किन किन ने धातुओं का प्रवचन किया। संस्कृतवां‌मय में पाणिनि का 'शब्दानुशासन' पंच अवयवों से युक्त है। .

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ब्रजभाषा

ब्रजभाषा मूलत: ब्रज क्षेत्र की बोली है। (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में "व्रज" शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ "भाषा" नाम प्राप्त किया और "ब्रजबोली" नाम से नहीं, अपितु "ब्रजभाषा" नाम से विख्यात हुई। अपने विशुद्ध रूप में यह आज भी आगरा, हिण्डौन सिटी,धौलपुर, मथुरा, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" भी कह सकते हैं। ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई। सभी भक्त कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानंद, बिहारी, इत्यादि। फिल्मों के गीतों में भी ब्रजभाषा के शब्दों का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। .

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भारतीय गणित का इतिहास

सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। अति प्रारंभिक समाजों में संख्यायें रेखाओं के समूह द्वारा प्रदर्शित की जातीं थीं। यद्यपि बाद में, विभिन्न संख्याओं को विशिष्ट संख्यात्मक नामों और चिह्नों द्वारा प्रदर्शित किया जाने लगा, उदाहरण स्वरूप भारत में ऐसा किया गया। रोम जैसे स्थानों में उन्हें वर्णमाला के अक्षरों द्वारा प्रदर्शित किया गया। यद्यपि आज हम अपनी दशमलव प्रणाली के अभ्यस्त हो चुके हैं, किंतु सभी प्राचीन सभ्यताओं में संख्याएं दशमाधार प्रणाली पर आधारित नहीं थीं। प्राचीन बेबीलोन में 60 पर आधारित संख्या-प्रणाली का प्रचलन था। भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-.

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लिंग (व्याकरण)

व्याकरण के सन्दर्भ में लिंग से तात्पर्य भाषा के ऐसे प्रावधानों से है जो वाक्य के कर्ता के स्त्री/पुरुष/निर्जीव होने के अनुसार बदल जाते हैं। विश्व की लगभग एक चौथाई भाषाओं में किसी न किसी प्रकार की लिंग व्यवस्था है। हिन्दी में दो लिंग होते हैं (पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग) जबकि संस्कृत में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग। फ़ारसी जैसे भाषाओं में लिंग होता नहीं, और भी अंग्रेज़ी में लिंग सिर्फ़ सर्वनाम में होता है।; उदाहरण श्रेणी:व्याकरण.

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शब्द

एक या एक से अधिक वर्णों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि शब्द है। जैसे- एक वर्ण से निर्मित शब्द- न (नहीं) व (और) अनेक वर्णों से निर्मित शब्द-कुत्ता, शेर, कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा आदि भारतीय संस्कृति में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। एक से ज़्यादा शब्द मिलकर एक पूरा वाक्य बनाते है। .

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शब्दशक्ति

शब्दवृत्ति या शब्दशक्ति (अथवा शब्द शक्ति अथवा शब्द-शक्ति) अर्थात शब्दों की शक्ति। हिन्दी व्याकरण में किसी वाक्य के भाव को समझने के लिए प्रयुक्त अर्थ को शब्द शक्ति कहा जाता है। कुछ वाक्य ऐसे होते हैं जिनका अर्थ सभी लोगों के लिए समान होते हैं लेकिन कुछ वाक्य ऐसे होते हैं जिनका अर्थ प्रत्येक व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुसार लेता है। इसी आधार पर उस वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के प्रकार, शक्ति और व्यापकता के आधार पर उसे विभिन्न प्रकार से विभक्त किया जाता है। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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संज्ञा

भाषा विज्ञान में, संज्ञा एक विशाल, मुक्त शाब्दिक वर्ग का सदस्य है, जिसके सदस्य वाक्यांश के कर्ता के मुख्य शब्द, क्रिया के कर्म, या पूर्वसर्ग के कर्म के रूप में मौजूद हो सकते हैं। शाब्दिक वर्गों को इस संदर्भ में परिभाषित किया जाता है कि उनके सदस्य अभिव्यक्तियों के अन्य प्रकारों के साथ किस तरह संयोजित होते हैं। संज्ञा के लिए भाषावार वाक्यात्मक नियम भिन्न होते हैं। अंग्रेज़ी में, संज्ञा को उन शब्दों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो उपपद और गुणवाचक विशेषणों के साथ होते हैं और संज्ञा वाक्यांश के शीर्ष के रूप में कार्य कर सकते हैं। पारंपरिक अंग्रेज़ी व्याकरण में Noun, आठ शब्दभेदों में से एक है। .

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हिन्दी एवं उर्दू

हिंदी और उर्दू भारतीय उपमहाद्वीप में बोली जाने वाली दो प्रमुख भाषाएँ हैं। वर्तमान समय में हिन्दी मुख्यतः देवनागरी लिपि में लिखी जाति है जबकि उर्दू मुख्यतः नस्तालीक़ में। दोनों की सामान्य शब्दावली भी बहुत सीमा तक समान है, विशेष सन्दर्भों में हिन्दी में संस्कृत शब्दों की अधिकता हो जाती है जबकि उर्दू में फारसी और अरबी शब्दों की। बहुत से लोग यह मानते हैं कि नामभेद, लिपिभेद और शैलीभेद के अलावा दोनों एक ही भाषा हैं, अलग-अलग नहीं। प्रसिद्ध समालोचक रामविलास शर्मा का मत है कि इतिहास में हम जितना ही पीछे की तरफ चलते हैं, उतना ही हिन्दी-उर्दू का भेद कम दिखाई देता है। उनका यह भी कहना है कि हिन्दी और उर्दू के व्याकरण समान हैं, उनके सर्वनाम और क्रियापद एक ही है। ऐसा दो भिन्न भाषाओं में नहीं होता। हिन्दी और बांग्ला के व्याकरण भिन्न-भिन्न हैं। आधुनिक साहित्य की रचना खड़ी बोली में हुई है। खड़ी बोली हिंदी में अरबी-फारसी के मेल से जो भाषा बनी वह 'उर्दू' कहलाई। मुसलमानों ने 'उर्दू' का प्रयोग छावनी, शाही लश्कर और किले के अर्थ में किया है। इन स्थानों में बोली जानेवाली व्यावहारिक भाषा 'उर्दू की जबान' हुई। पहले-पहले बोलचाल के लिए दिल्ली के सामान्य मुसलमान जो भाषा व्यवहार में लाते थे वह हिन्दी ही थी। चौदहवीं सदी में मुहम्मद तुगलक जब अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरि ले गया तब वहाँ जानेवाले पछाँह के मुसलमान अपनी सामान्य बोलचाल की भाषा भी अपने साथ लेते गए। प्रायः पंद्रहवीं शताब्दी में बीजापुर, गोलकुंडा आदि मुसलमानी राज्यों में साहित्य के स्तर पर इस भाषा की प्रतिष्ठा हुई। उस समय उत्तरभारत के मुसलमानी राज्य में साहित्यिक भाषा फारसी थी। दक्षिणभारत में तेलुगू आदि द्रविड़ भाषाभाषियों के बीच उत्तर भारत की इस आर्य भाषा को फारसी लिपि में लिखा जाता था। इस दखिनी भाषा को उर्दू के विद्वान्‌ उर्दू कहते हैं। शुरू में दखिनी बोलचाल की खड़ी बोली के बहुत निकट थी। इसमें हिंदी और संस्कृत के शब्दों का बहुल प्रयोग होता था। छंद भी अधिकतर हिंदी के ही होते थे। पर सोलहवीं सदी से सूफियों और बीजापुर, गोलकुंडा आदि राज्यों के दरबारियों द्वारा दखिनी में अरबी फारसी का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ने लगा। फिर भी अठारहवीं शताब्दी के आरंभ तक इसका रूप प्रधानतया हिंदी या भारतीय ही रहा। सन्‌ १७०० के आस पास दखिनी के प्रसिद्ध कवि शम्स वलीउल्ला 'वली' दिल्ली आए। यहाँ आने पर शुरू में तो वली ने अपनी काव्यभाषा दखिनी ही रखी, जो भारतीय वातावरण के निकट थी। पर बाद में उनकी रचनाओं पर अरबी-फारसी की परंपरा प्रवर्तित हुई। आरंभ की दखिनी में फारसी प्रभाव कम मिलता है। दिल्ली की परवर्ती उर्दू पर फारसी शब्दावली और विदेशी वातावरण का गहरा रंग चढ़ता गया। हिंदी के शब्द ढूँढकर निकाल फेंके गए और उनकी जगह अरबी फारसी के शब्द बैठाए गए। मुगल साम्राज्य के पतनकाल में जब लखनऊ उर्दू का दूसरा केंद्र हुआ तो उसका हिंदीपन और भी सतर्कता से दूर किया। अब वह अपने मूल हिंदी से बहुत भिन्न हो गई। हिंदी और उर्दू के एक मिले जुले रूप को हिंदुस्तानी कहा गया है। भारत में अँगरेज शासकों की कूटनीति के फलस्वरूप हिंदी और उर्दू एक दूसरे से दूर होती गईं। एक की संस्कृतनिष्ठता बढ़ती गई और दूसरे का फारसीपन। लिपिभेद तो था ही। सांस्कृतिक वातावरण की दृष्टि से भी दोनों का पार्थक्य बढ़ता गया। ऐसी स्थिति में अँगरेजों ने एक ऐसी मिश्रित भाषा को हिंदुस्तानी नाम दिया जिसमें अरबी, फारसी या संस्कृत के कठिन शब्द न प्रयुक्त हों तथा जो साधारण जनता के लिए सहजबोध्य हो। आगे चलकर देश के राजनयिकों ने भी इस तरह की भाषा को मान्यता देने की कोशिश की और कहा कि इसे फारसी और नागरी दोनों लिपियों में लिखा जा सकता है। पर यह कृत्रिम प्रयास अंततोगत्वा विफल हुआ। इस तरह की भाषा ज्यादा झुकाव उर्दू की ओर ही था। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/श

संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.

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हिन्दी व्याकरण

हिंदी व्याकरण, हिंदी भाषा को शुद्ध रूप में लिखने और बोलने संबंधी नियमों का बोध करानेवाला शास्त्र है। यह हिंदी भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें हिंदी के सभी स्वरूपों का चार खंडों के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है; यथा- वर्ण विचार के अंतर्गत ध्वनि और वर्ण तथा शब्द विचार के अंतर्गत शब्द के विविध पक्षों संबंधी नियमों और वाक्य विचार के अंतर्गत वाक्य संबंधी विभिन्न स्थितियों एवं छंद विचार में साहित्यिक रचनाओं के शिल्पगत पक्षों पर विचार किया गया है। .

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वचन (व्याकरण)

भाषाविज्ञान में वचन (नम्बर) एक संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया आदि की व्याकरण सम्बन्धी श्रेणी है जो इनकी संख्या की सूचना देती है (एक, दो, अनेक आदि)। अधिकांश भाषाओं में दो वचन ही होते हैं- एकवचन तथा बहुवचन, किन्तु संस्कृत तथा कुछ और भाषाओं में द्विवचन भी होता है। .

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विभक्ति

विभक्ति का शाब्दिक अर्थ है - ' विभक्त होने की क्रिया या भाव' या 'विभाग' या 'बाँट'। व्याकरण में शब्द (संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण) के आगे लगा हुआ वह प्रत्यय या चिह्न विभक्ति कहलाता है जिससे पता लगता है कि उस शब्द का क्रियापद से क्या संबंध है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नाम या संज्ञाशब्दों के बाद लगनेवाले वे प्रत्यय 'विभक्ति' कहलाते हैं जो नाम या संज्ञा शब्दों को पद (वाक्य प्रयोगार्थ) बनाते हैं और कारक परिणति के द्वारा क्रिया के साथ संबंध सूचित करते हैं। प्रथमा, द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियाँ हैं जिनमें एकवचन, द्विवचन, बहुवचन—तीन बचन होते है। पाणिनीय व्याकरण में इन्हें 'सुप' आदि २७ विभक्ति के रूप में गिनाया गया है। संस्कृत व्याकरण में जिसे 'विभक्ति' कहते है, वह वास्तव में शब्द का रूपांतरित अंग होता है। जैसे,—रामेण, रामाय इत्यादि। आजकल की प्रचलित हिन्दी की खड़ी बोली में इस प्रकार की (संस्कृत की तरह की) विभक्तियाँ प्रायः नहीं हैं, केवल कर्म और सप्रदान कारक के सर्वनामों में विकल्प से आती हैं। जैसे,—मुझे, तुझे, इन्हें इत्यादि। संस्कृत में विभक्तियों के रूप शब्द के अंत्य अक्षर के अनुसार भिन्न भिन्न होते हैं। पर यह भेद खड़ीबोली के कारकों में नहीं पाया जाता, जिसमें शुद्ध विभक्तियों का ब्यवहार नहीं होता, कारकचिह्नों का व्यवहार होता है, जैसे 'ने', 'में', 'से', 'द्वारा', 'का' आदि। नीचे दिया गया श्लोक रामरक्षास्त्रोत्र में आया है और इसे विभक्ति समझाने के लिये उपयोग किया जाता है। इसमें 'राम' शब्द के आठ रूप आये हैं जो क्रमशः आठों विभक्तियों के एकवचन के रूप हैं। .

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विशेषण

वाक्य में संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। जैसे - काला कुत्ता। इस वाक्य में 'काला' विशेषण है। जिस शब्द (संज्ञा अथवा सर्वनाम) की विशेषता बतायी जाती है उसे विशेष्य कहते हैं। उपरोक्त वाक्य में 'कुत्ता' विशेष्य है। जिस विकारी शब्द से संज्ञा की व्याप्ति मर्यादित होती है, उसे भी विशेषण कहते हैं। जैसे- मेहनती विद्यार्थी सफलता पाते हैं। धरमपुर स्वच्छ नगर है। वह पीला है। ऐसा आदमी कहाँ मिलेगा? इन वाक्यों में मेहनती, नीला, लाल, अच्छा, स्वच्छ, पीला और ऐसा शब्द विशेषण हैं। जो क्रमशः विद्यार्थी, धरमपुर, वह और आदमी की विशेषता बताते हैं। विशेषण शब्द जिसकी विशेषता बताये, उसे विशेष्य कहते हैं, अतः विद्यार्थी, धरमपुर, वह और आदमी शब्द विशेष्य हैं। .

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गीतावली

गीतावली गोस्वामी तुलसीदास की काव्य कृति है। गीतावली तुलसीदास की प्रमाणित रचनाओं में मानी जाती है। यह ब्रजभाषा में रचित गीतों वाली रचना है जिसमें राम के चरित की अपेक्षा कुछ घटनाएँ, झाँकियाँ, मार्मिक भावबिन्दु, ललित रस स्थल, करुणदशा आदि को प्रगीतात्मक भाव के एकसूत्र में पिरोया गया है। ब्रजभाषा यहाँ काव्यभाषा के रूप में ही प्रयुक्त है बल्कि यह कहा जा सकता है कि गीतावली की भाषा सर्वनाम और क्रियापदों को छोड़कर प्रायः अवधी ही है। 'गीतावली' नामकरण जयदेव के गीतगोविन्द, विद्यापति की पदावली की परम्परा में ही है जो नामकरण मात्र से अपने विषयवस्तु को प्रकट करती है। गीतावली में संस्कृतवत तत्सम पदावली का प्रयोग सूरदास की लोकोन्मुखी ब्रजभाषा की तुलना में न केवल अधिक है बल्कि तुलसी के भावावेगों के व्यक्त करने में वह सहायक सिद्ध हुई है। रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार हृदय के त्रिविध भावों की व्यंजना गीतावाली के मधुर पदों में देखने में आती है। रामचन्द्र शुक्ल ने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में लिखा है ‘गीतावली’ की रचना गोस्वामी जी ने सूरदास के अनुकरण पर ही की है। बाललीला के कई पद ज्यों के त्यों सूरसागर में भी मिलते हैं, केवल ‘राम’ ‘श्याम’ का अन्तर है। लंकाकाण्ड तक तो मार्मिक स्थलों का जो चुनाव हुआ है वह तुलसी के सर्वथाअनुरूप है। पर उत्तरकाण्ड में जाकर सूरपद्धति के अतिशय अनुकरण के कारण उनका गंभीर व्यक्तित्व तिरोहित सा हो गया है, जिस रूप में राम को उन्होंने सर्वत्र लिया है, उनका भी ध्यान उन्हें नहीं रह गया। सूरदास में जिस प्रकार गोपियों के साथ श्रीकृष्ण हिंडोला झूलते हैं, होली खेलते हैं, वही करते राम भी दिखाये गये हैं। इतना अवश्य है कि सीता की सखियों और पुरनारियों का राम की ओर पूज्य भाव ही प्रकट होता है। राम की नखशिख शोभा का अलंकृत वर्णन भी सूर की शैली में बहुत से पदों में लगातार चला गया है। ‘गीतावली’ मूलतः कृष्ण काव्य परम्परा की गीत पद्धति पर लिखी गयी रामायण ही है। गीतावली का वस्तु-विभाजन सात काण्डों में हुआ है। किन्तु इसका उत्तरकाण्द अन्य ग्रन्थों के उत्तरकाण्ड से बहुत भिन्न है। उसमें रामरूपवर्णन, राम-हिण्डोला, अयोध्या की रमणीयता, दीपमालिका, वसन्त-बिहार, अयोध्या का आनन्द, रामराज्य आदि के वर्णन में माधुर्य एवं विलास की रमणीय झाँकियाँ प्रस्तुत की गयीं हैं। .

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कर्ता

व्याकरण के सन्दर्भ में, कर्ता, वाक्य के दो मुख्य भागों में से एक है, दूसरा भाग 'विधेय' (प्रेडिकेट) कहलाता है। उदाहरण के लिये, काला कुत्ता बकरी को दौड़ाने लगा, इस वाक्य में 'काला कुत्ता' कर्ता है। .

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कारक

व्याकरण के सन्दर्भ में, किसी वाक्य, मुहावरा या वाक्यांश में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध कारक कहलाता है। अर्थात् व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम शब्द की वह अवस्था जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है उसे कारक कहते हैं। । कारक यह इंगित करता है कि वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का काम क्या है। कारक कई रूपों में देखने को मिलता है-.

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अवधी

अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। यह उत्तर प्रदेश में "अवध क्षेत्र" (लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, प्रतापगढ़), इलाहाबाद, कौशाम्बी, अम्बेडकर नगर, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती तथा फतेहपुर में भी बोली जाती है। इसके अतिरिक्त इसकी एक शाखा बघेलखंड में बघेली नाम से प्रचलित है। 'अवध' शब्द की व्युत्पत्ति "अयोध्या" से है। इस नाम का एक सूबा के राज्यकाल में था। तुलसीदास ने अपने "मानस" में अयोध्या को 'अवधपुरी' कहा है। इसी क्षेत्र का पुराना नाम 'कोसल' भी था जिसकी महत्ता प्राचीन काल से चली आ रही है। भाषा शास्त्री डॉ॰ सर "जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन" के भाषा सर्वेक्षण के अनुसार अवधी बोलने वालों की कुल आबादी 1615458 थी जो सन् 1971 की जनगणना में 28399552 हो गई। मौजूदा समय में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 6 करोड़ से ज्यादा लोग अवधी बोलते हैं। उत्तर प्रदेश के 19 जिलों- सुल्तानपुर, अमेठी, बाराबंकी, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, कौशांबी, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद व अंबेडकर नगर में पूरी तरह से यह बोली जाती है। जबकि 6 जिलों- जौनपुर, मिर्जापुर, कानपुर, शाहजहांपुर, बस्ती और बांदा के कुछ क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता है। बिहार के 2 जिलों के साथ पड़ोसी देश नेपाल के 8 जिलों में यह प्रचलित है। इसी प्रकार दुनिया के अन्य देशों- मॉरिशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम सहित आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व हॉलैंड में भी लाखों की संख्या में अवधी बोलने वाले लोग हैं। .

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अंग्रेज़ी भाषा

अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तरराष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है। यह एक पश्चिम जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो-सेक्सन इंग्लैंड में हुई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध और ब्रिटिश साम्राज्य के 18 वीं, 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के सैन्य, वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप यह दुनिया के कई भागों में सामान्य (बोलचाल की) भाषा बन गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और राष्ट्रमंडल देशों में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल एक द्वितीय भाषा और अधिकारिक भाषा के रूप में होता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति ५वीं शताब्दी की शुरुआत से इंग्लैंड में बसने वाले एंग्लो-सेक्सन लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब पुरानी अंग्रेजी कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की प्राचीन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के बाद पुरानी अंग्रेजी का विकास मध्य अंग्रेजी के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से आधुनिक अंग्रेजी का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है। .

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अंग्रेज़ी व्याकरण

यहां अंग्रेज़ी व्याकरण को अंग्रेज़ी भाषा के लक्षणों का वर्णन करने वाले नियमों के समूह के रूप में समझा गया है। भाषा कुछ ऐसी होती है कि उसके तत्वों को किसी ख़ास ढांचे के अनुसार संयुक्त किया जा सके.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सर्वनाम और उसके भेद

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