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सरीसृप

सूची सरीसृप

सरीसृप (Reptiles) प्राणी-जगत का एक समूह है जो कि पृथ्वी पर सरक कर चलते हैं। इसके अन्तर्गत साँप, छिपकली,मेंढक, मगरमच्छ आदि आते हैं। .

65 संबंधों: चमड़ा उद्योग, चिल्का झील, चौपाये, चेन्नई, टायरानोसौरस, ट्राइसेराटोप्स, टैक्सोन, टेरोसोर, ऐम्नीओट, डायनासोर, दाँत, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, नोंगखाइलेम वन्य जीवन अभयारण्य, पासरीफ़ोर्मीज़, प्लैटीपुस, पूँछ, पेलामिस प्लातूरा, पीनियल ग्रंथि, पीयूष ग्रन्थि, ब्रैकियोसोरस, भारत में पर्यावरणीय समस्याएं, भावना, भूवैज्ञानिक समय-मान, महाद्वीपीय विस्थापन, माम्बा, मांस, मछली, मीनसरीसृप, यूरिया, रैंफोरिंकस, लेपिडोसोरिया, श्रीलंका के वन्य जीव, सफ़ेद गिद्ध, समुद्री सर्प, साँप, साधारण छिपकली, स्टेगोसोरस, स्क्वमाटा, हृदय, जैव विविधता, जीवाश्मविज्ञान, घड़ियाल, पशु, घोंसला, वर्षावन, वर्गानुवंशिकी, वाइपरिडाए, विनोदचंद्र नायक, खारे पानी के मगरमच्छ, गिरगिट, ग्रहणी, ..., गोह, आर्कियोप्टेरिक्स, आर्कोसोरिया, इलापिडाए, करैत, कलगीदार सर्प चील, कछुआ, कोमोडो ड्रैगन, कोरल सर्प, अण्डा (खाद्य), अण्डजता, अफई, अल्बर्टोसौरस, उभयचर, छिपकली सूचकांक विस्तार (15 अधिक) »

चमड़ा उद्योग

चमड़े के काम में प्रयोग किये जाने वाले परम्परागत औजार संसार का लगभग 90 प्रतिशत चमड़ा बड़े पशुओं, जैसे गोजातीय पशुओं, एवं भेड़ तथा बकरों की खालों से बनता है, किंतु घोड़ा, सूअर, कंगारू, हिरन, सरीसृप, समुद्री घोड़ा और जलव्याघ्र (seal) की खालें भी न्यूनाधिक रूप में काम में आती हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर, खालें मांस उद्योग की उपजात हैं। यदि वे प्रधान उत्पाद होतीं, ता चमड़ा अत्यधिक महँगा पड़ता। उपजात होने के कारण उनमें कुछ दोष भी प्राय: पाए जाते हैं, जैसे पशुसंवर्धक लोग खाल के सर्वोत्तम भाग, पुठ्ठों को दाग लगाकर बिगाड़ डालते हैं। उनकी असावधानी से कीड़े मकोड़े खाल में छेद कर जाते हैं। उसको छीलने (flaying) या पकाने सुखाने (curing) के समय कीई और दोषों का आना संभव है। .

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चिल्का झील

चिल्का झील चिल्का झील उड़ीसा प्रदेश के समुद्री अप्रवाही जल में बनी एक झील है। यह भारत की सबसे बड़ी एवं विश्व की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है। इसको चिलिका झील के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अनूप है एवं उड़ीसा के तटीय भाग में नाशपाती की आकृति में पुरी जिले में स्थित है। यह 70 किलोमीटर लम्बी तथा 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी के जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छीछली झील के रूप में हो गया है। दिसम्बर से जून तक इस झील का जल खारा रहता है किन्तु वर्षा ऋतु में इसका जल मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है। इस झील के पारिस्थितिक तंत्र में बेहद जैव विविधताएँ हैं। यह एक विशाल मछली पकड़ने की जगह है। यह झील 132 गाँवों में रह रहे 150,000 मछुआरों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती है। इस खाड़ी में लगभग 160 प्रजातियों के पछी पाए जाते हैं। कैस्पियन सागर, बैकाल झील, अरल सागर और रूस, मंगोलिया, लद्दाख, मध्य एशिया आदि विभिन्न दूर दराज़ के क्षेत्रों से यहाँ पछी उड़ कर आते हैं। ये पछी विशाल दूरियाँ तय करते हैं। प्रवासी पछी तो लगभग १२००० किमी से भी ज्यादा की दूरियाँ तय करके चिल्का झील पंहुचते हैं। 1981 में, चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्र भूमि के रूप में चुना गया। यह इस मह्त्व वाली पहली पहली भारतीय झील थी। एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ 45% पछी भूमि, 32% जलपक्षी और 23% बगुले हैं। यह झील 14 प्रकार के रैपटरों का भी निवास स्थान है। लगभग 152 संकटग्रस्त व रेयर इरावती डॉल्फ़िनों का भी ये घर है। इसके साथ ही यह झील 37 प्रकार के सरीसृपों और उभयचरों का भी निवास स्थान है। उच्च उत्पादकता वाली मत्स्य प्रणाली वाली चिल्का झील की पारिस्थिकी आसपास के लोगों व मछुआरों के लिये आजीविका उपलब्ध कराती है। मॉनसून व गर्मियों में झील में पानी का क्षेत्र क्रमश: 1165 से 906 किमी2 तक हो जाता है। एक 32 किमी लंबी, संकरी, बाहरी नहर इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। सीडीए द्वारा हाल ही में एक नई नहर भी बनाई गयी है जिससे झील को एक और जीवनदान मिला है। लघु शैवाल, समुद्री घास, समुद्री बीज, मछलियाँ, झींगे, केकणे आदि चिल्का झील के खारे जल में फलते फूलते हैं। .

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चौपाये

चौपाये (Tetrapod) या चतुरपाद उन प्राणियों का महावर्ग है जो पृथ्वी पर चार पैरों पर चलने वाले सर्वप्रथम कशेरुकी (यानि रीढ़-वाले) प्राणियों के वंशज हैं। इसमें सारे वर्तमान और विलुप्त उभयचर (ऐम्फ़िबियन), सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल), पक्षी और कुछ विलुप्त मछलियाँ शामिल हैं। यह सभी आज से लगभग ३९ करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के डिवोनी कल्प में उत्पन्न हुई कुछ समुद्री लोब-फ़िन मछलियों से क्रम-विकसित हुए थे। चौपाये सब से पहले कब समुद्र से निकल कर ज़मीन पर फैलने लगे, इस बात को लेकर अनुसंधान व बहस जीवाश्मशास्त्रियों में जारी है। हालांकि वर्तमान में अधिकतर चौपाई जातियाँ धरती पर रहती हैं, पृथ्वी की पहली चौपाई जातियाँ सभी समुद्री थीं। उभयचर अभी-भी अर्ध-जलीय जीवन व्यतीत करते हैं और उनका आरम्भ पूर्णतः जल में रहने वाले मछली-रूपी बच्चें से होता है। लगभग ३४ करोड़ वर्ष पूर्व ऐम्नीओट (Amniotes) उत्पन्न हुये, जिनके शिशुओं का पोषण अंडों में या मादा के गर्भ में होता है। इन ऐम्नीओटों के वंशजों ने पानी में अंडे छोड़ने-वाले उभयचरों की अधिकतर जातियों को विलुप्त कर दिया हालांकि कुछ वर्तमान में भी अस्तित्व में हैं। आगे चलकर यह ऐम्नीओट भी दो मुख्य शाखाओं में बंट गये। एक शाखा में छिपकलियाँ, डायनासोर, पक्षी और उनके सम्बन्धी उत्पन्न हुए, जबकि दूसरी शाखा में स्तनधारी और उनके अब-विलुप्त सम्बन्धी विकसित हुए। जहाँ मछलियों में क्रम-विकास से चार-पाऊँ बनकर चौपाये बने थे, वहीं सर्प जैसे कुछ चौपायों में क्रम-विकास से ही यह पाऊँ ग़ायब हो गये। कुछ ऐसे भी चौपाये थे जो वापस समुद्री जीवन में चले गये, जिनमें ह्वेल शामिल है। फिर-भी जीववैज्ञानिक दृष्टि से चौपायों के सभी वंशज चौपाये ही समझे जाते हैं, चाहें उनके पाँव हो या नहीं और चाहे वे समुद्र में रहें या धरती पर। .

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चेन्नई

चेन्नई (पूर्व नाम मद्रास) भारतीय राज्य तमिलनाडु की राजधानी है। बंगाल की खाड़ी से कोरोमंडल तट पर स्थित यह दक्षिण भारत के सबसे बड़े सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षिक केंद्रों में से एक है। 2011 की भारतीय जनगणना (चेन्नई शहर की नई सीमाओं के लिए समायोजित) के अनुसार, यह चौथा सबसे बड़ा शहर है और भारत में चौथा सबसे अधिक आबादी वाला शहरी ढांचा है। आस-पास के क्षेत्रों के साथ शहर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन एरिया है, जो दुनिया की जनसंख्या के अनुसार 36 वां सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। चेन्नई विदेशी पर्यटकों द्वारा सबसे ज्यादा जाने-माने भारतीय शहरों में से एक है यह वर्ष 2015 के लिए दुनिया में 43 वें सबसे अधिक का दौरा किया गया था। लिविंग सर्वेक्षण की गुणवत्ता ने चेन्नई को भारत में सबसे सुरक्षित शहर के रूप में दर्जा दिया। चेन्नई भारत में आने वाले 45 प्रतिशत स्वास्थ्य पर्यटकों और 30 से 40 प्रतिशत घरेलू स्वास्थ्य पर्यटकों को आकर्षित करती है। जैसे, इसे "भारत का स्वास्थ्य पूंजी" कहा जाता है एक विकासशील देश में बढ़ते महानगरीय शहर के रूप में, चेन्नई पर्याप्त प्रदूषण और अन्य सैन्य और सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का सामना करता है। चेन्नई में भारत में तीसरी सबसे बड़ी प्रवासी जनसंख्या 2009 में 35,000 थी, 2011 में 82,7 9 0 थी और 2016 तक 100,000 से अधिक का अनुमान है। 2015 में यात्रा करने के लिए पर्यटन गाइड प्रकाशक लोनली प्लैनेट ने चेन्नई को दुनिया के शीर्ष दस शहरों में से एक का नाम दिया है। चेन्नई को ग्लोबल सिटीज इंडेक्स में एक बीटा स्तरीय शहर के रूप में स्थान दिया गया है और भारत का 2014 का वार्षिक भारतीय सर्वेक्षण में भारत टुडे द्वारा भारत का सबसे अच्छा शहर रहा। 2015 में, चेन्नई को आधुनिक और पारंपरिक दोनों मूल्यों के मिश्रण का हवाला देते हुए, बीबीसी द्वारा "सबसे गर्म" शहर (मूल्य का दौरा किया, और दीर्घकालिक रहने के लिए) का नाम दिया गया। नेशनल ज्योग्राफिक ने चेन्नई के भोजन को दुनिया में दूसरा सबसे अच्छा स्थान दिया है; यह सूची में शामिल होने वाला एकमात्र भारतीय शहर था। लोनाली प्लैनेट द्वारा चेन्नई को दुनिया का नौवां सबसे अच्छा महानगरीय शहर भी नामित किया गया था। चेन्नई मेट्रोपॉलिटन एरिया भारत की सबसे बड़ी शहर अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। चेन्नई को "भारत का डेट्रोइट" नाम दिया गया है, जो शहर में स्थित भारत के ऑटोमोबाइल उद्योग का एक-तिहाई से भी अधिक है। जनवरी 2015 में, प्रति व्यक्ति जीडीपी के संदर्भ में यह तीसरा स्थान था। चेन्नई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत एक स्मार्ट शहर के रूप में विकसित किए जाने वाले 100 भारतीय शहरों में से एक के रूप में चुना गया है। विषय वस्तु 1 व्युत्पत्ति 2 इतिहास 3 पर्यावरण 3.1 भूगोल 3.2 भूविज्ञान 3.3 वनस्पति और जीव 3.4 पर्यावरण संरक्षण 3.5 जलवायु 4 प्रशासन 4.1 कानून और व्यवस्था 4.2 राजनीति 4.3 उपयोगिता सेवाएं 5 वास्तुकला 6 जनसांख्यिकी 7 आवास 8 कला और संस्कृति 8.1 संग्रहालय और कला दीर्घाओं 8.2 संगीत और कला प्रदर्शन 9 सिटीस्केप 9.1 पर्यटन और आतिथ्य 9.2 मनोरंजन 9.3 मनोरंजन 9.4 शॉपिंग 10 अर्थव्यवस्था 10.1 संचार 10.2 पावर 10.3 बैंकिंग 10.4 स्वास्थ्य देखभाल 10.5 अपशिष्ट प्रबंधन 11 परिवहन 11.1 एयर 11.2 रेल 11.3 मेट्रो रेल 11.4 रोड 11.5 सागर 12 मीडिया 13 शिक्षा 14 खेल और मनोरंजन 14.1 शहर आधारित टीम 15 अंतर्राष्ट्रीय संबंध 15.1 विदेशी मिशन 15.2 जुड़वां कस्बों - बहन शहरों 16 भी देखें 17 सन्दर्भ 18 बाहरी लिंक व्युत्पत्ति इन्हें भी देखें: विभिन्न भाषाओं में चेन्नई के नाम भारत में ब्रिटिश उपस्थिति स्थापित होने से पहले ही मद्रास का जन्म हुआ। माना जाता है कि मद्रास नामक पुर्तगाली वाक्यांश "मैए डी डीस" से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है "भगवान की मां", बंदरगाह शहर पर पुर्तगाली प्रभाव के कारण। कुछ स्रोतों के अनुसार, मद्रास को फोर्ट सेंट जॉर्ज के उत्तर में एक मछली पकड़ने वाले गांव मद्रासपट्टिनम से लिया गया था। हालांकि, यह अनिश्चित है कि क्या नाम यूरोपियों के आने से पहले उपयोग में था। ब्रिटिश सैन्य मानचित्रकों का मानना ​​था कि मद्रास मूल रूप से मुंदिर-राज या मुंदिरराज थे। वर्ष 1367 में एक विजयनगर युग शिलालेख जो कि मादरसन पट्टणम बंदरगाह का उल्लेख करता है, पूर्व तट पर अन्य छोटे बंदरगाहों के साथ 2015 में खोजा गया था और यह अनुमान लगाया गया था कि उपरोक्त बंदरगाह रोयापुरम का मछली पकड़ने का बंदरगाह है। चेन्नई नाम की जन्मजात, तेलुगू मूल का होना स्पष्ट रूप से इतिहासकारों द्वारा साबित हुई है। यह एक तेलुगू शासक दमारला चेन्नाप्पा नायकुडू के नाम से प्राप्त हुआ था, जो कि नायक शासक एक दमनदार वेंकटपति नायक था, जो विजयनगर साम्राज्य के वेंकट III के तहत सामान्य रूप में काम करता था, जहां से ब्रिटिश ने शहर को 1639 में हासिल किया था। चेन्नई नाम का पहला आधिकारिक उपयोग, 8 अगस्त 1639 को, ईस्ट इंडिया कंपनी के फ्रांसिस डे से पहले, सेन्नेकेसु पेरुमल मंदिर 1646 में बनाया गया था। 1 99 6 में, तमिलनाडु सरकार ने आधिकारिक तौर पर मद्रास से चेन्नई का नाम बदल दिया। उस समय कई भारतीय शहरों में नाम बदल गया था। हालांकि, मद्रास का नाम शहर के लिए कभी-कभी उपयोग में जारी है, साथ ही साथ शहर के नाम पर स्थानों जैसे मद्रास विश्वविद्यालय, आईआईटी मद्रास, मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मद्रास मेडिकल कॉलेज, मद्रास पशु चिकित्सा कॉलेज, मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज। चेन्नई (तमिल: சென்னை), भारत में बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल तट पर स्थित तमिलनाडु की राजधानी, भारत का पाँचवा बड़ा नगर तथा तीसरा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। इसकी जनसंख्या ४३ लाख ४० हजार है। यह शहर अपनी संस्कृति एवं परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। ब्रिटिश लोगों ने १७वीं शताब्दी में एक छोटी-सी बस्ती मद्रासपट्ट्नम का विस्तार करके इस शहर का निर्माण किया था। उन्होंने इसे एक प्रधान शहर एवं नौसैनिक अड्डे के रूप में विकसित किया। बीसवीं शताब्दी तक यह मद्रास प्रेसिडेंसी की राजधानी एवं एक प्रमुख प्रशासनिक केन्द्र बन चुका था। चेन्नई में ऑटोमोबाइल, प्रौद्योगिकी, हार्डवेयर उत्पादन और स्वास्थ्य सम्बंधी उद्योग हैं। यह नगर सॉफ्टवेयर, सूचना प्रौद्योगिकी सम्बंधी उत्पादों में भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक शहर है। चेन्नई एवं इसके उपनगरीय क्षेत्र में ऑटोमोबाइल उद्योग विकसित है। चेन्नई मंडल तमिलानाडु के जीडीपी का ३९% का और देश के ऑटोमोटिव निर्यात में ६०% का भागीदार है। इसी कारण इसे दक्षिण एशिया का डेट्रॉएट भी कहा जाता है। चेन्नई सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, यहाँ वार्षिक मद्रास म्यूज़िक सीज़न में सैंकड़ॊ कलाकार भाग लेते हैं। चेन्नई में रंगशाला संस्कृति भी अच्छे स्तर पर है और यह भरतनाट्यम का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। यहाँ का तमिल चलचित्र उद्योग, जिसे कॉलीवुड भी कहते हैं, भारत का द्वितीय सबसे बड़ा फिल्म उद्योग केन्द्र है। .

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टायरानोसौरस

टायरानोसौरस (Tyrannosaurus, अर्थात "विजयी छिपकली") एक विशाल छिपकली की लुप्त डायनासोर प्रजाति है। इस प्रजाति को टायरानोसौरस रेक्स (रेक्स का अर्थ लेटिन में राजा) या जिसे संक्षेप में टी-रेक्स भी कहा जाता है कई सभ्यताओं में एक लोकप्रिय वस्तु है। यह मुख्यतः उत्तरी अमेरिका में पाया जाता था। इसके पाएं गए अवशेषों से यह पता चलता है की यह आज से ६.७-६.५५ करोड़ वर्षों पहले तक पाया जाता था।Hicks, J.F., Johnson, K.R., Obradovich, J.D., Tauxe, L. and Clark, D. (2002).

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ट्राइसेराटोप्स

ट्राइसेराटोप्स (Triceratops) डायनासोरों का एक वंश था। यह आज से ६.८ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुए और आज से ६.६ करोड़ वर्ष पहले क्रीटेशस-पैलियोजीन विलुप्ति घटना में सभी अन्य डायनासोरों के साथ इनकी भी विलुप्ति हो गई। यूनानी भाषा में 'ट्राइसेराटोप्स' का अर्थ 'तीन सींगों वाला मुख' होता है। अपनी आकृति और सींग-युक्त सिर के कारण यह आधुनिक गेंडे से मिलते-जुलते थे हालांकि इन दोनों का आनुवंशिकी (जेनेटिक) नज़र से कोई निकट सम्बन्ध नहीं था। .

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टैक्सोन

वंश का दर्जा मिला है टैक्सोन (taxon) या वर्गक जीववैज्ञानिक वर्गीकरण के क्षेत्र में जीवों की जातियों के ऐसे समूह को कहा जाता है जो किसी वर्गकर्ता के मत में एक ईकाई है, यानि जिसकी सदस्य जातियाँ एक-दूसरे से कोई मेल या सम्बन्ध रखती हैं जिस वजह से उनके एक श्रेणी में डाला जा रहा है। अलग-अलग जीववैज्ञानिक अपने विवेकानुसार यह टैक्सोन परिभाषित कर सकते हैं इसलिए उनमें आपसी मतभेद भी आम होता रहता है।, Guillaume Lecointre, Hervé Le Guyader, pp.

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टेरोसोर

टेरोसोर​ (यूनानी: πτερόσαυρος, प्तेरोसोररोस, अर्थ: 'उड़ती गिरगिट'; अंग्रेज़ी: Pterosaur) उड़ने वाले सरीसृपों (रेपटाइलों) की एक श्रेणी थी। जीववैज्ञानिक श्रेणीकरण की दृष्टि से यह प्राणी टेरोसोररिया (Pterosauria) नामक गण या क्लेड के सदस्य थे। पृथ्वी पर टेरोसोर​ ट्राइऐसिक युग के अंत से लेकर क्रीटेशियस​ युग के अंत तक जीवित थे (यानि आज से २१ करोड़ और ६.५ करोड़ वर्ष पहले के बीच के काल में) और उसके बाद इनकी विलुप्ति हो गई। यह पृथ्वी पर अपनी शक्ति से उड़ सकने वाले सर्वप्रथम रज्जुकी (रीढ़ की हड्डी वाले) प्राणी थे। इनके पंख खाल और मांसपेशी से बने होते थे। टेरोसोरों की भिन्न जातियों के आकर बहुत भिन्न थे। कुछ तो बहुत छोटे थे (२५ सेमी का पंख विस्तार) जबकि कुछ १६ मीटर (५२ फ़ुट​) का पंख विस्तार रखने वाले भीमकाय जीव थे। वैसे तो जीवविज्ञान में क़ायदे से टेरोसोर​ डायनासोरों की श्रेणी से अलग हैं लेकिन समकालीन होने के नाते और सरीसृप होने के नाते इन्हें अक्सर डायनासोर ही समझा जाता है।, Martin Lockley, pp.

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ऐम्नीओट

उल्बीय प्राणी या ऐम्नीओट (Amniotes) ऐसे कशेरुकी (रीढ़-वाले) चौपाये प्राणियों का क्लेड (समूह) है जो या तो अपने अंडे धरती पर देते हैं या जन्म तक अपने शिशु का आरम्भिक पोषण मादा के गर्भ के अंदर ही करते हैं। सरीसृप (रेप्टाइल), स्तनधारी (मैमल) और पक्षी तीनों ऐम्नीओटों की श्रेणी में आते हैं। इसके विपरीत उभयचर (ऐम्फ़िबियन) और मछलियाँ ग़ैर-ऐम्नीओट या अनैम्निओट (anamniotes) होते हैं जो अधिकतर अपने अंडे जल में देते हैं। ऐम्नीओट चौपाये होते हैं (चार-पाँव और रीढ़ वाले प्राणियों के वंशज) और इनके अंडों में उल्ब (amniotic fluid, द्रव) भरा होता है - चाहे वे किसी छिलके में मादा से बाहर हो या फिर मादा के गर्भ के भीतर पनप रहें हो। इस उल्ब के कारण ऐम्नीओटों को बच्चे जनने के लिये किसी भी समुद्री या अन्य जलीय स्थान जाने की कोई आवश्यकता नहीं। इसके विपरीत ग़ैर-ऐम्नीओटों को अपने अंडे किसी जल-युक्त स्थान पर या सीधा समुद्र में ही देने की ज़रूरत होती है। यह अंतर क्रम-विकास (इवोल्यूशन) में एक बड़ा पड़ाव था जिस कारण से चौपाये समुद्र से निकलकर पृथ्वी के ज़मीनी क्षेत्रों पर फैल पाये। .

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डायनासोर

डायनासोर जिसका अर्थ यूनानी भाषा में बड़ी छिपकली होता है लगभग 16 करोड़ वर्ष तक पृथ्वी के सबसे प्रमुख स्थलीय कशेरुकी जीव थे। यह ट्राइएसिक काल के अंत (लगभग 23 करोड़ वर्ष पहले) से लेकर क्रीटेशियस काल (लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पहले), के अंत तक अस्तित्व में रहे, इसके बाद इनमें से ज्यादातर क्रीटेशियस -तृतीयक विलुप्ति घटना के फलस्वरूप विलुप्त हो गये। जीवाश्म अभिलेख इंगित करते हैं कि पक्षियों का प्रादुर्भाव जुरासिक काल के दौरान थेरोपोड डायनासोर से हुआ था और अधिकतर जीवाश्म विज्ञानी पक्षियों को डायनासोरों के आज तक जीवित वंशज मानते हैं। हिन्दी में डायनासोर शब्द का अनुवाद भीमसरट है जिस का संस्कृत में अर्थ भयानक छिपकली है। डायनासोर पशुओं के विविध समूह थे। जीवाश्म विज्ञानियों ने डायनासोर के अब तक 500 विभिन्न वंशों और 1000 से अधिक प्रजातियों की पहचान की है और इनके अवशेष पृथ्वी के हर महाद्वीप पर पाये जाते हैं। कुछ डायनासोर शाकाहारी तो कुछ मांसाहारी थे। कुछ द्विपाद तथा कुछ चौपाये थे, जबकि कुछ आवश्यकता अनुसार द्विपाद या चतुर्पाद के रूप में अपने शरीर की मुद्रा को परिवर्तित कर सकते थे। कई प्रजातियां की कंकालीय संरचना विभिन्न संशोधनों के साथ विकसित हुई थी, जिनमे अस्थीय कवच, सींग या कलगी शामिल हैं। हालांकि डायनासोरों को आम तौर पर उनके बड़े आकार के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ डायनासोर प्रजातियों का आकार मानव के बराबर तो कुछ मानव से छोटे थे। डायनासोर के कुछ सबसे प्रमुख समूह अंडे देने के लिए घोंसले का निर्माण करते थे और आधुनिक पक्षियों के समान अण्डज थे। "डायनासोर" शब्द को 1842 में सर रिचर्ड ओवेन ने गढ़ा था और इसके लिए उन्होंने ग्रीक शब्द δεινός (डीनोस) "भयानक, शक्तिशाली, चमत्कारिक" + σαῦρος (सॉरॉस) "छिपकली" को प्रयोग किया था। बीसवीं सदी के मध्य तक, वैज्ञानिक समुदाय डायनासोर को एक आलसी, नासमझ और शीत रक्त वाला प्राणी मानते थे, लेकिन 1970 के दशक के बाद हुये अधिकांश अनुसंधान ने इस बात का समर्थन किया है कि यह ऊँची उपापचय दर वाले सक्रिय प्राणी थे। उन्नीसवीं सदी में पहला डायनासोर जीवाश्म मिलने के बाद से डायनासोर के टंगे कंकाल दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रमुख आकर्षण बन गए हैं। डायनासोर दुनियाभर में संस्कृति का एक हिस्सा बन गये हैं और लगातार इनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें डायनासोर पर आधारित हैं, साथ ही जुरासिक पार्क जैसी फिल्मों ने इन्हें पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे जुड़ी नई खोजों को नियमित रूप से मीडिया द्वारा कवर किया जाता है। .

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दाँत

दाँत (tooth) मुख की श्लेष्मिक कला के रूपांतरित अंकुर या उभार हैं, जो चूने के लवण से संसिक्त होते हैं। दाँत का काम है पकड़ना, काटना, फाड़ना और चबाना। कुछ जानवरों में ये कुतरने (चूहे), खोदने (शूकर), सँवारने (लीमर) और लड़ने (कुत्ते) के काम में भी आते हैं। दांत, आहार को काट-पीसकर गले से उतरने योग्य बनाते हैं। दाँत की दो पंक्तियाँ होती हैं,.

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दुधवा राष्ट्रीय उद्यान

दुधवा राष्ट्रीय उद्यान उत्तर प्रदेश (भारत) के खीरी जनपद में स्थित संरक्षित वन क्षेत्र है। यह भारत और नेपाल की सीमाओं से लगे विशाल वन क्षेत्र में फैला है। यह उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा एवं समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है। यह राष्ट्रीय उद्यान बाघों और बारहसिंगा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। .

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नोंगखाइलेम वन्य जीवन अभयारण्य

नोंगखाईलेम वन्य जीवन अभयारण्य मेघालय राज्य के री भोई जिले में लाईलाड ग्राम के निकट स्थित एक अभयारण्य है। यह पूर्वोत्तर भारत के सबसे सुन्दर एवं लोकप्रिय अभयारण्यों में से एक है। इसका विस्तार २९ किमी के क्षेत्र में है और यह यहां के पर्यटक गंतव्यों में अत्यन्त प्रसिद्ध स्थान है। यहां के वन्य जीवन में विविध प्रकार के पशु एवं पक्षी हैं जिनमें स्तनधारियों, एवियन, कृंतक, सरीसृप और कई अन्य प्रजातियां दिखाई देती हैं। वन्य जीवन के अलावा यहां का वन प्रदेश हरियाली एवं पादपों की ढेरों प्रजातियों से भी परिपूर्ण है। क्षेत्र के सबसे नीचे भूभाग लाइलाड ग्राम के निकट हैं जो सागर सतह से मात्र २०० मी पर स्थित हैं जबकि सबसे ऊंचे भाग पूर्वी एवं दक्षिणी हैं जिनकी अधिकतम ऊंचाई ९५० मी तक भी है। इस क्षेत्र को १९८१ मेंअभयारण्य घोषित किया गया था। .

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पासरीफ़ोर्मीज़

पासरीफ़ोर्मीज़ (Passeriformes) पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक गण है जिसमें सभी ज्ञात पक्षी जातियों की लगभग ५०% जातियाँ शामिल हैं। इन पक्षियों की विशेषता यह है कि इनके पाँव के तीन पंजे आगे की ओर और एक पंजा पीछे की ओर सज्जित होता है। इस से वे किसी टहनी या अन्य पतली वस्तु को आसानी से जकड़कर उसपर संतुलित प्रकार से देर तक बैठने में सक्षम हैं। यह कशेरुक (रीढ़दार) प्राणियों के सबसे विविध जीववैज्ञानिक गणों में से एक है। पासरीफ़ोर्मीज़ की ५,००० से भी अधिक जातियाँ हैं और चौपाये प्राणियों में केवल सरिसृपों के स्क्वमाटा गण में ही इस से अधिक जातियाँ पाई जाती हैं। .

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प्लैटीपुस

प्लैटीपुस (Platypus), जो बत्तखमुँह प्लैटीपस (duck-billed platypus) भी कहलाता है, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में रहने वाला एक स्तनधारी प्राणी है। यह स्तनधारियों के मोनोट्रीम गण की पाँच ज्ञात जातियों में से एक है (अन्य चार एकिडना की जातियाँ हैं), जो स्तनधारी होने के नाते अपने शिशुओं को दूध तो पिलाते हैं लेकिन जिनमें माता गर्भ धारण करने की बजाए अण्डे देती है। पूरे स्तनधारी समुदाय में अण्डे देने वाली केवल यही पाँच जातियाँ है। क्रमविकास (एवोल्यूशन) की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह जातियाँ उस समय का संकेत हैं जब स्तनधारी नये-नये विकसित हो रहे थे और उनमें गर्भ में शिशु विकसित करने की क्षमता उत्पन्न नहीं हुई थी। इसलिए इन्हें जीवित जीवाश्म की श्रेणी में भी डाला जाता है। .

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पूँछ

पूँछ एक जानवर के शरीर के पृष्ठ भाग का उप-भाग होती है। साधारणत: इसका अर्थ होता है धड़ के पीछे एक लचीला उपांग। यह शरीर का वह अंग होता है जो कि स्तनपायी, सरीसृप तथा पक्षियों में लगभग कूल्हे से निकलता है। हालाँकि पूँछ रज्जुकी में पायी जाती है, लेकिन कुछ अरज्जुकी प्राणी जैसे कि बिच्छू, घोंघा इत्यादि की भी पूँछ-समान उपांग होते हैं जिनको पूँछ कहा जाता है। श्रेणी:प्राणी विज्ञान.

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पेलामिस प्लातूरा

पेलामिस प्लातूरा (Pelamis platura) या पीतोदर समुद्री सर्प (yellow-bellied sea snake) एक विषैला समुद्री सर्प है जो अटलांटिक महासागर छोड़कर विश्व के हर अन्य समुद्री क्षेत्र के गरम भागों में पाया जाता है। इसका जन्म व रहन-सहन पूरी तरह खुले समुद्र में होता है और इसे धरती पर आने की न तो कोई आवश्यकता होती है और न ही इसका शरीर किसी भी तरह धरती पर रहने के लिये अनुकूल है। .

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पीनियल ग्रंथि

पीनियल ग्रंथि (जिसे पीनियल पिंड, एपिफ़ीसिस सेरिब्रि, एपिफ़ीसिस या "तीसरा नेत्र" भी कहा जाता है) पृष्ठवंशी मस्तिष्क में स्थित एक छोटी-सी अंतःस्रावी ग्रंथि है। यह सेरोटोनिन व्युत्पन्न मेलाटोनिन को पैदा करती है, जोकि जागने/सोने के ढर्रे तथा मौसमी गतिविधियों का नियमन करने वाला हार्मोन है। इसका आकार एक छोटे से पाइन शंकु से मिलता-जुलता है (इसलिए तदनुसार नाम) और यह मस्तिष्क के केंद्र में दोनों गोलार्धों के बीच, खांचे में सिमटी रहती है, जहां दोनों गोलकार चेतकीय पिंड जुड़ते हैं। .

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पीयूष ग्रन्थि

पीयूष ग्रन्थि या पीयूषिका, एक अंत:स्रावी ग्रंथि है जिसका आकार एक मटर के दाने जैसा होता है और वजन 0.5 ग्राम (0.02 आउन्स) होता है। यह मस्तिष्क के तल पर हाइपोथैलेमस (अध;श्चेतक) के निचले हिस्से से निकला हुआ उभार है और यह एक छोटे अस्थिमय गुहा (पर्याणिका) में दृढ़तानिका-रज्जु (diaphragma sellae) से ढंका हुआ होता है। पीयूषिका खात, जिसमें पीयूषिका ग्रंथि रहता है, वह मस्तिष्क के आधार में कपालीय खात में जतुकास्थी में स्थित रहता है। इसे एक मास्टर ग्रंथि माना जाता है। पीयूषिका ग्रंथि हार्मोन का स्राव करने वाले समस्थिति का विनियमन करता है, जिसमें अन्य अंत:स्रावी ग्रंथियों को उत्तेजित करने वाले ट्रॉपिक हार्मोन शामिल होते हैं। कार्यात्मक रूप से यह हाइपोथैलेमस से माध्यिक उभार द्वारा जुड़ा हुआ होता है। .

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ब्रैकियोसोरस

ब्रैकियोसोरस (Brachiosaurus) डायनासोरों की एक जाति थी। यह सौरोपोडा उपगण का सदस्य था जो अपनी बहुत ही लम्बी गर्दन, छोटे सिरों, लम्बी पूँछ और बड़े आकारों के लिये जाने जाते हैं। आधुनिक जिराफ़ों की तरह यह ऊँचे वनस्पतियों को खाने में सक्षम थे, हालांकि जहाँ जिराफ़ ५.७ मीटर (१८.७ फ़ुट) लम्बे होते हैं वहाँ ब्रैकियोसोरस इस से लगभग दुगनी ऊँचाई (९ मीटर या ३० फ़ुट) तक पहुँच जाते थे। .

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भारत में पर्यावरणीय समस्याएं

गंगा बेसिन के ऊपर मोटी धुंध और धुआं. तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आर्थिक विकास के कारण भारत में कई पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं और इसके पीछे शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, बड़े पैमाने पर कृषि का विस्तार तथा तीव्रीकरण, तथा जंगलों का नष्ट होना है। प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों में वन और कृषि-भूमिक्षरण, संसाधन रिक्तीकरण (पानी, खनिज, वन, रेत, पत्थर आदि), पर्यावरण क्षरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव विविधता में कमी, पारिस्थितिकी प्रणालियों में लचीलेपन की कमी, गरीबों के लिए आजीविका सुरक्षा शामिल हैं। यह अनुमान है कि देश की जनसंख्या वर्ष 2018 तक 1.26 अरब तक बढ़ जाएगी.

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भावना

thumb भावना मूड, स्वभाव, व्यक्तित्व तथा ज़ज्बात और प्रेरणासे संबंधित है। अंग्रेजी शब्द 'emotion' की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द émouvoir से हुई है। यह लैटिन शब्द emovere पर आधारित है जहां e- (ex - का प्रकार) का अर्थ है 'बाहर' और movere का अर्थ है 'चलना'.

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भूवैज्ञानिक समय-मान

यह घड़ी भूवैज्ञानिक काल के प्रमुख ईकाइयों के के साथ-साथ पृथ्वी के जन्म से लेकर आज तक की प्रमुख घटनाओं को भी दिखा रही है। भूवैज्ञानिक समय-मान (geologic time scale) कालानुक्रमिक मापन की एक प्रणाली है जो स्तरिकी (stratigraphy) को समय के साथ जोड़ती है। यह एक स्तरिक सारणी (stratigraphic table) है। भूवैज्ञानिक, जीवाश्मवैज्ञानिक तथा पृथ्वी का अध्ययन करने वाले अन्य वैज्ञानिक इसका प्रयोग धरती के सम्पूर्ण इतिहास में हुई सभी घटनाओं का समय अनुमान करने के लिये करते हैं। जिस प्रकार चट्टानो के अधिक पुराने स्तर नीचे होते हैं तथा अपेक्षाकृत नये स्तर उपर होते हैं, उसी प्रकार इस सारणी में पुराने काल और घटनाएँ नीचे हैं जबकि नवीन घटनाएँ उपर (पहले) दी गई हैं। विकिरणमितीय प्रमाणों (radiomeric evidence) से पता चलता है पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 अरब वर्ष है। .

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महाद्वीपीय विस्थापन

करोड़ों वर्षों तक चल रहे महाद्वीपीय प्रवाह से अंध महासागर खुलकर विस्तृत हो गया महाद्वीपीय विस्थापन (Continental drift) पृथ्वी के महाद्वीपों के एक-दूसरे के सम्बन्ध में हिलने को कहते हैं। यदि करोड़ों वर्षों के भौगोलिक युगों में देखा जाए तो प्रतीत होता है कि महाद्वीप और उनके अंश समुद्र के फ़र्श पर टिके हुए हैं और किसी-न-किसी दिशा में बह रहे हैं। महाद्वीपों के बहने की अवधारणा सबसे पहले १५९६ में डच वैज्ञानिक अब्राहम ओरटेलियस​ ने प्रकट की थी लेकिन १९१२ में जर्मन भूवैज्ञानिक ऐल्फ़्रेड वेगेनर​ ने स्वतन्त्र अध्ययन से इसका विकसित रूप प्रस्तुत किया। आगे चलकर प्लेट विवर्तनिकी का सिद्धांत विकसित हुआ जो महाद्वीपों की चाल को महाद्वीपीय प्रवाह से अधिक अच्छी तरह समझा पाया।, Wallace Gary Ernst, pp.

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माम्बा

माम्बा (Mamba) तीव्रता से हिलने-चलने वाले विषैले सर्पों का एक जीववैज्ञानिक वंश है जिसमें अफ़्रीका में रहने वाली चार जीववैज्ञानिक जातियाँ शामिल हैं। यह साँप बहुत ही ज़हरीले होते हैं और काले माम्बा को छोड़कर अन्य तीन अक्सर पेड़ो पर पाये जाते हैं। सभी दिन के समय अग्रसर रहते हैं और चूहों, पक्षियों, छिपकलियों को अपना ग्रास बनाते हैं। अफ़्रीका में इन सर्पों से सावधानी बर्तने की सीख दी जाती है क्योंकि यह बहुत ही शीघ्रता से उत्तेजित हो जाते हैं और फिर अत्यंत तेज़ी से वार भी कर सकते हैं। फिर भी वैज्ञानिकों का कहना है कि माम्बा जब भी सम्भव हो मनुष्यों से भिड़ने की बजाय भाग निकलने की कोशिश करते हैं। औपचारिक रूप से माम्बाओं के जीववैज्ञानिक वंश को डेन्ड्रोऐस्पिस (Dendroaspis) कहते हैं। .

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मांस

मांस के विभिन्न प्रकार मांस का कीमा मांस, माँस या गोश्त उन जीव ऊतकों और मुख्यतः मांसपेशियों को कहते हैं, जिनका सेवन भोजन के रूप में किया जाता है। मांस शब्द, को आम बोलचाल और व्यावसायिक वर्गीकरण के आधार पर भूमि पर रहने वाले पशुओं के गोश्त के संदर्भ मे प्रयोग किया जाता है (मुख्यत: कशेरुकी: स्तनधारी, पक्षी और सरीसृप), जलीय मतस्य जीवों का मांस मछली की श्रेणी में जबकि अन्य समुद्री जीव जैसे कि क्रसटेशियन, मोलस्क आदि समुद्री भोजन की श्रेणी में आते हैं। वैसे यह वर्गीकरण पूर्णत: लागू नहीं होता और कई समुद्री स्तनधारी जीवों को कभी मांस तो कभी मछली माना जाता है। पोषाहार की दृष्टि से मानव के भोजन में मांस, प्रोटीन, वसा और खनिजों का एक आम और अच्छा स्रोत है। सभी पशुओं और पौधों से प्राप्त भोजनों में, मांस को सबसे उत्तम के साथ सबसे अधिक विवादास्पद खाद्य पदार्थ भी माना जाता है। जहां पोषण की दृष्टि से मांस एक पोषाहार हैं वहीं विभिन्न धर्म इसके सेवन से अपने अनुयायियों को दूर रहने की सलाह देते हैं। जो पशु पूर्ण रूप से अपने भोजन के लिए मांस पर निर्भर होते हैं उन्हें मांसाहारी कहा जाता है, इसके विपरीत, वनस्पति खाने वाले पशुओं को शाकाहारी कहते हैं। जो पौधे छोटे जीवों और कीड़े का सेवन करते हैं मांसभक्षी पादप कहलाते है। .

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मछली

अमरीकी प्रान्त जॉर्जिया के मछलीघर में एक विशालकाय ग्रूपर अन्य मछलियों के साथ तिरती हुई। मछली शल्कों वाला एक जलचर है जो कि कम से कम एक जोडा़ पंखों से युक्त होती है। मछलियाँ मीठे पानी के स्त्रोतों और समुद्र में बहुतायत में पाई जाती हैं। समुद्र तट के आसपास के इलाकों में मछलियाँ खाने और पोषण का एक प्रमुख स्रोत हैं। कई सभ्यताओं के साहित्य, इतिहास एवं उनकी संस्कृति में मछलियों का विशेष स्थान है। इस दुनिया में मछलियों की कम से कम 28,500 प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें अलग अलग स्थानों पर कोई 2,18,000 भिन्न नामों से जाना जाता है। इसकी परिभाषा कई मछलियों को अन्य जलीय प्रणी से अलग करती है, यथा ह्वेल एक मछली नहीं है। परिभाषा के मुताबिक़, मछली एक ऐसी जलीय प्राणी है जिसकी रीढ़ की हड्डी होती है (कशेरुकी जन्तु), तथा आजीवन गलफड़े (गिल्स) से युक्त होती हैं तथा अगर कोई डालीनुमा अंग होते हैं (लिंब) तो वे फ़िन के रूप में होते हैं। alt.

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मीनसरीसृप

'''मीनसरीसृप''' का संभावित रूप मीनसरीसृप (इक्थियोसॉरिया, Ichthyosauria) लुप्त जलीय सरीसृप हैं, जिनका आकार मछली के जैसा होता था। अत: मीनसरीसृप नाम पड़ा। जीवाश्म सरीसृपों में इनका पता सबसे पहले लगा था। कोनीबियर और मैंटल ने इसका सर्वप्रथम वर्णन किया। ये ऐसे चतुष्पदीय जीव थे जिनका जीवन ट्राइऐसिक कल्प में, बहुत बड़े परिणाम में, थलीय से जलीय जीवन में बदल गया। ये पूर्ण रूप से जल अनुकूलित हो गए और जलीय जीवन बिताने लगे थे। तृतीय महाकल्प में जो स्थान सूँस (dolphin), शिंशुक (porpoise) और ह्वेल (whale) का था, वही स्थान ट्राइऐसिक कल्प में मीनसरीसृप का हो गया। मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic era) के अधिक भाग तक इनका सर्वाधिक आधिपत्य रहा। जलीय जीवनयापन के बाद ये बिल्कुल लुप्त हो गए और इनके स्थान को स्थलीय जीवन बिताने वाले अन्य जीवों ने ले लिया। इनके पूर्वजों के संबंध मे विशेष ज्ञान प्राप्त हो सका है। संभवत: इनका विकास, जैसा इनके शरीर की रचना से पता लगता है, कोटिलोसॉरिया (Cotylosauria) से हुआ है। इस विचार से कि इनकी उत्पति किसी उभयचारी, आद्यसरीसृप (protosaur) श्से पार्मियन (Permian) युग में हुई थी, कोई मतभेद नहीं है। ऐसा विचार किया जाता है कि ये आद्यसरीसृप अपने अवयवों के ्ह्रास से जलीय जीवन के अनुकूल हो गए, न कि प्लिसियोसॉरस (Plesiosaurus) जल सरीसृपों के समान अवयवों के वर्धन से। केवल कुछ ही मीनसरीसृपों के जीवाश्म संसार के विभिन्न भागों में, उत्तर में यूरोप से लेकर दक्षिण में न्यूजीलैंड तक मिले हैं। इनका प्रारूपिक रूप इक्थियोसॉरस का है, यद्यपि ट्राइऐसिक युग के मिक्सोसॉरस (Mixosaurus) और आैंफैलोसॉरस (Omphalosaurus) भी प्राप्त हुए हैं। इनके अतिरिक्त यूरिटेरिजियस (Eurepterygius), स्टेनोटैरीजियस (Stenopterygius) और यूरिनोसॉरस (Eurhinosaurus) भी मिले हैं। अधिकांश मीनसरीसृपों की आकृति और गुण समान होते हैं, केवल कुछ व्यक्तिगत गुणों में ही विभिन्नता पाई जाती है। अत: यहाँ केवल इक्थियोसॉरस का ही वर्णन किया जा रहा है, जिसके जीवाश्म संसार के प्राय: सब खंडों में, उत्तर से दक्षिण तक, पाए गए हैं। ये संसार की मध्यजीवी कल्प की चट्टानों में और उत्तर यूरोप की जूरैसिक युग की चट्टानों में प्रचुरता से मिले हैं। ये एक मीटर से लेकर 10-12 मीटर तक लंबे पाए गए हैं। जीवाश्मों से इनके शरीर और कोमल अंगों तक का विस्तृत विवरण प्राप्त हो सका है। इनका शरीर जलीय जीवन के लिये बिल्कुल अनुकूल और थलीय जीवन के लिये सर्वथा अयोग्य था। इनकी आकृति मछली जैसी थी। इनका जीवनक्रम भी मछली जैसा ही था। इनमें अधिक वेग से तैरने की क्षमता थी। इनका शरीर त्वचा की महीन झिल्ली से ढँका हुआ था। इनकी चाल शरीर की तालबद्ध गति के कारण होती थी। शरीर की प्रगति की लहर अगले अंगों से पूँछ की तरफ होती थी। पूँछ पतवार का कार्य करके शरीर को आगे बढ़ाने में सहायक होती थी। अगले और पिछले अंग क्षेपणी (paddle) का कार्य करते थे तथा जल में शरीर को संतुलित कर अंगों पर नियंत्रण रखते थे। इन्हीं अंगों के द्वारा शरीर को खेया या रोका जाता था। इनका शरीर धारारेखित (streamlined) था। शरीर का आकार सिर से पैर तक बढ़ा जाता था। वास्तविक गर्दन नहीं थी। सिर शरीर से जुड़ा हुआ प्रतीत होता था। शरीर चिपटा सा हो गया था। पक्ष क्षेपणी का रूप लेकर तैरने में सहायक हो गया था। कलाई टखने और अँगुलियों की हड्डियाँ असाधारण रूप से चपटी, षट्कोणीय, जुड़ी, छोटी हड्डियों के समान रह गई थीं। अंगुलियाँ लंबी और चौड़ी हो गई थीं। अंगुलियों की संख्या पाँच से बढ़ या घट गई थीं। इनमें शार्क मछली की भाँति विषमपालि (heterocercal) पँूछ उत्पन्न हो गई थी। जीवाश्मों में पृष्ठरेखा (dorsal line) कंकालविहीन मांसल अंग के रूप में दृष्टिगोचर होती है। जबड़ों के लंबे होने के कारण सिर लंबा और तुंडाकार था। आँखें बहुत बड़ी थीं और अक्षिपट (sclerotic plates) के दृढ़ बलय से घिरी हुई थीं। नेत्र कोटर के समीप ही नासाद्वार था। दाँत अनेक और नुकीले, प्रत्येक जबड़े के खाँचे में एक पंक्ति में थे। अग्रपाद की तुलना में पश्चपाद बहुत छोटा था। खोपड़ी की ऊपरी हड्डियाँ संपीडित हो गई थीं और शंख खात (temporal fossa), पश्च ललाट (postfrontal) और ऊर्ध्वशंख (supratemporal) हड्डियों से मिलकर बनी थीं। वलयक (stapes) हड्डी काफी विशालकाय हो गई थी, जबकि सरीसृपों में यह पतली होती है। मेखलाओं का अस्थिकरण नहीं हुआ था और श्रेणी मेखला (pelvic girdle) पृष्ठदंड से अलग हो चुकी थी। प्रगंडिका (humerus) और ऊर्विका (femur) के अतिरिक्त अन्य लंबी हड्डियाँ गोल और छोटी हो गई थीं। मीनसरीसृप अंडज थे या जरायुज, इसका बहुत दिनों तक निर्णय न हो सका था, पर अब यह निश्चय हो गया कि ये जरायुज थे। कुछ जीवाश्मों में शरीर के अंदर छोटे शिशु या भ्रूण मिले हैं, जिससे जरायुज होने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। जीवाश्मों की आँतों में समुद्र फेनी या कटलफिश, या मछलियों के मिलने से पता लगता है कि ये मछलियों को खाते थे। संभवत: ये अपने शिशुओं का भी भक्षण करते थे। एक समय ऐसा समझा जाता था कि मीनसरीसृप मछलियों के विकास से बने हैं, पर अब यह निश्चित है कि ये स्थलीय सरीसृपों से ही ऐसे बने हैं कि उनकी थलीय प्रकृति बिल्कुल नष्ट हो गई है और जलीय जीवनयापन के अनुकूल बन गई है। .

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यूरिया

यूरिया (Urea या carbamide) एक कार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र (NH2)2CO होता है। कार्बनिक रसायन के क्षेत्र में इसे कार्बामाइड भी कहा जाता है। यह एक रंगहीन, गन्धहीन, सफेद, रवेदार जहरीला ठोस पदार्थ है। यह जल में अति विलेय है। यह स्तनपायी और सरीसृप प्राणियों के मूत्र में पाया जाता है। कृषि में नाइट्रोजनयुक्त रासायनिक खाद के रूप में इसका उपयोग होता है। यूरिया को सर्वप्रथम १७७३ में मूत्र में फ्रेंच वैज्ञानिक हिलेरी राउले ने खोजा था परन्तु कृत्रिम विधि से सबसे पहले यूरिया बनाने का श्रेय जर्मन वैज्ञानिक वोहलर को जाता है। इन्होंने सिल्वर आइसोसाइनेट से यूरिया का निर्माण किया तथा स्वीडेन के वैज्ञानिक बर्जेलियस के एक पत्र लिखा कि मैंने वृक्क (किडनी) की सहायता लिए बिना कृत्रिम विधि से यूरिया बना लिया है। उस समय पूरी दुनिया में बर्जेलियस का सिद्धान्त माना जाता था कि यूरिया जैसे कार्बनिक यौगिक सजीवों के शरीर के बाहर बन ही नहीं सकते तथा इनको बनाने के लिए प्राण शक्ति की आवश्यकता होती है। बड़े पैमाने पर यूरिया का उत्पादन द्रव अमोनिया तथा द्रव कार्बन डाई-आक्साइड की प्रतिक्रिया से होता है। यूरिया का उपयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में होता है। इसका प्रयोग वाहनों के प्रदूषण नियंत्रक के रूप में भी किया जाता है। यूरिया-फार्मल्डिहाइड, रेंजिन, प्लास्टिक एवं हाइड्राजिन बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। इससे यूरिया-स्टीबामिन नामक काला-जार की दवा बनती है। वेरोनल नामक नींद की दवा बनाने में उसका उपयोग किया जाता है। सेडेटिव के रूप में उपयोग होने वाली दवाओं के बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। .

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रैंफोरिंकस

रैम्फोरिंकस का जीवाश्म रैंफोरिंकस (Rhamphorhynchus) के जीवाश्म बवेरिया (जर्मनी) के सोलेनहोफेन प्रदेश तथा इंग्लैंड की किंमेरिज मिट्टियों (Kimmeridge clay) में पाए गए हैं। ये टेरोडैक्टिला (Pterodactyla) अर्थात् पक्षी सरट, टेरोसॉरिया गण के पंखधारी तथा उड़नेवाले विलुप्त सरीसृप (reptiles) हैं, जिनके जीवाश्म (fossils) जर्मनी के कुछ भूक्षेत्रों में मिले हैं। इनका वृद्विकाल जुरैसिक युग माना गया है, जो सरीसृप वर्ग के जंतुओं के विकास का मध्यकाल कहा जाता है। इन जंतुओं को कुछ विभिन्नताओं के कारण समूहों में विभाजित किया गया है। एक समूह के जंतुओं की पूँछ लंबी होती थी, जिसके एक छोर पर पंख (fin) होता था, तथा दूसरे समूह के जंतुआं में पंख का सर्वथा अभाव था। रैंफोरिंकस का सिर लगभग ३.१/२ इंच लंबा था। मुखद्वार अधिक चौड़ा तथा लंबे एवं तीक्ष्ण नुकीले दाँतों से युक्त था। नेत्र निचले जबड़े के संधिस्थान के ऊपर स्थित थे। इनका आकार बहुत बड़ा तथा इनकी दीवारों में पक्षियों के सदृश अस्थि के कई टुकड़े होते थे। दोनों नासा छिद्र नेत्र के सम्मुख कुछ दूर पर स्थित थे। लगभग २ लंबी तथा नम्य ग्रीवा के ऊपर समकोण रूप से सिर जुड़ा हुआ था। धड़ अपेक्षाकृत छोटे आकार का, लगभग ४ लंबा, था। पूँछ की लंबाई लगभग १५ थी। कई भिन्न भिन्न भागों द्वारा बने रहने पर भी अनुमानत: संपूर्ण पूँछ की गति एक साथ ही होती होगी, क्योंकि योजक कंडरा (tendons) अस्थिभूत (ossified) थे। इनके पक्ष केवल त्वचा के प्रसार के कारण बनी झिल्लियों के द्वारा निर्मित थे। ये अपेक्षाकृत अधिक लंबी अग्रबाहु (fore limb) एवं समुन्नत चतुर्थ अँगुली के द्वारा सधे हुए थे। इन दोनों पक्षों के प्रसार की लंबाई लगभग २५� � थी। शेष चारों अँगुलियों में केवल तीन ही चंगुल के रूप में परिवर्तित थीं, कनिष्ठा का अभाव था। पक्ष की झिल्लियाँ शरीर के दोनों पारर्श्वों से पश्चपाद (hindleg) के साथ मिली हुई थीं। इनकी चंगुल सदृश, तीनों अंगुलियाँ संभवत: खाद्य पदार्थ को ग्रहण करने तथा भू पर उतरने में सहायक थीं। पूँछ का पश्च भाग कुछ चौड़ा तथा झिल्लियों के अनुप्रस्थ जालक (plexers) के द्वारा बना हुआ था। पश्चपाद का शेष भाग अधिक लंबा था तथा इसके साथ पाँच लंबी अंगुलियाँ जुड़ी हुई थीं। प्रथम अंगुली के अतिरिक्त, शेष चारों अँगुलियों के मध्य संभवत: झिल्लियों का संबंध था। रैंफौरिंकस का संपूर्ण शरीर चिकना तथा शल्क (scales) रहित था। केवल शिर के ऊपर कुछ लोम (hair) जैसे प्रोद्वर्ध (protuberances) थे। इन जंतुओं के पक्ष वस्तुत: पक्षियों के पक्ष से सर्वथा भिन्न थे, क्योंकि इनके ऊपर परों का अभाव था। ये वायव्य सरीसृप मत्स्यभक्षी ज्ञात होते हैं। ये संभवत: समुद्र के ऊपर मछलियों की खोज में उड़ा करते थे। विश्राम के समय पृथ्वी पर चलना इनके क्षीण पैरों के लिए संभव नहीं था, इसलिये ये चमगादड़ की तरह वृक्षों की शाखाओं या चट्टानों से लटकते हुए झूलते रहते थे। .

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लेपिडोसोरिया

लेपिडोसोरिया (Lepidosauria) सरीसृप (reptiles) के उन सदस्यों को कहते हैं जिनके शल्क एक-के-ऊपर-एक अतिछादी होते हैं, यानि एक शल्क का कुछ अंश दूसरे शल्क के ऊपर पड़ता है। .

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श्रीलंका के वन्य जीव

श्रीलंका के वन्यजीव, वनस्पतियां एवं जीव जंतु अपने प्राकृतिक निवास में रहते हैं। श्रीलंका मैं जैविक स्थानिकता की विश्व में उच्चतम दर है (16% जीव और पौधों की 23% हैं) .

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सफ़ेद गिद्ध

स्पेन के मैड्रिड स्थित एक चिड़ियाघर में सफ़ेद गिद्ध सफ़ेद गिद्ध (Egyptian Vulture) (Neophron percnopterus) पुरानी दुनिया (जिसमें दोनों अमरीकी महाद्वीप शामिल नहीं होते) का गिद्ध है जो पहले पश्चिमी अफ़्रीका से लेकर उत्तर भारत, पाकिस्तान और नेपाल में काफ़ी तादाद में पाया जाता था किन्तु अब इसकी आबादी में बहुत गिरावट आयी है और इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त घोषित कर दिया है। भारत में जो उपप्रजाति पाई जाती है उसका वैज्ञानिक नाम (Neophron percnopterus ginginianus) है। उत्तर भारत के अलावा भारत में अन्य जगह यह प्रवासी पक्षी है। .

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समुद्री सर्प

हाइड्रोफ़ीनाए (Hydrophiinae), जिन्हें समुद्री सर्प (sea snakes) भी कहते हैं, इलापिडाए सर्प कुल की एक उपशाखा है जिसके सदस्य विषैले और अपना अधिकांश जीवन समुद्र व अन्य जलीय स्थानों पर व्यतीत करने वाले होते हैं। इन में से ज़्यादातर का शरीर समुद्री जीवन के अनुकूल होता है और वे धरती पर अधिक समय नहीं रह पाते हालांकि लातिकाउडा (Laticauda) वंश के सर्प कुछ हद तक धरती पर चलने में सक्षम हैं। इनकी पूँछ का अंतिम भाग चपटा होता है, जो उन्हें तैरने में सहायक होता है। समुद्री सर्प हिन्द महासागर से लेकर प्रशांत महासागर के गरम जलीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं। आनुवंशिकी (जेनेटिक) दृष्टि से समुद्री साँप औस्ट्रेलिया के विषैले सर्पों से सम्बन्धित हैं। .

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साँप

साँप साँप या सर्प, पृष्ठवंशी सरीसृप वर्ग का प्राणी है। यह जल तथा थल दोनों जगह पाया जाता है। इसका शरीर लम्बी रस्सी के समान होता है जो पूरा का पूरा स्केल्स से ढँका रहता है। साँप के पैर नहीं होते हैं। यह निचले भाग में उपस्थित घड़ारियों की सहायता से चलता फिरता है। इसकी आँखों में पलकें नहीं होती, ये हमेशा खुली रहती हैं। साँप विषैले तथा विषहीन दोनों प्रकार के होते हैं। इसके ऊपरी और निचले जबड़े की हड्डियाँ इस प्रकार की सन्धि बनाती है जिसके कारण इसका मुँह बड़े आकार में खुलता है। इसके मुँह में विष की थैली होती है जिससे जुडे़ दाँत तेज तथा खोखले होते हैं अतः इसके काटते ही विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। दुनिया में साँपों की कोई २५००-३००० प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसकी कुछ प्रजातियों का आकार १० सेण्टीमीटर होता है जबकि अजगर नामक साँप २५ फिट तक लम्बा होता है। साँप मेढक, छिपकली, पक्षी, चूहे तथा दूसरे साँपों को खाता है। यह कभी-कभी बड़े जन्तुओं को भी निगल जाता है। सरीसृप वर्ग के अन्य सभी सदस्यों की तरह ही सर्प शीतरक्त का प्राणी है अर्थात् यह अपने शरीर का तापमान स्वंय नियंत्रित नहीं कर सकता है। इसके शरीर का तापमान वातावरण के ताप के अनुसार घटता या बढ़ता रहता है। यह अपने शरीर के तापमान को बढ़ाने के लिए भोजन पर निर्भर नहीं है इसलिए अत्यन्त कम भोजन मिलने पर भी यह जीवीत रहता है। कुछ साँपों को महीनों बाद-बाद भोजन मिलता है तथा कुछ सर्प वर्ष में मात्र एक बार या दो बार ढेड़ सारा खाना खाकर जीवीत रहते हैं। खाते समय साँप भोजन को चबाकर नहीं खाता है बल्कि पूरा का पूरा निकल जाता है। अधिकांश सर्पों के जबड़े इनके सिर से भी बड़े शिकार को निगल सकने के लिए अनुकुलित होते हैं। अफ्रीका का अजगर तो छोटी गाय आदि को भी नगल जाता है। विश्व का सबसे छोटा साँप थ्रेड स्नेक होता है। जो कैरेबियन सागर के सेट लुसिया माटिनिक तथा वारवडोस आदि द्वीपों में पाया जाता है वह केवल १०-१२ सेंटीमीटर लंबा होता है। विश्व का सबसे लंबा साँप रैटिकुलेटेड पेथोन (जालीदार अजगर) है, जो प्राय: १० मीटर से भी अधिक लंबा तथा १२० किलोग्राम वजन तक का पाया जाता है। यह दक्षिण -पूर्वी एशिया तथा फिलीपींस में मिलता है। .

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साधारण छिपकली

साधारण छिपकली (Hemidactylus flaviviridis, Yellow-bellied House Gecko) एक प्रकार की छिपकली है जो भारतीय उपमहाद्वीप, अफ़्ग़ानिस्तान, ईरान, इराक़, ओमान, क़तर, साउदी अरब, इथियोपिया, इत्यादि में आम पाई जाती है। .

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स्टेगोसोरस

स्टेगोसोरस (Stegosaurus) डायनासोरों का एक वंश था जिनके आज से १५ से १५.५ करोड़ पुराने जीवाश्म (फ़ोसिल) मिले हैं। यह एक भारी और बड़े आकार के शाकाहारी डायनासोर थे जो अपने कवच-वाले शरीर, पीठ पर स्थित खड़े हुए तख़्तों की क़तार और पूँछ पर लगी बड़ी नोकदार कीलों के लिये जाने जाते हैं। स्टेगोसोरों के शरीरों में इन तख़्तों के उद्देश्य को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद है लेकिन कीलों का प्रयोग स्टेगोसोर अपनी रक्षा के लिये करते थे। आज तक लगभग ८० स्टेगोसोरों के जीवाश्म मिल चुके हैं जिन के आधार पर इस वंश की तीन अलग जीववैज्ञानिक जातियाँ ज्ञात हैं। .

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स्क्वमाटा

स्क्वमाटा (Squamata) प्राणियों का वह गण है जिसके सदस्य सारे शल्क-वाले सरीसृप (रेप्टाइल) हैं। सारे साँप व छिपकलियाँ इसी गण में शामिल हैं। स्क्वमाटा में लगभग ९००० भिन्न जीववैज्ञानिक जातियाँ शामिल हैं और, पर्सिफ़ोर्म मछलियों के बाद, यह कशेरुकी जन्तुओं (रीढ़ की हड्डी वाले) का दूसरा सबसे बड़ा गण है। .

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हृदय

कोरोनरी धमनियों के साथ मानव हृदय. हृदय या हिया या दिल एक पेशीय (muscular) अंग है, जो सभी कशेरुकी (vertebrate) जीवों में आवृत ताल बद्ध संकुचन के द्वारा रक्त का प्रवाह शरीर के सभी भागो तक पहुचाता है। कशेरुकियों का ह्रदय हृद पेशी (cardiac muscle) से बना होता है, जो एक अनैच्छिक पेशी (involuntary muscle) ऊतक है, जो केवल ह्रदय अंग में ही पाया जाता है। औसतन मानव ह्रदय एक मिनट में ७२ बार धड़कता है, जो (लगभग ६६वर्ष) एक जीवन काल में २.५ बिलियन बार धड़कता है। इसका भार औसतन महिलाओं में २५० से ३०० ग्राम और पुरुषों में ३०० से ३५० ग्राम होता है। .

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जैव विविधता

--> वर्षावन जैव विविधता जीवन और विविधता के संयोग से निर्मित शब्द है जो आम तौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (युएनईपी), के अनुसार जैवविविधता biodiversity विशिष्टतया अनुवांशिक, प्रजाति, तथा पारिस्थितिकि तंत्र के विविधता का स्तर मापता है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है। पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित हैं। सन् 2010 को जैव विविधता का अंतरराष्ट्रीय वर्ष, घोषित किया गया है। .

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जीवाश्मविज्ञान

जीवाश्मिकी या जीवाश्म विज्ञान या पैलेन्टोलॉजी (Paleontology), भौमिकी की वह शाखा है जिसका संबंध भौमिकीय युगों के उन प्राणियों और पादपों के अवशेषों से है जो अब भूपर्पटी के शैलों में ही पाए जाते हैं। जीवाश्मिकी की परिभाषा देते हुए ट्वेब होफ़ेल और आक ने लिखा है: जीवाश्मिकी वह विज्ञान है, जो आदिम पौधें तथा जंतुओं के अश्मीभूत अवशेषों द्वारा प्रकट भूतकालीन भूगर्भिक युगों के जीवनकी व्याख्या करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जीवाश्म विज्ञान आदिकालीन जीवजंतुओं का, उने अश्मीभूत अवशेषों के आधार पर अध्ययन करता है। जीवाश्म शब्द से ही यह इंगित होता है कि जीव + अश्म (अश्मीभूत जीव) का अध्ययन है। अँग्रेजी का Palaentology शब्द भी Palaios .

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घड़ियाल, पशु

घड़ियाल (Gavialis gangeticus), गवीएलिस किल के दो वर्तमान सदस्यों में से एक है। इसे फ़िश ईटिंग क्रोकोडाइल(मछली खानेवाला मगरमच्छ) भी कहते हैं यह मगरमच्छ जैसा सरीसृप होता है जिसके लंबे किंतु संकरे दाड़े होती हैं। यह एकदम विलुप्तप्राय प्रजाति है। घड़ियाल यह मगरमच्छों की जीवित प्रजातीयों में से सबसे लंबा 3.5 से 4.5 (11 से 15 फुट) तक होती है। सैन डियागो ज़ू में नर घड़ियाल नर घड़ियाल का निकट दृश्य .

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घोंसला

टोकरी के आकार का घोंसला घोंसला एक प्राणी विशेष तौर पर एक पक्षी का शरण स्थल है जहां पर यह अंडे देते हैं, रहते हैं और अपनी संतानो को पालते हैं। एक घोंसला आमतौर पर कार्बनिक सामग्री जैसे टहनी, घास और पत्ती; आदि से बना होता है पर, कभी कभी यह जमीन में एक गड्ढा़, पेड़ का कोटर, चट्टान या इमारत में छेद के रूप मे भी हो सकता है। मानव निर्मित धागे, प्लास्टिक, कपड़े, बाल या कागज जैसे पदार्थों का इस्तेमाल भी प्राणी घोंसला बनाने मे करते हैं। आमतौर पर प्रत्येक प्रजाति के घोंसले की एक विशिष्ट शैली होती है। घोंसलों को कई अलग अलग पर्यावासों में पाया जा सकता है। यह् मुख्यतः पक्षियों द्वारा बनाये जाते हैं पर स्तनधारी जन्तु (जैसे गिलहरी), मछली, कीट और सरीसृप भी घोंसलों का निर्माण करते हैं। .

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वर्षावन

ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में डैनट्री वर्षावन. क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया में केर्न्स के पास डैनट्री वर्षावन. न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में इल्लावारा ब्रश के भाग। वर्षावन वे जंगल हैं, जिनमें प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है अर्थात जहां न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा 1750-2000 मि॰मी॰ (68-78 इंच) के बीच है। मानसूनी कम दबाव का क्षेत्र जिसे वैकल्पिक रूप से अंतर-उष्णकटिबंधीय संसृति क्षेत्र के नाम से जाना जाता है, की पृथ्वी पर वर्षावनों के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका है। विश्व के पशु-पौधों की सभी प्रजातियों का कुल 40 से 75% इन्हीं वर्षावनों का मूल प्रवासी है। यह अनुमान लगाया गया है कि पौधों, कीटों और सूक्ष्मजीवों की कई लाख प्रजातियां अभी तक खोजी नहीं गई हैं। उष्णकटिबंधीय वर्षावनों को पृथ्वी के आभूषण और संसार की सबसे बड़ी औषधशाला कहा गया है, क्योंकि एक चौथाई प्राकृतिक औषधियों की खोज यहीं हुई है। विश्व के कुल ऑक्सीजन प्राप्ति का 28% वर्षावनों से ही मिलता है, इसे अक्सर कार्बन डाई ऑक्साइड से प्रकाश संष्लेषण के द्वारा प्रसंस्करण कर जैविक अधिग्रहण के माध्यम से कार्बन के रूप में भंडारण करने वाले ऑक्सीजन उत्पादन के रूप में गलत समझ लिया जाता है। भूमि स्तर पर सूर्य का प्रकाश न पहुंच पाने के कारण वर्षावनों के कई क्षेत्रों में बड़े वृक्षों के नीचे छोटे पौधे और झाड़ियां बहुत कम उग पाती हैं। इस से जंगल में चल पाना संभव हो जाता है। यदि पत्तों के वितानावरण को काट दिया जाए या हलका कर दिया जाए, तो नीचे की जमीन जल्दी ही घनी उलझी हुई बेलों, झाड़ियों और छोटे-छोटे पेड़ों से भर जाएगी, जिसे जंगल कहा जाता है। दो प्रकार के वर्षावन होते हैं, उष्णकटिबंधीय वर्षावन तथा समशीतोष्ण वर्षावन। .

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वर्गानुवंशिकी

वर्गानुवंशिक समूह, या टैक्सोन, एकवर्गी (मोनोफ़ाइलिटिक), परवर्गी (पैराफ़ाइलिटिक), या बहुवर्गी (पॉलीफ़ाइलिटिक) हो सकते हैं वर्गानुवंशिकी या फ़ाइलोजेनेटिक्स​ (phylogenetics) जीवों के बीच के क्रम-विकास (एवोल्यूशन) के सम्बन्ध के अध्ययन का नाम है। इसमें उनके आनुवांशिकी (जेनेटिक्स) लक्षणों की तुलना उनके डी॰ऍन॰ए॰ और प्रोटीन अणुओं का परीक्षण करके की जाती है और यह दावे किये जाते हैं कि कौनसी जातियाँ किन अन्य जातियों से विकसित हुई हैं। इसमें कुछ विलुप्त हुई जातियों के अध्ययन में कठिनाई आती है जिनकी कोई भी आनुवांशिक सामग्री विश्व में नहीं बची है - उन जीवों के लिए उनके जीवाश्म (फ़ॉसिल​) अवशेषों को परखकर क्रम-विकास संबंधों को समझने की कोशिश की जाती है। वर्गानुवंशिकी से पता चलता है कि विभिन्न जातियों और जीववैज्ञानिक वर्गों की क्रम-विकास द्वारा उत्पत्ति का इतिहास क्या है। आधुनिक युग में जीववैज्ञानिक इस जानकारी के आधार पर जीवों की जातियों को भिन्न क्लेडों में वर्गीकृत करके जीवन वृक्ष में आयोजित करते हैं।, Jean-Michel Claverie and Cedric Notredame, pp.

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वाइपरिडाए

वाइपरिडाए (Viperidae) विषैले साँपों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जो विश्वभर में पाये जाते हैं, सिवाय हवाई, अंटार्कटिका, आस्ट्रेलिया, न्यू ज़ीलैंड, माडागास्कर और अन्य अलग-थलग स्थानों के। साधारण बोलचाल में वाइपर (Viper) कहलाये जाने वाले इन सर्पों में लम्बे और चूलदार दांत होते हैं जिन्हें वे अपने ग्रास या प्रतिद्वन्दी में गहराई से गाढ़कर ज़हर का प्रवाह कर सकते हैं। .

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विनोदचंद्र नायक

विनोदचंद्र नायक ओड़िया भाषा के विख्यात साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह सरीसृप के लिये उन्हें सन् 1970 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

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खारे पानी के मगरमच्छ

कायर्न्स, क्वींसलैंड के बाहर खारे पानी के मगरमच्छ खारे पानी का मगरमच्छ या एस्टूएराइन क्रोकोडाइल (estuarine crocodile) (क्रोकोडिलस पोरोसस) सबसे बड़े आकार का जीवित सरीसृप है। यह उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, भारत के पूर्वी तट और दक्षिण-पूर्वी एशिया के उपयुक्त आवास स्थानों में पाया जाता है। .

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गिरगिट

गिरगिट (Chameleons, कैमीलियन) एक प्रकार का पूर्वजगत छिपकली का क्लेड है जिसकी जून २०१५ तक २०२ जीववैज्ञानिक जातियाँ ज्ञात थी। गिरगिटें कई रंगों की होती हैं और उनमें से कई में रंग बदलने की क्षमता होती है। .

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ग्रहणी

ग्रहणी (duodenum) अधिकांश उच्चतर कशेरुकी प्राणियों (जैसे स्तनधारी, सरिसृप, पक्षी आदि) के क्षुदांत्र का प्रथम भाग होता है। .

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गोह

गोह गोह (Monitor lizard) सरीसृपों के स्क्वामेटा (Squamata) गण के वैरानिडी (Varanidae) कुल के जीव हैं, जिनका शरीर छिपकली के सदृश, लेकिन उससे बहुत बड़ा होता है। गोह छिपकिलियों के निकट संबंधी हैं, जो अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अरब और एशिया आदि देशों में फैले हुए हैं। ये छोटे बड़े सभी तरह के होते है, जिनमें से कुछ की लंबाई तो 10 फुट तक पहुँच जाती है। इनका रंग प्राय: भूरा रहता है। इनका शरीर छोटे छोटे शल्कों से भरा रहता है। इनकी जबान साँप की तरह दुफंकी, पंजे मजबूत, दुम चपटी और शरीर गोल रहता है। इनमें कुछ अपना अधिक समय पानी में बिताते हैं और कुछ खुश्की पर, लेकिन वैसे सभी गोह खुश्की, पानी और पेड़ों पर रह लेते हैं। ये सब मांसाहारी जीव हैं, जो मांस मछलियों के अलावा कीड़े मकोड़े और अंडे खाते है। .

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आर्कियोप्टेरिक्स

लंदन विश्वविद्यालय में आर्कियोप्टेरिक्स का मोडेल आद्यपक्षी या आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) पहला ज्ञात पक्षी है। इसकी उत्पत्ति जुरेसिक काल में १४० करोड़ वर्ष पहले हुई थी। यह सरीसृप एवं पक्षी वर्ग के बीच के कड़ी है। १.५ फीट लम्बे इस जीवाश्म पक्षी में पक्षियों एवं डायनासोर दोनों के लक्षण थें जो यह प्रमाणित करता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है और मध्य में आर्कियोप्टेरिक्स जैसे जन्तु हुए। आर्कियोप्टेरिक्स आज पृथ्वी पर जीवित नहीं है इसलिए इसे लुप्तकड़ी भी कहते हैं। .

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आर्कोसोरिया

आर्कोसोरिया (Archosauria) एक प्राणियों का एक क्लेड है जिसमें सभी पक्षी व मगरमच्छ शामिल हैं। सारे डायनासोर (जो अब सभी विलुप्त हो चुके हैं) भी इसी समूह के सदस्य थे। .

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इलापिडाए

इलापिडाए (Elapidae) विषैले साँपों का एक जीववैज्ञानिक कुल है जो विश्व के ऊष्णकटिबन्ध (ट्रोपिकल) और उपोष्णकटिबन्ध (सबट्रोपिकल) क्षेत्रों में पाये जाते हैं। यह धरती और समुद्रों दोनों में रहते हैं। इन सभी के दांत खोखले होते हैं जिन में से यह किसी अन्य प्राणी को काटने पर सीधा उसमें विष का प्रवाह कर देते हैं। आकार में यह १८ सेंटीमीटर लम्बे ड्रिस्डेलिया से लेकर ५.६ मीटर लम्बे नागराज तक के होते हैं। वर्तमानकाल में इलापिडाए परिवार में ३२५ जातियाँ शामिल हैं। .

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करैत

करैत (Common Krait / Bungarus caeruleus) करैत सापों की प्रजाति है जो भारतीय उपमहाद्वीप के जंगलों में पायी जाती है। यह अत्यन्त विषैला सर्प है। भारत के सबसे खतरनाक चार सर्पों में से एक है। .

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कलगीदार सर्प चील

उत्तरी बोर्नियो के नीची भूमि से उप-जाति एस. सी. पैलिडस कलगीदार सर्प चील (स्पीलॉर्निस चील) एक माध्यम आकर की शिकारी (परभक्षी) चिड़िया है जो उष्णकटिबंधीय एशिया के प्राकृतिक वन्य वासों में पायी जाती है। इसके व्यापक परास में, अनेकों भिन्नताएं हैं और इसके कुछ प्रकार इसकी उपजाति माने जाते हैं जबकि अन्य को पूर्ण प्रजाति के रूप में देखा जाता है, इस कारण समूह का वर्गीकरण विज्ञान समाधित नहीं है। इसके निकट संबंधी जिन्हें प्रायः पूर्ण प्रजाति माना जाता है उसमे फिलिस्तीन के सर्प चील (एस.होलोस्पिला), अंडमान के सर्प-चील (स्पीलॉर्निस एल्जिनी) और दक्षिण निकोबार के सर्प-चील (स्पीलॉर्निस क्लोस्सी) शामिल हैं। इस प्रजाति समष्टि के सभी सदस्यों में बड़ा सा दिखने वाला सर होता है जिस पर कुछ पंख होते हैं और जो इन्हें नर के सामान और कलगीदार रूप प्रदान करता है। इनका चेहरा स्पष्ट एवम पीला होता है और जो मोम-झिल्ली से जुड़ा होता है और इनके मजबूत पंजे पंखरहित तथा प्रवर्धित होते हैं। ये वन के वितान पर चारा खोजती हैं और इनके पंख तथा पूंछ, चौड़ी सफ़ेद और काली पट्टियां प्रदर्शित करते हैं और ये प्रायः तीखी और परिचित तीन या दो स्वरयुक्त ध्वनि निकालती हैं। ये प्रायः सांप का भक्षण करती हैं, जिसके फलस्वरूप ही इन्हें इनका नाम दिया गया है और इसीलिए इन्हें सिर्केटस सर्प-चीलों के साथ सिर्केटिने प्रजाति में रखा गया है। .

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कछुआ

कछुए (Turtles) या कर्म टेस्टूडनीज़ नामक सरीसृपों के जीववैज्ञानिक गण के सदस्य होते हैं जो उनके शरीरों के मुख्य भाग को उनकी पसलियों से विकसित हुए ढाल-जैसे कवच से पहचाने जाते हैं। विश्व में स्थलीय कछुओं और जलीय कछुओं दोनों की कई जातियाँ हैं। कछुओं की सबसे पहली जातियाँ आज से १५.७ करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थीं, जो की सर्वप्रथम सर्पों व मगरमच्छों से भी पहले था। इसलिये वैज्ञानिक उन्हें प्राचीनतम सरीसृपों में से एक मानते हैं। कछुओं की कई जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं लेकिन ३२७ आज भी अस्तित्व में हैं। इनमें से कई जातियाँ ख़तरे में हैं और उनका संरक्षण करना एक चिंता का विषय है। इसकी उम्र 300 साल से अधिक होती है .

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कोमोडो ड्रैगन

कोमोडो ड्रैगन (Komodo dragon, वैज्ञानिक नाम: वारानस कोमोडोएनिस) या जिसे कोमोडो मॉनिटर भी कहते है, एक विशाल छिपकली की प्रजाति है जों इण्डोनेशियाई द्वीप कोमोडो, रिंका, फ्लोरेस, गीली मोटांग और गीली दासमी में पाए जाती है। यह एक मॉनिटर छिपकली की प्रजाति (गिरगिट) .

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कोरल सर्प

कोरल सर्प एलैपिड सर्पों के एक बड़े समूह को कहते हैं, जिसे दो भिन्न समूहों, पुरातन विश्व कोरल सर्प (ओल्ड वर्ल्ड कोरल स्नेक्स) एवं नवीन विश्व कोरल सर्प (न्यू वर्ल्ड कोरल स्नेक्स) में बांटा जा सकता है।पुरातन विश्व समूह में १६ प्रजातियां तथा नवीन विश्व समूह में ६५ प्रजातियां आती हैं।   .

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अण्डा (खाद्य)

मुर्गी के दो अण्डे: एक भूरा, दूसरा सफेद मुर्गी का कचा अण्डा तोड़ने पर अनेक जन्तु अण्डे देते हैं जिनमें प्रमुख हैं- पक्षी, सरीसृप, उभयचर, स्तनपायी (मम्मल) तथा मछलियाँ। हजारों वर्षों से मानव तथा अन्य जन्तु इन अण्डों को खाता आ रहा है। पक्षियों तथा सरीसृपों के अण्डों के ऊपर एक रक्षा-कवच होता है, उसके अन्दर श्वेतक (एल्ब्युमेन) तथा अण्ड पीतक (अंडे की जरदी) होते हैं। मुर्गी के अण्डे खाने के लिये सबसे अधिक पसन्द किये जाते हैं। इसके अलावा बतख, तीतर, आदि के अंडे भी खाये जाते हैं। .

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अण्डजता

अण्डज वो जीव होते हैं जो अंडे देते हैं और जिनके भ्रूण का विकास माता के गर्भ में नहीं होता, सिर्फ कुछ अपवादों में ही इनके भ्रूण का विकास माता के शरीर् में आंशिक रूप से होता या है। प्रजनन का यह तरीका अधिकतर मछलियों, उभयचरों, सरीसृपों, सभी पक्षियों, मोनोट्रीम, अधिकतर कीटों और लूताभों में सबसे सामान्य है। अंडे देने वाले स्थलचर, जैसे सरीसृप और कीट जिनके अंडे एक कवच द्वारा सुरक्षित रहते हैं, आंतरिक निषेचन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही अंडे देते हैं, जबकि जलचरों, जैसे कि मछलियों और उभयचरों में अंडे निषेचन प्रक्रिया से पहले दिए जाते हैं और ताजे दिए अंडों के ऊपर नर अपने शुक्राणु छिड़क देता है और यह प्रक्रिया बाह्य निषेचन कहलाती है। लगभग सभी गैर अण्डज मछलियां, उभयचर और सरीसृप अण्डजरायुज होते हैं, अर्थात् अंडे माँ के शरीर के अंदर ही फूटते हैं (समुद्री घोड़े के मामले में पिता के अंदर)। अण्डजता का वास्तविक विलोम आंवल जरायुजता है जो लगभग सभी स्तनधारियों में पाई जाती है (धानी-प्राणी (मार्स्युपिअल) और मोनोट्रीम जैसे अपवादों को छोड़कर)। स्तनधारियों की सिर्फ पांच ज्ञात अण्डज प्रजातियां हैं: एकिड्ना की चार प्रजातियां और प्लैटीपस। .

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अफई

अफई (Echis carinatus) छोटा और विषैला साँप है जिसका सिर तिकोना और जिसकी सफेद रंग की भूरी पृष्ठभूमि पर एक तीर का निशान बना रहता है। शरीर धूसरपन लिए हुए भूरा और उसपर पीले चिह्नों की एक शृंखला होती है। उक्त शृंखला देह के ऊपर एक वक्र बनाती है। अफई की लंबाई ५५० मि.मि.

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अल्बर्टोसौरस

अल्बर्टोसौरस (Albertosaurus, अर्थात "अलबर्ट छिपकली").

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उभयचर

उभयचर वर्ग (Amphibia / एंफ़िबिया) पृष्ठवंशीय प्राणियों का एक बहुत महत्वपूर्ण वर्ग है जो जीववैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार मत्स्य और सरीसृप वर्गों के बीच की श्रेणी में आता है। इस वर्ग के कुछ जंतु सदा जल पर तथा कुछ जल और थल दोनों पर रहते हैं। ये अनियततापी जंतु हैं। इस वर्ग में ३००० जाति पाए जाते हैं। शरीर पर शल्क, बाल या पंख नहीं होते हैं, परंतु इनकी त्वचा अधिक ग्रंथिमय होने के कारण चिकनी होती है। मेंढक इस वर्ग का एक प्रमुख प्राणि है। यह पृष्ठवंशियों का प्रथम वर्ग है, जिसने जल के बाहर रहने का प्रयास किया था। फलस्वरूप नई परिस्थितियों के अनुकूल इनकी रचना में प्रधानतया तीन प्रकार के अंतर हुए- (१) इनका शारीरिक ढाँचा जल में तैरने के अतिरिक्त थल पर भी रहने के योग्य हुआ। (२) क्लोम दरारों के स्थान पर फेफड़ों का उत्पादन हुआ तथा रक्तपरिवहन में भी संबंधित परिवर्तन हुए। (३) ज्ञानेंद्रियों में यथायोग्य परिवर्तन हुए, जिससे ये प्राणी जल तथा थल दोनों परिस्थितियों का ज्ञान कर सकें। .

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छिपकली

Clockwise from top left: veiled chameleon(''Chamaeleo calyptratus''), rock monitor (''Varanus albigularis''), common blue-tongued skink (''Tiliqua scincoides''), Italian wall lizard (''Podarcis sicula''), giant leaf-tailed gecko (''Uroplatus fimbriatus''), and legless lizard (''Anelytropsis papillosus'') छिपकली स्क्वमाटा जीववैज्ञानिक गण के सरीसृप प्राणियों का एक उपगण है, जिसमें अंटार्कटिका के अलावा लगभग विश्व भर के हर बड़े भू-भाग में मिलने वाली लगभग ६००० ज्ञात जातियाँ शामिल हैं। ध्यान दें कि सर्प भी स्क्वमाटा गण के सदस्य होते हैं और छिपकली व सर्प दोनों एक ही पूर्वज के वंशज हैं लेकिन परिभाषिक रूप से सर्पों को छिपकली नहीं समझा जाता। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सरिसृप, सरिसृपों, सर्पणशील, सरीसृप वर्ग, सरीसृपों

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